ग्रीन डेवलपमेंट और इन्वेस्टमेंट एक्सीलरेटर: निवेश योग्य ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बढ़ावा देना

Uday Khemka | Aaran Patel | Katherine Stodulka

टास्क फोर्स 5: उद्देश्य और प्रदर्शन: वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का पुनर्मूल्यांकन


1.चुनौती

ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सीमित प्राइवेट फाइनेंस फ्लो और क्षेत्रीय असमानताएं दुनिया को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने और टिकाऊ विकास को आगे बढ़ाने से रोक रही हैं.

पिछले कुछ वर्षों में  कोरोना महामारी, यूक्रेन में युद्ध और वैश्विक वित्तीय स्थितियों के बिगड़ने से कई ईएमडीई के लिए पहले से ही चुनौतीपूर्ण वित्तीय हालात और भी जटिल और कठिन हो चुके हैं. ऐसी परिस्थितियां इन बाज़ारों को कई प्रमुख वित्तीय रास्तों से अलग करने और महत्वपूर्ण विकास परिणामों के लिए फाइनेंस को ख़तरे में डालने की धमकी देती हैं जो अक्सर ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश से जुड़े होते हैं. ईएमडीई में ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के निवेश के लिए ग्लोबल फाइनेंशियल  आर्किटेक्चर को कार्यान्वित करना जी20 की तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए.

ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए धन जुटाने को लेकर  दुनिया के कुछ सबसे बड़े निजी निवेशकों के साथ 17 वर्षों से अधिक समय से काम करते हुए, यह स्पष्ट है कि डील फ्लो की बैंकेबिलिटी क्लाइमेट फाइनेंस के फ्लो को बढ़ाने के प्रमुख मुद्दों में से एक है. इस पॉलिसी ब्रीफ के लेखकों ने जीएफएएनजेड, जीएफएल, ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर हब, क्लाइमेट फाइनेंस पर स्वतंत्र उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समूह के सदस्यों, इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग टास्कफोर्स और ब्लेंडेड फाइनेंस टास्कफोर्स सहित संगठनों से परामर्श किया और ईएमडीई में निजी फाइनेंस फ्लो के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए एक नई रूपरेखा पेश की.

इन सिफारिशों का उद्देश्य 2022 में कॉप 27 में लॉन्च किए गए ‘फाइनेंस फॉर क्लाइमेट एक्शन’ में सोंगवे-स्टर्न-भट्टाचार्य द्वारा निर्धारित प्रमुख एक्शन ट्रैक को लागू करने में मदद करना है. [1]  यह रिपोर्ट इस प्रकार चुनौतियों की बात करती है : “चीन के अलावा उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों को 2025 तक प्रति वर्ष लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर (2019 में 2.2% की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद का 4.1%) और 2030 तक प्रति वर्ष लगभग 2.4 ट्रिलियन डॉलर (6.5% जीडीपी का) ख़र्च करने की आवश्यकता होगी.” ऊर्जा प्रणाली को बदलने, जलवायु प्रभावों के प्रति विकासशील देशों की बढ़ती संवेदनशीलता का जवाब देने  और टिकाऊ कृषि में निवेश करने और पारिस्थितिकी  तंत्र और जैव विविधता की बहाली पर यह राशि ख़र्च करनी होगी. [2]  हालांकि क्लाइमेट फाइनेंस इन्वेस्टमेंट की मात्रा में एक महत्वपूर्ण गैप है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार 2022 में ग्लोबल टोटल 1.62 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो क्लाइमेट पॉलिसी इनिशिएटिव  अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर साझा जलवायु उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 2030 तक सालाना आवश्यक 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी कम है. [3] , [4]

क्लाइमेट फाइनेंस के प्रवाह में क्षेत्रीय असमानताएं भी चिंताजनक हैं क्योंकि “2021 के बाद से स्वच्छ ऊर्जा निवेश में 90% से अधिक वृद्धि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और चीन में हुई है.” [5]  निजी क्लाइमेट फाइनेंस की, विशेष रूप से चीन के बाहर और पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कमी बनी हुई है. ईएमडीई के लिए पूंजी बढ़ाना कार्बन-इंटेन्सिव ट  इंफ्रास्ट्रक्चर में लॉक-इन को रोकने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो भविष्य में उत्सर्जन वृद्धि और ट्रांजिशनल रिस्क दोनों का एक स्रोत हो सकता है. इसके विपरीत  स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों में यह बदलाव वाले निवेश वृद्धि और विकास को मज़बूत करेगा.

ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए, जो 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को आगे बढ़ाएगा, उसके लिए अधिकांश पूंजी निजी स्रोतों से उन क्षेत्रों में आ सकती है जो निवेश योग्य हैं, या जल्द ही होंगे. हालांकि  यह निजी पूंजी न  तो पर्याप्त तेज़ी से आगे बढ़ रही है और ना ही आवश्यक पैमाने पर इसका विस्तार हो रहा है. 2011-2020 के दशक में, “निजी जलवायु वित्त की वृद्धि दर सार्वजनिक क्षेत्र (9.1%) की तुलना में धीमी (4.8%) थी और इसे बड़े पैमाने पर तेजी से बढ़ना चाहिए.” [6]  ऐसा कुछ अच्छी तरह से डॉक्युमेंटेड चुनौतियों की वज़ह से है, जिसमें ईएमडीई में निवेश के अवसरों की ख़राब समझ, पाइपलाइन की कमी और परियोजना और अलग-अलग देशों के जोख़िमों की एक पूरी श्रृंखला शामिल है जो पूंजी की लागत को बढ़ाती है और व्यापार करने की लेनदेन लागत को बढ़ाती है. आंशिक रूप से  ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ईएमडीई में जोख़िम और कथित जोख़िम कई निवेशकों (पूंजी के विशाल पूल वाले परिसंपत्ति मालिकों सहित) को अयोग्य बना देता है, ऐसे में आवश्यक खरबों डॉलर के निवेश को अनलॉक करने के लिए इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. अगले कुछ वर्षों में ईएमडीई में निजी वित्त जुटाना और ज़्यादा मुश्किल होने वाला है, क्योंकि मौद्रिक नीति सख़्त होने से चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल के कारण वित्तीय प्रवाह वापस अमीर बाज़ारों में लौट जाएगा और कई देशों में ईएमडीई के लिए ऋण संकट का ख़तरा पैदा हो जाएगा.

सौभाग्य से मौज़ूदा बेहतर काम वो है जो चुनौतियों पर काबू पाने और ईएमडीई में क्लाइमेट/ट्रांजिशन फाइनेंस की बड़ी मात्रा को अनलॉक करने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप के आसपास स्टेकहोल्डर्स को विकसित करने और अलाइन करने के लिए वास्तविक प्रगति को बढ़ावा देना चाहता है. यह रोडमैप कॉप 27 में लॉन्च की गई सोंगवे-स्टर्न-भट्टाचार्य रिपोर्ट में निर्धारित किया गया है. कई संगठन और पहल इस रोडमैप के विभिन्न हिस्सों पर काम कर रहे हैं  जिसमें ईएमडीई के प्रमुख ऋणदाताओं के रूप में मल्टीलेटरल  डेवलपमेंट बैंकों (एमडीबी) की भूमिका को फिर से तैयार करना होगा और इनमें से कई देशों के सामने आने वाले ऋण और लिक्विडिटी के मुद्दों से निपटना शामिल है.

2.G20 की भूमिका

लो-कार्बन और अधिक समावेशी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन बहुत ज़रूरी है और निवेश योग्य दोनों ही क्षेत्र हैं. ज़रूरत के अनुसार पूंजी जुटाने के लिए – विशेष रूप से उभरते बाज़ारों में – निजी निवेश को अनलॉक करने के लिए नया रास्ते बनाने के लिए जी20 के नेतृत्व में एक समन्वित और रणनीतिक कार्य योजना की आवश्यकता होगी. जोख़िम को प्रबंधित करने, पूंजी की लागत को कम करने, उच्च गुणवत्ता वाली पाइपलाइन  को तैयार करने और सही स्टेकहोल्डर्स को सशक्त बनाने के लिए एक स्पष्ट नैरेटिव और प्राथमिकताओं को अलाइन करना 2023 में बढ़ती गति का लाभ उठाने और नेतृत्व को सक्रिय करने के लिए महत्वपूर्ण होगा. इसका मतलब भारत के जी20 की अध्यक्षता, कॉप +28, ब्रिजटाउन एज़ेंडा (मैक्रॉन/मोटली शिखर सम्मेलन), विश्व बैंक की वार्षिक बैठकें, यूएनजीए /जलवायु सप्ताह, आसियान और सार्वजनिक, निजी और परोपकारी नेताओं की अन्य प्रमुख बैठकों जैसे महत्वपूर्ण प्लेटफार्मों का इस्तेमाल करना होगा.

