भविष्य के लिए फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: G20 की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियां

Charmi Mehta

सार

बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की लॉन्जिविटी और बड़ी परियोजनाओं के फाइनेंस के लिए आवश्यक पूंजी इसे निवेश के लिए एक जोख़िम भरा सेक्टर बनाती है. जलवायु-संबंधी अनुकूलन और रेजिलियेंस बिल्डिंग के अधिकांश प्रयास भविष्य के झटकों को झेलने और उसके बावज़ूद एक संपन्न अर्थव्यवस्था बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र की क्षमता पर ज़्यादातर निर्भर करते हैं. बड़ी परियोजनाओं से जुड़े जोख़िम उभरती अर्थव्यवस्थाओं की सरकार के लिए फाइनेंसिंग की स्थितियों में सुधार करने की भूमिका तैयार करते हैं. यह पॉलिसी ब्रीफ अनिश्चितता के लिए योजना बनाने, बुनियादी ढांचे के लिए सरकारी अनुबंध प्रक्रियाओं में सुधार करने और भविष्य की बुनियादी ढांचे की ज़रूरतों के लिए पर्याप्त और लगातार वित्तपोषण सुनिश्चित करने की दिशा में परिसंपत्तियों के ऑपरेशन और रखरखाव (ओ एंड एम) को प्राथमिकता देने की भूमिका को रेखांकित करता है.

1.चुनौती

क्लाइमेट और डिजास्टर रेजिलियेंस और अनुकूलन के कारण बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़ी चुनौतियों के बावज़ूद, पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और वित्तपोषण दुनिया भर में आर्थिक विकास का केंद्र बना हुआ है. निर्माण में लगने वाले लंबे समय के साथ-साथ परिसंपत्ति प्रबंधन की उच्च लागत के कारण, किसी भी प्रकार के बुनियादी ढांचे के लिए फाइनेंस आमतौर पर जोख़िम भरा माना जाता है. क्लाइमेट रिलेटेड अनप्रेडेक्टिबिलिटी (अप्रत्याशितता) के लिए आवश्यक है कि ‘रेजिलियेंस’ की परिभाषा प्रत्येक शहर के लिए अलग-अलग हो, भले ही यह सभी के लिए एक अहम विचार ही क्यों ना बनी हुई है. पिछले दो दशकों में, वैश्विक स्तर पर बुनियादी ढांचा क्षेत्र में औपचारिक पूंजी तक पहुंच की सीमा में भारी बदलाव देखा गया है. क्लाइमेट चेंज और डिजास्टर रेजिलियेंस के संदर्भ में इस सेक्टर की बदलती ज़रूरतों के लिए आवश्यक है कि अधिक मात्रा में प्रतिबद्ध वित्तपोषण के साथ, विकास योजनाओं में भविष्य के जलवायु परिदृश्यों के लिए योजना बनाने पर अधिक ध्यान दिया जाए. जी20 देश अपने बुनियादी ढांचे के विकास के संबंध में विभिन्न चरणों में खड़े हैं. उदाहरण के लिए भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के समान है लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन से बहुत अलग है. बुनियादी ढांचे के लिए पब्लिक फाइनेंस पर दशकों की निर्भरता के बाद भारतीय राज्य ने निजी और विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए 1990 के दशक में उदारीकरण सुधारों के रूप में कई नियम बनाए. दुनिया भर में निजी क्षेत्र को किसी मंत्रालय की तुलना में अधिक संतुलित प्रिंसिपल-एजेंट संबंधों के साथ व्यापार में अधिक आसानी प्रदान करने के लिए नियामक आयोगों की स्थापना की गई है. [1] इस बीच, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश शायद ही कभी नए निर्माण करते हैं लेकिन मौज़ूदा सड़कों का बड़े पैमाने पर अपडेट और विस्तार किया गया है. [2]

केंद्रीय समस्या: असेट क्रिएशन की लॉन्जिविटी की लंबी अवधि बड़े पैमाने पर जोख़िमों को पैदा करती है जो धीरे-धीरे सामने आते हैं, जिनमें आर्थिक जोख़िम, राजनीतिक जोख़िम और दायरे और कानून में बदलाव शामिल होते हैं. ऐसी स्थितियों में निजी संस्थाओं और बैंक वित्तपोषण की सुरक्षा करना बार-बार निवेश सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन डेवलपमेंट और प्रोक्योरमेंट की ज़िम्मेदार पब्लिक एंटिटी  द्वारा इस पर शायद ही विचार किया जाता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं में न्यायपालिकाओं में कमज़ोर कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेंट कैपेसिटी  का मतलब यह भी है कि जब परियोजनाएं विवाद में फंसती हैं तो मामले को सुलझाने के लिए अदालतों में विश्वास की कमी होती है, जिसका नतीज़ा यह होता है कि अक्सर गतिरोध पैदा होता है और परियोजना पूरी होने में देरी होती है. [3] बिडर्स को आकर्षित करने में विफलता और प्रतिस्पर्धी  सार्वजनिक संपत्ति की नीलामी आयोजित करना निजी फर्मों और फाइनेंसरों की ओर से कम दिलचस्पी की ओर इशारा करता है लिहाज़ा आगे बढ़ने के लिए इनोवेटिव फाइनेंस मॉडल डिज़ाइन करने की ज़रूरत पड़ती है.

