कार्यदल 4 – विकास को पुनः ऊर्जा प्रदान करना: स्वच्छ ऊर्जा और हरित परिवर्तन
कई राजनीतिक चक्रों (Political cycles- आर्थिक गतिविधियों में जब राजनीतिक कारणों से उतार-चढाव आते हैं तो उसे राजनीतिक चक्र कहते हैं) के दौरान जी20 सरकारें जब भी हरित परिवर्तन लागू करने की कोशिश करती हैं तो वह हर बार एक साथ आने वाले भारी संकटों या ‘पॉलीक्राइसिस’ (polycrisis) में फंस जाती हैं. ऐसी बहुपक्षीय चुनौती का सामना केवल जी20 को सक्रिय करके ही किया जा सकता है, जिससे संरचनात्मक हरित समाधानों को राष्ट्रीय विकास पथ (घटनाओं के ऐसे क्रम को विकास पथ या developmental pathway कहा जाता है जो एक विशेष परिणाम को हासिल करने के लिए घटित होती हैं) में शामिल किया जा सके. कोविड-19 हरित सुधार कार्यक्रमों ने हरित परिवर्तन की प्रक्रिया को गति देने में मदद की है, लेकिन लंबे समय तक लाभ देने वाले संरचनात्मक हरित परिवर्तन- जैसे कि प्राकृतिक पूंजी/ प्रकृति आधारित समाधान (प्राकृतिक पूंजी नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय स्रोतों (जैसे कि पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, हवा, पानी, मिट्टी, खनिज आदि) को कहा जाता है, जो मिलकर लोगों का भला करते रहते हैं)- की ओर ध्यान कम ही गया है और इनमें निवेश भी सीमित ही हुआ है. इसके लिए सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से समन्वित बहुपक्षीय प्रतिक्रिया और अनुकूल व्यवहार का भरोसा दिए जाने की ज़रूरत है. नीति विकल्पों में शामिल हैं यथास्थिति को जारी रखना, जिसमें संरचनात्मक हरित नीतियों को लेकर सरकारों के बीच कोई समन्वय नहीं रहता और ऐसे किसी मामले के सामने आने पर उसे अकेला मानकर निपटा जाता है, जिसकी वजह से इस पर निवेश कम रहता है; संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों को परिभाषित और प्रोत्साहित करने के लिए जी20 सदस्यों के बीच समन्वय, प्राथमिकता वाले नीति क्षेत्रों की पहचान करना, रियायती वित्तीय अवसर पैदा करना और राष्ट्रीय निवेश को संचालित करना; और संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों के लिए बहुपक्षीय ढांचा विकसित करना, जो जी20 के एन्हांस्ड स्ट्रक्चरल रिफ़ॉर्म एजेंडा (ESRa) और डेट सर्विस सस्पेंशन इनीशिएटिव (dSSI) से प्रेरित हो और ब्रिजटाउन इनीशिएटिव जैसी कोशिशों की दिशा में बढ़े. हमारा सुझाव है कि जी20 एक साझा, महत्वाकांक्षी कार्यक्रम पर काम करे जो संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों को अन्य नीति उद्देश्यों को तैयार करने का आधार बनाए और ऐसा ‘बिल्ला’ बन सके जो हरित निवेश को निम्न-आय देशों की ओर प्रवाहित करने की सुविधा प्रदान करे.
हालांकि वैश्विक स्तर पर हरित आर्थिक परिवर्तन की रफ़्तार बढ़ रही है लेकिन इस पर अस्थिर और असंगत होने का खतरा बन गया है. आपस में जुड़ी हुई नीति चुनौतियों के एक जटिल समूह का उत्तरोत्तर बढ़ना- जिसका कुछ टिप्पणीकार ‘पॉलीक्राइसिस’(1)(a) [1]के रूप में वर्णन करते हैं, सरकारों को लगातार बचाव की मुद्रा में धकेल रहा है- जिसकी वजह से हरित परिवर्तन की आवश्यकताओं का सक्रियता के साथ और संरचनात्मक समाधान नहीं हो पा रहा है. जोखिम, सहायता और कर्ज़ की चिरस्थाई चुनौतियों के समाधान को अब ‘हरित आर्थिक समाधान’ के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए, लेकिन यह कार्य लगातार बढ़ते जा रहे वैश्विक जोखिमों की वजह से बाधित हो रहा है.
यह अनिश्चित भविष्य पर्याप्त हरित निवेश को रोक रहा है, सबसे ज़्यादा वैश्विक दक्षिण (संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मेलन के अनुसार ग्लोबल साउथ अफ़्रीका, दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन देशों, एशिया (दक्षिण कोरिया, जापान और इज़़राइल नहीं) और ओशेनिया (ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड नहीं) को कहा जा सकता है)[2] [2]में, और जैसे-जैसे सरकारें कोविड-19 से जुड़ी हरित प्रोत्साहन और हरित पुनर्निर्माण संरचनात्मक कार्यों से निकल रही हैं यह दुनिया भर में नीतियों में सुसंगति को कम कर रहा है, उनमें दूरियों को गहरा कर रहा है.(b) [3]ऐसे मौके के अभाव में जिससे लक्षित वित्तीय सहायता की सहायता से लंबी कूद मारकर हरित तकनीकों को अपनाया जा सके, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के कार्बन और प्रकृति के दोहन के आर्थिक ढांचे (nature-intensive economic models) पर निर्भर होने का खतरा है. इस बीच, घरेलू और व्यापारिक चिंताओं के चलते औद्योगिकृत देशों की सरकारें एकपक्षीय और समन्वय विहीन तरीके से हरित औद्योगिक नीति उपायों को अपनाकर नीतियों में अंतर पैदा करने की दिशा में बढ़ रही हैं.
