डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित कर कृषि और खाद्य प्रणालियों को निष्पक्ष और टिकाऊ बनाया जा सके: G20 के लिए नीति और निवेश प्राथमिकताएं

Heike Baumüller | Benjamin Kwasi | Addom Damayanti Buchori | Stefan Heinke | Hector Mongi | Mumbi Munene | Dil Rahut | Yamunna Ramakrishna Rao

टीएफ-6: एसडीजी को तेज़ करना: 2030 एजेंडे के लिए नए रास्ते तलाशना

“खाद्य सुरक्षा, पोषण और जलवायु के अनुकूल कृषि”


सार

डिजिटलीकरण वैश्विक रूप से कृषि और खाद्य प्रणालियों को सकारात्मक रूप से बदलने का वादा करता है. हालांकि, इसका प्रसार जी20 देशों में व्यापक रूप से अलग-अलग स्तर पर है. डिजिटल कौशल और बुनियादी ढांचे से जुड़ा स्थाई डिजिटल विभाजन इसे अपनाने में बाधा पैदा करता है, जो एक बेहद मुश्किल क्षेत्र है और जिसके लिए ज़रूरत होती है स्थानीय स्तर पर अपनाए जा सकने वाले समाधानों, और डिजिटल समाधानों के लाभों और जोखिमों के बारे में ज्ञान की कमी की. विशेष रूप से छोटे पैमाने के उत्पादकों के लिए ये बाधाएं अधिक होती हैं, जिनके पास अक्सर डिजिटल अवसरों का लाभ उठाने के लिए आवश्यक वित्तीय, तकनीकी या डिजिटल क्षमताएं नहीं होतीं.

जी20 अपनी सरकारों को प्रोत्साहित कर और उनका समर्थन करके, अन्य कर्ताओं के साथ साझीदारी में, (1) मानक-निर्धारण, गुणवत्ता नियंत्रण और डाटा सुरक्षा के लिए समन्वित नीति कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध होकर; (2) डिजिटल क्षमताओं का निर्माण कर, विशेष रूप से छोटे पैमाने के उत्पादकों के बीच; (3) कृषि में डिजिटल समाधानों तक पहुंच और उनकी समझ में सुधार कर; और (4) पारिस्थितिकी प्रणालियों में निवेश कर ताकि डिजिटल कृषि समाधानों के नवाचार और पैमाने को प्रोत्साहित किया जा सके, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

 

1.चुनौती

डिजिटलीकरण में वैश्विक रूप से कृषि और खाद्य प्रणालियों को सकारात्मक रूप से बदलने की बहुत ज़्यादा संभावना है. यह सभी के लिए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन के टिकाऊ उत्पादन को सक्षम बना सकता है. जी20 सदस्य राज्यों और उससे बाहर भी छोटे और बड़े उत्पादकों के बीच टिकाऊ प्रथाओं को सुविधाजनक बनाकर, यह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से ‘भूख से मुक्ति’, ‘गरीबी से मुक्ति’, ‘अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण’, ‘लैंगिक समानता’, ‘उचित काम और आर्थिक विकास’, ‘जलवायु परिवर्तन’ और ‘भूमि पर जीवन’ को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.

खाद्य प्रणालियों से संबंधित गतिविधियों में डिजिटल समाधानों का प्रसार जी20 देशों में व्यापक रूप से भिन्न है. अमेरिका और यूरोप में आमतौर पर बड़े कृषि उत्पादक डिजिटल समझ का नेतृत्व करते हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि छोटे पैमाने के उत्पादक इससे बाहर न हो जाएं. दुनिया के 608 मिलियन खेतों में से, 510 मिलियन का रकबा 2 हेक्टेयर से कम है लेकिन ये अब भी वैश्विक खाद्य आपूर्ति का एक तिहाई से अधिक का उत्पादन करते हैं.[1] जी20 के संदर्भ में बात करें तो चीन, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में बहुत से छोटे खेतों में 3जी नेटवर्क की पर्याप्त पहुंच नहीं है (चित्र 1 देखें). हालांकि पूरी तरह से ऐसा भी नहीं है लेकिन जी20 देशों में छोटे खेत अच्छी-ख़ासी संख्या में हैं, जिनमें उच्च आय वाले देश जैसे दक्षिण कोरिया, जापान और सऊदी अरब भी शामिल हैं. वैसे तो ऐसे देशों में छोटे खेतों में आमतौर पर 3 जी कनेक्टिविटी का स्तर अच्छा  है लेकिन वे डिजिटल तकनीकों को अपनाने में अपने बड़े प्रतिस्पर्धियों से पिछड़ जाते हैं.[2]

खाद्य सुरक्षा और आय सृजन के लिए व्यापक रूप से अपनाए जाए बिना डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के प्रयास अधूरे हैं, खासकर छोटे पैमाने के उत्पादकों के बीच, ताकि इससे लाभार्थियों को परिणाम देने वाले मौकों का समान रूप से आनंद मिल सके. इसलिए, निम्नलिखित चुनौतियों पर विचार करना अनिवार्य है: पहुंच और सुलभता, कार्यशील पारिस्थितिकी तंत्र, और जोखिम प्रभाव का मूल्यांकन.

