डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए बहुपक्षीय ढांचे की पड़ताल

Christoph Meinel | Sharinee L. Jagtiani | David Hagebolling

टास्क फ़ोर्स 7 टूवर्ड्स रिफ़ॉर्म्ड मल्टीलैटरलिज़्म: ट्रांसफ़ॉर्मिंग ग्लोबल इंस्टीट्यूशंस एंड फ़्रेमवर्क्स


सारांश

ज़बरदस्त भू राजनीतिक तनावों वाले मौजूदा दौर में G20 के अध्यक्ष के नाते भारत के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा है. सर्वसम्मति बनाना और सामूहिक कार्रवाई सुनिश्चित करने से जुड़े G20 के मूल्यों को बनाए रखना उन्हीं में से एक है. इस दिशा में एक अहम अवसर डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा (यानी डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर, DPI) पर व्यवस्थित और सूझबूझ भरा एजेंडा तैयार करना है. सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने की दिशा में कार्य कुशल और सुरक्षित DPI की व्यापक उपलब्धता, एक अहम समर्थकारी कारक है. इतना ही नहीं, भारत के पास विशाल पैमाने पर डिजिटल सेवाओं की शुरुआत करने और उन्हें आगे बढ़ाने का ज़बरदस्त अनुभव मौजूद है. लिहाज़ा 2023 में G20 की अध्यक्षता इस मसले पर भविष्य के लिए ज़रूरी एजेंडे की संरचना के हिसाब से मज़बूत स्थिति में है.

इस पॉलिसी ब्रीफ़ में डिजिटल सार्वजनिक इंफ़्रास्ट्रक्चर को सतत विकास के घटक के रूप में चिन्हित किया गया है. इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के केंद्र बिंदु के तौर पर G20 की क्षमताओं की चर्चा की गई है. इसके साथ ही समूह के DPI एजेंडे को आगे बढ़ाने के संभावित क़दमों के विकास पर भी ग़ौर किया गया है. इस सूची में मानव-केंद्रित DPI सिद्धांतों पर एक समर्पित कार्य बल की स्थापना और स्थानीय ज़रूरतों का पता लगाने की प्रक्रिया में मदद करने के लिए मल्टी स्टेकहोल्डर प्रक्रिया तैयार करना शामिल है. G20 के दो सदस्यों और तीसरे पक्ष के तौर पर एक हिस्सेदार देश की मौजूदगी वाले ‘क्रियान्वयन त्रिभुज’ बनाने की दिशा में शुरुआती सहयोग की रूपरेखा बनाना भी इसी प्रक्रिया का अंग है. व्यापक तौर पर DPI पर सघनता पूर्वक किए गए जुड़ाव से सतत विकास को आगे बढ़ाने का मौक़ा मिलता है. इतना ही नहीं, G20 के तेज़ी से उभरते डिजिटल टेक्नोलॉजी एजेंडे में वैश्विक सार्वजनिक हित को केंद्र में रखे जाने की प्रक्रिया भी आसान हो जाती है.    

चुनौती

हाल में तमाम तरह के संकटों के दौरान डिजिटल टेक्नोलॉजी ने लोगों के जीवन में सुधार लाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है. इसने कोविड-19 महामारी से उबरने में दुनिया की मदद की है, युद्ध क्षेत्रों (जैसे यूक्रेन) में अहम सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच बहाल की है, और सीरिया और टर्की में भूकंप राहत प्रयासों को आगे बढ़ाने में भी सहायता की है. हालांकि संकट प्रबंधन से परे, डिजिटल टेक्नोलॉजी तमाम देशों और समाजों में विकास के क्षेत्र में दीर्घकालिक कायाकल्पों का भी संचालन करती है. इसे डिजिटल सार्वजनिक इंफ़्रास्ट्रक्चर यानी DPI के प्रावधान के ज़रिए प्रभावी रूप से देखा जाता है. ये एक व्यापक शब्दावली है. पूरे समाज के भीतर आवश्यक क्रियाओं और सेवाओं में मदद करने वाली प्रणालियों और समाधानों के संदर्भ में इस शब्दावली का बार-बार प्रयोग किया जाता है. जिस तरह सड़कों, पुलों और परिवहन व्यवस्था ने दुनिया की दूरी घटाने और स्थानों को एक-दूसरे के क़रीब लाने में योगदान दिया है वैसे ही DPI सार्वजनिक सेवाओं और आर्थिक अवसरों तक लोगों की पहुंच को और आगे बढ़ाती है. ये उन क्रियाओं में रफ़्तार भरती है और उनका पैमाना बढ़ाती है, जो सामाजिक और आर्थिक गतिविधि के केंद्र में होते हैं. इनमें पहचान और सत्यापन या अदायगी करना या भुगतान हासिल करना शामिल हैं. कई देशों के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी के ऐसे इस्तेमाल बुनियादी संसाधनों और सेवाओं तक पहुंच का विस्तार करने की दिशा में भारी संभावना रखते हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा प्रणालियों में सुधार के साथ-साथ जीवन-स्तर को आमतौर पर ऊंचा उठाने में भी मददगार साबित होते हैं. 

