सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ज़रूरी है साउथ-साउथ सहयोग

Manjyot Kaur Ahluwalia | Carolina Urmeneta | Nicolas Diaz | Chandra Bhusan | Marcelo Mena

टास्क फ़ोर्स 3: LiFE, रेज़िलिएंस, एंड वैल्यूज़ फ़ॉर वेल-बींग


सारांश

जैसे-जैसे विकासशील और अल्प-विकसित देशों (ग्लोबल साउथ) में GDP और जनसंख्या में बढ़ोतरी हो रही है, ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन भी बढ़ता जा रहा है. सार्वजनिक स्तर पर ठोस कचरों से पैदा होने वाले ग्रीनहाउस गैसों में साल 2050 तक 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने का अनुमान है. प्राथमिक रूप से खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी (FLW) के चलते GHG में ऐसे इज़ाफ़े की आशंका जताई गई है. इन देशों में स्थानीय निकायों के स्तर पर कचरे का निर्माण, कटाई के बाद फ़सल की तैयारी के चरण में होता है. इसे खुले मैदानों या गड्ढों (open dumps) या विशाल कूड़ेदानों (landfills) में डाल दिया जाता है. अक्सर इनमें आग भी लगा दी जाती है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या और विकराल हो जाती है. बहरहाल, कूड़ा प्रबंधन को लेकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से बेहतरीन तौर-तरीक़े उभरकर सामने आ रहे हैं, जिन्हें G20 के देश अपने यहां अपना सकते हैं. कचरे और जलवायु परिवर्तन की दोहरी समस्या के निपटारे में ऐसी पहल मददगार साबित हो सकती है. भारत मिशन LiFE के ज़रिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों में सहयोग और सहभागिता को बढ़ावा देने के प्रयासों की अगुवाई कर रहा है. उसने स्वच्छ भारत मिशन के तहत इस दिशा में काफ़ी प्रगति भी की है. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी पर क्षमता विकास और वित्तीय गोलबंदी के लिए ग्लोबल साउथ के देशों में जानकारी का आदान-प्रदान करने वाले तंत्र (South-South knowledge exchange mechanism) के गठन का प्रस्ताव किया गया है. इस लक्ष्य की ओर सहायता के समर्पित ढांचों या सुविधाओं के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. इसका मक़सद सतत विकास लक्ष्य यानी SDG 12.3 और संयुक्त राष्ट्र जैव-विविधता समझौते की दिशा में कामयाबी हासिल करने में योगदान देना है. ग़ौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र जैव-विविधता समझौते में प्रति व्यक्ति खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी को साल 2030 तक आधा करने का लक्ष्य रखा गया है.

  1. चुनौती

लैटिन अमेरिका, कैरेबियाई द्वीपसमूह, दक्षिण एशिया, सब-सहारा अफ़्रीका, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीकी क्षेत्र में फैले मध्यम और निम्न आय वाले देशों की GDP और जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में वैश्विक स्तर पर कुल कचरा निर्माण 2050 तक बढ़कर 3.4 अरब टन तक पहुंच जाने का अनुमान है. 2016 के मुक़ाबले ये 69 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.[i] सब-सहारा अफ़्रीका में कचरा निर्माण में तीन गुणा बढ़ोतरी होने के आसार हैं, जबकि दक्षिण एशिया (सबसे बड़ा कचरा उत्पादक क्षेत्र) में इसमें दोगुनी बढ़ोतरी देखी जा सकती है.

कचरे के प्रबंधन में स्थानीय सरकारें अगुवा भूमिका में होती हैं. तक़रीबन 50 प्रतिशत कचरा अनियमित कूड़ेदानों और अनियंत्रित लैंडफ़िल्स में डाल दिया जा रहा है. कई बार तो उनमें खुले में आग लगा दी जाती है. निम्न-आय वाले देशों में ये अनुपात बढ़कर 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो जाता है. कचरे के लचर प्रबंधन से पानी और वायु प्रदूषण फैलता है. जिन इलाक़ों में कचरा प्रबंधन से जुड़ी गतिविधियों का संचालन होता है, उनके आस-पास रहने वाले लोगों के लिए ये स्वच्छता से जुड़ा बड़ा खतरा बन जाता है. ये अल्प-आयु वाले जलवायु प्रदूषकों (SLCPs) के सबसे प्रासंगिक स्रोतों में से एक है, जो (10 से 20 साल के) अल्प से मध्यम कालखंड में जलवायु प्रतिबद्धताओं को ख़तरा पहुंचा रहा है.