मौजूदा समय में सरकारों के पास एक व्यापक रूपरेखा नहीं है कि; हरित संरचनात्मक परिवर्तन किस प्रकार का होना चाहिए; कौन-कौन सी हरित नीतियां (और उपाय), संरचनात्मक रूप से सबसे महत्वपूर्ण हैं; और इन नीतियों में से किसके पक्ष में सबसे अधिक प्रमाणिकता और निवेश के उदाहरण हैं.
हॉपकिंस और ग्रीनफील्ड ने हरित संरचनात्मक सुधार के उपायों को हरित सुधार के रूप में परिभाषित और मानचित्रित करने का प्रयास किया है, जिनका उद्देश्य “व्यवस्थात्मक, दीर्घकालिक और सामान्य प्रयोजन है” और जो “अपेक्षाओं को व्यवस्थित करते हैं और जिनकी दृष्टि दिशा को लेकर एकदम स्पष्ट है”.[3] [4]कई हरित संरचनात्मक नीतियां अपरिवर्तनीय और स्पष्ट सामाजिक लाभ प्रदान करती हैं- प्राकृतिक पूंजी निवेश से लेकर (एनेक्स 2 देखें) लेकर छोटे स्तर के नवीनीकरण से लेकर लैंगिक-न्याय वाली हरित नौकरी योजनाओं तक- लेकिन ये व्यापार-आधारित क्षेत्रों और उपायों से घिरे हुए हैं.[4] [5]निवेश हो रहा है, लेकिन यह असंगठित, समन्वय विहीन और अपर्याप्त है, जिसकी वजह से कई देश पीछे रह जा रहे हैं.
मुख्य संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों पर जी20 की सहमति एक ऐसे बहुपक्षीय उपकरण के रूप में काम कर सकती है, जिससे उन देशों तक पैसा पहुंचाया जा सके जो वर्तमान में प्रमुख व्यापारिक गुटों से बाहर हैं या ऐसे हरित क्षेत्रों तक जो प्रतिस्पर्धात्मक व्यापार को मिलने वाले वित्त के दायरे से बाहर हैं. 2008-2009 की मंदी का एक मुख्य सबक [5] [6]यह है कि हरित संरचनात्मक उपायों को आधार बनाकर बनाई गई नीति सार्वजनिक निवेश से अधिकतम लाभ हासिल करने की कुंजी है और खासतौर पर निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए.
हालांकि, सरकारें तब तक अपनी हरित आर्थिक आकांक्षाओं को बढ़ावा नहीं देंगी जब तक उनके पास प्रमुख सामाजिक जनादेश (ऐसी स्थिति जब कोई समाज किसी सरकार को किसी विशिष्ट कार्य- वर्तमान संदर्भ में हरित आर्थिक विकास- के लिए समर्थन दे) नहीं होता. राष्ट्रीय और स्थानीय ‘सामाजिक अनुबंध’ नई आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकी प्राथमिकताओं को सामने लाना शुरू कर रहे हैं,[6] [7]खासकर तेज़ी से बढ़ते हुए और शहरीकृत हो रहे देशों में, जैसे कि भारत. यह नागरिकों को नीति और व्यवहारिक परिवर्तन में शामिल कर रहा है- जैसा कि भारत के लाइफ (LiFE- Life for Environment) कार्यक्रम का उद्देश्य है[7] [8]– यह संरचनात्मक हरित परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय स्थितियों को तैयार करने में पृथ्वी के पक्ष में शासन का महत्व (pro-planet governance) दिखाता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, जी20 समूह ही ऐसी स्थिति में है जो संवहनीयता (sustainability) के बेहद महत्वपूर्ण मार्ग पर आगे ले जाने वाली परियोजनाओं के आगे एक लेबल (label) लगाकर संरचनात्मक सुधार योजनाओं को प्रभावी तरीके से आकार दे सकता है, हरित परिवर्तन के लिए प्रक्रियागत और वित्तीय जोखिमों के समाधान की कोशिश कर सकता है, और नीतियों में असंबद्धता को कम कर सकता है. कोविड-19 संकट से पहले एन्हांस्ड स्ट्रक्चरल रिफ़ॉर्म एजेंडा (ESRA) और डेब्ट सर्विस सस्पेंशन इनीशिएटिव (dSSI) जैसे आपातकालिक उपायों का समन्वय (एनेक्स 3 देखें) जी20 के काम करने की संभावना को दर्शाते हैं. भारत के जी20 की अध्यक्षता से अवसरों की एक खिड़की खुली है क्योंकि भारत इस अवसर का इस्तेमाल पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए “रचनात्मक और सर्वसम्मति आधारित समाधानों” का नेतृत्व करने और “वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर सहयोग के लिए प्रमुख वैश्विक मंच बनाने के लिए करना चाहता है”[8]
अनिश्चित भू-राजनीति के समय में हरित परिवर्तन की नींव रखने के लिए सभी देशों को वित्तीय के साथ ही राजनीतिक पूंजी का भी निवेश करने की आवश्यकता होगी और इसके लिए विश्वास और भरोसा पैदा करने के लिए संकेतों के बहुपक्षीय होने की ज़रूरत है.
