ये रिपोर्ट वित्तीय क्षेत्र के दृष्टिकोण से ऊर्जा के न्यायसंगत परिवर्तनों पर G20 के बाली सतत वित्त कार्य समूह की सिफ़ारिशों से आगे की राह तैयार करती है. वित्तीय क्षेत्र और वास्तविक अर्थव्यवस्था, दोनों के भीतर विशिष्ट क्षेत्रों में G20 नेतृत्व के लिए सिफ़ारिशों का संक्षिप्त ब्योरा नीचे दिया गया है:
जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा व्यवस्था से नेट ज़ीरो उत्सर्जनों (NZE) की ओर मुड़ते वक़्त न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन एक टिकाऊ और न्यायपूर्ण रास्ता अपनाता है. नेट ज़ीरो उत्सर्जन, राष्ट्रीय स्तर पर वचनबद्धता वाले लक्ष्यों से हासिल होते हैं. ऊर्जा, इंसानी स्वास्थ्य और बेहतरी के तक़रीबन हरेक पहलू को प्रभावित करती है. स्थायित्व भरे रोज़गारों में अड़चनें पैदा कर और सामाजिक समावेश हासिल किए जाने की प्रक्रिया और ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को ख़तरे में डालकर, ऐसा बदलाव सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) पर असर डालता है. 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में 2030 तक हर साल तक़रीबन 4 खरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की दरकार होगी.
2022 से जारी वैश्विक ऊर्जा संकट के दौर ने सभी देशों (ख़ासतौर से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं) को न्यूनतम लागत वाले जीवाश्म ईंधनों पर आधारित ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने को मजबूर कर दिया है. इस साल G20 की अध्यक्षता ने ऊर्जा के मोर्चे पर कायाकल्प के लिए वित्त मुहैया कराए जाने की निम्न-लागत वाली योजना तैयार किए जाने की वक़ालत की है. G20 ऊर्जा परिवर्तन कार्य समूह (ETWG) द्वारा ऐसी क़वायद किए जाने की बात कही गई है. इसके लिए अन्य बातों के साथ-साथ रियायती अंतरराष्ट्रीय वित्त के पर्याप्त संग्रहण को लेकर रोडमैप बनाने की ज़रूरत है. इससे नाज़ुक तकनीकों की तैनाती संभव हो सकेगी. ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी क़वायद को टिकाऊ बनाने के लिए सामूहिक प्रयासों के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर बेहतरीन तौर-तरीक़ों को अपनाना होगा. इस तरह न्यायसंगत, सस्ता और समावेशी ऊर्जा परिवर्तनों को सहारा दिया जा सकेगा.
G20 की 2023 SFWG बैठक में तीन क्षेत्रों को प्राथमिकता पर लिया गया है:
ये पॉलिसी ब्रीफ इन लक्ष्यों को लेकर वास्तविक अर्थव्यवस्था के प्रभावों की पड़ताल करता है. इसमें तर्क दिया गया है कि जीवाश्म ईंधनों से कार्बन-मुक्त यानी ज़ीरो-कार्बन ऊर्जा आपूर्तियों की ओर भौतिक तौर पर ज़बरदस्त तरीक़े के बदलाव के लिए भारी-भरकम प्रयास करने होंगे. इस सिलसिले में G20, लोकतांत्रिक देशों के संगठन OECD के अन्य राष्ट्रों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच ‘समूची अर्थव्यवस्था’ के हिसाब से समन्वयकारी हिस्सेदारी की ज़रूरत है. जलवायु वित्त के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए ये एक आवश्यक शर्त है. इसमें सामाजिक और आर्थिक रुकावटों को न्यूनतम करने के लिए राजनीतिक अर्थव्यवस्था से जुड़े फ़ैसले भी शामिल होते हैं. उल्लेखनीय है कि ऐसी बाधाएं ग़रीबों, ख़ासतौर से सब-सहारा अफ़्रीकी देशों में रहने वाले लोगों पर असर डालते हैं, जो ऊर्जा निर्धनता के शिकार हैं. निश्चित रूप से कोयला खदानों के ख़ात्मे की वजह से कई कामगारों की नौकरियां निशाने पर आ जाएंगी. ऐसे में एक और प्राथमिकता है आय में सामने आने वाली बाधाओं की रोकथाम करना. तीसरी प्राथमिकता है ऊर्जा कार्यकुशलता के अनुकूलन के ज़रिए शासन-प्रशासन को मज़बूत करना. इनके अलावा तयशुदा जीवनकाल से पहले ही काम से बाहर कर दी गई और फंसी हुई ऊर्जा पूंजी परिसंपत्तियों से निपटना भी बड़ी चुनौती होगी. ‘कैसे होगा’ इस प्रश्न से जुड़े तीन पहलुओं के लिए नीचे दिए गए कारणों की वजह से G20 द्वारा नेतृत्व दिखाए जाने की दरकार है.
