टास्क फोर्स 7: टूवर्ड्स रिफॉर्म्ड मल्टीलेटरलिज़्म: ट्रांसफॉर्मिंग ग्लोबल इंस्टीट्यूशंस एंड फ्रेमवर्क्स
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के विवाद निपटारा तंत्र में मज़बूती लाना, WTO के कई सदस्य देशों (G20 के सदस्यों समेत) की प्राथमिकता में है. पहले से ज़्यादा प्रभावी अपीलीय निकाय की दोबारा स्थापना के ज़रिए इस दिशा में आगे बढ़ने का लक्ष्य है. वैसे तो सदस्य देशों के बीच व्यापार को लेकर विवादों का निपटारा करने के लिए साल 1995 में अपीलीय निकाय की स्थापना की गई थी, लेकिन साल 2020 में आख़िरी सदस्य के कार्यकाल की समाप्ति के बाद इस निकाय का अस्तित्व प्रभावी रूप से ख़त्म हो चुका है. तब से ही अमेरिका ने सभी नई नियुक्तियों के रास्ते में अड़चनें लगा रखी हैं. बहरहाल, अपीलों की सुनवाई को लेकर बहुपक्षीय रूप से स्वीकार्य अपीलीय निकाय की अक्षमता के चलते अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के लक्ष्यों में ज़बरदस्त कमज़ोरी आ जाती है. ग़ौरतलब है कि पूर्वानुमान लगाए जाने योग्य (predictable), बहुपक्षीय, ग़ैर-पक्षपातकारी और पारदर्शी व्यवस्था की स्थापना ही, शुरूआत से इस क़वायद का लक्ष्य होता है. G20 के अनेक सदस्य देशों ने अपीलीय निकाय में सुधार या उनके दोबारा निर्माण से जुड़े प्रस्ताव पेश किए हैं. हालांकि इनमें से किसी भी प्रयास के नतीजतन सुधार को लेकर पर्याप्त सर्वसम्मति नहीं बन पाई है. ये पॉलिसी ब्रीफ मौजूदा प्रस्तावों की मदद से प्रक्रियागत और भारी-भरकम सुधारों की रूपरेखा तैयार करता है, जो बदलती संस्थागत ज़रूरतों के हिसाब से सटीक हैं. साथ ही जलवायु और विकास को लेकर उभरती चिंताओं से निपटने के लिए नियामक मोर्चे पर लचीलेपन की भी छूट देते हैं.
अमेरिका ने कुछ निश्चित प्रक्रियागत और अहम मसलों का हवाला देकर साल 2017 से ही WTO अपीलीय निकाय में सभी नियुक्तियों पर अड़ंगे लगा रखे हैं. इनका निपटारा किए जाने की ज़रूरत है. अमेरिका ने अन्य सदस्य देशों द्वारा प्रस्तावित तमाम सुधारों को भी ख़ारिज कर दिया है. साथ ही कुछ संचारों में ऐेसे संकेत भी दे डाले हैं कि वो अपील दायर किए जाने को लेकर अपीलीय निकाय व्यवस्थाओं को ही पूरी तरह से ख़त्म करने की इच्छा रखता है. वो मौजूदा व्यवस्था की बजाए, नए जनादेश और नए नियमों के तहत एक नया निकाय तैयार करने का इरादा रखता है.[i] पिछले वर्षों में WTO के अन्य सदस्यों ने भी अपीलीय निकाय के जनादेश और कामकाज को लेकर चिंताएं जतानी शुरू कर दी थीं. इससे परिचर्चाओं और सुधारों से जुड़े प्रस्तावों का दौर शुरू हो गया.