सार्वजनिक स्तर पर ठोस कूड़े में सबसे बड़ा हिस्सा खाद्य पदार्थों के नुक़सान और कचरे से आता है. ख़ासतौर से निम्न-आय वाले देशों के कुल कचरे में आर्गेनिक तत्वों का हिस्सा 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा होता है. दुनिया में सालाना कुल खाद्य उत्पादन के क़रीब 39 प्रतिशत हिस्से का या तो नुक़सान हो जाता है या वो बर्बाद चला जाता है.[ii] निम्न-आय वाले देशों में खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी (FLW) आम तौर पर उत्पादन, कटाई के बाद फ़सल की तैयारी, भंडारण और प्रॉसेसिंग के चरणों में होती है. ऐसा प्रमुख रूप से प्रबंधकीय और तकनीकी मोर्चे पर सीमित क्षमताओं के चलते होता है (काज़ा आदि 2018). लिहाज़ा इन सीमाओं का निपटारा करके FLW में कमी लाना और समूची मूल्य श्रृंखला में समाधान मुहैया कराना अहम हो जाता है. ताज़ा अनुमानों के मुताबिक सार्वजनिक ठोस कचरे से पैदा होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में साल 2050 तक 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की आशंका है.[iii] इससे जलवायु परिवर्तन का संकट और विकराल हो सकता है. दुनिया के कई इलाक़ों में खाद्य असुरक्षा और भुखमरी बढ़ती जा रही है. तक़रीबन 67 करोड़ लोगों को अपर्याप्त ही भोजन नसीब हो पा रहा है.[iv] बदक़िस्मती से खाद्य पदार्थों का ऐसा नुक़सान और बर्बादी, भुखमरी के इस संकट के बीच देखने को मिल रहा है.

कचरा प्रबंधन की ज़िम्मेदारी शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) पर होती है. इन ज़िम्मेदारियों में कूड़ा इकट्ठा करना, उनकी छंटाई करना, उन्हें दूसरी जगह पहुंचाना, प्रबंधन और अपने क्षेत्राधिकारों में कचरे का निपटारा करना आदि शामिल हैं. हालांकि शहरी निकाय आम तौर पर कर्मचारियों, संसाधनों, तकनीकी क्षमताओं और बुनियादी ढांचे के अभाव से जूझ रहे होते हैं. ये मसले कचरा प्रबंधन को लेकर सर्कुलर अर्थव्यवस्था वाले दृष्टिकोण के रास्ते में रोड़ा अटकाने का काम करते हैं. ग़ौरतलब है कि सर्कुलर अर्थव्यवस्था में कचरा प्रबंधन की क़वायद में कूड़ा घरों में कचरा डाले जाने या उन्हें जलाए जाने से पहले रोकथाम, छंटाई और परिवर्तन (diversion) पर ज़ोर दिया जाता है. हाशिए पर रह रहे समुदायों पर ऐतिहासिक रूप से पड़ने वाले प्रभावों (जिनका असर अब भी बदस्तूर जारी है) के चलते कचरा प्रबंधन से जुड़ी ऐसी अक्षमताएं और संगीन हो जाती हैं. विरासती तौर पर बड़ी तादाद में कूड़े के मैदानों की मौजूदगी हालात को विकट बना रही है. स्वच्छता से जुड़ी चिंताओं के चलते इनको बंद किए जाने के बावजूद ये स्वास्थ्य के मोर्चे पर ख़तरे पैदा करते रहते हैं. जल धाराओं और भू-जल से जुड़े प्रदूषण के कारण ऐसा होता है.

ख़तरे में जलवायु प्रणाली

कचरा क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लेकर चिंता लगातार बढ़ती जा रही है. मिथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो 20 साल की मियाद में कार्बन डाइऑक्साइड के मुक़ाबले 86 गुणा ज़्यादा ताक़तवर है. इसके उत्सर्जन को वैश्विक तापमान में आज तक हुई बढ़ोतरी के तक़रीबन आधे हिस्से के लिए ज़िम्मेदार बताया जाता है (IPCC 2023). मानवीय गतिविधियों से होने वाले मिथेन उत्सर्जनों के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से के पीछे कचरा क्षेत्र का हाथ है. ये उत्सर्जन स्थानीय प्रदूषण के भी स्रोत हैं. ओज़ोन के निर्माण और बदबूदार गैसों के छूटने से पैदा हुई असुविधाओं के चलते ऐसा होता है.[v] मिथेन का जीवनकाल तक़रीबन 20 वर्षों का होता है, जिससे इसकी रोकथाम तेज़ रफ़्तार वाली और सस्ती रणनीति बन जाती है. ये वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने (जैसा पेरिस समझौते में तय किया गया था) के वैश्विक प्रयासों में योगदान देगा.[vi]

मौजूदा वक़्त में वैश्विक स्तर पर कचरा प्रबंधन में सुधार लाने और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनों को लक्षित करने के लिए देशों के बीच आधा-अधूरा समन्वय दिखाई दे रहा है. ये अंतर ग्लोबल साउथ के देशों में ख़ासतौर से महसूस किया जा रहा है. इन देशों में कचरा प्रबंधन को लेकर चुनौतियां ज़्यादा चिंताजनक हैं और बदस्तूर जारी हैं. जलवायु और स्वच्छ हवा गठजोड़ (CCAC) जैसे वैश्विक कार्यक्रमों ने देशों के बीच जागरूकता और प्रयास बढ़ाने में योगदान दिया है. हालांकि कचरे पर 2030 के लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए इनमें और तेज़ी लानी होगी. इस दायरे में SDG 12.3, पेरिस समझौता और संयुक्त राष्ट्र जैव-विविधता समझौता शामिल हैं.

