वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भागीदारी के लिए सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों (MSMEs) की क्षमता बढ़ाना ज़रूरी

Akshay Natteri Mangadu | Shubham Gupta

टास्क फोर्स 1: मैक्रोइकोनॉमिक्स, ट्रेड एंड लाइवलिहुड्स: पॉलिसी कोहेरेंस एंड इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेशन

 


सार

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं (GVCs) राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार उत्पादन नेटवर्कों को कहते हैं, जहां उत्पादन के विभिन्न चरणों को अलग-अलग देशों में अंजाम दिया जाता है.[i] तेज़ रफ़्तार वैश्वीकरण के बीच GVCs अब वस्तुओं और सेवाओं में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रभावशाली घटक बनकर उभर चुके हैं. सकल अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इनका हिस्सा तक़रीबन 70 प्रतिशत है.[ii] वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उत्पादन का केंद्र बिंदु बन चुके हैं, जो विकासशील देशों को विश्व अर्थव्यवस्था में हिस्सा लेने और अपने आर्थिक उत्पादन में बढ़ोतरी करने का विश्वसनीय अवसर प्रदान कर रहे हैं.[iii]

ज़ाहिर तौर पर वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में हिस्सा लेने वाले देशों को एक वृहत वैश्विक बाज़ार तक पहुंच का लाभ मिलता है. इसके अलावा ये क़वायद विकासशील देशों को अपनी उत्पादकता बढ़ाने, निर्यातों में विविधता लाने,[iv] बेशक़ीमती रोज़गार पैदा करने,[v] और अपने व्यापार संतुलन में मज़बूती लाने में सक्षम बनाते हैं. ये प्रत्यक्ष लाभ अर्थव्यवस्था को अप्रत्यक्ष रूप से कई फ़ायदे  पहुंचाते हैं- जिनमें मेहनताने या वेतन में बढ़ोतरी सबसे उल्लेखनीय है,[vi] जिससे परिवारों की क्रय शक्ति बढ़ जाती है. आगे चलकर इससे तमाम क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं की मांग में उछाल आता है, नतीजतन अर्थव्यवस्था में एक मज़बूत गुणक (multiplier effect) प्रभाव दिखाई देता है.

वैसे तो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में हिस्सेदारी के मुनाफ़े बेहतर रूप से स्थापित हो चुके हैं, लेकिन इन प्रणालियों में न्यायसंगत भागीदारी सुनिश्चित करने के रास्ते में अब भी तमाम चुनौतियां बरक़रार हैं.

स्वाभाविक रूप से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में विशेषज्ञताओं पर ज़ोर दिया जाता है. इसके तहत उत्पादन के विभिन्न चरणों को संरचना या उत्पादन के आधार पर विशिष्ट रूप दिया जाता है और अलग-अलग देशों में उनका प्रसार किया जाता है. ऐसे में हरेक देश को अपने मॉड्यूल में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए उत्पादकता के ऊंचे स्तर हासिल करने की दरकार होगी. अगर कोई देश प्रतिस्पर्धी बने रहने में असफल रहता है तो व्यापार में अपनी छाप या फुटप्रिंट का विस्तार करने की ताक में लगे दूसरे देशों को बड़ी आसानी से उसकी जगह दी जा सकती है. इस सिलसिले में हम जूता निर्माण उद्योग की मिसाल ले सकते हैं. इस क्षेत्र के प्रमुख विनिर्माताओं ने धीरे-धीरे अपनी उत्पादन क्षमता को चीन से हटाकर वियतनाम में स्थापित कर लिया है.[vii] इसका एक प्रमुख घटक दक्षिण पूर्व एशिया में श्रम की निम्न लागत है. चीन में श्रम की प्रति घंटा लागत 6.5 अमेरिकी डॉलर है जबकि वियतनाम में ये सिर्फ़ 2.99 अमेरिकी डॉलर है.[viii]

प्रतिस्पर्धी बने रहने की तगड़ी ज़रूरत के बीच श्रम की ऊंची उत्पादकता सुनिश्चित कर पाने वाली और ठोस तकनीकी क्षमताओं से लैस बड़ी इकाइयों को GVC की हिस्सेदारी में प्रतिस्पर्धी बढ़त मिल जाती है.[ix] यही वजह है कि सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (MSMEs) वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में प्रभावी रूप से हिस्सेदारी के मामले में हाशिए पर चले जाते हैं और बहुराष्ट्रीय निगम मुनाफ़े में रहते हैं.