अपीलीय निकाय, विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटारा तंत्र का केंद्रीय तत्व है. ये बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को सुरक्षित करने और उनको पूर्वानुमान लगाए जाने के योग्य बनाने (predictability) का इरादा रखता है. ऐसे तंत्र की ग़ैर-मौजूदगी में व्यापार नियमों को लागू करने की क़वायद, ताक़त पर आधारित प्रक्रिया बन जाती है. दुनिया के ताक़तवर देश व्यापार के मोर्चे पर एकतरफ़ा रूप से बदले की कार्रवाइयां करते हैं. ये हालात दीर्घकाल में किसी भी देश के राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं हैं. चूंकि अपीलीय निकाय आभासी तौर पर मृत हो चुका है, लिहाज़ा WTO का कोई भी सदस्य महज़ एक अपील दायर करके पैनल रिपोर्ट के क्रियान्वयन के रास्ते में अड़ंगे लगा सकता है. दरअसल, अमेरिका ने तो खुलकर ये कहा है कि अमेरिकी स्टील सीमा शुल्क[ii] के मामले में वो अपनी अपील के साथ ऐसा ही कर रहा है. वो पैनल रिपोर्ट की अपीलीय समीक्षा की उम्मीद नहीं कर रहा, बल्कि केवल एक नई प्रणाली की आशा कर रहा है, जो पैनल के मौलिक फ़ैसले को या तो ख़ारिज कर देगा या पलट देगा.[iii]
टेबल 1, 2017 के बाद विवाद निपटान प्रणाली पर विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों की घटती निर्भरता को प्रदर्शित करता है. यही वो साल था जब अपील निकाय के सदस्यों का कार्यकाल पूरा होना शुरू हो गया था. इस संदर्भ में ख़ासतौर से ग़ौर किए जाने वाली बात ये है कि 2020 में परामर्शों के लिए आने वाले अनुरोधों की संख्या में भी अचानक कमी आ गई. a
टेबल 1. विवाद निपटारा प्रक्रिया जुड़ाव (2017-2023)
विवाद निपटान प्रक्रिया के चरण | 2017 | 2018 | 2019 | 2020 | 2021 | 2022 | 2023 | कुल |
परामर्श के लिए अनुरोध | 17 | 38 | 20 | 5 | 9 | 8 | 1 | 98 |
तैयार किए गए पैनल | 8 | 11 | 29 | 10 | 5 | 6 | 2 | 71 |
प्रसारित की गई पैनल रिपोर्ट | 9 | 11 | 11 | 5 | 7 | 9 | 0 | 52 |
प्रसारित की गई अपीलीय निकाय की रिपोर्ट | 5 | 4 | 5 | 3 | 0 | 0 | 0 | 17 |
स्रोत: विश्व व्यापार संगठन: विवाद निपटारा[iv]
वैसे तो WTO के सदस्य देशों ने अपीलीय निकाय/विभाग (या और सामान्य रूप से कहें तो WTO में विवाद निपटारे से जुड़े समझौते यानी DSU) में सुधार की मांग की है, लेकिन अपीलीय निकाय की उचित भूमिका और व्याख्या करके लिए जाने वाले निर्णयों पर जारी मतभेद, समाधान में बाधा बने हुए हैं. इस बीच, यूरोपीय संघ ने कई अन्य देशों के साथ मिलकर DSU के आर्टिकल 25 के अनुसार बहु-पक्षीय अंतरिम अपील व्यवस्था (MPIA) को सामने रखा है. इसके तहत किसी प्रकार के विवाद में शामिल पक्षों द्वारा समझौते पर तात्कालिक और अस्थायी रूप से (ad-hoc) मध्यस्थता की छूट दी गई है.[v] MPIA ने पहले ही अपीलों पर सुनवाई शुरू कर दी है, हालांकि इसकी सदस्यता 53 देशों तक सीमित है.[vi] टेबल 2 में MPIA के भीतर की मौजूदा गतिविधि को दर्शाया गया है.
