Cyber security के क्षेत्र में स्थायी विकास का लक्ष्य पाने के लिए, भारत और G20 का नेतृत्व ज़रूरी!

विकासशील देशों को तक़नीकी और वित्तीय सहयोग देकर भारत और G20 साइबर सुरक्षा को मुख्यधारा में लाकर स्थायी विकास के लक्ष्य (SDGs) हासिल करने में मदद कर सकते हैं.
Kaja Ciglic

आज जब दुनिया पूरी तरह डिजिटलीकृत हो रही है और तक़नीक पर निर्भर होती जा रही है, तो पूरी दुनिया में सरकारों और संगठनों के लिए साइबर सुरक्षा को एक अहम चिंता का विषय होना चाहिए. इसके बाद भी टिकाऊ विकास की परिचर्चाओं में अक्सर इस विषय की अनदेखी होती है. ये अनदेखी बहुत ख़तरनाक हो सकती है, क्योंकि साइबर हमलों का अर्थव्यवस्था पर दूरगामी दुष्परिणाम हो सकता है.

G20 ने टिकाऊ विकास के लक्ष्यों से जुड़े कई मसलों, जैसे कि ग़रीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन के मसले हल करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया है. 2022 में G20 का बाली शिखर सम्मेलन घोषणापत्र, ज़ोर देकर ये कहता है कि कोविड-19 महामारी ने डिजिटल इकोसिस्टम और डिजिटल अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को बहुत तेज़ कर दिया है. घोषणापत्र में टिकाऊ विकास के लक्ष्य (SDGs) हासिल करने के लिए डिजिटल परिवर्तन की अहमियत को स्वीकार किया गया था. G20 के नेताओं ने तो विशेष रूप से ये बात मानी थी कि डिजिटल परिवर्तन और डिजिटल समावेश के लिए सस्ती और ऊंचे दर्जे की डिजिटल कनेक्टिविटी बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं, डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्वास और भरोसा बढ़ाने के लिए एक लचीला और सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण भी बहुत आवश्यक है. घोषणापत्र में G20 देशों के बीच विदेशी प्रभाव वाले अभियानों, साइबर ख़तरों और ऑनलाइन शोषण रोकने और कनेक्टिविटी के मूलभूत ढांचे में सुरक्षा सुनिश्चित करने के मुद्दे पर भी आम सहमति दिखाई दी थी. ये बात साइबर सुरक्षा को लेकर G20 की पहले की प्रतिबद्धताओं पर आधारित है. जैसे कि 2015 में G20 ने कारोबारी जासूसी को लेकर बर्ताव पर संयुक्त राष्ट्र के नियमों और प्रतिबंधों को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी.

G20 के नेताओं ने तो विशेष रूप से ये बात मानी थी कि डिजिटल परिवर्तन और डिजिटल समावेश के लिए सस्ती और ऊंचे दर्जे की डिजिटल कनेक्टिविटी बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं, डिजिटल अर्थव्यवस्था में विश्वास और भरोसा बढ़ाने के लिए एक लचीला और सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण भी बहुत आवश्यक है.

अब समय आ गया है कि G20 देश साइबर सुरक्षा पर अपना अधिक ध्यान लगाएं, और निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में स्थायी विकास के लक्ष्य प्राप्त करने के प्रयासों में साइबर सुरक्षा को भी मुख्यधारा में ले आएं.

साइबर सुरक्षा और टिकाऊ विकास

आर्थिक लचीलेपन का मतलब किसी अर्थव्यवस्था के बड़े झटकों और उठा-पटक को बर्दाश्त करने और उनसे उबर पाने की क्षमता होता है. इन झटकों में प्राकृतिक आपदाएं, आर्थिक गिरावट, साइबर हमले या दूसरे तरह के संकट शामिल होते हैं. आर्थिक लचीलापन ज़रूरी है क्योंकि ये किसी अर्थव्यवस्था को इन लगभग तय चुनौतियों का सामना करके विकास के सफर पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक होता है.

