स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना

Tom Moerenhout | Pranati Chestha Kohli | Siddharth Goel | Saon Ray | Nandakumar Janardhanan | Simon Hoiberg Olsen

टास्क फोर्स 4: विकास को नई गति: स्वच्छ ऊर्जा और ग्रीन ट्रांज़िशन


सार

 

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर नेट-ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए वर्ष 2040 में आज की तुलना में छह गुना अधिक महत्त्वपूर्ण खनिजों यानी कॉपर, लिथियम, निकल, कोबाल्ट जैसे दुर्लभ अर्थ मेटल्स की ज़रूरत पड़ेगी. [1] ज़ाहिर है कि महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में तेज़ बढ़ोतरी से इनकी क़ीमतों में उतार-चढ़ाव तीव्र होने की भी संभावना है. इससे न सिर्फ़ ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ सकती हैं, बल्कि इससे आवश्यक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में भी देरी हो सकती है.

 

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ये कमज़ोरियां बढ़ गई हैं क्योंकि उनके पास महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिए पूंजी की अत्यधिक कमी है. G20 देशों के लिए क्रिटिकल खनिजों की मूल्य श्रृंखला, उनके उत्पादन, प्रसंस्करण और रिसाइकिल करने में पूंजी की लागत को कम करने के साथ-साथ लचीली और टिकाऊ स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को सुनिश्चित करने के लिए स्थिरता के मापदंड विकसित करने और उन्हें अपनाने के लिए सहयोग करना ज़रूरी है.

 

यह पॉलिसी ब्रीफ़ महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन में निवेश के लिए फ्रेमवर्क्स का संक्षिप्त विवरण प्रदान करता है, साथ ही पूंजी की लागत को कम करके आपूर्ति श्रृंखलाओं तक पहुंच को आसान बनाने के तौर-तरीक़ों की विस्तृत पड़ताल करता है. अपस्ट्रीम माइनिंग यानी खोज और उत्पादन से जुड़े जोख़िमों की वजह से बैंक और निवेशक इसमें पूंजी लगाने से कतराते हैं, इसलिए अतिरिक्त या फिर अन्य स्रोतों से पूंजी की व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता होती है. यह पॉलिसी ब्रीफ़ इसके लिए मिलेजुले या मिश्रित वित्तपोषण के कई तरीक़ों का आकलन करेगा, जिसमें डेवलपमेंट फाइनेंस का उपयोग वाणिज्यिक फाइनेंस को अनलॉक करने के लिए किया जाता है, और जिसका बुनियादी मक़सद खनन में किए जाने वाले निवेश को जोख़िमों से मुक्त करना है, साथ ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं की महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच में सुधार करना है यानी कि उसे आसान बनाना है.

 

यह पॉलिसी ब्रीफ़ इंडोनेशिया में पिछली G20 समिट में लॉन्च किए गए ग्लोबल ब्लेंडेड फाइनेंस अलायंस पर आधारित है, जो कि पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस फ्रेमवर्क्स पर फोकस के साथ ही विभिन्न प्रकार के पूंजी प्रावधानों का आकलन करता है. यह पॉलिसी ब्रीफ़ पड़ताल करता है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के समर्थन से G20 सहयोग किस प्रकार से महत्तवपूर्ण खनिज आपूर्ति के लिए पूंजी उपलब्धता को अधिक से अधिक करने में सक्षम हो सकता है. लेखकों ने इस पॉलिसी ब्रीफ़ में G20 से एक महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखला कार्य समूह बनाने पर विचार करने, G20 समर्थ वित्तपोषण पर विचार करने, मापदंडों एवं निवेश सुविधा को निर्धारित करने में समुचित समन्वय करने और महत्त्वपूर्ण खनिज गठबंधनों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने एवं सामंजस्य बैठाने का अनुरोध किया है.

 

 

  1. चुनौती

 

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) [2] का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वर्ष 2040 में आज की तुलना में छह गुना अधिक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता पड़ेगी. ज़ाहिर है कि इस सेक्टर में पर्याप्त निवेश नहीं होने और महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में तेज़ी से वृद्धि होने से सप्लाई-डिमांड में घाटा होने की संभावना है और यही इसकी क़ीमतों में अस्थिरता को बढ़ाने की वजह बनेगी. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का तर्क है कि अल्पावधि में महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन दीर्घावधि में नेट-ज़ीरो परिदृश्य को देखते हुए लिथियम, कोबाल्ट, निकल और कॉपर जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की क़ीमतें उच्चतम स्तर पर पहुंच सकती हैं. [3] ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस के मुताबिक़ ऊर्जा ट्रांज़िशन में इस्तेमाल की जाने वाली धातुओं की आपूर्ति निवेश की कमी, खनन को लेकर देश में बढ़ते जोख़िम और इनके गिरते भंडारण के कारण सीमित है. [4] यहां तक कि नेट-ज़ीरो परिस्थियों की गौरमौज़ूदगी में भी मांग, आपूर्ति से आगे निकल सकती है, ख़ास तौर पर कॉपर [5] और लिथियम के मामले में. [6]

 

