टास्क फोर्स 3: LiFE, रेजिलियन्स, एंड वैल्यूस फॉर वेलबीइंग
ई-वेस्ट के प्रबंधन को सुव्यवस्थित करने में विभिन्न देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ई-वेस्ट की वैश्विक मात्रा 2019 में अनुमानित 53.6 मिलियन मीट्रिक टन (MT) तक पहुंच गई है. इन चुनौतियों में ई-वेस्ट से जुड़े सटीक डेटा की रिपोर्टिंग में कमी प्राथमिक चुनौती है. ई-वेस्ट की अप्रयुक्त रिकवरी से भी भारी वित्तीय नुक़सान होता है. ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2020 ने ई-वेस्ट से निकाली जाने वाली सामग्रियों के मूल्यांकन की गणना की तो पता चला कि अकेले 2019 में उत्पन्न ई-वेस्ट से लगभग 57 बिलियन US$ का ऐसा सामान निकाला जा सकता था, जिनका दोबारा उपयोग किया जा सके. इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इक्विप्मन्ट (EEE) के प्रभावी प्रबंधन से G20 देशों को अपने पर्यावरण और अर्थव्यवस्था में सुधार करने के साथ-साथ UN के अनेक सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को पूरा करने में सहायता मिल सकती है. यह आलेख इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र, विशेषत: कंज्युमर EEE में डेवलपमेंट को संसाधन दक्षता के माध्यम से नए संसाधन की ख़पत और पर्यावरणीय डिग्रेडेशन से अलग करने के नीतिगत उपायों पर G20 को सिफ़ारिशें प्रदान करता है.
संसाधन ख़पत की दृष्टि से, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इक्विप्मन्ट (EEE) जटिल उपकरण होते हैं, जिनके लिए कई तत्वों की आवश्यकता होती है. इसमें इंडियम, नाइओबियम, गैलियम और डिस्प्रोसियम जैसे क्रिटिकल रॉ मटेरियल (CRM) शामिल हैं. ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर, 2020 के अनुसार, 2019 में EEE उत्पादन के लिए एल्यूमीनियम, लोहे और तांबे की मांग लगभग 39 मीट्रिक टन थी, जबकि ई-वेस्ट में इन तत्वों की मात्रा केवल 25 मीट्रिक टन थी, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच का अंतर लगभग 14 मीट्रिक टन था. इस अंतर को वर्जिन मटेरियल यानी नए संसाधन (Forti et al. 2020) से पाटा जाना है.
चूंकि 2019 में कुल ई-वेस्ट का केवल 17.4 प्रतिशत ही रिसाइकिल किया गया था, अत: अकेले इन तीन तत्वों से होने वाला आर्थिक नुक़सान लगभग 34.5 बिलियन US$ था, जबकि ई-वेस्ट में मौजूद दोबारा उपयोग योग्य सामग्री का कुल मूल्यांकन लगभग 57 बिलियन US$ था (Forti et al. 2020). ऐसे में अब यह अनिवार्य हो गया है कि EEE के लिए संसाधनों की मांग को टिकाऊ ख़पत की ओर स्थानांतरित किया जाए.
CRM की सीमित वैश्विक आपूर्ति EEE उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की ख़रीद को बाधित करती है. ये संसाधन कुछ देशों में केंद्रित है जो इसकी आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं. वर्तमान में, चीन दुनिया के रेयर-अर्थ मेटल्स् का 86 प्रतिशत उत्पादन करता है (वाइरिंगेन और अल्वारेज़ 2022). महत्वपूर्ण सामग्रियों की प्राथमिक आपूर्ति कुछ देशों के हाथों में होने से इन देशों के पास वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करने की क्षमता है. यह बात 2011 में US-चीन व्यापार युद्ध के साथ-साथ रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे वर्तमान संघर्ष के दौरान स्पष्ट हो गई है. EEE क्षेत्र में रिसोर्स एफिशियन्सी (RE) यानी संसाधन दक्षता और सर्कुलैरिटी हासिल करने के लिए G20 के लिए CRM की आपूर्ति को सुरक्षित करना, जैसे कि ई-वेस्ट की अप्रयुक्त क्षमता का दोहन, दुर्लभ, कच्चे माल पर बोझ को कम करना ज़रूरी है.
सर्कुलेरिटी में सुधार के लिए आसान रिपेयर और रीसाइक्लिंग की अनुमति देने वाले मॉड्यूलर डिज़ाइन अहम है. हालांकि, इस उद्योग के लिनियर बिजनेस मॉडल अक्सर दीर्घकालिक स्थिरता पर अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं. वर्तमान में, EEE को इस तरह से असेंबल किया जाता है कि इनकी डिसअसेंबली और नवीनीकरण मुश्किल हो जाता है. इन उपकरणों को ज़्यादा टिकाऊ बनाने के लिए नियोजनबद्ध तरीके से काम करने के लिए भारी मात्रा में संसाधनों की ज़रूरत होती है, जो इस उद्योग को लिनियर इकोनॉमी बने रहने पर मजबूर करता है. यह नए उत्पादों (रिवेरा और लल्माहोमेड 2016) को बेचने के माध्यम से लाभ को अधिकतम करने के लिए निर्माताओं द्वारा अपने उत्पादों के जीवनकाल को छोटा करने के लिए अपनाई गई एक रणनीति है. EEE के लिए एक विनियमित जीवन काल की कमी के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का कम उपयोग होता है. इसका कारण यह है कि उनका पूरी तरह से पुन: उपयोग, मरम्मत, पुनर्प्राप्ति और अपस्ट्रीम प्रोडक्शन और डेवलपमेंट स्ट्रीम में पुनः सम्मिलित नहीं किया जाता है, जिससे RE पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
प्रमुख EEE निर्माता अपनी तक़नीक का पेटेंट कराते हैं. समान उत्पादों के लिए समान कच्चे माल का उपयोग करने के बावजूद, प्रत्येक ब्रांड के डिजाइन सिद्धांत अद्वितीय होते हैं. ऐसे में सीमित तक़नीक हस्तांतरण और ज्ञान-साझाकरण के साथ-साथ ई-वेस्ट और सेकंडरी रॉ मटेरियल (SRM) के उपयोग को लेकर काफ़ी मुश्किल पैदा हो जाती है.
एकत्रित और पुनर्चक्रित ई-वेस्ट पर औपचारिक रूप से वैश्विक डेटा की कमी का अर्थ यह है कि 2019 में 82.6 प्रतिशत ई-वेस्ट ऑफिशियल कलेक्शन सिस्टम के बाहर प्रबंधित किया गया था (बाल्डे et al. 2022). दुर्भाग्यवश, दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में वेस्ट EEE (WEEE) के सीमा पार आवागमन को लेकर रिकॉर्ड और आंकड़ों की कमी है, जबकि व्यापक क्षेत्रीय विश्लेषण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली रिपोर्टिंग भी अपर्याप्त है. अधूरी रिपोर्टिंग, अस्पष्ट परिभाषाएं, और गलत वर्गीकरण के परिणामस्वरूप असंगठित वैश्विक डेटा सेट तैयार होते हैं, जो निगरानी के प्रयासों को बाधित करते हैं. ये चिंताएं अवैध ई-वेस्ट परिवहन को बढ़ावा देती है और बेसल कन्वेंशन के तहत ई-वेस्ट के प्रभावी प्रबंधन को मुश्किल बनाती है. ई-वेस्ट की निगरानी उन राष्ट्रों में विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जहां औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रीसाइक्लिंग क्षेत्र सह-अस्तित्व में हैं, क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र में रिसाव के कारण औपचारिक रीसाइक्लिंग का कम उपयोग हो सकता है और डेटा की गलत रिपोर्टिंग हो सकती है.
सतत ई-वेस्ट प्रबंधन को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक ख़पत भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है. G20 देशों में व्यक्तियों की बढ़ती क्रय शक्ति ने कंस्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रसार को बढ़ावा दिया है. ये कन्सूमर इलेक्ट्रॉनिक्स बदलते रुझानों या नई तक़नीक का आगमन होने के कारण उनके निर्दिष्ट जीवनकाल से पहले ही बदल दिए जाते हैं. इस प्रवृत्ति की वज़ह से ई-वेस्ट उत्पादन में वृद्धि होने के कारण इसका पर्यावरणीय प्रभाव भी बढ़ जाता है. अपने ‘राइट-टू-रिपेयर’ से अनजान उपभोक्ता, शायद ही कभी ऐसे उत्पादकों से सवाल करते हैं जो अपने उत्पादों को जटिल बनाते हैं और इन उत्पादों के स्पेयर पार्ट्स बेहद कम उपलब्ध कराते हैं. इन कारणों से इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक्स की मरम्मत कठिन और महंगी हो जाती है. अत: यह स्थिति उपभोक्ताओं को जबरन अत्यधिक ख़पत की दिशा में धकेल देती है.