ज़ाहिर तौर पर सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के वैश्विक समुदाय के प्रयासों में डिजिटल टेक्नोलॉजी केंद्रीय भूमिका में पहुंच गई है. “सबके लिए बेहतर और टिकाऊ भविष्य” की स्थापना के साझा ‘ब्लूप्रिंट’ के तौर पर SDGs वैश्विक स्तर पर ज़बरदस्त चुनौतियों का निपटारा करने की कोशिश करते हैं. इनमें ग़रीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय क्षति, शांति और न्याय शामिल हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय सतत विकास में रफ़्तार भरने की क़वायदों में लगा है, ताकि ये 2030 के लक्ष्यों के अनुरूप पटरी पर बरक़रार रहे. डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर इन प्रयासों में धीरे-धीरे बेहद अहम होता जा रहा है. लिहाज़ा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक मुख्य लक्ष्य कार्यकुशल और सुरक्षित DPI की वैश्विक उपलब्धता में सुधार लाना हो गया है. संसाधनों के हिसाब से निर्धन इलाक़ों के देशों के लिए भी ऐसे ही प्रयास किए जाने हैं. बहरहाल, इस क़वायद के लिए भारी-भरकम तकनीकी क्षमता और वित्तीय संसाधनों की दरकार पड़ सकती है, इसलिए ये एक चुनौती बनी हुई है. ऐसे में कुछ देशों के लिए स्वतंत्र रूप से डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा खड़ा करना और उनका संचालन करना मुश्किल हो गया है. 

G20 के देश फ़िलहाल तमाम क़िस्म के DPI कार्यक्रमों का विकास और तैनाती कर रहे हैं. इस कड़ी में भारतीय मॉडल की मिसाल ले सकते हैं, जिसे इंडियास्टैक का नाम दिया गया है. इसमें “खुले APIs (एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस) डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं का एक पूरा समूह है, जिसका लक्ष्य समूची जनसंख्या के स्तर पर पहचान, डेटा और भुगतानों की आर्थिक इकाइयों को बेपर्दा करना है.” महज़ एक दशक में ही इसने तक़रीबन 90 प्रतिशत भारतीय आबादी को एक डिजिटल पहचान (ID) के लिए हामी भरने और इंटर-ऑपरेबल ऑनलाइन भुगतानों जैसी सेवाओं तक पहुंच बनाने की क्षमता दे दी है. अमेरिका के पास DPI रूपरेखाओं का एक पूरा समूह मौजूद है, जिनकी शुरुआत राजकीय और ग़ैर-राजकीय किरदारों द्वारा की गई है. इनका मक़सद बेहतर सार्वजनिक सेवाएं मुहैया कराना और स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक कल्याणकारी गतिविधियों में सुधार की क़वायदों में रफ़्तार भरना है. देशों के हिसाब से विशिष्ट प्रयासों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं भी DPI कार्यक्रमों में शामिल होती हैं (नीचे देखिए).

