टास्क फोर्स 3- सुखी और स्वस्थ जीवन के लिए LiFE, लचीलापन एवं मूल्य
G20 देशों में स्थित छोटे द्वीपों को अलगाव, सीमित संसाधनों के साथ ही साफ तौर पर जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार की विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इन चुनौतियों का एक संभावित समाधान इन छोटे द्वीपों में आपदा ज़ोख़िमों को कम करने के लिए वित्तीय सहायता देना है, ताकि उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों की पहचान की जा सके. G20 देश अपने छोटे द्वीपों में सतत विकास, जलवायु अनुकूलन और आपदा ज़ोख़िम में कमी लाने के लिए वित्त पोषण तंत्र विकसित कर सकते हैं. इन विशेष क्षेत्रों में सतत विकास और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिए G20 देशों एवं उनके छोटे द्वीपों के समुदायों और अन्य हितधारकों के बीच सहयोग व समन्वय बेहद ज़रूरी है.
G20 देशों में से इंडोनेशिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, चीन, ब्राज़ील और यूरोपियन यूनियन के कुछ देशों (नीदरलैंड्स, फ्रांस और इटली) के छोटे द्वीपों पर अच्छी-ख़ासी आबादी निवास करती है. छोटे द्वीपों का तात्पर्य “कम से कम 1.5 मिलियन आबादी वाले द्वीपों” से है. देखा जाए तो छोटे द्वीपों की यह परिभाषा काफ़ी व्यापक है, जिसका अर्थ है कि दुनिया के छोटे द्वीपों में बहुत अंतर है और उसकी तुलना नहीं की जा सकती है. इन द्वीपों की वास्तविक परिस्थितियों पर ध्यान देने के लिए इस पॉलिसी ब्रीफ़ में प्रति व्यक्ति GNI और राष्ट्रीय औसत से इसका उतार-चढ़ाव या बदलाव शामिल है, ज़ाहिर है कि यह परिवर्तित हो सकने वाली ऐसी स्थिति है, जो हर छोटे द्वीप के वित्तीय और आर्थिक सामर्थ्य का प्रतिनिधित्व करती है.
G20 देशों की बात करें, तो इनमें इंडोनेशिया ऐसा देश है, जिसके छोटे द्वीपों पर सबसे बड़ी आबादी निवास करती है. इंडोनेशिया के 22 छोटे द्वीपों पर 9 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं. ब्राज़ील, चीन, स्पेन, कनाडा और अमेरिका में भी छोटे-छोटे द्वीपों पर अच्छी-ख़ासी जनसंख्या रहती है. (चित्र1 देखें)
किसी भी देश में छोटे द्वीप अक्सर मुख्य भूमि अर्थात मेन लैंड से दूर स्थित होते हैं, साथ ही उनकी भोगौलिक परिस्थियां भी भिन्न होती हैं. इस वजह से छोटे द्वीपों का आर्थिक विकास देश के वास्तविक आर्थिक विकास की तुलना में काफ़ी हद तक अलग होता है, मुख्य रूप से इंडोनेशिया, भारत, ब्राज़ील और मैक्सिको जैसे कम GNI प्रति व्यक्ति वाले देशों में तो इसमें बहुत अधिक अंतर होता है. यही वजह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अलावा, इन छोटे द्वीपों को सीमित आर्थिक गतिविधियों एवं निवेश की कमी जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है.
चित्र 1: G20 देशों के भीतर छोटे द्वीपों पर जनसंख्या का फैलाव
स्रोत: विश्व बैंक के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए लेखकों द्वारा किया गया चित्रण
चीन, अमेरिका, भारत, रूस और जापान, ये सभी G20 देश हैं और वैश्विक स्तर पर ऐसे पांच शीर्ष कार्बन उत्सर्जक हैं, जिनका विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में 56 प्रतिशत योगदान है. इसीलिए G20 को इस मसले पर गंभीरता के साथ कार्रवाई करनी चाहिए. जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप आने वाली सदी में पूरे विश्व में समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की गई है, ज़ाहिर है कि छोटे द्वीपों के साथ-साथ समुद्र तटीय इलाक़े इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे.
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जुड़े मामलों से निपटने के लिए G20 देशों में स्थित छोटे द्वीपों के हितों को उनके वित्त पोषण की ज़रूरतों के संदर्भ में बेहतर तरीक़े से समझने और उन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. G20 को समूह के भीतर इन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को निष्पक्ष रूप से राशि मुहैया करने की सुविधा भी स्थापित करना चाहिए.
वर्ष 1986-2005 के स्तर के मुक़ाबले वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर में अनुमानित बढ़ोतरी लगभग 0.43-0.84 मीटर है. समुद्र तल के स्तर में यह बढ़ोतरी विभिन्न स्थानीय और क्षेत्रीय विविधताओं एवं ग्लोबल वार्मिंग की परिस्थितियों पर निर्भर करेगी. चित्र 2 इंगित करता है कि संसाधन संपन्न तटीय शहरों की तुलना में अपेक्षाकृत कम GNI वाले शहरी एटोल द्वीपों पर समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण ज़ोख़िम की संभावना ज़्यादा होगी.
चित्र 2: विभिन्न परिदृश्यों के अनुमानों के साथ सदी के अंत में तटीय भौगोलिक क्षेत्रों के लिए ज़ोख़िम
स्रोत: Oppenheimer, M. et al. “समुद्र के स्तर में वृद्धि और निचले द्वीपों, तटों एवं समुदायों के लिए निहितार्थ.” बदलती जलवायु में समुद्र और क्रायोस्फियर पर IPCC की विशेष रिपोर्ट. न्यूयॉर्क: IPCC, 2019, 328, 4-3.
छोटे द्वीप जलवायु परिवर्तन की वजह से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. इसकी प्रमुख वजह यह है कि अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण छोटे द्वीप आमतौर पर बड़े और अथाह समुद्र का सामना करते हैं, इसके साथ ही उनका छोटा आकार उन्हें बफ़र ज़ोन स्थापित करने में तुलनात्मक रूप से मुश्किलें पैदा करता है. कई छोटे द्वीप समुद्री तटों के निकट ही अपने बुनियादी ढांचे और व्यावसायिक एवं आवासीय क्षेत्रों को विकसित करते हैं, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए ज़्यादा आसान और व्यावहारिक होता है. हालांकि, समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी और बार-बार आने वाले तूफानों की वजह से इन द्वीपों में रहने वाले लोगों और बुनियादी ढांचे के लिए ख़तरा बढ़ जाता है. कई छोटे द्वीपों की अर्थव्यवस्थाएं पर्यटन और मत्स्य पालन पर निर्भर हैं. समुद्र का बढ़ता तापमान मछलियों के साथ ही पूरे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को ख़तरे में डालने का काम करता है, जबकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण इन द्वीपों पर आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी आती है. चित्र 3 उन द्वीपों की परेशानियों और कमज़ोरियों पर प्रकाश डालता है, जो पर्याप्त निवेश और नीतिगत आपदा न्यूनीकरण उपाय नहीं देखते हैं और यह जताते हैं कि उनकी रिकवरी अधिक चुनौतीपूर्ण होगी.
