क्षमता, संसाधन, नियमन: G20 देशों में उप-राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु सहायक लचीले बुनियादी ढांचे की दिक्कतें कैसे दूर करें?

Li Fang | Lu Lu | Daizong Liu

टीएफ़-3: LiFE, रेज़िलिएंस, एंड वैल्यूज़ फ़ॉर वेल बींग


सारांश

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की ताज़ा रिपोर्ट में ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते जलवायु से जुड़े जोख़िमों की चेतावनी दी गई है. रिपोर्ट के मुताबिक ये ख़तरे ग़ैर-जलवायु जोख़िमों (non-climate risks) से पार चले जाएंगे. इससे पेचीदा, मिश्रित और फैलाव वाले ख़तरे पैदा होते हैं, जो इकोसिस्टम या पारिस्थितिकी तंत्रों और मानवीय समाज के लिए अनेक प्रकार की समस्याएं पेश करते हैं. ऐसे में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना कर लेने के हिसाब से तैयार और ऐसी संरचना वाले लचीले बुनियादी ढांचे में निवेश करना बेहद अहम हो जाता है. इन जोख़िमों के लिए बेहतर तैयारी के मक़सद से ये ज़रूरी है. अपनी G20 अध्यक्षता के तहत भारत ने आपदा जोख़िम कटौती के लिए पहले कार्य दल की स्थापना की है. इसका लक्ष्य प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोख़िमों में कमी लाना है. इस कड़ी में जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे (climate-resilient infrastructure) के विकास का काम भी शामिल है. G20 के मौजूदा बुनियादी ढांचा कार्यक्रमों और सहभागिता मंचों के आधार पर ये इस समूह के देशों के लिए अनेक अवसरों के द्वार खोल रहा है. इसके ज़रिए तमाम सदस्य देश दुनिया भर में जलवायु परिवर्तनों से निपटने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय सर्वसम्मति को आगे बढ़ा सकते हैं. इस प्रकार उप-राष्ट्रीय (sub-national) स्तरों पर जलवायु के हिसाब से लचीले इंफ़्रास्ट्रक्चर की योजना बनाने और उनका निर्माण करने की क़वायद में रफ़्तार भरी जा सकेगी. ये पॉलिसी ब्रीफ़ G20 देशों और उप-राष्ट्रीय सरकारों के लिए कई समाधानों का प्रस्ताव करता है. इन समाधानों के ज़रिए लचीले बुनियादी ढांचे में विस्तार देने के रास्ते की तीन अहम चुनौतियों का निपटारा किया जा सकेगा. इन चुनौतियों में- क्षमता और संसाधनों का अभाव; फ़ाइनेंसिंग की सीमित उपलब्धता के साथ-साथ वैधानिक, नीतिगत और नियामक जोख़िम शामिल हैं.

1. चुनौती

IPCC की ताज़ातरीन रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी के चलते जलवायु के मोर्चे पर पैदा हो रहे जोख़िमों की आवृति (frequency), सघनता, प्रभाव और मियाद बदलती जा रही है.[i] ये ग़ैर-जलवायु जोख़िमों की तुलना में पारस्परिक रूप से व्यापक स्वरूप ले रहे हैं. इससे पेचीदा, मिश्रित और फैलाव वाले ख़तरे पैदा हो रहे हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्रों यानी इकोसिस्टम्स और मानवीय समाजों पर अनेक प्रकार के जोख़िम मंडरा रहे हैं. साथ ही इन क्षेत्रों में अप्रत्याशित नुक़सान देखने को मिल रहे हैं.[ii] लिहाज़ा जलवायु के हिसाब से मज़बूत बुनियादी ढांचे के विकास की तात्कालिक रूप से दरकार है. ये इंफ़्रास्ट्रक्चर, चरम घटनाओं (extreme events) का सामना कर सकेगा और जलवायु परिवर्तन के ऐसे प्रभावों के हिसाब से ढल जाएगा, जो धीरे-धीरे सामने आते हैं.