2.जी20 की भूमिका

एडवांस्ड और इमर्जिंग  इकोनॉमी के रूप में, जी20 कड़ियों के निर्माण के लिए एक मंच है और बहुपक्षीय मंचों पर आम सहमति बनाने में बाधा डालने वाले फ्रिक्शन को हल करने के लिए उपयुक्त है. विभिन्न वर्किंग ग्रुप और टास्क फोर्स में फैली साल भर की व्यस्तता के रूप में जी20 अध्यक्षों की संरचना भी निरंतर नीतिगत संवादों के लिए उत्तरदायी है. यह पॉलिसी ब्रीफ अर्थव्यवस्थाओं के बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास और इसके परिणामस्वरूप जलवायु कार्रवाई के एज़ेंडे के लिए बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण पर प्रकाश डालता है. यह उन प्रमुख चुनौतियों की पहचान करता है जिन्हें जी20 में उभरती अर्थव्यवस्थाओं को दूर करना होगा और भविष्य के बुनियादी ढांचे के लिए फाइनेंस की सुविधा के लिए नीतिगत सिफारिशें आगे बढ़ाता है.

जी20 के तहत दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों ने बुनियादी ढांचे में उच्च जोख़िम वाले निवेश के कारण अतीत में कई तरह की परेशानियों का अनुभव किया है. [4] इन जोख़िमों के कुछ नकारात्मक प्रभावों का नीचे उल्लेख किया जा रहा है.

 

ए. बुनियादी ढांचे के लिए निजी निवेश और बैंक वित्तपोषण (फाइनेंसिंग) को रिवाइव करना

बुनियादी ढांचे में निवेश को कैटेलाइज (उत्प्रेरित) करने और इसके लिए औपचारिक वित्त को रिवाइव करने की रणनीति तैयार करने के लिए, बुनियादी ढांचे के कॉन्ट्रैक्ट के जोख़िम आवंटन ढांचे (रिस्क एलोकेशन फ्रेमवर्क) को समझना महत्वपूर्ण है जिसकी वज़ह से बुनियादी ढांचे की कैपेसिटी  बिल्डिंग की गति रुक जाती है. यह ढांचा परियोजना से वित्तीय और वाणिज्यिक रिटर्न का मार्गदर्शन करता है जो इसकी प्रॉफिटेबिलिटी और बैंकेबिलिटी को दिखाता है. तालिका 1 प्रत्येक कॉन्ट्रैक्ट के तहत जोख़िम की अलग-अलग डिग्री दिखाती है.

टेबल 1: प्रमुख बुनियादी ढांचा अनुबंध मॉडल में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच जोख़िमों का विभाजन

  EPC/ Item rates/ BOQ User charges-based models Asset monetisation models (roads/power)
Asset category Greenfield only Greenfield/ Brownfield Brownfield only
Concession period 6-7 years 25 years 15-20 years
Mode of revenue Financed through budgets Returns from user charges Returns from cash flow
Financial risk Public sector Private sector Private sector
O&M responsibility Public sector Private sector Private sector
Ownership Government Single or consortium (limited lease) Single or consortium (limited lease)

Source: Author’s own, based on guidelines and contract structures for each model.

 

निजी पार्टियों को वित्तीय जोख़िम के उच्च आवंटन के कारण उपयोगकर्ता शुल्क पर आधारित मॉडल को शुद्ध पीपीपी कहा जाता है. अगर परियोजना नियोजन और अनुबंध प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र मज़बूत है तो ये जोख़िम होंगे लेकिन ये प्रभावी और लाभदायक हैं. अगर भारत में नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन और दक्षिण अफ्रीका में नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर  प्लानिंग 2050 जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को हासिल करना है तो निर्माण, अपग्रेडेशन और असेट मेनटेनेंस के लिए प्रत्येक उप-क्षेत्र (सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और दूरसंचार) में लगातार निवेश और बढ़ती प्रतिस्पर्धा  को बढ़ावा देना होगा.