एक नया अवसर

खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी (FLW) के प्रति सर्कुलर अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण से बहु-आयामी फ़ायदे हासिल किए जा सकते हैं. पर्यावरण संरक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, संसाधन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन रोकथाम के सिलसिले में ऐसे लाभ पाए जा सकते हैं. जलवायु परिवर्तन में रोकथाम से जुड़े फ़ायदे आज बेहद अहम हैं. विश्व भर में 2.25 अरब टन सार्वजनिक कचरे के लिए लक्षित वित्त का ज़ोर, मुख्य रूप से जलाने और कचराघरों पर रहा है. इनका जलवायु परिवर्तन के रोकथाम और पर्यावरण पर अनिश्चित प्रभाव रहा है.[vii] (रोसेन आदि 2022). कचरे का कुप्रबंधन और उससे उत्पन्न उत्सर्जन, जलवायु के मोर्चे पर तत्काल कार्रवाई को विकास स्थगन की मांगों के साथ जोड़ता है. इनके अलावा पर्यावरणीय मोर्चे पर बदस्तूर जारी अन्याय और रोज़गार तैयार करने के अवसरों को नज़रअंदाज़ करने को भी इसी सिलसिले से जोड़ा गया है. ऐसे में उन देशों में मूल्य तैयार किया जाना चाहिए जिन्हें इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है.

विकास और जलवायु कार्रवाई के रास्ते में कचरे से कई तरह के ख़तरे पैदा होते हैं. कचरा प्रबंधन का परिदृश्य, अवसरों और ख़तरों को लेकर बढ़ती जागरूकता के चलते तेज़ी से बदल रहा है. ग्लोबल मिथेन हब (GMH) कचरे के क्षेत्र में कायाकल्प करने की वैश्विक क़वायदों में जुटे तमाम किरदारों में अग्रणी है. कचरे से संबंधित उत्सर्जनों की रोकथाम के लिए कोष मुहैया कराना इसका लक्ष्य है. साथ ही ये स्वास्थ्य, आजीविका और समुदायों के सम्मान में सुधार में सीधे रूप से मदद भी मुहैया कराती है.

उधर, पर्यावरण, टिकाऊपन और प्रौद्योगिकी पर अंतरराष्ट्रीय मंच (iFOREST) ग्लोबल साउथ में कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में शोध और नवाचार से जुड़ा अग्रणी प्रयास है. कचरा भंडार के लिए कार्यप्रणालियों के विकास, शहरी स्थानीय निकायों के क्षमता-निर्माण और कचरे (प्लास्टिक कचरा समेत) के प्रबंधन में स्मार्ट पॉलिसी और नियमन के ज़रिए इन क़वायदों को अंजाम दिया जाता है.

ग्लोबल मिथेन हब और iFOREST के बीच की सहभागिता G20 में खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी पर साउथ-साउथ प्लेटफ़ॉर्म के विकास और आग़ाज़ के लिहाज़ से सटीक है.

  1. G20 की भूमिका

G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत उभरती अर्थव्यवस्था के तौर पर अपने प्रयासों और कामयाबियों की नुमाइश कर रहा है. कचरे के क्षेत्र में भारत अपनी प्रमुख योजना स्वच्छ भारत मिशन को सुर्ख़ियों में ला रहा है. इसका लक्ष्य सभी गांवों, शहरों और राज्यों में ठोस और तरल कचरा प्रबंधन व्यवस्था तक पहुंच मुहैया कराना है. देश के ‘वेस्ट टू वेल्थ’ कार्यक्रम का मक़सद कचरे को ट्रीट कर उससे सामग्रियों को रिसायकल करना, ऊर्जा निर्माण करना और कचरे से क़ीमती संसाधनों को बाहर निकालना है.[viii] इस दिशा में प्रौद्योगिकियों की पहचान के साथ-साथ उनका विकास और तैनाती करने पर भी समान रूप से ध्यान दिया जा रहा है. भारत के पास G20 के सदस्यों में सबसे मज़बूत खाद्य सुरक्षा नीतियों में से एक मौजूद है. ऐसे में खाद्य पदार्थों के नुक़सान और बर्बादी को कम करने और खाद्य पदार्थ दोबारा हासिल करने के मामले में यहां लंबे अर्से से प्रयास किए जाते रहे हैं. देश इन विचारों को मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) के ज़रिए भी आगे बढ़ा रहा है. इसका लक्ष्य भारत में जलवायु-अनुकूल जीवनशैलियों की दिशा में व्यवहारों में बदलाव लाकर सर्कुलर अर्थव्यवस्था हासिल करना है. दरअसल खाद्य पदार्थों की बर्बादी और हानि को रोकने से जुड़ी क़वायदों के लिए मानवीय बर्तावों में बदलाव लाए जाने की दरकार है. ऐसे में सतत और टिकाऊ जीवनशैलियों और उपभोक्ता रुझानों को बढ़ावा देने को लेकर LiFE की मुहिम से पारिवारिक और ख़ुदरा स्तर पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी और हानि में कमी लाने में मदद मिल सकती है.