चुनौतियां

बड़े निगमों की तुलना में MSMEs को कम प्रतिस्पर्धी बनाने के पीछे कई प्रमुख कारक हैं:

कमज़ोर तक़नीकी क्षमता

इंटस्ट्री 4.0 की शुरुआत के साथ उत्पादन तकनीकों में नए नवाचार उभरकर आए हैं. ख़ासतौर से रोबोटिक ऑटोमेशन, 3-D प्रिंटिंग, और स्वचालित गुणवत्ता नियंत्रण जैसे नवाचारों ने उत्पादकों की प्रतिस्पर्धिता में भारी बढ़ोतरी कर दी है. टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर बदलते परिदृश्य के चलते MSMEs (ख़ासतौर से विकासशील देशों में) पर ख़तरा मंडराने लगा है.[x] विकसित देशों में भी इंडस्ट्री 4.0 की परिकल्पना (जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI और बिग डेटा एनालिटिक्स) को अपनाए जाने की क़वायद MSMEs के भीतर सीमित बनी हुई है (चित्र 1 देखिए).a

चित्र1: OECD देशों के भीतर AI और बिग डेटा का उपयोग करने वाले कारोबारों का प्रतिशत

स्रोत: OECD ICT एक्सेस और यूज़ बाय बिज़नेस डेटासेट का उपयोग करके लेखकों की गणना (देशों के बीच सामान्य औसत).[xi]

लचर डिजिटल बुनियादी ढांचा

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के सुचारू कामकाज के लिए आपूर्ति श्रृंखला का प्रभावी प्रबंधन अहम हो जाता है. ये सबसे सस्ते तरीक़े से राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार घटकों और उत्पादों की फुर्तीली आवाजाही सुनिश्चित करता है. भंडारण और गोदामों की बढ़ती लागतों के चलते कई उद्योगों ने ‘ऐन मौक़े वाली’ आपूर्ति श्रृंखला संरचनाएं अपना ली हैं, जिससे गोदामों से जुड़े ख़र्च में ज़बरदस्त कमी हो जाती है. हालांकि, ऐसी आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए रसद से जुड़ी मज़बूत कनेक्टिविटी की दरकार होती है. साथ ही उभरती परिस्थितियों की बुनियाद पर रियल-टाइम अनुकूलन के लिए उन्नत इंटर-ऑपरेबल डिजिटल समाधान भी ज़रूरी होते हैं. लिहाज़ा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रतिस्पर्धी और कामयाब बनने की चाह रखने वाले सूक्ष्म लघु और मझौले उद्यमों को उन्नत आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन प्रणालियों और रसद से जुड़े बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी, जिसका वहां अक्सर अभाव होता है. मिसाल के तौर पर आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों में बड़े कारोबारों में डिजिटल आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का प्रयोग 40 प्रतिशत है, जबकि छोटे कारोबारों में ये दर महज़ 13 फ़ीसदी है.b डिजिटलीकरण में मौजूद ये भारी-भरकम अंतर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में MSME सेक्टर की भागीदारी के रास्ते की एक प्रमुख रुकावट है.[xii] इतना ही नहीं डिजिटल व्यापार सुविधा मंचों के अभाव के चलते MSMEs को (ख़ासतौर से अल्प विकसित देशों में) एक अतिरिक्त बाधा झेलनी होती है. डिजिटल और सतत व्यापार सुविधा पर संयुक्त राष्ट्र सर्वेक्षण के मुताबिक राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार पेपरलेस व्यापार क्रियान्वयन में विकसित अर्थव्यवस्थाओं का स्कोर 57.59 प्रतिशत है, जबकि अल्प-विकसित देशों का स्कोर 24.44 फ़ीसदी है.[xiii] इंटर-ऑपरेबल व्यापार सुविधाओं के अभाव के चलते सरहद पर लेट-लतीफ़ी और भीड़-भाड़ हो जाती है, जिससे समयसीमाओं में और देरी होती है.

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVCs) पर अपर्याप्त जागरूकता और प्रबंधकीय कौशल का अभाव

अर्थव्यवस्था में तेज़ी से बढ़ते डिजिटलीकरण के चलते वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का तेज़ी से कायापलट हो रहा है. इसके लिए तकनीकी और प्रबंधकीय, दोनों स्तरों पर विशेषज्ञतापूर्ण प्रतिभाओं की दरकार होती है. वेब-आधारित प्लेटफॉर्मों, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और AI जैसी डिजिटल तकनीकों के सामने आने से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के सभी पहलुओं में क्रांतिकारी बदलाव आ रहे हैं. इस तरह वस्तुओं के उत्पादन से लेकर अंतिम छोर तक उनके वितरण, तक की गतिविधियों का कायाकल्प हो रहा है. बहरहाल, डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धी कैसे बने रहें, इसको लेकर MSMEs में सीमित स्तर पर ही जागरूकता मौजूद है.[xiv] आंशिक रूप से प्रबंधकीय क्षेत्र में विशेषज्ञता-प्राप्त प्रतिभाओं के अभाव के चलते ऐसे हालात बने हुए हैं.

