जी20 की अध्यक्षता के दौरान,भारत बन सकता है ‘विकासशील देशों’ की आवाज़!

भारत की अध्यक्षता में सबसे व्यापक और कमज़ोर तबक़ों की नुमाइंदगी होनी चाहिए. वोदक्षिण एशिया के भीतर आर्थिक एकीकरण को सही मायनों में आगे बढ़ा सकता है, जो भारत के उभार के लिए निहायत ज़रूरी है.
SUJAN R. CHINOY

 

बीते 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जी20 अध्यक्षता से जुड़े प्रतीक चिन्ह,कथ्य और वेबसाइट का अनावरण किया था. इसके साथ ही भारत की G20 की अध्यक्षता की दशा-दिशा तय हो गई थी. 1 दिसंबर से भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाल ली है. मोदी का “एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य” का नारा वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र को सटीक रूप से दर्शाता है. लोगो में राष्ट्रीय ध्वज के रंगों के साथ सात पंखुड़ियों वाला कमल का फूल भी है, जो सांकेतिक रूप से धरती, उसके महासागरों और सात महादेशों पर टिका दिखाई देता है. इससे पृथ्वी के पर्यावरण के अनुकूल रुख़ के संकेत मिलते हैं. दरअसल, इसके ज़रिए मोदी ये जताना चाह रहे थे कि अपनी अध्यक्षता में भारत भौगोलिक सीमाओं और श्रेणियों के परे जाकर पूरी दुनिया को अपने दायरे में लेगा. कोई भी इसमें पीछे नहीं छूटेगा. भारत ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील देशों) की आवाज़ बनकर वैश्विक संपदाओं की आपूर्ति की दिशा में काम करेगा. कमल का फूल शुद्धता और जीवटता का प्रतीक है. ये उस उम्मीद का संकेतक है कि वैश्विक बिरादरी कोविड-19 महामारी के विनाशकारी आर्थिक प्रभावों पर क़ाबू पाकर मज़बूती से खड़ी हो जाएगी.

भारत ग्लोबल साउथ (अल्प-विकसित और विकासशील देशों) की आवाज़ बनकर वैश्विक संपदाओं की आपूर्ति की दिशा में काम करेगा. कमल का फूल शुद्धता और जीवटता का प्रतीक है. ये उस उम्मीद का संकेतक है कि वैश्विक बिरादरी कोविड-19 महामारी के विनाशकारी आर्थिक प्रभावों पर क़ाबू पाकर मज़बूती से खड़ी हो जाएगी. 

भारत की जी20 अध्यक्षता, उसके बढ़ते आत्मविश्वास के बीच सामने आई है. ये घटनाक्रम भारत के बढ़ते रुतबे और आर्थिक विकास की ऊंची दर के साथ जुड़ती है. हालांकि, इस सफ़र में उसे भू-राजनीति से जुड़े पेचीदा हालातों का सामना करना पड़ेगा. इस वक़्त यूक्रेन युद्ध के चलते जी7 देशों और रूस के बीच तनाव का माहौल है. उधर अमेरिका और चीन के बीच टकराव भी बढ़ते जा रहे हैं. दक्षिण-दक्षिण (अपेक्षाकृत निर्धन देशों) के बीच सहयोग बढ़ाने को लेकर भारत की प्रतिबद्धता भी जगज़ाहिर हो चुकी है. जब कोरोना महामारी शिखर पर थी, तब भारत ने 101 देशों को दूसरी मेडिकल सहायताओं के साथ-साथ कोविड वैक्सीन के 25 करोड़ डोज़ उपलब्ध कराए थे. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को सलाह देते हुए कहा था कि “मौजूदा युग युद्ध का नहीं है”. इस मशविरे के पीछे शांति और अहिंसा के सिद्धांत के साथ-साथ बुद्ध और गांधी की विरासत भी है.

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार

जी20 में भारत की अगुवाई निरंतरता और बदलाव से परिभाषित होगी. इसमें विकास के एजेंडे को पहली प्राथमिकता मिलनी चाहिए. ऊर्जा विविधीकरण पर मतभेदों के साथ-साथ व्यापार और प्रोद्योगिकी के मोर्चे पर उभरती चुनौतियों में सामंजस्य बिठाने की दरकार होगी. अमेरिका, चीन और यूरोप में आर्थिक सुस्ती और महंगाई के साझा दौर से वैश्विक आर्थिक तस्वीर को ख़तरा पहुंचने की आशंका है. व्यापक अर्थव्यवस्था और व्यापार में नीतिगत निरंतरता एक अहम सरोकार है. अक्टूबर 2021 में “वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मज़बूती” से जुड़ी बैठक में मोदी ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में सुधार के लिए तीन अहम पहलुओं पर सहयोग की वक़ालत की थी. ये हैं- भरोसेमंद स्रोत, पारदर्शिता और समयसीमा. इस साल SCO की बैठक में उन्होंने यूक्रेन संकट की वजह से आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावट की चर्चा करते हुए ऊर्जा और खाद्य सामग्रियों के क्षेत्र में अभूतपूर्व संकट पर अपनी बात रखी थी.