2017 में हैमबर्ग में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान ‘संसाधन दक्षता संवाद’ की शुरुआत की गई थी. इसमें G20 ने कचरा प्रबंधन के लिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर मज़बूत गठजोड़ और तालमेल पर ज़ोर दिया था. साथ ही प्राकृतिक संसाधनों के टिकाऊ इस्तेमाल को G20 वार्ताओं का मुख्य तत्व बनाने की बात भी कही गई थी. भारत की अध्यक्षता में G20 ने सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर मज़बूत गठजोड़ और सहयोग की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. हाल ही में G20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह (ECSWG) में ये बात उभरकर सामने आई थी.[ix] ये क़वायद एक व्यावहारिक अंतरराष्ट्रीय भागीदारी तैयार करने का अवसर दे रही है. इसके ज़रिए ग्लोबल साउथ को सर्कुलर अर्थव्यस्था के सिद्धांतों के प्रयोग को लेकर कचरा प्रबंधन के रास्ते अपनाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता पहुंचाई जा सकती है.

ग्लोबल साउथ के कुछ शहरों में सामाजिक व्यवहार प्रबंधन, संस्थाओं के निर्माण और बुनियादी ढांचा खड़ा करने के क्षेत्र में कामयाबी की उभरती कहानियों के मद्देनज़र साउथ-साउथ गठजोड़ प्रभावी साबित हो सकता है. मार्च 2023 में दूसरे पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह में हुई परिचर्चाओं में प्राकृतिक संसाधनों के दक्ष और सतत प्रयोग को लेकर भारत की वचनबद्धता पर नए सिरे से बल दिया गया. भारत इन क़वायदों को संसाधन दक्षता संवाद का प्रमुख हिस्सा बनाने का इरादा रखता है.

वित्तीय मोर्चे पर कचरे को जलाए जाने और कूड़ेदानों पर रकम ख़र्च किए जाने की बजाए कचरे में कमी लाने, कूड़े की रोकथाम करने, छंटाई करने, खाद्य पदार्थों का दोबारा वितरण करने और ऑर्गेनिक कचरे से पोषक और ऊर्जा तत्वों को वापस निकाले जाने पर पैसे ख़र्च किए जाने की दरकार है. एक सहभागी मंच, आधार को आगे बढ़ाने और सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों से वित्त जुटाने में मददगार हो सकता है. ये जलवायु वित्त के प्रवाह में रफ़्तार भरने को लेकर विकसित दुनिया की ओर से पहले से ज़्यादा ठोस प्रयास भी मुहैया कराएगा. कचरे में कमी लाने के सस्ते और बाज़ार के लिहाज़ से तैयार समाधान खड़े कर और उनकी नुमाइश कर ये मंच निवेशकों और बहुपक्षीय बैंकों के लिए अवसरों का इज़हार कर सकता है. ये संस्थाएं इन समाधानों को कोष उपलब्ध करा सकती हैं. साथ ही वित्त तक पहुंच बनाने और उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में कचरे से जुड़े ऊंचे लक्ष्य तय करने को लेकर नीति-निर्माताओं के लिए समर्थकारी वातावरण भी तैयार होता है.

G20 जागरूकता बढ़ाने को लेकर बेमिसाल अवसर की नुमाइंदगी करता है. इसके ज़रिए ना सिर्फ़ कचरे से जुड़े मसलों, बल्कि तमाम मोर्चों पर आकार ले रहे मौक़ों को भी आगे बढ़ाया जा सकता है. सामूहिक रूप से ये समूह वैश्विक कचरे के 60 प्रतिशत का उत्पादन करता है. इसमें कई ऐसे देश शामिल हैं जो कचरा-मुक्त अर्थव्यवस्थाएं हासिल करने के प्रयासों की अगुवाई कर रहे हैं. इसके कई उदाहरण हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय कचरा नीति 2018, चीन का सर्कुलर अर्थव्यवस्था पॉलिसी पोर्टफ़ोलियो 2017, भारत की राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति 2019, दक्षिण अफ़्रीका की राष्ट्रीय कचरा प्रबंधन रणनीति 2020 और अमेरिका की सतत सामग्री प्रबंधन कार्य योजना 2015 शामिल हैं.[x]