जैसा कि चित्र 2 में देखा जा सकता है, सूचना और संचार टेक्नोलॉजी (ICT) से जुड़े विशेषज्ञों को काम पर रखने वाले छोटे कारोबारों का हिस्सा बड़ी कंपनियों की तुलना में महज़ आठवां है. दरअसल छोटे उद्यमों को उन प्रमुख सेक्टरों की पहचान करनी होती है जहां उन्हें प्रतिस्पर्धी बढ़त हो, लेकिन विशेषज्ञतापूर्ण प्रबंधकीय प्रतिभा का अभाव MSMEs की क्षमता में रुकावटें पैदा करता है.

चित्र 2: OECD देशों में ICT विशेषज्ञों को पद देने वाले कारोबारों का हिस्सा

स्रोत: OECD ICT एक्सेस और यूज़ बाय बिज़नेस डेटासेट का उपयोग करके लेखकों की गणना (देशों के बीच सामान्य औसत).[xv]

 

अपर्याप्त वित्तीय संसाधन

सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSMEs) को वैश्विक मानकों के हिसाब से अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं को निरंतर सुधारते रहने की दरकार होती है, ये क़वायद सुनिश्चित करने के लिए पूंजी तक पहुंच बेहद अहम है. आकलन के मुताबिक 6.5 करोड़ औपचारिक MSMEs (सभी उद्यमों का लगभग 40 प्रतिशत) की साख तक पहुंच सीमित है. अनुमान के अनुसार MSME वित्त की संभावित मांग तक़रीबन 8.9 खरब अमेरिकी डॉलर है. इसमें से 5.2 खरब डॉलर की भारी-भरकम ज़रूरत अब तक पूरी नहीं पाई है.[xvi] पूंजी तक पहुंच का ऐसा अभाव MSMEs के हाथ बांध देता है और वो उच्च-गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे के साथ-साथ प्रबंधकीय कर्मचारियों में आवश्यक निवेश नहीं कर पाते हैं. इससे विशेषज्ञताएं खड़ी कर पाने की उनकी क्षमता बाधित हो जाती है. साथ ही नए बाज़ारों की पहचान करने और GVC इकोसिस्टम के साथ बेहतर ढंग से एकीकृत होने की क़वायदों में भी अड़चनें आ जाती हैं.

कोविड-19 महामारी ने वित्त के मोर्चे पर मौजूद इस अंतर को और गंभीर बना दिया है. कोविड-19 के चलते अचानक आर्थिक संकुचन आने से उथल-पुथल मच गई, नतीजतन अनेक सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम दिवालिएपन की कगार पर पहुंच गए. इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि महामारी के दौरान बड़ी कंपनियों की तुलना में MSMEs पर ज़्यादा मार पड़ी थी. मिसाल के तौर पर पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में MSMEs की मासिक बिक्री में बड़ी इकाइयों की तुलना में 7-23 प्रतिशत अंकों की अतिरिक्त गिरावट आई थी.[xvii] इसके चलते श्रम उत्पादन में कमी आ गई और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था का समूचा ढांचा कमज़ोर हो गया.[xviii] लिहाज़ा GVC के व्यापक इकोसिस्टम के साथ जुड़ने और पूरी तरह से पटरी पर लौटने के लिए पूंजी तक पहुंच MSMEs के लिए बेहद अहम हो जाता है.

G20 की भूमिका

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों की भागीदारी को बढ़ावा देने में मदद करने को लेकर विकासशील देशों के लिए नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करने में G20 अहम भूमिका निभा सकता है. G20 में दुनिया की दो-तिहाई आबादी निवास करती है,[xix] ऐसे में ये समूह उन्नत और उभरती, दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए संपर्क बिंदु के रूप में काम कर सकता है. और तो और ये समूह MSMEs में बढ़ी हुई हिस्सेदारी को प्रोत्साहित करने के लिए GVC के तमाम घटकों के इर्द-गिर्द नीतियों का तालमेल बिठाने में भी मदद कर सकता है. बड़ी बात ये है कि G20 के देश वैश्विक मूल्य श्रृंखला के लगभग 83 प्रतिशत हिस्से का योगदान देते हैं, इस प्रकार वो विश्व व्यापार के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने में सक्षम होंगे.d

दिशानिर्देशक नीतियां बनाने के लिहाज़ से G20 बेहतरीन स्थिति में है. बहरहाल, यहां आवश्यकता इस बुनियादी सवाल के निपटारे की है कि क्यों वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में MSMEs की बढ़ी हुई भागीदारी, G20 देशों के लिए वांछनीय है, ख़ासतौर से दुनिया भर में संरक्षणवाद के प्रति बढ़ती संवेदनशीलताओं के बीच.

