टिकाऊ जीवनशैलियों को उपभोग और उत्पादन प्रणालियों के साथ-साथ जीवन-चक्र से जुड़ी पद्धतियों के नज़रिए से देखा जाना चाहिए. इसमें संसाधनों के दोहन, विनिर्माण और प्रॉसेसिंग, उपभोक्ताओं द्वारा किए गए इस्तेमाल और निबटारे (disposal) को शामिल किया जाना चाहिए. टिकाऊ उपभोग और उत्पादन (सतत विकास लक्ष्य यानी SDG 12 समेत) पर मुख्यधारा की रूपरेखा, संसाधनों के उपभोग और उत्पादन प्रणालियों के निचले प्रवाहों यानी डाउनस्ट्रीम को जोड़ने में नाकाम रहते हैं. ख़ासतौर से जीवनशैली से जुड़े विकल्पों के संदर्भ में ये रुख़ दिखाई देता है. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में भारत के द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) द्वारा प्रस्तुत उपभोग पर संयुक्त सूचकांक और संकेतकों का प्रयोग करते हुए G20 देशों और यूरोपीय संघ यानी EU में जीवनशैलियों और उपभोग के हालात का आकलन किया गया है. उपभोग के इन क्षेत्रों में खान-पान, परिवहन और रिहाइशी और कचरा प्रबंधन शामिल हैं. G20 टिकाऊ जीवनशैलियों के साथ-साथ सूचनात्मक कार्रवाइयों पर मानकों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा सकता है. उपलब्ध सबूत और बेहतरीन तौर-तरीक़ों के इस्तेमाल से ऐसा मुमकिन हो सकेगा. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में ‘पर्यावरणीय इकाइयों के लिए जीवनशैली’ कार्यक्रम की शुरुआत करने का प्रस्ताव किया गया है. साथ ही G20 से टिकाऊ जीवनशैली के लिए वैश्विक भागीदारी का आग़ाज़ करने की सिफ़ारिश की गई है.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में भारत के द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) द्वारा प्रस्तुत उपभोग पर संयुक्त सूचकांक और संकेतकों का प्रयोग करते हुए G20 देशों और यूरोपीय संघ यानी EU में जीवनशैलियों और उपभोग के हालात का आकलन किया गया है.
1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र (UN) सम्मलेन में एजेंडा 21 को स्वीकार किया गया था. उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उत्पादन और उपभोग के ग़ैर-टिकाऊ रुझानों के परिणामों पर ज़्यादा ध्यान दिया है. 2015 में ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन को 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के तहत 12वें क्रम पर रखा गया. टिकाऊ उपभोग और जीवनशैलियों को उपभोग और उत्पादन प्रणालियों के नज़रिए से देखे जाने की दरकार है, जिसमें संसाधन के दोहन, विनिर्माण और प्रॉसेसिंग, उपभोक्ताओं द्वारा किए गए प्रयोग और निबटारे को शामिल किया गया है (चित्र 1 देखिए). व्यापक रूप से संसाधन मूल्य श्रृंखला में ऊपरी प्रवाह वाले यानी अपस्ट्रीम और निचली प्रवाह वाले यानी डाउनस्ट्रीम समूह शामिल होते हैं. इसके बावजूद टिकाऊ उपभोग और उत्पादन पर मुख्यधारा की रूपरेखाएं (SDG 12 समेत) संसाधनों के उपभोग और उत्पादन प्रणालियों के डाउनस्ट्रीम समूहों को जोड़ने में नाकाम रहते हैं. ख़ासतौर से जीवनशैली से जुड़े विकल्पों के मामलों में ये बात ज़ोरशोर से लागू होती है.
