स्वच्छ, न्यायपूर्ण और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करना आवश्यक

Kapil Narula | Radia Sedaoui | Harikrishnan Tulsidas | Matthew Wittenstein | Rajesh Chadha | Ganesh Sivamani | Noura Y. Mansouri | Isabelle Ramdoo | Sebastian Sahla | Morgan D. Bazilian

 

टास्क फोर्स 4: रिफ्यूलिंग ग्रोथ: क्लीन एनर्जी एंड ग्रीन ट्राज़िशंस


 

सारांश

वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तनकारी क़वायदों में नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण और अन्य नई तकनीकों की बड़े पैमाने पर तैनाती किए जाने की ज़रूरत पड़ेगी. इनमें खनिजों की सघन रूप से आवश्यकता पड़ती है. साथ ही ऐसी टेक्नोलॉजी को तेज़ रफ़्तार से अपनाए जाने की प्रक्रिया से महत्वपूर्ण खनिजों यानी क्रिटिकल मिनरल्स (CMs) की मांग में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हो जाएगी. बहरहाल, नाज़ुक या महत्वपूर्ण खनिजों की सतत आपूर्ति के समक्ष कई प्रकार की चुनौतियां हैं. इनमें खनन में अपर्याप्त निवेश, महंगी और ज़्यादा उथल-पुथल भरी क़ीमतें, आपूर्ति में भारी जोख़िम, नकारात्मक पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव, भ्रष्टाचार को लेकर चिंताएं, सार्वजनिक वित्त का दुरुपयोग, और कमज़ोर शासन-प्रशासन शामिल हैं. G20 इन ख़तरों की रोकथाम करते हुए इन अहम खनिजों की भरोसेमंद, सुरक्षित और टिकाऊ आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है. इससे स्वच्छ, न्यायसंगत और समावेशी ऊर्जा की ओर परिवर्तनकारी गतिविधियों को अंजाम दिया जा सकेगा. इस दिशा में मुख्य सिफ़ारिशों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में मज़बूती लाना, खनिज उद्योग के शासन-प्रशासन में सुधार करना, सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था अपनाना और वित्त और निवेश का संग्रह करना शामिल हैं.

  1. चुनौती

वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तनकारी क़वायद 21वीं सदी का प्रमुख रुझान है. नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा भंडार और अन्य नई तकनीकों के समूह को अपनाने के पैमाने और रफ़्तार इसकी पहचान साबित होगी. इस पूरी प्रक्रिया में खनिजों की सघन रूप से दरकार होती है. बहरहाल, ऐसी तकनीकों की तेज़ रफ़्तार तैनाती से ऐसे महत्वपूर्ण खनिजों की मांग में भारी बढ़ोतरी हो जाएगी. वैसे तो नाज़ुक खनिजों की कोई सार्वभौम रूप से स्वीकार्य परिभाषा नहीं है और ना ही इन खनिजों की कोई अंतिम सूची उपलब्ध है, लेकिन इनके आर्थिक मोल को लेकर सर्वसम्मति बन गई है. इन खनिजों का सामरिक महत्व बढ़ता जा रहा है, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों के मामले में ये काफ़ी नाज़ुक अवस्था में हैं. पिछले दशक में तमाम देशों ने महत्वपूर्ण खनिजों से जुड़ी अपनी सूची घोषित कर दी है. इनमें G20 के सदस्य, जैसे अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK), यूरोपीय संघ (EU), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. कोबाल्ट, ग्रेफाइट, लिथियम, मैंगनीज़, निकेल, रेयर-अर्थ और तमाम अन्य तत्व इन सभी सूचियों में समान रूप से मौजूद हैं.

आपूर्ति और मांग के बीच बढ़ती खाई

एक इकलौते इलेक्ट्रिक कार में 200 किलो से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण खनिजों का प्रयोग होता है, जो पारंपरिक कारों में इस्तेमाल हुई मात्रा के चार गुणा से भी ज़्यादा है. इन खनिजों में कॉपर यानी तांबा, लिथियम, निकेल और ग्रेफाइट शामिल हैं. इसी प्रकार पवन चक्कियां यानी विंड टर्बाइंस प्रति मेगावाट स्थापित बिजली क्षमता के लिए 10,000 से 15,000 किलो नाज़ुक खनिजों का इस्तेमाल करते हैं. कोयले और प्राकृतिक गैस से दहन किए जाने वाले बिजली संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले नाज़ुक खनिजों की तुलना में ये मात्रा तीन से पांच गुणा ज़्यादा है (चित्र 1 देखिए).

चित्र 1. स्वच्छ ऊर्जा की चुनिंदा तकनीकों की खनिज सघनता

स्रोत: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA)[1]

स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की ऊंची खनिज सघनता और प्रत्याशित रूप से इनकी बड़े पैमाने पर तैनाती के चलते अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का पूर्वानुमान है कि सतत विकास के परिदृश्य में नाज़ुक खनिजों की मांग में 2020 की तुलना में 2040 तक बेतहाशा बढ़ोतरी होगी. केवल लिथियम की मांग में ही तक़रीबन 42 गुणा बढ़ोतरी होने की भविष्यवाणी की गई है (चित्र 2 देखिए).

