सुधार के साथ बहुपक्षवाद की तरफ: डिजिटलाइजेशन के संदर्भ में वैश्विक संस्थानों और ढांचे में बदलाव

WTO के सदस्य देशों के बीच राजनीतिक नेतृत्व और सहयोग को प्रोत्साहन देकर WTO में सुधार को आगे बढ़ाने में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
Ankita Tyagi | Rakshit Tyagi

 

G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत के पास विकसित और विकासशील देशों के बीच असहमति का हल निकालकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे वैश्विक संस्थान को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण मौका है. इस कोशिश में ये संभावना है कि वो 21वीं शताब्दी में भारत की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक बन जाए. इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए अलग-अलग देशों के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दों को समझना महत्वपूर्ण है. तेजी से एक-दूसरे से जुड़ती और एक-दूसरे पर निर्भर दुनिया में विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर संवाद, बातचीत और सामूहिक निर्णय लेने को प्रोत्साहन देने के लिए बहुपक्षवाद एक अहम रूपरेखा  के तौर पर काम करता है.

चुनौतियों पर एक संपूर्ण नजर

WTO को असंतुलन और अंतर भरने की जरूरत है. इनमें बाजार तक पहुंच, टैरिफ एवं सब्सिडी, विशेष बर्ताव, बातचीत की योग्यता, क्षमता निर्माण और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच विवाद के निपटारे से जुड़े मुद्दे शामिल हैं. एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक व्यापार के सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए इन चुनौतियों का समाधान करना महत्वपूर्ण है.

बाजार तक पहुंच: विकसित देशों में ज्यादा खुले बाजार हैं जबकि विकासशील देशों को विकसित देशों के बाजार तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है.

टैरिफ और सब्सिडी: विकसित देश ज्यादा टैरिफ और सब्सिडी बनाये रखते हैं जिसकी वजह से विकासशील देशों के लिए मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है.

विशेष बर्ताव: WTO विकासशील देशों को अपनी अनूठी चुनौतियों का समाधान करने के लिए विशेष प्रावधान मुहैया कराता है.

बातचीत की योग्यता: असरदार बातचीत के लिए विकसित देशों के पास ज्यादा संसाधन और विशेषज्ञता होती है जिससे वो फायदे की स्थिति में होते हैं.

क्षमता निर्माण: व्यापार के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने और मानकों (स्टैंडर्ड) का पालन करने के लिए विकासशील देशों को समर्थन की जरूरत है.

विवाद का निपटारा: विकसित और विकासशील देशों के बीच विवाद जटिल हो सकते हैं और विकासशील देशों को प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

भारत और WTO के बीच बड़े मुद्दे

भारत और WTO के बीच कुछ मुद्दे हैं जिनका समाधान करने की आवश्यकता है:

(a). कृषि पर समझौते में एक “सुलह की शर्त” शामिल है जो अलग-अलग देशों को WTO की कार्रवाई का सामना किए बिना खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए सब्सिडी की सीमा को पार करने की अनुमति देती है. भारत ने धान की खेती करने वाले किसानों के लिए सब्सिडी की सीमा का उल्लंघन करने के बाद इस शर्त का इस्तेमाल किया. इसके कारण दूसरे देशों ने बाजार को तोड़ने-मरोड़ने और गलत फायदा उठाने को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर की.

(b). TRIPS (ट्रेड रिलेटेड एस्पेक्ट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) समझौते के तहत विकासशील देश किफायती दवाओं तक सीमित पहुंच, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की जरूरत, परंपरागत जानकारी एवं जैव विविधता  के संरक्षण, लागू करने की चुनौतियों, लचीलेपन एवं विशेष बर्ताव और लोगों के हित के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) के संतुलन को लेकर अपनी चिंता जताते हैं. वो इन मुद्दों के समाधान और उचित एवं न्यायसंगत परिणाम को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की मांग करते हैं. विकासशील देश लचीलेपन और TRIPS के भीतर विशेष प्रावधानों को बनाये रखने के महत्व पर जोर देते हैं. ये प्रावधान उन्हें अपनी बौद्धिक संपदा प्रणाली को विकास से जुड़ी अपनी विशेष आवश्यकता के अनुसार तैयार करने को आसान बनाते हैं जिसमें उनकी आर्थिक और तकनीकी सीमाओं का ध्यान रखा जाता है. विकासशील देश बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा को बढ़ावा देने के बीच संतुलन स्थापित करने और जरूरी सामानों एवं सेवाओं तक पहुंच की जरूरत को लेकर भी लगातार विशेष ध्यान देते रहते हैं. वो बौद्धिक संपदा अधिकारों के सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं की मान्यता के लिए दलील देते हैं.