 चित्र 1: जी20 देशों में फसल भूमि में छोटे खेतों और 3 जी कवरेज की व्यापकता

नोट: अलग-अलग वर्ष. * के साथ देशों के लिए एफ़ ए ओ डाटा का उपयोग करके गणना किए गए हैं (अधिक जानकारी के लिए एंडनोट 1 देखें).

स्रोत: एंडनोट 1 (खेत) और [3](3जी कवरेज) देखें. रूस और दक्षिण अफ्रीका के लिए खेत के आकार के आंकड़ों के लिए, क्रमशः एंडनोट [4] और [5] लागू होते हैं.

पहुंच और सुलभता की बाधाएं अनसुलझी हैं

डिजिटल समाधानों तक पहुंच और सुलभता में डिजिटल बुनियादी ढांचे की असमान उपलब्धता, गुणवत्ता और आधारभूत डिजिटल ढांचे के उपयोग, साथ ही प्रौद्योगिकियों की उच्च लागत के कारण बाधा पड़ती है.[6] कई जी20 देशों में, कृषि भूमि की उपेक्षा होती है, इसलिए वे तेज और विश्वसनीय मोबाइल नेटवर्क (यानी, 3 जी और उससे ऊपर) का फ़ायदा नहीं उठा सकते. विशेष रूप से, कम विकसित देशों में, डिजिटल प्रौद्योगिकियों और मोबाइल डाटा की लागत अब भी काफ़़ी अधिक है, जिससे कई छोटे पैमाने के उत्पादकों के लिए डिजिटल उपकरणों की कीमत पहुंच के बाहर है. बड़े खेतों के मामले में भी, अब भी महंगी तकनीकी उन्नयन को अपनाने की ज़रूरत पड़ रही है. कनेक्टिविटी की समस्याएं,जैसे कि उपकरणों को चार्ज करने के लिए और कार्यशील मोबाइल नेटवर्क बुनियादी ढांचे के लिए बिजली की उपलब्धता में अंतर से और बढ़ जाती हैं. उच्च आय वाले देशों में, उच्च अग्रिम निवेश लागत छोटे किसानों को अधिक परिष्कृत डिजिटल समाधानों को अपनाने से रोकती हैं.

मोबाइल फोन और इंटरनेट की उपलब्धता के मामले में महिलाएं विशेष रूप से वंचित हैं.[7] 2022 में, निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना 19 प्रतिशत कम और स्मार्टफोन का उपयोग करने की संभावना 17 प्रतिशत कम थी. यह असमानता 2020 से बढ़ रही है और अंतर को पाटने की प्रगति ठप हो गई है.

वर्तमान क्षमता-निर्माण और वित्तपोषण के प्रयास उपलब्धता को सुविधाजनक बनाने के लिए अपर्याप्त हैं.[8] कृषि क्षेत्र में डिजिटलीकरण की शुरुआत करने में सीमित कौशल बड़ी बाधाएं पैदा कर सकता है. साक्षरता की असमानताओं को देखते हुए, कृषि क्षेत्र में आवाज़ के ज़रिए मिलने वाले समाधान, लिखे हुए समाधानों की तुलना में, ज़्यादा लोगों तक पहुंचने में कारगर साबित हो सकते हैं, लेकिन ऐसे समाधानों की उपलब्धता को संचालित करना और इसे बड़े पैमाने पर बढ़ाना महंगा है. फिर भी, कम डिजिटल क्षमता वाले कृषि उत्पादकों को अपने डिजिटल कौशल और ज्ञान को बढ़ाने का बहुत कम अवसर दिया जाता है. अक्सर, उत्पादक डिजिटल अनुप्रयोगों (applications) की डिज़ाइन प्रक्रिया में भी शामिल नहीं होते हैं, जो उनकी आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से पूरा करने के लिए पहली आवश्यकता होनी चाहिए.