  1. G20 के लिए सिफ़ारिशें

ये पॉलिसी ब्रीफ़ अनेक स्टेकहोल्डर्स वाले साउथ-साउथ नॉलेज और क्षमता-निर्माण के टिकाऊ प्लेटफ़ॉर्म विकसित करने का प्रस्ताव करता है. इसके अलावा G20 में मौजूद विकासशील और अल्प-विकसित देशों के लिए वित्तीय मंच की स्थापना की भी सिफ़ारिश की जाती है. इस मंच का लक्ष्य खाद्य पदार्थों के नुक़सान और बर्बादी के क्षेत्र में सर्कुलर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की कार्रवाइयों पर तवज्जो देना होगा. सीखे गए सबक़ों और अनुभवों को साझा करने की क़वायदों के साथ-साथ संसाधन जुटाने के प्रयासों वाला ये प्लेटफ़ॉर्म G20 के विकसित और उन्नत सदस्य देशों (ग्लोबल नॉर्थ) के साथ गठजोड़ पर आधारित हो सकता है.

प्रस्तावित सहभागिता मंच के ज़रिए एक संगठित रुख़ में जान भरी जा सकती है. इसके लिए नीचे दिए गए मसलों पर साउथ-साउथ साझा प्रयासों की दरकार होगी:

खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी पर साउथ-साउथ गठजोड़ का प्लेटफ़ॉर्म

कार्रवाई को सक्षम बनाने के लिए साउथ-साउथ प्लेटफ़ॉर्म चार क्षेत्रों में काम करेगा: मिसाल के तौर पर कार्रवाई को दिशा देने के लिए संशोधित डेटा; नीति और पारदर्शिता में बढ़ोतरी; टिकाऊ और फ़ंडेबल कार्यक्रमों का बढ़ता हुआ पोर्टफ़ोलियो; और कोष के साथ-साथ निवेश सुरक्षित करने के लिए तमाम किरदारों का तालमेल, ताकि इस क्षेत्र के भीतर रफ़्तार और कायाकल्प की क़वायद जारी रह सके.

(क) डेटा की माप और निगरानी में सुधार

दरअसल कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में कार्रवाइयों को लेकर आंकड़ों का अभाव है. कचरे (ख़ासतौर से सार्वजनिक ठोस कूड़े) के संग्रह, ट्रीटमेंट और निबटारे से जुड़े डेटा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते. उत्सर्जनों पर नज़र रखने वाली सैटेलाइट तस्वीरों की उपलब्धता लगातार बढ़ती जा रही है. इसके चलते लैंडफ़िल उत्सर्जनों (ज़्यादातर मिथेन) के बारे में जागररूकता बढ़ी है. इन कार्यक्रमों में कार्बन मैपर मिशन, IMEO मिथेन अलर्ट एंड रिस्पॉन्स सिस्टम (MARS), ट्रोपोस्फ़ेरिक मॉ़निटरिंग इंस्ट्रूमेंट (TROPOMI) और GHGSat-नीदरलैंड्स इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्पेस रिसर्च (SRON) सार्वजनिक-निजी गठजोड़ शामिल हैं. ग्लोबल मिथेन हब यानी GMH कचरे से संबंधित उत्सर्जनों का डेटा मुहैया कराने के लिए SRON के साथ भागीदारी कर रहा है. एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका में शहरी निकायों के एक समूह को ये डेटा मुहैया कराए जा रहे हैं. इन नगरीय क्षेत्रों की पहचान शहरी कचरे के केंद्र के तौर पर की गई है.

वैश्विक कवरेज और कचरा-आधारित उत्सर्जनों के बिंदु स्रोतों की पहचान करने के लिए साउथ-साउथ गठजोड़ प्लेटफ़ॉर्म की सैटेलाइट डेटा तक पहुंच होगी. साथ ही ये एक समुदाय के तौर पर मिलकर काम करेगा ताकि कचरे से जुड़े उत्सर्जनों के आधार को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा सके. इस तरह कचरा क्षेत्र से ज़मीनी स्तर के मौजूदा डेटा में बढ़ोतरी की जा सकेगी. स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर पर कचरे से जुड़े पहले से ज़्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने में भी मदद हो सकेगी. ग्रीनहाउस गैसों की रोकथाम की माप, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) की प्रक्रिया को नगरीय निकायों के स्तर पर सीधे हस्तक्षेपों के ज़रिए सक्षम बनाया जा सकेगा. साथ ही ज़्यादा फ़ंडिंग आकर्षित करने को लेकर उपलब्धियों की नुमाइश भी की जा सकेगी. फ़ंडिंग जुटाने की प्रक्रिया म्यूनिसिपल बॉन्ड्स, कचरा प्रबंधन की ओर राष्ट्रीय कोष के स्वरूप के साथ-साथ निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के निवेशों के अन्य रूप भी ले सकती है.

