तकनीक़ और लोगों की आवाजाही के एजेंडे का बहुपक्षीय ढांचे में एकीकरण

G20 ट्रोइका टेक्नोलॉजी और लोगों की आवाजाही से जुड़ी समझ का निर्माण करने के लिए इन बहुपक्षीय चर्चाओं को फिर से तैयार करने का एक अभूतपूर्व अवसर पेश करते हैं.
Astha Kapoor

भूमिका

ह्यूमन मोबिलिटी (मानव गतिशीलता) का जिक्र अलग-अलग बहुपक्षीय मंचों पर किया जाता है, भले ही वो सतही तौर पर क्यों न हो. 2015 से G20 के नेताओं ने औपचारिक घोषणा पत्रों  में माइग्रेशन (प्रवासन) को स्वीकार किया है और इसको लेकर चर्चा विदेश से धन भेजने (रेमिटेंस), जलवायु शरणार्थियों (क्लाइमेट रिफ्यूजी), श्रम बाजार के सवालों और छात्रों जैसी विशेष बातों को प्रदर्शित करने में बदल गई है. 2020 में कोविड-19 महामारी ने माइग्रेशन गवर्नेंस में कमियों को दिखाया है. इन कमियों में पर्याप्त डेटा का नहीं होना, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और शरणार्थियों, प्रवासियों एवं विस्थापित लोगों की चिंताओं का समाधान करने के लिए संवेदनशील कार्रवाई का नहीं होना शामिल हैं. बाली घोषणा पत्र  (2022) में प्रवासियों, खास तौर पर कामगारों को, महामारी के बाद की आर्थिक बहाली (इकोनॉमिक रिकवरी) के लिए महत्वपूर्ण बताया गया था.

हालांकि ये मुद्दा तकनीक की रूप-रेखा (फ्रेमवर्क), जो कि सभी बहुपक्षीय मंचों में एक महत्वपूर्ण चर्चा  बन गई है, के भीतर नहीं आता है. ये आवश्यक है कि G20 जैसे मंच मानव गतिशीलता पर संपूर्ण रूप से विचार करें, इसे अलग-अलग चर्चाओं में लाएं. ये जरूरत सिर्फ भारत की G20 की अध्यक्षता की वजह से पैदा नहीं हुई है बल्कि 2024 में ब्राजील और 2025 में दक्षिण अफ्रीका के द्वारा G20 की अध्यक्षता को देखते हुए भी इस मुद्दे को लेकर आम राय तैयार करना आवश्यक है.

इस लेख में टेक्नोलॉजी और डिजिटल इनोवेशन पर अलग-अलग चर्चाओं में एक थ्रेड के रूप में  मानव गतिशीलता पर बातचीत को शामिल करने की जरूरत बताई गई है. ये लेख लोगों की आवाजाही की कमजोरियों के बारे में बताता है. इसके लिए ये स्वीकार किया गया है कि आवागमन कर रहे लोग अलग-अलग प्रकार के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ जुड़ते हैं जहां पूरी तरह जानकारी दिए बिना ही डेटा इकट्ठा किया जाता है और फिर उसका इस्तेमाल निगरानी एवं धोखेबाजी के लिए किया जाता है. साथ ही ये भी माना गया है कि डेटा कलेक्शन और उसके इस्तेमाल को लेकर निर्णय लेने की प्रक्रिया में बेहतर प्राइवेसी या भागीदारी के लिए लोगों की बातचीत की क्षमता सीमित है. ह्यूमन मोबिलिटी के जरिए उत्पन्न डेटा वास्तव में उन देशों के लिए एक मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर है जो इसका इस्तेमाल सीमा के भीतर या बाहर लोगों की आवाजाही को सक्षम बनाने या उसे खारिज करने के लिए महत्वपूर्ण फैसलों में लेते हैं.

महत्वपूर्ण बात ये है कि इस लेख में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (लोगों के इस्तेमाल के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा यानी DPI), जो कि भारत की G20 की अध्यक्षता का एक प्रमुख आधार है, के लिए लेंस के रूप में लोगों की आवाजाही का उपयोग करने की आवश्यकता को बताया गया है.