बहरहाल, विकास पर साझा रूप से ज़ोर दिए जाने के बावजूद घरेलू और अंतरराष्ट्रीय DPI क़वायदों में वैश्विक तालमेल अपेक्षाकृत सीमित स्तर पर बना हुआ है. जर्मनी और एस्टोनिया की सरकार के साझा कार्यक्रम GovStack, द इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन और डिजिटल इम्पैक्ट अलायंस, जैसे प्रयासों ने इस मसले का निपटारा शुरू कर दिया है. मज़बूत अंतरराष्ट्रीय तवज्जो के साथ इसका लक्ष्य “टिकाऊ डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार करने में रुकावटों को दूर करना और मानव-केंद्रित डिजिटल सेवाएं तैयार करने में सरकारों की मदद करना है, जो व्यक्तियों को सशक्त बनाती हैं और उनकी सलामती में सुधार लाती हैं.” हालांकि वैश्विक स्तर पर DPI स्टैक्स फ़िलहाल व्यापक रूप से एकाकी अवस्था में हैं. साझा सिद्धांतों के रूप में इनकी बुनियाद का अभाव है. इन सिद्धांतों में इंटर-ऑपरेबिलिटी, पारदर्शिता, और डेटा सुरक्षा शामिल हैं. इतना ही नहीं दोहराव की वजह से ज्ञान और फ़ंड के अकार्यकुशल इस्तेमाल का जोख़िम भी बना रहता है.    

G20 का सदस्यता समूह अनोखा है, जिसमें विविध प्रकार के देश शामिल हैं. लिहाज़ा इस पॉलिसी ब्रीफ़ में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर DPI के क्षेत्र में क़रीबी सहयोग के अवसरों को रेखांकित किया गया है. मौजूदा वक़्त में अनेक देश अपने विकास एजेंडे के अटूट कारक के रूप में डिजिटल सेवाओं को लेकर अपने सहायताकारी प्रयासों को आगे बढ़ा रहे हैं. ऐसे वातावरण में इस प्रकार के सहयोग की ज़रूरत बताई गई है. 

G20 की भूमिका

फ़िलहाल अनेक देश बड़े DPI कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं. इनमें से कुछ उनके अपने विकास लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा मे लक्षित हैं, जबकि अन्य कार्यक्रमों की संरचना तमाम अलग-अलग देशों के संदर्भों में इस्तेमाल के लिए ढांचे तैयार करने के हिसाब से गढ़ी जा रही हैं. DPI के विकास और आग़ाज़ को लेकर अलग-अलग देशों के तजुर्बे अलग-अलग हैं. ऐसे में इस मसले पर नियमित जुड़ाव के लिए एक बहुपक्षीय ढांचा, सीख और जानकारियां हासिल करने की साझा क़वायद को आसान बनाएगा. साथ ही आपसी तालमेल की पहचान करने और बेहतरीन तौर-तरीक़ों में समावेशी रुख़ अपनाने में भी ये प्रयास मददगार साबित होंगे.  

दुनिया का भूराजनीति तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की तरह G20 के सामने भी सर्वसम्मति हासिल करना एक बड़ी चुनौती बन गया है. डिजिटल टेक्नोलॉजी, आर्थिक प्रतिस्पर्धा की अहम बुनियाद बनती जा रही है. धीरे-धीरे यही क्षमता सैन्य बढ़त का निर्धारण भी करने लगी है. ऐसे में डिजिटल प्रौद्योगिकी सामरिक प्रतिस्पर्धा के मोर्चे के तौर पर उभर कर सामने आने लगी है. चीन ने पहले से ही चुनिंदा प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अपनी अगुवा भूमिका को महाशक्ति बनने के अपने मंसूबों के साथ जोड़ लिया है. ख़ासतौर से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कम्प्यूटिंग और 5G/6G नेटवर्किंग टेक्नोलॉजी के सबसे नए जेनरेशन के साथ चीन ऐसे ही रणनीति अपना रहा है. उधर अमेरिका ने डिजिटल टेक्नोलॉजी मूल्य श्रृंखला में अपनी मज़बूती का भरपूर इस्तेमाल कर नाज़ुक प्रौद्योगिकियों में बराबरी या दबदबा हासिल करने की चीन की क्षमता को कुंद करने की इच्छा का प्रदर्शन किया है. यही वजह है कि नीतिगत विमर्शों में ‘डिजिटल’, ‘साइबर’ या ‘इंटरनेट संप्रभुता’ जैसे विचारों की केंद्रीयता बढ़ती जा रही है. ये राज्यसत्ताओं की ओर से अपने अधिकार को नए सिरे से जताए जाने का प्रदर्शन करते हैं. उनकी सरहदों के भीतर डिजिटल टेक्नोलॉजी का किस तरह से संचालन होगा, वो ये ख़ुद तय करना चाहते हैं. इस सिलसिले में एक अहम बात पर ग़ौर करना ज़रूरी है. दरअसल आज दुनिया के तमाम देशों के बीच अपनी प्रेरणाओं, लक्ष्यों और पहले से ज़्यादा संप्रभुता के लिए इस प्रयास से जुड़े उपकरणों के संदर्भ में ज़बरदस्त मतभेद मौजूद हैं. लिहाज़ा डिजिटल टेक्नोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग ऐसे ही वातावरण में आकार ले रहा है.   

