SDG: ‘सतत् विकास के लक्ष्य को हासिल करने में शिक्षा की भूमिका’

जॉर्जिया ने जातीय अल्पसंख्यकों को जोड़ने के मक़सद से उनकी भाषा में उच्च शिक्षा का विस्तार करने के लिए 1+4 कार्यक्रम को लागू किया है.
Irine Kurdadze | Eka Siradze

भारत की जी20 की अध्यक्षता की थीम- “एक पृथ्वी, एक कुटंब, एक भविष्य” LiFE (लाइफ़स्टाइल फॉर एनवायरमेंट यानी पर्यावरण के लिए जीवनशैली) पर प्रकाश डालती है. LiFE न केवल किसी व्यक्ति की जीवनशैली के स्तर को लेकर है बल्कि राष्ट्रीय विकास को लेकर भी है. इससे वैश्विक स्तर पर बदलाव के क़दम उठाए जा सकते हैं जिसका परिणाम स्वच्छ, हरित और नीले भविष्य के रूप में निकल सकता है. ये थीम सीधे तौर पर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के द्वारा 2015 में अपनाए गए सतत विकास लक्ष्यों (SDG)के साथ मेल खाती है. ये सतत विकास लक्ष्य ग़रीबी ख़त्म करने, धरती की रक्षा करने और हर किसी एवं हर जगह लोगों का जीवन एवं संभावना सुधारने के लिए क़दम उठाने का एक सार्वभौमिक आह्वान था. साथ ही 2015 में अपनाए गए लक्ष्य ने इस बात को मान्यता दी कि सतत विकास उस समय तक हासिल नहीं किया जा सकता है जब तक समाज के एक व्यापक हिस्से, जिनमें जातीय अल्पसंख्यक शामिल हैं, की पहुंच शिक्षा तक नहीं होती है. इस लेख का उद्देश्य एक बहुराष्ट्रीय एवं बहुभाषी देश के रूप में सरकार के “1+4” कार्यक्रम के उदाहरण के तौर पर किसी विशेष जातीय अल्पसंख्यक समूह के युवा सदस्यों तक उच्च शिक्षा की पहुंच को मुहैया कराने में जॉर्जिया के अनुभव को साझा करना है.

इस लेख का उद्देश्य एक बहुराष्ट्रीय एवं बहुभाषी देश के रूप में सरकार के “1+4” कार्यक्रम के उदाहरण के तौर पर किसी विशेष जातीय अल्पसंख्यक समूह के युवा सदस्यों तक उच्च शिक्षा की पहुंच को मुहैया कराने में जॉर्जिया के अनुभव को साझा करना है.

