G20 और अफ्रीका का सहारा क्षेत्र: सुरक्षा की मौजूदा चुनौतियां और सामाजिक संरक्षण

G20 एक ऐसे मंच के तौर पर उभर सकता है, जो अफ्रीका में टिकाऊ विकास और शांति के लिए असरदार उपाय सुझा सके
Peace Chikodinaka Eze

अफ्रीका का सहारा क्षेत्र इस वक़्त सुर्ख़ियों में है, क्योंकि 2019 में उथल-पुथल मचाने वाली महामारी के चलते यहां कल्पनातीत अंतर उभरकर सामने आए हैं. ये फ़र्क़ पश्चिमी अफ्रीका की जटिल आपातकालीन चुनौतियों का प्रतीक बन गए हैं.

सहारा क्षेत्र के भूराजनीतिक माहौल के बदलते समीकरणों, गिनी की खाड़ी की कमज़ोरियों, साहेल और सहारा के बीच अंतर, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षरण की अन्य चुनौतियां, अफ्रीकी महाद्वीप और दुनिया के इस प्रमुख समृद्ध और सामरिक रूप से बेहद अहम क्षेत्र की शांति को भंग कर रहे हैं.

कमज़ोर राजनीतिक स्थिति और संसाधनों के प्रबंधन की ख़राब क्षमता के चलते, नाइजीरिया, माली, बर्किना फासो, कैमरून और इथियोपिया जैसे देश ज़बरदस्त उठा-पटक का सामना कर रहे हैं. 

कमज़ोर राजनीतिक स्थिति और संसाधनों के प्रबंधन की ख़राब क्षमता के चलते, नाइजीरिया, माली, बर्किना फासो, कैमरून और इथियोपिया जैसे देश ज़बरदस्त उठा-पटक का सामना कर रहे हैं. प्रशासनिक दिक़्क़तों के चलते बरसों से पश्चिमी अफ्रीकी देशों में भ्रष्टाचार, अनिश्चितता और भयंकर असुरक्षा को बल मिलता रहा है. वैसे तो इस इलाक़े में प्राकृतिक संसाधन, मानवीय पूंजी और दूसरे संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. फिर भी ये क्षेत्र दुनिया के सबसे ग़रीब इलाक़ों में से एक है. इंटरनेशनल पीस इंस्टीट्यूट ने पश्चिमी अफ्रीका में प्रशासन और सुरक्षा पर अपनी पत्रिका में इसके लिए जलवायु परिवर्तन, आपराधिक साज़िश के तहत ग़रीबी को बढ़ावा दिए जाने, नेतृत्व की कमी और प्रगति विरोधी क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय राजनीति और बड़ी ताक़तों के बीच खींचतान को ज़िम्मेदार ठहराया है. मिसाल के तौर पर, नाइजीरिया और नाइजर पिछल एक दशक से सीमा में घुसपैठ, ग़रीब इलाक़ों में सक्रिय डकैतों और आतंकवाद से जूझ रहे हैं. इसके चलते दोनों देशों की जनता के लिए खान-पान के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. उदाहरण के लिए, नाइजीरिया की 7 करोड़ आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है. फिर भी नाइजर और दूसरे प्रभावित देश आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष में फंसे हुए हैं. एक नागरिक संगठन, सेंटर फॉर डेमोक्रेसी ऐंड डेवेलपमेंट इन वेस्ट अफ्रीका ने अपने अध्ययन के निष्कर्षों में पाया है कि इस क्षेत्र में भयंकर हिंसा और उग्रवादी हमले अक्सर यहां की कमज़ोर आपराधिक न्याय व्यवस्था, जातीय बंटवारे और ग़रीबी के चलते होते हैं. अब तक इन हमलों में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं और अकेले उत्तरी नाइजीरिया में दस लाख से ज़्यादा लोग अपनी पुश्तैनी ज़मीन से बेदख़ल हो चुके हैं.

 

सुरक्षा की उभरती चुनौतियां

 

 

पश्चिमी अफ्रीका के बहुत से देशों में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, कुप्रशासन के चलते हिंसक उग्रवाद, संस्थागत भ्रष्टाचार, लालच और ज़ुल्म ढाने वाले सुरक्षा के गिरोह बार बार सिर उठाते रहे हैं. इनमें से अगर कुछ देशों में थोड़ी बहुत स्थिरता और शांति आई है, तो उसके लिए तख़्तापलट करके ज़बरन सैन्य तानाशाही क़ायम करने जैसे क़दमों को ज़िम्मेदार माना जाता है. हाल ही में हमने माली में तख़्तापलट के रूप में इसकी मिसाल देखी थी, जहां सैन्य बलों के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार ने तमाम वैश्विक दबावों की अनदेखी करते हुए लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए शासकों और संवैधानिक भूमिकाओं की वापसी से इनकार कर दिया है. अफ्रीका में दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र से ज़्यादा सैन्य तख़्तापलट और लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने की घटनाएं दर्ज की गई हैं. इससे पता चलता है कि पश्चिमी अफ्रीका की वो कौन सी राजनीतिक कमज़ोरियां हैं, जिनके कारण उग्रवाद और कई देशों में आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है, जहां आपराधिक गिरोह एक साथ कई देशों में सक्रिय हैं.

इन देशों में लगातार संघर्ष, हथियारबंद गिरोहों द्वारा आम नागरिकों की हत्या और मिसाल के तौर पर 2021 में नाइजीरिया में ज़्यादातर ग्रामीण समुदायों के जातीय आधार पर सफाए के चलते रिकॉर्ड 2600 लोगों की जान गई थी; ये 2020 की तुलना में 250 प्रतिशत अधिक है. 2022 में भी आम लोगों की मौत का आंकड़ा बहुत ज़्यादा रहा है. बोको हराम, इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका (ISWA), हत्यारे चरवाहे और प्रतिबंधित इंडीजीनस पीपुल ऑफ़ बियाफरा (IPOB) जैसे हथियारबंद उग्रवादी गिरोह, आपसी तालमेल और दूसरे हथियारबंद संगठनों के साथ मिलकर सहारा क्षेत्र के भीतर और बाहर से नाइजीरिया में आम नागरिकों पर भयंकर ज़ुल्म ढाते रहे हैं.

इस भयंकर हिंसा से पीड़ित नाइजीरिया और दूसरे पश्चिमी अफ्रीकी देशों के लिए इस ज्वार को शांत करना बहुत बड़ी चुनौती है. नाइजीरिया में सैन्य बल देश के दो तिहाई राज्यों में तैनात हैं, जिससे उनके मानवीय और अन्य संसाधनों पर दबाव काफ़ी बढ़ गया है, क्योंकि उग्रवादी संगठन लगातार अपने अभियान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बढ़ाते जा रहे हैं. इन उग्रवादी संगठनों के ख़िलाफ़ एक क्षेत्रीय बहुराष्ट्रीय साझा टास्क फोर्स की उल्लेखनीय कामबायी के बाद भी, आम नागरिकों पर आतंकवादी हमलों और जातीयता पर आधारित हिंसा का शिकार होने का ख़तरा मंडराता रहता है.

इन उग्रवादी संगठनों के ख़िलाफ़ एक क्षेत्रीय बहुराष्ट्रीय साझा टास्क फोर्स की उल्लेखनीय कामबायी के बाद भी, आम नागरिकों पर आतंकवादी हमलों और जातीयता पर आधारित हिंसा का शिकार होने का ख़तरा मंडराता रहता है. 

हर आतंकवादी हमले के साथ बहुत बड़ी मात्रा में लोगों की जान जाती है. आम नागरिक अपने घरों से बेदख़ल होते हैं. वो ग़रीबी और इंसानी सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली परिस्थितियों के शिकार होते हैं और इनमें से ज़्यादातर कष्ट महिलाओं और बच्चों को उठाना पड़ता है, जिन्हें तुरंत देख-रेख की आवश्यकता होती है. लेकिन, अक्सर वही लोग महिलाओं और बच्चों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं, जो पहले उनके जान-माल की रक्षा की क़समें खाते हैं.

 

उग्रवाद पीड़ितों का सामाजिक संरक्षण

 

 
लोगों की मौक, मानवीय विस्थापन और खाद्य सुरक्षा के शिकार होने में बढ़ोत्तरी, पढ़ने के अधिकार से ज़बरदस्ती वंचित रखने और संक्रामक बीमारियां फैलने जैसी कड़वी सच्चाइयां ऐसी चुनौतियां हैं, जो कमज़ोर आबादी की ज़िंदगी में तबाही ला सकती है. चोटिल लोगों पर आपदा आई तो इससे बाक़ी दुनिया के लोग भी प्रभावित हो सकते हैं. क्योंकि किसी भी हिस्से में आपदा और अराजकता और हिंसक समूहों की गतिविधियों का असर दूसरे इलाक़ों पर भी पड़ता है.

एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि ग्रामीण और शहरी दोनों इलाक़ों में आम नागरिकों और समुदायों पर बार बार उग्रवादी हमले, सरकार और पीड़ितों दोनों के लिए मानसिक रूप से थकाने वाला अनुभव बन जाते हैं. अब इनमें से अधिकतर लोग निराशा के भाव के शिकार हैं. ऐसे में इस बात को बार बार दोहराने से कोई फ़ायदा नहीं कि पश्चिमी अफ्रीका के युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोग, विशेष रूप से महिलाएं और बच्चे अपने सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के भयंकर उल्लंघन के शिकार हो रहे हैं और उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है. इसका एक उदाहरण शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और शौच-स्नान की बुनियादी सामाजिक सेवाओं में लगातार पड़ती बाधा है. इन सबके ज़रिए उत्तरी नाइजीरिया में महिलाओं और बच्चों के जीवन के अधिकार को आसानी से निशाना बनाया जाता है. ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे युद्ध के हथियार बन गए हैं और उनका यौन शोषण भी होता है.

महामारी का दौर पश्चिमी अफ्रीका के ज़्यादातर देशों के लिए बहुत बुरा साबित हुआ. माली, बर्किना फासो, नाइजर और नाइजीरिया के जिहादी हमले, घाना, बेनिन और कॉट डि आइवरी जैसे पड़ोसी देशों में भी फैल गए. जिसके बाद मांग की गई कि इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र, G20, अफ्रीकी संघ, G5 साहेल साझा बल और बहुराष्ट्रीय साझा टास्क फोर्स जैसे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठन और मज़बूती से दखल दें और सुरक्षा के मामले में सहयोग करें.

इस क्षेत्र के चिंताजनक हालात को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदायों द्वारा यहां शांति स्थापित करने के तौर-तरीक़ों और रणनीति में बदलाव की ज़रूरत है, जिससे सहारा क्षेत्र पर आने वाली तबाही या क़हर बरपा रही आपदा को सीमित किया जा सके. मिसाल के तौर पर, नाइजीरिया को G20 की पूर्णकालिक सदस्यता देना इस वैश्विक संस्था के लिए उपयोगी हो सकता है, क्योंकि वहां पर मौजूद मानवीय पूंजी और आतंकवाद पर क़ाबू पाने के अनुभव से न केवल नाइजीरिया बल्कि पूरे अफ्रीका को लाभ हो सकता है. नाइजीरिया को सदस्य बनाने से न केवल G20 में पश्चिमी अफ्रीका को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा, बल्कि इस क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही अस्थिरता को समझने और उससे निपटने में भी मदद मिलेगी. यहां ये याद रखने वाली बात है कि दुनिया में टिकाऊ और संतुलित विकास और सुरक्षा के लिए ज़रूरी वैश्विक नीतियां बनाने में दुनिया की सबसे ‘बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले G20 देशों’ की भूमिका की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता है.

हालांकि, वैश्विक संगठनों के ‘निर्णय लेने की प्रक्रिया’ को लेकर चिंताएं भी जताई जा रही हैं. विशेष रूप से अफ्रीका की सुरक्षा और आर्थिक विकास को लेकर, क्योंकि विकसित देश अक्सर इन्हें कम करके देखते हैं. वैसे पिछले एक दशक के दौरान G20 ने इस अंतर को पाटने की कोशिश की है और उस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का बेहतर विकल्प बनकर उभरा है, जिसमें बहुत से अफ्रीकी देश सदस्यता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं. विकसित और विकासशील नहीं तो उभरते हुए देशों को एक ही मेज़ पर बैठाकर, G20 के देश ख़ुद को G77+चीन जैसे संगठनों से अलग दिखा सकता है और अफ्रीका और अफ्रीकी जनता को कुशल और अफ्रीका के नेतृत्व वाले असरदार तरीक़ों से नए अवसर उपलब्ध करा सकता है. इस व्यापक सहयोग, दुनिया की बड़ी ताक़तों और ख़ास तौर से G20 देशों के बीच आपसी आर्थिक निर्भरता बढ़ाने से ये उम्मीद की जा सकती है कि इससे अफ्रीकी महाद्वीप में टिकाऊ शांति और विकास होगा.

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(ये लेख G20-Think20 टास्क फोर्स 3: लाइफ, रेज़िलिएंस ऐंड वैल्यूज़ फ़ॉर वेलबीइंग सीरीज़ का एक हिस्सा है.)