हालांकि बहुपक्षीय सहयोग के संदर्भ में G20 सापेक्षिक रूप से ठोस स्थान के रूप में सामने आता है. इसमें विविध प्रकार के देशों का एक व्यापक दायरा मौजूद है, जो इसके सदस्य के रूप में काफ़ी अहमियत रखते हैं. डिजिटल टेक्नोलॉजी और सतत विकास में उसकी भूमिका कई वर्षों से G20 के एजेंडे का हिस्सा रहे हैं. 2017 में जर्मनी की अध्यक्षता के दौरान डिजिटल मसलों और विकास पर सम्मेलनों की एक श्रृंखला के साथ-साथ एक ‘डिजिटल इकोनॉमी टास्क फ़ोर्स’ तैयार किया गया था. 2021 में इटली की अध्यक्षता में G20 ने डिजिटल पहचान को सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच के मामले में एक अहम समर्थकारी कारक के तौर पर पहचाना था. DETF के कामकाज के ज़रिए डिजिटल प्रशासन को आगे बढ़ाने की व्यापक प्रतिबद्धता के हिस्से के तौर पर इस क़वायद को अंजाम दिया गया था. आख़िरकार नवंबर 2022 में G20 के बाली घोषणा पत्र में सदस्य राष्ट्रों ने डिजिटल व्यापार पर समावेशी अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहमियत को पहचाना. इसके साथ-साथ सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली डिजिटल कनेक्टिविटी, सीमा के आर-पार आंकड़ों के प्रवाह को बढ़ावा देने और डिजिटल कौशलों और साक्षरता को आगे बढ़ाने की अहमियत पर भी ज़ोर दिया गया. भारतीय अध्यक्षता में DPI को “हमारे युग के सबसे उल्लेखनीय बदलाव” के तौर पर रेखांकित किया गया है. लिहाज़ा ऐसा लगता है कि G20 के अध्यक्ष के नाते भारत के पास 2023 में G20 की प्रक्रिया को डिजिटल प्रौद्योगिकी के शासन-प्रशासन का केंद्रीय हिस्सा बनाने की क्षमता और इच्छा शक्ति मौजूद है.

ऐसे में G20 डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर पर बहुपक्षीय ढांचे की संरचना तैयार करने में G20 एक केंद्र बिंदु के तौर पर काम कर सकता है. DPI की शब्दावली के मातहत आने वाली प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के प्रकारों पर पहले से ज़्यादा सर्वसम्मति तैयार करने के लिए ऐसे ढांचे को लगातार प्रयास करना चाहिए. इसे बुनियादी सिद्धांतों के साझा समूह पर सर्वसम्मति को सुचारू बनाने पर भी ध्यान लगाना चाहिए. ये DPI के विकास और तैनाती की सूचना देते हुए अंतरराष्ट्रीय तकनीकी सहयोग के आधार के रूप में काम कर सकता है. इसमें इंटर-ऑपरेबिलिटी, खुलेपन और मापनीयता (scalability) के सिद्धांतों को शामिल किया जा सकता है, ताकि विक्रेता के स्तर पर रुकावटों जैसी जोख़िमों को दूर किया जा सके. ऐसा ढांचा डिजिटल आवश्यकताओं की पड़ताल करने और उन्हें साझा करने का प्लेटफ़ॉर्म भी तैयार कर सकता है. एक-एक देश और समुदायों को ऐसी डिजिटल ज़रूरतें हो सकती हैं. 