जॉर्जिया की सरकार (GoG) के द्वारा जुलाई 2021 में अपनाई गई नागरिक समानता एवं एकीकरण रणनीति 2021-2030 के अनुसार सरकार ने देश के सतत विकास में जातीय अल्पसंख्यकों के द्वारा किए गए योगदान की सबसे महत्वपूर्ण कारणों के रूप में पुष्टि की. लेकिन सोवियत संघ की नकारात्मक विरासत- यानी सीमा क्षेत्रों में दृढ़तापूर्वक रह रहे जातीय अल्पसंख्यकों के बीच देश की भाषा को लेकर अनभिज्ञता- देश के आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन में जातीय अल्पसंख्यकों के पूर्ण एकीकरण के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है. पिछले 30 वर्षों के दौरान शिक्षा प्रणाली में कुछ सफल सुधार किए गए हैं (उदाहरण के तौर पर 2004 में बोलोग्ना प्रणाली (यूरोपीय देशों के बीच उच्च शिक्षा की नीति को लेकर बातचीत) में एकीकरण, “जॉर्जिया के साथ पढ़ाओ और सीखो” परियोजना के माध्यम से अंग्रेज़ी भाषा की सीख, इत्यादि) लेकिन इसके बावजूद “1+4” कार्यक्रम जॉर्जिया में जातीय अल्पसंख्यकों की समस्या का समाधान करने के लिए सबसे कामयाब कार्यक्रम बना हुआ है.
जॉर्जिया का संविधान, सामान्य शिक्षा पर जॉर्जिया का क़ानून और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम जातीय अल्पसंख्यकों को उनकी मूल भाषा में पूर्ण सामान्य शिक्षा हासिल करने के अधिकार की गारंटी देते हैं. लेकिन ये पता चला है कि स्वतंत्रता के बाद जॉर्जिया ने जो नकारात्मक ऐतिहासिक विरासत प्राप्त की है यानी दो प्रमुख जातीय अल्पसंख्यक- आर्मेनियाई और अज़रबैजानी जिन क्षेत्रों में घने रूप से बसे हैं वहां जॉर्जियाई भाषा के ज्ञान की कमी, न केवल पूरी जनसंख्या के संगठित होने में बाधाओं का निर्माण करती है बल्कि इन बड़े अल्पसंख्यक समूहों को उच्च शिक्षा, जो कि सिर्फ़ जॉर्जियाई भाषा में संभव है, हासिल करने से भी रोकती है. इस तरह ये अल्पसंख्यक समूह एक सतत अर्थव्यवस्था और समाज के निर्माण के लिए पूरी तरह संगठित नहीं हो पाते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए सरकार की तरफ़ से असाधारण प्रयासों और एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता थी जिसमें न केवल सरकारी भाषा की पढ़ाई को मज़बूत करना शामिल था, जो कि अपने आप में एक लंबी और समय लेने वाली प्रक्रिया थी, बल्कि जातीय अल्पसंख्यक आबादी के पूर्वाग्रह और प्रतिरोध से पार पाना भी शामिल था.

इसलिए 2009 में प्रतिक्रिया देते हुए जॉर्जिया के शिक्षा एवं विज्ञान मंत्रालय (MoES) ने महत्वाकांक्षी 1+4 कार्यक्रम को लागू करना शुरू कर दिया.
1+4 कार्यक्रम के पीछे सोच ये है कि 3 अनिवार्य भाषाओं की जगह केवल सामान्य कौशल का टेस्ट जातीय अल्पसंख्यकों की मूल भाषा (अज़रबैजानी और आर्मेनियाई) में लेकर संयुक्त सरकारी परीक्षाओं को पास करना आसान बना दिया जाए. इसके बाद छात्रों के पास ये अवसर हो कि वो अच्छी तरह जॉर्जियाई भाषा के अध्ययन के लिए एक साल की तैयारी कर सकें और अपने पसंद के विषय में अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकें.
इस तरह के प्रोत्साहन की शुरुआत के समय केवल कुछ अज़रबैजानी और आर्मेनियाई अल्पसंख्यक छात्रों ने 1+4 कार्यक्रम में अपना नामांकन कराया. हालांकि बाद के वर्षों में हालात में महत्वपूर्ण बदलाव आया. अब सालाना पूरे देश में लगभग 1,300 छात्र इस कार्यक्रम का उपयोग उच्च शिक्षा में नामांकन के लिए करते हैं. राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों पर OSCE (यूरोप में सुरक्षा एवं सहयोग संगठन) उच्चायुक्त (HCNM) द्वारा कराए गए “जॉर्जिया में बहुभाषीय शिक्षा पर एक अध्ययन” (2015) के अनुसार “जॉर्जिया में जातीय अल्पसंख्यक समुदायों की युवा आबादी भी अपने सामाजिक-आर्थिक अवसरों में सुधार लाने के माध्यम के रूप में जॉर्जियाई भाषा सीखने में दिलचस्पी बढ़ा रही है.”
वैसे तो इस कार्यक्रम से लाभ उठाने वाले छात्रों की संख्या में 2010 से महत्वपूर्ण रूप से बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसमें अभी भी सुधार की गुंजाइश है. आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि “1+4” कार्यक्रम से लाभ लेने वालों का प्रतिशत आवेदन करने वाली जनसंख्या का लगभग 5 प्रतिशत है. जॉर्जिया की जनगणना (2014) के अनुसार देश में 13.2 प्रतिशत आबादी जातीय तौर पर ग़ैर-जॉर्जियाई लोगों की हैं जिनमें 6.3 प्रतिशत अज़रबैजानी और 4.5 प्रतिशत आर्मेनियाई शामिल हैं.
ग़ैर-जॉर्जियाई भाषी छात्रों का वर्ष-वार नामांकन निम्नलिखित है:

अगले क़दम के रूप में उच्च शिक्षण संस्थान 1+4 कार्यक्रम के छात्रों के लिए इंटर्नशिप के अवसरों को आवंटित करने के उद्देश्य से अलग-अलग सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करते हैं. उदाहरण के लिए, जॉर्जिया का प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान जवाखीशिवली तिब्लिसी यूनिवर्सिटी सरकारी विभागों, स्थानीय स्व-शासन के संस्थानों और क़ानूनी संस्थानों में एक महीने से लेकर छह महीने तक की इंटर्नशिप (सालाना 500 छात्रों को प्रदान किया जाता है) की पेशकश करती है.

बहुआयामी दृष्टिकोण ज़रूरी

अध्ययनों से पता चला है कि 1+4 कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से सिविल सेवाओं (विशेष रूप से स्थानीय स्तर पर) में जातीय अल्पसंख्यकों की भागीदारी या रोज़गार में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि ये अभी भी संबंधित क्षेत्रों में प्रमुख आबादी के साथ प्रतिशत अनुपात को पूरी तरह से नहीं दिखाता है.

1+4 कार्यक्रम को अभी भी अपडेट और विकसित करने की ज़रूरत है जो वर्तमान की वास्तविकताओं और मौजूदा चुनौतियों का समाधान कर सके, विशेष रूप से “1+4” के अनुसार पढ़ाई करने वालों के लिए रोज़गार की नीति विकसित करने से संबंधित.

1+4 कार्यक्रम के सकारात्मक प्रभाव के बारे में कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे कि ECRI, ACFCNM एवं अन्य ने बताया है. 12 साल के दौरान इस कार्यक्रम के द्वारा काफ़ी हद तक सफलता दिखाए जाने के बाद भी ये कहा जा सकता है कि जो मुख्य लक्ष्य हासिल करना है और जिस मुख्य चुनौती का समाधान करना है, उसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ-साथ अलग-अलग तरह की चुनौतियों को लेकर प्रतिक्रिया की आवश्यकता है. ऐसा करने के लिए सरकारी एजेंसियों की तरफ़ से अतिरिक्त वित्तीय एवं बौद्धिक प्रयासों की ज़रूरत है. 1+4 कार्यक्रम को अभी भी अपडेट और विकसित करने की ज़रूरत है जो वर्तमान की वास्तविकताओं और मौजूदा चुनौतियों का समाधान कर सके, विशेष रूप से “1+4” के अनुसार पढ़ाई करने वालों के लिए रोज़गार की नीति विकसित करने से संबंधित.
आख़िर में, हम जब सोवियत संघ की विरासत का हवाला देते हैं तो अन्य पूर्व सोवियत गणराज्यों की पद्धतियों का भी उल्लेख करना दिलचस्प होगा. इस लेख में हम ख़ुद को दक्षिण कॉकेशियन गणराज्यों जॉर्जिया, अज़रबैजान और आर्मीनिया की पद्धतियों पर ध्यान देने तक सीमित करते हैं. इस पर ध्यान देना चाहिए कि आर्मीनिया गणराज्य में अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा का मुद्दा सरकार के एजेंडे में नहीं है क्योंकि आर्मीनिया ऐसा देश है जहां एक जातीय समूह की बहुलता है. जहां तक बात अज़रबैजान की है, जहां ऐतिहासिक रूप से जॉर्जियाई अल्पसंख्यक रहते हैं, तो वहां माध्यमिक स्कूल में जॉर्जियाई भाषा में कुछ हद तक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मौजूद है लेकिन उच्च शिक्षा के संदर्भ में कोई विशेष कार्यक्रम नहीं है.
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(ये लेख G20- थिंक20 टास्क फोर्स 3: सुख के लिए जीवन, लचीलापन और मूल्य पर समीक्षा श्रृंखला का एक हिस्सा है)