 

बी. सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास में राजनीतिक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को कम करना

बुनियादी ढांचा क्षेत्र निविदाओं के बड़े मूल्य और निर्माण अवधि के समय के कारण ये आकर्षक लगते हैं जो किराए पर लेने की प्रैक्टिस को सुविधाजनक बनाता है. राजनेताओं और ठेकेदारों (विशेषकर सड़क, बिजली और मिलों) के बीच मज़बूत सांठगांठ अच्छी तरह से पता है और स्थानीय प्रशासन में भ्रष्टाचार के मूल कारण के रूप में इसे स्वीकार किया जाता रहा है. [5]

पब्लिक प्रोक्योरमेंट के क्षेत्र में कई सुधार किए गए हैं जिनमें से सबसे उल्लेखनीय है कि पर्याप्त मानदंड पूरे होने पर सिंगल बिड देने की सुविधा जिससे फिर से निविदा से जुड़ी लागतों से बचा जा सके. विशेष रूप से राज्य स्तर पर ऐसी बिडिंग की हाई वैल्यू को देखते हुए यह अजीब घटना है और सब-ऑप्टिमल कंपिटिशन लेवल के बारे में बताती है. [6] यह दिखाने के लिए सबूत भी हैं कि कॉन्ट्रैक्ट की प्रशासनिक लागत को कम करने के लिए अनुबंधों को अक्सर बंडल किया जाता है; एमएसएमई अक्सर उच्च योग्यता मानदंडों के कारण इसमें हिस्सा लेने में असमर्थ होते हैं जो बाज़ार में प्रवेश बाधाओं के रूप में काम करते हैं. इस तरह की प्रैक्टिस बाज़ार की प्रतिस्पर्धात्मकता  को कम कर सकती है और सरकार में सभी स्तरों पर प्लेयर्स द्वारा तैनात कॉन्ट्रैक्ट स्ट्रैटिजी की कमी पर ज़ोर दे सकती हैं.

 

सी. मौज़ूदा परिसंपत्तियों के ऑपरेशन और रखरखाव (ओ एंड एम) को प्राथमिकता देना

विश्व बैंक की बेंचमार्किंग इंफ्रास्ट्रक्चर  रिपोर्ट 2020 [7] ने विभिन्न उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इन्फ्रास्ट्रक्चर एसेट मैनेजमेंट (ओएंडएम) पर ‘कम प्रदर्शन करने वाले’ के रूप में दर्ज़ा दिया है. यह कुशल परिसंपत्ति प्रबंधन (जिसमें संचालन और रखरखाव एक मुख्य घटक है) करने की कम क्षमता को दिखाता है.

असेट रीसाइक्लिंग  या मोनेटाइजेशन , परिसंपत्तियों के निर्माण के बाद उन्हें प्रबंधित करने के लिए निजी क्षेत्र की क्षमता और विशेषज्ञता को शामिल करने का बेहतर तरीक़ा है. जबकि हवाई अड्डों और नागरिक उड्डयन क्षेत्र ने इसमें महारत हासिल कर ली है. अधिकांश वैश्विक हवाई अड्डों को पट्टे की पूर्व-निर्धारित अवधि के लिए निजी कंपनियों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जा रहा है, सड़क और बिजली जैसे अन्य क्षेत्र की संपत्तियों को आकर्षक ढंग से पैकेज करने में असमर्थ रहे हैं. इसका मुख्य कारण इन परिसंपत्तियों की ख़राब स्थिति और किसी निजी कंपनी को अधिक कुशल प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित नहीं करना है.

3.जी20 को सिफ़ारिशें

सेक्शन 1 में जो जोख़िम बताए गए हैं उसकी वज़ह से निजी फाइनेंसर बड़ी परियोजनाओं को नहीं लेना चाहते हैं जिससे सरकार के लिए (i) जोख़िमों को कम करने, और (ii) सरकार के साथ कॉन्ट्रैक्ट करने के लिए निजी कंपनियों के लिए माहौल में सुधार करने के लिए कदम उठाने का पर्याप्त आधार बनता है.

यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों के सामने आने वाली मौज़ूदा बाधाओं पर आधारित है जो यह मानते हुए है कि जब तक बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण (फाइनेंसिग) में सुधार नहीं किया जाता है तब तक क्लाइमेट रेजिलियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास शुरू नहीं होगा. टेबल 2 समय-समय पर बुनियादी ढांचे के लाइफ साइकिल  के चरणों या घटकों और क्षेत्र में अधिक वित्तीय प्रवाह तक पहुंच को प्रभावित करने वाले तत्वों के बारे में सोचने के लिए तीन-चरण वाली रूपरेखा का प्रस्ताव करती है :

  1. योजना बनाने के लिए इसमें एक व्यवस्थित जलवायु लेंस बनाने के लिए योजना प्रक्रियाओं को बढावा देना;
  2. सरकारी कॉन्ट्रैक्ट प्रैक्टिस में सुधार करना और बेहतर प्रोक्योरमेंट के लिए ग्रीन पब्लिक प्रोक्योरमेंट के लिए संस्थागत संरचनाओं का निर्माण करना;

iii. लंबी अवधि में सेवा वितरण में सुधार और परिसंपत्तियों को बेहतर बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचे ओ एंड एम के लिए रणनीति बनाना.