लाइफ़लाइन इंफ़्रास्ट्रक्चर किसी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा होती है. जलवायु से जुड़ी चरम घटनाएं किसी इलाक़े के सतत विकास एजेंडे को ख़तरे में डाल सकती हैं. जलवायु को लेकर निराशाजनक परिदृश्य के चलते बुनियादी ढांचे में तालमेल भरा रुख़ आवश्यक हो जाता है. सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करने की ज़रूरत के साथ-साथ मौसमी आपदाओं से नागरिकों का बचाव करने की भी आवश्यकता है. विकास की राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रणनीतियों में जलवायु अनुकूलन (जैसे जलवायु परिवर्तन जोख़िम प्रबंधन) को एकीकृत किए जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय सर्वसम्मति है. नतीजतन इस दिशा में प्रस्तावों की एक पूरी श्रृंखला सामने रखी गई है. इनमें जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे (CRI) और आपदा में मज़बूत रहने वाले बुनियादी ढांचे (DRI) को बढ़ावा देने से जुड़े प्रस्ताव शामिल हैं. दोनों ही निरोधक और सोच-विचार भरे परिदृश्य हैं, जो सतत विकास लक्ष्य 9 (“मज़बूत बुनियादी ढांचा तैयार करना, टिकाऊ औद्योगिकरण को बढ़ावा देना और नवाचार को आगे बढ़ाना”), आपदा जोख़िम कटौती के लिए सेंदाई फ़्रेमवर्क (“अहम बुनियादी ढांचे में आपदाओं के चलते होने वाले नुक़सान में भारी कटौती लाना और बुनियादी सेवाओं में रुकावट की रोकथाम करना”), और G20 देशों में गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा निवेश के सिद्धांतों का पालन करते हैं.[iii]

DRI से जुड़ी परिकल्पना में विनाशकारी घटनाओं के ऐतिहासिक ब्योरे का संदर्भ लेते हुए जोख़िमों में व्यवस्थित रूप से कटौती पर ज़ोर दिया जाता है. इस क़वायद का CRI के ज़रिए विस्तार किया जाता है. उभरते वैज्ञानिक अनुमानों को अपनाने में CRI ज़्यादा सक्रिय होता है. इस तरह बुनियादी ढांचे के जीवन चक्र में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अनिश्चितताओं के एक व्यापक दायरे को एकीकृत करना मुमकिन हो सकता है. साथ ही अवसरों में भी बढ़ोतरी लाई जा सकती है.[iv]

चित्र 1: DRI और CRI: परिकल्पना पर एक नज़र

स्रोत: जलवायु के हिसाब से लचीला इंफ़्रास्ट्रक्चर: अभ्यास और नियोजकों के लिए मार्गदर्शन, 2010, UNDP से लिया गया,[v]

जलवायु के हिसाब से लचीला बुनियादी ढांचा यानी CRI, ‘बिल्ड बैक बेटर’ डिज़ाइन को शामिल करता है. इस तरह आपदाओं और निकट भविष्य के जलवायु जोख़िमों जैसी घटनाओं में बुनियादी ढांचे को दोबारा तैयार करने से बचना मुमकिन हो जाता है. साथ ही इंजीनियरिंग डिज़ाइन में उन्नत विशेषताओं के इस्तेमाल से बुनियादी ढांचे को उसके पूरे प्रत्याशित जीवनकाल में उपयोग में लाया जा सकता है. ये बात स्पष्ट रूप से स्थापित हो चुकी है कि जलवायु के हिसाब से लचीला इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार करना या मौजूदा बुनियादी ढांचे में नई सुविधाएं जोड़े जाने से हासिल होने वाले फ़ायदे, लागत के मुक़ाबले ज़्यादा होते हैं.[vi] अनुकूलन (adaptation) पर वैश्विक आयोग की पड़ताल से पता चलता है कि 2020 से 2030 के बीच जलवायु अनुकूलन के पांच अहम क्षेत्रों में वैश्विक रूप से 1.8 खरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किए जाने से 7.1 खरब अमेरिकी डॉलर का शुद्ध मुनाफ़ा हासिल किया जा सकता है. इस सिलसिले में 2:1 से 10:1 के दायरे में उच्च लाभ-अनुपातों का नतीजा हाथ लगेगा.[vii] सेंटर फ़ॉर क्लाइमेट एंड एनर्जी सॉल्यूशंस के आंकड़ों के मुताबिक लचीलेपन में निवेश किए गए हरेक डॉलर से एक कालखंड के बाद 11 अमेरिकी डॉलर की बचत हासिल हो सकती है.[viii]

बहरहाल, CRI के ज़बरदस्त फ़ायदों के बावजूद G20 के देशों को इसके क्रियान्वयन में ज़बरदस्त चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जिनका ब्योरा नीचे दिया गया है:

2. G20 की भूमिका

जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे यानी CRI की फ़ाइनेंसिंग और उन्हें बढ़ावा देने में G20 देश एक अहम भूमिका निभा सकते हैं. वैश्विक रूप से इंसानी जीवन और अर्थव्यवस्था पर क़हर बरपाने वाली आपदाओं से होने वाले नुक़सान की रोकथाम करने में इससे काफ़ी मदद मिलेगी. दुनिया में बार-बार घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं की सबसे ज़्यादा मार G20 के क्षेत्र को ही सहनी पड़ती है. यही वो इलाक़ा है जहां कुल नुक़सान सबसे ज़्यादा होता है और जानमाल की हानि भी सबसे ज़्यादा होती है. अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस EM-DAT के मुताबिक साल 2000 से लेकर अब तक आपदाओं के चलते सकल रूप से हुई सबसे ज़्यादा मौतों में G20 के देशों का अनुपात शीर्ष 10 देशों में 50 प्रतिशत और शीर्ष 20 देशों में 45 प्रतिशत रहा है. उसी तरह प्राकृतिक आपदाओं की वजह से सबसे ज़्यादा सकल आर्थिक नुक़सान सहने के मामले में शीर्ष 10 देशों में G20 का हिस्सा 80 प्रतिशत और शीर्ष 20 देशों में 65 प्रतिशत रहा है.[x] वैश्विक रिकॉर्ड में कुल मौतों और नुक़सानों का हिस्सा क्रमश: 43.23 प्रतिशत और 85.68 प्रतिशत रहा है.[xi] वर्ल्ड रिस्क रिपोर्ट 2022 के अनुसार अधिकतम आपदाओं की संख्या के मामले में G20 देशों का हिस्सा टॉप 10 और टॉप 20 देशों में क्रमश: 40 प्रतिशत और 30 प्रतिशत है. जलवायु के मोर्चे पर लचीले उपकरण के तौर पर जीवन के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा सबसे अहम है. इनमें बिजली, पानी और स्वच्छता, परिवहन और दूरसंचार शामिल हैं. स्वास्थ्य और संरक्षा के साथ-साथ परिवारों की आर्थिक सुरक्षा को लेकर बुनियादी सेवाएं मुहैया कराने के लिहाज़ से भी ये निहायत ज़रूरी हैं.[xii]

जलवायु के हिसाब से लचीला बुनियादी ढांचा G20 के देशों को जलवायु जोख़िमों के प्रत्यक्ष प्रभाव से बचा सकता है. साथ ही संबंधित जलवायु जोख़िमों को व्यापार के ज़रिए अन्य देशों तक फैलने से भी रोक सकता है. अध्ययनों से पता चला है कि अमेरिका में सालाना औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के चलते वैश्विक GDP में 0.12 प्रतिशत का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. कृषि, ऊर्जा और श्रम की उत्पादकता में गिरावट के नतीजतन ऐसा असर देखने को मिल सकता है. इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले देशों में कनाडा और चीन शामिल रहेंगे.[xiii] यूनाइटेड नेशंस कॉमोडिटी ट्रेड स्टैटिस्टिक्स डेटाबेस के मुताबिक वैश्विक आयात और निर्यात गतिविधियों में G20 के देश सबसे ज़्यादा सक्रिय हैं. वैश्विक निर्यात मूल्यों में शीर्ष 10 व्यापारिक प्रवाह पूरी तरह से G20 के देशों के बीच ही होते हैं. लिहाज़ा सतत आर्थिक विकास और व्यापार सुरक्षा के लिए G20 के देशों को जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे में अपना निवेश तेज़ गति से बढ़ाना चाहिए. इससे धीरे-धीरे सामने आने वाली आपदाओं और विकट घटनाओं, दोनों के मारक प्रभावों से बचा जा सकेगा.

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) और पेरिस समझौते के तहत अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए CRI तैयार करना G20 देशों के लिए एक अहम औज़ार है. सर्वप्रथम, अतीत से ज़्यादा न्यायोचित रूप से अनुकूलित और लचीला बुनियादी ढांचा मुहैया कराए जाने से सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की क़वायद पर प्रभाव पड़ सकता है.[xiv] कोविड महामारी के बाद उसकी मार से उबरने के चरण में जलवायु के लिहाज़ से लचीले बुनियादी ढांचे में किया जाने वाला निवेश आर्थिक तौर पर प्रोत्साहनकारी उपाय का काम कर सकता है. इससे दीर्घकालिक लचीलापन, उत्पादकता और जीवन स्तर में सुधार के साथ-साथ रोज़गार निर्माण और आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी जैसे अल्प-कालिक प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं. दूसरा, जलवायु के हिसाब से लचीला बुनियादी ढांचा, G20 के देशों को आपदाओं के बाद बुनियादी ढांचे का निरंतर पुनर्निर्माण करने के दुष्चक्र में फंसने से बचाएगा. इससे बुनियादी ढांचे के ग़ैर-ज़रूरी निर्माण में कमी आएगी और संचालन से होने वाले उत्सर्जनों में भी गिरावट हो सकेगी. इतना ही नहीं, जलवायु के हिसाब से लचीला बुनियादी ढांचा, निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिहाज़ से अमल में लाया जाने वाला एक अहम परिदृश्य है. इनमें वितरित की गई ऊर्जा, ऊर्जा की बचत करने वाली टेक्नोलॉजी और प्रकृति-आधारित समाधान शामिल हैं. ये G20 के देशों को उनके जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की सुविधा पहुंचाने के लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण हैं.

जलवायु परिवर्तन के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे के निर्माण को लेकर रकम जुटाने के लिए G20 ने अनेक वैश्विक कार्यक्रमों की स्थापना की है. इनका ब्योरा नीचे है:

2023 में भारत की अध्यक्षता के तहत आपदा जोख़िम में कटौती लाने से जुड़े G20 के पहले कार्य समूह की स्थापना की गई.[xvii] G20 के देशों में सहयोग बढ़ाने की सुविधा देने के मक़सद से इस कार्य समूह को तैयार किया गया है, ताकि प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े जोख़िमों में कमी लाई जा सके. साथ ही इससे जलवायु परिवर्तन से जुड़े मसलों और जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे के निर्माण में आपसी सहयोग भी मुमकिन हो सकेगा.

3. G20 के लिए सिफ़ारिशें

2019 में G20 के जापान शिखर सम्मेलन के बाद से G20 ने बुनियादी ढांचे में निवेश और उसकी फ़ाइनेंसिंग के आर्थिक प्रभावों जैसे मसलों पर गहराई से परिचर्चा की है. साथ ही नीतिगत तौर पर नवाचार से जुड़े तमाम तरह के पड़ताल भी किए हैं. इसके अलावा लोचदार इंफ़्रास्ट्रक्चर और उसके रखरखाव के साथ-साथ समावेशी, मज़बूत और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में हरित निवेश और फ़ाइनेंसिंग पर भी ग़ौर किया गया है. जलवायु से जुड़ी आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों का डट कर सामना कर सकने वाले लचीले बुनियादी ढांचे के निर्माण को लेकर लंबे समय से वैश्विक रज़ामंदी बनी हुई है.

उत्तरी गोलार्द्ध में चरम जलवायु घटनाओं ने 2022 में अतीत के कई रिकॉर्ड तोड़कर जलवायु परिवर्तन के विश्वव्यापी प्रभावों का एक “न्यू नॉर्मल” स्थापित कर दिया. साथ ही ऐसे बुनियादी ढांचे के निर्माण में रफ़्तार ला दी है, जो धीमी गति से सामने आने वाले जलवायु प्रभावों के साथ-साथ विकट समस्याओं का भी प्रतिरोध करने में सक्षम हैं.

G20 ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों की स्थापना की है. इनमें वैश्विक बुनियादी ढांचा केंद्र यानी GI Hub और वैश्विक बुनियादी ढांचा सुविधा यानी GIF शामिल हैं. ये मंच नीतिगत नवाचार, तौर-तरीक़ों की पड़ताल और बुनियादी ढांचा निर्माण के क्षेत्र में देशों के बीच प्रायोगिक अभ्यासों के आदान-प्रदान में मज़बूती लाने में मददगार रहे हैं. इसके बावजूद जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे यानी CRI के निर्माण से जुड़ी प्रक्रिया कई चुनौतियों का सामना कर रही है. इनमें संसाधन जुटाने और क्षमता का अभाव; सीमित वित्त-पोषण यानी फ़ाइनेंसिंग; और वैधानिक, नीतिगत और नियामक जोख़िम शामिल हैं. वैसे इनकी पहले भी चर्चा की जा चुकी है.

उप-राष्ट्रीय CRI अभ्यासों में रफ़्तार भरने के लिए इस पॉलिसी ब्रीफ़ में नीतिगत तौर पर कुछ सिफ़ारिशें की गई हैं, जिनका ब्योरा नीचे दिया गया है.

नीतिगत विकल्प: चुनौती 1- क्षमता और संसाधनों का अभाव

  1. महामारी के बाद निवेश में उछाल और जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे में अंतरराष्ट्रीय फ़ंड्स को रफ़्तार देने के लिए G20 और अन्य बहुपक्षीय विकास एजेंसियों की क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करना.

कोविड-19 का प्रकोप समाप्त होने के बाद वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह दोबारा तेज़ होने लगा है. इस सिलसिले में सीधे विदेशी निवेश का G20 देशों से अन्य देशों में प्रवाह हुआ है और अन्य देशों से भी G20 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पहुंचा है. निश्चित तौर पर बुनियादी ढांचा, निवेशकों के लिए एक पसंदीदा क्षेत्र बन गया है. 2021 में इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं के लिए वित्तीय लेन-देनों की तादाद और उनके मूल्य में क्रमश: 53 प्रतिशत और 91 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई. ऐसे नाज़ुक वक़्त में बुनियादी ढांचा निर्माण की अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में जलवायु के हिसाब से लचीली परिकल्पनाओं को जोड़े जाने की क़वायद को प्रोत्साहन दिए जाने की दरकार है. इसके लिए G20 और दूसरे बहुपक्षीय विकास संस्थानों द्वारा अंतरराष्ट्रीय इंफ़्रास्ट्रक्चर निवेश को लेकर ज्ञान साझा करने और भागीदारी वाले मंचों का पूरा पूरा इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इनमें GI हब और GIF शामिल हैं. इस सिलसिले में G20 के देश नीचे दिए गए क़दम उठा सकते हैं:

  1. G20 वैश्विक बुनियादी ढांचा ज्ञान और भागीदारी मंचों में उप-राष्ट्रीय स्टेकहोल्डर्स को हिस्सेदारी के लिए प्रेरित करना ताकि डेटा साझा किया जा सके और जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे के अभ्यासों में स्थानीय रुख़ों को आगे बढ़ाया जा सके.

राष्ट्रीय हिस्सेदारी के बूते वैश्विक बुनियादी ढांचा ज्ञान और भागीदारी मंचों में उप-राष्ट्रीय स्टेकहोल्डर जुड़ाव को बढ़ावा देना. इससे डेटा साझा करने की क़वायद को सत्यापित करना और वास्तविक दुनिया के अनुभवों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना मुमकिन हो सकेगा. इससे लाइफ़लाइन इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए मुख्य धारा के जलवायु लचीलेपन वाले विचार में रफ़्तार भरना भी आसान हो जाएगा.

  1. ऊंचे जलवायु जोख़िमों वाले इलाक़ों के लिए क्षमता निर्माण. ख़ासतौर से उन इलाक़ों में जहां जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे की जानकारी और प्रबंधन क्षमता अपेक्षाकृत कमज़ोर हो.

फ़िलहाल कई क्षेत्रों में और अनेक प्रशासनिक स्तरों पर जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे की संरचना तैयार करने को लेकर ज्ञान और कौशल का घोर अभाव देखने को मिल रहा है. कई स्थानों पर जलवायु से जुड़े जोख़िमों की नीची विशेषज्ञता और प्रबंधन स्तरों के साथ तेज़ गति से बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया है. शहरीकरण की तेज़ प्रक्रिया ने इस प्रक्रिया में वाहक की भूमिका निभाई है. उप-राष्ट्रीय सरकारें- ख़ासतौर से जलवायु को लेकर ज़बरदस्त नाज़ुक हालातों, बुनियादी ढांचे के सक्रिय निर्माण, और अपेक्षाकृत कमज़ोर बुनियादी ढांचा प्रंबधन वाले क्षेत्रों- को राष्ट्रीय सरकारों और अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों से पूरी सक्रियता के साथ CRI सहायता की तलाश करना चाहिए. इस कड़ी में नीचे दिए गए पहलुओं में मदद हासिल करने की कोशिश की जानी चाहिए:

नीतिगत विकल्प: चुनौती 2- सीमित वित्त-पोषण या फ़ाइनेंसिंग

सरकारी वित्त, जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे के लिए कोष जुटाने का प्रमुख स्रोत रहा है.[xviii] हालांकि कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारों के ऊंचे ख़र्चों और निम्न कर राजस्व ने कई देशों के लिए राजकोषीय दायरे को सिकोड़ कर रख दिया. सीमित फ़ंडिंग के मसले के निपटारे के लिए G20 देश और उप-राष्ट्रीय सरकारें दो पहलुओं से प्रासंगिक नीतियां तैयार कर सकती हैं- पहला, जलवायु लचीलेपन वाले बुनियादी ढांचे के लिए सार्वजनिक वित्तीय सहायता में विस्तार और बढ़ोतरी करके, और दूसरा, निजी निवेश का बेहतर जुगाड़ करके.

  1. सार्वजनिक वित्त का पैमाना बढ़ाकर और बजट प्रबंधन, नीतिगत योजना-निर्माण और विशेष अनुदानों में सामंजस्य लाकर इसको पहले से ज़्यादा प्रभावी रूप से तैनात करना.

* उप-राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु लचीलेपन वाले बुनियादी ढांचे के लिए पांच या दस वर्षों वाला दीर्घकालिक बजट और विकास योजनाएं तैयार करना. इससे टिकाऊ सार्वजनिक वित्त की सहायता सुनिश्चित हो सकेगी और CRI निर्माण और प्रबंधन के लिए निरंतर और स्थिर राजकोषीय मदद मुहैया कराई जा सकेगी.

* परियोजना प्रबंधन को अधिकतम रूप से अनुकूलित करना. जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे यानी CRI परियोजनाओं के लिए तेज़ रफ़्तार विशेष मंज़ूरी प्रक्रियाओं, परियोजना निगरानी और मूल्यांकन उपलब्ध कराकर परियोजना के क्रियान्वयन की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार लाना. साथ ही CRI निर्माण और प्रबंधन में पहले से ज़्यादा कार्यकुशल वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना.

* CRI निर्माण को प्रत्यक्ष रूप से अनुदान मुहैया कराना. मिसाल के तौर पर निवेश के शुरुआती चरणों में CRI और परंपरागत बुनियादी ढांचे में निवेश के अंतर को पाटना. साथ ही परियोजनाओं में निवेश जोख़िमों और लागतों को घटाने और व्यावहारिकता में सुधार लाने की क़वायद के लिए मदद करना.

* स्थानीय सरकारों, निजी निवेशकों और उद्यमियों को CRI में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना. इसके लिए प्राथमिकतापूर्ण ब्याज़ दर सब्सिडी नीतियां अपनाना.

* प्रायोगिक प्रोत्साहन तंत्र स्थापित करना, लचीले बुनियादी ढांचे या CRI निर्माण के शानदार मामलों का चुनाव करना और ज़्यादा से ज़्यादा स्थानीय सरकारों, उद्यमों और निवेशकों को CRI में निवेश करने को लेकर प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मुहैया कराना.

  1. जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे की मदद के लिए निजी निवेश को बेहतर ढंग से इकट्ठा करना.

राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु लचीलेपन और टिकाऊ बुनियादी ढांचे के लिए निजी क्षेत्र के निवेश को बेहतर ढंग से उपयोग में लाने के लिए व्यापक शोध कार्य किए गए हैं. चाहे वो अंतरराष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के निर्माण में ज़बरदस्त रूप से जुड़े GIF हों या बहुपक्षीय विकास संस्थान. राष्ट्रीय किरदारों की तुलना में उप-राष्ट्रीय किरदार, परियोजनाओं की पहचान करने और उनको वरीयता देने के लिहाज़ से बेहतर रूप से तैयार होते हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय संदर्भ की गहरी समझ होती है. उनके पास नए और नवाचार भरे एजेंडे के प्रति जवाब देने के लिए ज़्यादा लचीलापन और अनुकूलन होता है. वो नई और अनोखी रणनीतियों को आज़माने के लिए ज़्यादा इच्छुक होते हैं. मौजूदा जानकारियों के आधार पर G20 की उप-राष्ट्रीय सरकारों के लिए प्राथमिकता के आधार पर कार्य करने के लिए कई बिंदुओं की पहचान की गई है. इससे वो निजी निवेशों का जुगाड़ कर सकेंगे:

नीतिगत विकल्प: चुनौती 3- वैधानिक, नीतिगत और नियामक जोख़िम

टिकाऊ बुनियादी ढांचे और जलवायु लचीलेपन में निवेश को आगे बढ़ाने के लिए G20 ने बुनियादी ढांचा कार्य समूह (IWG), सतत वित्त कार्य समूह (SFWWG), और हरित वित्त अध्ययन समूह (GFSG) का गठन किया. इन संगठनों ने जलवायु से संबंधित वित्तीय ख़ुलासों की पारदर्शिता, निरंतरता और तुलनात्मकता (comparability) बढ़ाने के लिए सिद्धांतों और टूलकिट्स का भी निर्माण किया है. CRI की योजना तैयार करने, संरचना बनाने और उनका क्रियान्वयन करने में अब भी ज़बरदस्त वैधानिक, नीतिगत और नियामक जोख़िम जुड़े हुए हैं; लिहाज़ा वैश्विक और राष्ट्रीय स्तरों पर टिकाऊ और लचीले बुनियादी ढांचे की उन्नति को अबतक उप-राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह से ज़मीन तक नहीं उतारा जा सका है. इस समस्या से पार पाने के लिए ये प्रस्ताव किया जाता है कि G20 की उप-राष्ट्रीय सरकारें एक ऐसा समर्थकारी वातावरण तैयार करें, जिसमें जलवायु के हिसाब से लचीले बुनियादी ढांचे का क्रियान्वयन हो सके. इसके लिए नीचे दिए गए क़दम उठाने की सिफ़ारिश की जाती है:


एट्रिब्यूशन: लि फ़ेंग आदि, “कैपेसिटी, रिसोर्सेज़, रेग्युलेशन: ओवरकमिंग द ऑब्सटेकल्स टू क्लाइमेट-रेज़िलिएंट सब-नेशनल इंफ़्रास्ट्रक्चर इन G20 कंट्रीज़” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.


 

[1] IPCC, Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability, Summary for Policymakers (Cambridge, UK and New York, USA: Cambridge University Press, 2022).

[2] IPCC, Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability, Summary for Policymakers (Cambridge, UK and New York, USA: Cambridge University Press, 2022).

[3] Asian Development Bank, “Disaster-Resilient Infrastructure: Unlocking Opportunities for Asia and the Pacific,” Asian Development Bank, April 2022.

[4] United Nations Development Programme, “Paving the Way for Climate-Resilient Infrastructure: Guidance for Practitioners and Planners,” 2010.

[5] United Nations Development Programme, ‘Paving the Way for Climate-Resilient Infrastructure: Guidance for Practitioners and Planners’ (New York: United Nations Development Programme, 2010).

[6] OECD, ‘Climate-Resilient Infrastructure: Policy Perspective’ (OECD, 2018).

[7] Global Commission on Adaptation, “Adapt Now: A Global Call for Leadership on Climate Resilience,” 2019.

[8] Center for Climate and Energy Solutions, “Investing in Resilience,” 2019.

[9] Global Infrastructure Facility and World Bank, “Stocktake of Approaches That Leverage Private Sector Investment in Sustainable Infrastructure,” 2022.

[10] Data downloaded from EM-DAT, CRED / UCLouvain, Brussels, Belgium – www.emdat.be, and curated by WRI

[11] Data downloaded from EM-DAT, CRED / UCLouvain, Brussels, Belgium – www.emdat.be, and curated by WRI

[12] Stephane Hallegatte, June Rentschler, and Julie Rozenberg, Lifelines: The Resilient Infrastructure Opportunity, Sustainable Infrastructure Series, World Bank Group, 2019.

[13] Zhengtao Zhang et al., “Analysis of the Economic Ripple Effect of the United States on the World Due to Future Climate Change,Earth’s Future 6, no. 6 (June 2018): 828–40.

[14] Patrick Verkooijen, “Delivering Climate Resilient Infrastructure Through the Private Sector,” World Bank, October 27, 2021.

[15]About GIF,” Global Infrastructure Facility, accessed April 5, 2023.

[16]About GI Hub,” Global Infrastructure Hub, accessed April 5, 2023.

[17]First Disaster Risk Reduction Working Group Meeting in Gandhinagar,” G20, 2023.

[18] Global Commission on Adaptation, “Adapt Now: A Global Call for Leadership on Climate Resilience”.