टेबल 2. MPAI: गतिविधि का सार
MPAI में विवाद की स्थिति या दर्जा | विवादों की संख्या |
अंतिम रूप दिया गया | 2 |
मौजूदा समय में जारी | 8 |
बग़ैर अपील के अंतिम रूप दिया गया, वापस लिया गया या निपटारा किया गया | 3 |
स्रोत: जिनेवा ट्रेड प्लेटफॉर्म, “MPIA”[vii] https://wtoplurilaterals.info/plural_initiative/the-mpia/G20
G20 के सदस्य देशों (जो WTO के भी सदस्य हैं) को गतिरोध का हल निकालने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है. इसके लिए अमेरिका की सभी चिंताओं की सावधानीपूर्वक पड़ताल किए जाने की दरकार है. इस कड़ी में सुधार के ऐसे स्पष्ट प्रस्ताव पेश किए जाने चाहिए, जिनमें हरेक चिंता का हल करने या उनको समायोजित करने के लिए कार्रवाई योग्य (actionable) तरीक़े रेखांकित किए गए हों! इस पॉलिसी ब्रीफ में शामिल प्रस्ताव DSU और संबंधित कार्य प्रक्रियाओं में प्रस्तावित प्रक्रियात्मक संशोधनों पर ज़ोर देते हैं. लेखक इस बात को स्वीकार करते हैं कि ये प्रक्रियात्मक संशोधन ज़बरदस्त मायने रखते हैं. लिहाज़ा इस क़वायद को सुधार प्रस्तावों के एक बड़े समूह के तहत आगे बढ़ाया जाना चाहिए, जिससे WTO के कई समझौतों का निपटारा हो सकेगा. वैसे तो बाद का ये मसला इस पॉलिसी ब्रीफ के दायरे से परे है, लेकिन लेखकों का तर्क है कि स्पष्ट जनादेश और प्रक्रियागत बचावकारी उपायों से लैस संशोधित अपीलीय निकाय, व्यापार विवादों के बदलते स्वभाव वाले मौजूदा वातावरण में ज़्यादा माकूल साबित होंगे. ग़ौरतलब है कि आज दुनिया अनेक प्रकार के संकटों का सामना कर रही है. जलवायु परिवर्तन और भूराजनीतिक रुकावटें उन्हीं चुनौतियों में शामिल हैं.
‘वैश्विक अर्थव्यवस्था की संचालन समिति’ के रूप में G20 ने बार-बार WTO में सुधार लाए जाने का आह्वान और समर्थन किया है. इसमें अपीलीय निकाय तंत्र की समीक्षा का मसला भी शामिल है. G20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के साथ-साथ व्यापार मंत्रियों के बयानों में भी ये मसला उभरकर सामने आया है. साल 2020 में अपीलीय निकाय के अंतिम सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने के बाद तो ये मुद्दा ख़ासतौर से उभरकर सामने आया है.[viii]
वैसे तो विश्व व्यापार संगठन की कुल सदस्यता में G20 का हिस्सा छोटा है, लेकिन इसके सदस्य, दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. समूह के देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 80 प्रतिशत से अधिक और वैश्विक व्यापार के 75 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से की नुमाइंदगी करते है. यहां दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी निवास करती है.[ix] इतना ही नहीं, विश्व व्यापार संगठन, G20 में स्थायी रूप से आमंत्रण प्राप्त संस्था है. दोनों निकाय नियम-आधारित, ग़ैर-भेदभावपूर्ण, स्वतंत्र, निष्पक्ष, खुले, समावेशी, न्यायसंगत, टिकाऊ और पारदर्शी बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली तैयार करने और बनाए रखने के लिए मिलकर काम करते हैं. WTO के महानिदेशक G20 शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं. वो अक्सर G20 को उन मुद्दों पर परिचर्चा करने और समाधान उपलब्ध कराने के लिए बुलाते हैं, जिन्हें केवल G20 देशों के साथ ही नहीं, बल्कि WTO के सभी 164 सदस्यों के साथ सहमति से लागू किया जाना होता है.
G20, सीधे तौर पर सुधार को प्रभावित नहीं कर सकता. हालांकि ये WTO अपीलीय निकाय के सुधार से जुड़े मसले को आगे बढ़ाने के लिए WTO के साथ सहयोग कर सकता है. बेंचमार्क और दिशानिर्देश तय करके इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. WTO के सदस्य आम सहमति बनाने की दिशा में बचावकारी उपाय के रूप में G20 की सिफ़ारिशों पर भरोसा कर सकते हैं. इस कड़ी में G20 अपने व्यापार और निवेश कार्य समूह (G20 T&I WG) को मौजूदा प्रस्तावों के साथ-साथ इस पॉलिसी ब्रीफ में शामिल सिफ़ारिशों के अनुरूप, निष्पक्ष और नियम-आधारित अपीलीय निकाय सुधार के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का जिम्मा सौंप सकता है.
