आज एक ऐसे वक़्त में जब डिजिटल सेवा से जुड़े प्रावधान अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच रहे हैं, तब डिजिटल पब्लिक गुड्स (DPGs) देशों और उनके भागीदारों के लिए अपने नागरिकों के डिजिटल भविष्य के मद्देनज़र नियमों को फिर से लिखने के उद्देश्य से मिलजुल कर काम करने का एक पीढ़ीगत मौक़ा सामने लाने का काम करते हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के उपयोग या तैनाती को लेकर डर का माहौल, व्यापक तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली डिजिटल सेवाओं के हाई-प्रोफाइल अधिग्रहण, निजी क्षेत्र को ध्यान में रख कर बनाई जाने वाली नीति और किए जाने वाले ख़र्च, कम होती पारदर्शिता और पारस्परिक संचालन, वेंडर लॉक-इन, विज्ञापन के समर्थन में निष्कर्ष डेटा संग्रह और एकाधिकार वाली सेवा की गुणवत्ता में गिरावट के डर ने प्रौद्योगिकी प्रावधान के लंबे समय से स्थापित मॉडलों को उनके निम्नतम स्तर पर ला दिया है. लेकिन इन्हीं विपरीत परिस्थितियों के बीच एक नया मॉडल उभर कर सामने आ रहा है, जिसे देशों की आवश्यकताओं और गैर-सरकारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है, इतना ही नहीं यह नया मॉडल कम लागत वाला, खुला, अंतर-संचालनीय और सुरक्षित भी है.
डिजिटल पब्लिक गुड्स अपनी ढांचागत योग्यता और अनुभव को साबित कर रहे हैं. चाहे फिर वो भुगतान प्रणाली की बात हो, बायोमेट्रिक आईडी या डेटा ट्रांसफर का मसला हो, दुनिया भर के देश इनकी तैनाती का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं, साथ ही नागरिकों को सरकार और सेवा प्रदाताओं के साथ जुड़ने के लिए नए-नए विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं. DPGs आर्थिक वृद्धि, सामाजिक समावेश और महत्वाकांक्षी सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के उद्देश्य को पूरा करने में तेज़ी ला रहे हैं.
प्रौद्योगिकी प्रावधान के नए मॉडलों को गवर्नेंस के नए मॉडलों की ज़रूरत है क्योंकि देश और उनके साझीदार निजी ख़रीद की आदतों से आगे बढ़ना चाहते हैं. ओपन सोर्स (OS) DPGs को अगर अपनी विशाल क्षमता तक पहुंच हासिल करनी है, तो इसके लिए वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में रिवोल्यूशन या एक क्रांति की मांग करते हैं. DPGs के सरकारी और कोऑपरेटिव गवर्नेंस के लिए जगह बनाना, मानकों और सर्वोत्तम प्रथाओं की स्थापना करना एक चुनौती है, जिसका जी20 के नियंत्रण में सामना करना हर लिहाज़ से सही है. जी20 के मंच पर मिलने वाली सफलता, इस मकसद को हासिल करने के लिए उपयुक्त वैश्विक डिजिटल इकोसिस्टम के निर्माण में अभूतपूर्व प्रगति के मार्ग खोलेगी. यह पॉलिसी ब्रीफ़ आगे के मार्ग की विस्तृत रूपरेखा को प्रस्तुत करता है.
सरकार और सार्वजनिक सेवा की प्रमुख ज़रूरतों को पूरा करने के लिए DPGs में दुनिया भर की सरकारों द्वारा बढ़ती दिलचस्पी और निवेश संभावित रूप से देखा जाए तो डिजिटल सोसायटी के आकार, प्रकृति और पर्यवेक्षण में एक पीढ़ीगत परिवर्तन है. इसकी सफलता इन DPGs के शासन के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुनर्मूल्यांकन पर निर्भर है. इस सफलता को सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार को DPGs की तैनाती, उनकी दिशा और उनकी सुरक्षा में भरोसा है. इसमें ओपन सोर्स इकोसिस्टम से विरासत में मिली समाधान करने योग्य स्थिरता की चुनौतियां शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश चुनौतियां DPGs पर आधारित है, साथ ही सरकार और स्वायत्त समूहों द्वारा DPGs के गवर्नेंस के आसपास की नई चुनौतियां भी शामिल हैं.