हम सिफारिश करते हैं कि जी20 सरकारें बेहद ज़रूरी मानते हुए संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों के विभिन्न आयामों पर संवाद कायम करने के तरीकों की संभावनाओं की तलाश करें जो वैश्विक स्तर पर व्यवहारिक हों, जिससे उच्च प्रभाव संरचनात्मक नीतियां बनाई जा सकें जिनसे बहुत ज़्यादा आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ हासिल किए जा सकें ताकि इन्हें सभी देशों के वित्तीय प्रबंधन के दायरे में लाया जा सके.
हम इस महत्वाकांक्षी बहुपक्षीय ढांचे के दो पूरक पहलुओं को देखते हैं – बहुत बढ़िया नीति समन्वय (जी20 सरकारों के बीच और उनके बाहर) और हरित अर्थव्यवस्था परिवर्तन लागू करने के लिए गहरी नीति महत्वाकांक्षा. चित्र 1 इन्हें एक 2×2 नीति के मौके के रूप में मानचित्रित करता है:
चित्र 1: संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों पर जी20 के लिए अवसर की संभावना
नीचे दिए पैराग्राफ़ (अनुच्छेदों) में हम विभिन्न विकल्पों [ए, बी, सी, डी (1) और डी (2)] की व्याख्या करेंगे जो हरित संरचनात्मक उपायों के संबंध में जी20 के बहुपक्षीय समन्वय या नीति महत्वाकांक्षा के विभिन्न स्तरों के साथ मेल खाते हैं. प्रत्येक विकल्प का लक्ष्य अधिक नीति संबद्धता और निवेश आधार और अनुच्छेद 1 में वर्णित आधारभूत नीतियों के प्रकार के लिए गहरे राजनीतिक जनादेश प्रदान करना है.
अनिवार्य हरित संरचनात्मक उपायों के लिए निम्न महत्वाकांक्षा और समन्वय की वर्तमान स्थिति संवहनीय नहीं है. व्यापार प्रतिस्पर्धा और वैश्विक उत्तर (Global North- का प्रयोग आमतौर पर पश्चिमी दुनिया के लिए किया जाता है. इसमें शामिल किए जाने वाले देश वैश्विक दक्षिण में गिने जाने वाले देशों के मुकाबले विकसित, अमीर और राजनीतिक रूप से स्थिर हैं. वैश्विक उत्तर में आमतौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन के देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, इज़राइल, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर को शामिल किया जाता है.) में सीमित कार्रवाई और वैश्विक दक्षिण में कर्ज और वित्त प्रतिबंधों के कारण कमज़ोर कार्रवाई का मिश्रण एक दो-गति परिवर्तन (two-speed transition) को बढ़ा रहा है जो अपने अंशों के योग से कम योगदान कर रहा है.[सी]
ऐसा परिवर्तन अस्थिर होगा और 2030 के लक्ष्यों के अनुकूल नहीं होगा जिनमें जलवायु, प्रकृति और आर्थिक विकास के उद्देश्य शामिल हैं. विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को उच्च-कार्बन विकास पथों की ‘लंबी कूद मारकर आगे निकलने (leapfrogging)’ की वास्तविक संभावनाओं से बाहर कर दिए जाने की वजह से इस परिवर्तन में नेतृत्व ग्रहण करने के लिए व्यापक रूप से कर्ज़ माफ़ी की विचारधारा के मुख्य भूमिका में आने की मांगों के प्रति खिंचाव बढ़ेगा;[9] जी20 सरकारों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
जी20 के मंज़ूरी प्रारूप और समन्वय कार्यदल एक प्रक्रिया-केंद्रित मार्ग होगा जो हरित संरचनात्मक नीतियों के प्रति बहुपक्षीय प्रतिक्रिया को अधिक व्यापक रूप से सामने लाएगा. नीति महत्वाकांक्षा शायद अन्य विकल्पों की तुलना में कम होगी क्योंकि सर्वसम्मति और साझा अवस्था (एक से अधिक देशों का एक विचार को मानने के लिए तैयार होना) तक पहुंचना ही प्रमुख लक्ष्य होगा और महत्वाकांक्षा को संभवतः सबसे कम औसत मानक तक लाया जा सकता है.