चित्र 1: उपभोग और उत्पादन प्रणालियों में टिकाऊ जीवनशैलियां
2021 में ग्लासगो में यूएन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ (COP26) के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पर्यावरण के लिए जीवनशैली- यानी LiFE आंदोलन’ का विचार सामने रखा था. इसके तहत टिकाऊ विकल्पों (GOI 2022) की वक़ालत के ज़रिए “लापरवाह और विध्वंसकारी उपभोग” की बजाए “सचेत रूप से और सोच-विचार कर प्रयोग करने” पर ज़ोर दिया गया है. भारत ने 2022 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (NDCs) का तरोताज़ा स्वरूप पेश किया. इसका लक्ष्य “परंपराओं के साथ-साथ संरक्षण और संयम पर आधारित स्वस्थ और सतत जीवन पद्धति को आगे बढ़ाना और उस पर ज़ोर देते हुए ‘पर्यावरण के लिए जीवनशैली’ यानी LiFE के लिए जन आंदोलन” को जलवायु परिवर्तन से लड़ने का अहम औज़ार बनाना है (GOI, 2022). भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग के ‘मिशन LiFE’ के मुताबिक पर्यावरणीय मसलों के निपटारे की दिशा में नीतिगत और नियामक उपायों के साथ-साथ सामूहिक कार्रवाई की ताक़त को एकजुट करना निहायत ज़रूरी है. इससे पेचीदा समस्याओं का हल हो सकता है (NITI, 2022).
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट 2019 में सामने आई थी. इसके मुताबिक मानवीय गतिविधियों के चलते पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैसों (GHG) की सकल शुद्ध मात्रा में से तक़रीबन 34 प्रतिशत (20 GtCO2-eq), ऊर्जा आपूर्ति क्षेत्रों से निकलता है. दूसरी ओर उद्योग से 24 प्रतिशत (14 GtCO2-eq), कृषि, वानिकी और भूमि के अन्य इस्तेमाल या AFOLU से 22 प्रतिशत (13 GtCO2-eq), परिवहन से 15 प्रतिशत (8.7 GtCO2-eq) और इमारतों से 6 प्रतिशत (3.3 GtCO2-eq) GHG का उत्सर्जन होता है. उत्सर्जनों का ज़्यादातर हिस्सा उद्योग और बिजली निर्माण जैसे ऊपरी प्रवाह (अपस्ट्रीम) वाले समूहों से सामने आता है.
ऐसे में उपभोग और उत्पादन प्रणालियों (जैसे जीवनशैलियां) में डाउनस्ट्रीम या बाद के प्रवाह वाली कार्रवाइयों में बदलावों से अपस्ट्रीम समूहों में परिवर्तन की अगुवाई किया जाना और ज़रूरी हो जाता है. लिहाज़ा एक वैश्विक LiFE अभियान को महज़ व्यक्तिगत बर्तावों में परिवर्तन तक सीमित नहीं रखा जा सकता. ज़ाहिर तौर पर वैश्विक रूप से मानकों और संस्थानों का कायापलट करने के लिए आवश्यक न्यूनतम क़वायद निहायत ज़रूरी है. LiFE के “अंतरराष्ट्रीयकरण” का मतलब है सभी स्टेकहोल्डर्स द्वारा सामूहिक कार्रवाई. इनमें तमाम सरकारें, अंतर-सरकारी संगठन, बाज़ार, समुदाय और व्यक्ति-विशेष शामिल हैं.
दुनिया भर में टिकाऊ जीवनशैलियों पर मानकों को बढ़ावा देने में G20 निर्णायक भूमिका निभा सकता है. अब तक अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों की तरह G20 की परिचर्चाओं में भी व्यक्तिगत बर्तावों की बजाए संसाधन की दक्षता और टिकाऊ उपभोग और उत्पादन प्रणालियों को लेकर सर्कुलर अर्थव्यस्था वाले परिप्रेक्ष्यों पर ही ज़ोर दिया गया है. 2022 में बाली में G20 नेताओं के घोषणा पत्र में पहली बार जीवनशैलियों के साथ-साथ संसाधन दक्षता और सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर विचार किया गया.