सबसे पहले, पहचान प्रणाली, भुगतान प्रणाली और डेटा-शेयरिंग समाधानों को मज़बूती प्रदान करने वाले DPGs ओपन सोर्स समाधान हैं. इनके उदाहरणों में MOSIP, Mojaloop, OpenMRS, DHIS2 और OpenCVRS शामिल हैं. डिजिटल पब्लिक गुड्स मानक को एक स्वीकृत ओपन लाइसेंस के उपयोग की ज़रूरत होती है. आज के टेक्नोलॉजी के दौर में OS समाधानों की सर्वव्यापकता है, यानी उनकी हर जगह पर मौज़ूदगी है और देखा जाए तो इनकी क़रीब 95 प्रतिशत तकनीक़ कम से कम आंशिक रूप से ओपन सोर्स से निर्मित है और उस पर निर्भर है. ज़ाहिर है कि यह इस नज़रिए की प्रभावशीलता को दर्शाती है, साथ ही इस धारणा का समर्थन भी करती है कि ओपन सोल्यूशन्स प्रोप्राइटरी यानी किसी के स्वामित्व वाले समाधानों की तुलना में स्वाभाविक रूप से ज़्यादा ज़ोख़िम से भरे नहीं हैं.
उल्लेखनीय है कि ज़्यादातर ओपन सोर्स डिजिटल पब्लिक गुड्स (OS DPG) की शुरुआत छोटे रूप में होती है और लाखों उपयोगकर्ताओं वाले बड़े OS DPG भी अक्सर देखा जाए तो अन्य ओपन सोर्स प्रोजेक्ट द्वारा सामना किए जाने वाले एक तरह के स्थिरता और निरंतरता के दबावों को झेलते हैं. इनमें अक्सर फंडिंग, गवर्नेंस, रणनीतिक दिशा और नॉन-कोड स्किल्स एवं योगदान से जुड़े सवाल शामिल होते हैं. वर्तमान मॉडल मिले जुले हैं और DPGs के साथ सरकारों, शहरों, कल्याणकारी संगठनों, व्यवसायों, फाउंडेशनों और अंतिम-उपयोगकर्ता समूहों के रूप में, विभिन्न प्रकार के समूहों द्वारा व्यवस्थित एवं वित्त पोषित हैं. इन सभी किरदारों से महत्त्वपूर्ण सीख ली जा सकती है. हालांकि, मौज़ूदा रिसर्च को मुताबिक़ नागरिक प्रौद्योगिकी परियोजनाएं भी उन जगहों के लिए उपयोगी एनालॉग, जहां नए-नए DPGs उभरते हैं, इतना ही नहीं वे जो कुछ भी करते हैं, उसे बरक़रार रखने के लिए ज़रूरी कार्य का केवल 15 प्रतिशत ही योगदान करते हैं.
प्रोप्राइटरी सॉफ्टवेयर के लिए ओपन सोर्स इकोसिस्टम अलग तरह की स्थिरता दिक़्क़तों का सामना करता है. ये टिकाऊपन और निरंतरता से जुड़ी समस्याएं हैं, जिन्हें DPGs के लिहाज़ से सरकार द्वारा अलग तरीक़े से संबोधित किया जा सकता है. इन समस्याओं में फंडिंग का अंतर, अपर्याप्त गवर्नेंस, गैर-तकनीक़ी योगदान की बाधाएं, बुनियादी ढांचे के लिए असमान प्रभाव और मुश्किल कार्य परिस्थितियां शामिल हैं.
सरकार में OS प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग गवर्नेंस के नए मॉडलों और फंडिंग के नए स्रोतों के माध्यम से वर्तमान के OS पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित चुनौतियों को कम करने का अवसर पेश करता है. इतना ही नहीं यह एक ज़ोख़िम को भी सामने लाता है, ज़ाहिर है कि गवर्नेंस के स्पष्ट मानकों की गैरमौज़ूदगी में DPGs का उन इकाइयों के साथ संबंध समाप्त होने का ज़ोख़िम बना रहता है, जो उनका उपयोग करना चाहती हैं. ऐसे में कोड इंटीग्रिटी एवं स्थिरता के नतीज़ों के साथ वे ज़रूरत की तुलना में पर्याप्त फंड के बगैर रह सकते हैं.