उल्लेखनीय है कि इस सबकी वजह से न केवल ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताओं में बढ़ोतरी हो सकती है, बल्कि विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए, साथ ही वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण करना बेहद ख़र्चीला या कहा जाए कि वहन करने की सीमा से बाहर हो सकता है. इस विपरीत परिस्थिति से निजात पाने के लिए क्रिटिकल मिनरल्स के लिए विविधितापूर्ण अर्थात अलग-अलग तरह की आपूर्ति श्रृंखलाओं की ज़रूरत है. जैसे कि कुछ ख़ास क्षेत्रों में खनिजों के मालिकाना हक़ और उन्हें संसाधित करने में भौगोलिक स्तर पर केंद्रीकरण, परियोजना के विकास में लगने वाले लंबे वक़्त, अविकसित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और जलवायु जोख़िम जैसी बाधाओं को दूर करने के लिए अलग-अलग तरह की आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, विश्व का आधे से अधिक लिथियम उत्पादन ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां पानी की अत्यधिक किल्लत है. [7] अपस्ट्रीम में नई खदानों को विकसित करने में, उनकी खोज से लेकर उत्पादन तक की पूरी प्रक्रिया में औसतन 16 साल लगते हैं, वहीं खोज, अनुसंधान और व्यवहार्यता के चरण (जिसमें मंजूरी भी शामिल है) में 12 साल से अधिक का वक़्त लगता है. [8] मौज़ूदा परिस्थितियों में जो एनर्जी ट्रांज़िशन मॉडल हैं, वे नीचे से ऊपर के मूल्यांकन में महत्त्वपूर्ण खनिज की आपूर्ति में आने वाली विभिन्न रुकावटों को ध्यान में नहीं रखते हैं, साथ ही यह भी ध्यान में नहीं रखते हैं कि किस प्रकार से इन मिनरल्स की आपूर्ति की कमी प्रौद्योगिकी अपनाने की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है. [9]

 

क्रिटिकल मिनरल्स आपूर्ति श्रृंखलाओं को अपस्ट्रीम उत्पादन यानी शुरुआती चरण से उत्पादन तक और प्रसंस्करण के लिए एवं अंत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के रिसाइकलिंग के लिए अग्रिम पूंजी की ज़रूरत होती है. ये शुरुआती पूंजी यह सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है कि महत्त्वपूर्ण खनिजों को पर्यावरणीय और सामाजिक मानकों के मुताबिक़ विधिवत तरीक़े से संसाधित किया जाए. ज़ाहिर है कि सभी नीति निर्माताओं, आपूर्ति श्रृंखला के सभी हिस्सेदारों और निवेशकों द्वारा इस शुरुआती पूंजी को एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में पहचाना गया है.

 

ये जो भी कमियां और कमज़ोरिया हैं, वे विशेष तौर पर महत्त्वपूर्ण खनिजों से समृद्ध विकासशील एवं उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ जाती हैं, साथ ही उन देशों में भी बढ़ जाती हैं, जो मिडस्ट्रीम यानी इनके सुरक्षित परिवहन या रीसाइक्लिंग प्रक्रियाओं की आवश्यकता को एक पूंजी के रूप में उपयोग करना चाहते हैं. ऐसा इस वजह से है, क्योंकि कई उच्च इनकम वाली अर्थव्यवस्थाओं यानी विकसित देशों की तुलना में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी एवं प्रौद्योगिकी तक पहुंच बेहद मुश्किल है. वैश्विक स्तर पर जो अनुमान लगाया गया है, उसके अनुसार वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने के लिए चार प्रमुख खनिजों (कॉपर, लिथियम, निकल और कोबाल्ट) में आवश्यक निवेश 360 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच है. [10] हालांकि, वर्तमान में ज़रूरी निवेश के केवल 45 प्रतिशत का ऐलान किया गया है, जबकि 55 प्रतिशत निवेश को लेकर न कोई चर्चा है और न ही इसके लेकर कोई क़दम उठाए गए हैं. [11]

 

देखा जाए तो कई प्रकार के फैक्टर हैं, जो कि महत्त्वपूर्ण खनिजों में निवेश के आकर्षण को कम करने का काम करते हैं. परियोजना को विकसित करने वालों के समक्ष जो सबसे बड़ी अड़चन फिलहाल दिखाई दे रही है, वो मुद्रास्फीति से निपटने के लिए बढ़ती ब्याज दरों के कारण पूंजी की उच्च लागत है. कई देश ऐसे हैं, ख़ास तौर पर विकासशील देश और उभरती अर्थव्यवस्थाएं, जो फिलहाल अत्यधिक ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं और इन हालातों में नए सेक्टरों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके पास वित्तीय संसाधनों की बहुत कमी है. ऐसे में कुछ देश अधिक आर्थिक राजस्व हासिल करने के लिए उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने या राज्य की भूमिका बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं. अपस्ट्रीम खनन से जुड़े इन विभिन्न जोख़िमों की वजह से बैंकें और निवेशक इन प्रोजेक्ट में निवेश करने से हिचकिचाते हैं, नतीजतन ऐसी ऊर्जा संक्रमण परियोजनाएं, जिनमें या तो कम जोख़िम होते हैं, या फिर जेख़िमों को समायोजित करने की क्षमता होती है, वे निवेश के लिए उनकी पहली पसंद बन जाती हैं. इसके अतिरिक्त, खनन कार्यों से संबंधित कंपनियों को अभी तक इस प्रकार की भरोसेमंद बाज़ार संरचनाएं (उदाहरण के तौर पर निकासी और क़ीमत के बारे में अनिश्चितिता, कुछ छोटे मिनरल्स के मार्केट साइज़ के बारे में दुविधा और मूल्य निर्धारित करने वाले तरीक़ों के बारे में संशय, जिनको लेकर अभी काम किया जा रहा है और जो फिलहाल शुरुआती फेज में है) नहीं दिखाई दे रही है, जो निवेश की सुविधा उपलब्ध करा सकें. इतना ही नहीं, एनवॉयरमेंटल, सोशल और गवर्नेंस (ESG) के मापदंड भी असंगत और विरोधाभासी बने हुए हैं, इस वजह से भी इस सेक्टर में निवेश से मोहभंग हो रहा है.