समावेशी डिजिटल सार्वजनिक ढांचे तक पहुंच के लिए डिजिटल मोर्चे पर परिवर्तनकारी क़वायदों को लेकर भारत की प्रतिबद्धताएं एक प्रमुक कारक होंगी. यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI), डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रांसफ़र और कल्याणकारी योजनाओं में आधार सत्यापनों के इस्तेमाल में देश की शानदार कामयाबी, विकासशील विश्व के लिए बहुत प्रासंगिक है. कोविन प्लेटफ़ॉर्म के प्रयोग ने टीके तक पहुंच और समानता को बढ़ावा दिया. भारत ने वैक्सीन उत्पादन में समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए TRIPS में छूट दिए जाने को लेकर मज़बूत आवाज़ उठाई है.

आज दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं डिजिटलाइज़ेशन की ओर तेज़ी से बढ़ रही हैं. ऐसे में ओपन सोर्स और ओपन एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफ़ेस (API) पर आम सहमति तैयार करना अहम है. इसके अलावा सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफॉर्मों के लिए इंटरऑपरेबल ढांचा विकसित करना भी ज़रूरी है, ताकि उसकी बुनियाद पर निजी क्षेत्र खुलकर नवाचार कर सके. इससे वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक वस्तुओं के लिए डिजिटल परिवर्तनों के प्रभावों को अधिकतम स्तर पर लाने में मदद मिलेगी. इनमें न्यू डेटा, मेज़रमेंट टूल्स, आर्थिक प्रगति के संकतों के साथ-साथ सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने की दिशा में कामयाबियां शामिल हैं. भारत की अध्यक्षता के दौरान जलवायु से जुड़ी चुनौती का एक अहम विषयवस्तु बनकर उभरना तय है. स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत के परिवर्तनकारी उपायों और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों की रोकथाम को लेकर वैश्विक क़वायदों से यहां के शीर्ष नेताओं की प्रतिबद्धता की झलक मिलती है. ग्लासगो में COP26 के दौरान मोदी ने मिशन LiFEका प्रस्ताव किया था. इसके तहत जलवायु कार्रवाई से जुड़े वैश्विक विमर्श के केंद्र में व्यक्तिगत बर्तावों को शुमार किया गया था. इस मिशन का लक्ष्य धरती के अनुकूल जीवन के हिमायती लोगों(P3) का वैश्विक नेटवर्क तैयार करना और उसको आगे बढ़ाना है. ये ऐसे लोग हैं जो पर्यावरण अनुकूल जीवनशैलियां अपनाने और उनको आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हों. दरअसल ये क़वायद इस विचार पर आधारित है कि व्यक्तिगत स्तर पर ज़िम्मेदारी भरे बर्ताव से प्रकृति को हुए नुक़सान की भरपाई की जा सकती है.

समावेशी डिजिटल सार्वजनिक ढांचे तक पहुंच के लिए डिजिटल मोर्चे पर परिवर्तनकारी क़वायदों को लेकर भारत की प्रतिबद्धताएं एक प्रमुक कारक होंगी. यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI), डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रांसफ़र और कल्याणकारी योजनाओं में आधार सत्यापनों के इस्तेमाल में देश की शानदार कामयाबी, विकासशील विश्व के लिए बहुत प्रासंगिक है.

दुनिया की आबादी 8 अरब के पार पहुंच चुकी है. ऐसे में हमें महात्मा गांधी की उस चेतावनी को याद करना चाहिए कि इस संसार में हरेक की ज़रूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं लेकिन सबकी लालच पूरी करने के लिए साधन नहीं हैं.पहले COP27 और अब जी20 अध्यक्षता में भारत जलवायु वित्त पर ध्यान केंद्रित करेगा. इसके तहत ख़ासतौर से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए मौजूदा सालाना 100 अरब अमेरिकी डॉलर की वचनबद्धता से परे परिमाणित रूप से नए लक्ष्य पर ग़ौर करना होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढलने और उसकी रोकथाम के लिए 2020 से 2025 तक विकसित देशों की मदद की जा सके. इस विलंबित प्रतिबद्धता को 2023 में भारत की अध्यक्षता के दौरान पूरा किए जाने की उम्मीद है. यहां से जी20 को अपने मानक ऊपर उठाने होंगे.