(ख) तेज़ रफ़्तार वाला क्रियान्वयन, बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा, लक्ष्य-निर्धारण और पारदर्शिता

एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका में ग्लोबल मिथेन हब की सहायता से चलाए जा रहे कार्यक्रमों और संगठनों के समन्वित प्रयासों से अनेक नीतियों, प्रस्तावों और केस स्टडीज़ का विकास किया जा रहा है. इन क़वायदों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. इस नए ढांचे और ज्ञान के आधार के साथ अलग-अलग प्रकार के किरदार और सरकारें जुड़ी हुई हैं. उन्हें हस्तक्षेपों और उपलब्ध निवेशों को समझने और उनपर चर्चा करने का अवसर मिलेगा. इस तरह से कहावती तौर पर सकारात्मक “एंबीशन लूप या महत्वाकांक्षी चक्र” तैयार होगा. इसमें सरकारों को उप-राष्ट्रीय सरकारों और निजी क्षेत्र से ये आत्मविश्वास मिलेगा कि वो निश्चित तौर पर जलवायु कार्रवाई की दिशा में क़दम उठा रहे हैं. बदले में ये बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा और वित्त तक पहुंच के रूप में एक समर्थकारी नीतिगत वातावरण तैयार करेगा, जो अन्य उप-राष्ट्रीय और निजी क्षेत्रों की महत्वाकांक्षाओं को पोषित कर उन्हें इस दिशा में अगुवा बनाने को प्रेरित करे. ये तमाम क्षेत्र मिलकर तेज़ रफ़्तार क्रियान्वयन, बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा, पारदर्शिता, जवाबदेही के साथ-साथ राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों को प्रोत्साहित करते हैं.

(ग) कचरा प्रबंधन विकल्पों का पहले से ज़्यादा व्यापक और अधिक टिकाऊ समूह

ठोस उपायों से कचरे के क्षेत्र का कायाकल्प हो सकता है. स्थानीय इनपुट को आवश्यक संसाधनों और हालातों के साथ जोड़ने वाली क़वायद और पहल, विकास की ज़रूरतों का निपटारा करेगी. इनका पर्यावरणीय गुणवत्ता, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सम्मानजनक आजीविका, पर्यावरणीय न्याय और जलवायु रोकथाम पर सीधा प्रभाव होगा. ऐसी ज़रूरतें हासिल करने के लिए परिकल्पना से कार्रवाई तक कार्यक्रमों को आगे बढ़ाए जाने की दरकार होगी. लिहाज़ा इसमें व्यावहारिकता, विस्तृत इंजीनियरिंग और कारोबारी मॉडलिंग से जुड़े क़दम शामिल होंगे.

सहभागिता के प्लेटफ़ॉर्म फ़ीडबैक से ज्ञान और समझदारी हासिल कर सकते हैं. साझेदार संगठनों और सरकारों द्वारा अमल में लाए गए कार्यक्रमों से ये फ़ीडबैक हासिल होते हैं. चुनौतियों, विशेषताओं और बेहतरीन तौर-तरीक़ों के बारे में ये बढ़ी हुई समझ इसके बाद प्लेटफ़ॉर्म के प्रतिभागियों के बीच तेज़ी से साझा की जा सकती है. विभिन्न स्तरों पर समन्वय की अतिरिक्त परत, संवाद के साथ-साथ समकक्षों से समकक्षों के बीच गठजोड़ को बढ़ावा देती है. ये मंच सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों के भरपूर उपयोग के रास्ते के तौर पर भी काम कर सकता है.

() कचरे से जुड़ी चुनौतियों के लिए पर्याप्त फ़ंडिंग और निवेश सुनिश्चित करना 

वैश्विक समुदाय और वित्तीय क्षेत्र के पास आज कचरा क्षेत्र के कायाकल्प की अहमियत को लेकर बेहतर समझ मौजूद है. लैंडफ़िल से होने वाले उत्सर्जनों के जलवायु पर होने वाले असर के साथ-साथ जलवायु न्याय के मसले पर अतिरिक्त दबाव की नई समझ विकसित हो रही है. इसके अलावा जलवायु के हिसाब से ख़ुद को ढालने की क़वायद को तात्कालिक समर्थन देने की ज़रूरत भी बढ़ती जा रही है. ये तमाम प्रयास अंतरराष्ट्रीय वित्त-पोषण यानी फ़ंडिंग को नया आकार दे रहे हैं. विकास और जलवायु के तौर पर आदर्श बदलावों को अब आगे अलग-अलग नहीं किया जा सकता. इस मदद को जलवायु के मोर्चे पर तात्कालिकता के साथ जोड़ने और नया आकार देने की ज़रूरत आज पहले से ज़्यादा साफ़ हो गई है. शहरीकरण और तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या, वैश्विक कचरा निर्माण में तेज़ रफ़्तार से बदलाव ला रही है और इसका एक अहम हिस्सा ग्लोबल साउथ के देशों से सामने आ रहा है.