 

इसके साथ ही एनर्जी ट्रांज़िशन के विकास से जुड़े निहितार्थों की वजह से विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाएं और भी ज़्यादा असुरक्षित हैं. ज़ाहिर है कि जब ये विकासशील देश महत्त्वपूर्ण खनिजों का उत्पादन और निकासी करने में असमर्थ होते हैं, तो उन्हें उभरती इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी मार्केट हिस्सेदारी को खोने का ख़तरा होता है.

 

 

  1. G20 की भूमिका

 

उल्लेखनीय है कि महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन में G20 देश बड़े उत्पादक हैं. (तालिक 1 एवं 2 को देखें) यह आपूर्ति की सुरक्षा में सुधार और ग्लोबल एनर्जी ट्रांज़िशन में तेज़ी लाने के लिए G20 में सामंजस्य की गारंटी देता है.

 

तालिका 1 : महत्त्वपूर्ण खनिजों के वैश्विक उत्पादन में G20 सदस्य देशों की हिस्सेदारी (2023, प्रतिशत में)

 

लिथियम कोबाल्ट निकल कॉपर मैंगनीज रेयर अर्थ ग्रैफाइट
अर्जेंटीना 4.77
ऑस्ट्रेलिया 46.92 3.11 4.85 1.46 16.50 6.00
ब्राज़ील 1.69 2.52 2.00 0.03 6.69
कनाडा 0.38 2.05 3.94 1.19 1.15
चीन 14.62 1.16 3.33 42.31 4.95 70.00 65.38
फ्रांस
जर्मनी 2.38 0.02
भारत 2.40 0.97 0.64
इंडोनेशिया 5.26 48.48 1.15
इटली
जापान 6.15
दक्षिण कोरिया 2.54 1.31
मेक्सिको 0.00
रूस 4.68 6.67 4.23 0.87 1.15
सऊदी अरब
दक्षिण अफ्रीका
तुर्किये 1.42 0.22
ब्रिटेन
अमेरिका 0.42 0.55 3.85 14.33
यूरोपियन यूनियन
G20 कुल 68.38 6.32 14.64 44.96 23.45 76.03 73.23

 

स्रोत: USGS 2023 मिनरल कमोडिटी सर्वेक्षणों के आधार पर लेखकों द्वारा संकलित [12]

 

G20 देश महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रमुख उपभोक्ता भी हैं, इतना ही नहीं संसाधित करने के पहले चरण में भी और कैथोड एवं एनोड के निर्माण जैसे आगे के चरणों में भी प्रमुख उपभोक्ता हैं. चीन दुनिया का 40 प्रतिशत कॉपर, 35 प्रतिशत निकल, 65 प्रतिशत कोबाल्ट, 58 प्रतिशत लिथियम और 87 प्रतिशत रेयर अर्थ मेटल का प्रसंस्करण करता है, जबकि जापान 6 प्रतिशत कॉपर और 8 प्रतिशत निकल का प्रसंस्करण करता है. वहीं इंडोनेशिया 15 प्रतिशत निकल को संसाधित करता है, जबकि यूरोपियन यूनियन के देश 15 प्रतिशत से अधिक कोबाल्ट का प्रसंस्करण करते हैं और अर्जेंटीना 10 प्रतिशत लिथियम संसाधित करता है. [13]

 

तालिका 2: महत्त्वपूर्ण खनिजों के वैश्विक भंडार में G20 सदस्य देशों की हिस्सेदारी (2023, प्रतिशत में)

 

लिथियम कोबाल्ट निकल कॉपर मैंगनीज रेयर अर्थ ग्रैफाइट
अर्जेंटीना 10.38
ऑस्ट्रेलिया 23.85 18.07 21.00 10.90 15.88 3.23
ब्राज़ील 0.96 16.00 15.88 16.15 22.42
कनाडा 3.58 2.65 2.20 0.85 0.64
चीन 7.69 1.69 2.10 3.03 16.47 33.85 15.76
फ्रांस
जर्मनी
भारत 2.00 5.31 2.42
इंडोनेशिया 7.23 21.00 2.70
इटली
जापान
दक्षिण कोरिया 0.55
मेक्सिको
रूस 3.01 7.50 6.97 16.15 4.24
सऊदी अरब
दक्षिण अफ्रीका
तुर्किये 0.43 27.27
ब्रिटेन
अमेरिका 3.85 0.83 0.37 4.94 1.77
यूरोपियन यूनियन
G20 कुल 50.31 33.92 70.17 29.39 50.24 77.10 72.67

 

स्रोत: USGS 2023 मिनरल कमोडिटी सर्वेक्षणों के आधार पर लेखकों द्वारा संकलित [14]

 

खनिजों से समृद्ध उभरती हुई कुछ अर्थव्यवस्थाओं में कई ऐसे रिस्क फैक्टर हैं, जो बरक़रार हैं यानी जस के तस बने हुए हैं, जैसे कि राजनीतिक अस्थिरता और उचित मुआवज़े के बगैर निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को सरकार द्वारा जबरन अधिग्रहित किए जाने का जोख़िम. हालांकि, G20 पूंजी की उच्च लागत के साथ ही क्रिटिकल मिनरल्स आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश एवं ऋण को लेकर महसूस किए जाने वाले उच्च जोख़िमों के निवारण अर्थात उन्हें समाप्त करने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कई दूसरे ऊर्जा संक्रमण निवेशों की भांति, डेवलपर्स और फाइनेंसरों का साफ तौर पर यहा मानना है कि महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के भीतर जोख़िम वाले उद्यमों में निवेश करने के लिए पूंजी की कमी है, साथ ही बैंक योग्य परियोजनाओं की भी कमी है. इसकी वजह यह है कि कई क्रिटिकल मिनरल्स ऐसे हैं, जो खनिजों के ‘बाई-प्रोडक्ट्स’ हैं और जिनकी व्यापक मात्रा में खपत की जाती है, जैसे कि कॉपर और निकल. ऐसे में देखा जाए तो G20 दो मुख्य स्तंभों यानी निवेश और स्थिरता में अपना योगदान देने के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर सकता है. ज़ाहिर है कि निवेश और स्थिरता ही वो चीज़ें हैं, जो महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार कर सकती हैं.