क्रियान्वयन के संदर्भ में, कार्यदल मुख्य रूप से विभिन्न तरह के विकल्पों और मौजूदा ढांचों के बीच प्राथमिकता दिए जाने वाले हरित संरचनात्मक उपायों की पहचान करने पर ध्यान केंद्रित करेगा और सक्रिय रूप से काम शुरू करने की प्रक्रिया को रफ़्तार देने या इसकी राह में आने वाली बाधाओं को हटाने पर सर्वसम्मति बनाएगा, जिसमें अनुदान और रियायतों, निजी और गारंटीशुदा वित्त तक पहुंच का सीमित होना शामिल है. कार्बन मूल्य निर्धारण, हरित व्यापार और सीमा समायोजन तंत्र (carbon border adjustment mechanisms- सीबीएम, जिसे कार्बन बॉर्डर टैक्स के रूप में भी जाना जाता है, कार्बन उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर आयात पर लगाया जाने वाला शुल्क है. यह उत्सर्जन को हतोत्साहित करने के उपाय के रूप में कार्य करता है. यूरोपीय संघ ने घोषणा की है कि इसे अक्टूबर , 2023 से क्रमांतरण चरण में पेश किया जाएगा) ऐसे मुख्य क्षेत्र हैं जहां टकराव को न्यूनतम किया जा सकता है. हरित परिवर्तन के आशाजनक उदाहरणों और संरचनात्मक उपायों को लागू करने के मामलों के अध्ययन को भी जी20 सदस्यों के बीच रेखांकित किया जा सकता है. [10] इस परिकल्पना पर आधारित ढांचा जी20/ओईसीडी ईएसआरए के तत्वों पर बनेगा और ब्रिजटाउन पहल (एनेक्स 3 देखें) के अनुरूप होगा.
एक महत्वपूर्ण पहलू में हरित संरचनात्मक परिवर्तन के साझा इरादों के एक विशाल ढांचे का उपयोग करके इस परिवर्तन पर आने वाला वित्तीय बोझ को सहना शामिल होगा. एक जी20 मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग ढांचा जिसके पास आंतरिक कार्यदल की कई उपलब्धियां हैं. जी20 बाली नेताओं की घोषणा (विशेष रूप से बिंदु 16 जो जलवायु वित्त पर है)[11] और ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के आयोजन में जल्द ही होने वाले जी20 सम्मेलनों की आगामी प्राथमिकताएं, जैसे कि जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JET-P) (एनेक्स 3 देखें), भी प्रभावी होंगे.
नीति महत्वाकांक्षा-केंद्रित मार्ग स्पष्ट रूप से तय प्राथमिकता, हरित संरचनात्मक परिवर्तन नीतियों, के लिए निवेश के प्रवाह की शर्तें बनाएगा. हॉपकिंस और ग्रीनफील्ड[12] प्रारंभिक बिंदु प्रदान करते हैं और एक व्यवस्थागत, लंबे समय तक चलने वाली और सामान्य उद्देश्य हरित परिवर्तन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और ‘द ग्रीन न्यू कंसेंसिस’ [13] और महत्वपूर्ण संरचनात्मक पहलुओं की पहचान करता है. मार्गदर्शन भविष्य के जी20 के लिए क्रमबद्धता और दिशा-निर्धारण पर केंद्रित हो सकता है.
एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता शासकों को उनकी खुद की प्राथमिकताओं के अनुसार संरचनात्मक नीतियों के संभावित दिशा-निर्देश, प्राथमिकताओं और क्रियान्वयन का सहायक उपकरण बनाने में मदद करने की होगी. पटेल और स्टील प्रकृति और प्राकृतिक पूंजी निवेश नीतियों के लिए प्रमाण और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जिससे निवेश पर अच्छा लाभ मिलता है (एनेक्स 2 देखें). यह रास्ता राष्ट्रीय स्तर पर संरचनात्मक परिवर्तन नीतियों के उपसमूह को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने के लिए उपयुक्त होते हैं, जिन्हें जी20 की अनुमति से वित्त तक पहुंच में तरजीह मिलती है और नीति जोखिम कम रहते हैं. राष्ट्रीय सरकारें क्रियान्वयन साथी के रूप में एक साथ मिलकर अपनी विशेषज्ञता, सह-वित्तपोषण को एक-दूसरे से साझा कर सकती हैं ताकि क्रियान्वयन अनुकूल तरीके से किया जा सके.
चित्र 2: हरित संरचनात्मक निवेश प्रवाह रेखाचित्र
संरचनात्मक परिवर्तन उपायों के प्रति एक गैर-साझीदार दृष्टिकोण व्यापार प्रतिस्पर्धात्मक हरित नीतियों को बिगाड़ कर समस्या को बढ़ा सकता है, जैसा कि नीचे की गई चर्चा से पता चलता है कि इससे विकल्प बी और सी का विकल्प डी में संमिश्रण हो सकता है.
यह महत्वाकांक्षी नज़रिया उच्च नीति महत्वाकांक्षा को साथ लेकर एक जी20 अधिकृत कार्य दल बनाकर और सामान्य ढांचा बनाकर संयोजन करता है, जो ईएसआईए की रूपरेखा के अनुरूप होता है. हरित परिवर्तन के लिए मुख्य संरचनात्मक नीतियों को संयुक्त रूप से परिभाषित और स्पष्ट करके, यह सरकारों, बहुपक्षीय विकास बैंकों (Mdबीs), अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IFIs) और आखिरकार, निजी कर्जदाताओं को अधिक वित्तीय और निवेश समर्थन के लिए बांधने की कोशिश करेगा.