कचरा, विकास और जलवायु के मसलों पर तालमेल बिठाकर फ़ंडिंग जुटाने की क़वायद में सहभागिता मंच केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं. अभ्यास और मौजूदा प्रयासों के ज़रिए ये मंच विश्व स्तर पर एक शक्तिशाली और भरोसेमंद मध्यस्थ बन सकता है. रिश्तों और मुख्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा मुहैया कराए जा रहे सपोर्ट को आकार देने में ये अहम साबित हो सकते हैं. इनमें ख़ासतौर से बहुपक्षीय विकास बैंक (MDBs) के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त संस्थाएं (DFIs) शामिल हैं. ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच नज़दीकी तालमेल से इस प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है.

2023 के लिए कार्य योजना

कचरे के कुप्रबंधन से जुड़े तमाम मसलों के निपटारे को लेकर सहभागिता प्लेटफ़ॉर्म का आग़ाज़ करने के लिए आयोजनों का एक समूह आवश्यक होगा. इन मसलों में विकास, मानव अधिकार, प्रदूषण और स्वच्छता से जुड़े संकटों की रोकथाम जैसे सहायक लाभ, और नौकरियां और मूल्य निर्माण भी शामिल हैं. ये मंच राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों की सरकारों के लिए भी समावेशी होगा. इससे तमाम स्तरों पर मौजदा कामकाज पर ग़ौर करने का मौक़ा मिलेगा, राष्ट्रीय अनिवार्यताओं को क्रियान्वित करने के लिए रणनीतियां बन सकेंगी और कचरे के निपटारे की दिशा में स्थानीय और उप-राष्ट्रीय स्तरों पर किए जा रहे प्रयासों के नतीजों पर नज़र रखी जा सकेगी. खाद्य पदार्थों की हानि और बर्बादी पर साउथ-साउथ सहभागिता प्लेटफ़ॉर्म की शुरुआत की दिशा में iFOREST और ग्लोबल मिथेन हब नीचे दी गई गतिविधियों की साझा मेज़बानी करेंगे.

(क) अल्प-काल: भारत में जुलाई/अगस्त 2023 में सहभागिता प्लेटफ़ॉर्म की शुरुआत

G20 के “संसाधन दक्षता संवाद” के तहत केवल आमंत्रित पक्षों की मौजूदगी वाले इस आयोजन में गठजोड़ प्लेटफ़ॉर्म की संरचना पर चर्चा की जाएगी. आयोजन के लिए विशिष्ट क्रियाओं में ये बातें शामिल होंगी:

हिस्सेदारों में G20 के ग्लोबल साउथ देशों के टियर 1 और टियर 2 शहरों के उपलब्ध/इच्छुक शहरी निकायों के प्रतिनिधियों का उप-समूह शामिल होगा. इन देशों में भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, दक्षिण अफ़्रीका, अर्जेंटीना, चीन, मेक्सिको और सऊदी अरब शामिल हैं. इसके अलावा ग्लोबल साउथ में कचरे के क्षेत्र में काम कर रहे वैश्विक और घरेलू थिंक-टैंक्स और सिविल सोसाइटी संगठन भी इसके सदस्य होंगे. कचरे के क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जनों के निपटारे के काम के इच्छुक और उसमें योगदान दे रहे लोक कल्याण और परोपकार में लगे समुदाय, निजी क्षेत्र, संयुक्त राष्ट्र जलवायु चैंपियन टीम, बहुपक्षीय विकास बैंक और विकास वित्त संस्थान भी इस क़वायद में साथ रहेंगे.

(ख) मध्यम काल: COP28 – दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में गठजोड़ प्लेटफ़ॉर्म का उभार

सहभागिता COP28 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन करेगी. जिसका लक्ष्य (1) मल्टी-स्टेकहोल्डर्स प्लेटफ़ॉर्म लॉन्च करना है. जुलाई/अगस्त में केंद्रीय सरकारों की ओर से कचरा प्रबंधन को लेकर नोडल सरकारी एजेंसियों द्वारा जिन सिद्धांतों और विचारों पर चर्चा हुई थी, उन्हीं की बुनियाद पर ये प्लेटफ़ॉर्म स्थापित किया जाएगा; (2) कचरा प्रबंधन (विरासती और ताज़ा कचरे, दोनों मिलाकर) में सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों के प्रयोग के लिए तकनीकी समाधानों और चुनौतियों के आदान-प्रदान के लिए एक पैनल तैयार करना; (3) स्थानीय निकायों द्वारा अमल में लाई गई परियोजना तैयारी सुविधाओं के उदाहरणों की नुमाइश करना. इनमें म्यूनिसिपल बॉन्ड्स, निजी क्षेत्र, बहुपक्षीय विकास बैंक और विकास वित्त संस्थाएं शामिल हैं. साथ ही इनको अपनाए जाने के प्रस्ताव भी इस क़वायद में शामिल होंगे.