पहला, हरेक देश में जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर कार्बन-मुक्त ऊर्जा आपूर्तियों की ओर मुड़ने के लिए भारी-भरकम भौतिक परिवर्तनों की दरकार है. इसके लिए ‘समूची सरकार’ वाली नीतियों की ज़रूरत है.
बॉक्स 1. भारत: ऊर्जा क्षेत्र में भारी भौतिक बदलावों की दरकार है
भारत ने वास्तविक अर्थव्यवस्था में ज़बरदस्त ऊर्जा पुनर्संरचना का प्रस्ताव किया है. इसके लिए उपयुक्त पैमाने पर वित्त इकट्ठा करने की ज़रूरत है, ताकि हरित, पहले से ज़्यादा लोचदार और समावेशी समाज की ओर बदलावों को बढ़ावा दिया जा सके. ये लक्ष्य राष्ट्रीय स्तर पर संसाधनों की संग्रहण क्षमता से परे है. लिहाज़ा इन महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए निम्न लागत वाला वित्त एक ज़रूरी शर्त है. इस दिशा में प्रस्तावों का ब्योरा नीचे है:
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ऊर्जा के क्षेत्र में न्यायसंगत कायापलट के लिए ‘समग्र अर्थव्यवस्था’ नीतियां. 2022 G20 SFWG के तहत न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तनों के वित्त-पोषण यानी फ़ाइनेंसिंग के लिए प्रासंगिक चार श्रेणियों की पहचान की गई है, जो वास्तविक अर्थव्यवस्था पर भी लागू होते हैं. आर्थिक उपकरणों (जैसे कार्बन प्राइसिंग) को नीतिगत तौर पर मुख्यधारा में लाना इस सिलसिले की पहली कड़ी है. उत्सर्जन व्यापार प्रणालियों यानी ETS, कैप एंड ट्रेड (Cap and Trade) के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है, जिसकी कई देशों में शुरुआत की गई है. कार्बन के लिए आर्थिक मूल्य मुहैया कराकर ये उपकरण समान रूप से कारोबारों और उपभोक्ताओं के बीच डिकार्बनाइज़ेशन से जुड़े बर्तावों को प्रोत्साहित करता है.
दूसरी श्रेणी में केंद्रीय बैकों द्वारा वित्तीय बाज़ारों को संकेत दिया जाना शामिल होता है. इन बाज़ारों को ये इशारा किया जाता है कि जलवायु से जुड़े जोख़िमों के प्रति देशों का लचीलापन तैयार करना उतना ही अहम लक्ष्य है जितना मुद्रास्फीति को लक्षित करना या वित्तीय स्थायित्व सुनिश्चित करना. कई केंद्रीय बैंक पहले ही इस प्रक्रिया को चालू कर चुके हैं. इस सिलसिले में जलवायु बॉन्ड्स को संस्थागत रूप देकर, अपने विदेशी मुद्रा भंडारों में समर्पित हरित बॉन्ड पोर्टफ़ोलियो को बढ़ावा देकर, और कुछ देशों में जीवाश्म-ईंधन पर आधारित क्षेत्रों से जारी किए गए बॉन्ड्स में कारोबार को प्रतिबंधित किया गया है. साथ ही ज़मानती रूपरेखाएं भी तैयार की गई हैं, जिसके तहत एक वित्तीय संस्था द्वारा केंद्रीय बैंक से ऋण हासिल करने में किन परिसंपत्तियों को गिरवी के तौर पर रखा जाएगा, इसका ब्योरा दिया गया है.
तीसरी श्रेणी में कार्बन-मुक्त या ज़ीरो कार्बन निवेशकों के लिए कर यानी टैक्स प्रोत्साहन मुहैया कराने वाली राजकोषीय नीतियां आती हैं. इसके तहत समर्पित जलवायु कोषों के लिए वित्त-पोषण या फंडिंग, सार्वजनिक क्षेत्र में हरित संग्रहण या ख़रीद को क्रियान्वित करना शामिल हैं. बाक़ी बातों के साथ-साथ हरित सस्ते आवास, विद्युत गतिशीलता, सर्कुलर अर्थव्यवस्था की भी शुरुआत कर दी गई है. चौथी श्रेणी में वैसे नियमन शामिल हैं जो डिकार्बनाइज़ेशन के क्षेत्रवार विशिष्ट कार्रवाइयों द्वारा हरित कायाकल्प हासिल करने की अनिवार्यता बनाते हैं. इस तरह डिकार्बनाइज़ेशन के लिए उपभोक्ता प्रोत्साहन तैयार किए जाते हैं. निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणाली इसमें पूरक का काम करती है, जो जलवायु के मोर्चे पर जताई गई वचनबद्धताओं की दिशा में कार्रवाइयों द्वारा हासिल कामयाबियों पर डिजिटल तरीक़े से निगरानी रखते हैं.
ऊर्जा उद्योग का स्व-हित. ‘समग्र सरकार’ की नीतियों के अलावा वैश्विक ऊर्जा उद्योग नेट ज़ीरो उत्सर्जनों (NZE) में रफ़्तार भरने का एक अहम हिस्सेदार है. उनके पास ज़ीरो-कार्बन और कार्बन हटाने की तकनीकों में नवाचारों की अगुवाई करने की संगठन क्षमता के साथ-साथ आंतरिक वित्तीय संसाधन भी मौजूद हैं. इस सिलसिले में औद्योगिक प्रतिक्रिया सकारात्मक रही है. ऊर्जा क्षेत्र में विश्व की 300 अग्रणी कंपनियों के सर्वेक्षण में इस बात की पुष्टि की गई है कि इनमें से आधे से ज़्यादा कंपनियों के लिए नेट ज़ीरो उत्सर्जन शीर्ष कारोबारी प्राथमिकता रहे हैं. इसमें शामिल प्रतिभागियों में से विशाल बहुमत (95 प्रतिशत) ने NZE को कारोबारी तरक़्क़ी में अहम योगदान देने वाला बताया है, और 88 प्रतिशत प्रतिभागियों ने ‘ऊर्जा परिवर्तन’ को शीर्ष की तीन कारोबारी प्राथमिकताओं में से एक क़रार दिया. इतना ही नहीं, सर्वे में शामिल 50 प्रतिशत कंपनियों ने स्कोप 1 और 2 उत्सर्जन लक्ष्यों (प्रत्यक्ष उत्सर्जन, जैसे बिजली निर्माण से) को परिभाषित करने पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि महज़ 17 प्रतिशत ने स्कोप 3 उत्सर्जनों (निचले प्रवाह वाले कारोबारी ऊर्जा इस्तेमाल से होने वाले उत्सर्जन) को लक्षित किया. हालांकि सर्वे में शामिल कंपनियों के लिए स्कोप 3 उत्सर्जनों से निपटना प्राथमिकता पर नहीं था, लिहाज़ा नियामक निरीक्षण और मार्गदर्शन ज़रूरी हो गया है.
कुल मिलाकर, नेट ज़ीरो उत्सर्जनों के लिए व्यवस्थावार कायाकल्पों की दरकार होती है, जिसका ऊर्जा की समूची मूल्य श्रृंखला पर असर होता है. कंपनियों ने बताया कि टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर हो रहे नवाचार पहले से ही ऊर्जा परिवर्तन को नया आकार दे रहे हैं. उल्लेखनीय है कि लागत के हिसाब से प्रतिस्पर्धी सौर और पवन ऊर्जा प्रणालियों के ज़रिए ये क़वायद आगे बढ़ रही है, और ये अपेक्षाकृत कम स्थापित समाधानों पर मौजूदा समय में हो रहे शोध और विकास कार्यों से फ़ायदे हासिल करते रहेंगे. इनमें हाइड्रोजन और सिंथेटिक ईंधन, कार्बन कैप्चर और भंडारण जैसे क्षेत्र शामिल हैं. हालांकि ऐसे कायाकल्पों में गति लाने की क्रमिक लागत के लिए सार्वजनिक और निजी इक्विटी फ़ंडिंग के ज़रिए वित्त से जोड़े जाने की दरकार होती है. इसके साथ-साथ वेंचर कैपिटल हिस्सेदारी की भी ज़रूरत होती है. बिजली कंपनियों के सिलसिले में नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति के साथ एकीकरण के ज़रिए बिजली ग्रिडों को उन्नत बनाए जाने को लेकर रियायती सार्वजनिक वित्त-पोषण यानी फंडिंग ज़रूरी था. छोटे और मध्यम आकार वाले फ़र्मों के लिए फंडिंग ऊर्जा मूल्य श्रृंखला, बैंकों की ओर से उपलब्ध थे, जिनके साथ डिकार्बनाइज़ेशन के लक्ष्य भी जुड़े थे.
नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को निरंतरता के साथ नागरिक सहायता उपलब्ध कराना. ऊर्जा सेवाओं के अंतिम लाभार्थी के रूप में नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को हासिल करने में नागरिक अहम भूमिका अदा करते हैं. नेट ज़ीरो उत्सर्जनों का विरोध या समर्थन इस बात पर निर्भर करेगा कि दशकों लंबे परिवर्तनकारी क़वायदों में स्थानीय अधिकारों और हक़दारियों का किस हद तक बचाव (या फिर उन्हें बाधित) किया जाता है. यही वजह है कि NZE की ओर बढ़ने वाले रास्तों में मील के पत्थरों को अंतिम रूप देने से पहले हिस्सेदारी और समावेशी प्रक्रियाएं आवश्यक हैं. मिसाल के तौर पर विकासशील देशों के नागरिक, ऊर्जा की बुनियादी पहुंच, विश्वसनीयता और सस्ते स्वरूप, आवास, परिवहन, पानी और स्थानीय निकायों की अन्य सेवाएं उपलब्ध कराए जाने की तुलना में नेट-ज़ीरो उत्सर्जनों को काफ़ी कम अहमियत देते हैं. हालांकि इसी वक़्त वो जीवाश्म ईंधनों के आधे-अधूरे दहन की वजह से होने वाले घरेलू और बाहरी वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता पर होने वाले विपरीत प्रभावों को लेकर भी सतर्क हैं. ऊर्जा सघन घरेलू ऊर्जा उपकरण आमतौर पर OECD द्वारा अपनाए गए मानकों और लेबलिंग पर आधारित होते हैं, और उनके स्कोप 3 उत्सर्जन OECD देशों द्वारा नेट-ज़ीरो उत्सर्जनों को लेकर अपनाए गए रास्तों का ही पालन करेंगे. उपभोक्ताओं के बर्ताव पर प्रभाव डालने वाला बाहरी कारक यही है.
दूसरा, सामाजिक समता सुनिश्चित करना और आमदनी में रुकावटों को न्यूनतम स्तर पर लाना.
2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते में कई विकासशील देशों की ऊर्जा निर्धनता एक भारी रुकावट बनी हुई है. दुनिया में क़रीब 76 करोड़ लोग अब भी बिना बिजली के गुज़र-बसर कर रहे हैं. इनमें से 75 प्रतिशत सब-सहारा अफ़्रीका में निवास कर रहे हैं. बिना बिजली के गुज़ारा कर रहे 84 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे हैं. बिजली तक पहुंच का अभाव बुनियादी सुविधाओं और खाना पकाने के स्वच्छ विकल्पों तक लोगो की पहुंच को बाधित कर देता है. साथ ही समुदायों को डिजिटल कनेक्टिविटी से बाहर कर देता है. इसके साथ ही सोलर पैनल्स की निम्न क़ीमतों ने माइक्रो-ग्रिड निवेश में उद्यमियों की दिलचस्पी बढ़ाने का काम किया है (बॉक्स 2 देखिए). अल्प विकसित देशों में स्वच्छ ऊर्जा क्रांति की फ़ाइनेंसिंग के लिए G20 की सहायता से सतत आर्थिक वृद्धि का रास्ता साफ़ किया जा सकता है. साथ ही मानवीय स्वास्थ्य में सुधार लाते हुए नागरिकों को पहले से ज़्यादा उत्पादक जीवन जीने में सक्षम बनाया जा सकता है. ग्रामीण अफ्रीका में सस्ती और हरित बिजली की पहुंच सुधारने में ये अवसर दिखाई दिए हैं.
बॉक्स 2. नाइजीरिया: ऊर्जा पहुंच के लिए वित्तीय खाई को पाटना
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नाइजीरिया का अनुभव ये दर्शाता है कि 2030 तक सबके लिए नेट ज़ीरो उत्सर्जन वाली बिजली सेवाएं मुहैया कराना व्यावहारिक है. इसकी वजह ये है कि वितरित प्रणालियों के लिए कारोबारी मॉडल्स उपभोक्ता पर केंद्रित हैं और मौजूदा दौर में तकनीक के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही, सोलर पैनल्स और ऊर्जा भंडारण की क़ीमतों में गिरावट के अलावा स्वचालित यानी ऑटोमेटेड डिजिटल डैशबोर्ड्स की तैनाती और डेटा एनालिटिक्स द्वारा इंटरनेट को एक सेवा के तौर पर इस्तेमाल (IAAS) किए जाने की क़वायद से कारोबारी तौर-तरीक़ों में क्रांति आ सकती है. संस्थागत MRV प्रणालियों द्वारा प्रशासकीय जोख़िमों को लेकर मौजूदा फाइनेंसर्स की धारणाओं की रोकथाम किए जाने पर बाज़ार आधारित ऋण और इक्विटी फाइनेंसिंग को आकर्षित किया जा सकता है.
जैसे-जैसे डिकार्बनाइज़ेशन रफ़्तार पकड़ती जाएगी, न्यायसंगत परिवर्तनकारी नीतियों को मानवीय लागतों की भी पहचान करनी होगी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आकलन के मुताबिक साल 2030 तक ऊर्जा क्षेत्र में कुल मिलाकर 60 लाख नौकरियों का नुक़सान हो सकता है. नेट ज़ीरो उत्सर्जन से जुड़े बदलावों के दौरान रोज़गार की भारी क्षति का सामना करने वाले देशों में नए सिरे से कौशल विकास और हुनर को उन्नत किए जाने की दरकार होगी. इससे रोज़गार के उभरते अवसरों के लिए आकांक्षा पैदा की जा सकेगी. ऊर्जा तक पहुंच के बदलाव भरे आदर्शों से संबंधित हरित बिजली और अन्य सेवाओं के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. कामगारों, रोज़गार प्रदाताओं, सरकारों, समुदायों और सिविल सोसाइटी के बीच स्टेकहोल्डर जुड़ावों के ज़रिए स्थानीय तौर पर ऐसे समाधान विकसित किए जाने की दरकार है. इंडोनेशिया की न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन हिस्सेदारी (JETP) एक ऐसा मॉडल है, जो सरकार-उद्योग-समुदाय के बीच संवादों को प्रोत्साहित कर सर्वसम्मति तैयार करता है. इस तरह नागरिकों के लिए पहले से ज़्यादा न्यायसंगत, समावेशी और जन-केंद्रित भविष्य तैयार करने के तौर-तरीक़ों पर मंथन किया जाएगा. इसमें इस सवाल पर भी विचार होगा कि कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को किस प्रकार डिकमीशन (इस्तेमाल से बाहर) किया जाएगा.
तीसरा, ऊर्जा प्रशासन ढांचे में सुधार लाना.
