मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों के सामने चुनौतियां!

मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों (MDB) को कर्ज़ देने में बढ़ोतरी करनी होगी. उनकी पूंजी में इज़ाफा होना चाहिए और बेहतर फायदे के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए. MDB को ज़्यादा प्रतिस्पर्धा और तालमेल की आवश्यकता है.
Ashima Goyal

मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों (बहुपक्षीय विकास बैंकों या MDB) के बीच उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EDE) की विकास से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, वहां जलवायु से जुड़े ज़ोखिमों को कम करने के लिए और उन्हें झटकों से उबारने के लिए वित्त उपलब्ध कराने का ज्य़ादातर दबाव विश्व बैंक की प्रणाली पर है. लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों में मौजूद MDB को भी इस मामले में काम करने की ज़रूरत है. उन्हें MDB इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनके शेयरहोल्डर एक से ज़्यादा देशों के हैं. 

अगर किसी क्षेत्र पर भी ध्यान है तो उस क्षेत्र में कई देश शामिल होते हैं. शेयरहोल्डर में किसी भी तरह की विविधता जोख़िम कम करती है, रेटिंग में सुधार करती है और कर्ज़ की लागत घटाती है. मिसाल के तौर पर न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की रेटिंग उसके किसी भी शेयरहोल्डर की तुलना में ज़्यादा है. ये सही है कि आकार के मामले में विश्व बैंक का दबदबा है और कुल कर्ज़ में इसका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज़्यादा है. 

बेहतर वैश्विक सुरक्षा जाल

हालांकि, MDB सिस्टम के बेहतर प्रदर्शन के लिए सभी MDB को कर्ज़ मुहैया कराने में बढ़ोतरी करनी होगी. एक प्रतिस्पर्धी प्रणाली जो अलग-अलग देशों की योजना के आधार पर काम करती है, वो ज़्यादा प्रभावी हो सकती है. वर्तमान में MDB के बीच प्रतिस्पर्धा और तालमेल बहुत ही कम है. ग्राहकों से दोस्ती वाले व्यवहार और कर्ज़ देने में आसानी की कमी है. 

जहां बड़े शेयरधारक समान हैं, वहां क्षेत्रीय MDB के पास बेहद कम स्वतंत्रता है और उनकी नीतियां एक समान हैं. लेकिन कुछ MDB ऐसे भी हैं जो अलग ढंग से काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, वर्ल्ड बैंक के द्वारा लिए जाने वाले 2-4 साल के समय के मुकाबले NDB किसी प्रोजेक्ट को मंजूर करने का समय 6 महीने करने के लिए स्थानीय सरकारों की मंजूरी, तकनीक़ और कम कर्मचारियों की टीम पर निर्भर करता है. कुछ MDB ऐसे भी हैं जो स्थानीय करेंसी में कर्ज़ देने की कोशिश कर रहे हैं जो स्थानीय परियोजनाओं के लिए करेंसी के जोख़िम को हटाता है. कुछ पूंजी का फायदा उठाने के लिए शेयरहोल्डर के SDR (स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स) का इस्तेमाल कर रहे हैं.  

नये लक्ष्यों की बोर्ड से निगरानी, प्रक्रियाओं में बदलाव, इस्तेमाल करने की प्रक्रिया (यूटिलाइजेशन प्रोसेस) को आसान बनाने, छोटे कर्ज़ के लिए मैनेजर को मिलने वाले प्रोत्साहन में सुधार और वॉरंटी देने के लिए ट्रेनिंग जैसे अच्छी तरह से परिभाषित छोटे सुधारों को कम समय में आगे बढ़ाया जा सकता है. 

समय बीतने के साथ MDB प्रस्तावों के लिए संचालन की प्रक्रियाओं (ऑपरेशनल प्रोसेस) को मानकीकृत (स्टैंडर्डाइज्ड) मांग के साथ मिला सकते हैं. इसके लिए उन देशों की कानूनी रूप-रेखा का इस्तेमाल किया जा सकता है जहां ये पर्याप्त रूप से विकसित हैं. उदाहरण के लिए, एशियन डेवलपमेंट बैंक यूनाइटेड किंगडम (UK) के कानून का इस्तेमाल करता है जो उसके ग्राहकों के लिए कम्प्लायेंस (पालन करने) का बोझ बढ़ाता है. न्यूनतम मानक को हर हाल में विकसित करना चाहिए लेकिन जहां संभव हो वहां स्थानीय मानक का इस्तेमाल करना चाहिए. 