 

उल्लेखनीय है कि एक तरफ, ऋण वृद्धि एवं राजनीतिक जोख़िम से संबंधित बीमा उत्पादों के बारे में बेहतर सोच की भी ज़रूरत है, साथ ही माइनिंग प्रोजेक्ट को तैयार करने के लिए एवं रेगुलेटरी फ्रेमवर्क्स के संबंध में तकनीक़ी सहायता भी आवश्यक है. वहीं दूसरी तरफ, G20 देश और उनके कैपिटल मार्केट्स भी ऐसे तंत्र में अपना योगदान कर सकते हैं, जो कैटेलिटिक कैपिटल की उपलब्धता में सुधार करते हैं. कैटेलिटिक कैपिटल का मतलब उन निवेशों से हैं, जो अधिक जोख़िम को झेल सकते हैं और वित्तपोषण की खाई को पाट सकते हैं, साथ ही परियोजनाओं को जोख़िम से बाहर निकाल सकते हैं. G20 को ख़ास तौर पर मिलेजुले फाइनेंस साधनों के विकास और प्रयोग में सहयोग करना चाहिए, जो महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य श्रृंखला में पूंजी की लागत को कम कर सकते हैं.

 

 

 

G20 के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वो नए वित्तीय साधनों एवं जोख़िम को कम करने वाले उपकरणों, जैसे कि क्रेडिट गारंटी और फर्स्ट-लॉस ट्रैंचेस यानी परिसंपत्तियों के पोर्टफोलियो या किसी एकल परिसंपत्ति पर हुए किसी भी नुकसान के लिए सबसे पहले उजागर होने वाली राशि का पता लगाए. ऐसा इसलिए बेहद आवश्यक है, क्योंकि जो अन्य नए-नए वित्तपोषण के साधन हैं, वे महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए पर्याप्त रूप से उपयुक्त नहीं लगते हैं. ग्रीन ब्रॉन्ड्स जैसे उपाय भी इस मामले में वित्तीय सहायता के लिए कम उपयुक्त हैं, क्योंकि ग्रीन बॉन्ड्स का इस्तेमाल अक्सर ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर को स्थापित करने वाले प्रोजेक्ट्स के वित्तपोषण हेतु किया जाता है, जो सीधे तौर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने में योगदान देने वाले होते हैं. ऐसे कई फैक्टर हैं, जिनकी वजह से अपस्ट्रीम खनन या मिनरल्स को संसाधित करने के लिए इस तरह के बॉन्ड्स का उपयोग करना ज़्यादा मुश्किल होगा:

 

  1. माइनिंग प्रोजेक्ट्स के लिए ग्रीन या फिर अन्य किसी तरह के बॉन्ड्स जारी करने पर, उन्हें निवेशकों के संदेह का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि निवेशक संभावित रूप से एक ऐसे क्षेत्र के लिए, जो नकारात्मक उत्पादन और उपभोग के लिए जाना जाता है, उसमें इन वित्तीय साधनों की विश्वसनीयता और असर पर सवाल उठा सकते हैं. ज़ाहिर है कि ऐसे निवेशक जो ग्रीन बांड में दिलचस्पी रखते हैं, वे अक्सर ऐसी परियोजनाओं का समर्थन करने पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव वाली होती हैं.

 

  1. आमतौर पर देखा जाए तो ग्रीन बॉन्ड्स विशिष्ट मापदंड़ों या दिशानिर्देशों का अनुसरण करते हैं, जैसे कि ग्रीन बांड सिद्धांत या जलवायु बॉन्ड्स मापदंड. इन मापदंडों के मुताबिक़ वित्तपोषित परियोजनाओं को सकारात्मक पर्यावरणीय या सामाजिक प्रभाव प्रदर्शित करने की ज़रूरत होती है. ज़ाहिर है कि खनन प्रोजेक्ट्स के लिए यह सिद्ध करना बहुत कठिन हो सकता है कि खनन किए गए मिनरल्स का उपयोग वास्तव में कम कार्बन उत्सर्जन वाले पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से ठोस मकसदों के लिए किया जाता है.

 

  1. कुछ अधिकार क्षेत्रों में खनन समेत विशिष्ट उद्योगों के लिए ग्रीन बॉन्ड्स जारी करने को सीमित करने वाले क़ानूनी या नियामक अवरोध भी हो सकते हैं. इतना ही नहीं, ये बाधाएं पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक प्रभावों या स्थिरता उद्देश्यों से संबंधित चिंताओं की वजह से हो सकती हैं.