बढ़ते संरक्षणवाद के बावजूद 2016 से 2020 के बीच प्रभावी रूप से लागू वैश्विक शुल्क दरों का भारित औसत 1.86 प्रतिशत से गिरकर 1.52 प्रतिशत तक पहुंच चुका है.e इसकी वजह ये है कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं ने वैश्विक उत्पादन का कायाकल्प कर दिया है. विश्व में वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा मध्यवर्ती इनपुट्स का है[xx] और क़रीब 70 प्रतिशत व्यापार प्रवाहों में GVCs शामिल हैं.[xxi] हालांकि कोविड-19 महामारी के दौरान वस्तुओं की स्वतंत्र आवाजाही बाधित होने से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं की दरारें बेपर्दा हो गईं. इसने भौगोलिक विकेंद्रीकरण के रास्ते से आपूर्ति श्रृंखलाओं का लचीलेपन बढ़ाने की ज़रूरत सतह पर ला दी है. विकेंद्रीकरण की कार्रवाई को टिकाऊ रूप से आगे बढ़ाना बेहद ज़रूरी है. इसमें हरेक क्षेत्र को बुनियादी आत्म-निर्भरता का आश्वासन मिला होना चाहिए. ये क़वायद क्षेत्रीय उपभोक्ता मांगों में बढ़ोतरी के साथ क़दम मिलाकर आगे बढ़ने में भी मददगार साबित होगी.[xxii] वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के क्षेत्रीय विकेंद्रीकरणf के लिए MSMEs की मदद की दरकार होगी, क्योंकि अनेक विकासशील राष्ट्रों में यही क्षेत्र प्राथमिक उत्पादक होता है. GVCs में G20 देशों के दबदबे को देखते हुए विकासशील देशों के MSMEs को मज़बूत बनाने में G20 के नीतिगत हस्तक्षेप अहम होंगे. इससे ना सिर्फ़ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का लचीलापन बढ़ेगा बल्कि इससे जुड़े विकासशील देशों में जीवन स्तर भी ऊंचा उठ सकेगा.[xxiii]

2021 में इटली में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य राष्ट्र MSMEs के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को सहारा देकर और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनका एकीकरण करके सतत विकास को प्रोत्साहित करने के ग़ैर-बाध्यकारी नीतिगत टूलकिट पर सहमत हुए थे.[xxiv] वैसे तो 2021 शिखर सम्मेलन में मोटे तौर पर नीतिगत दिशानिर्देशों को रेखांकित किया गया था, लेकिन ये ब्रीफ नीतिगत सिफ़ारिशों के एक लक्षित समूह का प्रस्ताव करता है. G20 मंच इसको कार्यान्वित करके वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में MSME की भागीदारी बढ़ाने में मदद कर सकता है. वैसे तो नीतिगत सिफ़ारिशें सभी अर्थव्यवस्थाओं पर लागू होती हैं, लेकिन इस कड़ी में निम्न विकसित देशों के MSMEs पर विशेष ध्यान दिए जाने की बात कही गई है. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनके एकीकरण की क़वायद को सुधारने में मदद मिल सकेगी.

G20 के लिए सिफ़ारिशें

टेक्नोलॉजी को उन्नत बनाने, जागरूकता लाने और कौशल बढ़ाने के लिए MSMEs की मदद

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों (MSMEs) की भागीदारी रोकने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है पर्याप्त उत्पादन प्रौद्योगिकियों और डिजिटल बुनियादी ढांचे का अभाव. MSMEs के फ़ायदे के लिए बिज़नेस20 (B20) के अधीन एक समर्पित मंच तैयार किया जा सकता है. उत्पादन टेक्नोलॉजी और डिजिटल नवाचारों से जुड़े रुझानों के बारे में MSMEs को आवश्यक जानकारियों उपलब्ध कराने के लिए इस मंच का उपयोग किया जा सकता है. ये मंच तकनीक के मोर्चे पर उभरते रुझानों को अपनाने के सस्ते विकल्पों की पहचान के लिए अनुसंधान को भी सहारा दे सकता है. इससे सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के लिए वहनीयता को सक्षम बनाया जा सकेगा.