G20 के लिए सिफ़ारिशें

भारत की G20 अध्यक्षता, सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों में रफ़्तार भरने के अहम अवसर की नुमाइंदगी करती है. DPI सहयोग को आसान बनाने वाला बहुपक्षीय ढांचा, इसका अहम घटक होना चाहिए. इसके संभावित क़दमों में नीचे दिए गए ब्यौरे शामिल हो सकते हैं: 

सतत विकास के लिए DPI की प्रगति और इस्तेमाल का मार्गदर्शन करने को लेकर साझा सिद्धांतों को परिभाषित करने के लिए G20 के सदस्यों को एक कार्य बल की स्थापना करनी चाहिए. इनमें ऐसे सिद्धांतों को शामिल किया जा सकता है जो विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करते वक़्त किसी देश के स्वामित्व और पसंद सुनिश्चित कर सकें. इनमें इंटर-ऑपरेबिलिटी, खुलापन और मापनीयता (scalability) शामिल हैं. ऐसे सिद्धांतों के विकास के आधार के रूप में कार्य बल को प्रौद्योगिकियों और सेवाओं (जो DPI की शब्दावली के तहत आते हैं) के प्रकारों पर साझा सर्वसम्मति बनाने के मक़सद से काम करना चाहिए. ये सिद्धांत वैश्विक DPI प्रावधानों के लिए विकास के रूप में केंद्रित एजेंडे की सूचना देने में मददगार साबित हो सकते हैं. ढांचागत तौर पर इस कार्य बल को G20 की डिजिटल अर्थव्यवस्था कार्य समूह (DEWG) के तहत स्थापित किया जा सकता है. साथ ही ये एक साल वाले सनसेट (sunset) प्रावधान के तहत मिशन के स्वरूप में संचालित हो सकता है.

कार्य बल का कामकाज DPI की आवश्यकताओं की पड़ताल की समावेशी प्रक्रिया से घिरा होनी चाहिए. G20 कार्य बल की बैठक के संदर्भ में ये ‘सतत विकास के लिए DPI’ का स्वरूप ले सकती है. इसमें तकनीकी समुदाय के सदस्यों के साथ-साथ सिविल सोसाइटी का भी जुड़ाव होना चाहिए ताकि DPI से जुड़ी प्राथमिकताओं और चुनौतियों पर ज़रूरी इनपुट मुहैया कराई जा सके. इसे निजी क्षेत्र के साथ परिचर्चा का मंच भी उपलब्ध कराना चाहिए. यहां इस बात पर चर्चा होनी चाहिए कि टेक्नोलॉजी कंपनियां (बाज़ार में मौजूद छोटे और नवाचार करने वाले किरदारों समेत) किस प्रकार पारदर्शिता, इंटर-ऑपरेबिलिटी और जवाबदेही के सिद्धांतों के अनुरूप DPI के प्रावधानों में रफ़्तार भर सकती हैं. इन रूपरेखाओं के अनुरूप सहयोगकारी रुख़ से व्यापक हिस्सेदारी और स्वामित्व, दोनों सुनिश्चित हो सकेगा. इस तरह DPI को आगे बढ़ाने में बहुपक्षीय ढांचा खड़ा करना मुमकिन हो सकता है.

G20 के देशों को DPI सहयोग को तेज़ी के साथ परिचालित करने की कोशिश करनी चाहिए. वैसे तो कार्य बल G20 के सभी सदस्यों को DPI के साझा मार्गदर्शक सिद्धांतों की व्याख्या करने का मंच प्रदान करेगा, लेकिन ज़मीनी स्तर के सहयोग को ‘क्रियान्वयन त्रिभुजों’ के ज़रिए तेज़ रफ़्तार दी जा सकती है. इस सिलसिले में G20 के दो सदस्य देश एक तीसरे ग़ैर-सदस्य देश के साथ गठजोड़ बनाकर स्थानीय प्राथमिकताओं के अनुकूल DPI समाधानों के इंटर-ऑपरेबल पैकेज की रूपरेखा साझा तौर पर तैयार कर सकते हैं. क्रियान्वयन से जुड़ी इन क़वायदों से हासिल सबक़ को आगे चलकर G20 के सदस्यों (कार्य बल और DEWG में) के बीच होने वाली परिचर्चाओं में शामिल किया जा सकता है.