 

टेबल 2: बुनियादी ढांचे के निर्माण और वित्तपोषण के लिए रूपरेखा

  Planning Procurement O&M
Institutional capacity      
Legal frameworks      
Financing      

Source: Author’s own, based on XKDR Forum’s framework for government contracting

नोट: टेबल प्रत्येक चरण को प्रबंधित करने के लिए आवश्यक स्पेसिफिक स्किलसेट को उजागर करने के लिए योजना, प्रोक्योरमेंट और ओ एंड एम के चरणों में स्पेसिफिक होने के लिए संस्थागत क्षमता, कानूनी ढांचे और वित्तपोषण जैसे इनपुट की आवश्यकता को दर्शाती है.

 

स्टेज 1: बुनियादी ढांचे की योजना में एक क्लाइमेट लेंस का निर्माण

दुनिया भर के विशेषज्ञ अर्बन प्लानिंग के लिए बायोक्लाइमेटिक शहरी डिज़ाइन, प्रकृति-आधारित समाधान, मल्टी फंक्शनल अर्बन स्पेस और सेक्टर-विशिष्ट रणनीतियों को शामिल करने के लिए रेजिलियेंस ढांचे की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं. [8] यह इस तथ्य पर आधारित है कि इसके बावज़ूद क्लाइमेट मॉडलिंग में प्रगति, महत्वपूर्ण अनिश्चितता और अप्रत्याशितता मौज़ूद है, जिससे इस क्षेत्र में लचीले और चुस्त दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. गतिशीलता और सहज योजना प्रक्रियाओं को बनाए रखने के लिए मानव क्षमता के विकास की आवश्यकता है जहां योजना बनाने वाले और सरकारी अधिकारी मौज़ूदा चुनौतियों को पहचानने और उसके अनुसार अपनी प्लानिंग मेथड को बदलने में सक्षम हों.

क्लाइमेट प्रेडिक्शन मॉडल पर आम सहमति की कमी और जलवायु जोख़िमों का पूर्वानुमान लगाने में शामिल दिक्कतें सरकारों की भविष्य के लिए योजना बनाने की क्षमता को कम कर देती हैं. [9] इसके अलावा, 10- और 20- साल के लिए ‘मास्टर प्लान’ विकसित करने की प्रैक्टिस क्लाइमेट रिलेटेड दबावों की अनिश्चितता के अनुकूल होने के लिए आवश्यक रेजिलियेंस को समाप्त कर देता है. ये योजनाएं शहर के फ्रिंज एरिया के साथ पर्याप्त विचार किए बिना, साइलो में शहरों के लिए भी बनाई गई हैं. योजना प्रणालियां अनिवार्य रूप से सरकार के सभी स्तरों, संबंधित विभागों और शहरी स्थानीय निकायों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने का एक माध्यम होनी चाहिए.

 

सिफ़ारिशें:

  1. नीति निर्माताओं को संकीर्ण लक्ष्य-निर्धारण के साथ मेट्रो शहरों के लिए लंबी अवधि के मास्टर प्लान के पारंपरिक दृष्टिकोण से अलग होना चाहिए और शहरी नीति की एक बेहतर योजना विकसित करनी चाहिए जिसमें लगातार मूल्यांकन, अनुकूलन और संवर्द्धन की प्रैक्टिस शामिल हो. रेजिलियेंस को बुनियादी ढांचे, समुदायों, मानव और राज्य क्षमता और शासन संस्थानों के एक अंतर्संबंध के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें सभी समान तौर पर स्टेकहोल्डर हों.
  2. कुछ निश्चित परिदृश्य-आधारित मॉडलों के साथ काम करने की प्रवृत्ति शहरी नियोजन में अंतर्निहित होती है लेकिन बढ़ते शहरों को समझने, मॉडल बनाने और प्रबंधित करने के लिए साक्ष्य आधार प्रदान करने की क्षमता के कारण प्लानिंग सपोर्ट सिस्टम (पीएसएस) की एक वैकल्पिक धारा ने लोकप्रियता हासिल की है. [10] शहर-स्तरीय योजना में इसके अनुप्रयोग के लिए बड़े पैमाने पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता है सार्वजनिक अधिकारियों के साथ-साथ उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े, सघन शहरी स्थानीय निकायों के भीतर शहरी निगम अनुसंधान इकाइयों को बढ़ावा देना.
  3. बुनियादी ढांचे की योजना का एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट सरकार (किसी भी स्तर पर) को यह तय करना है कि उसे इसे ‘मेक/बिल्ड’ करना है, या इसे ‘बाय/प्रोक्योर’ करना है. इस संबंध में ठोस निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए, सार्वजनिक अधिकारियों को उनकी आंतरिक क्षमताओं का पर्याप्त मूल्यांकन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. मेक या बिल्ड का निर्णय लेते समय, सार्वजनिक प्राधिकरण का विनिर्माण और निर्माण सवालों के घेरे में होता है और बाय या प्रोक्योर का निर्णय लेते समय, बाज़ार की क्षमताओं के साथ-साथ प्राधिकरण की प्रभावी ढंग से सही बिडिंग लगाने वाले को चुनने की क्षमता भी महत्वपूर्ण होती है.