इतना ही नहीं B20 के अधीन बड़ी कंपनियों और MSMEs के बीच क्षेत्र-विशेष के हिसाब से समर्पित नेटवर्किंग सत्रों का आयोजन किया जा सकता है. इससे विशाल कंपनियों को MSMEs की पहचान करने और सहायक उत्पादों के अलावा सेवाओं की आपूर्ति करने में मदद मिल पाएगी. ये क़वायद बड़े उद्योगों की ज़रूरतों के प्रति MSMEs के संपर्कों का स्तर बढ़ाएगी. इससे वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भागीदारी के लिए सफलता के मुख्य कारकों के बारे में उनकी जानकारी के स्तर को भी ऊंचा उठाया जा सकेगा. ऐसे सत्र MSMEs को बाज़ार रुझानों की पहचान के हिसाब से उपयोगी प्रबंधकीय जानकारियों से लैस करेंगे, और GVCs में उनकी भागीदारी को और गहरा करने में मददगार साबित होंगे.

डिजिटल कौशलों को आगे ले जाने के लिए G20 एक ‘MSME डिजिटल कौशल कोष’ भी तैयार कर सकता है. इसके तहत प्रमुख डिजिटल टेक्नोलॉजियों की बुनियादी समझ विकसित करने में MSMEs की मदद करने के लिए ज्ञान कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है. इन तकनीकों में आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन सॉफ्टवेयर, आपूर्ति श्रृंखला की IoT-आधारित निगरानी, डेटा-एनालिटिक्स से संचालित भंडार/लागत प्रबंधन के साथ-साथ कई अन्य विषय शामिल किए जा सकते हैं. ये कोष कौशल विकास कैंपों को भी सहारा दे सकता है, जिससे MSME कर्मचारियों को अपने डिजिटल कौशल और साक्षरता के स्तर को उन्नत बनाने में मदद मिलेगी.

औद्योगिक समूहों में बड़े विनिर्माताओं के साथ MSMEs को प्राथमिकता के आधार पर साथ-साथ बसाना

वैश्विक स्तर पर निवेश कर रहे विशाल विनिर्माताओं और MSMEs को साथ-साथ बसाया जा सकता है. ख़ासतौर से MSMEs को विशाल कंपनियों के सहायक घटकों के विनिर्माता के रूप में स्थापित किया जा सकता है. रक्षा और एयरोस्पेस विनिर्माण, सेमीकंडक्टर फ़ैब्रिकेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण और ऑटोमोबाइल विनिर्माण जैसे उन्नत क्षेत्रों में ऐसी क़वायदों को विशेष रूप से अंजाम दिया जा सकता है. इससे विशाल एंकर निवेशकों और MSMEs के बीच पारस्परिक रूप से लाभकारी तालमेल तैयार होगा, जिससे विनिर्माण क्षेत्र के दोनों खंडों की प्रगति सक्षम होगी. क्षेत्रों के हिसाब से विशिष्ट MSME समूह से ज्ञान साझा करने की प्रक्रिया बढ़ जाती है, जो बदले में अधिक नवाचार को प्रोत्साहित करती है. इससे आर्थिक वृद्धि को और रफ़्तार मिलती है.[xxv]

मिसाल के तौर पर भारत के तमिलनाडु राज्य में कोरिया, अमेरिका और फ्रांसीसी-जापानी ऑटोमोबाइल विनिर्माताओं द्वारा बड़े एंकर निवेशों के साथ क़रीब 395 विक्रेताओं का आधार जुड़ा है, जिसमें तक़रीबन 3 लाख लोगों को रोज़गार मिला है. इस इकोसिस्टम के नतीजतन 1990-91 (अप्रैल 1990 से मार्च 1991 के वित्तीय वर्ष) और 2018-2019 (अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के वित्तीय वर्ष) में ऑटोमोबाइल समूह में मूल्य वर्धन में सालाना 11.3 प्रतिशत की चक्रीय वृद्धि दर सामने आई.g

विदेशी बाज़ारों में विस्तार कर रहे MSMEs के लिए सरकारी समर्थन प्राप्त क्रेडिट गारंटी योजनाएं[xxvi]

MSMEs को अक्सर विदेशी बाज़ारों (विशेष रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं) में निवेश को लेकर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. ढेर सारे सर्टिफिकेशनों और उच्च-गुणवत्ता मानकों की ज़रूरत इसकी एक प्रमुख वजह है. इतना ही नहीं विदेशी बाज़ारों की समझ बनाना और कारोबार के मोर्चे पर ज़रूरी ख़ुफ़िया जानकारियां इकट्ठा करना ज़्यादातर MSMEs के लिए एक महंगी क़वायद है. वैश्विक मानकों पर खरा उतरकर ज़रूरी प्रमाण पत्र जुटाने में MSMEs की मदद करने के लिए सरकारें निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों में बग़ैर गिरवी के ऋण उपलब्ध कराने पर विचार कर सकती हैं.