टेबल 1. उपभोग और उत्पादन प्रणालियों पर G20 में अहम घटनाक्रम
2017 | हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन से G20 नेताओं का घोषणापत्र | G20 संसाधन दक्षता संवाद |
2019 | ओसाका शिखर सम्मेलन में G20 नेताओं का घोषणापत्र | सर्कुलर अर्थव्यवस्था, कच्चे मालों का टिकाऊ प्रबंधन, 3Rs (रिड्यूस, रीयूज़ और रिसायकल) ढांचा |
2020 | रियाद शिखर सम्मेलन से G20 नेताओं का घोषणापत्र | सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था (CCE) प्लेटफ़ॉर्म और 4Rs (रिड्यूस, रीयूज़, रिसायकल, रिकवर) ढांचा |
2021 | रोम शिखर सम्मेलन से G20 नेताओं का घोषणापत्र | जलवायु परिवर्तन की रोकथाम और उसके हिसाब से ढलने की क़वायदों में सर्कुलर अर्थव्यवस्था का दृष्टिकोण |
2022 | बाली शिखर सम्मेलन से G20 नेताओं का घोषणापत्र | जीवनशैलियां, संसाधन दक्षता और सर्कुलर अर्थव्यवस्था |
स्रोत: G20 नतीजा दस्तावेज़
दुनिया के तमाम देशों के बीच संयुक्त और प्रति-व्यक्ति उत्सर्जनों के स्तर में बदलाव होता रहता है. ऐसे में टिकाऊ जीवनशैली पर विचार करते वक़्त न्यायसंगत उपभोग और न्यूनतम स्तर से भी कम उपभोग से जुड़े सवाल अहम हो जाते हैं. भारत, इंडोनेशिया और ब्राज़ील जैसे G20 के देशों में कार्बन डाइऑक्साइड के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन का स्तर वैश्विक औसत से नीचे है (चित्र 2 देखिए). जबकि अकेले अमेरिका, EU-27, और चीन, ग्रीन हाउस गैसों के संयुक्त उत्सर्जनों में 55 प्रतिशत से भी ज़्यादा हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं (चित्र 3 देखिए).
चित्र 2: 2021 में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (टन प्रति व्यक्ति)
स्रोत: oruworldindata.org का प्रयोग कर लेखक के ख़ुद के
चित्र 3: G20 देशों और EU-27 के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का मिला-जुला उत्सर्जन (अरब टन), 1850-2020
स्रोत: oruworldindata.org का प्रयोग कर लेखक के ख़ुद के
2022 में भारत के द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) ने G20 देशों और यूरोपीय संघ में जीवनशैलियों और उपभोग की स्थिति के आकलन के लिए उपभोग क्षेत्रों में संयुक्त सूचकांक और संकेतक तैयार किए. उपभोग के क्षेत्रों में खान-पान, परिवहन, और रिहाइशी और कचरा प्रबंधन शामिल किए गए (TERI, 2022). चित्र 4 में उसी सूचकांक को ग्राफ़िक के ज़रिए दर्शाया गया है: इसमें किसी देश का अंक या स्कोर जितना ज़्यादा होगा, उतना ही उस देश या इकाई की प्रति व्यक्ति उपभोग दर कम होगी. उपभोग सूचकांक को आगे दिए गए संकेतकों के आधार पर तैयार किया जाता है: परिवहन क्षेत्र में अंतिम तौर पर ऊर्जा का सकल उपभोग (TJ/capita) [परिवहन]; मांस और डेयरी उत्पादन (प्रति व्यक्ति टन) [खान-पान]; रिहाइशी क्षेत्र में अंतिम तौर पर ऊर्जा का कुल उपभोग (TJ/capita) [इमारतें]; और प्लास्टिक कचरा निर्माण (प्रति व्यक्ति टन) [कचरा].