नए गवर्नेंस मॉडल के बिना, कई किरदारों द्वारा DPGs की फंडिंग और उचित देखभाल के माध्यम से जो मूल्य सृजित किया जाता है, वो विभाजित सॉफ्टवेयर और विशेष रूप से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में किसी चीज़ को बनाए रखने में गड़बड़ी की वजह से समाप्त हो जाएगा. ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि तेज़ी से आगे बढ़ने वाले, कम लागत वाले एवं सुरक्षित सॉफ्टवेयर वाले DPGs के लिए एक टिकाऊ OS सरकारी प्रौद्योगिकी इकोसिस्टम बेहद ज़रूरी शर्त है.
दूसरा और बेहद गंभीर मसला यह है कि वर्तमान में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट को लेकर द्विपक्षीय और बहु-हितधारक स्टेट कोऑपरेशन यानी देशों के बीच सहयोग के लिए कोई स्थापित सिद्धांत या मंच मौज़ूद नहीं है. विश्व बैंक का कहना है कि “विभिन्न देशों में कई प्रक्रियाओं के काफ़ी हद तक एक समान होने के बावज़ूद, प्रत्येक नए प्रोजेक्ट को आम तौर पर एक नए और अस्थाई तरीक़े से बनाया जाता है. उससे लगता है कि जैसे कि कोई टेम्पलेट, कोड लाइब्रेरी या मॉडल पहले से मौज़ूद नहीं थे, या फिर नए डिजिटल गुड्स के कार्यान्वयन के लिए पहले के इसी तरह से सॉफ्टवेयर से कोई सबक नहीं लिया गया था.” DPGs के लिए सॉफ्टवेयर गवर्नेंस या द्विपक्षीय वित्त पोषण और ख़रीद मॉडल के लिए संयुक्त सिद्धांतों की गैरमौज़ूदगी में वैल्यू खो गई है, क्योंकि स्वायत्त संस्थाएं कोडबेस की नक़ल करती हैं और ऐसा करने के दौरान रखरखाव और डेवलपमेंट की लागतों को भी दोहराती हैं.
जी20 सदस्य देशों को DPG के विकास में हिस्सेदारी की अपनी क्षमता का मूल्यांकन और बखान करना चाहिए. इसका मकसद निजी सॉफ्टवेयर ख़रीद के साथ वर्तमान बहुत अधिक घनिष्ठता और OS सॉफ्टवेयर ख़रीद को लेकर जानकारी की कमी के बीच के अंतर को साफ तौर पर समाप्त करना है. देखा जाए तो यह DPGs विकसित करने के लिए एक रोडमैप का समर्थन करता है, जो एक बार शुरुआत होने का बिंदु निर्धारित होने के बाद सरकार द्वारा उसे अपनाने को पूरा कर सकता है.
तालिका 1: प्रमुख हितधारक
हितधारक | भूमिका | संगठनों के उदाहरण |
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गवर्नमेंट डिजिटल ख़रीद | बजट धारक; ज़ोख़िम का आकलन; आवश्यकता का ख़ाका खींचना | |
फाउंडेशन | समुदाय और सॉफ्टवेयर सहयोग प्रबंधन में विशेषज्ञता; डिजिटल गवर्नेंस में विशेषज्ञता | Linux फाउंडेशन, OASIS, NLnet फाउंडेशन
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इंटरनेट मानक और गवर्नेंस निकाय | IETF, ISOC, W3C, IRTF, IAB, IGF | |
अकादमिक और सिविल सोसाइटी | DPGA, Co-Develop, Beeck Centre; Ash Center; OSPO++; DIAL, पब्लिक कोड और OSI के लिए फाउंडेशन | |
सिस्टम को जोड़ने वाले और स्थानीय कार्यान्वयन भागीदार | देश में DPGs की तैनाती और रखरखाव; स्थानीय विशेषज्ञता | |
वैश्विक वित्त पोषण संगठन | कार्यान्वयन के लिए वित्तपोषण | विश्व बैंक, FCDO, GIZ, NORAD, USAID, मानवतावादी और लोक कल्याणकारी फाउंडेशन |
जी20 सदस्य देश तीन विकल्पों पर विचार कर सकते हैं: फिलहाल के लिए कोई कार्रवाई नहीं; सदस्य देशों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर कार्रवाई; सदस्य देशों द्वारा संयुक्त कार्रवाई.
विकल्प 1- कोई कार्रवाई नहीं
फिलहाल जो स्थित है, उसके अंतर्गत देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर ज़्यादातर DPGs बगैर किसी अहम और समन्वित राष्ट्रीय इनपुट के विकसित होते रहते हैं. इस मामले में DPGs की कमीशनिंग, गवर्नेंस और फंडिंग कई प्रकार के स्रोतों पर निर्भर करती रहेगी, जिनमें अंतिम यूजर्स यानी उपयोगकर्ताओं के छोटे-छोटे समूह, विश्वविद्यालय, डोनेशन और लोक कल्याण संगठनों जैसे स्रोत शामिल हैं. ज़ाहिर है कि इस तरह की निष्क्रिय भूमिका सरकारों को DPG विकास से जुड़े प्रबंधन और परिचालन की प्रक्रिया से बाहर कर देती है, साथ ही सरकारी ज़रूरतों के इर्द गिर्द अस्पष्टता या धुंधलापन बढ़ाने का काम करती है. इतना ही नहीं सरकारों का यह रवैया DPGs के विकास और तैनाती को मुख्य रूप से आर्थिक कमाई करने के लिए उन्हें संचालित करने वाले व्यवसायों और संस्थानों के ऊपर छोड़ देता है.
देश की क्षमताओं को समर्थन देने वाले कोडबेस की साझा तरीक़े से देखभाल करना एक अपवाद बना रहेगा, साथ ही किसी विशेष उद्देश्य के आधार पर, जहां अवसर और वर्तमान विशेषज्ञता मौजूद है, अनौपचारिक तरीक़े से आगे बढ़ाया जाएगा.
विकल्प 2: सदस्य देशों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर कार्रवाई
इस मॉडल के अंतर्गत देश DPGs के उपयोग और स्थिरता को बढ़ावा देंगे. इस दौरान देश या तो अपनी नेशनल गवर्नमेंट की ज़रूरतों पर ध्यान देंगे या फिर नागरिकों और गैर-सरकारी समूहों की आवश्यकताओं को पूरा करने पर फोकस करेंगे.
इस दृष्टिकोण के कुछ ऐतिहासिक उदाहरणों में आधार बायोमेट्रिक आईडी सिस्टम के लिए भारत सरकार द्वारा वित्त पोषण, gov.uk पर ब्रिटिश गवर्नमेंट के सरकारी डिजिटल सर्विस कार्य और स्थानीय डिजिटल फंड द्वारा दिया गया अनुदान या सिएरा लियोन की सरकार के तहत आने वाले साइंस, टेक्नोलॉजी एवं इनोवेशन निदेशालय द्वारा OpenG2P का विकास शामिल है.
अपनी खुद की राष्ट्रीय ज़रूरतों को पूरा करने वाले खुले समाधानों के लिए राष्ट्रीय सरकार का समर्थन, ज़ाहिर तौर पर उभरते हुए DPGs की तरफ ले जाने का काम करता है, जो कि भविष्य के सहयोग की आधारशिला रखते हुए अन्य सरकारों की ज़रूरतों को भी पूरा कर सकते हैं.
विकल्प 3: समन्वित अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई
डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास और रखरखाव की दिशा में सरकार की अगुवाई वाला सॉफ्टवेयर कोऑपरेशन एक प्रभावी रास्ता हो सकता है.
विभिन्न स्तरों पर सॉफ्टवेयर को ऑपरेटिव को बहुत प्रभावी दिखाया गया है; उदाहरण के तौर पर एवरग्रीन जैसे लाइब्रेरी सॉफ्टवेयर बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सरकारी सहयोग जैसे कि MOSIP एवं X-Road के आसपास निर्मित पूरे देश में उपयोगकर्ताओं के एक समूह को सेवा प्रदान करते हैं.
ओपन सोर्स और OS DPGs के माध्यम से सरकार और अंतर-सरकारी आवश्यकताओं को पूरा करने में अभी कई तरह की बाधाएं आती हैं, लेकिन उपरोक्त उदाहरण यह साबित करते हैं कि इस समस्या से निजात पाई जा सकती है.
ऊपर प्रस्तुत किए गए तीन विकल्पों में देखा जाए, तो इनसे जुड़े ज़ोख़िम भी हैं और अवसर भी हैं. जहां तक अहम DPGs की बात है, तो इसके लिए सतर्क, चुनिंदा सरकारी एजेंसी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के मेलजोल की ज़रूरत है. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रमुख फोरम के रूप में G20 को देखते हुए, लेखक विकल्प 3 को लेकर संजीदगी के साथ तैयार किए गए नज़रिए को अपनाने की सलाह देते हैं. लेखक DPGs पर सहयोग करने के लिए G20 सदस्य देशों की क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए दो सिफ़ारिशों का ख़ाका तैयार करते हैं, जो न केवल स्केलेबल हैं, यानी जिनका फैलाव असीमित है, बल्कि कम लागत वाली और सुरक्षित भी हैं.
समान विचारधारा वाले G20 सदस्य देशों के माध्यम से अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के लिए जो क़दम उठाए जाने चाहिए और कार्रवाई की जानी चाहिए, उसके बारे में नीचे बताया गया है:
सॉफ्टवेयर सहभागिता को प्रोत्साहित करने के लिए G20 के सदस्य देशों के कार्य समूह की स्थापना करें. यह कार्य समूह सदस्य देशों की डिजिटल टीमों और ख़रीद टीमों के बीच संबंधों को विकसित करने को प्रमुखता देगा, सरकारी सॉफ्टवेयर से संबंधित साझा ज़रूरतों की पहचान के लिए एक प्रतिबद्ध और समर्पित मंच उपलब्ध कराएगा, साथ ही खुले एवं DPG इकोसिस्टम में अग्रिम मोर्चे वाले सदस्य देशों के निवेश के लिए भी एक मंच प्रदान करेगा.
लेखकों का अनुमान है कि यह वर्किंग ग्रुप G20 सदस्य देशों के बीच व्यापक सॉफ्टवेयर सहयोग के लिए एक प्रवेश द्वार की भांति काम करेगा, साथ ही पहले मानकों, फिर डेटा और फिर सॉफ्टवेयर को साझा करने का मार्ग प्रशस्त करेगा.
यह फोरम तीन अल्पकालिक यानी थोड़े समय अंतराल के लिए आउटपुट प्रदान करेगा. सबसे पहले, OS DPGs को कार्यान्वित करने के लिए (1) न्यूनतम सीमा को प्रभावी और स्पष्ट करने में सदस्य देशों का समर्थन करने के लिए एक पॉलिसी फ्रेमवर्क विकसित करना. दूसरा, संयुक्त सॉफ्टवेयर गवर्नेंस के लिए (2) प्रारूप सिद्धांतों का प्रकाशन, जिसमें सॉफ्टवेयर सहभागियों में शामिल होने वाली स्वायत्त संस्थाओं के लिए एक रोडमैप विकसित करने हेतु वैश्विक विशेषज्ञों के साथ कार्य करना शामिल है. तीसरा, (3) सस्टेनेबल ओपन सॉफ्टवेयर उपयोग पर मानक से जुड़ा समझौता, जो कि सरकारी और गैर-सरकारी किरदारों की ज़रूरत को स्पष्ट करने वाला हो, साथ ही यह सुनिश्चित करें कि ओपन सोर्स पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भागीदारी टिकाऊ है.
(1) OS DPGs की ख़रीद एवं उपयोग के लिए न्यूनतम सीमाएं
सदस्य राष्ट्रों को OS DPGs विकास में हिस्सेदारी की अपनी क्षमता का मूल्यांकन और वर्णन करना चाहिए. इसका मकसद निजी सॉफ्टवेयर ख़रीद के साथ वर्तमान घनिष्ठता और OS सॉफ्टवेयर ख़रीद को लेकर जानकारी की कमी के बीच के अंतर को स्पष्ट तौर पर खत्म करना है. यह जानकारी DPGs को विकसित करने के लिए एक रोडमैप निर्धारित करती है. एक बार इसकी सीमा निर्धारित हो जाने के बाद, सरकार द्वारा उसे अपनाए जाने की प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है.
(2) संयुक्त सॉफ्टवेयर गवर्नेंस के लिए प्रारूप सिद्धांत
G20 को अपने सदस्य देशों की ओर से द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्टेटमेंट्स को प्रोत्साहित करना चाहिए. यानी की ऐसे बयान, जो संयुक्त सॉफ्टवेयर गवर्नेंस के लिए साझा सिद्धांतों को दर्शाते हैं और जिनके ज़रिए सदस्य देश DPGs पर सहयोग के लिए न्यूनतम मानकों को निर्धारित एवं समायोजित करते हैं. ये नियम या सिद्धांत न सिर्फ सहमति वाले गवर्नेंस, वित्त पोषण, लाइसेंसिंग और सामुदायिक मानकों को निर्धारित करेंगे, बल्कि विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं द्वारा सॉफ्टवेयर सहयोग को रेखांकित करते हुए एक विज़न, मिशन और मूल्यों के विवरण को क्रमबद्ध तरीक़े से व्यवस्थित भी करेंगे.
(3) टिकाऊ ओपन सोर्स उपयोग को लेकर मानक
जी20 सदस्य देशों को OS पारिस्थितिकी तंत्र में ज़्याद टिकाऊ भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ‘सॉफ्टवेयर बिल्स ऑफ मैटेरियल्स’ की तैनाती के लिए बढ़ते OS गवर्नमेंट टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और मौज़ूदा प्रतिबद्धताओं पर आगे की प्रगति के आधार के रूप में कार्य करना चाहिए. स्थायी OS उपयोग पर मानकों के निर्धारित होने से OS DPGs के समक्ष आने वाली गवर्नेंस की कमी और फंडिंग की समस्या से निपटना आसान हो जाता है, ज़ाहिर है कि इन दिक़्क़तों को अक्सर निजी सॉफ्टवेयर ख़रीद द्वारा छुपाया जाता है. ये मानक ओपन सोर्स के गैर-सरकारी इस्तेमाल के लिए उच्च स्तर निर्धारित कर सकते हैं और व्यापक पैमाने पर पूरे क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं. इतना ही नहीं ये मानक इंटरनेट या वेब से संबंधित दूसरे पहलुओं को विनियमित करने की व्यापक सरकारी कोशिशों के हिस्से के रूप में OS इकोसिस्टम को नुक़सान से बचने में सहायता कर सकते हैं, जैसे कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्यवसायों को नुक़सान से बचाने में मददगार हो सकते हैं.
G20 सदस्य राष्ट्रों को DPGs का विकास करने के लिए सॉवरेन फंड्स स्थापित करके अविकसित DPGs के लिए उच्च प्रभाव वाली फंडिंग को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसके साथ ही राष्ट्रीय सरकार, स्थानीय सरकार या फिर सामुदाय की ज़रूरतों के लिए डिजिटल समाधानों हेतु प्रयोग के तौर पर या सशर्त छोटे अनुदानों को देना चाहिए. इस तरह की फंडिंग के लिए व्यापक रूप से कई तरह के मॉडल उपलब्ध हैं और इसमें निम्न मॉडल शामिल हैं:
[a] This policy brief is a result of collaboration between Chatham House, University College, London, the Digital Public Goods Alliance, and a team of discussants and contributors. The team welcomes any opportunity to discuss the note further. The views expressed in this document are the sole responsibility of the participants and do not necessarily reflect the view of our respective institutions, staff, associates or councils.
[b] Throughout this brief, the authors ground the use of the term ‘DPG’ in the Digital Public Goods Alliance (DPGA) definition, which states that DPGs are “open-source software, open data, open AI models, open standards, and open content that adhere to privacy and other applicable international and domestic laws, standards and best practices, and do no harm.”
[1] “Registry”, Digital Public Goods Alliance.
[2] “Digital Public Goods Standard”, Digital Public Goods Alliance.
[3] Ben Nickolls, “The Impact of Civic Tech on Open Source”, Medium.
[4] Alex Krasodomski-Jones and Josh Smith, “The Open Road”, Demos.
[5] Anna Shipman, “The benefits of coding in the open”, UK Government Digital Service.
[6] International Bank for Reconstruction and Development/World Bank, “Open Source for Global Public Goods”, World Bank Group, 2019.
[7] David Eaves, Lauren Lombardo, and Nicolas Diaz, “Public-Sector Code-Sharing Communities”, Medium.
[8] David Eaves and Leonie Bolte, “Best Practices for the Governance of Digital Public Goods”, Ash Center for Democratic Governance and Innovation, April 2022.