डिजिटल नवाचारों के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के लिए वित्त तक पहुंच में सुधार लाना[xxvii]  

डिजिटल वित्तीय सेवाएं (DFS), MSMEs के लिए वित्त तक पहुंच को आगे बढ़ाने को लेकर एक प्रमुख सक्षमकारी तत्व के रूप में काम कर सकती हैं. ख़ासतौर से उभरते फिनटेक समाधान MSMEs तक औपचारिक साख का दायरा सुधारने में काफ़ी मददगार साबित हो सकते हैं. इनमें बिग डेटा एनालिटिक्स ऑफ क्रेडिट और कंपनियों की कैश-फ्लो हिस्ट्री शामिल हैं. ऐसी टेक्नोलॉजियां वित्तीय संगठनों को ऋण बांटते वक़्त ऊंचे मूल्य वाली गिरवियों की ज़रूरत के बग़ैर सतर्क होकर जोख़िम उठाने में सक्षम बनाएंगी.

बग़ैर किसी ज़मानत के दिए गए कर्ज़ों के अलावा डिजिटल आपूर्ति श्रृंखला वित्त और डिजिटल व्यापार वित्त जैसे डिजिटल वित्त समाधान (DFS), MSMEs के लिए फ़ाइनेंसिंग को काफ़ी बढ़ावा देंगे. आपूर्ति श्रृंखला प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के साथ वित्तीय संस्थान MSMEs के भंडार और नक़द-प्रवाह चक्रों के विश्लेषण के लिए AI-मशीन लर्निंग तकनीकों के उपयोग करने में सक्षम हो सकेंगे. ऋण की उपयुक्त रकमों और ब्याज़ दरों के निर्धारण के लिए ऐसी प्रक्रिया अपनाई जा सकेगी. इससे सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के लिए ऋण आवेदन प्रक्रिया काफ़ी हद तक आसान हो जाएगी. उनके जोख़िम परिदृश्यों का उचित रूप से ध्यान रखते हुए ऐसा संभव हो सकेगा.

इसी प्रकार राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार व्यापार प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के साथ MSMEs और विदेशों में उनके ख़रीदारों के बीच होने वाले लेन-देन की क़वायदों और दस्तावेज़ी प्रक्रिया पर बैंक बेहतर ढंग से नज़र रख पाएंगे. सूचना की ये उपलब्धता व्यापार वित्त आवेदन प्रक्रिया की जटिलता कम कर सकती है, जिससे MSMEs के लिए वित्तीय पहुंच में सुधार आ सकती है.[xxviii]

ऊपर बताए गए डिजिटल समाधानों की कामयाबी सक्षम बनाने के लिए G20 समूह ज्ञान-साझा करने वाले मंच की स्थापना कर सकता है. इस तरह अल्प विकसित देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को काफ़ी सहायता मिलेगी. व्यापार प्रक्रियाओं, टैक्स और लेखा खातों और अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़ तैयार करने में डिजिटलीकरण को सहारा देने के लिए आवश्यक इंटर-ऑपरेबल टेक्नोलॉजी स्टैक तैयार करने में ये क़वायद बेहद मददगार रहेगी. इस मंच को प्रयोगकर्ता के अनुकूल बनाने के लिए ये प्रक्रिया एक सरलीकृत व्यापार/कर दस्तावेज़ीकरण (documentation) के पूरक के तौर पर काम करनी चाहिए.

विकासशील देशों के लिए MSME-GVC भागीदारी-समर्थकारी सूचकांक तैयार करना

वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के भीतर तमाम देशों में MSMEs की भागीदारी पर नज़र रखने के लिए एक वैश्विक MSME-GVC भागीदारी सूचकांक की शुरुआत की जा सकती है. ये सूचकांक निर्यात किए गए घरेलू मूल्य वर्धन के क्षेत्रवार हिस्से जैसे पहलुओं के विचार को भी ध्यान में रख सकता है. इसके अलावा उत्पादन प्रक्रिया में आयातित उप-घटकों के उपभोग के क्षेत्रवार हिस्से, पैदा हुए रोज़गार, साख तक पहुंच और अन्य देशों के साथ निर्यात/आयात संपर्कों की तादाद को भी मद्देनज़र रखा जा सकता है. ऐसा सूचकांक देशों को एक बेंचमार्क उपलब्ध कराएगा जिससे वो ये समझ पाएंगे कि वैश्विक स्तर पर वो कहां खड़े हैं और संभावित सुधार वाले क्षेत्र कौन-कौन से हैं.