इसके प्रतिभागियों में भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, दक्षिण अफ़्रीका, वैश्विक और घरेलू थिंक-टैंक्स और ग्लोबल साउथ में कचरे के क्षेत्र में काम कर रहे सिविल सोसाइटी संगठन, लोक-परोपकारी समुदाय, निजी क्षेत्र, कचरा क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जनों के निपटारे के काम में लगे और इच्छुक बहुपक्षीय विकास बैंक शामिल होंगे. इनके अलावा कचरा प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार विभिन्न देशों की केंद्र सरकारों की नोडल एजेंसियां भी इनमें शामिल रहेंगी. इनमें- भारत का आवास और शहरी कार्य मंत्रालय; ब्राज़ील के खनन और ऊर्जा मंत्रालय के साथ-साथ पर्यावरण मामलों का मंत्रालय; दक्षिण अफ़्रीका का वन, मछली और पर्यावरण मंत्रालय; अर्जेंटीना का पर्यावरण और स्थायी विकास मंत्रालय; चीन का इकोलॉजी और पर्यावरण मंत्रालय; मेक्सिको में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों का सचिवालय; और सऊदी अरब का पर्यावरण, जल और कृषि मंत्रालय, शामिल हैं.

(ग). दीर्घ-काल: भारत की अध्यक्षता से आगे तक टिकाऊ प्लेटफ़ॉर्म

सार्वजनिक समारोह के अलावा बंद कमरों में होने वाली बैठक में COP28 कार्यक्रम से निकलने वाले परिणामों की चर्चा होगी. प्लेटफ़ॉर्म को भविष्य में बरक़रार रखने और G20 की अगली अध्यक्षता (ब्राज़ील) के दौरान इसको आगे बढ़ाए जाने पर भी मंथन किया जाएगा. पहले से ही इन कार्यों में जुड़े ब्राज़ील के सिविल सोसाइटी संगठनों के उप-समूह के ज़रिए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाए जाने की क़वायद पर चर्चा की जाएगी. इस कड़ी में इस प्लेटफ़ॉर्म के लिए फ़ंडिंग और गवर्नेंस मॉडल पर भी विचार होगा. भारत की अध्यक्षता से परे जाने वाले साउथ-साउथ के टिकाऊ प्लेटफ़ॉर्म में लंबे अर्से से बरक़रार कचरे के मसले पर मौजूदा क़वायदों को ऊंचा उठाने की क्षमता मौजूद है. ऐतिहासिक रूप से हासिल कामयाबियों और तजुर्बों के आधार पर ऐसी संरचना क़ायम की जा सकती है. इससे देशों को अपने उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जलवायु, जैव-विविधता और सतत विकास से जुड़ी प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.

निष्कर्ष

अपनी बढ़ती GDP और जनसंख्या के साथ ग्लोबल साउथ के देश कचरे से जुड़े ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनों में हो रही बढ़ोतरी के केंद्र में रहेंगे. खाद्य पदार्थों के नुक़सान और बर्बादी पर साउथ-साउथ प्लेटफ़ॉर्म (G20 की भारतीय अध्यक्षता के साथ लॉन्च किया गया) इन देशों को इस चुनौती को अवसर में बदलने का मौक़ा दे सकता है. इस सिलसिले में जिस मंच की कल्पना की गई है, उसमें समाज को सेहतमंदी के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक तौर पर प्रत्यक्ष फ़ायदे मुहैया कराने की क्षमता होगी. बेहतरीन अभ्यासों को आपस में साझा करके और वित्त का जुगाड़ करके ऐसी क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. इस कड़ी में ग्लोबल साउथ के देशों में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनों की रोकथाम में भी मदद मिलती रहेगी. साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा या दायरे के भीतर बरक़रार रखने में वैश्विक समुदाय की भी सहायता हो जाएगी.


एट्रिब्यूशन: मनज्योत कौर अहलूवालिया आदि, “प्रमोटिंग सर्कुलर इकोनॉमी थ्रू साउथ-साउथ कोलैबोरेशन,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


[i] Kaza et al., What a Waste.

[ii] FAO, “Food Loss and Waste.”

[iii] FAO, “Food Loss and Waste.”

[iv] Guo et al., “A Worldwide Hotspot Analysis on Food Loss and Waste.”

[v] UNEP/CCAC, Global Methane Assessment. 

[vi] Lee et al. Synthesis Report of the IPCC Sixth Assessment Report (AR6).

[vii] Rosane et al., The Landscape of Methane Abatement Finance.

[viii] Invest India., “Waste to Wealth”.

[ix] Ministry of External Affairs, Government of India. “ECSWG meeting concludes.”.

[x] O’Brien and Singh, “What the G20 can learn from India’s approach to food banks.”