 

चरण 2: सरकारी अनुबंध के तरीके में सुधार करना और ग्रीन प्रोक्योरमेंट के लिए संस्थागत ढांचे का निर्माण करना

अनुमान बताते हैं कि जी20 देशों के लिए सार्वजनिक खरीद में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 20-22 प्रतिशत शामिल है. थोक खरीददारों के रूप में सरकारें खरीद के रुझान को आकार दे सकती हैं और निजी क्षेत्र के सप्लायर्स को प्रोत्साहित कर सकती हैं, जिससे बड़े नीतिगत लक्ष्यों की दिशा में बाज़ार परिवर्तन संभव हो सके. [11] बेहतर सार्वजनिक खरीद विधियों के माध्यम से सार्वजनिक व्यय का अनुकूलन जी20 अर्थव्यवस्थाओं के लिए खरीद की लागत प्रभावशीलता में सुधार करने के लिए उपयोगी है और आगे की संपत्ति निर्माण के लिए अतिरिक्त धनराशि जुटाने में सहायक है.

फॉसिल  फ्यूल से परिवर्तन की दिशा में वैश्विक खोज के लिए बिजली और ऊर्जा क्षेत्र को सबसे बड़े परिवर्तन से गुजरना होगा. ऊर्जा परिवर्तन को पाने के लिए कई नीतिगत रास्ते हैं लेकिन जलवायु समस्या की तात्कालिकता के लिए सफल और त्वरित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए कई मोर्चों पर कार्रवाई की आवश्यकता है. जलवायु परिवर्तन, संसाधनों का उपयोग और टिकाऊ उपभोग और उत्पादन से संबंधित पर्यावरण नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सार्वजनिक व्यय के भीतर क्लाइमेट एक्शन को बढ़ाने, इसे मुख्यधारा बनाने और एम्बेड करने के लिए जी20 सदस्य देश की सरकारों के हाथ ग्रीन पब्लिक प्रोक्योरमेंट एक महत्वपूर्ण टूल है.

जी20 अर्थव्यवस्थाओं के लिए जो हर साल वस्तुओं, सेवाओं और कार्यों की ख़रीद पर खरबों ख़र्च करती हैं, हमें बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में ग्रीन प्रोक्योरमेंट को मुख्यधारा में लाने के लिए ख़रीद प्रक्रियाओं को कैसे संशोधित करना चाहिए? जलवायु जोख़िमों और उनकी मिटिगेशन स्ट्रैटिजी को ध्यान में रखने के लिए नियोजन प्रक्रियाओं को कैसे बढ़ाया जाना चाहिए? हम अधिक अनुमानित फंडिंग आकर्षित करने के लिए बेहतर योजना कैसे बना सकते हैं? टेबल 2 एक रूपरेखा का प्रस्ताव करती है जिसका मतलब यह है कि योजना पर संस्थागत स्पष्टता और क्षमता, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए ख़रीद प्रक्रियाएं और पोस्ट कंस्ट्रक्शन असेट मैनेजमेंट वित्तपोषण हासिल करने के दौरान मुख्य विचार हो सकते हैं.