क्रियान्वयन के साधन से उन महत्वपूर्ण संरचनात्मक उपायों की पहचान होगी जो वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं को बढ़ावा देते हैं (जैसे कि प्राकृतिक पूंजी निवेश या जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार), नीति जोखिम को कम करने के लिए निवेश प्राथमिकताओं पर एक सी भाषा या स्पष्ट क्रेडिट गारंटियां, रियायती पूंजी या प्रत्यक्ष अनुदान. पूंजी की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाना चाहिए.(15) कई तरह के ढांचों की एक विस्तृत श्रेणी बनाना संभव है, जिनमें एक ‘व्यापक’ ढांचा हो सकता है जो इस मायने में उच्चाकांक्षी हो कि इसमें नीतियों की संभावनाओं पर विचार किया जाए और एक ‘संकीर्ण’ ढांचा जो मुख्य नीतियों के छोटे समूह पर ध्यान केंद्रित करता हो और ऋणदाताओं के लिए अधिक आकर्षक हो सकता हो.
इस उच्च महत्वाकांक्षी ढांचे में, जी20 सरकारें हरित संरचनात्मक नीतियों के पूरे विस्तार के एक ज़्यादा अनुकूल व्यवहार के लिए एक तंत्र का अनुमोदन करेंगी (एनेक्स 1 देखें). इसे सतत हरित निवेश की आवश्यकता की तत्काल आवश्यकता पर इस परिवर्तन में आने वाली चुनौतियों की मात्रा और वैज्ञानिक तथा आर्थिक साक्ष्य[16] के अनुपात में रखा जाएगा. यह जी20 के लिए सहमति पर आधारित शासन और प्रो-प्लेनेट समाधानों के लिए एक चिह्नक (MARKER) भी तैयार करेगा- हरित एकपक्षवाद में सुधार के उपाय के रूप में.
यह ढांचा ब्रिजटाउन पहल के अनुकूल हो सकता है और उसी दृष्टिकोण को आधार बना बन सकता है, जिसमें विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा रखे गए अतिरिक्त विशेष आहरण अधिकार (SडीRs) का उपयोग किया जा सके, ताकि विकसित और ऋणबद्ध अर्थव्यवस्थाओं के लिए अप्रयुक्त (untapped) वित्तीय क्षेत्रों को खोला जा सके.[17] प्राथमिक हरित संरचनात्मक सुधारों के विस्तार और अवधि को ध्यान में रखते हुए, इनका राष्ट्रीय सरकारों द्वारा समर्थित होना आवश्यक है और ये जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप (JET-P- Just Energy Transition Partnership (JET-P) एक नया वित्तपोषण तंत्र है. यह अमीर देशों के बीच में एक ऐसी साझेदारी है जो कोयला आधारित विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा की ओर आने में वित्त उपलब्ध करने के उद्देश्य के साथ की गई है) निवेश दृष्टिकोण में सरकार के नेतृत्व वाले संपूरक (complement) भी हो सकते हैं, जिसमें महत्वाकांक्षा (कम से कम सिद्धांत रूप में) यह है कि नया खर्च सरकारी बैलेंस शीट पर न हो बल्कि इसमें ऋणकर्ता-परियोजना ऋण शामिल हों (अनुज्ञापत्र 3 देखें). जैसे ही यह खर्च सरकारी बैलेंस शीट से बाहर जाता है, वित्तीय क्षेत्र विस्तृत आधार वाले, उच्च आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय निवेश पर निवेश, जिसे ‘हरित संरचनात्मक उपाय’ [डी] कहा जाता है, के लिए खुल जाता है. जेट-पी की तरह की परियोजनाओं की सफल शुरुआत से आगे और रियायती वित्तपोषण का आधार बनेगा या ऋण-की अदला-बदली के तरीकों (Debt-swap) की नींव रखेगा जिसमें वह भी शामिल होंगे जो प्रकृति से संबंधित हैं.[18]
संरचनात्मक उपायों के दायरे को व्यापक रखकर और उनमें महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव वाले उपायों (जैसे कि लिंग-समावेशी हरित नौकरी सृजन योजनाओं) को शामिल करके, यह ढांचा प्रभावी हरित परिवर्तन के लिए सामाजिक परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के उद्देश्य के साथ भी सबसे अच्छी तरह से मेल खाएगा. प्रकृति से सामंजस्य बैठाती जीवन शैली (eco-friendly lifestyle) और प्रकृति-समाज का अनुबंध (eco-social contract) [e], जिसकी परिकल्पना LiFE और एजेंडा 2030 में की गई है, एक सुसंगत परिवर्तन के केंद्र में हैं.