EEE प्रबंधन के वर्तमान लिनियर मॉडल में लीगेसी ई-वेस्ट पर तवज़्ज़ो नहीं दी गई है. अक्सर यह देखा गया है कि विकासशील देशों में अप्रचलित इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का एक महत्वपूर्ण अंश, जैसे पुराने मोबाइल फोन, या तो घरों में संग्रहित किए जाते हैं या उनका अनुचित तरीके से निपटान किया जाता है. निर्माता और उत्पादनकर्ता ई-वेस्ट के भीतर फंसे SRM के मूल्य के बजाय बाज़ार मूल्य के संदर्भ में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं को पुनर्खरीद कर रहे हैं, जो उपभोक्ताओं को औपचारिक रूप से अपने इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का निपटान करने से रोकता है. संसाधन उपलब्धता के संदर्भ में, 2003 का एक सेल फोन, मोटोरोला T189 में 2013 के Google Nexus S स्मार्टफोन (सिंह et al. 2018; चेन et al. 2018) की तुलना में लगभग तीन गुना सोना मौजूद होता है.
समन्वित प्रयासों के अभाव में EEE उत्पादन, ख़पत, ई-वेस्ट उत्पादन और वैश्विक अपशिष्ट प्रवाह को ट्रैक और मॉनिटर करने के लिए एक एकीकृत ढांचा स्थापित करना और एक सुसंगत दृष्टिकोण रखना चुनौतीपूर्ण बन जाता है. विश्व स्तर पर, RE और सर्कुलैरिटी को बढ़ावा देने के लिए ई-वेस्ट सहित EEE वैल्यू चेन के लिए ज़िम्मेदारी साझा करने वाले ढांचे की कमी है.
विभिन्न देशों के बीच ख़तरनाक कचरे के संचलन को विनियमित करने के उद्देश्य से बेसल कन्वेंशन की मौजूदगी के बावजूद, ई-वेस्ट के जटिल और बहु-दिशात्मक ट्रांसबाउंडरी संचलन के रूप में होने वाला अवैध शिपमेंट एक अहम मुद्दा बना हुआ है. यहां तक कि औपचारिक WEEE फ्लो के लिए भी, विकासशील देशों में डाउनस्ट्रीम यानी उस देश में जहां यह WEEE फ्लो जाते है के प्रबंधन को लेकर बहुत कम जानकारी है. उदाहरण के लिए, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य अमेरिका को यूरोप लगभग 1.9 मीट्रिक टन ई-वेस्ट का निर्यात करता है. लेकिन इसमें रिसाइकलिंग फैसिलिटिज्, ट्रीटमेंट व्यवस्था और अन्य सेफ़ प्रैक्टिसेस के बारे में बेहद कम ध्यान दिया जाता है (फोर्टी et al. 2020). बेसल कन्वेंशन की एक और कमी यह है कि WEEE को SRM के स्रोत के रूप में देखने के बजाय दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है – ख़तरनाक और गैर-ख़तरनाक – जिसकी वज़ह से WEEE में फंसी हुई संसाधन क्षमता उपेक्षित रह जाती है. बेसल सम्मेलन से परे, EEE की परिभाषा पर स्पष्टता और EEE के लिए आम सहमति क्या होनी चाहिए इस बात की कमी है. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर EEE और WEEE श्रेणियों के लिए अलग-अलग परिभाषाएं समस्या की भयावहता को मापना मुश्किल बनाती है, जिससे ई-वेस्ट उत्पादन के लिए अलग-अलग आकलन करने की जगह बन जाती है.
एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR) उत्पादकों को उनके उत्पादों के उपभोक्ता-पश्चात चरणों के प्रबंधन के लिए जवाबदेह बनाकर RE को बढ़ावा देने वाला एक नीतिगत दृष्टिकोण है (OECD 2016). विभिन्न देश अपनी डेवलपमेंट ट्रैजेक्टरी के आधार पर EPR को लागू करते हैं. जर्मनी और जापान के पास ई-वेस्ट एकत्र करने और पुनर्चक्रण के लिए स्पष्ट लक्ष्यों के साथ अच्छी तरह से स्थापित EPR प्रणालियां हैं (कौर, अतीक और गौतम 2022). दूसरी ओर, कनाडा में राष्ट्रीय स्तर पर WEEE के लिए EPR विनियमन नहीं है, लेकिन ई-वेस्ट प्रबंधन के लिए 10 अलग-अलग प्रांतीय नियम हैं (Portugaise, Jóhannsdóttir, and Murakami 2023). भारत ने अपने संशोधित ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2022 की पुष्टि की है, जिसमें नए संग्रह लक्ष्य, अधिकार क्षेत्र के भीतर EEE कवरेज का व्यापक दायरा और ई-वेस्ट क्रेडिट (MoEFCC 2022) की शुरुआत शामिल है.
हालांकि EPR नीति लक्ष्य, उपचार और SRM की रिकवरी के साथ ई-वेस्ट के उपभोक्ता-पश्चात संग्रह पर जोर देती है, लेकिन डिजाइन और उत्पादन के अपस्ट्रीम चरणों में उत्पादकों द्वारा इसके उपयोग को संबोधित किया जाना अभी बाकी है. अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, जन जागरूकता की कमी और कमज़ोर नियामक ढांचे के कारण देशों को EPR नीति के कार्यान्वयन की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अलग-अलग देश, अलग-अलग हितधारकों को ई-वेस्ट संग्रह के लिए जवाबदेह ठहराते हैं; कनाडा PROs को नियुक्त करता है, जापान खुदरा विक्रेताओं को जवाबदेह बनाता है, जबकि भारत दोनों का मिश्रण प्रदान करता है. हालांकि, भारत के ई-वेस्ट कानून में प्रमुख हितधारक, यानी अनौपचारिक क्षेत्र की अनुपस्थिति एक कार्यान्वयन चुनौती प्रस्तुत करती है, क्योंकि अधिकांश ई-वेस्ट को अनौपचारिक रूप से नियंत्रित किया जाता है. EPR नीतियां, विशेष रूप से विकासशील देशों में, औपचारिक EEE और ई-वेस्ट वैल्यू चेन्स को मज़बूत करने के लिए अनौपचारिक और अर्ध-औपचारिक क्षेत्रों के एकीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए.
अंत में, एंड-ऑफ-लाइफ EEE वैल्यू चेन में सामंजस्यपूर्ण मानकों की कमी गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करते हुए उत्पादों को रिफर्बिश यानी नवीनीकृत करना मुश्किल बनाती है. यह स्थिति ख़रीद नीतियों में रिफर्बिश्ड उत्पादों को शामिल करना चुनौतीपूर्ण बनाती है. रिफर्बिश्ड उत्पादों के मूल्यांकन के लिए स्पष्ट मानदंड के बिना, व्यवसाय उन्हें ख़रीदने में संकोच कर सकते हैं. इसलिए, ग्रीन प्रोक्यूरमेंट यानी हरित ख़रीद नीतियों को आगे बढ़ाने के बावजूद, नवीनीकृत इलेक्ट्रॉनिक्स की पहुंच सीमित ही है.
दुनिया के शीर्ष 10 ई-वेस्ट पैदा करने वाले सभी देश G20 के सदस्य हैं. इसलिए, G20 देशों को एक साथ आना चाहिए और वर्तमान रिसोर्स-इंटेंसिव लीनियर इकोनॉमी से अधिक रिसोर्स-एंड मटेरियल-एफ्फिसिएंट सर्कुलर इकोनॉमी की दिशा में आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. G20 एक एकीकृत नीति ढांचे के विकास और कार्यान्वयन के माध्यम से EEE क्षेत्र में सतत विकास को प्राप्त करने में योगदान कर सकता है. इस व्यवस्था से स्थानीय और वैश्विक दोनों हितधारक संसाधन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्पाद की मूल्य श्रृंखला में सहयोगी, सहक्रियात्मक तरीके से सोचने की कोशिश करेंगे.
वर्तमान EEE क्षेत्र को केंद्रीकृत तरीके से प्रबंधित किया जाता है, जिसमें केवल कुछ ही देश CRM की वैश्विक आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं. कच्चे माल की सोर्सिंग के अलावा, EEE डिज़ाइन और तक़नीक पर मुट्ठी भर इलेक्ट्रॉनिक निर्माण दिग्गजों का प्रभुत्व है, जबकि इसकी ख़पत बेहद व्यापक है. इस स्थिति ने टॉलरेंस पॉलिसी यानी सहिष्णु नीतियों का मार्ग प्रशस्त किया है, जो योजनाबद्ध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों को प्रचलन से बाहर करने और अति-उपभोग की ओर ले जा रही है. वैश्विक स्तर पर, COVID-19 महामारी, भू-राजनीतिक अस्थिरता, खनिजों की विषम ख़ोज और अवैध WEEE प्रवाह जैसे विभिन्न कारकों ने ई-वेस्ट की धारा को बाधित किया है.
हाई-वैल्यू रिसोर्स रिकवरी को सक्षम करने के लिए EEE वैल्यू चेन के समस्त हितधारकों को एक साथ लाने में G20 महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सदस्य देश मिलकर स्थायी रूप से निर्मित और मरम्मत किए गए सामानों के लिए बाज़ार बनाते समय सर्कुलैरिटी को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण और सामाजिक चिंताओं के साथ-साथ नियामक दबाव डाल सकते हैं. अधिकांश विकासशील देशों में, यह औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र के बीच की खाई को पाटने पर जोर देता है. विकासशील देशों में EPR के तहत बड़े पैमाने पर WEEE संग्रह को अनौपचारिक कचरा संग्राहकों द्वारा स्थापित एक मज़बूत डोर-टू-डोर संग्रह नेटवर्क को एकीकृत करके लागू किया जा सकता है. इसके अलावा, CE-सक्षम नीतियों को लागू करने की प्रतिबद्धता, जैसे प्रोडक्ट लाइफ एक्सटेंशन, अनौपचारिक रिफर्बिशिंग वर्कर्स को सेकेंडरी EEE के लिए बाज़ारों तक पहुंच प्रदान कर सकती है.
जैसा कि ई-वेस्ट मॉनिटर द्वारा निर्धारित किया गया है, वैश्विक रूप से उत्पन्न कुल ई-वेस्ट में से लगभग 17.4 प्रतिशत ई-वेस्ट का ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है, जबकि शेष 82.6 प्रतिशत गैर-पुनर्नवीनीकरण ई-वेस्ट का क्या होता है यह स्पष्ट नहीं है (फोर्टी et al. 2020). यह स्थिति वैश्विक ई-वेस्ट प्रवाह के परिमाण को पूरी तरह से समझने के लिए ई-वेस्ट डेटा-संग्रह (औपचारिक और अनौपचारिक दोनों) को अनिवार्य और पारदर्शी बनाने के लिए G20 के समक्ष एक सुनहरा अवसर प्रस्तुत करती है. इस तरह की पारदर्शिता मज़बूत, डेटा-संचालित निर्णय लेने में सहायक साबित होगी. देशों, क्षेत्रों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के लिए डेटा संग्रह और ट्रैकिंग रणनीतिक बेंचमार्किंग को संभव बना सकता है. सर्कुलर इंडिकेटर्स और जलवायु लक्ष्यों पर अपनी रिपोर्टिंग में सुधार करते हुए देश मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करते हुए अपनी सफ़लता को माप सकते हैं.
अंत में, G20 उपभोक्ताओं को सही विकल्प का चयन करने और स्थायी ख़पत की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है. इसके एक प्रमुख पहलू में उपभोक्ताओं को अपने इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं को अपग्रेड करने के लिए मजबूर करने के बजाय उत्पादों के जीवन विस्तार के उनके अधिकार के बारे में जागरूक करना शामिल है. COP26 में शुरू की गई ग्लोबल लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (LiFE) पहल को आगे बढ़ाने के लिए G20 प्लेटफॉर्म महत्वपूर्ण है. टिकाऊ उत्पादों की मांग पैदा करने के लिए भारत की G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में LiFE पहल भी शुरू की जा रही है. LiFE आंदोलन का उद्देश्य समुदायों को जलवायु-अनुकूल कार्यों के लिए संगठित करके सामूहिक कार्रवाई की शक्ति का उपयोग करना है.
इस आलेख में चर्चा की गई चुनौतियों से निपटने के लिए, G20 को EEE क्षेत्र के लिए एक सर्कुलर इकोनॉमी में संक्रमण के लिए एक साझा ज़िम्मेदारी ढांचे का प्रस्ताव करना चाहिए. इस ढांचे की मुख्य नीतियों पर निम्नलिखित बिंदुओं में चर्चा की गई है:
एट्रीब्यूशन : अब्दुल्ला अतीक et al., ‘मैक्सिमाइजिंग रिसोर्स एफिशियंसी एंड सर्कुलैरिटी इन द इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इक्विपमन्ट (EEE) वैल्यू चेन एंड ई-वेस्ट सेक्टर,’’ T20, पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
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