 

सिफ़ारिशें:

  1. इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोक्योरमेंट में कम प्रतिस्पर्धा , भुगतान में देरी को हतोत्साहित करके निजी निवेश में गिरावट और कॉन्ट्रैक्ट के नॉन एनफोर्समेंट / मुकरने जैसी बाधाओं को दूर करें. [12] बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए वित्तपोषण का बोझ सार्वजनिक क्षेत्र के लिए जहां बहुत ज़्यादा है वहीं प्राइवेट कैपिटल फ्लो प्रासंगिक है.
  2. टेंडर स्ट्रैटिजी को औपचारिक बनाना और प्रोक्योरमेंट कर्मचारियों को इसके लिए प्रशिक्षण देना. कॉन्ट्रैक्ट को बंडल करने का निर्णय और प्रत्येक बंडल की क़ीमत यह निर्धारित करती है कि उसे प्राप्त होने वाली बिड्स (बोलियों) की संख्या और प्रतिस्पर्धा से उसे कितना लागत लाभ प्राप्त हो सकता है. सही प्रकार के बिडर्स को आकर्षित करने के लिए निविदाओं की रणनीति बनाना महत्वपूर्ण है जिसमें सकारात्मक फीडबैक लूप के माध्यम से महत्वपूर्ण बाज़ार ज्ञान/सर्वेक्षण और उद्योग लिंकेज शामिल हैं.
  3. ग्रीन पब्लिक प्रोक्योरमेंट के लिए उपयोग के मामले विकसित करें: जबकि बड़ी संस्थाएं (जैसे कि भारतीय रेलवे) अपने दम पर जीपीपी सुधार शुरू कर सकती हैं लेकिन सरकार के लिए स्केलिंग को बढ़ाने के लिए नीति निर्माताओं, प्रोक्योरमेंट एजेंसी, जिन बाज़ारों से वे ख़रीदारी करती हैं और जिस जनता से वे ख़रीदारी करती हैं, उससे ख़रीदारी को बढ़ाना होगा. कार्बन सीमा समायोजन तंत्र ( कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म) को आज मिल रही वैश्विक स्वीकृति को देखते हुए यह ज़रूरी है. प्रोक्योरमेंट के माध्यम से एक प्रोत्साहन-आधारित सिस्टम के सर्टिफिकेशन और जीपीपी कानूनों के मुक़ाबले अधिक प्रभावी ढंग से काम करने की संभावना है जो टॉप टू डाउन अप्रोच से अधिक हैं.
  4. यूएलबी/स्थानीय सरकारों के स्तर पर ख़रीद अधिकारियों को प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करना यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि प्रोक्योरमेंट पाइप लाइन के एलिमेंट्स को आउटसोर्स करने की स्थिति में भी, अधिकारी इस काम की मांग निर्धारित करने और उन्हें प्रदान किए गए आउटपुट की निगरानी करने में सक्षम हैं. यह क्षमता अधिकारियों को न  केवल प्रोक्योरमेंट की समझ, बल्कि ग्रीन की गहन समझ से भी लैस करने के लिए अहम है.

स्टेज 3: बुनियादी ढ़ांचे ओ एंड एम के लिए रणनीति बनाना

ऊर्जा क्षेत्र, वैश्विक स्तर पर, कैनेडियन पेंशन फंड और ऑस्ट्रेलियाई निवेश घरानों जैसे संस्थागत निवेशकों से पूंजी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आकर्षित करता है. इसने दुनिया भर में ईएसजी और ग्रीन फाइनेंस इको सिस्टम के विकास में योगदान दिया है, हालांकि उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने पिछले दशक में ही इसे बढ़ावा देना शुरू किया है. महामारी के बाद मंदी और रिटर्न की कम दरों ने हितधारकों को ईएसजी निवेश की यांत्रिक प्रकृति, ईएसजी मानदंडों की बढ़ती निवेशक जांच और क्या इससे अंततः हरित विकास होता है, इस पर कई सवाल उठाए हैं.

इसी तरह, बड़े सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के लिए एसेट  मोनेटाइजेशन  दुनिया भर के संस्थागत निवेशकों के लिए एक पसंदीदा निवेश स्थान है जो बड़ी मात्रा में पूंजी लगाने के लिए ऐसे रास्ते तलाश रहे हैं जो नकदी प्रवाह का एक स्थिर स्रोत बन सके. कई कारणों से जी20 देशों में असेट मोनिटाइजेशन पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है. [13] वित्तपोषण निश्चितता (फाइनेंसिंग सर्टेंटी) धन प्रबंधन करने की संस्थागत क्षमता और नीतियों/कानूनों का नतीज़ा है जो कार्यान्वयन में योजना और पूर्वानुमान पर ज़ोर देते हैं. सिस्टम में सुधार के लिए सार्वजनिक अधिकारियों के लिए कम-प्रोत्साहन संरचनाएं, निजी किरदारों को सरकार द्वारा निर्मित बुनियादी ढांचे को लेने से जुड़े जोख़िमों के कारण अपने निवेश को एक ख़राब सौदे के रूप में देखने पर मज़बूर करती हैं. इसकी वज़ह सार्वजनिक बुनियादी ढांचा प्राधिकरणों द्वारा ओएंडएम पर कम ध्यान देने और कुछ देशों में निर्मित बुनियादी ढांचे की ख़राब गुणवत्ता दोनों हैं.