चित्र 4 और टेबल 2: G20 देशों और यूरोपीय संघ के लिए जीवनशैली और उपभोग सूचकांक, 2022
स्रोत: टेरी (2022) [इस्तेमाल किए गए डेटा स्रोत: आवर वर्ल्ड इन डेटा (2022), IEA (2022); और जैमबेक आदि (2015)]
Country/ Entity | Meat and dairy production | TFC in transport sector | TFC in residential sector | Plastic waste generation | Sustainable Consumption Index | Sustainable Consumption Index Score |
India | 1.00 | 1.00 | 1.00 | 1.00 | 1.00 | 100 |
Indonesia | 0.96 | 0.93 | 1.00 | 0.90 | 0.95 | 95 |
Mexico | 0.72 | 0.83 | 0.98 | 0.83 | 0.84 | 84 |
China | 0.69 | 0.92 | 0.85 | 0.77 | 0.81 | 81 |
Turkey | 0.79 | 0.86 | 0.84 | 0.58 | 0.77 | 77 |
Japan | 0.86 | 0.75 | 0.75 | 0.67 | 0.76 | 76 |
South Africa | 0.72 | 0.86 | 0.89 | 0.52 | 0.75 | 75 |
South Korea | 0.76 | 0.66 | 0.67 | 0.79 | 0.72 | 72 |
Brazil | 0.26 | 0.82 | 0.99 | 0.68 | 0.69 | 69 |
European Union | 0.51 | 0.88 | 0.88 | 0.47 | 0.68 | 68 |
Italy | 0.70 | 0.72 | 0.54 | 0.74 | 0.68 | 68 |
Saudi Arabia | 0.91 | 0.33 | 0.70 | 0.70 | 0.66 | 66 |
Argentina | 0.29 | 0.83 | 0.78 | 0.64 | 0.63 | 63 |
United Kingdom | 0.70 | 0.71 | 0.49 | 0.58 | 0.62 | 62 |
France | 0.55 | 0.67 | 0.47 | 0.61 | 0.58 | 58 |
Russia | 0.63 | 0.68 | 0.00 | 0.79 | 0.52 | 52 |
Australia | 0.00 | 0.32 | 0.65 | 0.79 | 0.44 | 44 |
Germany | 0.49 | 0.68 | 0.36 | 0.00 | 0.38 | 38 |
Canada | 0.30 | 0.06 | 0.05 | 0.83 | 0.31 | 31 |
United States | 0.24 | 0.00 | 0.19 | 0.32 | 0.19 | 19 |
सूचकांक में प्रदर्शित अंक (स्कोर) जीवनशैलियों और उपभोग से जुड़े रुझानों की निर्देशात्मक दिशा का संकेत नहीं करते, बल्कि ये महज़ उपभोग के मौजूदा स्तरों को दर्शाते हैं. डेटा की उपलब्धता से जुड़े कारकों की वजह से भी इसके मीट्रिक्स में रुकावटें आ जाती है, ख़ासतौर से उपभोक्ता के व्यवहार से जुड़े संकेतकों के संदर्भ में ऐसी परिस्थिति सामने आती है.
विकासशील देशों को मानव विकास और कल्याण के लिए बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं का प्रावधान करने की ज़रूरत होती है. लिहाज़ा न्यायसंगत और टिकाऊ जीवनशैलियों की दोहरी चुनौतियों को ध्यान में रखकर अंतरराष्ट्रीय मानकों को बढ़ावा देना ज़रूरी हो जाता है.
LiFE, सतत उपभोग और न्यायसंगत हरित परिवर्तनों में उपकरणों की चार श्रेणियां महत्वपूर्ण हैं: अंतरराष्ट्रीय मानक, नीतिगत उपकरण, बाज़ार उपकरण और सामाजिक उपकरण. ये चार श्रेणियां विशिष्ट रूप से अलग-अलग नहीं हैं और इनके एक-दूसरे के साथ अंतर-संपर्क हो सकते हैं.