चित्र 3: वैकल्पिक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यों एवं नीतियों का प्रभाव
स्रोत: Nurse et al. “छोटे द्वीप.” जलवायु परिवर्तन 2014 में: प्रभाव, अनुकूलन और भेद्यता. पार्ट बी: क्षेत्रीय पहलू. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की पांचवीं आकलन रिपोर्ट में कार्यकारी समूह-II का योगदान. न्यूयॉर्क: IPCC, 2014. 1636, 29-5
G20 समूह में छोटे द्वीपों, ख़ास तौर पर इंडोनेशिया के छोटे द्वीपों में मुख्य भूमि की तुलना में आर्थिक गतिविधियां बहुत कम होती हैं. ऐसे छोटे द्वीपों की प्रति व्यक्ति GNI [a] उनके देशों की प्रति व्यक्ति GNI से अलग है. चित्र 4 G20 समूह में जनसंख्या, प्रति व्यक्ति GNI और प्रति व्यक्ति औसत GNI से इसके बदलाव के बीच संबंध को दिखाता है. GNI प्रति व्यक्ति आधार प्रत्येक संबंधित देश को दर्शाता है. इंडोनेशिया, चीन और ब्राज़ील के छोटे द्वीपों में कई ऐसे द्वीप हैं, जिनमें प्रति व्यक्ति GNI में औसत से काफ़ी अधिक नकारात्मक विचलन है. यह संकेत करता है कि इन देशों के छोटे द्वीप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहद बुरी हालात में हैं.
चित्र 4: छोटे द्वीपों वाले G20 देशों में जनसंख्या (bubble size), प्रति व्यक्ति GNI और GNI प्रति व्यक्ति औसत परिवर्तन के बीच संबंध
स्रोत: विश्व बैंक डेटा और हर देश के संबंधित राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आंकड़े (2022 के लिए) का उपयोग करते हुए लेखकों की गणना
तालिका 1 उन देशों को सूचीबद्ध करती है, जिनके छोटे द्वीपों में सबसे अधिक और सबसे कम नुक़सान सहने की क्षमता है. वल्नेरबिलिटी (भेद्यता) को को जनसंख्या के आकार (प्रदर्शन के आकार) और इन द्वीपों की आपदा की परिस्थितियों से उबरने की क्षमता (GNI प्रति व्यक्ति) से जोड़ा जा सकता है. अनुमान यह लगाया जाता है कि जिस देश की आबादी जितनी बड़ी है और प्रति व्यक्ति GNI से विचलन नकारात्मक है (उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया) में अधिकतम वल्नेरबिलिटी और नुक़सान का अनुभव किया जाएगा. इसके उलट, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में स्थित छोटे द्वीपों की भेद्यता बहुत कम हैं.
तालिका 1: छोटे द्वीपों वाले G20 देशों में GNI प्रति व्यक्ति औसत से बदलाव
देश | छोटे द्वीपों की जनसंख्या | प्रति व्यक्ति GNI (अमेरिकी डॉलर में 2022) | प्रति व्यक्ति औसत GNI से बदलाव (अमेरिकी डॉलर में 2022) |
अमेरिका | 2,031,474 | 468,165 | 331,845 |
ऑस्ट्रेलिया | 542,000 | 447,079 | 310,759 |
यूनाइटेड किंगडम | 449,400 | 160,138 | 23,818 |
फ्रांस | 2,098,053 | 32,487 | -103,833 |
चीन | 3,352,477 | 14,571 | -121,749 |
ब्रज़ील | 3,766,358 | 18,071 | -118,250 |
मैक्सिको | 169,466 | 12,338 | -123,982 |
इंडोनेशिया | 9,006,077 | 3,378 | -132,942 |
स्रोत: तालिका में उल्लिखित विभिन्न क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय आंकड़ों के आधार पर लेखकों की गणना
आमतौर पर वर्तमान वित्त पोषण कार्यक्रमों का फोकस छोटे द्वीपीय देशों पर होता है, जबकि इन वित्त पोषण कार्यक्रमों के अंतर्गत अन्य विकासशील देशों में स्थित छोटे द्वीपों की ज़रूरतों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. G20 के मंच को अपने सदस्य देशों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने और इससे जुड़े बदलावों को अपनाने में छोटे द्वीपों की ज़रूरतों को देखते हुए इन विशिष्ट क्षेत्रों में फंडिंग का निर्धारण करना चाहिए.
आम तौर पर देखा जाए तो छोटे द्वीपों पर निवेश करना आकर्षक नहीं होता है, क्योंकि इन द्वीपों पर बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था नहीं होती है और न ही गंभीर प्राकृतिक चुनौतियां होती हैं. निजी निवेशकों को अपने ज़ोख़िमों का आकलन करते हुए सोच-समझ कर निवेश करना चाहिए, क्योंकि यहां ज़ोख़िम अधिक होते हैं. एक और बात यह है कि इन ज़ोख़िमों के लिए बीमा और पुन:बीमा की सुविधा, विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दुर्लभ हैं और अगर यह उपलब्ध भी है तो उसका प्रीमियम बहुत ज़्यादा है. इन देशों में सरकारी फाइनेंस की अपनी सीमाएं हैं और बजट आवंटन में खींचतान बनी रहती है. लोकतांत्रिक देशों में सरकार अत्यधिक आबादी वाले क्षेत्रों की देखभाल पर अधिक फोकस करती, क्योंकि वहां बड़ी संख्या में मतदाता होते हैं. ज़ाहिर है कि सरकारों की प्राथमिकता में कम आबादी वाले छोटे द्वीप आमतौर पर पीछे होते हैं.
इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण बहुत महंगा होता है, और ख़ासकर जब जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सहन करने के अनुकूल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जाता है, तो और भी महंगा होता है. एक और अहम बात यह है कि पर्याप्त और जलवायु-अनुकूल इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होने के जो विपरीत प्रभाव होते हैं, वे बेहद गंभीर होते हैं. हालांकि, अच्छे बुनियादी ढांचे के सकारात्मक प्रभावों के फायदों का आकलन करना मुश्किल है, उनके ऊपरी तौर पर दिखने वाले फायदों (ऑफ-शीट) को छोड़कर. इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि लागत-लाभ विश्लेषण बहुत व्यापक नहीं है क्योंकि इसमें संभावित वित्तीय ज़ोख़िम तो शामिल हो सकते हैं, लेकिन नुकसान को बचाने के साथ ही आपदा में मारे जाने वालों की संख्या को कम करने से जो संभावित लाभ होते हैं, वो शामिल नहीं सकते हैं. कुल शुद्ध लाभ गणना को वास्तविकता से कम आंकने की वजह से परियोजना अस्वीकृति हो जाती है. इसलिए, निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए, राष्ट्रीय सरकारें एवं गैर-लाभकारी संगठन दख़ल दे सकते हैं और परियोजनाओं की बैंकेबिलिटी का लाभ उठा सकते हैं.
G20 केवल कुछ मौक़ों पर ही स्मॉल आइलैंड डेवलपिंग स्टेट्स यानी छोटे द्वीप वाले विकासशील राष्ट्रों (SIDS) में आपदा से क्षतिग्रस्त हुए इंफ्रास्ट्रक्चर के पुनर्निर्माण के प्रयासों के लिए प्रत्यक्ष तौर पर धनराशि उपलब्ध कराता है. फिर भी, G20 ने प्राकृतिक आपदाओं के लिए SIDS की भेद्यता को पहचाना है और उनके लचीलेपन एवं रिकवरी का समर्थन करने के लिए क़दम उठाए हैं.
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2016 में G20 समूह ने अफ्रीका और बेहद कम विकसित देशों में सहायक औद्योगीकरण पर G20 इनीशिएटिव की स्थापना की, जिसमें SIDS का समर्थन किया जाना भी शामिल है. इस पहल का उद्देश्य इन देशों में स्थाई औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना है, ताकि रोज़गार सृजित किए जा सकें, उत्पादकता बढ़ाई जा सके और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके. G20 ने वर्ष 2017 में G20 अफ्रीका पार्टनरशिप लॉन्च की, जिसमें SIDS समेत अफ्रीकी देशों में आपदा ज़ोख़िम में कमी एवं लचीलापन निर्माण के लिए समर्थन शामिल है.