भारत की G20 की अध्यक्षता में DPI की मुख्य भूमिका

डिजिटल इनोवेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर बहुपक्षीय भागीदारी का एक मूल विषय बन गया है. जापान की G7 अध्यक्षता के तहत भरोसे के साथ डेटा के फ्री फ्लो पर ध्यान दिया गया है जिसका उद्देश्य एक-दूसरे की मदद से डिपर्सनलाइज्ड डेटा को साझा करने और उनसे कीमती जानकारी जुटाने का मानक तैयार करना है. 2021 में इंडोनेशिया की G20 अध्यक्षता के दौरान एक सुरक्षित, समावेशी, लचीली और टिकाऊ डिजिटल अर्थव्यवस्था को लागू करने पर बातचीत के लिए एक नये वर्किंग ग्रुप की शुरुआत की गई. भारत, जिसे दिसंबर 2022 में G20 की अध्यक्षता मिली, के लिए आर्थिक कायापलट, वित्तीय समावेशन और विकास को आगे बढ़ाने के तौर पर DPI का विचार एक प्रमुख विषय है. भारत के द्वारा DPI बनाने, जो कि खुला, मापनीय (स्केलेबल) और बुनियादी डिजिटल तकनीक है, के अनुभव ने दिखाया है कि सार्वजनिक हित में बनाया गया इंफ्रास्ट्रक्चर लोगों (आइडेंटिटी सिस्टम), पैसे (पेमेंट) और डेटा (डेटा एक्सचेंज/रजिस्ट्री) की आवाजाही को सुविधाजनक बना सकता है.

ये विषय अलग-अलग ट्रैक और वर्किंग ग्रुप में एक थ्रेड के तौर पर चलता है. शेरपा ट्रैक के तहत एक टास्क फोर्स है जिस पर DPI को लेकर चर्चा को सुविधाजनक बनाने के साथ-साथ साझा परिणामों के लिए वैश्विक सहयोग की पहचान करने का भी जिम्मा है. साथ ही ‘हमारे साझा डिजिटल भविष्य: किफायती, सुलभ और समावेशी डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ पर थिंक20 वर्किंग ग्रुप भी है. DPI, विकास, डिजिटल अर्थव्यवस्था और वित्त को लेकर वर्किंग ग्रुप में भी दिखाई देते हैं. इसकी चर्चा स्वास्थ्य जैसे सेक्टर के संदर्भ में भी होती है. DPI को आर्थिक उत्पादकता और कार्यक्षमता को बढ़ाने वाले एक बड़े प्रेरक के तौर पर देखा जाता है और भारत इसे प्रदर्शित करने के लिए उत्साहित है. भारत के पास ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) की अध्यक्षता भी है जहां वो जिम्मेदार ढंग से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की व्यवस्था तैयार करने, पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने और नुकसान को रोकने के लिए सहयोग बनाने का काम कर रहा है. यहां भी DPI महत्वपूर्ण रूप से दिखेगा.

इसके साथ-साथ भारत ने माइग्रेशन पर कई समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए हैं. सबसे नया समझौता जर्मनी के साथ हुआ है जो माइग्रेशन और मोबिलिटी को लेकर है. ये समझौता अनियमित माइग्रेशन और तस्करी के खिलाफ लड़ते हुए भारतीय छात्रों के जर्मनी में पढ़ाई और काम को लेकर रास्ता तैयार करेगा. इसमें माइग्रेशन और मोबिलिटी पर एक साझा वर्किंग ग्रुप बनाने की प्रतिबद्धता जताई गई है. भारत ने यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस के साथ भी इसी तरह के समझौते किए हैं.

लेकिन ये द्विपक्षीय समझौते G20 के DPI एजेंडे में नहीं दिखते हैं जबकि लोगों, पेमेंट और डेटा की आवाजाही बातचीत का मूल विषय है. ये अलग-अलग एजेंडे में एकीकरण की कमी की तरफ इशारा करता है.

लोगों के आवागमन पर डिजिटल नजर

लोगों की गतिशीलता के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर उतना ही महत्वपूर्ण बन गया है जितना भौतिक (फिजिकल) इंफ्रास्ट्रक्चर है. कामगार प्रवासी, शरणार्थी और छात्र- सभी प्राइवेट सेक्टर, सरकारों और समुदायों के द्वारा बनाए गए “डिजिटल पैसेज (रास्ते)” पर निर्भर करते हैं और उसका इस्तेमाल करते हैं. जब लोग किसी देश में जाते हैं या उसे छोड़ते हैं तो इन तकनीकों का इस्तेमाल आवागमन की सुविधा प्रदान करने और नियंत्रण एवं निगरानी– दोनों के लिए किया जाता है. इंफ्रास्ट्रक्चर जिसे हम DPI के रूप में समझते हैं, जैसे कि भारत में आधार, उसे रोहिंग्या शरणार्थियों को नहीं मुहैया कराया जाता है जिसकी वजह से लाभ हासिल करने में मुश्किल आती है. अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू डेटा फ्लो (प्रवाह) प्रवासियों के द्वारा अपनी पहचान साबित करने की क्षमता पर असर डालते हैं, साथ ही जब डेटा को साझा किया जाता है तो निगरानी के जोखिम की स्थिति भी बनाते हैं. इस तरह के डेटा फ्लो की सुविधा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर देते हैं जो अक्सर सार्वजनिक होते हैं. इस बात के भी कई महत्वपूर्ण उदाहरण हैं कि प्राइवेट सेक्टर के संस्थान, जैसे कि पालांतिर टेक्नोलॉजीज, बिना स्पष्ट इजाजत के डेटा का इस्तेमाल करते हैं और इमिग्रेशन अथॉरिटी के साथ उसे साझा करते हैं. सरकार की तरफ से डेटा के मिलान की कोशिश जैसे कि यूरोडैक (यूरोपियन यूनियन में शरण के लिए आवेदन करने वालों के फिंगर प्रिंट का डेटाबेस) अलग-अलग लोगों की बायोमेट्रिक जानकारी इकट्ठा करते हैं, दूसरी सूचनाओं पर परत चढ़ाते हैं और फिर इसे आतंकी वारदात को रोकने, पता लगाने और छानबीन के लिए यूरोपोल (यूरोपियन यूनियन के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसी) के साथ साझा कर सकते हैं. नये सिस्टम जैसे कि स्मार्ट बॉर्डर में ड्रोन, सेंसर, फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का इस्तेमाल उन प्रवासियों की निगरानी के लिए किया जाता है जो सीमा के नजदीक पहुंच जाते हैं. मानव तस्करी करने वाले भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों के आने-जाने पर निगरानी और संभावित ग्राहकों तक पहुंचने के लिए करते हैं. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शरणार्थियों, प्रवासियों और शरण मांगने वालों जैसे संकट से घिरे समूहों तक ही सीमित नहीं है. हवाई अड्डों के जरिए आने-जाने वालों पर फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर के जरिए निगरानी तेजी से बढ़ रही है, उदाहरण के तौर पर जहां डिजिटल अधिकारों का समझौता महत्वपूर्ण है. तकनीक का दुरुपयोग मानव गतिशीलता पर डेटा के स्रोत की कमी से बढ़ जाता है. UNHCR के पास केवल 56 प्रतिशत शरणार्थियों की उम्र की जानकारी है. इसकी वजह से निर्णय लेने वाले की तरफ से शरणार्थियों और प्रवासियों को लेकर जोखिम और कमजोरियां गायब हो जाती हैं और वो जवाबी नीतियां बनाने में असमर्थ हो जाते हैं. अधूरी जानकारियां AI से प्रेरित फैसलों पर भी तेजी से असर डाल रहे हैं क्योंकि AI मौजूदा डेटा सेट से जुड़े होते हैं और उचित डेटा नहीं होने पर गंभीर नुकसान भी पहुंचा सकते हैं.

फिर भी तकनीक का इस्तेमाल, खास तौर पर DPI के नजरिये से, लाभदायक भी रहा है और इसे बढ़ाने की जरूरत है. महामारी के दौरान भारत में अभूतपूर्व तौर पर आंतरिक रूप से प्रवासियों की आवाजाही देखी गई और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर ने ये संभव बनाया कि लॉकडाउन की शुरुआत के बाद पहले हफ्ते में 20 करोड़ महिलाओं की पहचान करके उन्हें पैसे की मदद भेजी गई. भारत का वैक्सीन सिस्टम DIVOC ने बनाया जो कि एक सार्वजनिक इस्तेमाल का डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर है और जिसने लोगों के एक शहर से दूसरे शहर जाने के बाद भी एक अरब लोगों तक वैक्सीन की पहुंच को संभव बनाया. श्रीलंका और टोगो में भी महामारी के दौरान इस तरह के अनुभव देखे गए. DPI का एक और उदाहरण यूक्रेन से है जहां एक पहचान प्रणाली (आइडेंटिटी सिस्टम) का इस्तेमाल किया गया और युद्ध की वजह से भाग रहे लोगों के आवागमन की सुविधा के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने यूक्रेन, मोल्दोवा और पोलैंड में इसे मान्यता दी. ट्रेम्बिटा सिस्टम जैसा प्लैटफॉर्म भी ई-गवर्नेंस सेवाओं को उस वक्त नागरिकों तक पहुंचाने में मदद कर रहा है जब लोग देश के युद्ध से प्रभावित इलाकों से दूसरे इलाकों में जा रहे हैं.

सभी डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर मानव गतिशीलता पर प्रभाव डालते हैं और लोगों को उस जगह रखते हैं जहां वो बातचीत के लिए असमर्थ हैं, चाहे माइग्रेशन का तरीका कुछ भी हो. पूरी कागजी कार्रवाई और जाने के कानूनी अधिकार के साथ पर्यटकों को सीमा पर बायोमेट्रिक डेटा देना होता है; प्रवेश के अनौपचारिक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले गैरकानूनी  प्रवासियों को स्मार्ट बॉर्डर जैसी प्रयोग वाली तकनीकों के बारे में समझना होगा जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है. इसका अध्ययन करने और ज्यादा अर्थपूर्ण ढंग से समाधान करने की आवश्यकता है.

प्रौद्योगिकी का एक मानव केंद्रित दृष्टिकोण है कि ये लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करते हुए उनकी सुरक्षित आवाजाही को समर्थ बनाए. किसी भी समय तकनीक का उपयोग शोषण या नुकसान के लिए नहीं होना चाहिए और तकनीकी-कानूनी जवाबदेही की हार्डकोडिंग (किसी भी प्रोग्राम में डेटा या पैरामीटर को इस तरह से लगाना कि प्रोग्राम में संशोधन किए बिना उसे बदला नहीं जा सके) में DPI महत्वपूर्ण है. इनोवेशन में मौजूद कमजोरियों और संभावनाओं को समझने के लिए मानव गतिशीलता पर बातचीत के द्वारा नजर के तौर पर तकनीक के इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कारण है. लोगों के हाथ में साधन के तौर पर DPI के उपयोग का मूल्यांकन करने से संभावित इनोवेशन की कल्पना करने में मदद मिल सकती है जो लोगों और समुदायों की सेवा ज्यादा सार्थक ढंग से करेगा.

एजेंडा, भारत की अध्यक्षता और उससे आगे को जोड़ना

इस तरह मानव गतिशीलता को लेकर कई तरह की समानांतर बातचीत चल रही है- DPI को लेकर चर्चा देश की क्षमता के लिए लोगों के आवागमन और प्राइवेट सेक्टर के इनोवेशन पर केंद्रित है; लोगों की मोबिलिटी को लेकर बातचीत कुछ खास लोगों के सुरक्षित आवागमन और कुछ लोगों को रोकने के सहारे है. इसके अलावा लोगों की मोबिलिटी से जुड़ा समुदाय शरणार्थियों  और प्रवासियों पर तकनीक के असर को समझने से जूझ रहा है.

भारत की G20 अध्यक्षता दो महत्वपूर्ण एजेंडा को जोड़ने और मानव गतिशीलता के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के लिए समझ लाने का महत्वपूर्ण अवसर मुहैया कराती है. साथ ही जो लोग DPI को विकसित कर रहे हैं, उन्हें मोबिलिटी पर इन तकनीकों के असर को समझने में सक्षम बनाती हैं. भारत के DPI एजेंडे का फोकस लोगों, डेटा और भुगतान की आवाजाही है- इन तीनों मुद्दों को कमजोर आबादी पर असर की पड़ताल करने में नजरिए की तरह काम करना चाहिए.

एक व्यापक विमर्श (नैरेटिव) में तकनीक और लोगों की गतिशीलता (मोबिलिटी) को जोड़ने और G20 के बयानों में इसे दिखाने में भारत की सफलता ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका को मोबिलिटी-DPI के मिलने की जगह (इंटरसेक्शन) पर ज्यादा बारीक नजरिया सामने लाने में सक्षम बनाएगा और राष्ट्रीय संदर्भ पर आधारित ढांचे को जोड़ेगा. माइग्रेशन और मोबिलिटी राजनीतिक सवाल हैं और चूंकि G20 की बातचीत यूक्रेन संघर्ष के साये में हो रही है, ऐसे में इस तरह के आक्रामक मुद्दे का हल करना मुश्किल है. फिर भी बहस की सीमा और विभिन्नता, सदस्य देशों के असाधारण प्रभाव और तकनीक के वैश्विक असर पर G20 के बढ़ते ध्यान की वजह से G20 एक उचित मंच है.

भारत की पहल में अपने G20 के कैलेंडर में मोबिलिटी-DPI इंटरसेक्शन पर केंद्रित बाहरी कार्यक्रमों को जोड़ना और ब्राजील एवं दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता की शुरुआत में संपर्क करके साझा रास्ता बनाना हो सकता है.

G20 ट्रोइका में इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील शामिल हैं और जल्द ही इसमें दक्षिण अफ्रीका (जो कि IBSA और BRICS का सदस्य भी है) भी शामिल हो जाएगा. ये इन बहुपक्षीय चर्चाओं की समीक्षा का एक अभूतपूर्व अवसर पेश करता है ताकि नये सवालों को सुलझाया जा सके और ज्यादातर लोगों के अनुभवों पर आधारित तकनीक एवं मानव गतिशीलता को समझा जा सके.