पारिस्थितिक तंत्र अभी तक मौजूद नहीं हैं या काम नहीं कर रहे हैं

प्रणालियों, संस्थानों और कर्ताओं में विषमता कृषि-खाद्य क्षेत्र में डिजिटल उपायों को बड़े पैमाने पर ले जाने से रोकती हैं. पहली, आर्थिक विषमता है. जी20 में, कृषि क्षेत्र को विभिन्न आकार और विशेषज्ञता वाले उत्पादकों और व्यवसायों की एक विस्तृत श्रृंखला से पहचाना जाता है, जिसमें कुछ देशों में छोटी इकाइयों की अधिकता है (चित्र 1 देखें). बड़े निगमों के विपरीत, छोटे पैमाने के उत्पादकों के पास आमतौर पर एक केंद्रीय आईटी सहायता इकाई या विशेषज्ञ नहीं होता है जो उनके लिए डिजिटल समाधानों का अधिकारी हो और उन्हें कार्यान्वित कर सकता हो, जिससे किसी भी संभावित व्यवस्थित तालमेल-निर्माण के प्रयासों में बाधा पैदा होती है. दूसरा है पर्यावरणीय विषमता. कृषि उत्पादन विभिन्न और अलग-अलग मापदंडों जैसे वनस्पति, मिट्टी, मौसम और ऋतुों पर निर्भर करता है. इसके अलावा, इन पर्यावरणीय परिस्थितियों को नियंत्रित करना असंभव है, जिससे एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है. तीसरा है संस्थागत विषमता. नीति क्षेत्र में समन्वय की कमी के कारण, देश अक्सर क्षेत्रीय दृष्टिकोण से काम करते हैं, जिसमें एक स्पष्ट राष्ट्रीय रणनीति या नीतिगत सुसंगतता नहीं होती है.[9] कृषि में डिजिटलीकरण के मुद्दे को भी अक्सर सार्वजनिक क्षेत्र के बजाय निजी क्षेत्र के दायरे में देखा जाता है.

बहुत से आशाजनक प्रयोगों को बड़े पैमाने पर नहीं बढ़ाया जा सकता, आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि नवप्रवर्तक, निवेशक और सरकारें संभावित तालमेल नहीं कर पा रही हैं- न तो नवाचार के लिए और न ही कृषि के आंकड़ों के लिए.[10] कृषि स्टार्ट-अप के लिए, आंकड़ों को हासिल करना अब भी चुनौतीपूर्ण है. संसाधनों को गलत तरीके से उन उपकरणों या कलन विधि (algorithms) के विकास के लिए आवंटित किया जाता है जो पहले से मौजूद हैं या ऐसे आंकड़ों को खोजने के लिए जो कहीं और उपलब्ध हैं. जहां एक पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है, वहाँ यह पूरी नवाचार मूल्य श्रृंखला को देखने में नाकाम रहता है. आमतौर पर ध्यान तो नवाचार, अनुसंधान या व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक उत्पादों पर होता है, लेकिन अक्सर इन तीनों के बीच का संबंध गायब होता है. इस प्रकार, सेवा प्रदाता बड़े पैमाने पर लाभ पैदा करने के लिए सहयोग और संयुक्त सेवाएं (bundled services) प्रदान करने के बड़े मौकों से चूक जाते हैं. निजी तौर पर संगठित ऑनलाइन मंच तालमेल बनाने और आंकड़ों को साझा करने में मदद कर सकते हैं. उनकी अनुपस्थिति में, विशेष रूप से निम्न-आय वाले देशों में, यह कहा जा सकता है कि सरकार को इस तरह के अवसर का निर्माण करने के लिए कदम उठाना चाहिए.

डिजिटलीकरण के संभावित जोखिमों को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है और ही उनका प्रबंधन हुआ है

कृषि में डिजिटलीकरण के वास्तविक लाभों और संभावित जोखिमों की पूरी समझ आमतौर पर मौजूद नहीं होती है.[11] तकनीकों को कैसे इस्तेमाल किआ जाता है, इसके आधार पर वे समानता, उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ावा दे सकती हैं या फिर असमानताओं और पर्यावरण के नुक़सान को और बढ़ा सकती हैं. उदाहरण के लिए, डिजिटल सलाहकार सेवाएं, कृषि उत्पादकों को जलवायु-स्मार्ट (संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन- एफएओ ने climate-smart agriculture (सीएसए) को ‘ऐसी कृषि के रूप में परिभाषित किया है जो लगातार उत्पादकता बढ़ाती है, लचीलापन (अनुकूलन) बढ़ाती है, जहां संभव हो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करती है, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को बढ़ाती है) और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रथाओं के माध्यम से अपनी उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम कर सकती हैं, लेकिन ये भी गैर-टिकाऊ परिणामों को जन्म दे सकती हैं. जहां डिजिटल समाधानों के प्रभाव के बारे में अनिश्चितता है, वहीं यह ख़तरा भी है कि डिजिटल उपायों की पूरी क्षमता को समझा नहीं जा सकता. यह महत्वपूर्ण है कि उचित साक्ष्य-आधारित शोध किया जाए और समय-समय पर मूल्यांकन किया जाए, जहां हाशिए के समूहों, पर्यावरण और उत्पादकता पर प्रभाव समान रूप से तौला जाए.

