टास्क फोर्स 4: विकास को नई गति: स्वच्छ ऊर्जा और ग्रीन ट्रांज़िशन
ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए परिवहन के स्वच्छ साधनों की ओर परिवर्तन प्राथमिक और सबसे बड़ी आवश्यकता है. वर्तमान तकनीक़ी क्षमताओं एवं नीतिगत फ्रेमवर्क्स ने वैश्विक स्तर पर ट्रांसपोर्ट सेक्टर में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) के उपयोग पर ज़ोर बढ़ाने का काम किया है. अधिकतर देशों ने EVs विकसित करने और इनको लेकर उपभोक्ताओं की स्वीकृति बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देने एवं ढांचागत सहायता प्रदान करने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव किया है. जबकि कुछ विकसित देशों ने अपने नीतिगत ढांचे में एंड ऑफ लाइफ (EoL) बैटरियों को शामिल करके अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जबकि कई देशों ने इसको लेकर अभी तक स्पष्ट दिशानिर्देश शुरू ही नहीं किए हैं. EoL बैटरियों की रिसाइक्लिंग से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को लाभ होता है, ज़ाहिर है कि EoL बैटरियों का गैर वैज्ञानिक तरीक़े से प्रबंधन किए जाने से भयानक दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में EV बैटरी सिस्टम में चौरतरफा सुधार के लिए वर्तमान तकनीक़ी एवं नीतिगत अवसरों के साथ ही विभिन्न व्यावधानों की भी पड़ताल की गई है. इसके साथ ही यह पॉलिसी ब्रीफ़ इस दिशा में एक टिकाऊ वैश्विक फ्रेमवर्क विकसित करने के लिए कई सिफ़ारिशें भी प्रस्तुत करता है.
जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए ट्रांसपोर्ट सेक्टर को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करना बेहद अहम है. ऐसा करना नए टिकाऊ परिवर्तन समाधानों में G20 देशों को एक सहयोगी रणनीतिक इकाई के रूप में उभरने का अवसर उपलब्ध कराता है. G20 समूह आज जिस स्थिति में है, उसका लाभ उठाकर वो न केवल व्यापक पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को बढ़ावा दे सकता है, बल्कि वायु प्रदूषण फैलाने वाले एवं तेल के आयात पर निर्भरता को बढ़ाने वाले पारंपरिक वाहनों के मॉडल्स से छुटकारा भी दिला सकता है, साथ ही साथ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के ज़रिए बैटरी की क़ीमत को भी बेहद तेज़ी के साथ कम कर सकता है. कहने का तात्पर्य यह है कि फिलहाल बैटरी की क़ीमत की कमी को लेकर जो पूर्वानुमान लगाया गया है, G20 समूह अपनी क्षमता का इस्तेमाल कर के उससे भी तेज़ी से EV बैटरी की क़ीमत को कम कर सकता है. [1]
देखा जाए तो पूरी दुनिया में नीति निर्माता स्थानीय स्तर पर लिथियम सेल्स (lithium cells) के विकास पर बल दे रहे हैं, ज़ाहिर है कि इससे इनके निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल (raw materials) की मांग में इज़ाफ़ा होने की उम्मीद है. पिछले चार या उससे भी ज़्यादा वर्षों में बैटरी सेल्स (battery cell) कंपोनेंट्स के निर्माण के लिए आवश्यक दुर्लभ-अर्थ धातुओं और अन्य महत्त्वपूर्ण खनिजों जैसे कच्चे माल की आपूर्ति के लिए कई समझौतों एवं संधियों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. कई देशों के पास व्यक्तिगत स्तर पर लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरियों के लिए ज़रूरी महत्त्वपूर्ण खनिजों के छोटे-छोटे भंडार हैं. हालांकि, ऐसा भी है कि कई देशों के पास न तो लिथियम, कोबाल्ट और निकल सहित कुछ आवश्यक ली-आयन घटकों का भंडार है और न ही कंडक्टर्स, केबल्स एवं बुसबार्स (busbars) में इस्तेमाल किए जाने वाले तांबे का समुचित भंडार है. चीन लिथियम-आयन बैटरी (LiB) के लिए सेल कंपोनेंट्स निर्माण में पूरी दुनिया में सबसे आगे है और इसकी वैश्विक स्तर पर हिस्सेदारी लगभग 51 प्रतिशत है. [2]