एक ओर जहां परिवर्तनकारी क़वायदों की चुनौतियां पेचीदा हैं, वहीं देशों के बीच ऊर्जा प्रशासन की गुणवत्ता में भारी अंतर देखने को मिलते हैं. नेट ज़ीरो उत्सर्जनों पर आगे का रास्ता तय करते समय इस बात की पहचान करने की ज़रूरत है. ट्रांसमिशन और वितरण (T&D) के दौरान होने वाली हानि, ऊर्जा प्रशासन गुणवत्ता का उपयुक्त संकेतक है. इसकी वजह ये है कि ट्रांसमिशन और वितरण के दौरान होने वाले नुक़सानों में कमी लाने से उन्हीं ऊर्जा संसाधनों से ज़्यादा मूल्य जुटाए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर ऊर्जा कार्यकुशलता सुधारने के लिए जब स्टेट ग्रिड कंपनी ने ज़्यादा ऊर्जा खपत करने वाले उपभोक्ताओं के साथ सहभागिता की, तब चीन के जियांग्शु प्रांत ने नेट ज़ीरो उत्सर्जन से जुड़े लक्ष्यों में योगदान दिया. साल 2021 तक कंपनी जियांग्शु प्रांत में 13 शहरों की 214 सार्वजनिक इमारतों को अपनी सेवाएं मुहैया करा चुकी थी. इस सिलसिले में औसत ऊर्जा बचत दर 12 प्रतिशत के पार चली गई.
इसमें बुनियादी तौर पर ट्रांसमिशन और वितरण से जुड़े नुक़सान व्यवस्थागत कमज़ोरियां हैं, जो तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत क्षमता में रुकावटों की वजह से पेश आते हैं. इससे आगे व्यवस्थागत नाकामियां सार्वजनिक क्षेत्र में बेमेल प्रोत्साहनों के चलते और गहरे हो जाते हैं. रियायती वित्त स्वीकार करने की शर्त के रूप में ट्रांसमिशन और वितरण कंपनियों (जो कमज़ोर तरीक़े से कार्य कर रही हों) को अपने प्रदर्शन में सुधार दिखाने की आवश्यकता हो सकती है. दरअसल ‘प्रतिस्पर्धा के लिए एक समान परिस्थितियां’ मिनी-ग्रिड ऑपरेटर्स और सरकारी स्वामित्व वाले ट्रांसमिशन और वितरण संचालकों के बीच प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित कर सकते हैं. प्रदर्शन पर निरंतर निगरानी रखने वाले और बेंचमार्किंग करने वाले डिजिटल डैशबोर्ड के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है.
न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तनों में रफ़्तार भरने को लेकर वित्तीय क्षेत्र और वास्तविक अर्थव्यवस्था के बीच के संवाद को मज़बूत बनाने के लिए G20 की नेतृत्वकारी भूमिका अनिवार्य है.
नीतिगत सिफ़ारिश 1: G20 प्रधान शेयरहोल्डर्स के रूप में बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs) को ब्रिजटाउन घोषणापत्र के अनुरूप प्रतिक्रिया जताने के लिए निर्देशित करे. जलवायु परिवर्तन की रोकथाम करने और उसके हिसाब से ढालने या अनुकूलित करने के लिए इन तमाम संस्थाओं को जलवायु वित्त की मात्रा में भारी बढ़ोतरी करने को लेकर अपने संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करने को कहा जाना चाहिए.
ब्रिजटाउन कार्यक्रम के तहत ऋण के भारी बोझ तले दबे देशों को राहत पहुंचाने की दिशा में क़दम उठाने का आह्वान किया गया है. साथ ही जलवायु कार्रवाई के लिए निवेश को आगे बढ़ाने की भी पहल की गई है. उल्लेखनीय है कि बहुपक्षीय विकास बैंकों के साथ वरीयता-प्राप्त साख प्रदाता के तौर पर व्यवहार किया जाता है. यही वजह है कि वो पूंजी बाज़ारों से सस्ती दरों पर वित्त संग्रह कर पाते हैं. सरकारी शेयरहोल्डर्स की सॉवरिन गारंटियां इनको सहारा देती हैं. बहुपक्षीय विकास बैंकों के पूंजी पर्याप्तता ढांचे (Capital Adequacy Framework) पर 2022 में की गई एक स्वतंत्र समीक्षा में G20 के लिए अनेक कार्रवाइयों की सिफ़ारिश की गई. इससे बहुपक्षीय विकास बैंकों की जोख़िम उठाने की क्षमता बढ़ सकती है, साथ ही उनकी देय पूंजी (callable capital) के एक हिस्से को जोख़िम पर्याप्तता वाले वर्धित (enlarged) ढांचों में शामिल किया जा सकता है. स्वतंत्र समीक्षा में बहुपक्षीय विकास बैंकों के शेयरहोल्डर प्रशासन और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की प्रक्रियाओं- दोनों की प्रभावशीलता सुधारने के लिए विशिष्ट कार्रवाइयों की सिफ़ारिश की गई है. इन दोनों क़दमों से उनकी ऋण दे पाने की योग्यता, क्षमता और दायरे में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हो सकेगी.