डिजिटल कृषि समाधानों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण तंत्र ज़्यादातर उपलब्ध ही नहीं हैं. सरकार द्वारा मूल्यांकन, प्रमाणन और निगरानी के मानक विकसित नहीं किए गए हैं जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल समाधान टिकाऊ और समावेशी कृषि में योगदान करते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि यह दायित्व डिजिटल कृषि सेवाओं के प्रदाताओं को बन जाता है कि वे डिजिटल सेवाओं के व्यावहारिक प्रभाव को प्रदर्शित करें और संभवतः अपनी कार्यप्रणाली, आंकड़ों के उपयोग और स्वचालन विधियों के बारे में अधिक पारदर्शी हों. सिर्फ़ तभी कृषि-खाद्य क्षेत्र के कर्ता इन उपायों पर भरोसा करेंगे और इनका इस्तेमाल समझ-बूझकर निर्णय लेने और उद्देश्यपूर्ण ढंग से करेंगे. हालांकि स्मार्ट खेती के लिए मानक विकसित करने के प्रयास जारी हैं, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) भी मदद कर रहा है लेकिन इन प्रक्रियाओं में जी20 देशों में पाए जाने वाले डिजिटल कृषि अनुप्रयोगों में व्याप्त विविधता को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया जा रहा है.[12]

2.जी20 की भूमिका

जहां भी डिजिटल शासन की सरंचना की कमी हो वहां जी20 आगे बढ़कर प्रतिक्रिया कर सकता है बल्कि इसे करनी ही चाहिए. आखिरकार यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है और विश्व की दो-तिहाई आबादी का घर है. जी20 ने कृषि में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने और डिजिटल रूप से उन्नत देशों और उन देशों के बीच की खाई को पाटने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है जो अब भी इस मामले में पिछड़ रहे हैं. 2022 में हुई जी20 कृषि मंत्रियों की बैठक में, जी20 के नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि सामूहिक डिजिटल कृषि भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, समानता और स्थिरता के सिद्धांतों को मानकर चल रहे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रीय सरकारों के लिए सहयोग आधारभूत ज़रूरत है.[13] 2022 में हुई वित्त और कृषि मंत्रियों की संयुक्त बैठक में भी खाद्य असुरक्षा की समस्या का समाधान करने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर कुशल समन्वय हासिल करने को लेकर राष्ट्रीय स्तर के पूरक कार्यों के लिए समर्थन जताया गया.[14] इसके अलावा, इस क्षेत्र में जी20 के काम को थिंक20 की शोध-आधारित नीतिगत सलाह, जो एक वैश्विक थिंक टैंक समुदाय से ली गई है, से विस्तार मिला है. इसके सहभागिता समूहों का काम, विशेष रूप से थिंक20 का, जी20 के ठोस नीतिगत उपाय प्रदान करने के दायित्व को, पूरा करने में मदद करता है.

विशिष्ट रूप से, यह:

सहयोग और ज्ञान के आदानप्रदान के लिए एक वैश्विक मंच की सुविधा प्रदान कर सकता है.

जी20 ऐसे अलग-अलग देशों को एक साथ लाता है जिनकी कृषि क्षेत्रों में डिजिटल उन्नति के स्तर एक-दूसरे से भिन्न हैं. यह विविधता एक-दूसरे से सीखने और आदान-प्रदान के अनूठे अवसर प्रदान करती है. संयुक्त शोध और विकास गतिविधियां यह आकलन करने में मदद कर सकती हैं कि औद्योगीकृत खेती प्रणालियों से परिशुद्ध खेती उपकरणों (precision farming को इसके उपकरणों द्वारा संचालित किया जाता है, जिनमें शामिल हैं – सूचना एवं संचार तकनीक, वायरलेस सेंसर नेटवर्क, रोबोटिक्स, ड्रोन, वेरिएबल रेट टेक्नोलॉजी, जियोस्पेश्यलाइज़्ड मेथड्स और ऑटोमेटेड पोजिशनिंग सिस्टम आदि) को छोटे पैमाने पर उत्पादन के संदर्भ में कैसे अनुकूलित किया जा सकता है. साथ ही, कम आय वाले देशों में एक जीवंत स्टार्ट-अप परिदृश्य के साथ विकसित निम्न-तकनीक वाले समाधानों की उच्च आय वाले देशों में इस्तेमाल करने के लिए पड़ताल की जा सकती है. जी20 हार्डवेयर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता/मशीन के सीखने को लेकर तकनीकी मानकों को स्थापित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को जुटाने के लिए भी महत्वपूर्ण है ताकि डाटा और मॉडल साझा करने योग्य और सुसंगत हो सकें. भारत में हाल ही में हुई जी20 के प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों की बैठक (MACS) में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, व्यवसायों और सरकार के प्रतिनिधियों के एक-दूसरे से सीखने और कृषि के लिए डिजिटल समाधानों और दृष्टिकोणों में ज़िम्मेदारी के साथ निवेश करने के लिए सहयोग करने पर सहमति बनी थी.[15]