चित्र 2. 2020 की तुलना में सतत विकास परिदृश्य, 2040 में स्वच्छ ऊर्जा टेक्नोलॉजियों की ओर से चुनिंदा खनिजों की मांग

स्रोत: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA)[2]

मौजूदा उत्पादन स्तरों पर नाज़ुक खनिजों की वैश्विक आपूर्ति उनकी अनुमानित मांग की तुलना में कम है. आपूर्ति और मांग के बीच की ये खाई और बढ़ने की आशंका है, लिहाज़ा निकट भविष्य से लेकर मध्यम काल तक आपूर्ति में कमी सामने आ सकती है.[3] हालांकि अध्ययनों से संकेत मिलते हैं कि नाज़ुक खनिजों के भूगर्भीय भंडार और अनुमानित संसाधन दीर्घ काल में इनकी अनुमानित मांग को पूरा कर पाने में पर्याप्त साबित होंगे.[4]

अपर्याप्त निवेश

मांग से जुड़े परिदृश्य की तुलना में मौजूदा परियोजना भंडार सीमित हैं, लिहाज़ा खनन में निवेश और खनन क्षेत्र के विकास की क़वायद को निश्चित रूप से इन खनिजों की बढ़ती मांग के अनुरूप आगे बढ़ना चाहिए.[5] भूगर्भीय आंकड़ों की ग़ैर-मौजूदगी और खनिज संसाधनों के नक़्शे का अभाव, खनन से जुड़ी गतिविधियों में रुकावटें पैदा कर देता है. ख़बरों से संकेत मिलते हैं कि अगले 15 वर्षों में तांबा, कोबाल्ट, निकेल और अन्य नाज़ुक खनिजों में 1.7 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर निवेश की दरकार पड़ेगी.[6] अन्य अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि साल 2030 तक तांबे के क्षेत्र में 100 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है[7] जबकि लिथियम उत्पादन में साल 2025 तक 21 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की दरकार बताई गई है.[8] मौजूदा खदानों में खनिज भंडारों में कमी, अयस्क (ore) की गुणवत्ता में गिरावट के चलते बर्बादी में बढ़ोतरी, निम्न खनन उत्पादकताa, खनन की लागत में महंगाई,[9] और डिकार्बनाइज़ेशन के लिए बढ़ते ख़र्च ने खनन की लाभदायकता घटा दी है. इसके चलते खनन[10] में पूंजी निवेशb बढ़ता जा रहा है. खदान की खोज से आगे बढ़कर वास्तविक उत्पादन तक पहुंचने में लगने वाला लंबा समय और उत्पादन को तेज़ी से आगे बढ़ाने के रास्ते में बुनियादी ढांचे से जुड़ी सीमाओं के चलते आपूर्ति का पूरा परिदृश्य और मुश्किल हो जाता है. इतना ही नहीं, इक्विटी क़ीमतों में उथल-पुथल के कारण मूल्यों में लगातार बदलाव होते रहते हैं. साथ ही खनन के लिए चक्रीय (cyclical) पूंजी विस्तार का मतलब ये है कि मौजूदा ऊंची क़ीमतें, खनन कंपनियों के लिए शायद पर्याप्त साबित ना हो पाए. इससे वित्तीय चुनौतियों से पार पाना मुश्किल हो जाएगा.[11]

बढ़ी क़ीमतें और उतारचढ़ाव

2021 से 2022 के बीच तमाम नाज़ुक खनिजों की क़ीमतों में 20 से लेकर 115 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो चुकी है. साथ ही पांच साल की संयुक्त सालाना वृद्धि दर (CAGR) में 45 प्रतिशत तक बढ़त हो चुकी है (चित्र 3).

चित्र 3. चुनिंदा महत्वपूर्ण खनिजों की क़ीमतों में प्रतिशत बदलाव

स्रोत: अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण[12]

लिथियम कार्बोनेट की कीमत में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. इसकी क़ीमत 40 प्रतिशत से भी ज़्यादा गिरकर CNY 357,000 (51,880 अमेरिकी डॉलर) प्रति टन तक पहुंच गई. उधर कोबाल्ट की क़ीमत में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट आई और वो मार्च 2023 में 34,000 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई (चित्र 4). इन उदाहरणों से नाज़ुक खनिजों की क़ीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के संकेत मिलते हैं, जो इस सेक्टर में दीर्घकालिक निवेश को हतोत्साहित करते हैं.

चित्र 4. लिथियम और कोबाल्ट की बाज़ार क़ीमतें

स्रोत: ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स[13]

आपूर्ति में भारी जोख़िम

संसाधनों का असमान वितरण और खनिज मूल्य श्रृंखलाओं का केंद्रीकरण, आपूर्ति जोख़िमों को और पेचीदा बना देता है. कुछ खनिजों के संदर्भ में महज़ मुट्ठी भर देशों का खनन और उत्पादन में दबदबा है (चित्र 5).