एक बार G20 देशों में आपसी सहमति बन जाने पर वो समान विचारधारा वाले देशों का गठबंधन बनाने के लिए राजनयिक माध्यमों के ज़रिए ग़ैर-G20 देशों से भी संपर्क साध सकते हैं. आर्थिक और व्यापारिक मुद्दों से संबंधित अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तावित दिशानिर्देश पेश करने के लिए ऐसी क़वायद की जा सकती है. इस सिलसिले में G15, G33 और G77 के सदस्य देशों से संपर्क स्थापित किया जा सकता है. इनके सदस्य लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों से हैं, लेकिन वे G20 का हिस्सा नहीं हैं.
इन दिशानिर्देशों को फरवरी 2024 में प्रस्तावित WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) में भी परिचर्चा के लिए पेश किया जा सकता है।
संशोधित अपीलीय निकाय को कुछ मार्गदर्शक सिद्धांतों के साथ तैयार किया जाना चाहिए, जिनका ब्योरा नीचे है:
इन प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए अपीलीय निकाय की कार्यप्रणाली में सुधारों की एक पूरी श्रृंखला को अंजाम दिए जाने की दरकार है. इस प्रकार इस तंत्र की वैधानिकता बढ़ेगी और इसकी प्रभावशीलता में सुधार आ सकेगा. अमेरिका और अन्य देश WTO के तमाम सदस्यों को पिछले कई वर्षों के गतिरोध से निजात दिलाने के लिए बंद दरवाज़े में और हितों पर आधारित परिचर्चाओं में लगे हुए हैं.[x] इन संवादों से विभिन्न दृष्टिकोणों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली है. अमेरिका निकट भविष्य में संशोधित अपीलीय निकाय के लिए एक व्यापक प्रस्ताव प्रस्तुत कर दे, इस लक्ष्य के साथ G20 के देशों को (जहां तक संभव हो) इन चर्चाओं में शामिल रहना चाहिए. सफल सुधार के लिए अन्य G20 देशों द्वारा उठाए गए बकाया मुद्दों की भी सावधानीपूर्वक जांच किए जाने की दरकार है. इस तरह, प्रस्तावित समाधानों की श्रृंखला G20 नेताओं के विचार के लिए कार्रवाई-योग्य (actionable) सिफ़ारिशें बन सकेंगी.
WTO के कई सदस्यों ने अपीलीय निकाय के जनादेश और प्रक्रिया को लेकर चिंताएं जताई हैं. अफ्रीकी समूह[xi] और यूरोपीय संघ की अगुवाई वाले MPIA की ओर से दी गई प्रस्तुतियों ने कुछ चिंताओं को दूर करने का प्रयास किए हैं, लेकिन वो WTO के सभी सदस्यों की रज़ामंदी का जुगाड़ नहीं कर पाए हैं. ये पॉलिसी ब्रीफ, T&I WG के दिशानिर्देशों के ज़रिए आगे की सिफ़ारिशों की रूपरेखा पेश करता है, जिन पर G20 समूह विचार कर सकता है:
वैसे तो DSU की भाषा अपीलीय निकाय द्वारा अपीलीय समीक्षा में लगाए गए वक़्त की मियाद को 90 दिनों तक सीमित करती है, लेकिन उस समय-सीमा का शायद ही कभी पालन होता है.[xii] इस मुश्किल के नतीजतन विवादों के समाधान में देरी होती है और अनसुलझे अपीलों का बैकलॉग बढ़ता जाता है. समय-सीमा को पूरा करने में विफलता, निकाय के लिए उपलब्ध मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी का नतीजा हो सकती है, या फिर (जैसा कि WTO के कुछ सदस्यों को संदेह है) यह अपीलीय निकाय द्वारा कई तरीक़ों से अपने जनादेश से आगे निकल जाने की घटनाओं का भी परिणाम हो सकती है.[xiii]
नीचे दी गई सिफ़ारिशें (तीसरी से पांचवीं) देरी के इन संभावित स्रोतों को निपटारा करती हैं. हालांकि, ये खंड इस सुझाव के साथ शुरू होता है कि G20 अपीलीय निकाय के सदस्यों के लिए विवादों पर फ़ैसला करते वक़्त, स्पष्ट समय रेखा की सिफ़ारिश करे. G20 को एक समय रेखा नियम का समर्थन करना चाहिए जो अपीलीय निकाय को एकतरफ़ा रूप से समय सीमा बढ़ाने की छूट देने की बजाए संबंधित पक्षों के निर्णयों को स्वीकार करता हो. (आर्टिकल 17.5 और 20 में प्रस्तावित संशोधन देखें).
इससे जुड़ी एक और चिंता ये है कि अपीलीय निकाय के भूतपूर्व सदस्य, कार्यकाल पूरा होने के बाद भी अपने लिए नियत किए गए मामलों पर लंबे समय तक काम करते रहते हैं. वैसे तो DSU कार्यकाल की स्पष्ट सीमाएं बताता है, और कार्य प्रक्रियाएं अपीलीय समीक्षा को पूरा करने में मदद करने के लिए उस कार्यकाल के विस्तार को लेकर तंत्रों की रूपरेखा तैयार करती हैं, लेकिन लंबी समयसीमाएं और लचीले तंत्र के नतीजतन अपीलीय निकाय के सदस्य अपना कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद भी लंबे समय तक जमे रहते हैं. इस समस्या का हल करने के लिए DSU और कार्य प्रक्रियाओं को संशोधित किया जाना चाहिए. इस तरह किसी सदस्य के कार्यकाल को बढ़ाने से जुड़ी घटनाओं को सीमित किया जा सकेगा. साथ ही कार्यकाल विस्तार से जुड़ी इक्का-दुक्का मिसालों के दायरों को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए. इस कड़ी में DSB द्वारा एक निरीक्षण तंत्र भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए. (आर्टिकल 17.2 और कार्य प्रक्रियाओं के नियम 15 में प्रस्तावित संशोधन देखें).
हाल के वर्षों में अपीलीय निकाय को ऐसे सदस्यों की कमी का सामना करना पड़ा है जो एक निश्चित समय-सीमा में मामलों का निर्णय ले सकते थे. हालांकि जब उसके पास स्टाफ़ की पूरी ताक़त थी तब भी उसे अपने केसलोड में समय सीमा को पूरा करने में कठिनाई होती थी. एक और बात, DSB में दोबारा नियुक्त होने के लिए सदस्यों को DSB से सर्वसम्मत मत हासिल करने की दरकार होती है. ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया ने अपीलीय निकाय के सदस्यों और उनकी निर्णय प्रक्रिया को गुपचुप राजनीतिक दबाव की ओर बेपर्दा कर दिया है. इस तरह उनकी अपेक्षित राजनीतिक स्वायत्तता कमज़ोर पड़ गई है. G20 को इन बाधाओं को दूर करने के लिए कई कार्रवाइयां करनी चाहिए. मिसाल के तौर पर अपीलीय निकाय के सदस्यों की संख्या का विस्तार किया जाना चाहिए, ऐसे सदस्यों के कार्यकाल बढ़ाए जाने चाहिए, दोबारा नियुक्तियों की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए, और नियुक्ति को पूर्णकालिक पद (अंशकालिक यानी पार्ट-टाइम की बजाए) बनाया जाना चाहिए (आर्टिकल 17.2 में प्रस्तावित संशोधन देखें).