लिथियम-आयन बैटरियों में कैथोड सामग्री अलग-अलग होती है, लेकिन स्टैंडर्ड फॉर्मूलेशन में लिथियम, एल्युमीनियम, कोबाल्ट, मैंगनीज और निकल जैसे खनिज शामिल होते हैं, जबकि एनोड ग्रेफाइट से बना होता है. बैटरियों की रिसाइक्लिंग में इनमें से लगभग 95 प्रतिशत मेटल्स उत्पन्न हो सकते हैं और इनका इस्तेमाल नई बैटरियों के निर्माण में किया जा सकता है. इस संबंध में देखा जाए, तो एक टिकाऊ एवं लचीली मूल्य श्रृंखला विभिन्न प्रकार की चुनौतियों, जैसे कि संसाधनों की सीमित उपलब्धता, खनन के व्यापक प्राथमिक स्रोतों के पर्यावरणीय प्रभाव, उपयोग में नहीं लाई जाने वाली बैटरियों के लैंडफिल यानी कूड़े के ढेरों में फेंक कर उनका निस्तारण करने आदि का समाधान तलाशने का आह्वान करती है. इसके साथ ही आपूर्ति श्रृंखला की गड़बड़ियों की वजह से वैश्विक बाज़ार में क़ीमतों में उतार-चढ़ाव के बीच इन अहम घटकों के आयात पर निर्भरता से जुड़े भू-राजनीतिक ख़तरों के समाधान की भी मांग करती है.
सामान्य तौर पर शुरू से लेकर अंत तक इलेक्ट्रिक व्हीकल बैटरी आपूर्ति श्रृंखला प्रक्रियाओं में चार चरण शामिल हैं: पहला, कच्चे माल का निष्कर्षण; दूसरा, उत्पादन, जिसमें सेल एवं बैटरी का उत्पादन और वाहन असेंबली शामिल है; तीसरा है इसकी खपत; और चौथा चरण है रिसाइक्लिंग, उपयोग एवं बैटरी का अंतिम निस्तारण. [3] उल्लेखनीय है कि EV बैटरियों की मूल्य श्रृंखला लिथियम, निकल, कोबाल्ट, फॉस्फोरस, तांबा और ग्रेफाइट जैसे मेटल्स के खनन संसाधनों से आरंभ होती, इसके बाद सेल का निर्माण किया जाता है. इसके आगे कैथोड, एनोड, इलेक्ट्रोलाइट्स और सेपरेटर जैसे घटकों को एकत्र किया जाता है और फिर सेल्स एवं बैटरियों का निर्माण किया जाता है. सेल कंपोनेंट्स का उपभोग किए जाने से उनकी क्षमता धीरे-धीरे कम होत जाती है, इससे इनके पुनर्चक्रण की ज़रूरत बढ़ जाती है, साथ ही दोबारा उपयोग की गुंजाइश भी बढ़ जाती है. (चित्र 1)
चित्र 1: EV बैटरियों की लाइफ साइकिल के विभिन्न आयाम
स्रोत: लेखक का अपना
आम तौर पर देखा जाए तो इलेक्ट्रिक वाहनों में उस समय बैटरियां इस्तेमाल लायक नहीं रह जाती हैं, जब वे वाहन को तय दूरी तक चलाने योग्य नहीं रहती हैं, यानी उनकी क्षमता कम हो जाती है. उल्लेखनीय है कि आमतौर पर EV बैटरियां अपना जीवन चक्र पूरा करने के बाद भी 70-80 प्रतिशत ऊर्जा बरक़रार रखती हैं और ऐसी बैटरियों को ग्रिड-कनेक्शन एवं BTM एप्लीकेशन्स के लिए दोबारा से उपयोग किया जाता है. दोपहिया और तिपहिया वाहनों की तुलना में कारों में इस्तेमाल की जाने वाली EV बैटरियां अपनी क्षमता के चलते दोबारा उपयोग करने के लिहाज़ से बेहतर होती हैं. बैटरियों को ग्रिड में इस्तेमाल किए जाने की दोबारा उपयोग की सीमा दो से पांच वर्ष की है. आमतौर पर, उनका प्रदर्शन प्रारंभिक नेमप्लेट क्षमता के 70-80 प्रतिशत से नीचे माना जाता है, जिसके लिए वैज्ञानिक रूप से डिज़ाइन की गई ट्रीटमेंट यानी उपचार रणनीतियों की ज़रूरत होती है. [4]
भारत का EV बैटरियों के पुनर्चक्रण और उनके फिर से उपयोग का आंकड़ा वर्ष 2030 में 20 GWh से अधिक होने की उम्मीद है. भारत में वर्ष 2022-30 तक सभी सेगमेंटों में लिथियम-आयन बैटरी की बढ़ी हुई क्षमता क़रीब 600 GWh (बेस केस) होने का अनुमान है. [5] ऐसा पाया गया है कि वर्तमान में बैटरी के कचरे में असीमित क्षमता है और बैटरियों का यह कबाड़ लगभग 4800-5200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन का मूल्य पैदा कर सकता है. [6] फेंकी गई बैटरियों में भी कई अहम और ज़रूरी घटक होते हैं, जिन्हें बर्बाद किए जाने के बजाए, उन्हें दोबार हासिल करने से न केवल पर्यावरण को ज़हरीले एवं हानिकारक कचरे से बचाया जा सकेगा, बल्कि इससे कीमती धातुएं भी प्राप्त की जा सकेंगी, देखा जाए तो इनका मूल्य बहुत अधिक होगा. इन बैटरियों की रिसाइक्लिंग के द्वारा वर्ष 2030 तक 128 गीगावॉट ऊर्जा उत्पादन का अनुमान है, जिसमें से लगभग 59 गीगावॉट EV सेगमेंट से ही होगी. इस प्रकार से देखें, तो अकेले रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री के माध्यम से ही वर्ष 2040 तक 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रॉफिट पूल बनाया जा सकता है. इसके साथ ही कमाई 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकती है, जो वर्ष 2030 के मूल्यों से तीन गुना अधिक है. [7]
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी पुनर्चक्रण से संबंधित नीतियां धीरे-धीरे विकसित हो रही हैं. हालांकि मौज़ूदा परिदृश्य में ऐसी नीतियों का दायरा चीन, यूरोपियन यूनियन, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे कुछ देशों तक ही सीमित है. इन नीतियों के माध्यम से बैटरी संग्रह लक्ष्य और प्रतिबद्धता, बैटरी में उपयोग की जाने वाली धातुओं की रिकवरी का लक्ष्य और नई बैटरियों में अनिवार्य रुप से न्यूनतम पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग निर्धारित किया गया है. तालिका 1 इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी पुनर्चक्रण नीतियों के बारे में विस्तार से बताती है.
तालिका 1: EV बैटरी रीसाइक्लिंग पर फोकस करने वाली नीतियां
देश/यूनियन | रेगुलेशन | वस्तु-स्थिति | बैटरी संग्रहण दायित्व एवं लक्ष्य | प्रमुख विशेषताएं |
भारत | बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट 2022 [8] | कार्यान्वित | उत्पादकों (आयातकों सहित) पर उस बैटरी के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) का दायित्व होगा, जिसे वे बाज़ार में पेश करते हैं ताकि उसके संग्रह और रिसाइक्लिंग को सुनिश्चित किया जा सके. | -बैटरी या कबाड़ हो चुकी बैटरी का सुरक्षित प्रबंधन सुनिश्चित करें, ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को कोई हानि नहीं हो.
– निर्माता द्वारा ख़रीदे गए EPR प्रमाणपत्र स्वचालित रूप से उनकी देयता के प्रतिकूल समायोजित किए जाएंगे. |
यूके | वेस्ट बैटरीज़ एंड एक्युमुलेटर्स रेगुलेशन्स 2009 (संशोधित) [9] | कार्यान्वित | – ब्रिटेन के बाज़ार में बिक्री के लिए पहले बैटरी लाने वाले निर्माता या आयातक द्वारा बैटरियों का अनिवार्य संग्रह और रिसाइक्लिंग.
– दोपहिया वाहन निर्माताओं को अनिवार्य रूप से वर्ष 2026-27 से शुरू होने वाली 7 साल की अनुपालन समय सीमा के साथ वर्ष 2022-23 में मार्केट में बेची गई अपनी 70 प्रतिशत बैटरियों को एकत्र करना होगा. |
– बैटरियों को पाइरोलाइज्ड यानी बेहद गर्म होकर विघटित होने से रोकना और बैटरियों को कूड़े के ढेरों में फेंकने से रोकना. |
यूरोपियन यूनियन | बैटरीज़: डिज़ाइन, उत्पादन और अपशिष्ट उपचार के लिए नए यूरोपियन यूनियन नियमों पर डील (दिसंबर, 2022) [10] | कार्यान्वित | – एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिसपॉन्सबिलिटी यानी विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व के लिए ज़रूरी है कि ऑटोमोटिव कंपनियां यह सुनिश्चित करें कि पुरानी बैटरियों को एकत्र किया जाए और उनका दोबारा इस्तेमाल किया जाए, पुन: निर्माण किया जाए या रिसाइकिल किया जाए.
– पोर्टेबल बैटरियों के लिए संग्रह लक्ष्य वर्ष 2023 तक 45 प्रतिशत, वर्ष 2027 तक 63 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक 73 प्रतिशत एवं LMT (परिवहन के हल्के साधन) बैटरियों के लिए लक्ष्य वर्ष 2028 तक 51 प्रतिशत और वर्ष 2031 तक 61 प्रतिशत निर्धारित किए गए हैं. |
– बैटरी की विशेषताओं और बैटरी पासपोर्ट के बारे में स्पष्ट रूप से बताने के लिए लेबलिंग का उपयोग, साथ ही सामग्री आपूर्ति श्रृंखला, बैटरी के उपयोग और उसकी हेल्थ की स्थिति को लेकर विस्तृत जानकारी.
– यह नई बैटरियों में अनिवार्य न्यूनतम पुनर्चक्रित सामग्री भी निर्धारित करता है. |
चीन | मिनिस्ट्री ऑफ इंडस्ट्री एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी [11] | कार्यान्वित | – चीन में, EVs में उपयोग के लिए उत्पादित या आयातित हर एक बैटरी को ट्रैक करने और बैटरी की फर्स्ट लाइफ के अंत में प्रभावी प्रोसेसिंग के लिए एक यूनीक कोड होता है. | – राष्ट्रीय सरकार ने बैटरी को समाप्त करने एवं पुनर्चक्रण से संबंधित उद्यमों के लिए एक फ्रेमवर्क बनाया है, जिसे राज्यों के स्तर पर विनियमित किया जाता है. |
वैश्विक स्तर पर बैटरियों की रिसाइक्लिंग करने वाले प्रख्यात रिसाइक्लर्स अर्थात पुनर्चक्रण करने वालों में यूमिकोर (बेल्जियम), एक्यूरेक (जर्मनी), सुंगईल (दक्षिण कोरिया), क्योई सीको (जापान), और ब्रूनप (चीन) शामिल हैं. [12]
उल्लेखनीय है कि बैटरी की कंडीशनिंग अर्थात बैटरी को उच्चतम तापमान तक लाने की प्रक्रिया विद्युत रूप से बैटरी को पूरी तरह से डिस्चार्ज करने के लिए की जाती है और इस प्रक्रिया को उच्च आयनिक चालकता या बैटरी की रिसाइक्लिंग के ज़रिए पूरा किया जाता है. इसके लिए मैकेनिकल प्री-ट्रीटमेंट की ज़रूरत होती है, जिसमें बैटरी के विभिन्न घटकों, जैसे कि असेंबली, बैटरी कंट्रोल यूनिट और स्टैक को अलग-अलग किया जाता है, साथ ही इसे बनाने वाले अहम हिस्सों को भौतिक रूप से अलग किया जाता है. इसके अतिरिक्त, ई-कचरे एवं बैटरियों से मूल्यवान धातुओं को फिर से हासिल करने के लिए, जिन पाइरोमेटलर्जिकल तकनीक़ों का उपयोग किया जाता है, उनमें इसके कचरे को 1200 डिग्री सेंटीग्रेट के उच्च तापमान पर गर्म किया जाना शामिल है.
बैटरी पुनर्चक्रण की जो भी प्रौद्योगिकियां उपलब्ध हैं, वे व्यावसायिक नज़रिए से बेहद महंगी हैं, इसके साथ ही इन तकनीक़ों को अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाने की भी ज़रूरत है. इसके अलावा इस क्षेत्र में जो भी नई और उभरती हुई प्रौद्योगिकियां हैं, वो फिलहाल शुरुआती चरण में है और उनकी प्रभावशीलता की जांच-परख के लिए व्यापक पैमाने पर पारस्परिक सहयोग की ज़रूरत है. इतना ही नहीं बैटरी मैन्युफैक्चरिंग के दौरान सबसे अनुकूल संसाधनों के उपयोग को लेकर भी बहुत सीमित अध्ययन किया गया है.
पाइरोमेटलर्जिकल टेक्नोलॉजी जो कि कबाड़ यानी बैटरी के अवशेष पदार्थों को उच्च तापमान पर गर्म करती है, सबसे ज़्यादा उपयोग में लाई जाने वाली बैटरी ट्रीटमेंट तकनीक़ है और यह कोबाल्ट जैसी सीमित सामग्रियों का भी प्रबंधन कर सकती है. हालांकि, बैटरी रिसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों को प्रमुखता के साथ प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि सेल प्रौद्योगिकियां उच्च निकल एवं निम्न कोबाल्ट अवयव की ओर स्थानांतरित हो रही हैं.
बैटरी की मूल्य श्रृंखला में शामिल कोई भी सदस्य, वर्तमान समय में जो भी इंफ्रास्ट्रक्चर और नीतियां हैं, उनसे कार्यक्षमता की मौज़ूदा स्थिति, ESG यानी एनवॉयरमेंट, सोशल एवं गवर्नेंस प्रदर्शन, मैटेरियल कंटेंट और किसी भी बैटरी की रिसाइक्लिंग या दोबारा उपयोग के चरण को नहीं समझ सकता है. सच्चाई यह है कि पूरी मूल्य श्रृंखला पर बैटरी की वस्तु-स्थिति के बारे में कोई भी उपयुक्त नीतियां और स्पष्ट दिशानिर्देश उपलब्ध ही नहीं हैं. बैटरियों के लिए डिजिटल पहचानकर्ताओं अर्थात ऑपरेटिंग-सिस्टम/प्लेटफॉर्म-स्तर, ब्राउजर-स्तर और/या एप्लिकेशन-स्तर पहचानकर्ता, जिनका उपयोग विशिष्ट उपयोगकर्ताओं की पहचान करने के लिए किया जाता है, की कमी बैटरियों की रीसाइक्लिंग या दोबारा इस्तेमाल करने की क्षमता की रूपरेखा निर्धारित करने में रोड़ा अटकाने का काम करती है.
ज़ाहिर है कि बैटरी की संरचना एवं इसकी टेक्नोलॉजियां तेज़ी के साथ विकसित हो रही हैं, लेकिन इसके लिए वैश्विक स्तर पर समुचित नीतियां नहीं होने की वजह से तमाम तरह की चुनौतियां सामने आई हैं. निसंदेह रूप से मध्यम एवं लंबी अवधि के लिए उपलब्ध सभी प्रकार की बैटरी को कवर करने वाली नीतियां बनाना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. ऐसे में जबकि कई देशों की सरकारों ने उपयोग के लायक नहीं रह गईं बैटरियों का संग्रह करना अनिवार्य कर दिया है, तब यह जरूरी कि जितनी भी बैटरियों को एकत्र किया गया है, रिसाइकिल किया गया है और इसके लिए जिन तकनीक़ों को अपनाया गया है, उसका आंकड़ा भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.
चित्र 2: टेक्नोलॉजी द्वारा वैश्विक रिसाइक्लिंग कैपेसिटी का मानचित्रण
स्रोत: नीति आयोग, 2023 [13]
इसके विकल्प के रूप में रासायनिक समाधानों में बैटरी अवशेष को निक्षालित करके, अर्थात मूल्यवान मेटल्स को अलग करके हाइड्रोमेटलर्जिकल ट्रीटमेंट किया जा सकता है. कहने का मतलब यह है कि क़ीमती मेटल्स को फिर से हासिल करने के लिए रासायनिक समाधानों को शुद्धिकरण तकनीक़ों के तहत अमल में लाया जाता है. बैटरी के कचरे को निस्तारित करने के जो भी पारंपरिक तरीक़े हैं, वे अच्छी तरह से विकसित हैं और पर्यावरण के मुताबिक़ हैं, जबकि व्यावसायिक लिहाज़ में जो भी तरीक़े उपयोग में लाए जाते हैं, वे न केवल महंगे हैं, बल्कि पर्यावरण के लिहाज़ से अनुकूल भी नहीं हैं. हालांकि इसके लिए कीलेशन (chelation) और ग्रीन एब्जॉर्पशन (green adsorption) जैसी कुछ उभरती प्रौद्योगिकियां भी उपलब्ध हैं, जो फिलहाल प्रयोगशाला या पायलट स्तर पर हैं और इन तकनीक़ों को व्यावसायिक रूप से अपनाने से पहले प्रक्रियागत तौर पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है. [14]
बैटरी रीसाइक्लिंग एवं संसाधन उपयोग के तकनीक़ी विकास के क्षेत्र में बैटरी निर्माताओं द्वारा अकेले या फिर मिलजुल कर विभिन्न उपचार प्रौद्योगियों का उपयोग किया जाता है. जहां तक कनाडा, चीन और दक्षिण कोरिया की बात है तो, वहां मैकेनिकल ट्रीटमेंट और उसके बाद हाइड्रोमेटलर्जिकल ट्रीटमेंट सामान्य तौर पर प्रचलित है (चित्र 2). जबकि अफ्रीकी महाद्वीप में कई दूसरी तकनीक़ों को प्रयोग में लाया जाता है, जिनमें पायरो और हाइड्रोमेटलर्जिकल (48 प्रतिशत) का संयोजन, पाइरोमेटलर्जिकल (38 प्रतिशत), मैकेनिकल (7 प्रतिशत), और विभिन्न प्रकार की मैकेनिकल एवं हाइड्रोमेटलर्जिकल तकनीक़ों (7 प्रतिशत) उपयोग शामिल है. जहां तक भारत का सवाल है, तो भारत में बड़े पैमाने पर मैकेनिकल और हाइड्रोमेटलर्जिकल पद्धतियों (79 प्रतिशत) का उपयोग किया जाता है. [15]