बहुपक्षीय स्तरों पर समन्वित नियामक कार्रवाई को बढ़ावा देना ताकि डाटा उपयोग और सुरक्षा के बीच संतुलन बना रहे

जैसे-जैसे कृषि में डिजिटल समाधान अधिक परिष्कृत होते जा रहे हैं, बड़ी मात्रा में विविध डाटा एकत्र किया जा रहा है, जिसका उपयोग उत्पादकों को बेहतर और लक्षित सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि, प्रभावी डाटा सुरक्षा ढांचे के अभाव में, डाटा उन लोगों की जानकारी या सहमति के बिना भी उपयोग किया जा सकता है जो इसे प्रदान करते हैं. हालांकि व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा के लिए नियम बनाए गए हैं लेकिन वे जी20 देशों में एक समान रूप से विकसित नहीं हुए हैं और इनके लागू होने की बाध्यता भी हमेशा नहीं रहती. इसके अलावा, सभी कृषि डाटा व्यक्तिगत डाटा नहीं है, और इसके लिए अलग नियामक ढांचे की आवश्यकता है, जैसे अनुबंध और प्रतिस्पर्धा कानून और बौद्धिक संपदा अधिकार.[16] डाटा विनियमन को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि विश्वसनीय और विशिष्ट रूप से तैयार डिजिटल समाधानों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त विश्लेषण और आदान-प्रदान एक पूर्व निर्धारित शर्त के रूप में मौजूद हों. पिछले वर्षों में जी20 के कृषि मंत्रियों की बैठकों में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि डाटा उपयोग और सुरक्षा के बीच एक स्वीकार्य संतुलन बनाने के लिए समन्वित डाटा और डिजिटल नियामक कार्रवाई की आवश्यकता है. डाटा संरक्षण और साझाकरण सहित डाटा शासन के लिए उपयुक्त ढांचे को समन्वित और बढ़ावा देने में जी20 की महत्वपूर्ण भूमिका है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में.

देशों के अंदर और बाहर कृषि में डिजिटलीकरण के लिए सक्षम वातावरण को मजबूत करना

खाद्य प्रणाली के विभिन्न पक्षकारों को लाभ पहुंचाने वाले बुनियादी ढांचे, सामग्री, सेवाओं और समाधानों को विकसित करने के लिए एक कार्यशील नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है. उत्पादक और समावेशी नवाचार को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल कृषि स्टार्ट-अप, कॉर्पोरेट नवप्रवर्तक और सरकारों को संवेदनशील समूहों. जिनमें छोटे स्तर के उत्पादक और व्यवसाय शामिल हैं से जुड़कर रहना होगा. जबकि, राष्ट्रीय स्तर पर सरकारें कृषि में डिजिटलीकरण के लिए एक सक्षम वातावरण बना सकती हैं, ज़रूरत है कि जी20 निजी क्षेत्र को कृषि उत्पादकों और व्यवसायों के लिए डिजिटल समाधानों के विकास और प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करे. 2023 में भारत में हुई जी20 एमएसीएस (MACS) बैठक में यह पाया गया कि निजी कंपनियां अनुसंधान, डिजाइन और डिजिटल समाधानों के विपणन में निजी निवेश के माध्यम से राष्ट्रीय कार्य योजनाओं की पूरक बन सकती हैं और काफ़ी हद तक यह निर्धारित कर सकती हैं कि डिजिटलीकरण न्यायसंगत और टिकाऊ कृषि परिणामों को हासिल करने में किस स्तर तक मदद कर सकता है.[17] जी20 निजी क्षेत्र के हितधारकों को पनपने और टिकाऊ, लचीली और समावेशी कृषि और खाद्य प्रणालियों के लिए डिजिटल समाधान प्रदान करने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करके उनके प्रयासों का समर्थन कर सकता है.

3.जी20 को सिफ़ारिशें

जी20 को अन्य हितधारकों के साथ सहयोग करने के लिए अपने सदस्य देशों की सरकारों को प्रोत्साहित और समर्थन करना चाहिए ताकि वह निम्नलिखित काम कर सकें:

समन्वित नीति कार्रवाई के लिए प्रतिबद्धता

कृषि में डिजिटलीकरण के योगदान को प्रतिस्थापित  करने और इसकी समग्र क्षमताओं का इस तरह इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए कि यह लोगों और ग्रह को समान रूप से लाभान्वित कर सके, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता है. जी20 राष्ट्रीय सरकारों के प्रयासों को कृषि में डिजिटलीकरण के लिए रोडमैप डिजाइन करने में मदद कर सकता है जो घरेलू कार्रवाई का मार्गदर्शन करेगा और अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाओं में योगदान देगा.

जी20 नेताओं के अंतिम घोषणा पत्र  के माध्यम से कृषि में डिजिटलीकरण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध रहा जाए.

कृषि में डिजिटल तैयारियों का आकलन करने और कृषि में डिजिटलीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए राष्ट्रीय क्षमता का निर्माण करने के लिए धन जुटाने और संबंधित निवेशों को आकर्षित किया जाए.

कृषि डाटा की गोपनीयता, सुरक्षा और उपयोग सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियामक ढांचे और प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने के लिए सहयोग किया जाए.

डिजिटल समाधानों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भिन्न मानक निर्धारित और लागू किए जाएं.

विश्वास और जवाबदेही बनाए रखने के लिए कानूनों और मानकों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए प्रवर्तन तंत्र स्थापित किया जाए.

अंतरराष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्रक्रियाओं (जैसे आईएसओ) में कृषि में डिजिटलीकरण के भिन्न स्तरों को ध्यान में रखा जाए.

टिकाऊ कृषि कार्यप्रणाली को बढ़ावा देने वाले डिजिटल समाधानों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाए.

जहां आवश्यक हो, कृषि मूल्य श्रृंखलाओं में डिजिटल समाधानों के लिए अंतर-संचालन मानक स्थापित करें. यह सहज एकीकरण और पूरक सेवाओं को बढ़ावा देने में मदद करेगा, और बेहतर सहयोग और दक्षता के लिए डाटा प्रवाह को सुविधाजनक बनाएगा.

डिजिटल क्षमताओं का निर्माण

सभी स्तरों पर हितधारक समूहों में डिजिटल क्षमताओं का निर्माण करने के अवसर पैदा करना जी20 के लिए एक प्राथमिकता होनी चाहिए. डिजिटल समाधानों का लाभ उठाने के लिए डिजिटल कौशल होना एक पूर्व निर्धारित शर्त है और छोटे पैमाने के उत्पादक तुलनात्मक रूप से इससे अधिक वंचित होते हैं. न केवल सामान्य रूप से उनमें कौशल का स्तर निम्न होता है, बल्कि उनके डिजिटल कौशल का स्तर भी विशेष रूप से कम होता है.

प्राथमिक से तृतीयक तक सभी स्तरों पर शिक्षा में डिजिटल कौशल विकास को मुख्यधारा में लाने के लिए कार्रवाई करें, विशेष रूप से उन स्थानों और समुदायों पर ध्यान केंद्रित करें जिनमें डिजिटल कौशल का स्तर निम्न है.

आजीवन सीखने के अवसर प्रदान करें, उदाहरण के लिए, किसान फील्ड स्कूलों के माध्यम से, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्पादकों को तेज़ी से बदलती तकनीकों के साथ आगे बढ़ने का अवसर मिल पा रहा है.

(कृषि) विस्तार सेवा प्रदाताओं, प्रशासकों और मूल्य श्रृंखला के अन्य हितधारकों के लिए विशेष प्रशिक्षण का प्रावधान किया जाए ताकि वे डिजिटल उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकें और उत्पादकों को भी ऐसा करने में मदद की जा सके.

अभिनव ज्ञान-साझाकरण मंचों, सहयोगी शिक्षण स्थानों और खुले डाटा समाधानों का उपयोग करते हुए साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा देकर क्षमताओं का निर्माण किया जाए.

डिजिटल सेवा प्रदाताओं को उपकरण और क्षमताओं का निर्माण करते समय वंचित समूहों की ज़रूरतों और क्षमताओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है (उदाहरण के लिए, छोटे पैमाने के उत्पादक और व्यवसाय, महिलाएं और युवा).

पहुंच और सुलभता में सुधार करना

कृषि में डिजिटलीकरण के लिए एक पूर्व अपेक्षा यह है कि डिजिटल समाधानों तक समान पहुंच के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी तक समान पहुंच की आवश्यकता है. मुख्य रूप से, बुनियादी ढांचे में निवेश की आवश्यकता है ताकि डिजिटल विभाजनों को पाटा जा सके (जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच, उच्च और निम्न आय वाले देशों के बीच, और विभिन्न लिंग के बीच हैं). जबकि डिजिटल बुनियादी ढांचा इसके लिए एक आवश्यक शर्त है, यह अकेले पर्याप्त नहीं है. वास्तव में, सुलभता इस बात पर निर्भर करती है कि जो डिजिटल समाधान उपलब्ध हैं छोटे पैमाने के उत्पादकों और अन्य हितधारकों की उनका भुगतान करने और उन्हें व्यावहारिक रूप से उनका उपयोग करने की क्षमता कैसी है.