ये ख़ुद ब ख़ुद स्पष्ट है कि एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में साइबर लचीलापन बढ़ाकर उसके आर्थिक लचीलेपन में वृद्धि की जा सकती है. उदाहरण के लिए अगर कोई संगठन किसी साइबर हमले का झटका सहकर उससे उबर पाने के लिए बेहतर रूप से तैयार है, तो साइबर हमले से उसके काम में ख़लल पड़ने की आशंका कम होगी और वो सामान्य रूप से अपना काम करता रहेगा. इससे ये सुनिश्चित होता है कि कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत सीमित दुष्प्रभाव होगा. कुल मिलाकर, आर्थिक और साइबर लचीलापन एक दूसरे से जुड़े हैं और किसी अर्थव्यवस्था की स्थिरता और प्रगति के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं.

साइबर सुरक्षा और टिकाऊ विकास

जब संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति और स्थिरता के लिए ज़रूरी कहे जाने वाले स्थायी विकास के 17 लक्ष्यों (SDGs) पर सहमत हुआ था, तो उसे ये जानकारी अच्छे से थी कि इस योजना को सच्चाई में बदलने के लिए तक़नीक एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी. स्थायी विकास के लक्ष्यों में विकास के सफर में किसी को भी पीछे न छोड़ने के मुख्य वादे को निभाने के लिए सबसे पहले हमें देशों, क्षेत्रों और व्यक्तियों के बीच डिजिटल अंतर की खाई को भरना होगा.

जहां एक ओर कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाई, तो दूसरी ओर इसने दुनिया के बहुत से क्षेत्रों में डिजिटल बदलाव को भी गति दी है. संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) का अनुमान है कि 2019 के बाद से दुनिया में 1.1 अरब अतिरिक्त लोग ऑनलाइन हुए हैं. स्थायी विकास की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़, कोविड-19 महामारी के आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र पर दुष्प्रभाव के चलते भारत की स्थायी विकास के लक्ष्य पाने की अपनी प्रगति में बाधा आई है. पूरे भारत और समूचे विकासशील विश्व में डिजिटल परिवर्तन को गति देने से समय के इस नुक़सान की भरपाई में सहायता मिल सकती है. प्रक्रियाओं को ऑनलाइन और क्लाउड में ले जाने से सरकारों को जनता को दी जाने वाली सेवाएं सुधारने में मदद मिलेगी; कारोबार जगत को विकास और उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिलेगी; और नागरिकों को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए सशक्त बनाया जा सकेगा.

G20 चिंताजनकर बात ये है कि देशों के पास स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए अब दस साल से भी कम समय बचा है, मगर फिर भी साइबर हमलों से दुनिया को होने वाला नुक़सान 2025 तक 10 ख़रब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है.

उच्च आमदनी वाले देशों में जीवन के बहुत से पहलू तक़नीक पर निर्भर हैं और आने वाले समय में यही बात निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में भी दिखने वाली है. आने वाले समय में हम संचार के लिए कंप्यूटर, स्मार्टफोन और इंटरनेट पर निर्भरता को बढ़ते देखेंगे. कारोबार और बैंकिंग, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं में भी इन माध्यमों पर निर्भरता बढ़ेगी. तक़नीक पर इस निर्भरता बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं. लेकिन, इनसे नई कमज़ोरियां भी उत्पन्न होती हैं. कई देश और साइबर अपराधी इन कमज़ोरियों का लाभ उठाकर संवेदनशील जानकारियां चुरा सकते हैं, सेवाओं में बाधा डाल सकते हैं या फिर मूलभूत ढांचे और व्यक्तियों को चोट पहुंचा सकते हैं. एक कामयाब हमले से बहुत भारी वित्तीय क्षति भी हो सकती है. किसी देश की प्रतिष्ठा को नुक़सान हो सकता है और उसके नागरिको को भी चोट पहुंचाई जा सकती है.