G20 के एक भावी कार्य बल को अन्य निकायों और कार्यक्रमों के साथ सहयोग करना चाहिए. इससे DPI के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में दोहराव और दरारों की रोकथाम हो सकेगी. अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ और डिजिटल प्रभाव गठजोड़ के SDG डिजिटल निवेश ढांचे की सिफ़ारिशें समन्वय के लिए एक अहम प्रासंगिक बिंदु हो सकती हैं. इस संभावित कार्य बल को विश्व बैंक के प्रतिनिधियों को भी अपने साथ जोड़ना चाहिए. ग़ौरतलब है कि विश्व बैंक पहचान और भुगतान जैसी अहम सेवाओं को लेकर डिजिटल टेक्नोलॉजियों का भरपूर फ़ायदा उठाने के लिए दो कार्यक्रमों का संचालन करता है. ये कार्यक्रम है- विकास के लिए पहचान (ID4D) और सरकार से व्यक्ति विशेष को भुगतान (G2Px). आख़िरकार इसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव के दफ़्तर के टेक दूत के एक प्रतिनिधि को आमंत्रित करने पर भी विचार करना चाहिए. इससे इस बात की पड़ताल हो सकेगी कि DPI को लेकर G20 के कामकाज से वैश्विक डिजिटल कॉम्पैक्ट की मौजूदा प्रक्रिया में किस तरह मदद मिल सकती है. “खुले, मुक्त और सुरक्षित डिजिटल भविष्य के लिए साझा सिद्धांतों” की दिशा में ये क़वायद अहम साबित हो सकती है. 


एट्रिब्यूशन: क्रिस्टोफ़ मीनेल, शरिनी एल. जगतियानी और डेविड हेजोबॉयलिंग,, “टुवर्ड्स ए मल्टीलेटरल फ़्रेमवर्क फ़ॉर डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.


Endnotes

[1] Daniel Shu Wei Ting, Lawrence Carin, Victor Dzau, and Tien Y. Wong, 2020, “Digital Technology and COVID-19,” Nature Medicine 226: 459-461.

[2] “Supporting Ukraine Through Digital,” Shaping Europe’s Digital Future, European Commission, last modified March 15, 2021.

[3] “Türkiye-Syria Earthquake: How AI and Emerging Tech Are Helping Relief Efforts,” World Economic Forum, Tech and Innovation, February 18 2023.

[4] See for e.g. “Digital Public Infrastructure, Building Blocks, and Their Relation to Digital Public Goods,” GovStack: News. May 26, 2022.

[5] Vyjayanti T Desai, Jonathan Marskell, Georgina Marin, and Minita Varghese, “How Digital Public Infrastructure Supports Empowerment, Inclusion, and Resilience” World Bank Blogs, March 15, 2023.

[6] “Goals: Take Action for the Sustainable Development Goals,” United Nations, accessed May 4, 2023.

[7] “Who We Are,” Digital Public Goods Alliance, accessed May 4, 2023.

[8] “IndiaStack Is,” IndiaStack, accessed  May 4, 2023.

[9] Yan Carrière-Swallow, Vikram Haskar, and Manasa Patnam, “Stacking up Financial Inclusion Gains in India,” International Monetary Fund, July 2021.

[10] “Statement from Gates Foundation CEO Mark Suzman: Why We Need Digital Infrastructure,” Bill & Melinda Gates Foundation: Media Centre, accessed May 5.

[11] “Accelerating the Digital Transformation of Government Services,” GovStack, accessed May 4, 2023.

[12] David Hagebölling,  “The Geopolitical Struggle for Technology Leadership,” Internationale Politik Quarterly, April 12, 2022.

[13] Tim Rühlig, “China’s Digital Power: Assessing the Implications for the EU,”  Digital Power China: A European Research Consortium, German Council on Foreign Relations, January 2022.

[14] Henry Farrell and Abraham L. Newman, 2019 “Weaponized Interdependence: How Global Economic Networks Shape State Coercion,” International Security 44 (1): 42–79.

[15] “G20- Shaping Digitalisation at the Global Level” Bundesministerium für Wirtschaft und Klimaschutz, accessed 4 May 2023.

[16] “G20 Digital Ministers’ Meeting,” Ministry of Enterprises and Made in Italy, Governo Italiano,  August 5, 2021.

[17] “G20 Bali Leaders’ Declaration,” G20 Indonesia, 2022.

[18] Sharinee Jagtiani and David Hagebölling. “India’s G20 Presidency: Decoding the Digital Technology Agenda,” The Diplomat, January 30 2023.

[19] “SDG Digital Investment Framework: A Whole-of-Government Approach to Investing in Digital Technologies to Achieve the SDGs“, Digital Impact Alliance, April 2019.

[20] Anna Metz, Georgina Marin, Jonathan Marskell, Julia Clark, and Karol Karpinski, “A Digital Stack for Transforming Service Delivery,” The World Bank, February 22, 2022.

[21] “Global Digital Compact”, UN Office of the Secretary-General’s Envoy on Technology, United Nations, accessed  May 4 2023.