  1. प्रत्यक्ष निवेश और संबंधित नीतियों के माध्यम से बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण को बढ़ावा देना:

सार्वजनिक या निजी निवेशों के माध्यम से या सार्वजनिक-निजी भागीदारी के हिस्से के रूप में मोबाइल कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाए.

निजी क्षेत्र के निवेशों को निर्देशित किया जाए कि मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों को वंचित उपयोगकर्ताओं के लिए कनेक्टिविटी में निवेश करने या समान पहुंच के वित्तपोषण के लिए यूनिवर्सल सर्विस फंड[b] में भुगतान करने की आवश्यकता है.[18]

एकीकृत बुनियादी ढांचा योजनाएं विकसित करें जो कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए मोबाइल कनेक्टिविटी को अन्य प्रकार के आवश्यक बुनियादी ढांचे से जोड़ें, जैसे कि बिजली, सिंचाई, सड़कें और बुनियादी विपणन ढांचा. इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि कृषि उत्पादक कनेक्टिविटी में सुधार का लाभ उठा सकेंगे.

थिंक20 के अकादमिक कौशल का उपयोग करें ताकि वैश्विक समुदाय के लिए महत्वाकांक्षी लेकिन भिन्न बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं के बारे में सलाह दी जा सके.

  1. उत्पादकों को डिजिटल समाधानों को लागू करने में सहायता करें:

डिजिटलीकरण द्वारा प्रदान किए गए अवसरों तक पहुंच को सक्षम बनाने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में पूंजी लगाएं (अनुशंसा 2 भी देखें).

डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने और डिजिटल समाधानों को अपनाने में प्रवेश की बाधाओं को कम करने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराएं (आर्थिक सहायताओं की दिशा बदलकर), जिसमें छोटे पैमाने के उत्पादकों तक पहुंचने पर ज़ोर दिया जाए.

उत्पादकों को शुरुआत से शामिल करें ताकि ज़रूरत-आधारित डिजिटल समाधानों के डिज़ाइन को प्रोत्साहित किया जा सके.

छोटे पैमाने के उत्पादकों को डिजिटल अनुप्रयोगों और बुनियादी ढांचे को स्थापित और बनाए रखने में सहायता के लिए मध्यस्थों के साथ काम करें (किसानों के संगठन, मूल्य श्रृंखला के हितधारक और विस्तार एजेंट).

उत्पादकों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए डिजिटल वित्तीय सेवाओं (पूंजी या बीमा तक पहुंच) के विस्तार में मदद करें.

कार्यशील पारिस्थितिकी प्रणालियों में निवेश और डिज़ाइन करना

कृषि क्षेत्र में डिजिटल समाधानों के विकास और अपनाने को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल ढांचागत स्थितियों की आवश्यकता होगी. नवाचारों को कृषि के ऐसे दृष्टिकोण द्वारा संचालित होना चाहिए जो एसडीजी को बढ़ावा देने पर केंद्रित हों, केवल लाभ को अधिकतम करने पर नहीं. इस प्रकार, कृषि-खाद्य प्रणाली में समानता और टिकाऊपन पर विचार डिजिटल नवाचार का एक अभिन्न अंग बन जाना चाहिए.

स्थायी और प्रतिबद्ध निवेश प्रदान करें ताकि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों (और जहां ​​संभव हो, वैश्विक) पर सीखने और विनिमय नेटवर्क को संस्थागत बनाया जा सके.

विचार-विमर्श मंच बनाएं और थिंक टैंक, शोधकर्ताओं, उत्पादकों (छोटे पैमाने के उत्पादकों से लेकर बहुराष्ट्रीय निगमों तक), व्यवसायों और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा दें.

सर्वोत्तम प्रथाओं, व्यवहारिक ज्ञान और यहां तक ​​कि विफलता के उदाहरणों पर क्षेत्रों और देशों में ज्ञान विनिमय को बढ़ावा दें.

कृषि के लिए डिजिटलीकरण में विशेषज्ञता वाले राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्टार्ट-अप पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण को सुविधाजनक बनाएं.

डाटा सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुपालन में मूल डाटा परिसंपत्तियों (जैसे, मिट्टी और जल मानचित्र, मौसम डाटा परतें, और किसान रजिस्टर) और डाटा साझाकरण तंत्र में सार्वजनिक निवेश का समर्थन करें.

पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (यानी, व्यापारी, कंपनियां, बैंक, बीमा कंपनियां, उत्पादक) में सहयोगी नवाचार और डाटा साझाकरण को प्रोत्साहित करें.

कृषि के लिए व्यापक सक्षम वातावरण को मजबूत करें ताकि उत्पादकों को डिजिटल रूप से सक्षम सलाह और बाज़ार संपर्क का लाभ उठाने के लिए तैयार किया जा सके.


एट्रीब्यूशन: हाइका बाउमलर और अन्य, “डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित करना ताकि कृषि और खाद्य प्रणालियों को समान और टिकाऊ बनाया जा सके: जी20 के लिए नीति और निवेश प्राथमिकताएं,टी20 नीति पत्र, जून 2023.


[a] नीति पत्र एक बहु-हितधारक और बहु-देशीय प्रयास है. यह एक कार्य समूह की अंतर्दृष्टि पर आधारित है जिसमें अकादमी, उद्योग, सिविल सोसाइटी और राजशासन की नीति के प्रतिनिधियों सहित वैश्विक विशेषज्ञ शामिल हैं.

[b] सार्वजनिक प्रशासकों द्वारा निजी वित्त को जुटाने और सार्वभौमिक दूरसंचार सेवाओं को प्रदान करने के लिए नियोजित एक वित्त पोषण तंत्र.

 

[1] Sarah K. Lowder, Marco V. Sánchez, and Raffaele Bertini, “Which farms feed the world and has farmland become more concentrated?”, World Development 142 (2021): 105455.

 

[2] Gustavo Gil, Daniel Emilio Casagrande, Leonardo Pérez Cortés, and Rodrigo Verschae, “Why the low adoption of robotics in the farms? Challenges for the establishment of commercial agricultural robots,” Smart Agricultural Technology 3 (2023): 100069.; Andreas Gabriel and Markus Gandorfer, “Adoption of digital technologies in agriculture—an inventory in a European small-scale farming region,” Precision Agriculture 24 (2023):68–91.

[3] Kateryna Schroeder, Julian Lampietti, and Ghada Elabed, What’s Cooking: Digital Transformation of the Agrifood System (Washington D.C.: World Bank, 2021).

 

[4] Stephen K. Wegren, “Understanding the decline of smallholders in contemporary Russia,” Outlook on Agriculture 50 (2021): 72-79.

 

[5] Louw Pienaar and Lulama Traub, “Understanding the smallholder farmer in South Africa: Towards a sustainable livelihoods classification,” 29th International Conference of Agricultural Economists, August 9-14, 2015, Milan, Italy.

[6] FAO, Digital Technologies in Agriculture and Rural Areas: Status Report (Rome: UN Food and Agriculture Organization, 2019); Gil et al., “Why the low adoption of robotics in the farms?”; Schroeder, Lampietti, and Elabed, What’s Cooking.

[7] Claire Sibthorpe, “Our new data shows further slowdown in digital inclusion for women,” GSMA Mobile for Development Blog, March 23, 2023.

 

[8] Jonathan McFadden and Terry Griffin, The Digitalisation of Agriculture: A Literature Review and Emerging Policy Issues (Paris: Organisation for Economic Co-operation and Development, 2022); Michael Tsan, Swetha Totapally, Michael Hailu, and Benjamin K. Addom, The Digitalisation of African Agriculture Report 2018-2019 (Wageningen: CTA, 2019).

 

[9] FAO, Digital Technologies in Agriculture and Rural Areas.

[10] FAO, Digital Technologies in Agriculture and Rural Areas; Tsan et al., The Digitalisation of African Agriculture Report 2018-2019

[11] McFadden and Griffin, The Digitalisation of Agriculture.

[12] Barnaby Lewis, Farming fit, farming smart (International Organization for Standardization, 2020).

[13] G20 Indonesia, Chair’s Summary, G20 Agriculture Ministers’ Meeting – Balancing Food Production and Trade to Fulfil Food for All (Bali: G20 Agriculture Ministers’ Meeting, 2022).

[14] G20 Indonesia, G20 Presidency Chair’s Summary, The G20 Joint Finance and Agriculture Ministers’ Meeting (Washington D.C.: G20 Finance and Agriculture Ministers’ Meeting, 2022).

[15] G20 India, Chair’s Summary & Outcome Document (Varansi: G20 Meeting of Agriculture Chief Scientists, 2023).

[16] Marie-Agnes Jouanjean, Francesca Casalini, Leanne Wiseman, and Emily Gray, Issues around data governance in the digital transformation of agriculture – the farmers’ perspective (Paris: Organisation for Economic Co-operation and Development, 2020).

 

[17] G20 India, Chair’s Summary & Outcome Document.

[18] Lynne A. Dorward, Universal service funds and digital inclusion for all (Geneva: International Telecommunication Union, 2013).