डिजिटाइजेशन के साथ नई चुनौतियां

डिजिटल युग में सरहद के आर-पार डेटा का आना-जाना महत्वपूर्ण होता जा रहा है. इससे दूसरे देशों में जानकारी का आदान-प्रदान और उसका स्टोरेज (जमा करना) आसान हो गया है. लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं जैसे कि प्रौद्योगिकी तक असमान पहुंच और इंटरनेट कनेक्टिविटी जो अलग-अलग देशों के बीच डिजिटल बंटवारा पैदा करती हैं. ये बंटवारा सरहद के पार डेटा के आने-जाने में विकासशील देशों की भागीदारी के लिए अड़चन डालता हैं जिसकी वजह से आर्थिक एवं सामाजिक असमानता में बढ़ोतरी होती है. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, एक समान मानक एवं रूपरेखा  का विकास और सरहद के पार डेटा के प्रवाह (फ्लो) को लेकर भरोसे एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.

सुझाया गया ढांचा:

अनूठा ढांचा

सभी सेक्टर के डिजिटलाइजेशन के साथ अर्थव्यवस्था का मतलब हो गया है डेटा और सीमा के आर-पार उसका प्रवाह. डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में डेटा तक पहुंच सबसे महत्वपूर्ण है और ये सबके लिए उपलब्ध होना चाहिए. इस वजह से कानूनी और तकनीकी मोर्चों पर महत्वपूर्ण जोखिम की स्थिति बनती है. विभिन्न क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का एकीकरण कई और तरह की चुनौतियां लेकर आ रहा है. ऐसे में एक मार्गदर्शन की रूपरेखा  (गाइडिंग फ्रेमवर्क) तैयार करने और उसे अलग-अलग जगह लागू करने की जरूरत है.

कानूनी मामलों और फैसलों को देखते हुए कानूनी ढांचा अभी भी विकसित हो रहा है लेकिन इसको लेकर बहुत कुछ करने की जरूरत है. एक अनूठा ढांचा बेहद महत्वपूर्ण है जो सीमा के आर-पार डेटा के प्रवाह को आसान बनाने के उद्देश्य से व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डेटा तक पहुंच, जमा करने (कलेक्शन), इस्तेमाल, आर्थिक लाभ के लिए उपयोग, इत्यादि को लेकर बुनियादी नियमों और रेगुलेशन को एक समान करने के लिए मार्गदर्शन मुहैया कराएगा.

आर्थिक फायदे के लिए डेटा का इस्तेमाल

अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों (ज्यूरिस्डिक्शन) के द्वारा डेटा संरक्षण नियमों के जरिए डेटा (व्यक्तिगत डेटा जो किसी व्यक्ति की पहचान करता है या उसे पहचान के योग्य बनाता है) को लेकर कई तरह के व्यापक डेटा संरक्षण की रूपरेखा  को लागू और प्रस्तावित किया गया है जैसे कि EU में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन या भारत के डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2022 का मसौदा. लागू करने योग्य कानूनी अधिकार के पहलू के तौर पर आर्थिक लाभ के लिए डेटा के इस्तेमाल को स्वीकार करने की आवश्यकता फिलहाल पूरी नहीं की गई है और इसको लेकर कोई कानून नहीं है. रूपरेखा  को विकसित करने के लिए भागीदारों के साथ और ज्यादा चर्चा करने की जरूरत है. इस बात को लेकर भी बहस है कि आर्थिक फायदे के लिए डेटा का इस्तेमाल बौद्धिक संपदा या किसी दूसरे तरह के अधिकार के दायरे में आएगा या नहीं.

अब ये व्यापक रूप से माना जाता है कि डेटा को साझा करने से समाज की सेवा के उद्देश्य से इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा और ये आम लोगों के अनगिनत हितों को पूरा करेगा. इसलिए स्वेच्छा से डेटा साझा करने को बढ़ावा देने वाली कानूनी रूपरेखा  का समर्थन करना चाहिए, विशेष रूप से उनका जो लाइसेंस से जुड़े मुद्दों से निपटते हैं. जहां डेटा रखने वालों ने बाजार पर नियंत्रण के उद्देश्य से डेटा जारी करने से इनकार किया है, उन मामलों में अलग-अलग संसद ने डेटा तक पहुंच और उनके इस्तेमाल से जुड़े अधिकारों के लिए कानून बनाना शुरू कर दिया है. ये डेटा को व्यापक तौर पर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश के तहत किया जा रहा है.

