लंबे समय से GDP (सकल घरेलू उत्पाद) किसी देश के विकास के एक प्रमुख सूचक के रूप में काम कर रही है. लेकिन क्या केवल GDP ही लोगों के जीवन में मायने रखती है? क्या ज़्यादा पैसे का नतीजा स्पष्ट रूप से बेहतर जीवन के रूप में निकलता है? भारत को मिली G20 की अध्यक्षता में इन पैमानों के अनुकूल दूसरे मानकों की तलाश की जा रही है.
प्रगति के इस पैमाने के लिए हमें न केवल आर्थिक व्यवस्था के काम-काज बल्कि लोगों के अलग-अलग अनुभवों और उनके रहन-सहन की स्थिति, जिनमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े विचार शामिल हैं
उपयोगिता सिद्धांत ने परंपरागत तौर पर अधिक आमदनी को बेहतर जीवन के साथ जोड़ा है लेकिन हाल के अध्ययनों से पता चला है कि अधिक आमदनी का स्तर (वैसे तो इससे जीवन के स्तर में सुधार होता है जैसे कि ज़्यादा खपत का स्तर, खाद्य, रहने का ठिकाना, कपड़े और स्वास्थ्य देखभाल) होने का लोगों के जीवन पर नुक़सानदेह असर भी हो सकता है. पर्यावरण को हानि, वायु प्रदूषण, जैव विविधता को नुक़सान, सामाजिक एवं आर्थिक असमानता और तनाव के स्तर में बढ़ोतरी, आर्थिक विकास के साथ जुड़े कुछ नकारात्मक नतीजे हैं.
हाल के वर्षों में कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सरकारों ने “प्रगति” को फिर से परिभाषित करने के अपने प्रयासों में “कल्याण” को सबसे आगे रखा है. प्रगति के इस पैमाने के लिए हमें न केवल आर्थिक व्यवस्था के काम-काज बल्कि लोगों के अलग-अलग अनुभवों और उनके रहन-सहन की स्थिति, जिनमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े विचार शामिल हैं, को भी देखने की आवश्यकता है.
इन नई व्यवस्थाओं के कुछ उदाहरण संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के मानव विकास सूचकांक (HDI) और नये बहु-आयामी कमज़ोरी सूचकांक (MVI) के क्रमिक विकास में देखा जा सकता है जो लैंगिक भेदभाव, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आश्रय तक पहुंच में असमानता और ग़रीबी के बारे में बताते हैं.
हमें दिख रहा है कि वर्तमान के कल्याण के पैमाने के क्षेत्र में समीक्षा, तुलना एवं मूल्यांकन और हर देश के हिसाब से कमियों की पहचान, जिन्हें भरने की आवश्यकता है, करने का ये सही अवसर है.
वर्ल्ड हैप्पीनेस (ख़ुशी) रिपोर्ट, जिसे सतत विकास समाधान नेटवर्क ने विकसित किया है, बताती है कि कैसे लोग अपने जीवन का मूल्यांकन करते हैं. वहीं OECD (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) की ‘कल्याण और प्रगति को मापने वाली रूप-रेखा” ने बेहतर जीवन का सूचकांक शुरू किया है. इस रूप-रेखा में कई आयाम जैसे कि आमदनी एवं धन, काम-काज एवं नौकरी की गुणवत्ता, आवास, स्वास्थ्य, जानकारी एवं कौशल, पर्यावरण की गुणवत्ता, व्यक्तिपरक सुख, सुरक्षा, काम-काज और जीवन का संतुलन, सामाजिक संपर्क और नागरिक भागीदारी शामिल हैं.
हाल के दिनों में G20 के कई सदस्य देश (जैसे कि कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, कोरिया, मेक्सिको और UK) अपना-अपना कल्याण का सूचकांक बना रहे हैं ताकि वो अपने देश की विशेष आवश्यकताओं और मानदंडों को पूरा कर सकें. उदाहरण के तौर पर यूनाइटेड किंगडम के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने ‘राष्ट्रीय कल्याण के डैशबोर्ड का पैमाना’ विकसित किया है जिसका लक्ष्य ये निगरानी रखना है कि भविष्य की निरंतरता के साथ व्यक्ति, समुदाय और देश के रूप में ‘वो कैसा कर रहे हैं’. इस सूचकांक में जीवन संतुष्टि, जीवन को क़ीमती मानने का एहसास, ख़ुशी, बेचैनी, मानसिक सुकून, ख़राब संबंध, अकेलापन, जीवन प्रत्याशा, अक्षमता, स्वास्थ्य संतुष्टि, बेरोज़गारी दर, नौकरी की संतुष्टि, अपराध दर, प्राकृतिक पर्यावरण तक पहुंच, कम आमदनी और घरेलू धन शामिल हैं लेकिन ये केवल इन बातों तक सीमित नहीं है. अन्य देशों जैसे कि स्वीडन, न्यूज़ीलैंड और भूटान में भी इसी तरह की पहल की गई है.
शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा एवं पोषण, मानव संसाधन विकास, रोज़गार और महिलाओं के सशक्तिकरण से लेकर डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय समावेशन तक G20 ऐसी पहल कर रहा है जो सकारात्मक रूप से नीति निर्माण और लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है.
इस समय कोविड-19 महामारी और इसकी वजह से असमानता में हुई बढ़ोतरी को देखते हुए भारत की G20 की अध्यक्षता में सतत जीवनशैली, मूल्यों एवं कल्याण को प्रोत्साहन देने और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को तेज़ करने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है. हमें दिख रहा है कि वर्तमान के कल्याण के पैमाने के क्षेत्र में समीक्षा, तुलना एवं मूल्यांकन और हर देश के हिसाब से कमियों की पहचान, जिन्हें भरने की आवश्यकता है, करने का ये सही अवसर है.
G20 के कल्याण का मानक, पता लगाने योग्य, सतत और नीति निर्माण में उपयोग होने के लिए मुख्य सूचकांक और पद्धति संबंधी दृष्टिकोण को लेकर सभी G20 देशों (विकासशील और विकसित- दोनों प्रकार के देशों में) में सहमति होनी चाहिए और ये तुलनात्मक होना चाहिए.
नीति निर्माण, संसाधनों के आवंटन और बजट संबंधी योजना के लिए सटीक और समय पर जानकारी को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हमें ट्रैकिंग डैश-बोर्ड के निर्माण और तकनीकी कौशल को हासिल करने पर निवेश करने की आवश्यकता है. विशेष ध्यान इस पर दिया जाना चाहिए कि कैसे विकसित अर्थव्यवस्थाएं, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और सबसे कम विकसित देशों (LDC) में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और डेटा हैंडलिंग कौशल के मामले में सबसे ज़्यादा समर्थन दे सकती हैं.
अगर समाज को विकास की पूरी संभावना को साकार करना है तो बुनियादी शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करने की आवश्यकता है (जैसा कि 21वीं शताब्दी के लिए विकास को लेकर संयुक्त राष्ट्र के मानव संसाधन प्रस्ताव में प्रकाश डाला गया है). इसलिए आज की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के साथ जुड़ी समस्याओं का बेहतर समाधान करने के लिए कल्याण की रूप-रेखा का निर्माण करना आवश्यक है.
वैसे तो अलग-अलग देशों के आमदनी आधारित वर्गीकरण और अंतर्राष्ट्रीय तुलना (जो कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की अधिकतर रिपोर्ट में मिलती है) का महत्व है लेकिन अब वो समय आ गया है जब कल्याण को बेहतर ढंग से मापने के लिए बहु-आयामी मानकों का भी उपयोग किया जाए.
G20 फोरम उन देशों के द्वारा अपने अनुभवों को साझा करने का एक मंच हो सकता है जो पहले से ही बहु-आयामी विकास के पैमानों का उपयोग कर रहे हैं और ये मंच पता लगा सकता है कि ‘GDP से आगे’ बढ़कर कैसे वो देश ऐसी नीतियां बनाने में सक्षम हुए हैं जिनकी वजह से वो बेहतर सामाजिक एवं मानवीय पूंजी बनाने, असमानता कम करने और जलवायु एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारने में सफल हो पाए हैं.
इसे नये विकास के उदाहरण की तरफ़ परिवर्तन की शुरुआत होने देना चाहिए जो कि ज़्यादा समावेशी, सतत और समर्थ है.
ये समीक्षा मूल रूप से OECD डेवलपमेंट मैटर्स में प्रकाशित हुई थी.