नीतिगत सिफ़ारिशें 2: G20 समूह, अफ्रीकी देशों में ऋण पुनर्संरचना की क़वायद से स्वच्छ ऊर्जा निवेश के ज़रिए विकास के लिए ऋण की अदलाबदली को संस्थागत रूप देता है.
पिछले दशक में अफ्रीका के ऋण भंडार में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है और फ़िलहाल ये एक दशक के उच्चतम स्तर पर है. अफ्रीका के 22 देश या तो दिवालिया हो चुके हैं या भारी ऋण संकट की कगार पर खड़े हैं. अतीत में अफ्रीकी देशों के कर्ज़, ज़्यादातर आधिकारिक ऋणदाताओं के खाते से आते थे. इनमें दुनिया के समृद्ध देशों के साथ-साथ विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे बहुपक्षीय ऋण प्रदाता शामिल थे, जबकि आज निजी बॉन्डहोल्डर्स और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का अफ्रीकी ऋण भंडार के एक बड़े हिस्से में योगदान है. इनमें चीन, भारत और सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं. अंतरराष्ट्रीय ऋण सांख्यिकी डेटाबेस से पता चलता है कि दिसंबर 2021 तक अफ्रीकी ऋण का 40 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्सा निजी साख-प्रदाताओं के खाते से आया, 23.5 प्रतिशत द्विपक्षीय साख-प्रदाताओं से, और 32.5 प्रतिशत बहुपक्षीय साख प्रदाताओं के खाते से आया.
चूंकि साख-प्रदाता अब ज़्यादा विविध स्वरूप वाले हो गए हैं, लिहाज़ा G20 समूह अब संचार को सरल बनाने में पहले से ज़्यादा नाज़ुक भूमिका निभा रहा है. साथ ही संकटग्रस्त देशों में ऋण के टिकाऊपन में सुधार लाने के लिए साझा क़वायद की अगुवाई कर रहा है. ऋण बोझ में दबे देशों के पास आम तौर पर जलवायु निवेश के लिए काफ़ी कम वित्तीय दायरा होता है. जलवायु के लिए ऋण की अदला-बदली देशों को जलवायु संकट और ऋण से जुड़ी समस्याओं, दोनों से एक ही वक़्त पर निपटने में मदद कर सकती है. मिसाल के तौर पर 2005 में स्पेन-उरुग्वे की ऋण-जलवायु अदलाबदली ने उरुग्वे की ऋण अदायगी में 1.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कमी ला दी. साथ ही 2 मेगावाट का विंड फार्म तैयार करने के लिए 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश का रास्ता भी साफ़ कर दिया. तत्काल ऊर्जा तक पहुंच बनाने की मांग वाले देशों में ऊर्जा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी क़वायदों के लिए ज़रूरी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए और ज़्यादा विकल्पों की पड़ताल करनी होगी. इसके साथ-साथ ऐसे देशों में ऋण के टिकाऊपन को भी बरक़रार रखना होगा. G20 इन दोनों क्षेत्रों में परिचर्चा की अगुवाई कर सकता है. G20 का नेतृत्व ब्रिजटाउन कार्यक्रम की दिशा में क़दम बढ़ा सकता है. सबके लिए ऊर्जा पहुंच की वचनबद्धता जताकर, कारोबारी वितरण के नवाचार भरे मॉडलों (जो नेट ज़ीरो उत्सर्जन वितरित करते हैं, जैसा ऊपर ज़िक्र किया गया है) को सहारा देकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है.
नीतिगत सिफ़ारिश 3: G20 का नेतृत्व वास्तविक अर्थव्यवस्था में ऊर्जा के न्यायसंगत बदलाव को क्रियाशील बनाने के लिहाज़ से बेहतर स्थिति में हैं.
[1] UNFCCC, “Sharm el-Sheikh Implementation Plan,” November 20, 2022.
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