जी20 की विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि यह समूह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत और दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है  और 80 प्रतिशत वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का उत्पादन करता है. लेकिन धन और उत्सर्जन दोनों के सबसे बड़े स्रोत होने के साथ, जलवायु परिवर्तन को संभालने की दिशा में अपनी प्रक्रियाओं और संसाधनों का उपयोग करना जी20 पर निर्भर है. पिछले कुछ वर्षों में  जी20 देशों ने जलवायु परिवर्तन को समूह के एज़ेंडे में तेजी से शामिल किया है. उदाहरण के लिए, 2022 में  सस्टेनेबल फाइनेंस वर्किंग ग्रुप और बाली घोषणा ने जलवायु वित्त जुटाने में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिए जी20 देशों की प्रतिबद्धता पर जोर दिया. इंडोनेशियाई जी20 अध्यक्षता के तहत, ग्लोबल ब्लेंडेड फाइनेंस टास्क फोर्स ने बताया कि कैसे मिश्रित वित्त उन क्षेत्रों में वाणिज्यिक पूंजी लाने में “पथप्रदर्शक की भूमिका” निभा सकता है जहां वित्तपोषण की ज़रूरतें सबसे बड़ी हैं, और ईएमडीई में निजी निवेश बढ़ाने की दिशा में ग्लोबल फाइनेंस आर्किटेक्ट कैसे प्रोत्साहन और उपकरणों को अनुकूलित कर सकती है. [7]

भारतीय जी20 अध्यक्षता पिछले जी20 शिखर सम्मेलन के मोमेंटम को बना सकती है और अन्य वैश्विक मुद्दों के बीच महत्वपूर्ण स्थायी वित्त प्राथमिकताओं पर आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. इस भू-राजनीतिक क्षण की अनूठी प्रकृति और ग्लोबल क्लाइमेट फाइनेंस गैप को पाटने की तत्काल अनिवार्यता को पहचानते हुए, यह पॉलिसी ब्रीफ मौज़ूदा क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के माध्यम से और उनके संबंध में एकीकृत जोख़िम-रहित प्रक्रियाओं की आवश्यकता को रेखांकित करता है. एक उद्देश्य-निर्मित संस्थान के माध्यम से डी-रिस्किंग को बढ़ावा देकर भी इसे प्राप्त किया जा सकता है – ग्रीन डेवलपमेंट और इन्वेस्टमेंट एक्सीलरेटर (जीडीआईए) का निर्माण देश-विशिष्ट डी-रिस्किंग का समर्थन करने के लिए एक वैश्विक संस्थान के रूप में कार्य करके बैंक योग्य परियोजनाओं के प्रवाह को सुव्यवस्थित कर सकता है.

संस्थागत निवेशक पहल के साथ काम करने का फीडबैक और अनुभव स्पष्ट रूप से लेनदेन लागत और निर्माण क्षमता को कम करके पाइपलाइन विकसित करने और पूंजी को अधिक प्रभावी ढंग से जोख़िम मुक्त करने में मदद करने की आवश्यकता का समर्थन करता है. जीडीआईए एक सुसंगत केंद्र बनाएगा जो दुनिया भर में बड़े पैमाने पर डीकार्बनाइज़ेशन इंफ्रास्ट्रक्चर में वास्तविक परियोजनाओं को विकसित करने और बढाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों और देशों में काम करने वाले किरदारों के फ्रेगमेंटेड (खंडित) नेटवर्क में व्यक्तिगत डी-रिस्किंग पहलों का लाभ उठाता है और उन्हें एक साथ जोड़ता है. इन प्रक्रियाओं को एमडीबी, डीएफआई, आईएनजीओ और ऐसे अन्य संस्थानों में भी एम्बेड किया जा सकता है. हालांकि इनमें से कई संस्थानों में जोख़िम-मुक्त करने की प्रक्रियाएं रहती हैं,इसके बावज़ूद इन्हें वित्त, सरकारों और निजी क्षेत्र को शामिल करने वाली त्रिपक्षीय प्रक्रिया के माध्यम से अधिक व्यवस्थित तरीक़ों से संचालित किया जा सकता है. यह इन प्रक्रियाओं को स्वतंत्र रूप से तेज़ करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.