व्यापार उदारीकरण

परंपरागत तौर पर सर्विस प्रोफेशनल्स के एक देश से दूसरे देश तक जाने को लेकर हर देश की अपनी इमिग्रेशन नीति और दो देशों के बीच समझौते होते हैं. WTO का जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज (GATS) अलग-अलग देशों को सेवाओं में व्यापार के उदारीकरण को लेकर बातचीत की एक रूपरेखा  मुहैया कराता है, इसमें सर्विस देने वालों का अस्थायी तौर पर आना-जाना भी शामिल है. GATS सदस्य देशों को सीमा के पार सेवाओं के व्यापार पर पाबंदियों को ढीला करने के लिए बढ़ावा देता है. इसमें सर्विस प्रोफेशनल्स जैसे कि कारोबार करने वालों, कंसल्टेंट और दूसरे कुशल कामगारों का अस्थायी तौर पर आना-जाना शामिल है. वर्तमान में WTO के पास अलग-अलग देशों के लिए इमिग्रेशन नीति तय करने का अधिकार नहीं है. उसका काम मुख्य रूप से मुक्त व्यापार (फ्री ट्रेड) को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य में आने वाली रुकावटों को कम करना है.

हालांकि इसके बावजूद WTO ने दूसरे देशों तक सर्विस प्रोफेशनल्स के आवागमन समेत सेवाओं के व्यापार की अहमियत को स्वीकार किया है. वास्तव में जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज (GATS), जो कि WTO का एक समझौता है, खास तौर पर सेवा मुहैया कराने के मकसद से लोगों के आवागमन के मुद्दे का समाधान करता है.

WTO को सदस्य देशों के साथ मिलकर पेशेवर लोगों की एक देश से दूसरे देश में अस्थायी एंट्री को आसान बनाना चाहिए. GATS समझौते में फेरबदल कर सभी सदस्य देशों के लिए एक अनिवार्य कानून बनाना चाहिए, न कि सिर्फ एक रूपरेखा  बनाना चाहिए. समझौते के तहत प्रोफेशनल्स को प्रवासियों की तरह नहीं बल्कि सर्विस प्रोवाइडर की तरह मानना चाहिए. सर्विस के लिए मैनपावर उदारवादी व्यवस्था के तहत आना चाहिए. ऐसा होने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था को जबरदस्त रफ्तार से बढ़ने में मदद मिलेगी.

WTO में फिर से जान फूंकने में G20 कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है?

चूंकि G20 विकसित और विकासशील देशों का एक मिला-जुला संगठन होने के साथ-साथ आर्थिक सहयोग के लिए एक वैश्विक मंच है, ऐसे में ये WTO के सुधारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. आगे कुछ संभावित कदम हैं जिन्हें G20 उठा सकता है:

  1. बहुपक्षवाद का समर्थन: G20 बहुपक्षवाद और नियम आधारित व्यापार प्रणाली के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहरा सकता है. इसके तहत शिखर सम्मेलन के दौरान G20 के नेताओं के द्वारा साझा बयान जारी करना, WTO के महत्व पर जोर देना और इसे मजबूत करने के लिए सुधार की जरूरत शामिल हैं.

 

  1. WTO के सुधार को प्राथमिकता: G20 अपनी बैठक के दौरान प्रमुख एजेंडे के तौर पर WTO के सुधार को प्राथमिकता दे सकता है. इसके तहत सुधार के लिए विशेष क्षेत्रों की पहचान के उद्देश्य से एक वर्किंग ग्रुप या टास्क फोर्स का गठन और कार्रवाई के लिए प्रस्ताव को विकसित करना शामिल हो सकता है.

विवाद के निपटारे का समाधान: G20 विवाद निपटारे के मुद्दे का समाधान WTO में कर सकता है. अमेरिका की वजह से विवाद निपटारे की प्रक्रिया कमजोर हो गई है क्योंकि उसने WTO की अपील सुनने वाली संस्था में नये जजों की नियुक्ति को रोक दिया है. G20 अमेरिका से ये अनुरोध कर सकता है कि वो इस रोक को हटाए और एक समाधान की तलाश करने की दिशा में काम करें .

  1. व्यापार असंतुलन का समाधान: G20 वैश्विक व्यापार के असंतुलन का समाधान करने के लिए काम कर सकता है. व्यापार असंतुलन की वजह से आम तौर पर तनाव पैदा होता है और WTO का कामकाज कमजोर होता है. व्यापार असंतुलन का समाधान करने के लिए व्यापार बाधाओं को कम करना और उदारीकरण को बढ़ावा देना शामिल है.

 

  1. टिकाऊ विकास को बढ़ावा: व्यापार के जरिए G20 टिकाऊ विकास को प्रोत्साहन दे सकता है. टिकाऊ विकास सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का हल निकालने में मदद कर सकता है. टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने में ईमानदार व्यापार और टिकाऊ उत्पादन की पद्धति को प्रोत्साहन देने की पहल शामिल हैं.

कुल मिलाकर WTO के सदस्य देशों के बीच राजनीतिक नेतृत्व और सहयोग को प्रोत्साहन देकर WTO में सुधार को आगे बढ़ाने में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. साथ मिलकर काम करके G20 ये सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि WTO वैश्विक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख संगठन बना रहे.