एक संकीर्ण ढांचा जी20 सरकारों के लिए एक सतर्क मार्ग (cautious route) है, जो डीएसएसआई (dSSI) और जी20 में ऋण उपचार के लिए समान ढांचे (एनेक्स 3 देखें) के सबक और ऋणबद्ध सरकारों की अरुचि, कि वे उन सुविधाओं का पूर्ण उपयोग करें जो उनकी क्रेडिट रेटिंग को जोखिम में डालती हैं या जिनमें बहुत कम निजी लेनदार (private creditor ) भागीदारी थी, पर बन रहा है.[f] सभी ऋण निलंबन और उन्नत रियायती समर्थन प्रस्तावों के लिए जी20 सरकारों से क्रेडिट रेटिंग एजेंसी और निजी लेनदारों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त प्रयास की आवश्यकता है.
यह ढांचा हरित संरचनात्मक उपायों में निवेश पर एक साझा मोर्चा सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ेगा, जिसमें पेरिस क्लब, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, प्रमुख द्विपक्षीय लेनदारों और प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (IFIs)/बहुपक्षीय विकास बैंक (Mdbs) एमबीडी से कुछ विश्वास और समर्थन शामिल रहेगा. जी20 एक ‘शीर्ष स्तर’ के हरित संरचनात्मक उपायों को परिभाषित कर सकता है, जिसमें इन पर सहमति नज़र आती है: ए) हरित परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण मार्ग का हिस्सा होना; बी) मध्यम अवधि के राजकोषीय रिटर्न की पेशकश करना (राजकोषीय प्रवाह या प्रत्यक्ष लागत से बचना); और सी) निवेश पर स्पष्ट सामाजिक प्रतिफल. इनमें सबसे अधिक विश्वसनीय उपाय[19] में शामिल हैं: हरित बुनियादी ढांचा निवेश; प्राकृतिक पूंजी निवेश; और हरित कौशल और योग्यता (green skills- एक संवहनीय और पर्याप्त संसाधन वाले समाज में रहने, उसका विकास और समर्थन करने के लिए आवश्यक जानकारी, क्षमता, मूल्य और अभिवृत्ति को हरित कौशल कहते हैं.) के उपाय.
जी20 सरकारें तब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), आईएफआई और प्रमुख द्विपक्षीय लेनदारों के साथ काम कर सकती हैं ताकि प्रमुख हरित संरचनात्मक उपायों और ऋण भुगतान और पुनर्गठन प्रक्रियाओं से उचित कटौती की अधिक मजबूत पहचान स्थापित की जा सके. यह सब यह सुनिश्चित करने के साथ किया जाएगा कि पेरिस क्लब ऐसे उपायों को रियायती बर्ताव के दायरे में मानता है और मौजूदा विकास और प्रकृति-के लिए-ऋण की अदला-बदली[20] वाले विशेष प्रावधानों के समान इसे रख रहा है.[21]
बहुपक्षीय ढांचे का यह प्रकार डी(1) के प्रति एक पूरक प्रतिक्रिया है और इसे संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों को ठीक से वित्तपोषित करने के लिए एक राजनीतिक और वित्तीय माध्यम बनाने के लिए ज़्यादा परिवर्तनकारी नहीं माना जाना चाहिए. हालांकि,फिर भी, यह जी20 में हरित परिवर्तन के आसपास बहुपक्षीय समन्वय में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो एकपक्षीय औद्योगिक नीति का एक विकल्प है.”
अनुज्ञापत्र 1 उदाहरणात्मक हरित संरचनात्मक सुधार उपाय[22]
उच्च स्तरीय हरित संरचनात्मक सुधार उपाय | विशिष्ट हरित संरचनात्मक सुधार उपाय | |||
1 | मज़बूत बनाई गईं योजनाएं, रणनीतियां और शासन | 1ए | जीपीडीपी से इतर एकीकृत माप | |
1बी | विभागों के बीच समन्वय | |||
1सी | बहुपक्षीय सहयोग (एसडीजी 17) | |||
2 | हरित वित्तीय सुधार | 2ए | उच्च सीओ2 मूल्यनिर्धारण | |
2बी | जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार | |||
2सी | जीवाश्म ईंधन वित्त पाबंदी | |||
3 | हरित मौद्रिक उपकरण | |||
4 | सतत वित्तीय प्रणाली | 4ए | व्यापक कॉर्पोरेट रिपोर्टिंग | |
5 | न्यायोचित परिवर्तन और समावेशी नीतियां | 5ए | डूबते उद्योगों के लिए न्यायोचित परिवर्तन | |
5बी | अंतरानुभागीय (intersectional) पर्यावरण नीति निर्माण | |||
6 | हरित कौशल और योग्यता उपाय | |||
7 | प्राकृतिक पूंजी उपाय | 7ए | प्राकृतिक पूंजी निवेश | |
8 | हरित नियामक को मज़बूत करना और निर्वियमन | 8ए | हरित मुख्यधारा की न्यूनतम आवश्यकताएं | |
8बी | शून्य-कार्बन ऊर्जा और परिवहन लक्ष्य | |||
8सी | पर्यावरणीय गैर-परावर्तनीय (non-regression) प्रतिबद्धताएं | |||
9 | आधारभूत हरित निवेश | 9ए | हरित नवाचार, शोध एवं विकास निवेश | |