इन्फ्रास्ट्रक्चर एक ऐसा क्षेत्र है जो बड़ी पूंजी की मांग करता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े और रेजिलियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर की फंडिंग के लिए, बड़ी मात्रा में पूंजी को आकर्षित करने के लिए सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए. यह निजी क्षेत्र के लिए मौज़ूदा नियामक बोझ और देश में आर्थिक विकास दर दोनों का एक एलिमेंट  है जो निवेश पर रिटर्न निर्धारित करता है. इंडोनेशिया अपने टीओटी (टोल ऑपरेट ट्रांसफर) मॉडल को औपचारिक बनाने की प्रक्रिया में है और भारत अपने टीओटी मॉडल और एसेट  मोनेटाइजेशन  ड्राइव के माध्यम से ज़्यादा पूंजी आकर्षित करने में अब तक सफल नहीं हुआ है.

सिफ़ारिशें:

  1. ईएसजी और इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग पर डिस्क्लोजर ड्रिवेन एज़ेंडे के बजाय ‘इन्वेस्टमेंट इंपैक्ट मेजरमेंट’ [14] दृष्टिकोण की ओर बढ़ना. रेग्युलेटरी बोझ को कम करने से मदद मिल सकती है और बदले में निवेशकों को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड जैसे नियामकों द्वारा अनिवार्य चेकलिस्ट का अनुपालन करने के बजाय उन एलिमेंट्स के सर्विस के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है जिनकी उनके निवेशक परवाह करते हैं. ईएसजी निवेशकों के लिए ग्रीन डेवलपमेंट में निवेश करने का एक साधन है और इसे वह भूमिका निभाने में सक्षम होना चाहिए.
  2. ट्रांसमिशन सेक्टर के लिए अक्वायर-ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (एओएमटी) या भारत और इंडोनेशिया में टोल ऑपरेट ट्रांसफर मॉडल जैसे भारत में हाल ही में बिजली मंत्रालय की अधिसूचना जैसे परीक्षण नहीं किए गए मॉडल के साथ प्रयोग करने के बजाय, इनविट्स (निवेश ट्रस्ट) मॉडल उन संस्थागत निवेशकों के लिए अधिक फ़ायदेमंद साबित हो सकता है जो इस प्रकार के एकत्रित निवेश सिस्टम में अपने जोख़िमों में विविधता लाने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा, आईएनवीआईटी (इनविट्) मॉडल पर एओएमटीटीओटी को बढ़ावा देना संस्थागत निवेशकों की तुलना में निर्माण और विकास दिग्गजों के लिए प्राथमिकता का संकेत देता है, जो अपने विविध परिसंपत्ति पूल और न्यूनतम जोख़िम एकाग्रता के कारण निवेश के लिए इनविट्स जैसे मॉडल चुनते हैं.
  3. एशिया में व्यापार करने में आसानी के लिए माध्यमों में सुधार. बड़े निवेशकों को ऐसे कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेंट और सहारा की आवश्यकता होती है जो विश्वसनीय हो और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कानूनी प्रणाली की कमज़ोरियों से ग्रस्त न हो. [15] मध्यस्थता एक ऐसा विकल्प है जो अब विभिन्न देशों में बुनियादी ढांचे के अनुबंधों में अंतर्निहित है लेकिन उच्च न्यायलयों में आर्बिट्रल अवॉर्ड के लिए अपील करने के निर्णय अक्सर गंभीर होते हैं.

निष्कर्ष

पूरे यूरोप और मध्य एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और नीतिगत अनिश्चितता में हो रही बढ़ोतरी ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट  अप्रोच को कमज़ोर कर दिया है. [16] इससे भी बुरी बात यह है कि बुनियादी ढांचे को भरने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने वाले निजी क्षेत्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. क्योंकि आर्थिक प्रोत्साहन धीमा होने और ऋण की स्थिति में सख़्ती होने के कारण यह गैप और बढ़ सकता है. इन मौज़ूदा तनावों के अलावा, अब तक क्लाइमेट फंडिंग फ्लो ने प्रदर्शित किया है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, इन फंडों की प्रकृति की अधिक जांच की आवश्यकता है. [17]

अनिश्चितता की मांगों के प्रति चुस्त और गतिशील रहने की आंतरिक क्षमता विकसित करने के लिए परिष्कृत योजना पद्धतियां और अनुशासन आवश्यक है. दूसरा, जब तक स्थानीय स्तर पर कॉन्ट्रैक्ट प्रैक्टिस और बाज़ार पर कब्ज़ा नहीं किया जाता और कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेंट क्षमताओं को नहीं बढ़ाया जाता, लार्ज कैपिटल असेट पर भरोसा नहीं करेगी. तीसरा, ख़रीदी जाने वाली वस्तुओं, सेवाओं और कार्यों की श्रेणी में ग्रीन प्रोक्योरमेंट के बारे में सोचना और लागू करना समय पर और ज़रूरी है. चौथा, बड़े निवेशकों को बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं में रेग्युलेटरी इकोसिस्टम में बदलाव की आवश्यकता है. अंत में, शहर जो नेशनल एमिशन और साथ-साथ उनकी आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में हैं; लचीलेपन के सवाल का समाधान करने के लिए सभी देशों में शहर-केंद्रित समाधानों को आगे बढ़ाना होगा जिसमें चुनौती का सामना करने के लिए स्थानीय निकायों की क्षमता बढ़ाना शामिल है.

प्रस्तावित फ्रेमवर्क स्टेज में लागू किया जाना उपयोगी साबित हो सकता है क्योंकि जी 20 अर्थव्यवस्थाओं के इन्फ्रास्ट्रक्चर चुनौतियों को एड्रेस  करने के लिए सिस्टमैटिक चेंज की ज़रूरत हो सकती है. कई नगर पालिकाएं परिष्कृत प्रौद्योगिकी, कुशल कर्मियों और आकस्मिक निधि की कमी से जूझ रही हैं. बजटीय आवंटन को हरियाली की दिशा में अलाइन किया जाना चाहिए और साथ ही क्लाइमेट एक्शन को सार्वजनिक व्यय योजनाओं के भीतर एकीकृत किया जाना चाहिए. यह राष्ट्रों का दायित्व है कि वे स्वयं रेजिलियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर की फंडिंग के लिए रास्ते तैयार करे. भविष्य के लिए क्लाइमेट रेजिलियेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए सक्षम वातावरण को मज़बूत करना आज इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों में सुधार के साथ शुरू होना चाहिए.


[1] Ajay Shah, B. N. Srikrishna, Somasekhar Sundaresan and Shubho Roy,“Building State capacity for regulation in India,The LEAP Blog, 2018.

[2] Secretary of State for Transport, “ Action for Roads A network for the 21st century”, Her Majesty’s Government, United Kingdom.

[3] Michael Trebilcock and Jing Leng, “The Role of Formal Contract Law and Enforcement in Economic Development,” Virginia Law Review 92, no. 7: 1517–80 (2006).

[4] Diaan Yi-Li, “How can South-East Asia close its infrastructure gap?,” World Economic Forum, 2015.

[5] Jonathan Lehne, Jacob Shapiro and Oliver Eynde, “Building connections: Political corruption and road constriction in India,” Journal of Development Economics, Vol. 131, (2018).

[6] Charmi Mehta and Diya Uday, “How competitive is bidding in infrastructure public procurement? A study of road and water projects in five Indian states,” The LEAP Blog, 2022.

[7] World Bank, “Benchmarking Infrastructure report,” World Bank Group, 2020.

[8] V Chondrogianni,and Y Stephanedes, “Evaluation of urban planning methods toward bioclimatic and resilient urban spaces,” Environment and Planning B: Urban Analytics and City Science49(5), 1354–1370, (2020).

[9] Marianne Fay, Atsushi Iimi, and Baptiste Perrissin-Fabert, “Financing Greener and climate-resilient infrastructure in developing countries – challenges and opportunities,” EIB Papers, ISSN 0257-7755, Vol. 15, pp. 34-58, (2010).

[10] Supriya Krishnan, Nazli Aydin and Tina Comes, “Planning Support Systems for Long-Term Climate Resilience: A Critical Review,”Urban Informatics and Future Cities, Springer Nature, (2022).

[11] Anjali Sharma and Susan Thomas, “The footprint of union government procurement in India,” XKDR Forum Working Paper 10, (2021).

[12] Charmi Mehta and Susan Thomas, “Identifying roadblocks in highway contracting: lessons from NHAI litigation,” The LEAP Blog, 2022.

[13] Charmi Mehta and Bhargavi Zaveri, “Monetisation lessons from NHAI,” The Business Standard, March 2021.

[14] Charmi Mehta and Susan Thomas, “Regulatory Mandates On ESG Investing Fall Short Of Ensuring Impact,” BQ Prime, 2023.

[15] Witold J. Henisz and Bennet A. Zelner, “The Hidden Risks in Emerging Markets,” Harvard Business Review, 2010.

[16] World Bank, “Sharp, Long-lasting Slowdown to Hit Developing Countries Hard,” World Bank Group, 2023.

[17] Charmi Mehta, “Re-imagining Climate Finance,” Observor Research Foundation Issue Brief No. 575, 2022.