G20 सदस्य देशों के छोटे द्वीपों को भी इसी तरह के समर्थन की आवश्यकता है. G20 अपने सदस्य देशों के छोटे द्वीपों के लिए वित्तीय संसाधनों की पहुंच बनाने के लिए 7 सूत्रीय फ्रेमवर्क विकसित करने पर विचार कर सकता है, ताकि लचीलापन स्थापित किया जा सके और आपदा से जुड़े ज़ोख़िमों को कम किया जा सके. (चित्र 5 देखें)
चित्र 5: G20 देशों के छोटे द्वीपों तक वित्तीय संसाधनों को पहुंचाने के लिए फ्रेमवर्क
आपदा-संभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में बीमा और पुनर्बीमा संस्थानों की बहुत कमी है. ऐसी परियोजनाओं की बहुत अधिक असुरक्षा के मद्देनज़र फाइनेंसर, विशेष रूप से निजी निवेशक, अपनी निवेश की गई रकम के लिए पूरी सुरक्षा चाहते हैं. इस क्षेत्र में विशिष्ट व्यवसायों वाली कुछ ही बीमा और पुनर्बीमा कंपनियां मौज़ूद हैं. हालांकि, बहुपक्षीय एजेंसियां ऐसी संस्थाओं को स्थापित और विकसित कर सकती हैं. उदाहरण के लिए विश्व बैंक और जापान सरकार ने बाज़ार आधारित आपदा ज़ोख़िम बीमा कंपनी यानी पैसिफिक कैटास्ट्रोफी रिस्क इंश्योरेंस कंपनी बनाने के लिए पैसिफिक कैटास्ट्रोफी रिस्क फाइनेंसिंग एंड इंश्योरेंस पहल की स्थापना की है.
पैसिफिक कम्युनिटी के एप्लाइड जियोसाइंस एवं टेक्नोलॉजी डिवीजन के सचिवालय ने छह प्रशांत द्वीप देशों के लिए PACRIS नाम का एक अपडेटेड सूचना ज़ोख़िम प्लेटफॉर्म लागू किया. इस प्रोजेक्ट ने छह सरकारों को आपदा के पश्चात बजट विस्तार के दिशानिर्देश उपलब्ध कराए, साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के बाद वित्तीय मांगों का प्रबंधन करने के लिए अनिवार्य उपकरण भी मुहैया कराए.
G20 देशों के भीतर मौज़ूद छोटे द्वीपों के लिए उनकी वर्तमान स्थिति और जरूरतों के मुताबिक़ आपदा के बाद की परिस्थियों के लिहाज़ से इसी प्रकार के दिशानिर्देश भी स्थापित किए जा सकते हैं. इसके अलावा G20 को अपने सदस्य देशों के छोटे द्वीपों पर बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्तपोषण के नए स्रोतों को प्रोत्साहित करने के संभावित तरीक़ों का भी पता लगाना चाहिए. ऑनरशिप वं बाज़ार भागीदारी बढ़ाने के लिए स्थानीय जुड़ाव बेहद अहम होगा. यह G20 के छोटे द्वीपों के लिए फंडिंग को चैनलाइज करने के प्रस्तावित फ्रेमवर्क में एक महत्त्वपूर्ण क़दम है.
इसके अलावा, G20 छोटे द्वीप समुदायों के लिए फाइनेंस के अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने हेतु क्लाइमेट बॉन्ड्स, ग्रीन बॉन्ड्स या इंश्योरेंस इंस्ट्रूमेंट्स जैसे अभिनव वित्तपोषण तंत्र को बढ़ावा दे सकता है. ये मैकेनिज़्म न केवल निजी क्षेत्र के फाइनेंस का लाभ उठा सकते हैं, बल्कि सरकारी वित्तपोषण स्रोतों का बोझ कम कर सकते हैं.
G20 देशों को अपने छोटे द्वीपों का समर्थन और मदद करने के लिए आम चुनौतियों एवं सहयोग के अवसरों की पहचान करने के लिए एक साथ मिलकर कार्य करना चाहिए. इसमें आपदा से जुड़े ज़ोख़िम में कमी, जलवायु अनुकूलन और सतत विकास में सबसे अच्छी प्रथाओं एवं विशेषज्ञता को एक दूसरे के साथ साझा करना शामिल हो सकता है. G20 के इस सहयोग में छोटे द्वीप के समुदायों को ध्यान में रखकर सहायता उपलब्ध करने के लिए पूलिंग संसाधन और विशेषज्ञता भी शामिल हो सकती है. वित्त पोषण इंफ्रास्ट्रक्चर में किए जा रहे प्रयासों के साथ ही G20 को विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे के निवेश के लिए एक नॉलेज हब स्थापित करने के लिए एक युक्तिसंगत रणनीति को शुरू करने की ज़रूरत पड़ सकती है, ताकि यह न केवल अधिक सुनियोजित हो बल्कि इस एकत्रित जानकारी के प्रभावों को बढ़ा सके. उदाहरण के तौर पर पानी और मोबिलिटी इन्वेस्टमेंट जैसे ख़ास सेक्टरों पर ध्यान केंद्रित करके इसे प्रारंभ किया जा सकता है. इस तरह की परियोजना से जो भी सबक मिले, उसे इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के बड़े क्षेत्र में दोहराया जा सकता है.
इसके आलवा, G20 देशों को निर्णय लेने की पूरी प्रक्रिया में छोटे द्वीपों के समुदायों को शामिल करना चाहिए, ताकि उनकी आवाज भी सुनी जा सके और उनके विचारों को भी निर्णय में शामिल किया जा सके. इसके अंतर्गत कार्यक्रमों और परियोजनाओं का ख़ाका खींचने एवं उन्हें कार्यान्वित करने में छोटे द्वीपों के इन समुदायों के सुझाव व जुड़ाव को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र की स्थापना किया जाना भी शामिल हो सकता है.
एट्रिब्यूशन: हाफिदा फहमियासारी, दनांग परिकेसित और फौज़िया ज़ेन, “G20 देशों में स्थित छोटे द्वीपों में आपदा से संबंधित वित्तीय संसाधनों के लिए मार्ग तैयार करना,” टी20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.
Nurse, L. A., R. F. McLean, J. Agard, L. P. Briguglio, V. Duvat-Magnan, N. Pelesikoti, E. Tompkins, and A. Webb. 2014. Small islands. In: Climate Change 2014: Impacts, Adaptation, and Vulnerability. Part B: Regional Aspects. Contribution of Working Group II to the Fifth Assessment Report of the Intergovernmental Panel on Climate Change. IPCC.
IPCC. 2019. Summary for policymakers. IPCC Special Report on the Ocean and Cryosphere in a Changing Climate. Periodic, IPCC.
Hurley, Gail. 2015. Financing for Development and Small Island Developing States: A Snapshot and Ways Forward. New York: UNDP.
OECD. 2018. MAKING DEVELOPMENT CO-OPERATION WORK for SMALL ISLAND DEVELOPING STATES. Paris: OECD.
Oppenheimer, M. et al. “Sea Level Rise and Implications for Low-Lying Islands, Coasts and Communities.” In IPCC Special Report on the Ocean and Cryosphere in a Changing Climate. New York: IPCC, 2019, 328.
[a] प्रति व्यक्ति स्माल आईलैंड GNI = GNI आईलैंड/द्वीप की आबादी
[b] रखरखाव, मरम्मत, उन्नयन एवं भविष्य के निवेश के बारे में सूचित फैसले यानी पुख्ता निर्णय लेने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रणालियों के प्रदर्शन को लेकर आंकड़े एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना.