G20 की अध्यक्षता: भारत के लिए ग्लोबल साउथ के देशों का नेतृत्व हासिल करने का सुनहरा मौक़ा!

बाली में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी20 के बढ़ते महत्व की तरफ़ ध्यान दिलाया. नई विश्व व्यवस्था के लिए उनका आह्वान बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने में वैश्विक समुदाय की नाकामी के बारे में बताता है.
SUJAN R. CHINOY

 

बाली में जी20 के नेताओं का शिखर सम्मेलन इंडोनेशिया की साल भर की अध्यक्षता का सबसे रोमांचक मोड़ है. 1 दिसंबर को जी20 की अध्यक्षता भारत को सौंप दी गई. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनज़र जब से जी20 को सालाना सर्वोच्च स्तर के शिखर सम्मेलन का रूप दिया गया है, तब से विकासशील देशों ने सिर्फ़ चार बार इसकी अध्यक्षता की है- 2012 में मेक्सिको, 2016 में चीन, 2018 में अर्जेंटीना और 2022 में इंडोनेशिया. भारत के द्वारा जी20 की अध्यक्षता विकासशील देशों के पास इसकी अध्यक्षता का पांचवां मौक़ा है. विकासशील देशों के लिए ये एक ऐतिहासिक मौक़ा है क्योंकि 1 दिसंबर को भारत को जी20 की अध्यक्षता मिलने के बाद पूर्व (इंडोनेशिया), वर्तमान (भारत) और अगली अध्यक्षता (ब्राज़ील) विकासशील देशों के पास होगी. ये न सिर्फ़ विकासशील देशों के लिए बाली सम्मेलन की थीम- “रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रॉन्गर यानी साथ मिलकर संभलना, मजबूत होना”- के लिए कोशिश करने का मौक़ा है बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और अन्य क्षेत्रों के लिए सतत विकास के लक्ष्यों को लेकर ज़्यादा आर्थिक मेलजोल की कोशिश करने का भी अवसर है.

कोविड के बाद के समय के लिए प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा नई विश्व व्यवस्था का आह्वान संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने में वैश्विक समुदाय की नाकामी और आगे आने वाले समय के लिए वैश्विक सर्वसम्मति की कमी की तरफ़ एक स्पष्ट टिप्पणी है.

बाली में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में युद्ध को बड़ी बाधाएं बताते हुए चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल में जी20 के बढ़ते महत्व की तरफ़ सही इशारा किया. कोविड के बाद के समय के लिए प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा नई विश्व व्यवस्था का आह्वान संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने में वैश्विक समुदाय की नाकामी और आगे आने वाले समय के लिए वैश्विक सर्वसम्मति की कमी की तरफ़ एक स्पष्ट टिप्पणी है. मोदी के सचेत करने वाले शब्द आज की कठिन वास्तविकताओं और कई तरह के मतभेदों के मौजूद होने को छूते हैं. यूक्रेन के हालात को लेकर दुनिया पूरी तरह बंटी हुई है. इसकी वजह से विकासशील देशों को खाद्य, ऊर्जा और उर्वरक की क़िल्लत के नतीजों का सामना करना पड़ रहा है. विकासशील देशों की मुख्य चिंता रोज़मर्रा के मुद्दों से जुड़ी है, युद्ध की भू-राजनीति से नहीं.

वैश्विक समुदाय में भारत विश्वसनीय

जी20 की अध्यक्षता विकासशील देशों की तरफ़ से भारत को शांति लाने वाले देश की ज़िम्मेदारी लेने का अवसर प्रदान कर सकती है. आज के समय में UN के पास विश्वसनीयता की कमी है. बड़ी ताक़तें जैसे कि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने यूक्रेन के युद्ध में यूक्रेन का पक्ष लिया है. चीन, रूस का एक बड़ा समर्थक बना हुआ है. इसकी वजह से सिर्फ़ भारत ही एक ऐसा बड़ा देश बचा हुआ है जिसने युद्ध में शामिल देशों और उनके समर्थकों के साथ अच्छे रिश्तों को बरकरार रखते हुए यूक्रेन युद्ध को लेकर एक तर्कयुक्त और निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाया है. भारत के पास ऐसी विश्वसनीयता है कि वो यूक्रेन में युद्ध ख़त्म करने के लिए पर्दे के पीछे काम कर सके.

पीएम मोदी का संबोधन उन मुद्दों की झलक प्रदान करता है जिनके बारे में भारत की अध्यक्षता के दौरान प्राथमिकता मिलने की उम्मीद जताई जा रही है.

पीएम मोदी का संबोधन उन मुद्दों की झलक प्रदान करता है जिनके बारे में भारत की अध्यक्षता के दौरान प्राथमिकता मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. दुनिया खाद्य सुरक्षा की चुनौती से जूझ रही है. 2018 में ही भारत ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाने का प्रस्ताव दिया था. खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने इसको मंज़ूरी दी थी और उसके बाद मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 75वें सत्र में भी इसका समर्थन किया गया था. भारत मोटे अनाज के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक है. 2015-16 के 14.52 मिलियन टन के मुक़ाबले 2020-21 में मोटे अनाज का उत्पादन बढ़कर 17.96 मिलियन टन हो गया. अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत को कृषि क्षेत्र में तकनीकों और सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली को साझा करने के लिए मोटे अनाज के बड़े उत्पादक देशों का एक गठबंधन बनाना चाहिए. मोटे अनाज के उत्पादन के लिए तीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने में भारत के अनुभव को दुनिया के दूसरे उपयुक्त हिस्सों में भी दोहराया जा सकता है. इन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को वित्त पोषण की उचित व्यवस्था का समर्थन हासिल होगा. भारत की तरफ़ से ऐसी पहल 2021 में जी20 के मटेरा घोषणापत्र से मेल खाएगी जिसमें ग़रीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा और सतत खाद्य प्रणाली जैसे संबंधित मुद्दों को उठाया गया था. लंबे समय तक खाद्यान्न की कमी की स्थिति, जो दुनिया भर में बार-बार के अकाल और बाढ़ से और बिगड़ गई है, का नतीजा पश्चिमी देशों में जानवरों के चारे में कमी के रूप में भी निकल सकता है और इसका खाद्य की आपूर्ति पर असर पड़ेगा.

ऊर्जा परिवर्तन का साझा लक्ष्य

G20 शिखर सम्मेलन के दौरान जो कार्यक्रम रखे गए थे उनमें तमन हुतन राया मैंग्रोव जंगल का दौरा शामिल है. तटीय क्षेत्रों में जैव विविधता के संरक्षण, कटाव को रोकने और कार्बन को सोख लेने में मैंग्रोव की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए ये बेहद सांकेतिक पहल है. भारत वैश्विक मैंग्रोव गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार हो गया है और अपनी अध्यक्षता का इस्तेमाल उसे इस पर ज़्यादा ज़ोर देने में करना चाहिए. एक और महत्वपूर्ण थीम जिसका संदर्भ मोदी ने दिया वो  थी ऊर्जा बाज़ार में आपूर्ति में रुकावट से परहेज करने की ज़रूरत. वैसे तो भारत इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि वो 2030 तक अपनी बिजली की ज़रूरत का आधा हिस्सा नवीकरणीय स्रोत से उत्पन्न करेगा लेकिन ऊर्जा के मामले में कोयला न सिर्फ़ भारत बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्रोत बना रहेगा. आनन-फानन में कोयले के इस्तेमाल को ख़त्म करने के मुक़ाबले धीरे-धीरे कोयले को ऊर्जा के स्रोत के रूप में हटाने का भारत का रवैया एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की ऊर्जा आवश्यकता में बढ़ोतरी की वजह से है. जर्मनी कोयले से चलने वाले कुछ पावर प्लांट को फिर से शुरू कर रहा है. सिर्फ़ 10 महीने पहले ऐसा लग रहा था कि जर्मनी के जलवायु प्रेमी 2030 तक पूरी तरह कोयले के इस्तेमाल को ख़त्म करने के विचार को लेकर प्रतिबद्ध हैं और उन्होंने दुनिया के दूसरे देशों को इस काम में देरी के लिए फटकार लगाई थी. लेकिन अब यूक्रेन में युद्ध की वजह से ऊर्जा की क़िल्लत और ठंड के महीनों को देखते हुए जर्मनी अपने लोगों की ज़रूरत को पूरा करने में कोयले के अल्पकालीन उपयोग को सही ठहरा रहा है.

इस स्थिति को समझा जा सकता है. इसी तरह वैश्विक समुदाय को निश्चित रूप से ये महसूस करना चाहिए कि भारत के द्वारा कोयले का इस्तेमाल जारी रखने और रूस समेत अन्य देशों से ऊर्जा की सबसे किफ़ायती आपूर्ति ऐसी चीज़ है जो 135 करोड़ भारतीयों की विकास की ज़रूरत से जुड़ी हुई है. कोयला प्रदूषण पैदा करने वाला इकलौता जीवाश्म ईंधन नहीं है. कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से भी प्रदूषण होता है लेकिन कोयले के मुक़ाबले शायद कम. भारत की अध्यक्षता के दौरान ब्रिजटाउन पहल के लिए समर्थन हासिल करने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए. ब्रिजटाउन पहल में हरित और विकासात्मक वित्त पोषण के लिए एक भेदभावहीन, सुलभ और किफ़ायती योजना की बात की गई है ताकि विकासशील देशों को उनके जलवायु परिवर्तन एवं सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को पूरा करने में मदद की जा सके. वैसे तो विकसित देश जलवायु वित्त के लिए विकासशील देशों को हर साल 100 अरब डॉलर प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं लेकिन ये समुद्र में महज़ एक बूंद के समान है. जो देश ऊर्जा के इस्तेमाल में परिवर्तन का बोझ सह सकते हैं, सिर्फ़ उनके द्वारा ऊर्जा बदलाव अपर्याप्त है. समयबद्ध तरीक़े से जलवायु परिवर्तन की चुनौती को सिर्फ़ उस वक़्त पूरा किया जा सकता है जब दुनिया एकजुट होकर काम करे. जैसा कि मोदी ने कहा, समावेशी ऊर्जा परिवर्तन की उपलब्धि हासिल करने के लिए वित्त के किफ़ायती स्रोत और तकनीकी मदद की ज़रूरत है. अब समय आ गया है कि विकसित देशों को महज़ समयबद्ध तरीक़े से ऊर्जा परिवर्तन की मांग करने के बदले एक साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी समर्थन देने का ठोस क़दम उठाना चाहिए.


लेखक भारत की जी20 अध्यक्षता के लिए थिंक-20 के अध्यक्ष और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के महानिदेशक हैं. यहां व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं.