LiFE और इंडस्ट्री 4.0: टिकाऊ विकास के लिए डिजिटलाइज़ेशन और वैश्वीकरण 4.0 में सही तालमेल की आवश्यकता!

पर्यावरणीय तौर पर टिकाऊ तौर-तरीक़ों और LiFE के सिद्धांतों पर खरा उतरने के लिए चौथी औद्योगिक क्रांति और वैश्वीकरण 4.0 के फ़ायदों को इकट्ठा करना ज़रूरी है.
Amna Mirza | Sachin Kumar

मानव सभ्यता का हमेशा से पर्यावरण से एक अहम जुड़ाव रहा है. LiFE कार्यक्रम (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) इसी बेहद महत्वपूर्ण पहलू को सामने लाता है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, पर्यावरणीय क्षय और संसाधनों के खाली होने, जैसी वैश्विक पर्यावरणीय चिंताएं आज मानवता के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां पेश कर रही हैं. अनुमानों के मुताबिक ज़रूरी कार्रवाई के अभाव में विश्व की तक़रीबन 3 अरब आबादी (जो दुनिया की कुल जनसंख्या का लगभग 45 प्रतिशत है) को ऐसे प्रतिकूल परिणाम झेलने पड़ सकते हैं जिन्हें आगे चलकर पलटना नामुमकिन होगा. इनमें पानी की निरंतर किल्लत और 2050 तक जीडीपी के क़रीब 50 फ़ीसदी हिस्से का नुक़सान शामिल है. बहरहाल जब हम नए ऊर्जा संसाधनों, जलवायु सुरक्षा, सतत और टिकाऊ विकास के साथ-साथ सर्कुलर अर्थव्यवस्था से जुड़े मसलों पर विचार करते हैं तो इंडस्ट्री 4.0 के उभार और उसके पिटारे में छिपी अपार संभावनाओं को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो जाता है.

पर्यावरण संरक्षण के प्रति सच्ची निष्ठा और वचनबद्धता के आधार पर व्यक्तिगत बर्तावों और धारणाओं में बदलाव से एक बड़ा सामाजिक आंदोलन खड़ा होने का विचार, भविष्य के लिहाज़ से निश्चित रूप से एक अनोखा और उल्लेखनीय नज़रिया है. 

पर्यावरण संरक्षण के प्रति सच्ची निष्ठा और वचनबद्धता के आधार पर व्यक्तिगत बर्तावों और धारणाओं में बदलाव से एक बड़ा सामाजिक आंदोलन खड़ा होने का विचार, भविष्य के लिहाज़ से निश्चित रूप से एक अनोखा और उल्लेखनीय नज़रिया है. किसी संस्थागत संरचना के लिए भी वैश्विक चिंताओं की पूरी तरह से अनदेखी किए बिना ज़मीनी जुड़ाव की आवश्यकता होती है. एजेंडा 2030 पर ज़ोर देते हुए मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) से टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) की ओर मुड़ने की क़वायद सबके सामने है. वैश्विक लक्ष्यों के तौर पर SDGs के लिए जनहित को केंद्र में रखते हुए अब तमाम किरदारों के बीच उचित गठजोड़ की दरकार है. SDGs को हासिल करने और सभी किरदारों के लिए फ़ायदे का सौदा बनकर उभरने के लिए पारंपरिक और उभरती प्रौद्योगिकी, एक मददगार कारक हो सकती है. व्यक्तिगत क़वायदों और सामूहिक सद्भाव के बीच की छलांग में इंडस्ट्री 4.0 के उभार और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), बिग डेटा एनालिटिक्स, साइबर फ़िजिकल सिस्टम्स और ब्लॉक चेन जैसी संबंधित प्रौद्योगिकियों को उचित तालमेल तैयार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हालिया वक़्त में सिंचाई और जल परिवहन से लेकर सौर ऊर्जा तक में प्रौद्योगिकी आधारित नए समाधानों के प्रभावों पर गंभीर तवज्जो दिया जाना ज़रूरी हो गया है. इनसे समस्याओं के समाधान की दिशा में पर्यावरणीय रूप से कार्यकारी क्रियाओं को अंजाम देना आसान हो जाता है. 

वैश्विक प्रशासन के दायरे में अजीबोगरीब उथलपुथल हो रहे हैं. अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो व्यापार के साथ-साथ वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के तौर पर वैश्वीकरण अहम रहा है. ये एक बेहद विवादित क्षेत्र रहा है, जहां फ़ायदों के साथ-साथ नुक़सान भी समानांतर रूप से वजूद में रहे हैं. वैश्विक बाज़ारों और अंतरराष्ट्रीय इकाइयों के उभार के साथ-साथ ज़मीनी जुड़ाव के नुक़सान की पड़ताल भी ज़रूरी है. विकास, अवसरों और संसाधनों की बढ़ती असमानता और उसके साथ-साथ पारिस्थितिकी असंतुलन जैसे मसलों पर ध्यान देना निहायत ज़रूरी है. इसी कड़ी में वैश्वीकरण की आलोचना तो की जा सकती है, लेकिन इसको पूरी तरह से वापस किए जाने की मांग व्यावहारिक नहीं है. 

दरअसल, बेहतर विकल्प मुहैया कराने में उदारवादी विचारधारा की नाकामी के संदर्भ में वैश्वीकरण से पीछे हटने की मांग उठाई जाने लगी है. लोकप्रियतावाद के उभार और उसके समानांतर बदलते वक़्त की ज़रूरतों के हिसाब से वैश्विक नुमाइंदगी की व्यवस्थाओं में सुधार के आह्वान किए जाने लगे हैं. वैश्विक मसलों पर आज के बदलावों से स्थानीय मांगों और आकांक्षाओं के घालमेल से एक दिलचस्प विमर्श सामने आता है. 

चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) को ग्लोबलाइज़ेशन 4.0 के उभार के संदर्भ में समझे जाने की ज़रूरत है. अजीब विडंबना है कि अतीत में भी औद्योगिक क्रांतियों का वैश्वीकरण के पूर्व के चरणों के साथ गठजोड़ और अलग-अलग स्वरूप देखने को मिला है. दुनिया आज मशीनीकरण से स्वचालन (automation) की ओर बढ़ रही है. रोबोटिक्स, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, साइबर फ़िजिकल सिस्टम्स और इंडस्ट्री 4.0 का ग्लोबलाइज़ेशन 4.0 के ढांचे के भीतर विस्तार हो रहा है. ऐसे में दोनों परिदृश्यों के साथ साझा विमर्श से साझा यथार्थ और टिकाऊ भविष्य के साथ परिणामों का बेहतर सह-संबंध स्थापित होना सुनिश्चित हो सकेगा.

 

अंतरराष्ट्रीय और घरेलू विरोधाभास

 

उद्योग और वैश्वीकरण के पूर्व चरणों से निश्चित रूप से व्यापार और कनेक्टिविटी के मुनाफ़े हासिल हुए हैं. हालांकि संभ्रांतवाद (elitism) और अंतिम नतीजों में विषमताओं के चलते सांस्कृतिक पहचान, असमान आर्थिक विकास, सस्ते श्रम बाज़ारों का शोषण और पर्यावरण की गिरावट से जुड़ी बड़ी समस्याएं सामने आई हैं. महामारी के बाद के चरण में तमाम मापकों की नए सिरे से खोज की दरकार है. इस सिलसिले में सतत विकास लक्ष्यों को केंद्र में रखते हुए अर्थव्यवस्था और संबंधित क्षेत्रों की अगुवाई की जानी है. दुनिया के देशों को अपनी राष्ट्रीय चिंताओं और वैश्विक जुड़ावों के साथ संतुलन बिठाकर इसके फ़ायदे हासिल करने होंगे. इस सिलसिले में उद्योग 4.0 और वैश्वीकरण 4.0, दोनों की क़वायदों में सही रुख़ अपनाए जाने की दरकार है. राष्ट्रों और अन्य किरदारों के स्तर पर घरेलू हितों और अंतरराष्ट्रीय मुनाफ़ों में संतुलन क़ायम करना ज़रूरी है. 

लोकप्रियतावाद के उभार और उसके समानांतर बदलते वक़्त की ज़रूरतों के हिसाब से वैश्विक नुमाइंदगी की व्यवस्थाओं में सुधार के आह्वान किए जाने लगे हैं. वैश्विक मसलों पर आज के बदलावों से स्थानीय मांगों और आकांक्षाओं के घालमेल से एक दिलचस्प विमर्श सामने आता है. 

इस कड़ी में वैश्विक प्रशासन की भूमिका अहम है. दरअसल वैश्विक मसलों का अब सरहदों के आर-पार आसानी से प्रसार होने लगा है. भले ही राज्यसत्ता से जुड़ा तंत्र अब भी पाक-साफ़ माना जाता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय और घरेलू विरोधाभास से जुड़े विचार धुंधले पड़ने लगते है. इनमें प्रौद्योगिकीय तरक़्क़ियां एक अहम भूमिका निभाती हैं. दुनिया के देश अतीत की औद्योगिक क्रांतियों के फ़ायदे लेने में भले ही चूक गए हों, लेकिन मौजूदा युग में चौथी औद्योगिक क्रांति के गुणों से अनजान रहने में कोई बुद्धिमानी नहीं है. वैश्विक और स्थानीय फ़ायदों के लिए व्यावहारिक विकल्पों को मद्देनज़र रखकर आगे बढ़ना ही आज वक़्त की मांग है.  

राष्ट्रों के लिए घरेलू से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ़ायदे तय करने में औद्योगिक क्रांतियों और संबंधित वैश्विक परिवेशों ने अहम भूमिका अदा की है. इस कड़ी में सिर्फ़ परिवर्तनकारी क़वायदें ही स्थिर कारक रही हैं. इसके अलावा अपना मुनाफ़ा सुनश्चित करने की दिशा में बदलावों के हिसाब से ढलने की फुर्ती और क़ाबिलियत एक अहम कारक है. आर्थिक विकास के रुख़ में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता ज़रूरी है. जलवायु परिवर्तन के चलते अस्तित्व पर ख़तरे की वजह से ये बहुत आवश्यक हो गया है. लिहाज़ा आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) और रोबोटिक्स के प्रयोग की दिशा में सही सोच निहायत ज़रूरी है. ज़ाहिर है दोनों मक़सदों में सही तालमेल बिठाए जाने की दरकार है.  

सतत विकास लक्ष्यों का पर्यावरण के साथ अहम जुड़ाव है. स्वच्छता, स्वच्छ पेय जल और ग़रीबी उन्मूलन से जुड़ी शानदार योजनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. सूचना और समाधान के यथार्थवादी स्रोत मुहैया कराने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. उत्पादन से उपभोग तक की तमाम आर्थिक प्रक्रियाओं का पर्यावरण पर भी अहम प्रभाव रहा है. लिहाज़ा लेन-देन के स्तर पर हरित प्रौद्योगिकी को शामिल किया जाना एक नया रुझान बन गया है. इसके ज़रिए कारोबार के टिकाऊ तौर-तरीक़ों को आगे बढ़ाया जाने लगा है. इस कड़ी में दक्षता का सामरिक ढांचा तैयार करने के लिए (आर्थिक और पारिस्थितिकी, दोनों हिसाब से) इंडस्ट्री 4.0 की क्षमताओं का लाभ उठाने के लिए नीतिगत स्तर पर सभी स्तरों पर सही तालमेल बिठाने की दरकार है. इस दिशा में क्रियान्वयन और फ़ीडबैक से जुड़ी सूचना के प्रवाह को प्रभावी और सटीक बनाए रखना आवश्यक है.

चौथी औद्योगिक क्रांति औद्योगिक तरक़्क़ी का ताज़ा चरण है. इसके पिटारे में स्मार्ट ग्रिड्स, चतुराई भरे कारखाने और स्वचालित औज़ार शामिल हैं ताकि दूसरे मक़सद पूरे होने के साथ-साथ पर्यावरण को कम से कम नुक़सान पहुंचे. इस कड़ी में डिजिटलाइज़ेशन एक अहम इनपुट और आउटपुट, दोनों है. प्रौद्योगिकीय तरक़्क़ियां पहले भी वजूद में थीं, लेकिन उनके संपर्कों का विकेंद्रीकरण और वैश्विक दायरों के साथ उचित सह-संबंध उसकी ख़ामियों में शामिल थे. 

“वसुधैव कुटुंबकम” का भारतीय सिद्धांत इस सफ़र में आगे बढ़ने का एक अहम सहारा रहा है. इसी विचार के विस्तार के तौर पर देखे जाने पर समानता और समावेश के आधार पर चौथी औद्योगिक क्रांति के फ़ायदों को मद्देनज़र रखते हुए दुनिया की अगुवाई की जा सकती है.

वैश्विक प्रशासन के संस्थागत और वैचारिक ढांचे के बीच एक अहम समानता, सुधारों की ज़रूरत से जुड़ी रही है. कारोबार से लेकर आम ज़िंदगी तक में बाधाएं, दैनिक जीवन का कारक रही हैं. इसी कड़ी में महामारी के बाद के चरण में बदलावों को दिशा देने के लिए एक नए स्थानीय विमर्श की ज़रूरत भी सामने आ गई है. “वसुधैव कुटुंबकम” का भारतीय सिद्धांत इस सफ़र में आगे बढ़ने का एक अहम सहारा रहा है. इसी विचार के विस्तार के तौर पर देखे जाने पर समानता और समावेश के आधार पर चौथी औद्योगिक क्रांति के फ़ायदों को मद्देनज़र रखते हुए दुनिया की अगुवाई की जा सकती है. इससे पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE) और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल किए जाने की दिशा में भारी फ़ायदों की शुरुआत हो सकती है. 

दिसंबर 2022, देश के लिए एक नई सुबह लेकर आया. भारत ने एक साल के लिए जी20 देशों के समूह की अध्यक्षता संभाल ली है. सभी लोग इस बात से सहमत हैं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के दायरे में राष्ट्रीय हित सर्वोच्च होते हैं. इन कड़ी में अहम जु़ड़ाव और आम लोगों की ज़िंदगियों पर प्रभावों के संदर्भ में उसका अस्तित्व मौजूद है. संबंधित और पूरक मसलों पर सही तालमेल को लेकर अतीत में भारत ने चिंताएं ज़ाहिर की हैं. इस बात को कारक बनाकर दिखाया जाना आवश्यक है. इनमें पारिस्थितिकी संतुलन, डिजिटलाइज़ेशन के फ़ायदे हासिल करने और वैश्विक प्रशासनिक ढांचे में सुधार जैसे मसले शामिल हैं, जिससे सबकी बेहतरी सुनिश्चित हो सकती है.


ये लेख थिंक20 के टास्क फ़ोर्स 3 के तहत हुए विचार-मंथन का हिस्सा है.