MSMEs की बेहतर समझ विकसित करने के लिए सामूहिक संचित कोष तैयार करना

MSMEs के संदर्भ में तमाम आंकड़ों में समग्रता[xxix] लाने के लिए एक समर्पित कोष की स्थापना की जा सकती है और सालाना MSME-GVC भागीदारी सूचकांक का संकलन किया जा सकता है. सूचकांक के अलावा इस कोष का इस्तेमाल करके तमाम देशों में MSMEs को वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और व्यापक वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में समावेश को बढ़ावा देने के लिए अपनाए गए बेहतरीन तौर-तरीक़ों का गहराई से विश्लेषण किया जा सकता है. मंचों पर नेटवर्किंग आयोजनों की मेज़बानी के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है. इनमें G20 के भीतर MSMEs और देशों के अनुभवों के आदान-प्रदान की क़वायद शामिल है. इस प्रकार तमाम वित्त-पोषित शोध संस्थानों से संकलित सूचनाएं साझा[xxx] की जा सकती हैं.


एट्रिब्यशन: शुभम गुप्ता और अक्षय नट्टेरी मांगडू, “एनहैंसिंग द कैपेसिटी ऑफ MSMEs टू पार्टिसिपेट इन ग्लोबल वैल्यू चेन्स,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


a 50 कर्मचारियों से कम क्षमता वाली इकाइयों को छोटी कंपनियां, 50 से 250 कर्मचारियों वाली इकाइयों को मझौली कंपनियां, और 250 या अधिक कर्मचारियों वाली इकाइयों को बड़ी कंपनियां कहा जाता है.

b 2017 तक. OECD ICT एक्सेस और यूज़ बाय बिज़नेस डेटासेट का उपयोग करके लेखकों की गणना (देशों के बीच सामान्य औसत).

c साख की सीमाएं झेल रही इकाइयां वो हैं जिनके पास कोई बाहरी फंडिंग नहीं होता और जिनके ऋण आवेदन ख़ारिज किए जा चुके हैं या वो इकाइयां जिनको ऋण के लिए आवेदन करने से हतोत्साहित किया गया था. इसमें वो इकाइयां भी शामिल हैं जिनके पास बाहरी फंडिंग है लेकिन उन्हें ऋण के लिए आवेदन करने से हतोत्साहित किया गया था, या जिनके ऋण आवेदनों को ख़ारिज कर दिया गया था या केवल आंशिक रूप से मंज़ूर किया गया था.

d कासेला, ब्रूनो, रिचर्ड बोल्विन, डैनियल मोरान और किचिरो कानेमोटो पर आधारित लेखकों की गणना. “इम्प्रूविंग द एनालिसिस ऑफ ग्लोबव वैल्यू चेन्स: द UNCTAD-Eora Database” ट्रांसनेशनल कॉरपोरेशंस 26, नं. 3 (2019): 115-142.

e विश्व व्यापार संगठन एकीकृत डेटाबेस और संयुक्त राष्ट्र COMTRADE से हासिल डेटा के आधार पर लेखकों की गणनाएं. 22 मार्च 2023 को विश्व बैंक WITS के माध्यम से हासिल किया गया (https://wits.worldbank.org/). हरेक देश के भीतर शुल्कों के सामान्य औसत के संदर्भ में 2016 और 2020 के बीच 3.24 प्रतिशत से 2.85 प्रतिशत की गिरावट हुई थी.

f आम तौर पर क्षेत्र का मतलब है एक दूसरे के आस पड़ोस स्थित देशों का बेहतर रूप से जुड़ा हुआ समूह, जैसे दक्षिण पूर्व एशिया या उत्तरी अमेरिका.

g भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा कराए गए उद्योगों के सालाना सर्वेक्षण के आधार पर लेखकों की गणनाएं.

[i]Global Value Chains,” Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD), accessed March 21, 2023.

[ii]Global Value Chains and Trade,” Organisation for Economic Co-operation and Development, accessed March 21, 2023.

[iii] Claire H. Hollweg, “Global Value Chains and Employment in Developing Economies,” in Global Value Chain Development Report 2019: Technological Innovation, Supply Chain Trade, and Workers in a Globalized World, ed. William Shaw (Geneva: World Trade Organisation, 2019), 63.

[iv] Hollweg, “GVC and Employment in Developing Economies,” 69.