अलग-अलग देशों को विश्वसनीय परियोजना बनाने की ज़रूरत है जो अलग-अलग देशों के प्लैटफॉर्म पर वित्त के लिए प्रतिस्पर्धा करें. तकनीकी समर्थन संपत्ति से जुड़ी बारीक बातें, माप, खुलासे (डिस्क्लोज़र) और उचित प्रोत्साहन बनाने में मदद कर सकते हैं. पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा परियोजना से जुड़े फैसलों में भू-राजनीति के असर को कम करेंगे. 

पूंजी की ज़रूरत

वर्तमान में जिस बड़े मुद्दे पर बहस हो रही है वो है MDB की पूंजी में बढ़ोतरी बनाम काम-काज के लिए इसका ज़्यादा असरदार इस्तेमाल. स्वाभाविक तौर पर MDB ज़्यादा पूंजी चाहते हैं और उनकी दलील है कि AAA रेटिंग को सुरक्षित रखना जरूरी है जो उनकी पूंजी की लागत को कम करती है. 

लेकिन मल्टीलेटरल डेवलपमेंट बैंकों का प्रीफर्ड क्रेडिटर स्टेटस (PCS) उनकी ऊंची क्रेडिट क्वॉलिटी के लिए एक बड़ा कारण है. इस बात को अच्छी तरह नहीं समझा गया है. कर्ज़ लेने वाले खुद MDB को भुगतान करना चाहते हैं क्योंकि इससे कर्ज़ की दरें कम बनी रहती हैं और दूसरे कर्ज़ की कीमत MDB के कर्ज़ से कम होती है. उन्हें अपने कर्ज़ पर हेयरकट (बकाया रकम से कम लेना) लेने के लिए नहीं कहा जाता है. वास्तव में चीन दलील दे रहा था कि उसने जिन देशों को कर्ज़ दिया था, उनकी तरफ से कर्ज़ की पुनर्संरचना (रीस्ट्रक्चर) के लिए हेयरकट की पूर्व शर्त के तौर पर MDB को भी हेयरकट लेना चाहिए. 

लेकिन चीन के वर्चस्व वाले MDB भी हेयरकट नहीं लेते हैं. पूंजी के अलावा दूसरे कारण जैसे कि PCS AAA रेटिंग का समर्थन करते हैं. MDB की विविधता भी जोख़िम कम और रेटिंग में सुधार करती है. MDB के पास जो बड़ी मात्रा में कैलेबल कैपिटल (प्रतिदेय पूंजी यानी शेयर की बिक्री से हासिल पूंजी जिसका भुगतान नहीं किया गया है लेकिन जिसकी मांग की जा सकती है) है, उसे MDB की रेटिंग का समर्थन करना चाहिए. G20 को इन मुद्दों की तरफ क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का ध्यान आकर्षित करना चाहिए. 

लेकिन MDB के गवर्नेंस और अलग-अलग देशों की वोटिंग के शेयर से जुड़े मुद्दे भी पूंजी बढ़ाने में कठिनाई बढ़ा रहा है. विश्व बैंक के लिए एक हरित रियायती कर्ज़ (ग्रीन कंसेशनल लैंडिंग) देने वाले संस्थान, जिनके पास अधिक न्यायसंगत वोटिंग शेयर है, के लिए पूंजी में बढ़ोतरी करना आसान हो सकता है. 

निजी पूंजी लाना

अलग-अलग प्रकार के इनोवेशन से जलवायु परिवर्तन से निपटने में सबसे ज़्यादा प्रगति हुई है और इनमें कुछ कर दिखाने की सबसे ज़्यादा संभावना है. नेट जीरो (शून्य उत्सर्जन) तक पहुंचने में प्राइवेट सेक्टर के लिए आकर्षक व्यावसायिक संभावनाएं हैं और चूंकि सरकारी वित्त पर ज़्यादा दबाव है इसलिए प्राइवेट पैसे को लाना आवश्यक लक्ष्य तक तेज़ी से पहुंचने का रास्ता है. लेकिन प्राइवेट पैसा मुहैया कराने वाले नई पहल के अज्ञात ज़ोखिमों को सहने के लिए तैयार नहीं हैं और खास तौर पर उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में जोख़िम के लिए जरूरत से ज़्यादा प्रीमियम मांगते हैं. ऐसे में MDB जोख़िम को हल्का करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इस तरह प्राइवेट सेक्टर के निवेश को आकर्षित कर सकते हैं. 

MDB, परोपकारी लोगों और सरकारों की तरफ से हासिल फंड से मिला-जुला वित्त या दो या उससे अधिक पक्षों के द्वारा मिला-जुला निवेश जोख़िम को कम करता है और इस तरह निवेशकों के मुनाफे की रक्षा करता है और उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए पूंजी की लागत को कम करता है. प्राइवेट सेक्टर को विकृत प्रोत्साहन या जरूरत से ज़्यादा सब्सिडी से रोकने के लिए ज़ोखिमों का आवंटन सावधानीपूर्वक करना होगा. लेकिन PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) की वित्तीय संरचना, जैसे कि फर्स्ट लॉस फंड, इस तरह से तैयार की गई है कि किसी भी प्रोजेक्ट के निवेशक या प्रोमोटर के जोख़िम को सीमित करे. पहले से ही इस तरह के फंड हैं जो उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की परियोजनाओं और कंपनियों में मध्यम और दीर्घकालीन वित्त मुहैया कराने के लिए सिंडिकेटेड मल्टीलेटरल प्राइवेट-सेक्टर लोन में निवेश करते हैं. 

करेंसी जोख़िम की वजह से लागत को हेजिंग कम कर सकती है लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवश्यक लंबे समय के लिए उपलब्ध नहीं होती है. ये खर्चीली और संचालन में मुश्किल है. कुछ फंड सिंथेटिक (कृत्रिम ढंग से) हेज मुहैया कराने के लिए पूलिंग और डायवर्सिफिकेशन का इस्तेमाल करते हैं. 

डायवर्सिफिकेशन ज़ोखिमों को घटाता है और मुनाफे की रक्षा करता है. करेंसी रिस्क की लागत उन पोर्टफोलियो के लिए हेजिंग की लागत से काफी कम हो सकती है जो अलग-अलग रीजन और सेक्टर में फैले हुए हैं और समस्या से प्रभावित मुद्राओं की पहचान करके अपना जोख़िम कम करते हैं. इसकी वजह ये है कि देश का जोख़िम आम तौर पर वास्तविक करेंसी डेप्रिसिएशन (मुद्रा अवमूल्यन) से ज़्यादा होता है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) अपने करेंसी डेटाबेस को उपलब्ध कराकर कम लागत पर इस तरह की संरचना का निर्माण करने में मदद कर सकता है. 

घरेलू संस्थानों की भूमिका

अच्छे गवर्नेंस और रेटिंग वाले स्थानीय विकास वित्त संस्थानों (डेवलपमेंट फाइनेंस इंस्टीट्यूशन या DFI) का इस्तेमाल स्थानीय जानकारी मुहैया कराने के लिए और परियोजना पर निगरानी के लिए किया जा सकता है. इस तरह की मध्यवर्ती (इंटरमीडियरी) संस्थाएं वित्तीय इनोवेशन और अधिक डेटा की उपलब्धता को आगे बढ़ाते हुए विकेंद्रित (डीसेंट्रलाइज्ड) निर्णय लेने की प्रक्रिया को आसान बना सकती हैं. क्षेत्रीय और राष्ट्रीय DFI की मध्यस्थता के जरिए MDB के वॉरंटी जोख़िम को कम करते हुए पहुंच को कई गुना बढ़ा सकती है.  

जहां ये मायने रखती है वहां तकनीक इसी तरह के मानकों का इस्तेमाल करते हुए दो तरफा सूचना के प्रवाह को आसान बना सकती है और हर देश की प्राथमिकता के अनुसार मतभेद को भी स्वीकार कर सकती है. स्ट्रैटजिक शेयरिंग (रणनीति के मुताबिक साझा करना) के जरिए नई तरह की स्थानीय सूचना उत्पन्न की जा रही है और इसका फायदा उठाया जा सकता है. डेटा-स्टैंडर्ड इसे उपलब्ध करा सकता है. 

उदाहरण के लिए, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर आधारित कार्बन बचाने के उपाय लागत में कटौती कर सकते हैं. इस तरह भारत के द्वारा नये DFI की स्थापना समय की मांग है. 

शेयरधारक MDB के बोर्ड के जरिए इसे चलाते हैं. शेयरधारक देश G20 के सदस्य हैं. अगर G20 इस समझौते पर पहुंचता है कि बोर्ड बदलाव का समर्थन करे तो ऐसा होगा. चूंकि सरकार के पास सीमित पैसे हैं, ऐसे में MDB को कम पैसे के साथ ज़्यादा काम के लिए तैयार करना एक स्वीकार्य विचार है. लेकिन लोगों के लिए जरूरी सामानों के उद्देश्य से ज़्यादा पूंजी भी हासिल करनी चाहिए.


लेखिका वैश्विक वित्तीय संरचना (ग्लोबल फाइनेंशियल आर्किटेक्चर) को फिर से तैयार करने पर भारत के T20 टास्क फोर्स की प्रमुख हैं.  

ये लेख मूल रूप से द हिंदू बिजनेस लाइन में छपा था.