 

 

 

ब्लेंडेड फाइनेंस यानी मिलाजुला या मिश्रित फाइनेंस प्रभावशाली निवेशकों, डेवलपमेंट फाइनेंस संस्थानों, कल्याणकारी संगठनों, सरकारों और प्राइवेट सेक्टर से मिलने वाली वित्तीय पूंजी को जोड़ने का काम करता है. उभरती हुई एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में व्यापक, पूंजी की अत्यधित ज़रूरत वाली खनन परियोजनाओं के संदर्भ में कैटालिटिक कैपिटल यानी उत्प्रेरक पूंजी राजनीतिक, पर्यावरणीय और सामाजिक जोख़िमों का सामना करने में मदद करने के अतिरिक्त कई और वजहों से भी अहम है:

 

  1. शुरुआती उच्च लागत: माइनिंग प्रोजेक्ट्स को कमाई योग्य बनाने से पहले इंफ्रास्ट्रक्चर, मशीनरी और अनुसंधान या रिसर्च में बड़े स्तर पर निवेश की ज़रूरत होती है.

 

  1. निवेश का दीर्घकालिक स्वरूप: देखा जाए तो खनन से जुड़े प्रोजेक्ट्स में निवेश करने का फैसला करने और इन परियोजनाओं में उत्पादन के बीच काफ़ी लंबा वक़्त लगता है. ज़ाहिर है कि यह जो लंबा वक़्त है, वो कम समय में लाभ कमाने की उम्मीद रखने वाले निवेशकों को हतोत्साहित कर सकता है.

 

  1. कैपिटल मार्केट्स तक सीमित पहुंच: उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में काम करने वाली कंपनियों को अक्सर विकसित वित्तीय बाज़ारों और संस्थागत सहयोग की कमी की वजह से पूंजी तक पहुंच स्थापित करने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

 

  1. अत्यधित जोख़िम वाली प्रोफाइल: शुरुआती उच्च लागत और प्रोजेक्ट की लंबी अवधि के मद्देनज़र खनन परियोजनाएं समापन जोख़िम, मार्केट जोख़िम और आपूर्ति जोख़िम समेत अन्य विभिन्न प्रकार के संदेहों को सामने लाती हैं. लेकिन कैटालिटिक पूंजी ऐसी परियोजनाओं का जोख़िमों से बचाव करने में सहायता कर सकती है.

 

ब्लेंडेड फाइनेंस ने पिछले दशक में परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए 181 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्रदान किया है, जिनमें से ज़्यादातर लेनदेन जलवायु केंद्रित थे. [15] हाल के वर्षों में देखा जाए, तो बड़े स्तर की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से भी ध्यान हट रहा है, क्योंकि वे अब संस्थागत ऋणदाताओं और मुख्यधारा के ऋणदाताओं से वित्तपोषण हासिल करने में सक्षम हैं. जलवायु केंद्रित परियोजनाओं के बदलते स्वरूप के मद्देनज़र अधिक ऊर्जा प्रौद्योगिकियां ज़्यादा रिटर्न दे रही हैं और निवेश के अनुकूल बन रही हैं, ऐसे में नए उभरते सेक्टरों का मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, जहां अधिक जोख़िम वहन करने वाली पूंजी ज़्यादा उचित है.

 

विभिन्न थीम्स पर आधारित बॉन्ड्स जैसे साधनों में कमियों के चलते मिश्रित फाइनेंस के अधिक से अधिक साधनों की आवश्यकता है. देखा जाए तो मिलेजुले फाइनेंस के लिए पांच व्यापक साधन हैं, [16] जिनमें से कुछ साधन ऐसे हैं, जो अन्य की तुलना में खनन सेक्टर के लिहाज़ से अधिक प्रासंगिक हैं:

 

  1. ब्लेंडेड फंड्स यानी मिश्रित फंड्स: ये सीमित देयता ऋण सुविधाएं हो सकती हैं या प्राइवेट इक्विटी फंडिंग उपलब्ध करा सकती हैं. यह एक ऐसी वित्तीय संरचना है, जो निवेशकों को खनन परियोजनाओं की शुरुआती उच्च पूंजी लागत से जुड़े जोख़िमों को कम करने की अनुमति देगी. परियोजना के प्रदर्शन के आधार पर फॉलो-ऑन फंडिंग यानी अतिरिक्त फंडिंग भी उपलब्ध हो सकती है.

 

  1. कन्सेशनल कैपिटल यानी रियायती पूंजी: उच्च पूंजीगत ख़र्चे वाली परियोजनाओं को जोख़िम से मुक्त करने और इक्विटी इन्वेस्टर्स के लिए अधिक रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए रियायती दर पर शुरुआती पूंजी प्रदान करना एक संभावित विकल्प है. IFC द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़ मिश्रित फाइनेंस साधनों ने रियायती पूंजी के प्रत्येक डॉलर के लिए वाणिज्यिक पूंजी का 1 से 4 अमेरिकी डॉलर तक लाभ उठाया है. [17]

 

  1. परियोजना वित्तपोषण: मिलीजुली पूंजी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य उच्च जोख़िम और कम रिटर्न यानी कम लाभ अर्जित करने वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए कुछ संस्थाओं या इकाइयों की उधार योग्यता का उपयोग करना है, अतीत में इसका इस्तेमाल अच्ची तरह से सफलतापूर्वक किया गया है.

 

  1. G20 के लिए सिफ़ारिशें

 

वर्ष 2022 में इंडोनेशिया की अध्यक्षता के अंतर्गत G20 ने ग्लोबल ब्लेंडेड फाइनेंस अलायंस (GBFA) लॉन्च किया था. यह पहल न सिर्फ नई है, बल्कि G20 विकास कार्य समूह भी 2022 में ब्लेंडेड फाइनेंस को प्रोत्साहित करने के लिए G20 के सिद्धांतों को लेकर सहमत है. इसने ब्लेंडेड फाइनेंस यानी मिश्रित वित्तपोषण को सबके सामने लाने का काम किया है. इतना ही नहीं, फरवरी 2023 में गुवाहाटी में सस्टेनेबल फाइनेंस वर्किंग ग्रुप की पहली बैठक में इस पर दोबारा से चर्चा की गई. [18] G20 समूह महत्त्वपूर्ण खनिज वित्तपोषण की ज़रूरत को ग्लोबल ब्लेंडेड फाइनेंस अलायंस के साथ समायोजित कर सकता है.

 

 

G20 एनर्जी ट्रांज़िशन वर्किंग ग्रुप की तरह ही क्रिटिकल मिनरल्स सप्लाई चेन वर्किंग ग्रुप को टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने, निवेश को सुविधाजनक बनाने और इन आपूर्ति श्रृंखलाओं में एनवॉयरमेंट, सोशल एवं गवर्नेंस (ESG) के प्रदर्शन में सुधार करने पर फोकस करना चाहिए. फिर इस समूह को ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट ग्रुप, फाइनेंस ट्रैक में इंफ्रास्ट्रक्चर वर्किंग ग्रुप और एनर्जी ट्रांज़िशन वर्किंग ग्रुप जैसे मौजूदा समूहों के साथ संलग्न किया जाना चाहिए और उनके कामकाज में शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही G20 को इसकी पड़ताल करने में सहायता करनी चाहिए कि पूर्व में किन नीतियों और मिश्रित फाइनेंस साधनों एवं व्यवस्थाओं ने कुशलता से काम किया है और उन्हें महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य श्रृंखलाओं के लिए कैसे अनुकूलित किया जा सकता है, जहां परियोजनाएं अक्सर कई दशकों की लंबी अवधि की होती हैं. इसके बाद इसे G20 ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर हब (GI Hub) में शामिल किया जाना चाहिए, विशेष रूप से इसके एक्शन एरिया 3.1 में, ताकि यह पता लगाया जा सके कि टिकाऊ इंफ्रास्ट्रक्चर के निवेश को बढ़ाने के लिए निजी सेक्टर की भागीदारी का अच्छे से अच्छा फायदा कैसे उठाया जाए. [19]

 

ब्लेंडेड फाइनेंस को अमल में लाने के लिए खनिज से समृद्ध देशों में ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के निवेश की पूर्वसूचना के साथ ही कम मात्रा वाले महत्त्वपूर्ण खनिजों की अनुमानित मांग के बारे में पूर्वानुमान की प्रणाली स्थापित करने की ज़रूरत है, ज़ाहिर है कि ये वो मुद्दा है जो निवेशकों के लिए संदेह की अहम वजह बना हुआ है. G20 को इसके लिए तत्काल प्रभाव से संसाधन जुटाने चाहिए. G20 समूह को ब्लेंडेड फाइनेंस के वर्तमान मॉडल्स का मूल्यांकन करने के लिए GI Hub और ग्रीन फाइनेंस स्टडी ग्रुप की तरह एक संस्थागत निकाय की भी स्थापना करना चाहिए. यह संस्थागत निकाय यह पता लगाए कि महत्त्वपूर्ण खनिजों में निवेश के लिए किस प्रकार के मॉडल अधिक उपयोगी हो सकते हैं. जिस प्रकार से सतत विकास के लिए निवेश को बढ़ाने के लिए G20 कॉम्पेंडियम है, उसी की तर्ज पर G20 समूह को अपने सदस्य देशों से क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने को लेकर अपनी नीतियों को साझा करने का आग्रह करना चाहिए.

 

 

G20 को ऋण लेने वालों और परियोजना विकसित करने वाले डेवलपर्स के लिए राजनीतिक जोख़िम इंश्योरेंस के रूप में अतिरिक्त व्यवधान जोख़िम कवरेज उपलब्ध कराने हेतु मल्टीलेवल इन्वेस्टमेंट गारंटी एजेंसी जैसे एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. उल्लेखनीय है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को कच्चे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के ज़रिए सहायता प्रदान करने की भी गुंजाइश है, क्योंकि खनन और शोधन आपूर्ति श्रृंखलाएं स्थापित की जा रही हैं. उदाहरण के तौर पर यूरोपियन यूनियन अपने साझेदार देशों को अपने खुद के निष्कर्षण और प्रसंस्करण यानि खनिजों को खदानों से बाहर निकालने और उन्हें संसाधित करने से संबंधित उद्योग स्थापित करने में सहायता करने के लिए ग्लोबल गेटवे [A] का उपयोग करने की योजना बना रहा है. [20] ऐसे में G20 को महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं के लिए धनराशि जुटाने के लिए विश्व बैंक के अलावा न्यू डेवलपमेंट बैंक से भी संपर्क स्थापित करना चाहिए.

 

G20 का एक सबसे बड़ा सामर्थ्य उन प्रोजेक्ट्स में इक्विटी निवेश के लिए राष्ट्रीय विकास बैंकों के कार्य का समन्वय करना है, जो महत्त्वपूर्ण खनिज के खनन, प्रसंस्करण या री-साइक्लिंग को समर्थ बनाएंगी. चीन के पास खनन संबंधी गतिविधियों के वित्तपोषण को लेकर अब तक सबसे अधिक अनुभव है. चीन की डेवलपमेंट फाइनेंस परियोजनाओं [21] के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 2000 और 2017 के बीच चीन ने खनन कार्य से संबंधित 690 परियोजनाओं को वित्तपोषित किया, जिनमें से 69 प्रोजेक्ट्स सीधे माइनिंग सेक्टर में गए. चीन से मिलने वाले वित्तपोषण के सबसे बड़ा लाभार्थी एशिया (253) और अफ्रीका (186) थे, जिन्हें परियोजना विकास और निर्माण, भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण, खनिज की खोज और साझा मिनरल रिसर्च एवं टेस्टिंग लैब्स के लिए धनराशि मिली थी. चीन के एक्ज़िम बैंक ने कुल 203 ऋणों के साथ सबसे अधिक ऋण वितरित किए, उसके बाद सबसे ज़्यादा ऋण देने वालों में चाइना डेवलपमेंट बैंक है. चीन के अतिरिक्त अन्य G20 देशों ने भी खनन-संबंधी गतिविधियों के लिए डेवलपमेंट फाइनेंस का उपयोग किया है. उदाहरण के लिए वर्ष 2020 में यूएस डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन ने ब्राज़ील के पियाउई में निकल और कोबाल्ट के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए टेकमेट लिमिटेड में 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश को मंजूरी दी थी. [22]

आख़िर में, G20 समूह के देशों का उभरती अर्थव्यवस्थाओं को तकनीक़ी सहायता फंडिंग देने का लंबा इतिहास रहा है. ऐसे में क्रिटिकल मिनरल माइनिंग के लिए तकनीक़ी सहायता ख़ास तौर पर प्रासंगिक है. ग्लोबल ग्रीन फाइनेंस लीडरशिप प्रोग्राम [B] ने सिफ़ारिश की है कि G20 सस्टेनेबल फाइनेंस वर्किंग ग्रुप [C] मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंक्स यानी बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDB), गैर-सरकारी संगठनों, रिसर्च संस्थाओं और थिंक टैंक्स की सहायता से उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों के समन्वय के लिए एक नेटवर्क का निर्माण करने की सुविधा प्रदान करे. इस नेटवर्क को G20 टिकाऊ वित्तपोषण रोडमैप से संबंधित विभिन्न मसलों को दूर करना चाहिए, जिसमें टिकाऊ निवेश और गतिविधियों के लिए दृष्टिकोण के साथ ही वर्गीकरण, टिकाऊपन का प्रकटीकरण और रिपोर्टिंग, जोख़िम एवं प्रभाव का मूल्यांकन एवं प्रबंधन और स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के प्रबंधन की पहचान शामिल हैं.

 

 

महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए ESG  मापदंडों यानी पर्यावरण, समाजिक और गवर्नेंस से संबंधित मानकों को विकसित करने के लिए एवं खनिज बहुल देशों में इन मानकों तक पहुंच सुनिश्चित करने में सहायता करने के लिए जो प्रायस किए जा रहे हैं, G20 को उनके समन्वय में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने पर विचार करना चाहिए.  ऐसा करना मिश्रित निवेश को आकर्षित करने और उत्पादन को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है. ज़ाहिर है कि जब स्थानीय समुदाय और स्थानीय लोग इसमें शामिल होते हैं, तो कॉन्ट्रैक्ट्स यानी अनुबंधों की विश्वसनीयता को बनाए रखना आसान हो जाता है क्योंकि वे अनुबंध वर्तमान और नए नीति निर्माताओं, दोनों को जवाबदेह ठहराने में समर्थ होंगे. ऐसा करने से परियोजना से जुड़े जोख़िम भी कम होते हैं, क्योंकि सामाजिक भागीदारी से मंजूरी से जुड़ी प्रक्रियाओं में तेज़ी आती है, साथ ही इससे राजनीतिक जोख़िम भी कम हो जाता है. ठीक इसी तरह, पर्यावरण मानकों में सुधार से भी परियोजनाओं की मंजूरी में आसानी होगी.

 

इसके अलावा, G20 को टिकाऊ महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए निवेश सुविधाएं विकसित करने को लेकर मार्गदर्शक सिद्धांतों को अपनाने के बारे में भी गौर करना चाहिए. G20 को निश्चित तौर पर एक आपूर्ति श्रृंखला विकास मापदंड पर विचार करना चाहिए, जहां अपस्ट्रीम खनन यानी शुरुआत से लेकर खनिज के उत्पादन तक की प्रक्रिया के लिए निवेश के बाद स्थानीय स्तर पर खनिज को संसाधित करने की क्षमता विकसित करने में सहायता की जाती है. इसके परिणामस्वरूप संसाधनों से समृद्ध देशों द्वारा हासिल किए जाने वाले मूल्यों में उस विशेष देश की हिस्सेदारी बढ़ जाती है. उल्लेखनीय है कि टिकाऊ बुनियादी ढांचे में संक्रमण में तेज़ी लाने के लिए फाइनेंस के माध्यम से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में स्थाई इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए इसी प्रकार की प्रक्रिया अमल में लाई गई थी. [23] वर्ष 2020 में इस पहल की परिकल्पना क्लाइमेट पॉलिसी इनीशिएटिव, हांगकांग एवं शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन और अन्य के द्वारा टिकाऊ इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट्स के लिए एक लेबलिंग प्रक्रिया, आर्थात पहचान का चिन्ह लगाने की प्रक्रिया के ज़रिए सतत बुनियादी ढांचे के लिए वित्तपोषण के अंतर को समाप्त करने के उद्देश्य से की गई थी. इस प्रकार की मदद एक नए टिकाऊ इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट वर्ग के निर्माण में सहायता कर सकती है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बैंक योग्य परियोजनाओं के विस्तार को और अधिक सुविधाजनक बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है.

 

आख़िर में, G20 समूह को ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए एक न्यूनतम मापदंड को विकसित करने पर विचार करना चाहिए, यानी वो मापदंड जिन्हें विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को MDBs या विकसित देशों से मिश्रित कैपिटल हासिल करने के लिए हर हाल में पूरा करना चाहिए. इतना ही नहीं इसके लिए Ba3 की न्यूनतम सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग वाले देशों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो कि मुख्यधारा के निजी क्षेत्र के कई निवेशकों के लिए एक न्यूनतम ज़रूरत है. ऐसा करने से उन क्षेत्रों में ब्लेंडेड फाइनेंस साधनों को लक्षित करने में मदद मिलेगी, जहां छोटी अवधि की खनन परियोजनाओं को स्थापित करना संभव है.

 

 

 

G20 समूह को मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप, सस्टेनेबल क्रिटिकल मिनरल्स अलायंस और क्रिटिकल मिनरल्स क्लब जैसे मौज़ूदा दौर में विकसित हो रहे तमाम गठबंधनों के बीच समंजस्य स्थापित करने का भी प्रयास करना चाहिए. इनमें से कुछ गठबंधन एक दूसरे को ओवरलैप करते हैं, जबकि कुछ गठबंधन आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं. ये सभी गठबंधन भले ही भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं का अनुसरण करते हैं और सदस्य देशों के बीच अन्य प्रकार के सहयोग की वजह से संघटित रूप से विकसित होते हैं, लेकिन उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का इनमें शामिल नहीं होना ऊर्जा संक्रमण की व्यवहार्यता को प्रभावित करता है. ज़ाहिर है कि ऊर्जा परिवर्तन की इस व्यवहार्यता का इन अलायंस के कई संस्थापक सदस्य देश सार्वजनिक तौर पर समर्थन करते हैं. जहां तक G20 समूह की बात है, तो विभिन्न दूसरे सदस्यों द्वारा स्थापित की गई महत्त्वपूर्ण खनिज साझेदारियों में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को किस प्रकार से जोड़ा जाए, उन्हें किस प्रकार से समाहित किया जाए, इस मुद्दे को लेकर गहनता के साथ विचार-विमर्श किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि इसके माध्यम से पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन की तरह महत्त्वपूर्ण खनिज उत्पादक संघ की स्थापना को भी रोका जा सकता है, क्यों कि अगर ऐसा होता है, तो यह स्वच्छ ऊर्जा ट्रांज़िशन में देरी का कारण बन सकता है.


 

एट्रीब्यूशन: टॉम मोरेनहौट और अन्य, “स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.


Endnotes:

[A] ग्लोबल गेटवे दुनिया भर में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में बड़े निवेश की सुविधा प्रदान करके ऊर्जा और परिवहन सेक्टरों में सुरक्षित श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने की एक यूरोपीय रणनीति है.

[B] ये सुझाव टिकाऊ फाइनेंस को बढ़ाने के लिए G20 वर्कशॉप में दिए गए थे. अधिक जानकारी के लिए देखें: G20 सस्टेनेबल फाइनेंस वर्किंग ग्रुप, 2022 सस्टेनेबल फाइनेंस रिपोर्ट (G20, 2022).

[C] 2018 में लॉन्च किए गए सस्टेनेबल फाइनेंस स्टडी ग्रुप की सह-अध्यक्षता चीन और यूके द्वारा की जाती है और इसका उद्देश्य ग्रीन फाइनेंस यानी हरित वित्त की अधिस से अधिक पहलों की पड़ताल करना है. अधिक जानकारी के लिए देखें: रे, एस., जैन, एस., ठाकुर, वी., और एस. मिगलानी, ग्लोबल कोऑपरेशन एंड G20: रोल ऑफ फाइनेंस ट्रैक (स्प्रिंगर, 2023).

 

[1] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis (IEA, 2023).

 

[2] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis.

[3] Lukas Boer and Andrea Pescatori, Energy Transition Metals (IMF, 2021).

 

[4] Bloomberg, “Transition Metals Become $10 Trillion Opportunity as Demand Rises and Supply Continues to Lag” BloombergNEF, last modified February 16, 2023.

 

[5] S&P Global, The Future of Copper: Will the Looming Supply Gap Short-Circuit the Energy Transition? (S&P Global, 2023).

 

[6] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis.

 

[7] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis.

 

[8] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis.

 

[9] Tom Moerenhout, James Glynn, and Lilly Lee, Critical mineral constraints and energy system models (Columbia University Center on Global Energy Policy, 2023).

 

[10] International Energy Agency, Energy Technology Perspectives 2023 – Analysis (IEA, 2023).

[11] International Energy Agency, Energy Technology Perspectives 2023.

 

[12] USGS, “Mineral Commodity Summaries,” USGS, accessed 01 May 2023.

 

[13] International Energy Agency, The Role of Critical Minerals in Clean Energy Transitions – Analysis.

 

[14] USGS, “Mineral Commodity Summaries”

 

[15] Convergence, “Blended Finance,” Convergence, accessed May 22, 2023.

 

[16] “Convergence.  “Blended Finance.”

 

[17] IFC, The why and how of blended finance (IFC, 2020).

 

[18]Green bonds, SLBs, MDBs in focus at Guwahati G20 meet on sustainable finance”, Outlook India, accessed May 8, 2023.

 

[19] G20, G20/GI Hub Framework on How to Best Leverage Private Sector Participation to Scale Up Sustainable Infrastructure Investment (G20 2023).

 

[20] European Commission, ​​“Critical Raw Materials: Ensuring Secure and Sustainable Supply Chains for EU’s Green and Digital Future,” European Critical Raw Materials Act, March 16, 2023.

 

[21] AidData, “Global Chinese Development Finance Dataset, Version 2.0.,” AidData, 2021.

 

[22]Public information summary – TechMet Limited,” US International Development Finance Corporation, accessed April 3, 2023.

 

[23] Barbara Buchner, Christian Deseglise, Lori Kerr, Michael Ridly, Vikram Widge and Rob Youngman“FAST-Infrastructure,” CPI, accessed April 3, 2023.