ये कार्यक्रम अनुभव पर आधारित अध्ययनों को ज़रूरी बना देता है ताकि उपभोग के रुझानों की माप करने में मदद मिल सके.
अंतरराष्ट्रीय मानक: अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों में सरकारों और ग़ैर-सरकारी किरदारों के लिए उपयुक्त बर्ताव को लेकर व्यापक तौर पर साझा की गई उम्मीदें. वैसे तो ये मानक ग़ैर-बाध्यकारी रूपरेखाओं पर आधारित होते हैं, लेकिन ये देशों और तमाम स्टेकहोल्डर्स में, और उनके बीच क्रमवार रूप से प्रभावों और नीतिगत बदलावों की शुरुआत कर सकते हैं.
नीतिगत उपकरण: सरकारें नीतिगत उपकरणों का तब उपयोग करती हैं जब उनके पास मसलों की अच्छी समझ के साथ-साथ हस्तक्षेप करने की वैधानिक शक्ति मौजूद हो. नीतिगत उपकरणों में नीति की रूपरेखाएं और लक्ष्य, नियामक और वैधानिक उपकरण, सार्वजनिक वित्त के उपकरण, कुछ निश्चित मानकों को अनिवार्य बनाना, कार्यक्रम संबंधी हस्तक्षेप, ख़रीद और संग्रहण, राजकोषीय उपकरण (टैक्स और सब्सिडियां) और अधिकारों पर आधारित रुख जैसे ‘राइट टू रिपेयर’ शामिल हैं.[i]
बाज़ार उपकरण: ये उपकरण बाज़ारों की क्षमताओं के उपयोग पर ज़ोर लगाते हैं. इस कड़ी में ना सिर्फ़ बाहरी कारकों को अपने भीतर जोड़ने बल्कि नए उत्पादों और सेवाओं का संचालन करने वाले नवाचारों और कारोबारी मॉ़डलों को भी बढ़ावा दिया जाता है. इसके अलावा उत्तरदायी कचरा प्रबंधन और पर्यावरणीय रूप से नुक़सानदेह उत्पादों और सेवाओं को दूर करने पर भी ज़ोर दिया जाता है. इसमें जवाबदेह विज्ञापन, कार्बन बाज़ार, लेबलिंग, उत्पादकों की विस्तारित ज़िम्मेदारी और नए उत्पाद और सेवाएं शामिल हैं.
सामाजिक उपकरण: सामाजिक उपकरणों का लक्ष्य उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता पैदा करना और उनकी क्षमता का निर्माण करना है. किसी उत्पाद या सेवा के बारे में सूचना देने वाले प्रावधानों के ज़रिए इस क़वायद को आगे बढ़ाया जाता है. इन सूचनाओं में उत्पाद की गुणवत्ता और सर्टिफ़िकेशन शामिल हैं, जिनसे उपभोक्ता व्यवहार प्रभावित होते हैं. सामाजिक उपकरणों में आत्म-नियमन यानी सेल्फ़-रेगुलेशन के साथ-साथ व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर नीचे से ऊपर की प्रयोग किेए जाने वाले उपकरण (जैसे कार पूलिंग) शामिल होते हैं.
G20, टिकाऊ जीवनशैलियों पर मानक तैयार करने के साथ-साथ अन्य तीन उपकरणों के ज़रिए कार्रवाइयों की सूचना देने में अहम भूमिका अदा कर सकता है. सबूत के प्रयोग और बेहतर तौर-तरीक़ों के आदान-प्रदान के ज़रिए इसे अंजाम दिया जा सकता है. G20 के माध्यम से समानता और जलवायु कार्रवाई की ज़रूरतों को समझते हुए भारत टिकाऊ जीवनशैलियों के “अंतरराष्ट्रीयकरण” में अगुवा भूमिका निभा सकता है. न्यायसंगत, हरित और निष्पक्ष परिवर्तनकारी बदलावों से जुड़े इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए G20 का नेतृत्व सामूहिक कार्रवाइयों में मज़बूती लाने पर ज़ोर दे सकता है.
LiFE अभियान के फलने-फूलने और विकास के न्यायसंगत हरित बदलावों में इसके साथ जुड़ने के लिए G20 के परिणाम तीन सिद्धांतों पर टिक सकते हैं:
सिद्धांत 1: समानता और ‘साझा लेकिन अलग-अलग ज़िम्मेदारियों’ के साथ-साथ अपनी-अपनी क्षमताओं के सिद्धांतों पर आधारित टिकाऊ जीवनशैलियों के अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना.
सिद्धांत 2: सामूहिक कार्रवाई के रुख़ों की बुनियाद पर परिणामों की कल्पना की जाती है. इसके लिए उन तमाम उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो टिकाऊ जीवनशैलियों के ज़रिए समावेशी और न्यायसंगत हरित बदलावों और समावेश से जुड़े अनुकूल इकोसिस्टम को बढ़ावा देते हैं.
सिद्धांत 3: नतीजे समग्र रूप से उपभोग और उत्पादन प्रणालियों के विचारों पर आधारित होते हैं ताकि सतत जीवनशैलियां संसाधन मूल्य श्रृंखलाओं के हरेक खंड में नवाचारों की अगुवाई कर सकें.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में G20 के लिए की गई सिफ़ारिशों का ब्योरा नीचे है:
प्रस्ताव 1: LiFEMET (पर्यावरण मीट्रिक्स के लिए जीवनशैली) कार्यक्रम की स्थापना: वैसे तो G20 के कई देश संसाधन दक्षता और सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर कार्य योजनाओं की रूपरेखाएं तैयार कर रहे हैं, लेकिन सतत जीवनशैलियों के विभिन्न पहलुओं पर तवज्जो देना भी ज़रूरी है. इसके साथ-साथ टिकाऊ उपभोग और उत्पादन को बढ़ावा देने की भी दरकार होती है. इस दिशा में पहला क़दम एक ऐसी पहल के तौर पर सामने आ सकता है जो संकेतकों की रूपरेखा को परिभाषित करे; साथ ही न्यायसंगत और टिकाऊ जीवनशैलियों के लिए मीट्रिक्स भी तय करे. इस ब्रीफ़ में जीवनशैलियों और उपभोग से जुड़े TERI सूचकांक की चर्चा हो चुकी है. ये इस प्रक्रिया की वक़ालत की दिशा में शुरुआती क़दम है. बहरहाल टिकाऊ उत्पादन और उपभोग के लिए जीवनशैलियों को बढ़ावा देने वाले उपकरणों और मीट्रिक्स की स्थापना में अभी और काम किए जाने की दरकार है.
ये कार्यक्रम अनुभव पर आधारित अध्ययनों को ज़रूरी बना देता है ताकि उपभोग के रुझानों की माप करने में मदद मिल सके. सांख्यिकीय एजेंसियों द्वारा जुटाए गए उपभोग से जुड़े आकड़ों को जमा करने के साथ-साथ बाज़ार शोध संगठनों जैसी निजी इकाइयों से हासिल डेटा की भी मदद ली जा सकती है. वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग रुझानों के तमाम प्रकारों पर एक समग्र प्रायोगिक डेटाबेस तैयार किए जाने की दरकार है. वस्तुओं और सेवाओं के जीवन-चक्र से जुड़े प्रभावों का आकलन करते वक़्त मीट्रिक्स को संपूर्ण प्रणाली विश्लेषण पर विचार करना चाहिए.
मिसाल के तौर पर खाद्य पदार्थों के संदर्भ में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जनों या पानी के प्रयोग की पड़ताल करते वक़्त सिंचाई, ऊर्वरक उत्पादन और दूसरे कच्चे मालों में ऊर्जा और पानी के इस्तेमाल पर भी ग़ौर किए जाने की ज़रूरत है. ये पहल SDG 12 संकेतकों की भी वक़ालत कर सकता है ताकि इसमें निचले प्रवाह वाले डाउनस्ट्रीम संकेतकों को भी शामिल किया जा सके. ख़ासतौर से जब व्यक्तिगत उपभोक्ताओं की बात आए तो इको-लेबल्स जैसे उपकरणों के साथ इस तरह की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है.