चित्र 5. 2019 में चुनिंदा खनिजों के निकास में देशों का हिस्सा

स्रोत: IEA[14]

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ द कांगो दुनिया में कोबाल्ट के दो-तिहाई हिस्से की आपूर्ति करता है. G20 के सदस्यों की बात करें, तो वैश्विक निकेल उत्पादन का क़रीब एक तिहाई हिस्सा इंडोनेशिया के खाते से आता है. चीन और ऑस्ट्रेलिया दुनिया में क्रमश: रेयर-अर्थ्स और लिथियम के आधे से भी ज़्यादा हिस्से का उत्पादन करते हैं. बाक़ी खनिज तो और भी ज़्यादा केंद्रीकृत हैं और G20 के देश प्रोसेस्ड इनपुट्स के बहुत बड़े हिस्से की आपूर्ति करते हैं. दुनिया में निकेल की सफ़ाई में चीन का हिस्सा तक़रीबन 35 प्रतिशत है, जबकि लिथियम के शोधन (refining) में विश्व में उसका हिस्सा 50-70 प्रतिशत है. उधर दुनिया में रेयर-अर्थ्स में चीन की तक़रीबन 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है. रेयर-अर्थ्स और लिथियम के लिए प्रोसेसिंग तकनीक अपेक्षाकृत नई हैं और चीन के बाहर वाणिज्यिक तौर पर अब भी ये सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है. इतना ही नहीं महत्वपूर्ण खनिजों या क्रिटिकल मिनरल्स का 60 प्रतिशत हिस्सा अन्य केंद्रीय (host) धातुओं या खनिजों के सहायक या उप-उत्पाद के रूप में उत्पन्न होता है. एकाकी या अलग-अलग सूचना के अभाव के चलते उत्पादन दक्षता और इनसे जुड़े अर्थशास्त्र का जोड़-घटाव करना मुश्किल हो जाता है. आपूर्ति श्रृंखला में ऐसी पेचीदगियां, नाज़ुक खनिजों को रुकावटी व्यापार नीतियों, भूराजनीतिक तनावों, राजनीतिक अस्थिरताओं और तमाम तरह के टकरावों के प्रति असुरक्षित बना देती हैं. इससे आपूर्ति में अड़चनों के ख़तरे बढ़ जाते हैं.

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव

खनन की क्रिया, भूमि के उपयोग में बदलावों से जुड़ी हुई है और इनका पर्यावरण पर भारी प्रभाव पड़ता है. इनमें कचरा निर्माण (खनन के कचरे), पानी और मिट्टी का प्रदूषण, और जैव-विविधता और रिहाइश का नुक़सान शामिल हैं. खनिज का निकास और प्रोसेसिंग, ऊर्जा-सघन प्रक्रिया है और फ़िलहाल जीवाश्म ईंधनों पर आधारित हैं, जिससे ग्रीन हाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन होता है. खनन के सामाजिक प्रभावों में जबरन मज़दूरी, बाल श्रम, धन और लैंगिक असमानताओं में बढ़ोतरी के साथ-साथ स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मसले भी शामिल हैं. ऊंची क़ीमतें, पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से ज़्यादा संवेदनशील इलाक़ों में खनन को प्रोत्साहन दे सकती हैं. कई खदान मूल निवासियों या ज़मीन से जुड़े अन्य लोगों के भूक्षेत्रों में स्थित हैं या संरक्षित क्षेत्रों से जुड़ते हैं.[15] पानी एक नाज़ुक विषयवस्तु है, और खनन के चलते जलस्रोतों तक सामुदायिक पहुंच घट जाने से महिलाओं और लड़कियों पर सबसे ज़्यादा मार पड़ती है.

खनिजों की ठोस मांग, घरेलू स्तर पर, और छोटे पैमाने पर खनन की गतिविधियों (ASM) को और ज़्यादा प्रोत्साहित कर सकती है. अक्सर इन पर नियमन की क़वायद काफ़ी कमज़ोर रहती है. छोटे पैमाने पर नियम-क़ायदों से परे होने वाला ऐसा खनन, पर्यावरण को काफ़ी नुक़सान पहुंचा सकता है. साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरे पैदा कर सकता है. ऐसी गतिविधियां टकराव का कारण बनने के साथ-साथ अवैध हरकतों (जैसे तस्करी) को भी बढ़ावा दे सकती हैं.

भ्रष्टाचार और सार्वजनिक वित्त से जुड़े जोख़िम

खनन क्षेत्र में तेज़ी के माहौल से जुड़े कारोबारी अवसर, लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को भ्रष्टाचार के प्रति असुरक्षित बना सकते हैं. कंपनियां ज़रूरी मंज़ूरियां हासिल करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए रिश्वतख़ोरी का रास्ता अपनाने को प्रेरित हो सकती हैं. इसी तरह सरकारी अधिकारी, लाइसेंस के बदले घूस हासिल करने की कोशिश में लग सकते हैं. इससे सियासी जुगाड़ वाली या अयोग्य प्रकार की कंपनियों द्वारा खनन के अधिकार हासिल कर लिए जाने के जोख़िम बढ़ जाएंगे. इसी प्रकार खनन कंपनियों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की ख़रीद और वस्तुओं के व्यापार और सौदों से जुड़ी वार्ता प्रक्रियाओं में भी भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाने का ख़तरा रहेगा.

खनन पर निर्भर देशों के लिए सार्वजनिक वित्त से जुड़े जोख़िम भी बने रहेंगे. मूल्य में अस्थिरता, इस क्षेत्र से राजस्व का अनुमान लगाने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बना सकती है, जिससे सरकारी बजट अस्थिर हो सकते हैं और सार्वजनिक व्यय कमज़ोर पड़ सकता है. पर्याप्त बचावकारी उपायों के बिना सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों की बढ़ती हिस्सेदारी (जिनमें विशाल पूंजी निवेश शामिल हो सकते हैं), सार्वजनिक वित्त पर बोझ डाल सकती है. खनन क्षेत्र में हद से ज़्यादा नियंत्रण बनाए जाने से प्रशासकीय जोख़िम बढ़ सकते हैं. राज्यसत्ता के हिस्से की बिक्री और वस्तुओं के व्यापारियों के साथ सौदे भी भ्रष्टाचार को लेकर असुरक्षित बन सकते हैं.

सतत और टिकाऊ परिणामों में वृद्धि लाने के लिए ज़िम्मेदार खनन

ज़िम्मेदार खनन को अगर बेहतर तरीक़े से आगे बढ़ाया जाए तो सामाजिक और पर्यावरणीय ख़तरों के साथ-साथ शासन-प्रशासन से जुड़े जोख़िम न्यूनतम स्तर पर आ जाते हैं. साथ ही वित्तीय मुनाफ़ों के न्यायसंगत वितरण को भी बढ़ावा मिलता है. राष्ट्रीय स्तर पर और खनन कार्य में जुटे समुदायों के लिए इसका ज़बरदस्त सकारात्मक और विस्तारित प्रभाव हो सकता है. खनन कार्यों और उसकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में होने वाले निवेश से रोज़गार और कर यानी टैक्स राजस्व का निर्माण हो सकता है. ये अन्य फ़ायदों के साथ-साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता रखता है और नए बुनियादी ढांचे के निर्माण का कारण भी बन सकता है.

महत्वपूर्ण खनिज, सतत विकास लक्ष्य (SDG) 7 (ऊर्जा) और SDG 13 (जलवायु परिवर्तन) हासिल करने में मदद कर सकते हैं. उधर, खनन गतिविधियां अप्रत्यक्ष रूप से SDG 3 (स्वास्थ्य), SDG 5 (लिंग), SDG 6 (पानी), SDG 8 (आर्थिक वृद्धि), SDG 9 (बुनियादी ढांचा और औद्योगीकरण), SDG 12 (सतत उत्पादन और उपभोग) और SDG 15 (धरती पर जीवन) पर प्रभाव डालती हैं. निश्चित रूप से महत्वपूर्ण खनिजों के खनन की लागत और उनसे हासिल मुनाफ़ों का न्यायसंगत रूप से बंटवारा किया जाना चाहिए, ताकि ऊर्जा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी क़वायद, न्यायसंगत और समावेशी बन सके. इससे सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में सहायता मिल सकेगी. निश्चित रूप से नाज़ुक ख़निजों का खनन और स्रोत से उनका निकास ज़िम्मेदार तरीक़े से किया जाना चाहिए; उत्पादक देशों को महत्वपूर्ण खनिजों के खनन से हासिल वित्तीय फ़ायदों से सामाजिक और आर्थिक मुनाफ़ों को अनुकूल रूप से अधिकतम स्तर तक पहुंचाने और उनका वितरण करने में सक्षम होना चाहिए; और निम्न आय वाले देशों के पास ऐसे परिवर्तनकारी क़वायदों में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी वित्तीय ताक़त होनी चाहिए. लिहाज़ा महत्वपूर्ण खनिजों की सतत और टिकाऊ आपूर्ति के लिए और ज़्यादा राजनीतिक एकाग्रता और लक्षित नीतियों की दरकार होगी.

G20 की भूमिका

G20 विश्व की सबसे प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. ये महत्वपूर्ण खनिजों का उत्पादक और बड़ा उपभोक्ता भी है. यही वजह है कि ये समूह ऊपर रेखांकित की गई चुनौतियों के निपटारे में अहम भूमिका निभा सकता है.

चित्र 7. G20 के चुनिंदा देशों में कुछ महत्वपूर्ण खनिजों के वैश्विक उत्पादन का हिस्सा

 

डेटा स्रोत: स्वीडिश भूगर्भीय सर्वेक्षण[16] और अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण

चित्र 8. प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज पर्यवेक्षण (ICMO) मॉडल

पूर्व सक्रियता वाला दृष्टिकोण अपनाकर G20 महत्वपूर्ण खनिजों की भरोसेमंद, सुरक्षित और टिकाऊ आपूर्ति प्रक्रिया सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है. वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिए ज़रूरी रफ़्तार और पैमाने के हिसाब से इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. ये पॉलिसी ब्रीफ एक इंटरनेशनल क्रिटिकल मिनरल्स ऑब्जर्वेटरी (ICMO) के लिए एक मॉडल प्रस्तावित करता है (चित्र 8). इस मॉडल को संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय आर्थिक आयोगों और अन्य प्रासंगिक संगठनों द्वारा समर्थन दिया जा सकता है

महत्वपूर्ण खनिजों के बारे में रणनीति और परिवर्तनकारी योजनाओं को अपनाना

सामरिक योजना निर्माण महत्वपूर्ण खनिजों की सतत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निहायत ज़रूरी है. ऐसी योजनाओं को खनिज मांग और आपूर्ति आकलनों, मानचित्रों, संसाधन के अनुमानों और बेहतर समझ के लिए डेटा रिपोर्टिंग के साथ-साथ समन्वय और समग्रता भरी कार्रवाइयों से मदद पहुंचाई जानी चाहिए. इस सिलसिले में योजना निर्माण करते वक़्त सरकारी इकाइयों, नियामक निकायों, खनन उद्योग के प्रतिनिधियों और सिविल सोसाइटी के साथ निश्चित रूप से सलाह ली जानी चाहिए. महत्वपूर्ण खनिजों के बारे में अनेक रणनीतियां अपनाई गई हैं. इनमें ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के साथ-साथ अमेरिका और कनाडा द्वारा अपनाई गई रणनीतियां शामिल हैं, जो G20 के अन्य देशों को मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं. एक स्पष्ट रणनीति और एकीकृत रोडमैप तैयार करने से सामरिक योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद मिल सकती है. योजना निर्माण में सुधार (क़ानूनी प्रावधानों से प्रोत्साहन पाकर)c भी निवेशकों का विश्वास बढ़ाने में मददगार हो सकती है. ये क़वायद अंतरराष्ट्रीय समझौतों के क्रियान्वयन में सहायक साबित हो सकती है.

महत्वपूर्ण खनिजों का डैशबोर्ड तैयार करना

महत्वपूर्ण खनिजों की मूल्य श्रृंखला का डैशबोर्ड तैयार करने से डेटा की निगरानी, रिपोर्टिंग और पारदर्शिता में सुधार आ सकती है. इस प्रकार के डैशबोर्ड में भंडारों, संसाधनों, खनन परियोजनाओं, खदान स्थलों, निवेशों, खनन की लागतों और उपयोग की जानकारी होनी चाहिए. साथ ही इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल भी क़ायम करना चाहिए. इन मानदंडों में यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क क्लासिफिकेशन फॉर रिसोर्सेज़ (UNFC)[17] और यूनाइटेड नेशंस रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (UNRMS)[18] शामिल हैं. ऐसा डैशबोर्ड क्रिटिकल मिनरल्स मैपिंग इनिशिएटिव की तरह सार्वजनिक रूप से सुलभ होना चाहिए.[19] क्रिटिकल मिनरल्स पॉलिसी ट्रैकर, महत्वपूर्ण खनिजों से जुड़ी अहम नीतियां का मिलान करता है. सरकारों को प्रभावी नीतियों के बारे में जानकारी देने के लिए इस उपकरण का भरपूर उपयोग किया जा सकता है.[20]

समावेशी खनिज प्रशासन को बढ़ावा देना

सतत खनिज निकास और टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए योग्यताओं को व्यवस्थित रूप देकर सिद्धांत-आधारित मानदंड, खनिज क्षेत्र के शासन-प्रशासन में सुधार ला सकते हैं. ये आदेशात्मक नियम प्रस्तुत करने की बजाए स्पष्ट उद्देश्य मुहैया कराते हैं. साथ ही बदलती परिस्थितियों के हिसाब से ज़्यादा लोचदार और अनुकूलन योग्य होते हैं. UNRMS एक सिद्धांत आधारित ढांचा उपलब्ध कराता है. इसके द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों की मूल्य श्रृंखला से संबंधित पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासकीय (ESG) और सतत विकास लक्ष्य (SDG) से जुड़े जोख़िमों का निपटारा किया जा सकता है.

खनन और धातुओं की अंतरराष्ट्रीय परिषद (ICMM) जैसे औद्योगिक संगठन, खनन उद्योग के सिद्धांत और उनके प्रदर्शन से जुड़ी उम्मीदें तय करते हैं. इसी प्रकार निकास उद्योग पारदर्शिता पहल (EITI), खनन के क्षेत्र में बेहतर प्रशासन के लिए एक अहम वैश्विक रूपरेखा है, जो मल्टी स्टेकहोल्डर कार्यक्रम के तौर पर काम करता है. सरकारें, कंपनियां और सिविल सोसाइटी इसका शासन-प्रशासन करते हैं. इनिशिएटिव फॉर रिस्पांसिबल माइनिंग एश्योरंस (IRMA), उत्तरदायी खनन को सुधारने के लिए औद्योगिक स्तर के खनन स्थलों को थर्ड-पार्टी सर्टिफिकेशन मुहैया कराता है. इसके साथ-साथ ये संस्था समग्र और अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त मानदंड भी उपलब्ध कराती है. G20 के देशों में इसी प्रकार के कार्यक्रमों को अपनाए जाने से खनन के क्षेत्र में पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासकीय (ESG) तौर पर पहले से ज़्यादा ठोस प्रदर्शनों को सहारा दिया जा सकता है. साथ ही टिकाऊ परिणामों में बढ़ोतरी भी की जा सकती है.

जनकेंद्रित खनन अभ्यासों और भागीदारियों का विकास

खनन कंपनियों और स्थानीय समुदायों के बीच की भागीदारियों से इस क्षेत्र के अहम किरदारों के साथ जुड़ावों में सुधार आता है. खनन के नकारात्मक सामाजिक प्रभावों की रोकथाम करने और न्यायसंगत बदलावों का रास्ता साफ़ करने के लिए ये क़वायद बेहद ज़रूरी है. इनके ज़रिए आवश्यकताओं की पहचान की जा सकती है, चिंताओं को समझा जा सकता है और समाधान भी लागू किए जा सकते हैं. जब खनन गतिविधियां स्थानीय समुदायों के घरों के आस-पास शुरू की जाती हैं, तब ऐसी क्रियाओं की सामाजिक-आर्थिक लागतों और मुनाफ़ों के बारे में इन स्थानीय निवासियों की समझ क्षमता को बढ़ाना अहम हो जाता है. खनन परियोजनाओं को, समुदायों और स्थानीय आबादियों पर सकारात्मक प्रभाव सुनिश्चित करना चाहिए. इसके लिए उन्हें समुदाय की रज़ामंदी हासिल करनी चाहिए और सामुदायिक विकास समझौतों पर वार्ताएं करनी चाहिए. साथ ही स्वास्थ्य और सुरक्षा के उपायों में सुधार लाना चाहिए और श्रम क़ानूनों का भी सम्मान करना चाहिए. इतना ही नहीं मज़बूत और लचीले समुदायों के निर्माण के लिए लैंगिक और मौलिक अधिकारों से जुड़े मसलों का भी निपटारा करना चाहिए.[21] खनन के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को संवेदनशील बनाते हुए प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है.

खनिज आपूर्ति श्रृंखला निवेश को उत्प्रेरित करना

लेटलतीफ़ी और लागतों में बढ़ोतरी टालने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की खोजबीन और उत्पादन पर, समय रहते निवेश करना आवश्यक है. महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं और खनन से जुड़े बुनियादी ढांचे में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से आर्थिक फ़ायदों का निर्माण होता है और लचीलापन बढ़ता है.[22] इससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार निर्माण का रास्ता साफ़ हो सकता है. साथ ही कर राजस्व, आर्थिक विविधता, बुनियादी ढांचे का विकास और आर्थिक वृद्धि को भी प्रोत्साहन मिलता है. सरकारों और खनन कंपनियों के बीच सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी से खनन अनुसंधान के लिए निवेश आकर्षित होता है. इससे खनन टेक्नोलॉजी में सुधार भी सुनिश्चित होता है. साथ ही आपसी संवाद को बढ़ावा मिलता है और खनन की टिकाऊ गतिविधियों को सहारा देने को लेकर पारस्परिक रूप से भरोसा तैयार करने में मदद मिलती है.

उद्योग का भविष्य सुरक्षित करनानवाचार भरी नईनई तकनीक और वैकल्पिक पदार्थ

4R घटकों (रिड्यूस, रीयूज, रीसायकल और रिमूव) के साथ सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था (CCE)d को अपनाए जाने से खनन उद्योग का भविष्य सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है. क्लोज़्ड-लूप सिस्टम्स को अनिवार्य बनाए जाने से ऊपरी प्रवाह में खनन गतिविधियों के लिए नवाचार भरी तकनीकों को स्वीकारे जाने का रास्ता साफ़ हो सकता है. इनमें अयस्क निकासी, कचरा प्रवाहों और खनन अवशेषों से कच्चे मालों का दोबारा उपयोग और रीसाइक्लिंग शामिल हैं. इस तरह खनिज निकास, प्रोसेसिंग और रिफ़ाइनिंग की दक्षता सुधारी जा सकती है. निगरानी और नियंत्रण की तकनीकों, स्वचालन यानी ऑटोमेशन और रोबोटिक्स, डेटा एनालिटिक्स और अन्य डिजिटल टेक्नोलॉजियों का प्रयोग शुरू किए जाने से पर्यावरणीय प्रभावों को न्यूनतम किया जा सकता है. साथ ही सामाजिक और सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देने में ज़बरदस्त रूप से योगदान भी दिया जा सकता है.

महत्वपूर्ण खनिजों के स्थान पर टिकाऊ खनिजों के उपयोग (substitution) से कचरे में कमी लाई जा सकती है, संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है और रोज़गार निर्माण भी हो सकता है. मिसाल के तौर पर अलग-अलग खनिजों और तकनीकों के इस्तेमाल से लिथियम-आयन बैटरियों के लिए कोबाल्ट की मांग घट जाएगी. वस्तुओं की मरम्मत और दोबारा उपयोग, जीवन काल के अंत में उत्पादों की रिसाइक्लिंग और दक्ष संग्रहण को क्रियान्वित करने को लेकर क़ानून बनाने से महत्वपूर्ण खनिजों के निकास में कटौती हो सकती है. इस सिलसिले में आपूर्ति-मांग की खाई को पाटना ज़रूरी है. इलेक्ट्रॉनिक कचरे यानी ई-कचरा (जिसे शहरी खनन भी कहा जाता है) से महत्वपूर्ण खनिजों को दोबारा हासिल करने के लिए संगठित कारोबारी मॉडल्स की स्थापना की जा सकती है. ये उपाय खनिजों की मांग को न्यूनतम स्तर पर ला सकते हैं, क़ीमतें घटा सकते हैं और खनिजों के ज़िम्मेदार उत्पादन को बढ़ावा दे सकते हैं.

G20 महत्वपूर्ण खनिज सुरक्षा भागीदारी (G20-CMSP) की स्थापना

स्वच्छ और न्यायसंगत ऊर्जा की दिशा में परिवर्तनकारी क़वायदों के लिए वैश्विक खनिज बाज़ार में तालमेल और सुसंगति बेहद ज़रूरी है. खनन कंपनियों, सरकारों और उद्योगों के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारियों को आगे बढ़ाना एक प्रभावी तरीक़ा हो सकता है. इसके ज़रिए वो खनन के सतत तौर-तरीक़ों को बढ़ावा दे सकते हैं और नाज़ुक खनिजों के लिए विश्वसनीय और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाएं भी सुनिश्चित कर सकते हैं. क्रिटिकल मिनरल्स मैपिंग इनिशिएटिव (2019) और मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (2022) जैसी अंतरराष्ट्रीय भागीदारियां महत्वपूर्ण खनिजों की ठोस आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित कर सकती हैं. ग्लोबल साउथ के देशों को शामिल करने के लिए G20 एक बेहतरीन मंच मुहैया कराता है; G20 महत्वपूर्ण खनिज सुरक्षा भागीदारी (G20-CMSP) तैयार किए जाने से मौजूदा अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ों के दायरे का विस्तार हो जाएगा. इस सिलसिले में उठाए गए क़दमों में आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन लाने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का भंडार तैयार करना और महत्वपूर्ण खनिज साझा करने के लिए समन्वित प्रतिक्रियाएं शामिल हैं.

G20 के लिए सिफ़ारिशें

स्वच्छ, न्यायसंगत और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन के लिए समन्वित प्रयासों के ज़रिए G20 महत्वपूर्ण खनिजों की टिकाऊ आपूर्ति को सहारा देने का लक्ष्य रखता है. ये पॉलिसी ब्रीफ G20 की सरकारों से नाज़ुक खनिजों की अहमियत पहचानने और उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत बनाने का आह्वान करता है. इस दिशा में किए जा सकने वाले प्रयासों का ब्योरा नीचे है:

अंतरराष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाना

  1. संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय आर्थिक आयोग द्वारा एक इंटरनेशनल क्रिटिकल मिनरल्स ऑब्जर्वेटरी (ICMO) तैयार करना.
  2. दीर्घकालिक सामरिक योजना तैयार करने में देशों की मदद करना और महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र को उन्नत बनाने के लिए क्रियान्वयन का एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करना.
  3. डेटा रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क और संसाधन प्रबंधन प्रणालियों को अपनाया जाना और महत्वपूर्ण खनिजों का एक केंद्रीय डेटाबेस बरक़रार रखना.
  4. एक सक्रिय मंच के ज़रिए G20 महत्वपूर्ण खनिज सुरक्षा भागीदारी (G20-CMSP) तैयार करना, जिसमें तमाम महत्वपूर्ण खनिजों के भंडार भी शामिल हैं.

खनिज प्रशासन में सुधार लाना

  1. संभावित SDG (सतत विकास लक्ष्य) जोख़िम सूचकांक के साथ जुड़े वैश्विक ESG (पर्यावरणीय, सामाजिक, और शासन-प्रशासन) मानदंडों को उन्नत करना और उन्हें अपनाना, साथ ही पूरी सख़्ती से उनकी अनुपालना सुनिश्चित करना;
  2. सलाहकारी और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सभी स्टेकहोल्डर्स को शामिल करने के लिए मानदंडों की स्थापना करना, साथ ही प्रभावित समुदायों के लिए मुनाफ़े साझा करने वाले समझौतों को शामिल करना;
  3. पब्लिक रिपोर्टिंग, थर्ड-पार्टी ऑडिट्स और स्वतंत्र निगरानी निकायों की स्थापना के ज़रिए खनन गतिविधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना;
  4. खनन को लेकर लाइसेंसिंग को सुचारू बनाने और उसमें रफ़्तार भरने के लिए बेहतरीन अभ्यासों को साझा करना, ESG के मज़बूत बचावकारी उपायों को बरक़रार रखते प्रशासकीय अकार्यकुशलताओं को कम करना, और नीतिगत सुसंगति में सुधार लाना; और
  5. समझ और कौशल सुधारने के लिए क्षमता निर्माण और कर्मियों के प्रशिक्षण में निवेश करना.

सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था का ढांचा अपनाना:

  1. संसाधन दक्षता को बढ़ावा देना, रिसाइक्लिंग का पैमाना बढ़ाना और वैकल्पिक पदार्थों का उपयोग करना;
  2. खनन के जीवन चक्र के लिए सामरिक पर्यावरणीय आकलन प्रक्रिया को अमल में लाना, अनुकूलन प्रबंधन दृष्टिकोणों का उपयोग करना और पर्यावरण की सालाना रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाना; और
  3. पर्यावरण पर खनन क्रिया के प्रभाव घटाने के लिए नई और सुधरी हुई तकनीकों के विकास को लेकर शोध और नवाचार में सहायता देना, इसके अलावा खनन की समूची मूल्य श्रृंखला के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाना.

वित्त और निवेश इकट्ठा करना

  1. महत्वपूर्ण खनिजों में निवेश की किल्लत के निपटारे के लिए G20 के मौजूदा कार्यकारी समूहों में महत्वपूर्ण खनिजों से जुड़े एजेंडे को एकीकृत करना, इस सिलसिले में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे और टिकाऊ वित्त के साथ-साथ वित्तीय समावेश के लिए वैश्विक हिस्सेदारी से जुड़ी क़वायदों को भी शामिल करना.
  2. महत्वपूर्ण खनिजों के लिए निवेशों के समर्पित मार्ग के रूप में एक कोष इकट्ठा करना
  3. संसाधनों का मानचित्र तैयार करने, खनिजों की खोजबीन करने और खनिज संसाधनों के नक़्शे तक खुली पहुंच बनाने में सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना; और
  4. स्पष्ट नीतियां अपनाकर, जोख़िम-मुक्त निवेश के द्वारा और नवाचार युक्त कारोबारी मॉडलों को प्रोत्साहित करके महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्र की पूरी मूल्य श्रृंखला में बाज़ार परिस्थितियां तैयार कर निजी निवेश को सक्षम बनाना.

एट्रिब्यूशन: कपिल नरुला आदि, “इंश्योरिंग सस्टेनेबल सप्लाई ऑफ क्रिटिकल मिनरल्स फॉर ए क्लीन, जस्ट एंड इनक्लूसिव एनर्जी ट्राज़िशन,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


a पिछले दशक की तुलना में 28 प्रतिशत नीचे.

b खनन के क्षेत्र में अग्रणी 20 इकाइयों के पूंजीगत व्यय में 2021 में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई. 2022 में इस मद में 22 प्रतिशत के उछाल का अनुमान लगाया गया था.

c मिसाल के तौर पर यूरोपीय महत्वपूर्ण कच्चा माल अधिनियम, यूरोपीय संघ द्वारा महत्वपूर्ण खनिजों के सालाना उपभोग के प्रतिशत के रूप में घरेलू तत्व के हिस्से के संदर्भ में बेंचमार्क तय करता है. इसने निकास के लिए 10 प्रतिशत, प्रोसेसिंग (40 प्रतिशत) और रिसाइक्लिंग (15 प्रतिशत) का आंकड़ा तय किया है.

d सऊदी अरब की G20 अध्यक्षता के तहत तैयार और G20 के सभी देशों द्वारा अनुमोदित.

ENDNOTES

[1] IEA, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions (Paris: IEA, 2021).

 

[2] IEA, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions (Paris: IEA, 2021).

 

[3] Harrison Bontje and Don Duval, “Critical Minerals Supply and Demand Challenges Mining Companies Face,”  Ernst & Young Global Limited, last modified April 25, 2022.

 

[4] Seaver Wang et al., “Future demand for electricity generation materials under different climate mitigation scenarios,Joule, Volume 7, Issue 2 (2023): 309-332.

 

[5] Harrison Bontje and Don Duval, “Critical Minerals Supply.”

 

[6] Pratima Desai, “Low Carbon World Needs $1.7 Trillion in Mining Investment,Thomson Reuters, May 10, 2021.

 

[7] James Attwood, “The World Will Need 10 Million Tonnes More Copper to Meet Demand,MINING.COM, March 19, 2021.

 

[8] Harrison Bontje and Don Duval, “Critical Minerals Supply.”

 

[9] Ajay Lala, Mukani Moyo, Stefan Rehbach, and Richard Sellschop, “Productivity in Mining Operations: Reversing the Downward Trend,” McKinsey & Company, May 1, 2015.

 

[10] GlobalData, “Mining Capital Expenditure to Rise by 22% across Leading Miners in 2022,” Mining Technology, March 1, 2022.

 

[11] Sigurd Mareels, Anna Moore, and Gregory Vainberg, “Through-Cycle Investment in Mining,” McKinsey & Company, July 8, 2020.

 

[12] U.S. Geological Survey, Mineral commodity summaries 2023 (Reston, VA: U.S. Geological Survey, 2023).

 

[13]Lithium – 2023 Data – Summary,” Trading Economics, Accessed March 8, 2023.

 

[14] IEA, “Share of Top Producing Countries in Extraction of Selected Minerals and Fossil Fuels, 2019,” IEA, Accessed February 28, 2023.

 

[15] Kathryn Sturman et al., “Mission Critical – Strengthening Governance of Mineral Value Chains for the Energy Transition,” (Oslo: Extractive Industries Transparency Initiative, 2022).

 

[16]Global production of critical raw materials (CRM),” Geological Survey of Sweden,  Accessed March 13, 2023.

 

[17]United Nations Framework Classification for Resources,” UNECE, Accessed March 03, 2023.

 

[18]United Nations Resource Management System (UNRMS),” UNECE, Accessed March 03, 2023.

 

[19]Critical Minerals Mapping Initiative,” Geoscience Australia Portal, Accessed March 30, 2023.

 

[20]Critical Minerals Policy Tracker”, IEA, Accessed March 15, 2023.

 

[21] Sarita Ranchod, “Mining minerals sustainable development Southern Africa,” (South Africa: African Institute of Corporate Citizenship, 2001).

 

[22] Shunta Yamaguchi, “Securing reverse supply chains for a resource efficient and circular economy,OECD Trade and Environment Working Papers, no. 2022/02 (2022).