इलेक्ट्रिक वाहन को अपनाने, बैटरी के निर्माण में उपयोग होने वाले कच्चे माल और बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में G20 के सदस्य देश प्रभावशाली स्थिति में हैं. वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर बेचे गए कुल इलेक्ट्रिक वाहनों में G20 देशों का योगदान 85 प्रतिशत से अधिक है (चित्र 3). [16] इतना ही नहीं बैटरी के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल में भी G20 देशों की अच्छी-ख़ासी हिस्सेदारी है. ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना के पास वैश्विक लिथियम भंडार का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है, जबकि इंडोनेशिया में दुनिया का 22 प्रतिशत निकल भंडार मौज़ूद है. बैटरी सेल के वैश्विक उत्पादन में चीन का दबदबा है, ज़ाहिर है कि बैटरी सेल के वैश्विक उत्पादन में अग्रणी चीन की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत है. [17]
चित्र 3: देशों द्वारा इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री (2021) [18]
फिलहाल बैटरी पुनर्चक्रण की प्रक्रिया शुरुआती चरण में है और रीसाइक्लिंग प्रक्रिया की लागत को कम करने एवं बैटरी के अवशेष से क़ीमती मेटल्स को हासिल करने की क्षमता में सुधार करने के लिए ज़रूरी प्रौद्योगिकी में ढेर सारी कमियां हैं. इसके साथ ही बैटरियों से संबंधित आंकड़ों को साझा करने को लेकर वैश्विक नीतियों में भी तमाम कमियां हैं. बैटरी की रीसाइक्लिंग से संबंधित प्रौद्योगिकियों में सुधार करने एवं बैटरी पुनर्चक्रण के लिए वैश्विक फ्रेमवर्क्स स्थापित करने के लिए G20 देशों के नेतृत्व में संयुक्त समन्वय किए जाने की ज़रूरत है, ताकि बैटरी आपूर्ति श्रृंखला को हर स्तर पर और हर तरीक़े से सशक्त किया जा सके, साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने में मदद की जा सके.
कम कार्बन फुटप्रिंट और उच्च परिवर्तन क्षमता वाले इलेक्ट्रॉनिक वाहन गतिशीलता के लिए एक अनिवार्य माध्यम बन गए हैं, साथ ही इंटर्नल कंबस्टन इंजनों यानी आंतरिक दहन इंजनों के विकल्प के रूप में उभरे हैं. वर्ष 2022 में G20 के मेजबान देश इंडोनेशिया ने G20 के प्रतिभागियों के आवागमन के लिए 1,400 से अधिक इलेक्ट्रिक व्हीकल का इस्तेमाल किया था. [19] ज़ाहिर है कि इंडोनेशिया दुनिया में निकल मेटल का सबसे बड़ा खननकर्ता है, उल्लेखनीय है कि निकल EV बैटरी के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है. भारत में इलेक्ट्रिक वाहन का मार्केट अभी नया-नया है और वर्ष 2019 में भारत की EV की बिक्री महज 0.1 प्रतिशत थी. भारत सरकार ने राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी प्रोग्राम को लॉन्च करने के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों का दायरा बढ़ाने की योजना बनाई है. इस कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन हिस्सेदारी हासिल करना है. [20]
ज़ाहिर है कि सिर्फ़ लिथियम-आयन बैटरियों पर निर्भरता नुक़सानदायक सिद्ध होगी. वैश्विक स्तर पर भंडार की कमी का अर्थ है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की रुकावटें विभिन्न देशों पर असर डालना जारी रखेगीं. गैर वैज्ञानिक तरीक़ों से बैटरी कचरे का प्रबंधन करने की वजह से होने वाले आर्थिक नुक़सान के साथ-साथ आर्थिक मैटेरियल हानि के मद्देनज़र विभिन्न सरकारों ने बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित नीतियों की शुरुआत की है और बैटरी उत्पादकों को बैटरी कबाड़ को एकत्र करने, उसका संग्रह करने, रीसाइक्लिंग करने एवं दोबारा से उसका इस्तेमाल करने का काम सौंपा है.
यूरोपीय आयोग (EC) एक दीर्घकालिक फ्रेमवर्क यानी यूरोपियन बैटरी डायरेक्टिव पर कार्य कर रहा है, जो कि प्रमुख कॉमोडिटीज में न्यूनतम पुनर्नवीनीकरण सामग्री की सीमा को अनिवार्य करने के लिए चरणबद्ध नज़रिए के साथ पुनर्चक्रण को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करता है. यह रेगुलेशन रीसाइकल्ड अर्थात पुनर्चक्रित सामग्री मानदंडों का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है, जो कि एक ऐसा उपाय है जिसके अंतर्गत नई बैटरियों के निर्माण हेतु रीसाइकल्ड सामग्री के एक निश्चित प्रतिशत का इस्तेमाल करने की अनिवार्यता होती है. ये मानदंड वर्ष 2030 में कोबाल्ट के लिए 16 प्रतिशत, लिथियम के लिए 6 प्रतिशत और निकल के लिए 6 प्रतिशत से शुरू होते हैं, फिर वर्ष 2035 में क्रमशः 26 प्रतिशत, 12 प्रतिशत और 15 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं. इस क़ानून का लक्ष्य वर्ष 2025 तक कबाड़ हो चुकी बैटरियों से 90 प्रतिशत कोबाल्ट, तांबा, लेड और निकल के साथ ही 35 प्रतिशत लिथियम को फिर से हासिल करना है. ये आंकड़े वर्ष 2030 तक बढ़कर क्रमश: 95 प्रतिशत और 70 प्रतिशत हो जाएंगे. यह क़ानून नए बैटरी निर्माताओं के लिए पुनर्चक्रित सामग्रियों के एक निर्धारित प्रतिशत का सुझाव प्रस्तुत करते हैं. इसके साथ ही यह भी सुझाव देते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग के दौरान उपयोग की जा चुकी बैटरियों के अवशेष से हासिल कोबाल्ट (16 प्रतिशत), लेड (85 प्रतिशत), लिथियम (6 प्रतिशत) और निकल (6 प्रतिशत) के न्यूनतम स्तर को नई बैटरियों में फिर से इस्तेमाल किया जाना चाहिए. [21]
ब्रिटेन की सरकार वर्ष 2050 तक नेट-ज़ीरो समय सीमा को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है, साथ ही वर्ष 2040 तक सभी EV-आधारित वाहनों को परिवर्तित करने की योजना बना रही है (डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसपोर्ट, 2018). ब्रिटेन की सरकार के वेस्ट बैटरीज़ एंड एक्युमुलेटर्स रेगुलेशन्स 2009 (Waste Batteries and Accumulators Regulations 2009) (संशोधित) ने बैटरियों के संग्रह और उनके पुनर्चक्रण को अनिवार्य बना दिया है. यह क़ानून संकलनकर्ताओं को बैटरियों को कबाड़ में फेंकने से भी रोकते हैं. [22] इसी प्रकार से दक्षिण कोरिया में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा बैटरी वेस्ट कलेक्शन सेंटरों को स्थापित किया गया है. इन संग्रह केंद्रों का उद्देश्य पर्यावरण में सीधे तौर पर ज़हरीले पदार्थों के निस्तारण को रोकने पर ध्यान देना है. मिनिस्ट्री ऑफ ट्रेड, इंडस्ट्री एंड एनर्जी (MOTIE) भी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (ESS) के रूप में EVs में उपयोग लायक नहीं रह चुकी बैटरियों के दोबारा उपयोग को प्रोत्साहित कर रहा है. [23] बताया गया है कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार भी अपनी पहली नेशनल इलेक्ट्रिक व्हीकल स्ट्रैटजी पर कार्य कर रही है. [24]
इस दिशा में भारत सरकार ने भी कई नीतियां बनाई हैं, जैसे कि नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 (NEMMP 2020), जिसका मकसद पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर एवं स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी में EV की हिस्सेदारी को बढ़ाना है. [25] देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2015 में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स इन इंडिया (FAME India) की शुरुआत की गई थी. [26] वित्त वर्ष 2024 के केंद्रीय बजट में EV उद्योग में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई. भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लाया गया दि बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट एक्ट 2022, कबाड़ हो चुकी बैटरी की समस्या से निपटने और उसके समुचित निस्तारण की दिशा में एक क़दम है, जिसके अंतर्गत बैटरी निर्माताओं को बैटरी के लिए EPR उत्तरदायित्व का पालन करना होगा एवं उन्हें बैटरी की रीसाइक्लिंग या उनका नवीनीकरण सुनिश्चित करना होगा. [27] इस रेगुलेशन के तहत बैटरी के ड्राई वेट, अर्थात कबाड़ से दोबारा हासिल करने योग्य क़ीमती सामग्रियों के लिए वर्ष 2024-25 तक 70 प्रतिशत और वर्ष 2026-27 तक 90 प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित किया है.
इसके अतिरिक्त, बैटरी अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को लेकर कई इनोवेशन्स किए जा रहे हैं. हालांकि, इस ट्रांज़िशन में आने वाली विभिन्न प्रकार की बाधाओं पर G20 के सदस्य देशों को ख़ास तौर पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
ज़ाहिर है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की मूल्य श्रृंखला बेहद पेचीदा है, इसलिए इस सेक्टर के टिकाऊ विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है. इलेक्ट्रिक व्हीकल बैटरियों का विकास, इससे संबंधित मूल्य श्रृंखला का मूल्यांकन और बैटरी अवशेष का प्रबंधन, यह सभी अलग विषय हैं और इसके लिए व्यापक स्तर पर अलग-अलग रिसर्च किए जाने की आवश्यकता है. ऐसे में कोई भी देश अल्पावधि में अपने स्तर पर एक टिकाऊ EV आपूर्ति श्रृंखला हासिल नहीं कर सकता है. इन उभरती प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने, नई बैटरी कैमिस्ट्री विकसित करने यानी संरचना, गुणों और प्रतिक्रियाओं को विकसित करने, जिनमें कच्चे माल की दिक़्क़तें कम से कम हों और इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को सशक्त करने के लिए तकनीक़ी सहयोग की आवश्यकता है.
सर्कुलर अर्थव्यवस्था के संदर्भ को ध्यान रखे बगैर EV की ओर परिवर्तन पूर्ण नहीं होगा. इलेक्ट्रिक वाहन में इस्तेमाल होने वाली धातुओं का खनन और उपचार बेहद महंगा है और सीमित भी है. EoL में बैटरियों के रिसाइक्लिंग की दिशा में वैश्विक नीतियों को निर्देशित एवं निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशों पर अमल किया जा सकता है. ऐसा करना न केवल संसाधनों के संरक्षण के मकसद को हासिल करेगा, बल्कि बैटरी कबाड़ के न्यूनीकरण जैसे दोहरे उद्देश्य को हासिल करने में भी कारगर साबित होगा:
आख़िर में, समय के अनुसार और आवश्यकताओं के मुताबिक़ केंद्रित एवं गतिशील नीतिगत समर्थन, तकनीक़ी नवाचार, इंफ्रास्ट्रक्चर, गवर्नेंस और वैश्विक स्तर पर सहयोग EV बैटरी मूल्य श्रृंखला की रिसाइक्लिंग एवं उनके दोबारा इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकते हैं. इसके साथ ही बैटरी अवशेष या कबाड़ को कम से कम करने, पर्यावरण संरक्षण और संसाधन संरक्षण जैसे तमाम लाभ भी सृजित कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, इंटरनेशनल सोलर अलायंस की भांति एक अंतर्राष्ट्रीय EV अलायंस की स्थापना भी वैश्विक स्तर पर एक टिकाऊ एवं लचीली इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी मूल्य श्रृंखला को प्रोत्साहित करने में मददगार साबित हो सकती है.
एट्रीब्यूशन: परमिंदर जीत कौर एवं अन्य, “ट्रांसपोर्ट के स्वच्छ माध्यमों की ओर परिवर्तन हेतु एक लचीली इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) बैटरी मूल्य श्रृंखला का निर्माण,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, जून 2023.
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