प्रस्ताव 2: टिकाऊ जीवनशैलियों पर वैश्विक भागीदारी (GPSL) की शुरुआत: ऐसी भागीदारी G20 के सदस्य देशों और अन्य राष्ट्रों के बीच बेहतरीन तौर-तरीक़े साझा करने के मंच के तौर पर काम कर सकती है. तमाम नीतियों, सामाजिक और बाज़ार उपकरणों के मामलों में ऐसी रणनीति अपनाई जा सकती है. ये मंच G20 के साथ-साथ अन्य देशों के आपसी जुड़ाव तैयार करने में सक्षम होना चाहिए. इससे उपभोक्ता समूहों, सरकारों, युवाओं, शोध संस्थानों और निजी क्षेत्र के साथ मल्टीस्टेकहोल्डर जुड़ाव तैयार किए जा सकेंगे. इसमें विज्ञापन शामिल है क्योंकि वाणिज्यिक विज्ञापनों के दबदबे वाले दायरे में ज़िम्मेदार विज्ञापन और सार्वजनिक तौर पर जागरूकता अभियानों पर ज़ोर दिए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा पारंपरिक ज्ञान की भूमिका भी अहम है.
कचरा प्रबंधन से जुड़े बेहतर तौर-तरीक़े, आपूर्ति श्रृंखला में सुधार, सार्वजनिक अभियान और अधिकारों पर आधारित उपकरण भी साझा किए जा सकते हैं, और उनके दस्तावेज़ तैयार किए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर कचरा प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीक़े साझा किए जा सकते हैं. साथ ही उत्पादकों की विस्तारित ज़िम्मेदारी जैसे उपायों का भी आदान-प्रदान किया जा सकता है. मसलन, जीवन-चक्र रुख़ों में रचे-बसे नीतिगत औज़ार, जिसमें कोई उत्पादक किसी उत्पाद को रिसायकल करने या उसके निपटारे की ज़िम्मेदारी लेता है. दक्षिण कोरिया के अनुभवों से भी सबक़ लिए जा सकते हैं. दक्षिण कोरिया ने 1995 में मात्रा-आधारित कचरा शुल्क (VBWF) की शुरुआत की थी. इसके तहत लोगों से कचरा निबटारा शुल्क लिया जाता है. उनके द्वारा रफ़ा-दफ़ा किए जाने वाले कचरे की तादाद के हिसाब से इस शुल्क की वसूली होती है (MOEK 2003). केरल के अलपुझा में शहरी स्थानीय निकाय 2012 से ही ‘स्वच्छ घर, स्वच्छ शहर’ परियोजना पर अमल करता आ रहा है. इसके तहत श्रोत से ही भीगे कचरे को अलग-थलग करने और उनके ट्रीटमेंट की क़वायद को आगे बढ़ाया जा रहा है (अग्रवाल 2017). इसी तरह दक्षिण अफ़्रीका का ‘गुड ग्रीन डीड्स’ अभियान लोगों के रुखों और बर्तावों में बदलाव के प्रयास कर रहा है. इसके तहत लोगों को कचरे के ज़िम्मेदार प्रबंधन और आसपड़ोस को स्वच्छ, हरित और सुरक्षित बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाता है (DOEA 2019).
भारत में उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ‘राइट टू रिपेयर’ पर समग्र ढांचे के विकास के इरादे का एलान किया है (DOCA 2022). ग्लोबल एनवॉयरमेंट आउटलुक में प्रयोग किया गया 9R ढांचा ना सिर्फ़ उपभोक्ताओं बल्कि उद्योग के स्टेकहोल्डर्स और नीति-निर्माताओं के लिए जुड़ावों का बेहतर प्रवेश बिंदु (entry point) बन सकता है (UNEP 2019). ‘9Rs’ के विचार में इनकार करना, पुनर्विचार करना (संरचना), कटौती, दोबारा इस्तेमाल, मरम्मत, नवीनीकरण, दोबारा विनिर्माण, पुनरुत्पादन, रिसायकल और रिकवर शामिल हैं.
G20 समूह संयुक्त राष्ट्र महासभा के ज़रिए आगे भी जीवनशैलियों के अंतरराष्ट्रीयकरण की वक़ालत कर सकता है. मिसाल के तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनिवार्य रिपोर्ट के माध्यम से इस क़वायद को आगे बढ़ाया जा सकता है. न्यायसंगत और टिकाऊ जीवनशैलियों को उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच – सतत विकास लक्ष्यों – के विषयवस्तु के तौर पर भी देखा जा सकता है. ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील दुनिया) के नज़रिए से जीवनशैलियों पर चर्चा करते वक्त जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ख़ुद को ढालने और रोकथाम से जुड़े उपायों को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है. UNFCCC के मातहत द सब्सिडियरी बॉडी फ़ॉर साइंटिफ़िक एंड टेक्नोलॉजिकल एडवाइस (SBSTA) को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल और रोकथाम के हिसाब से ज़रूरी जीवनशैलियों पर तकनीकी रिपोर्ट तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
G20 समूह संयुक्त राष्ट्र महासभा के ज़रिए आगे भी जीवनशैलियों के अंतरराष्ट्रीयकरण की वक़ालत कर सकता है. मिसाल के तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनिवार्य रिपोर्ट के माध्यम से इस क़वायद को आगे बढ़ाया जा सकता है.
मानकों और संस्थाओं को बदलने के लिए तमाम किरदारों की ओर से ज़रूरी मात्रा में समर्थन और मदद दिया जाना निहायत ज़रूरी है. स्टेकहोल्डरों के समर्थन के साथ-साथ बेहतरीन तौर-तरीक़ों के सबूत और पर्याप्त मात्रा में डेटा की भी दरकार है. देशों में जागरूक तरीक़े से अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसार के साथ-साथ नीतियों और अभ्यासों के लिए ये बेहद ज़रूरी है. पर्यावरण को लेकर सतत और टिकाऊ जीवनशैलियों के अंतरराष्ट्रीयकरण में G20 नेतृत्वकारी भूमिका अपना सकता है.
[i] ‘राइट टू रिपेयर’ सरकार द्वारा पारित एक क़ानून है. इसका मक़सद उपभोक्ताओं को अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मती या सुधार कराने की स्वतंत्रता देना है. हालांकि अतीत में उपभोक्ताओं को सिर्फ़ विनिर्माताओं द्वारा उपलब्ध करवाई गई सेवाओं का ही इस्तेमाल करना होता था. कई उत्पाद विनिर्माताओं का मरम्मती प्रक्रियाओं पर एकाधिकार है, जिससे उपभोक्ताओं के ‘चयन के अधिकार’ का उल्लंघन होता है. योजनाबद्ध रूप से उत्पादों को प्रयोग या प्रचलन से बाहर करने की नीयत से विनिर्माता सीमित जीवनकाल के हिसाब से ही उत्पादों की संरचना बनाते हैं. इससे कचरे (ई-कचरा समेत) में बढ़ोतरी होती है. साथ ही उपभोक्ताओं को नए उत्पाद ख़रीदने के लिए मजबूरन ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता है. मरम्मती की सुविधा को सुविधाजनक बनाने के लिए विनिर्माताओं के ऊपर मैनुअल्स, स्कीमेटिक्स और सॉफ़्टवेयर अपडेट्स की पूरी जानकारी और पहुंच उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी डाली गई है. (DOCA 2022).