टास्क फोर्स 7 टूवर्ड्स रिफॉर्मड मल्टीलेटरलिज्म: ट्रान्सफॉर्मिंग ग्लोबल इन्स्टीट्यूशन्स एंड फ्रेमवर्क्स
हाल के वर्षों में, वैश्विक स्तर पर कुछ G20 देशों में प्रवासियों का सबसे बड़ा प्रवाह देखा गया है. प्रवासन ने जहां लाखों लोगों को विभिन्न देशों में रोज़गार पाने में सक्षम बनाया है, वहीं आमतौर पर इसकी विशेषता असमानता रही है. चूंकि G20 का एजेंडा सभी के लिए उचित और समान विकास सुनिश्चित करना है, इस आलेख में उन तीन दुविधाओं की पहचान की गई है, जिन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए G20 को संबोधित करना चाहिए: जबरन प्रवासन, अमानवीय कामकाजी परिस्थितियां और प्रवासियों के सामाजिक एकीकरण का अभाव. इन मुद्दों से निपटने के लिए, आलेख में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन जैसे वैश्विक निकायों में सुधार करने, घरेलू नीतियों में अंतर्राष्ट्रीय ढांचे को एकीकृत करने, प्रवासन के प्रबंधन में बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहित करने और नागरिक समाज के माध्यम से क्षमता निर्माण की सिफ़ारिश की गई है.
प्रवासन एक प्रमुख भू-राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दा है जो अनेक G20 देशों के घरेलू नीति ढांचे को प्रभावित करता है. मसलन US (इम्मिग्रेशन बिल यानी अप्रवासन विधेयक के माध्यम से), जर्मनी (स्किल इमिग्रेशन एक्ट यानी कुशल अप्रवासन अधिनियम के माध्यम से) और सऊदी अरब (श्रम सुधार पहल के माध्यम से).[1] इसलिए, सभी के लिए समान और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करने वाली प्रवासन प्रबंधन की एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया को बनाए रखना महत्वपूर्ण है. G20 में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समावेश हैं. और इन देशों की आपूर्ति श्रृंखला में श्रम प्रवासन एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. हालांकि, नीति कार्यान्वयन के कुछ क्षेत्र न्यायसंगत विकास के अवसर प्राप्त करने में बाधा पैदा करते हैं. यह आलेख ऐसी तीन प्रमुख बाधाओं की पहचान करता है:
G20 देशों में नियमित रूप से पड़ोसी देशों (जैसे सऊदी अरब) से जबरन प्रवासन होता रहता है. लेकिन G20 अक्सर विस्थापन को अस्थायीता की विशेषता वाली घटना मानते हैं. ऐसे में वे प्रवासियों को केवल पारगमन अवधि के लिए अपने देश में रहने वाले लोगों के रूप में देखा करते है.[2] उनका यह परिप्रेक्ष्य घरेलू नीतियों, या ‘पॉलिसी ऑफ नो पॉलिसी’ में प्रतिध्वनित होता है, जहां प्रवासी रोज़गार के अवसरों, स्वास्थ्य देखभाल या सामाजिक सेवाओं तक पहुंच के बिना अदृश्यता के ढांचे के भीतर मौजूद रहते हैं.[3] अंतर्राष्ट्रीय नीतियां भी इसी बात को आधार मान कर बनाई जाती हैं कि स्थिति में सुधार होने पर व्यक्ति अंततः अपने मूल देश में लौट सकते हैं.[4] लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस विस्थापन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संघर्षों के बढ़ने, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी के प्रभावों के कारण अपने नए देश में स्थायी हो जाएगा. अत: ऐसी नीतियां तैयार करना और लागू करना महत्वपूर्ण है जो इन प्रवासियों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करके उनके परिवारों की सुरक्षा कर सके. इसके साथ ही इस बात भी ध्यान रखना होगा कि ये प्रवासी जिस देश में जाते हैं, वहां प्रवासियों का पुनर्वास और एकीकरण करने वाली नीतियों को बनाया जाए .
प्रवासियों को अक्सर अधीनता के ढांचे पर पनपने वाले अनियमित क्षेत्रों में रोज़गार ढूंढने के लिए मजबूर किया जाता है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, प्रवासियों और शरणार्थियों को उच्च स्तर की असुरक्षा का सामना करना पड़ता है, जिसमें टेम्परैलिटी यानी अस्थायीता और कम वेतन के साथ अनौपचारिक और असुरक्षित काम शामिल होते हैं.[5]
कई देशों में, इन व्यक्तियों को सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य कवरेज या न्यूनतम वेतन की गारंटी नहीं मिलती है. ILO ने सभी शरणार्थियों और प्रवासी श्रमिकों को व्यापक, न्यायसंगत और पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया है,[6] लेकिन इस मोर्चे पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. अनेक G20 अर्थव्यवस्थाएं अपने प्रवासी समुदायों के योगदान पर बहुत अधिक निर्भर हैं, लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार जारी है. इतना ही नहीं उन्हें प्रदान किए गए अवसरों का दायरा असमान बना हुआ है.[7]
कई G20 देशों में, स्थानीय आबादी प्रवासियों को समुदाय में सामाजिक रूप से एकीकृत करने के प्रयासों के ख़िलाफ़ है. जैसे-जैसे वैश्विक आर्थिक असुरक्षा बदतर होती जा रही है, कई देशों में अप्रवासन और शरणार्थी निपटान पर घरेलू राय काफ़ी हद तक नकारात्मक हो गई है.[8] शत्रुता का यह माहौल अप्रवासन विरोधी कानूनों के लिए बढ़ते समर्थन की विशेषता है. यह विशेषता प्रवासी श्रमिकों की मनमानी हिरासत और बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों में भी प्रतिध्वनित होती है. सुदृढ़ और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करने के लिए, प्रवासन को केवल एक कानूनी घटना के रूप में देखने से आगे बढ़ना होगा. प्रवासन को लेकर क्षमता निर्माण कार्य में नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठनों को शामिल करके इस परिप्रेक्ष्य को बदलना होगा.
G20 देशों का वैश्विक GDP में 80 प्रतिशत से अधिक योगदान है और यहां दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी निवास करती है. इस आबादी में प्रवासन प्रवाह श्रम शक्ति का अहम हिस्सा है.[9] 2020 में, दुनिया भर में अनुमानित 281 मिलियन प्रवासियों में से 64 प्रतिशत G20 देशों मुख्य रूप से अमेरिका, जर्मनी, सऊदी अरब, रूस और यूके में रहते थे (चित्र 1 देखें)[10]
चित्र 1: G20 देशों में रहने वाले प्रवासी:
स्रोत: UN डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल अफेयर्स[11]
G20 देशों में ही दुनिया की 70 प्रतिशत से अधिक वृद्ध आबादी (65 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्ति) भी रहती हैं.[12] 2050 तक वैश्विक वृद्धजन जनसंख्या 1 अरब तक बढ़ने का अनुमान है, जो वैश्विक जनसंख्या का 21 प्रतिशत है. G20 देशों में भी इसी तरह की वृद्धि होगी (चित्र 2 देखें).[13] इसके अतिरिक्त, G20 देशों में प्रजनन दर में गिरावट आ रही है. 1955 में प्रजनन दर 4.9 से थी जो घटकर 2050 तक अनुमानित 2.3 रह गई है.[14] परिणामस्वरूप, G20 देशों में प्रवासन प्रवाह को उनकी आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इसका कारण यह है कि लगभग 86 प्रतिशत प्रवासी कामकाजी आयु वर्ग (25-64 वर्ष) में शामिल माने जाते हैं.[15]
चित्र 2: G20 देशों की जनसंख्या में 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की हिस्सेदारी
स्रोत: UN वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स के आंकड़ों पर आधारित OECD विश्लेषण[16]
ऐसे प्रवासियों को काम पर रखने से श्रम लागत कम हो जाती है और निवेश बढ़ाने के अवसर पैदा होते हैं. इससे राजकोषीय संतुलन या लंबी अवधि में सरकार के राजस्व और व्यय के बीच अंतर में सकारात्मक योगदान देखा जाता है.[17] G20 देशों में संवर्धित विकास के लिए प्रवासन एक महत्वपूर्ण कारक है. हालांकि, इन देशों में प्रवासियों के प्रति व्यवहार, पुनर्वास और धारणाएं न्यायसंगत विकास और डेवलपमेंट में बाधाएं पैदा कर रही हैं. ILO ने भले ही इन बाधाओं को दूर करने के लिए तंत्र स्थापित किए हैं, लेकिन G20 देशों में उनके कार्यान्वयन की अभी भी कमी है. G20 को निम्नलिखित दुविधाओं का समाधान करना चाहिए:
अन्य बातों के अलावा, व्यापक वैश्विक असमानता, खाद्य असुरक्षा, संघर्ष और जलवायु-प्रेरित आपदाओं का परिणाम जबरन प्रवास और विस्थापन है. इस तरह के दबावों के बढ़ने से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है. 2020 में, विस्थापित व्यक्तियों की संख्या 80 मिलियन से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था. यह आंकड़ा 2010 में 41 मिलियन विस्थापित व्यक्तियों से काफ़ी अधिक है.[18] इसका मतलब है कि 95 लोगों में से एक या वैश्विक आबादी का एक प्रतिशत, जबरन विस्थापित होने पर मजबूर किया गया है. इस विस्थापित आबादी में से, G20 देश लगभग 7.7 मिलियन या सभी शरणार्थियों का 37 प्रतिशत (टेबल 1 देखें) की मेज़बानी करते हैं, जिन्हें शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के आदेश के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है.[19]
टेबल 1: G20 देशों में शरणार्थियों की जनसंख्या
2015 | 2016 | 2017 | 2018 | 2019 | 2020 | |
Argentina | 3187 | 3267 | 3332 | 3442 | 3857 | 4045 |
Australia | 36917 | 42 187 | 48 480 | 56 934 | 58 529 | 57 451 |
Brazil | 8703 | 9674 | 10 260 | 11 304 | 32 844 | 59 147 |
Canada | 135 890 | 97 322 | 104 768 | 114 101 | 101 757 | 109 264 |
China | 301 044 | 317 254 | 321 714 | 321 758 | 303 379 | 303 410 |
France | 273 117 | 304 527 | 337 158 | 368 345 | 407 915 | 436 100 |
UK | 123 051 | 118 973 | 121 821 | 126 708 | 133 083 | 132 349 |
Germany | 316 098 | 669 468 | 970 357 | 1 063 835 | 1 146 682 | 1 210 636 |
India | 201 379 | 197 848 | 197 142 | 195 887 | 195 103 | 195 403 |
Indonesia | 5954 | 7 824 | 9782 | 10 786 | 10 287 | 10 134 |
Italy | 118 036 | 147 362 | 167 330 | 189 227 | 207 602 | 128 033 |
Japan | 2479 | 2512 | 2189 | 1893 | 1463 | 1137 |
Korea | 1455 | 1798 | 2238 | 2890 | 3196 | 3498 |
Mexico | 2904 | 6178 | 8993 | 16 530 | 28 517 | 45 469 |
Other European Union Countries | 503 478 | 648 388 | 692 293 | 741 432 | 829 150 | 882 430 |
South Africa | 121 635 | 91 018 | 88 694 | 89 285 | 78 395 | 76 754 |
Russian Federation | 314 498 | 228 981 | 126 021 | 77 382 | 42 413 | 20 325 |
Saudi Arabia | 122 | 136 | 153 | 263 | 315 | 340 |
Turkey | 2541 348 | 2 869 419 | 3 480 350 | 3 681 688 | 3 579 531 | 3 652 362 |
US | 273 198 | 272 963 | 287 135 | 313 242 | 341 715 | 340 881 |
Total | 5284 493 | 6 037 099 | 6 980 210 | 7 386 932 | 7 505 733 | 7 669 168 |
Source: OECD Report to the G20[20]
ऐसा कहा जाता है कि प्रवासी श्रमिकों के जबरन श्रम के प्रति अतिसंवेदनशील होने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक है. इसमें मुख्यतः : लंबे समय तक काम करने, असमान और असंगत वेतन के साथ आर्थिक और यौन शोषण शामिल हैं.[21] हाल ही में COVID-19 महामारी के दौरान, अनेक G20 देशों ने जहां अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था, वहीं अनेक कंपनियों ने बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया था. इस स्थिति में उन्हें बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के अत्यधिक अनिश्चित स्थिति का सामना करना पड़ा था. G20 देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे व्यवसाय और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों सहित सम्मानजनक श्रम के उन अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू करें, जो प्रवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में वृद्धि को लागू करने के महत्व पर जोर देते हुए मानव तस्करी और जबरन श्रम के ख़िलाफ़ उपाय प्रस्तावित करते हैं.[22] लेकिन, अपनी अर्थव्यवस्थाओं के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के कुशल प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थिरता पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए G20 देशों को आलोचना का सामना करना पड़ा था. चूंकि G20 समूह में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, अत: समान विकास के लिए श्रम अधिकारों को बनाए रखने का एक सुव्यवस्थित साधन समूह की ओर से लागू किया जाना चाहिए.
दुनिया भर की तरह G20 देशों में भी प्रवासी विरोधी भावनाएं बढ़ने लगी हैं. उदाहरण के लिए, मिस्र में उप-सहारा प्रवासियों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है; सऊदी अरब में प्रवासियों को जबरन और मनमाने तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है; और कनाडा, फ़्रांस और UK में प्रवासियों के साथ नस्लीय दुर्व्यवहार हो रहा है.[23] इसकी विशेषता एक मज़बूत राजनीतिक आंदोलन है जो प्रवासन विरोधी कानूनों का समर्थन करते हुए प्रवासियों की अस्थायीता की धारणा को मज़बूत करता है. इसकी वज़ह से ही प्रवासियों को अविकसित देशों (जैसे ब्रिटेन द्वारा शरण चाहने वालों को रवांडा में भेजना[24]) में भेजने की धारणा मज़बूत हो रही है. स्थानीय आबादी में आम तौर पर प्रवासियों के बारे में नकारात्मक धारणा होती है. G20 देशों में प्रवासियों की धारणा पर अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) द्वारा 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 52 प्रतिशत यूरोपीय आबादी ने प्रवासन को नकारात्मक रूप से देखा और इस बात पर सहमति व्यक्त की कि उनके देश में आप्रवासन का स्तर कम किया जाना चाहिए.[25] चूंकि G20 देशों के भीतर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रवासियों की भूमिका महत्वपूर्ण हैं, अत: उनका शांतिपूर्ण और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करने के लिए उचित एकीकरण अहम हो जाता है.
G20 एजेंडा और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में नीतिगत दुविधाएं बाधा बनी हुई है . फिर भी, G20 देशों के बीच आर्थिक विकास को सहयोग के केंद्र में रखकर न्यायसंगत श्रम प्रथाओं और टिकाऊ प्रवासन नेटवर्क को प्रोत्साहित किया जा सकता है. यह सामान्य मूलभूत आदर्शों और प्रथाओं के निर्माण के आधार के रूप में कार्य कर सकता है जो भविष्य के प्रवासन के को बेहतर बना सकते हैं. सुधार को आगे बढ़ाने के लिए, G20 देशों को निम्नलिखित तरीकों से नीति में बदलाव करना चाहिए:
ILO जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के पास मजदूरी और व्यावसायिक सुरक्षा को विनियमित करने वाले ऐसे तंत्र हैं जो प्रवासी श्रमिकों के परिवारों को सुरक्षा प्रदान करते हैं. लेकिन इन्हें ऐतिहासिक प्रवासन पैटर्न के आधार पर बनाया गया था. अत: ये उपाय जबरन या अस्वाभाविक और स्वैच्छिक प्रवासन के मौजूदा संकट से निपटने के लिए अपर्याप्त है . ILO वर्तमान में सभी के लिए न्यायसंगत और समान विकास सुनिश्चित करने के साथ-साथ वैश्विक आर्थिक विकास और वैश्वीकरण को संतुलित करने की चुनौती का सामना कर रहा है.[26] इस महत्वाकांक्षी संतुलन को हासिल करने में ILO की मदद करने के लिए G20 एक आदर्श मंच है. इसका कारण यह है कि G20 में न केवल कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, बल्कि इसलिए भी कि श्रम और प्रवासी प्रवाह इन देशों के आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. पिछले निर्णयों का आकलन करने और उन अनुभवों से सीखने के लिए G20, UN की ‘लेसन लर्नड युनिट’ की तर्ज़ पर एक समूह स्थापित करने पर विचार कर सकता है. इस तरह के निकाय की स्थापना से प्रवासन कानूनों का महत्वपूर्ण विश्लेषण हो सकेगा और मेज़बान देशों में प्रवासियों के साथ होने वाले बर्ताव से संबंधित उपायों में अधिक सुधार को बढ़ावा मिलेगा. ये उपाय अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही प्रदान करने के साथ ही वैश्विक गतिशीलता के अनुरूप नीतियां बनाने के लिए एक मंच भी स्थापित करते हैं. COVID-19 महामारी और इसके बाद प्रवासियों पर पड़ने वाले प्रभाव ने उन परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है जिनके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों को तैयार रहना होगा. ILO के सहयोग से UN महासचिव की ग्लोबल एक्सीलरेटर इनिशिएटिव न्यायोचित तंत्र के माध्यम से बेरोज़गारी से निपटने की दिशा में एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम है. इसे जर्मनी, बेल्जियम, भारत और जापान सहित अनेक देशों का समर्थन प्राप्त है और इसमें अधिक अवसर पैदा करने की क्षमता भी है.[27] इसके अतिरिक्त, जबरन प्रवासन को केवल अस्थायीता के एकल लेंस के माध्यम से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि मेज़बान देश और मूल देश को लाभ पहुंचाने वाले दीर्घकालिक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए. इसके परिणामस्वरूप, ग्लोबल एक्सेलेरेटर जैसी पहल के माध्यम से ऐसी योजना को एकीकृत करने के लिए ILO तंत्र में सुधार से प्रवासन को पारस्परिक रूप से लाभप्रद नेटवर्क के रूप में स्थापित किया जा सकता है.
न्यायसंगत और उचित विकास सुनिश्चित करने का एक और महत्वपूर्ण साधन एकरूपता की प्रक्रिया है जो प्रवासियों के लिए सम्मानजनक शरण तंत्र सुनिश्चित करता है. लेकिन, G20 देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में प्रवासी प्रवाह को नियंत्रित करने वाली अलग-अलग नीतियां हैं. इस स्थिति को घरेलू नीतियों में अंतर्राष्ट्रीय तंत्र के एकीकरण द्वारा बदला जा सकता है. यदि मेज़बान देश उन पर हस्ताक्षर करने या अनुसमर्थन करने में विफ़ल रहते हैं, तो अक्सर, इन अंतर्राष्ट्रीय ढांचों का प्रभाव सीमित होकर रह जाता है. ऐसी परिस्थितियों में, कोई एक नियामक संस्था नहीं है जो कानूनी जवाबदेही लागू कर सके. इसलिए, अंतरराष्ट्रीय प्रचलित कानून में अंतर्निहित जवाबदेही ढांचे का निर्माण देशों को प्रवासियों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने के लिए मजबूर कर सकता है. चूंकि, अंतर्राष्ट्रीय तंत्र मौलिक मानवाधिकारों के सिद्धांतों के आधार पर एक कानूनी आधार प्रदान करते हैं, प्रत्येक G20 देश के घरेलू निर्णय लेने की नीति के भीतर इस तरह के तंत्र को लागू करने से एक मज़बूत अंतरराष्ट्रीय प्रवासन नेटवर्क हासिल किया जा सकता है.
ILO, IOM और कई UN निकाय प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं. जो वैश्विक प्रवास व्यवस्था को प्रभावित करने वाले सिद्धांत स्थापित करते हैं. विभिन्न देश समान पारिश्रमिक, भेदभाव और जबरन श्रम के ख़िलाफ़ उपायों पर ध्यान केंद्रित करने वाले ILO कन्वेंशन 100, 111, 182, और 190 को अपना सकते हैं.[28] व्यवसाय और मानव अधिकारों पर UN के मार्गदर्शक सिद्धांतों के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों पर UN अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा प्रस्तावित सिद्धांतों को अपनाकर भी प्रवासियों का उत्थान सुनिश्चित किया जा सकता है. एक ऐसी ही पहल हाल ही में 2022 में बाली में हुए G20 शिखर सम्मेलन में की गई थी, जहां देशों ने ILO के सहयोग से सामाजिक न्याय और सभ्य कार्य के प्रति प्रतिबद्धताओं को मज़बूत करने के लिए एक बयान पर हस्ताक्षर किए थे.[29] इन सिद्धांतों को घरेलू नीतियों के भीतर उनके लोकाचार की पुष्टि और एकीकरण करके अपनाया जा सकता है. यह मौजूदा नीतिगत दुविधाओं के लिए बहुआयामी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगा, क्योंकि वे श्रम प्रवासन प्रबंधन और मजबूर प्रवासियों के पुनर्वास और उनके देशों में एकीकरण के लिए एक समग्र समाधान प्रदान करेंगे.
G20 देशों में अंतरराष्ट्रीय प्रवासन नेटवर्क लगातार फल-फूल रहे हैं, लेकिन उन्हें बहुपक्षीय वास्तविकता के रूप में देखा जाना महत्वपूर्ण है. G20 देशों को ऐसे श्रम प्रवाह से लाभ प्राप्त करने और प्रत्यावर्तन की न्यायसंगत प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए. इस तरह की इंट्रा-G20 सुव्यवस्थितता को प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों पर सहमति के साथ एक अंतरराष्ट्रीय नियामक निकाय की स्थापना करके लागू किया जा सकता है. यह सहयोग ढांचा सदस्य देशों के भीतर प्रवासन नेटवर्क को प्रोत्साहित करते हुए श्रम शोषण से निपटने के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान करेगा. इसी प्रकार यह G20 के भीतर लेबर एक्सचेंज के अधिक अवसर पैदा करेगा. वैचारिक स्तर पर G20 देशों के बीच सहयोग को मज़बूत करने के लिए, बुनियादी मानवीय मूल्यों और आदर्शों पर आम सहमति की एक ऐसी ‘कोर वैल्यू’ प्रणाली शुरू करना अनिवार्य है, जिस पर G20 देश सहमत हो और इसे लागू करें. इन आदर्शों को इन देशों के बीच सहयोग का आसान रास्ता बनाने के लिए वैश्विक सिद्धांतों का पूरक होना चाहिए. चूंकि अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में अक्सर प्रवर्तनीयता का अभाव होता है, इसलिए मूल मूल्यों के ऐसे समझौते से एक स्थायी प्रवासन व्यवस्था का निर्माण हो सकेगा. इसके अतिरिक्त, G20 को जबरन प्रवासियों के पुनर्वास के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित रूपरेखा स्थापित करने पर काम करना चाहिए जो मुख्य रूप से एकीकरण के दीर्घकालिक उपायों पर केंद्रित हो. यह G20 देशों द्वारा शरणार्थियों के लिए सम्मानजनक सामाजिक सुरक्षा और रोज़गार कार्यक्रम सुनिश्चित करने वाले नियामक सुधारों को अपनाकर किया जा सकता है. G20 समुदाय के बीच ऐसा नेटवर्क वैश्विक प्रवास व्यवस्था को सुदृढ़ कर सकता है. इसके साथ ही यह शरणार्थी प्रबंधन के बोझ को भी समान रूप से नियंत्रित करने का काम कर सकता है.
लागू करने योग्य नियामक ढांचे के लिए आधार प्रदान करने के लिए कानूनी तंत्र महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे तंत्र सरकारों की इच्छा और एजेंसी द्वारा बाधित रहते हैं. जैसा कि ILO, IOM और UN के ढांचे और नीतियों के मामले में होता है, जब तक कि कोई सदस्य देश इस तंत्र पर हस्ताक्षर और इसकी पुष्टि नहीं करता है, तब तक उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए बहुत कम कानूनी अवसर उपलब्ध होता है . वैश्विक प्रवासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए, प्रवासन प्रबंधन को केवल कानूनी वास्तविकता के रूप में देखने से आगे बढ़ना अहम होगा. इस तरह का परिवर्तन, कानूनी प्रवर्तन तंत्र के अतिरिक्त और पूरक कार्य करके हासिल किया जा सकता है. इसके लिए विशेष रूप से सिविल सोसायटी की क्षमता का निर्माण करना होगा, ताकि उपरोक्त परिवर्तन को प्राप्त किया जा सके. इन सुधारों को तभी मूर्त रूप दिया जा सकता है जब देशों के भीतर का घरेलू माहौल प्रवासियों और शरणार्थियों को एकीकृत करने के अनुकूल हो. जैसे-जैसे देश अधिक अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, प्रवासन को नकारात्मक दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. सरकारें प्रवासन का समर्थन करने वाली घरेलू नीतियों को लागू करने का विकल्प चुन सकती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर भेदभाव, नस्लवाद और हिंसा के कृत्यों के कारण स्थिति बेहद प्रतिकूल है. इसके चलते, यह ज़रूरी है कि व्यापक क्षमता-निर्माण उपायों पर देश ध्यान केंद्रित करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्थानीय आबादी इस तरह के प्रवाह को स्वीकार करने के लिए संवेदनशील और शिक्षित हो सके. यह स्थानीय सरकारी निकायों और गैर सरकारी संगठनों को दो-तरफा भागीदारी में शामिल करके किया जा सकता है: शैक्षिक कार्यक्रमों और स्थानीय आबादी के प्रति संवेदनशीलता प्रशिक्षण द्वारा; और क्षमता निर्माण प्रशिक्षण मॉड्यूल के माध्यम से प्रवासियों को सशक्त बनाकर उनके कौशल में इज़ाफ़ा करके ऐसा किया जा सकता है. इसी प्रकार कानून की भाषा को स्पष्ट करते हुए प्रवासियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता में सक्रिय रूप से संलग्न करना भी ज़रूरी है.
एट्रीब्यूशन : निधि पिपलानी कपूर, मृणाल सुले, विधि ठक्कर, ‘‘इक्विटेबल ग्रोथ इन द 21st सेंचुरी : एड्रेसिंग माइग्रेशन चैलेंजेस् थ्रू G20 मल्टीलेटरलिज्म ,’’ T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
[1] Rawan Alshammari, “Saudi Arabia’s Labor Reforms seen as big boost for Private Sector,”Arab News, November 4, 2020; “Germany to reform Immigration Laws,” Smith Stone Walters, April 6, 2023; “Pesident Biden Sends Immigration Bill to Congress,” White House Press Release, January 20, 2021.
[2] Mulki Al-Sharmani, “Refugee Migration to Egypt: Settlement or Transit?” Transit Migration in Europe, (2014), 55-78.
[3]Iris Young, “Responsibility and Global Labour Justice.” In Responsibility in Context, Springer, (2009).
[4] Andreas Kraemer, “The G20 and Building Global Governance for “Climate Refugees,” Centre for International Governance Innovation, (2017).
[5] OECD, “2021 Annual International Migration and Forced Displacement Trends and Policies Report to the G20,” 2021.
[6] International Labour Organization, “Employment and decent work in refugee and other forced displacement contexts,” December 3, 2020.
[7] Amrita Narlikar, “Can the G20 Save Gloablisation?” German Institute of Global and Area Studies (GIGA), (2017).
[8] Neil Esipova; Julie Ray, “How the G20 views Migration,” (The International Organization for Migration, 2015).
[9] “The G20 and Migration.” Migration Data Portal, January 31, 2022.
[10] “The G20 and Migration.”
[11] United Nations Population Division, “International Migrant Stock,” 2020.
[12] Aarthi Ratnam, “G20 Countries: How Migrants can Aid Economic Growth.” ORF, September 27, 2022.
[13] Ratnam, “How migrants can aid economic growth.”
[14] Ratnam, “How migrants can aid economic growth.”
[15] Ratnam, “How migrants can aid economic growth.”
[16] OECD, “Promoting Healthy Ageing,” OECD, October 19, 2019.
[17] Zsoka Koczan, Giovanni Peri, Magali Pinat, and Dmitriy Rozhkov, “The Impact of International Migration on Inclusive Growth,” IMF, 2021.
[18] OECD, 2021 Migration and Forced Displacement Trends.
[19] OECD, 2021 Migration and Forced Displacement Trends.
[20] OECD, 2021 Migration and Forced Displacement Trends, 12.
[21] ILO, “50 million people worldwide in modern slavery,” September 12, 2022.
[22] “G7 Trade Ministers’ Strong Stance against Forced Labour in Supply Chains Is Welcome, but Must Be Followed by Concrete Action on Forced Labour and Other Human Rights Abuses Says UN Expert Group.” OHCHR, November 2, 2021.
[23] Sertan Sanderson, “Sub-Saharan migrants in Egypt subject to increasing abuse and violence,” Info Migrants, January 6, 2020; Avanti Adhia, “Violence against Immigrant Youth in Canada,” JAMA Network, March 4, 2020.
[24] Peter Walsh, “The UK’s Policy to send Asylum Seekers to Rwanda.” The Migration Observatory, June 10, 2022; Sofia Ahmed, “What is the Trump-era ‘Remain in Mexico’ program?” Reuters, June 30, 2022.
[25] Esipova, “How the G20 views Migration.”
[26] Kerry Rittich, “The ILO: Challenges in Times of Crises,” International Labour Review, 154, (2015).
[27] ILO, “ILO calls on G20 to support the “Global Accelerator for Jobs and Social Protection,” Press Release, September 15, 2022.
[28] ILO, “ILO Conventions,” March 20, 2023.
[29] ILO, “G20 commitment to social justice and decent work welcomed by ILO,” Press Release, November 16, 2022.