COP26 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा “पंचामृत” से जुड़ी घोषणाओं से भारत जलवायु के मोर्चे पर एक नेता के तौर पर स्थापित हो गया. इन एलानों में 2070 तक नेट ज़ीरो, 2030 तक 500 GW कीग़ैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता, 2030 तक ऊर्जा ज़रूरतों के 50 प्रतिशत हिस्से को नवीकरणीय साधनों से हासिल करना, 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन की गिरावट और भारतीय अर्थव्यवस्था की कार्बन सघनता को घटाकर 45 प्रतिशत पर लाना शामिल है. जी20 की अध्यक्षता भारत को स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी भागीदारियों पर कई कार्यक्रमों पर ज़ोर देने का मौका प्रदान करेगी. इनमें ख़ासतौर से यूरोपीय संघ, जापान और अमेरिका के साथ सौर, पवन और हाइड्रोजन ऊर्जा से जुड़े कार्यक्रम शामिल हैं. इससे “एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड” को आगे बढ़ाने के लिए मंच मिलेगा. 2018 में अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ (ISA) में सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने ये विचार सामने रखा था.

स्वच्छ ऊर्जा और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की क़वायद एक दूसरे को मज़बूती दे सकती है. ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक स्तर पर जीवाश्म ईंधनों की जगह ले सकता है. इनमें मुश्किल से बदलने वाले क्षेत्र जैसे रिफ़ाइनरियां, ऊर्वरक, परिवहन और सीमेंट शामिल हैं. भारत के पास तेज़ रफ़्तार और कार्बनमुक्त आर्थिक विकास की शानदार मिसाल क़ायम करने के लिए ज़रूरी क्षमता और विशालता मौजूद है. इससे वैश्विक स्तर पर नेट ज़ीरो महत्वाकांक्षाओं से जुड़ी जी20 की क़वायदों को कामयाबबनाने में मदद मिलेगी. ग्रीन अमोनिया और हरित जहाज़रानी के साथ-साथ GH2 मेंविकास और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में व्यावहारिक अंतरराष्ट्रीय ढांचा बेहद अहम है. अहम धातुओं की भरोसेमंद आपूर्तियों और ऊर्जा भंडारण के लिए प्रौद्योगिकीय गठजोड़ों (वैश्विक स्तर पर बैटरी गठजोड़ों के साथ) से इसके जवाब मिल सकते हैं. ऊर्जा बाज़ार में उतार-चढ़ाव के चलते यूरोप में असैनिक परमाणु ऊर्जा के लिए समर्थन अभी बेहद शुरुआती अवस्था में है. ऐसे में जी20 एक विस्तारित और ठोस असैनिक परमाणु ऊर्जा सहयोग ढांचे(छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर्स समेत) की दिशा में काम कर सकता है.

आज बहुपक्षीय संस्थानों को ग़ैर-नुमाइंदगी वाला, बेअसर या कई बार दोनों समझा जाने लगा है. ऐसे में नए बहुपक्षीयवाद की मांग हो रही है और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का आकलन हो रहा है.

नये बहुपक्षीयवाद की मांग

आज बहुपक्षीय संस्थानों को ग़ैर-नुमाइंदगी वाला, बेअसर या कई बार दोनों समझा जाने लगा है. ऐसे में नए बहुपक्षीयवाद की मांग हो रही है और वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का आकलन हो रहा है. इसका मक़सद साख में पर्याप्त बढ़ोतरी सुनिश्चित करना और टिकाऊ हरित परिवर्तनों के लिए मिश्रित वित्त की क़वायद पर ज़ोर देना है, जो लोकप्रिय वैश्विक भावना को दर्शाता हो. हाल के वर्षों में भारत की वैश्विक पहलों- जैसे SAGAR यानी इलाक़े में सबके लिए सुरक्षा और तरक़्क़ी, “ब्लू इकॉनोमी”, “स्वच्छ महासागर” और आपदा का सामना करने वाले टिकाऊ बुनियादी ढांचे- के जी20 में लोकप्रियता हासिल करने की संभावना है.

भारत की अध्यक्षता में जी20 को सबसे व्यापक और कमज़ोर तबक़ों (ख़ासतौर से दक्षिण एशिया में) की नुमाइंदगी करना चाहिए. इस क़वायद से दक्षिण एशिया के भीतर आर्थिक एकीकरण को सही मायनों में आगे बढ़ाया जा सकता है, जो भारत के उभार के लिए निहायत ज़रूरी है.

ये सचमुच भारत का लम्हा है. वो दुनिया में नई उम्मीद भर सकता है और भौतिकवाद से परे मूल्यों पर आधारित भविष्य की ओर राह दिखा सकता है. इस तरह दुनिया को महामारी, युद्ध और वैचारिक टकरावों से इतर आगे ले जाया जा सकेगा.

लेखक भारत की जी20 अध्यक्षता के थिंक-20 कोर ग्रुप के चेयर हैं, वो मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस के महानिदेशक हैं. लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं.


ये लेख मूल रूप से इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ है.