9बी | हरित ऊर्जा निवेश | |||
9सी | हरित परिवहन निवेश | |||
9डी | हरित भवनों को अपग्रेड करना | |||
10 | हरित व्यवहार बदलाव को सशक्त करें | 10ए | डिजिटलीकरण नीति मंच के साथ समन्वय |
स्रोत: क्रिस हॉपकिंस, ऑलिवर ग्रीनफील्ड. “एक संरचनात्मक कार्यक्रम तय करना,” पृष्ठ 5
परिशिष्ट 2
प्रकृति, प्राकृतिक पूंजी और प्रकृति-आधारित समाधानों (NbS) में निवेश
प्रकृति और प्रमुख पारिस्थितिक तंत्र में निवेश एक संरचनात्मक नीति है जिसमें आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक मानदंडों में सबसे अधिक लाभ मिलता है.[23] चाहे प्राकृतिक पूंजी को बनाए रखना और बहाल करना हो या NbS के माध्यम से कम लागत से अनुकूलन या अनुकूलन प्रदान करने के लिए प्राकृतिक प्रणालियों का उपयोग करना, जी20 में निवेश की स्थिति मजबूत है- जैसा कि भारत, फ्रांस, ब्राजील और युगांडा में हरित सुधार पैकेज से पता चला है.[24] भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में 2011 और 2018 के बीच उपयोग की गई भूमि क्षरण (ELD) प्रणाली से इस अवसर का और विस्तार हुआ है, जिसमें प्रकृति में निवेश पर लाभ का अनुमान 75 से 120 गुना तक है.[25]
परिशिष्ट 3
ईएसआरए[26],[27], डीएसएसआई[28],[29], जेटपी[30],[31] और ब्रिजस्टोन पहल[32],[33] के सार
समेकित संरचनात्मक सुधार कार्यक्रम (ESRA)
2016 और 2019 के बीच, ओईसीडी ने जी20 देशों की ‘प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में संरचनात्मक विकास’ पर प्रगति की निगरानी में सहायता की, जिसमें ‘समावेशी विकास को बढ़ावा देना’, ‘व्यापार और निवेश खुलेपन को बढ़ावा देना’ और महत्वपूर्ण रूप से “पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाना” शामिल है. हालांकि, इस प्रक्रिया का उल्लेख बाली जी20 घोषणा में नहीं किया गया था, लेकिन संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों के लिए आम एजेंडा पर आधारित एक ताज़ा और दोबारा जारी किया गया संस्करण जी20 सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है.
ऋण सेवा निलंबन पहल (DSSI)
2020-2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान, जी20/आईएमएफ/विश्व बैंक DSSI ने योग्य देशों को ऋण-सेवा भुगतान के आंशिक निलंबन और स्थगन की पेशकश की थी. “ऋण उपचारों के लिए सामान्य ढांचा” सबसे अधिक ऋण-संकटग्रस्त देशों को व्यापक मदद प्रदान करता है, लेकिन जिस उद्देश्य से इसे बनाया गया था उसे पाने में दिक्कत हो रही है क्योंकि अब तक के आवेदक- चाड, इथियोपिया और ज़ाम्बिया- प्रक्रिया को पूरा नहीं कर रहे हैं.
न्यायोचित ऊर्जा संक्रमण साझेदारी (JET-Ps)
न्यायोचित ऊर्जा संक्रमण एक स्वच्छ ऊर्जा भविष्य के लिए एक निष्पक्ष और समावेशी परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए सामाजिक प्रक्रियाओं को वित्तपोषित करने का एक तरीका है. यह जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मेलनों (COPs) से उभरा है. उदाहरण के लिए, कोयले से चलने वाले ऊर्जा उत्पादन से बाहर निकलना. दक्षिण अफ्रीका अपने न्यायोचित परिवर्तन दृष्टिकोण के साथ नेतृत्व कर रहा है, 2022 में इंडोनेशिया उसके पीछे है और भारत, वियतनाम और सेनेगल भविष्य के संभावित उम्मीदवार हैं. हालांकि साझेदारी के हिस्से के रूप में प्रदान की गई वित्तपोषण की मिश्रित गुणवत्ता को लेकर कुछ तनाव है.
ब्रिजटाउन पहल
ब्रिजटाउन पहल, बहुपक्षीय-संकट का जवाब देने के लिए, बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया मोटली द्वारा प्रस्तुत एक परिवर्तनकारी कार्य योजना है. यह यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 की वजह से जीवनयापन की लागत बढ़ने, कोविड-19 और आपदा के प्रभाव के चलते विकासशील दुनिया के व्यापक ऋण संकट और मौजूदा जलवायु संकट को आपातकालीन सहायता प्रदान करने की आवश्यकता के लिए संयुक्त कारक मानता है.
स्रोत: क्रिस हॉपकिंस और गितिका गोस्वामी, “संरचनात्मक हरित परिवर्तन नीतियों के माध्यम से हरित निवेश और संबद्धता की खाई को पाटना,” टी20 नीति सार, जून 2023
लेखक सौंदर्या खन्ना, जीन मैक्लीन और बेन मार्टिन का उनकी सहायता के लिए धन्यवाद करते हैं.