चिंताजनकर बात ये है कि देशों के पास स्थायी विकास के लक्ष्य हासिल करने के लिए अब दस साल से भी कम समय बचा है, मगर फिर भी साइबर हमलों से दुनिया को होने वाला नुक़सान 2025 तक 10 ख़रब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है. ऐसे हमले लोगों की जान और रोज़ी-रोटी के लिए ख़तरा हैं और उनके दूरगामी नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं. इनमें आर्थिक विकास की गति धीमी करने से लेकर तक़नीक, सार्वजनिक संस्थानों और लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा कम होने जैसे नुक़सान भी शामिल हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि निम्न और मध्यम आमदनी वाले बहुत से देश अभी भी अपने तक़नीकी और मूलभूत ढांचे का विकास कर रहे हैं. ऐसे देशो पर साइबर हमलों का ख़तरा विशेष रूप से अधिक है. इसके अतिरिक्त, संसाधनों और विशेषज्ञता का अभाव सरकारों के लिए ये काम और मुश्किल बना सकता है, और इससे आम नागरिकों के साइबर हमलों का प्रभावी ढंग से मुक़ाबला करके उससे उबर पाने की क्षमता पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है.

हमारा मानना है कि आर्थिक और साइबर लचीलापन मज़बूत बनाने की दोहरी चुनौती को देखते हुए और टिकाऊ विकास के लक्ष्य प्राप्त करने के स्थायी समधान प्राप्त करने को गति देने के लिए साइबर सुरक्षा को वैश्विक डिजिटल विकास के एजेडें में शामिल किया जाना चाहिए.

G20 और साइबर सुरक्षा

ये लक्ष्य आगे बढ़ाने में G20 महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. मिसाल के तौर पर, G20 के माध्यम से भारत सार्वभौमिक साइबर सुरक्षा लक्ष्य और मंज़िलें अंगीकार करने को बढ़ावा दे सकता है. मिलेनियम डेवेलपमेंट गोल और स्थायी विकास के लक्ष्यों से सीखते हुए ये लक्ष्य और मंज़िलें, राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र के साइबर नियम लागू करने में तक़नीकी, क़ानूनी और नीतिगत ढांचा बनाने और क्षमताएं विकसित करने में देशों की मदद कर सकते हैं. इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक संसाधन जुटाने में सहयोग प्रदान कर सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से साइबर सुरक्षा की क्षमता विकसित करने में साझा प्रयासों को आगे बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं. इनमें राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीतियां विकसित करने में सहयोग करना, उन देशों को कंप्यूटर सिक्योरिटी इंसीडेंट रिस्पॉन्स टीम (CSIRT) स्थापित करने या कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT) बनाने में सहयोग, जहां ऐसी सुविधाएं नहीं हैं; साइबर अपराध से लड़ने के लिए उपयुक्त माहौल बनाने को बढ़ावा देने; क्षमता के निर्माण; और तक़नीकी और फोरेंसिक विशेषज्ञता विकसित करने; महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचे में लचीलेपन को मज़बूत करने; और साइबर लचीलापन और घटनाओं से निपटने के ढांचे को विकसित करने में मदद करना शामिल है.

दूरगामी अवधि में इस रूप-रेखा को लागू करने में सहयोग के लिए G20 को चाहिए कि वो निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों को प्रत्यक्ष तक़नीकी और वित्तीय सहायता दे ताकि वो अपनी साइबर सुरक्षा संबंधी क्षमताओं को सुधार सकें. इनमें ये बातें शामिल की जा सकती हैं:

क्षमता विकास के प्रयासों में मदद: बहुत से देशों के पास अपनी तक़नीकी व्यवस्था के प्रभावी प्रबंध और सुरक्षित बनाने की क्षमता नहीं है. G20 इन देशों को क्षमता निर्माण के प्रयासों, जैसे कि प्रशिक्षण और तक़नीकी मदद देकर उन्हें साइबर सुरक्षा के प्रामाणिक केंद्र स्थापित करने में सहयोग दे सकता है. इससे इन देशों के व्यक्तियों और संगठनों के बीच ज्ञान और कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी और उनके लिए साइबर ख़तरों की रोकथाम, पहचान और उनसे निपटना आसान हो जाएगा.

अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: साइबर सुरक्षा एक वैश्विक मसला है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और तालमेल की आवश्यकता है. G20 अपने सदस्यों के बीच सूचना के आदान-प्रदान और समन्वय के माध्मय से साइबर सुरक्षा के मामले में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है. इससे देशों को आधुनिक सूचना और तक़नीक प्राप्त करने और साइबर घटनाओं का ख़तरा कम करने में मदद मिल सकती है. इशके अलावा जब ऐसी घटनाएं हों तो G20 साइबर क्षेत्र में विवाद हल करने और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए नई व्यवस्थाएं स्थापित करके या मौजूदा व्यवस्थाओं को मज़बूत करके, देशों द्वारा ग़लत आकलन के जोखिम और टकराव को कम करने में मदद कर सकता है.
रिसर्च और विकास में निवेश: तक़नीक में तरक़्क़ी के चलते साइबर सुरक्षा के लिए लगातार नई चुनौतियां और अवसर पैदा हो रहे हैं. G20 साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में तकनीकों और औज़ारों पर रिसर्च और विकास में निवेश करके निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में सुरक्षा और लचीलेपन को बढ़ाने में मदद कर सकता है. इससे इन देशों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप नए आविष्कारों और समाधान प्राप्त करना सुनिश्चित किया जा सकेगा और फिर साइबर ख़तरों से मुक़ाबले के वैश्विक प्रयासों में भी भागीदार बनाया जा सकेगा.

उदाहरण बनकर नेतृत्व करना: आख़िर में G20 देश अपने यहां साइबर सुरक्षा के मज़बूत उपाय लागू करके ख़ुद को दुनिया के सामने उदाहरण के तौर पर भी पेश कर सकते हैं. इन प्रयासों में साइबर सुरक्षा के मूलभूत ढांचे में निवेश, साइबर हमलों से निपटने की क्षमता का निर्माण और साइबर सुरक्षा के मामले में दूसरे देशों से सहयोग शामिल हैं. एक अच्छी मिसाल पेश करके, G20 देश अन्य देशों को भी साइबर सुरक्षा को गंभीरता से लेने को प्रेरित कर सकते हैं और एक अधिक सुरक्षित वैश्विक डिजिटल माहौल और वैश्विक आर्थिक लचीलापन ला सकते हैं.

लक्ष्यों और मंज़िलों के विकास, क्षमता निर्माण के प्रयासों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीतियों के विकास और अनुसंधान एवं विकास में सहयोग करके भारत और G20 पूरी दुनिया में साइबर लचीलापन बढ़ाने के साथ साथ, सुरक्षित डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा दे सकते हैं.

आख़िर में भारत और G20 को चाहिए कि वो साइबर सुरक्षा को स्थायी विकास के लक्ष्यों में शामिल करें, ताकि निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों की साइबर सुरक्षा और साइबर लचीलापन बढ़ाया जा सके. और वो देश अपने नागरिकों और अर्थव्यवस्थाओं को साइबर हमलों के दुष्प्रभावों से बचा सकें. लक्ष्यों और मंज़िलों के विकास, क्षमता निर्माण के प्रयासों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग, राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीतियों के विकास और अनुसंधान एवं विकास में सहयोग करके भारत और G20 पूरी दुनिया में साइबर लचीलापन बढ़ाने के साथ साथ, सुरक्षित डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा दे सकते हैं. ग़रीबी घटाने, लैंगिक समानता प्राप्त करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ज़रूरी क़दम उठाकर टिकाऊ विकास के लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की अंतिम कामयाबी अब इसी पर टिकी है.
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(ये लेख हमारी सीरीज़ G20-Think20 TF-2: ऑवर कॉमन डिजिटल फ्यूचर: अफोर्डेबल, एक्सेसिबल ऐंड इनक्लूज़िव डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का एक हिस्सा है.)