आइडिया यह हो सकता है कि ग्लोबल स्केल पर विशिष्ट क्षेत्रों और भौगोलिक क्षेत्रों में जोख़िम-मुक्त करने की प्रक्रियाओं में तेजी लाई जाए. उदाहरण के लिए, ज़ीरो एमिशन मोबिलिटी, फाइनेंसिंग की चुनौतियों पर तीन साल तक काम करने के बाद, एक लार्ज कोलैबोरेटिव [ए] ने कॉप 27 में कलेक्टिव फॉर क्लीन ट्रांसपोर्ट फाइनेंस (सीसीटीएफ) लॉन्च किया. सतत विकास के लिए विश्व व्यापार परिषद द्वारा स्थापित सीसीटीएफ, [बी] का लक्ष्य बड़े पैमाने पर स्वच्छ परिवहन परियोजनाओं के लिए निजी वित्त को आकर्षित करने के लिए स्केल तक पहुंचना और जोख़िमों का समाधान करना है.

यह पॉलिसी ब्रीफ जीडीआईए के लिए डिज़ाइन को पूरा करने और इसे जी20 में लॉन्च करने का प्रस्ताव आगे बढ़ाता है जिसमें सोंगवे-स्टर्न-भट्टाचार्य रिपोर्ट को अपने इंटेलेक्चुअल पिलर के रूप में, जीडीआईए कार्रवाई के लिए निम्नलिखित ढांचे का उपयोग करेगा:

  1. विज़न – क्लाइमेट एक्शन के लिए राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं निर्धारित करें: मार्केट ऑफ पॉलिसी डायरेक्शन के लिए एक स्पष्ट संकेत प्रदान करें; स्टेकहोल्डर्स के साथ बातचीत के माध्यम से प्रमुख घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्टेकहोल्डर्स के बीच कार्रवाई के लिए रणनीतिक लक्ष्यों को संस्थागत बनाना.
  2. वास्तविक अर्थव्यवस्था – क्षेत्रीय डी-रिस्किंग को बढ़ावा दें: सक्षम वातावरण को मज़बूत करने और नीति, विनियमन, संविदात्मक तंत्र और डेटा साझाकरण सहित निवेशकों के साथ सूचना विषमता को कम करने के लिए अर्थव्यवस्था से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को सेक्टर-आधारित ट्रांजिशन प्लानिंग में बदलना होगा. व्यक्तिगत क्षेत्रों को सिंक्रोनाइज़ करने और जोख़िम कम करने के लिए मूल रूप से उद्योग, सरकार और वित्त को शामिल करते हुए बहु-क्षेत्रीय समन्वय प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाना होगा.
  3. आपूर्ति और मांग – पाइपलाइन में तेज़ी लाना; मध्यस्थता को मज़बूत करना: उच्च-गुणवत्ता, ट्रांजिशन अलाइन्ड बैंकेबल प्रोजेक्ट के डील फ्लो को चलाने के लिए स्थानीय क्षमता का निर्माण करना; अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता का लाभ उठाना और परियोजना तैयारी निधि को स्केल/अनुकूलित करना; और आपूर्ति और मांग से मेल खाने के लिए निवेशकों के जुड़ाव और स्थानीय मौज़ूदगी को बढ़ाना (उदाहरण के लिए देश के प्लेटफार्मों के माध्यम से) ज़रूरी है.
  4. वित्त – टारगेटेड जोख़िम-रहित तंत्र डिज़ाइन करें : उद्देश्य के लिए उपयुक्त उपकरणों/वाहनों/प्लेटफ़ॉर्मों में रियायती और वाणिज्यिक पूंजी के बेहतर मिश्रण सहित कुशल वित्तीय समाधानों के माध्यम से प्रमुख जोख़िमों (देश, प्रौद्योगिकी, मुद्रा और ग्राहक) को अड्रेस करें; जोख़िम प्रबंधन के लिए एमडीबी/डीएफआई और अन्य संविदात्मक, नीतिगत और निजी क्षेत्र की कार्रवाइयों की भूमिका को अनुकूलित करें. उधार लेने की लागत कम करने और नॉन सोविरियन ऋण की मात्रा बढ़ाने से ज़रूरी ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर को तेज़ी से बढ़ावा देना होगा.
  5. स्केल – बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाना : जोख़िम/रिटर्न-विशिष्ट पूर्व-चिह्नित निवेशक श्रेणियों के लिए निवेश के अवसरों को सिंडिकेट करना और ऐसे तंत्र बनाना जो संस्थागत निवेश के बड़े पूल को अनलॉक करने में मदद करते हैं.