[v] Sabyasachi Mitra, Abhijit Sen Gupta, and Atul Sanganeria, “Drivers and Benefits of Enhancing Participation in Global Value Chains: Lessons for India, Asian Development Bank South Asia Working Paper Series, no.79 (December 2020): 5.

[vi] Hollweg, “GVC and Employment in Developing Economies,” 76.

[vii] James Fox, “As Chinese Lockdowns Continue and Salaries Rise, Footwear Manufacture Shifts to Vietnam,ASEAN Business News (Dezan Shira & Associates), October 14, 2022.

[viii] Fox, “Chinese Lockdowns.”

[ix] Yao Wang, “What Are the Biggest Obstacles to Growth of SMEs in Developing Countries? An Empirical Evidence from an Enterprise Survey,Borsa Istanbul Review 16, no. 3 (September 2016): 172.

[x] Dani Rodrik, “New Technologies, Global Value Chains, and Developing Economies,”  National Bureau of Economic Research, No. w25164 (October 2018): 8.

[xi] https://stats.oecd.org/Index.aspx?DataSetCode=ICT_BUS

[xii] Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD), Enhancing the Contributions of SMEs in a Global and Digitalised Economy, June 2017, Paris, OECD, 2017.

[xiii] Economic and Social Commission for Asia and the Pacific (ESCAP), Digital and Sustainable Trade Facilitation: Global Report 2021, February 2022, Bangkok, United Nations, 2022.

[xiv] Emmanuelle Ganne and Kathryn Lundquist, “The Digital Economy, GVCs and SMEs,” in Global Value Chain Development Report 2019: Technological Innovation, Supply Chain Trade, and Workers in a Globalized World, ed. William Shaw (Geneva: World Trade Organisation, 2019), 134.

[xv] https://stats.oecd.org/Index.aspx?DataSetCode=ICT_BUS

[xvi] International Finance Corporation, MSME Finance Gap: Assessment of the Shortfalls and Opportunities in Financing Micro, Small, and Medium Enterprises in Emerging Markets, January 2017, Washington DC, World Bank Group, 2017.

[xvii]NPL Resolution, Insolvency and SMEs in Post-COVID-19 Times,” The World Bank,  accessed March 21, 2023.

[xviii] United Nations Regional Commissions, COVID-19: Towards an Inclusive, Resilient and Green Recovery—Building Back Better Through Regional Cooperation, May 2020, Santiago, United Nations, 2020.

[xix]National Portal of India,” Government of India, accessed May 12, 2023.

[xx] Taiji Furusawa and Lili Yan Ing, “G20’s Roles in Improving the Resilience of Supply Chains,”  in New Normal, New Technologies, New Financing, eds. Lili Yan Ing and Dani Rodrik (Jakarta: Economic Research Institute for ASEAN and East Asia, 2022), 51.

[xxi]

[xxii] Willy C Shih, “Global Supply Chains in a Post-Pandemic World,” Harvard Business Review 98, no. 5 (2020): 82–89.

[xxiii] Daria Taglioni, “Towards a G20 Strategy for Promoting Inclusive Global Value Chains,World Bank, September 6, 2016.

[xxiv]

[xxv]

[xxvi] United Nations Conference on Trade and Development (UNCTAD), The COVID-19 Pandemic Impact on Micro, Small, and Medium-sized Enterprises: Market Access Challenges and Competition Policy, COVID-19 Response, January 2022, Geneva, United Nations, 2022

[xxvii] Global Partnership for Financial Inclusion, Promoting Digital and Innovative SME Financing, May 2020, Washington DC, World Bank Group, 2020.

[xxviii] Global Partnership for Financial Inclusion, “SME Financing,” 28.

[xxix] Amare Abawa Esubalew and A. Raghurama, “Revisiting the Global Definitions of MSMEs: Parametric and Standardization Issues,” Asian Journal of Research in Business Economics and Management 7, no. 8 (2017): 429.

[xxx] Ayodotun Stephen Ibidunni, Aanuoluwa Ilerioluwa Kolawole, Maxwell Ayodele Olokundun, and Mercy E. Ogbari, “Knowledge Transfer and Innovation Performance of Small and Medium Enterprises (SMEs): An Informal Economy Analysis,” Heliyon 6, no. 8 (2020): 1.

Also see, Amitabh Anand, Birgit Muskat, Andrew Creed, Ambika Zutshi, and Anikó Csepregi, “Knowledge Sharing, Knowledge Transfer and SMEs: Evolution, Antecedents, Outcomes and Directions,” Personnel Review 50, no. 9 (2021): 1873.