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[1] [a] In the polycrisis the shocks are disparate, but they interact so that the whole is even more overwhelming than the sum of the parts.
[b] See Green Economy Tracker.; and Green Recovery from the OECD.
[c] But successful north-south coordinating initiatives include International Solar Alliance and Coalition of Disaster Resilience Infrastructure (CDRI) (https://www.cdri.world/).
[d] An additional benefit would be in ‘green structural measures’ providing a structure and a justification for ensuring new financing stayed in-country for those highly indebted, mitigating worries it would bail out favoured private and bilateral creditors at the expense of multilateral institutions.
[e] See Katja Hujo (2021) and the Global Research and Action Network for a New Eco-Social-Contract:
[f] For details on criticism of DSSI implementation, see Bretton Woods Project:
[1] Kate Whiting, HyoJin Park, “This is why ‘polycrisis’ is a useful way of looking at the world right now”, World Economic Forum blog. March 2023.
[2] [2] Alvin Ulido Lumbanraja, Teuku Riefky, “International Financing Framework To Bridge The Climate Financing Gap Between Developed And Developing Countries.” T20 TF7, Indonesia, October 2022.
[3] Chris Hopkins, Oliver Greenfield, “Setting a structural agenda for a green economic recovery from COVID-19.” GEC/PIGE Discussion Paper, June 2022.
[4] Chris Hopkins, Oliver Greenfield. “Setting a structural agenda,” p10
[5] UNEP, “Building a Greener Recovery: Lessons from the Great Recession.” Ed Barbier. United Nations Environment Programme, Geneva, September 2020.
[6] Katja Hujo, “A New Eco-Social Contract.” UNRISD Issue Brief, March 2021.
[7] Sachin Chaturvedi, G20. “G20- A Primer.” Background Note Prepared for G20 University Connect, accessed March 2023.
[8] Sachin Chaturvedi, G20. “G20- A Primer,” (2022) p1-3
[9] Tess Woolfenden, Sindra Sharma Khushal, “The debt and climate crises: Why climate justice must include debt justice.” Debt Justice Discussion Paper, October 2022.
[10] Chris Hopkins, Oliver Greenfield. “Setting a structural agenda,” p33-41
[11] Bali G20 Declaration. “G20 BALI LEADERS’ DECLARATION Bali, Indonesia, 15-16 November 2022.” p6.
[12] Chris Hopkins, Oliver Greenfield. “Setting a structural agenda,” p14
[13] German Environment Agency. “The Green New Consensus. Study Shows Broad Consensus on Green Recovery Programmes and Structural Reforms.” September 1, 2020.
[14] Sejaj Patel, Paul Steele et al, “Post-COVID Economic Recovery and Natural Capital: Lessons from Brazil, France, India, and Uganda.” Green Economy Coalition, March 2022.
[15] Ricardo Hausman, “Dodgy Climate Finance.” Project Syndicate Commentary, March 17 2023.
[16] UNEP, “Building a Greener Recovery,” 2020.
[17] Avinash Persaud, “Breaking the Deadlock on Climate: The Bridgetown Initiative.” Geopolitique, November 2022.
[18] Laura Kelly, Anna Ducros, Paul Steele. “Redesigning debt swaps for a more sustainable future.” IIED Issue Brief, April 21, 2023.
[19] Chris Hopkins, Oliver Greenfield. “Setting a structural agenda,” p17-20
[20] Laura Kelly, Anna Ducros, Paul Steele. “Redesigning debt swaps,” 2023.
[21] Paris Club, “Debt swap provisions.” Accessed March 2023.
[22] Chris Hopkins, Oliver Greenfield. “Setting a structural agenda,” p5
[23] UNEP, “The State of Finance for Nature in the G20.” UN Environment Report, January 2022.
[24] GEC, “Post-COVID Economic Recovery and Natural Capital,” March 2022
[25] Development Alternatives, “Land Remediation for Achieving Global and National Targets: Case Study of Bundelkhand (India) through Capitals Approach.” Development Alternatives Policy Brief, May 2020.
[26] OECD, “The OECD Technical Report on Progress on Structural Reform under the G20 Enhanced Structural Reform Agenda (ESRA).”Webpage, accessed March 2023.
[27] G20. “G20 BALI LEADERS’ DECLARATION,” 15-16 November 2022
[28] World Bank, “Debt Service Suspension Initiative.” February 2022.
[29] Tess Woolfenden, Sindra Sharma Khushal, “The debt and climate crises,” (2022) p5
[30] Avinash Persaud, “Breaking the Deadlock on Climate,” (2022)
[31] Ricardo Hausman, “Dodgy Climate Finance.” (March 2023)
[32] Barbados MFAFT, “The 2022 Bridgetown Initiative.” Barbados Ministry of Foreign Affairs and Foreign Trade. (September 2022). Accessed March 2023.
[33] Avinash Persaud, “Breaking the Deadlock on Climate,” (November 2022).