 

चित्र 1: हरित विकास और इन्वेस्टर एक्सीलरेटर की पांच-चरण वाली डी-रिस्किंग प्रक्रिया

स्रोत: खेमका फाउंडेशन/ब्लेंडेड फाइनेंस टास्क फोर्स

 

रियायती पूंजी की कमी को देखते हुए (रियायती वित्त 2011 और 2020 के बीच कुल जलवायु वित्त का 16 प्रतिशत था) [8]  सरकारों की सीमित राजकोषीय क्षमता, डी-रिस्किंग प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला, पूंजी के अधिक कुशल उपयोग को सक्षम बनाएगी. ऐसी डी-रिस्किंग प्रक्रियाएं पहले की प्रक्रिया के बदले रेसिड्यूल डी-रिस्किंग (5-चरण वाली प्रक्रिया के चरण 4) के लिए सीमित मिश्रित समाधानों का उपयोग कर सकती हैं. इस रणनीति के लिए बड़े पैमाने पर ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के लिए रियायती पूंजी की कम इकाइयों की आवश्यकता होगी.

इंडोनेशियाई जी20 प्रेसीडेंसी के तहत लॉन्च किए गए ग्लोबल ब्लेंडेड फाइनेंस एलायंस के साथ काम करते हुए, जीडीआईए एक सुसंगत केंद्र बनाएगा जो बड़े पैमाने पर वास्तविक परियोजनाओं को विकसित करने और उसमें तेजी लाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों और देशों में काम करने वाले किरदारों के फ्रेगमेंटेड (खंडित) नेटवर्क में व्यक्तिगत डी-रिस्किंग केंद्रों का लाभ उठाता है और दुनिया भर में बड़े पैमाने पर डीकार्बनाइज़ेशन बुनियादी ढांचे को एक साथ जोड़ता है.

  1. जी20 को सिफ़ारिशें

इस विश्लेषण और जलवायु कार्रवाई (विशेष रूप से शमन-केंद्रित हरित बुनियादी ढांचे) में निवेश की गति और पैमाने में तेजी लाने की वैश्विक अनिवार्यता के आधार पर, यह पॉलिसी ब्रीफ जी20 को निम्नलिखित कार्रवाई योग्य सिफ़ारिशें करता है:

जीडीआईए को संस्थागत बनाना : जी20 देश जीडीआईए को एक वैश्विक संस्था के रूप में संस्थागत बना सकते हैं जो जोख़िम-साझाकरण उपकरणों और उत्प्रेरक पूंजी को डिज़ाइन करने और उन तक पहुंचने की लेनदेन लागत को कम करने के लिए प्रक्रियाओं का समन्वय करता है – जो प्रभावी रूप से घरेलू डी-रिस्किंग केंद्रों के लिए एक केंद्र बन जाता है. वैश्विक स्तर पर इन संस्थानों का मुख्य उद्देश्य पूंजी के प्रवाह में प्रमुख चुनौतियों की पहचान करने, उचित हितधारकों को शामिल करके इन चुनौतियों का समाधान विकसित करने के लिए सरकार, उद्योग और फाइनेंसरों को शामिल करने वाली त्रिपक्षीय प्रक्रियाओं को आयोजित करना होगा. और फिर इस प्रक्रिया के अंत में इस सौदे के प्रवाह के सिंडिकेशन के लिए सिस्टम तैयार करना होगा. क्षेत्रीय और घरेलू स्तर पर, जैसा कि सोंगवे-स्टर्न-भट्टाचार्य ढांचे में उल्लेख किया गया है, “देशों द्वारा संचालित देश/सेक्टर प्लेटफॉर्म एक उद्देश्यपूर्ण रणनीति के आसपास प्रमुख हितधारकों को एक साथ ला सकते हैं, निवेश को बढ़ा सकते हैं, बाधाओं से निपट सकते हैं या एक उचित परिवर्तन सुनिश्चित कर सकते हैं” और वित्त जुटाना, विशेषकर निजी वित्त क्षेत्र में” [9] फिलहाल  ऐसी कोई व्यापक संस्थागत प्रक्रिया मौज़ूद नहीं है.

इस प्रकार, जीडीआईए स्वयं पूंजी प्रदाता नहीं होगा  बल्कि वित्त के प्रवाह में बाधाओं और फ्रिक्शन कॉस्ट को कम करने में सहायक होगा. इसलिए  जीडीआईए को केवल परिचालन पूंजी की आवश्यकता होगी, बैलेंस शीट पूंजी की नहीं.

शासन:  जी20 प्रक्रिया के माध्यम से शासन ढांचे पर फंडर्स और डीकार्बनाइज़ेशन हितधारकों दोनों द्वारा समान तरीक़े से चर्चा और सहमति होनी चाहिए. डिज़ाइन प्रिंसिपल में ये शामिल हो सकते हैं :

इसे लेकर गवर्नेंस  दो स्तरों पर प्रदान किया जा सकता है:

जलवायु की तात्कालिकता और इसमें शामिल विकास चुनौतियों को देखते हुए, दोनों बोर्डों को चुस्त रहना चाहिए और नियमित रूप से मिलना चाहिए.

स्थान और अंतर्राष्ट्रीय संरचनाएं: ग्लोबल नॉर्थ में प्रमुख वित्तीय केंद्रों की उच्च निवेश विशेषज्ञता, आयोजन क्षमता और क्रिटिकल मास और परिप्रेक्ष्य को बनाए रखने के महत्व को ध्यान में रखते हुए जीडीआईए के भौतिक स्थान (स्थानों) पर सहमति व्यक्त की जा सकती है. ग्लोबल साउथ में उभरते बाज़ार जहां अधिकांश डीकार्बनाइज़ेशन रणनीतियों और परियोजनाओं को डी-रिस्किंग और फंडिंग के माध्यम से तेज़ करने की आवश्यकता है. एक आइडिया यह भी हो सकता है कि केंद्रीय संगठन को जी20 देशों में दो समानांतर मुख्यालय कार्यालयों में स्थित किया जाए, एक उत्तरी ‘फाइनेंस हब’ में और दूसरा एक प्रमुख उभरते बाज़ार के बीच. यह यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया द्वारा मान्यता प्राप्त देशों की ‘सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों’ की तर्ज़ पर हो सकता है.

जीडीआईए की सर्वोत्तम अभ्यासपद्धति: केंद्रीय जीडीआईए सचिवालय सर्वोत्तम अभ्यास डी-रिस्किंग रणनीतियों, संरचनाओं, मानकों और सुविधाओं का एक विश्व स्तरीय समन्वय केंद्र हो सकता है जो डी-रिस्किंग केंद्रों की सहायता करेगा और जिसके ज़रिए व्यक्तिगत उभरते बाज़ार अन्य देशों में स्थापित किए जा सकते हैं. ऐसे डी-रिस्किंग केंद्र संबंधित देश की संघीय कार्यकारिणी के सहयोग से, उस देश की डीकार्बनाइज़ेशन प्राथमिकताओं और एनडीसी के अनुरूप स्थापित किए जा सकते हैं. (प्रत्येक डी-रिस्किंग केंद्र संभवतः एक सलाहकार परिषद स्थापित कर सकता है जिसमें योजना प्राधिकरण, घरेलू विकास, वित्त और संस्थान जैसे हितधारक शामिल होंगे) जीडीआईए एक वैश्विक केंद्र होगा जो दुनिया भर से सीखी गई सर्वोत्तम प्रैक्टिस के आधार पर विभिन्न संभावित विषयों में घरेलू डी-रिस्किंग केंद्रों की सहायता और समर्थन करेगा:

सभी मामलों में  स्थानीय डी-रिस्किंग केंद्रों को न  केवल जीडीआईए की विशेषज्ञता से लाभ उठाने के लिए बल्कि नॉलेज शेयरिंग करने और को-इनोवेट करने के लिए भी समान भागीदार माना जाएगा. स्थानीयकरण द्वारा मानकीकरण को संतुलित किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, जीडीआईए के केंद्रीय कार्यों में से एक जोख़िम-रहित रणनीतियों, मानकों, प्रैक्टिस और सिस्टम पर सर्वोत्तम प्रैक्टिस पर शोध करना होगा. जीडीआईए का लक्ष्य स्थानीय लचीलेपन और ज़रूरतों का लाभ उठाने के लिए राष्ट्रीय जोख़िम निवारण केंद्रों के साथ काम करके विश्व स्तरीय बेस्ट प्रैक्टिस को प्रासंगिक बनाना होगा.

एमडीबी, डीएफआई और आईएनजीओ के साथ समन्वय: जीडीआईए और स्थानीय डी-रिस्किंग केंद्र दोनों एमडीबी, डीएफआई और आईएनजीओ के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर समन्वय मंच सुनिश्चित कर सकते हैं. सभी मामलों में, रणनीति बेस्ट प्रैक्टिस को कोऑर्डिनेट करने की होगी ना कि उन्हें दोहराने की. ऐसे संस्थान न  केवल वित्तीय जोख़िम-मुक्त समर्थन का स्रोत हो सकते हैं, बल्कि उनके पास साझा करने और लाभ उठाने के लिए पर्याप्त और समृद्ध राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और बहु-हितधारक जोख़िम-मुक्त अनुभव और विशेषज्ञता भी है.

आख़िरकार जीडीआईए ईएमडीई में निजी पूंजी जुटाने की प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने में एक मौलिक भूमिका निभा सकता है – और इस उद्देश्य के लिए उपयुक्त डी-रिस्किंग टूल और बेहतर परियोजना तैयारी का उपयोग करके ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निवेश को अनलॉक करने के लिए जी20 के भीतर गति और नेतृत्व का निर्माण कर  सकता है. ईएमडीई नेतृत्व के साथ साझेदारी में डिज़ाइन और विकसित किया गया, इसमें एक अहम कमी को पूरा किया जाना है जिससे बड़े प्रभाव की संभावना बन सकती है.


Attribution: Uday Khemka, Aaran Patel and Katherine Stodulka, “The Green Development and Investment Accelerator: Promoting Investable Green Infrastructure Projects,” T20 Policy Brief, June 2023.


Endnotes

[a] The Khemka Foundation, of which two authors of this Policy Brief are representatives, is a founding member of the Collective for Clean Transport Finance.

[b] Other organisations part of the Collective for Clean Transport Finance include UNEP, UITP the World Bank, the Smart Freight Centre, the ZEV-TC.

 

[1] Amar Bhattacharya, Vera Songwe, Nicholas Stern, “Finance for climate action: Scaling up investment for climate and development,” Grantham Research Institute on Climate Change and the Environment, London School of Economics and Political Science, 2022.

[2] Bhattacharya, “Finance for climate action”

[3] International Energy Agency, “World Energy Investment 2023”, 2023.

[4] Baysa Naran, Jake Connolly, Paul Rosane, et al, “Global Landscape of Climate Finance: A Decade of Data,” Climate Policy Initiative, 2022.

[5] International Energy Agency, “World Energy Investment 2023”

[6] Naran, “Global Landscape of Climate Finance: A Decade of Data”

[7] OECD, “Tri Hita Karana Roadmap for Blended Finance: Blended Finance & Achieving the Sustainable Development Goals”.

[8] Naran, “Global Landscape of Climate Finance: A Decade of Data”

[9] Bhattacharya, “Finance for climate action”