जब अपीलीय समीक्षा में बहुत ज़्यादा देरी होती है, तब एक चिंता उत्पन्न होती है. वो चिंता ये है कि अपीलीय निकाय उस तंग जनादेश के परे चला गया है, जिसके लिए इसे बनाया गया था- यानी पैनल द्वारा विश्लेषित और तैयार क़ानून और क़ानूनी व्याख्याओं के मुद्दों की समीक्षा करना (DSU आर्टिकल 17.6). एक अहम चिंता ये रही है कि क्या WTO सदस्य देशों के घरेलू क़ानूनों की व्याख्याएं “मुद्दे या क़ानून” या “तथ्यात्मक मुद्दे” का निर्माण करते हैं. ज़ाहिर है कि उनकी विशेषज्ञता, घरेलू क़ानूनी व्याख्याओं में निहित नहीं है, ऐसे में अपीलीय समीक्षा को तंग बनाए रखने के लिए G20 को नए नियमों के प्रारूप तैयार करने की क़वायद का समर्थन करना चाहिए. ये नियम उस संकीर्ण दायरे को स्पष्ट करने वाले होने चाहिए. साथ ही WTO के सदस्य देशों के ख़ुद के क़ानूनों को समझने के लिए उन सदस्यों को उचित सम्मान देने वाले होने चाहिए. (आर्टिकल 17.6 और 17.6bis में प्रस्तावित संशोधन देखें).
WTO के सदस्यों ने शिकायत की है कि अपीलीय निकाय की रिपोर्टों में कभी-कभी ऐसे मुद्दे उठा लिए जाते हैं जो विवाद के समाधान के लिए तत्काल आवश्यक नहीं होते. सक्रिय विवाद से संबंधित दायरे के बाहर व्याख्यात्मक बयान देकर, या WTO के अन्य निकायों को ऐसे निर्देश देकर कि विवाद के ऊपर उन्हें क्या कार्रवाई करनी चाहिए, इस तरह के ग़ैर-तात्कालिक मसले उठाए जाते हैं. G20 को बचावकारी उपायों को स्पष्ट करने के प्रयासों का समर्थन करना चाहिए, ताकि इस तरह के अप्रासंगिक विश्लेषण और ग़ैर-ज़रूरी निर्देश जारी किए जाने की क़वायद कम से कम हों (आर्टिकल 3.2 में प्रस्तावित संशोधन देखें).
ऊपर बताए गए उपायों के साथ-साथ कुछ अन्य क़दम अपीलीय निकाय की संरचनात्मक विश्वसनीयता को और मज़बूत करेंगे. इनमें समयसीमा के इर्द-गिर्द स्पष्ट दिशानिर्देश (सिफ़ारिश 1), बढ़े हुए वित्तीय और मानव संसाधन (सिफ़ारिश 3), और प्रतिवादी (respondent) राज्यसत्ताओं के ख़ुद के क़ानूनों के प्रति सम्मान (सिफ़ारिश 4) शामिल हैं. इस सिलसिले में यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि अपीलीय निकाय की रिपोर्टों में केवल “विवाद के समाधान के लिए आवश्यक” क़ानूनी व्याख्या की इजाज़त है, इस हद तक इस क़वायद को आगे बढ़ाया जाना चाहिए कि अगर WTO का कोई सदस्य एक आधिकारिक व्याख्या की इच्छा रखता है, तो वो इसको लेकर अनुरोध करने के लिए संबंधित परिषद के पास जा सकें![xiv]
जवाबदेही को और बढ़ाने के लिए G20 के सदस्य देश एक नए तंत्र का प्रस्ताव करना चाह सकते हैं. एक ऐसा तंत्र, जो DSB को अपीलीय निकाय के काम पर फीडबैक या प्रतिक्रिया देने के लिए वार्षिक आधार पर स्थान मुहैया कराए. उस तंत्र की स्थापना में सदस्यों को, प्रदान किए जा सकने वाले फीडबैक के प्रकार, अपीलीय निकाय के भावी निर्णयों के लिए उस फीडबैक के पास मौजूद व्याख्यात्मक प्राधिकार और दिए गए फीडबैक को प्रस्तुत करने, अपनाने, स्वीकार करने और उपयोग करने की किसी भी प्रक्रिया पर विचार करना होगा.
WTO के कुछ सदस्यों ने महसूस किया है कि अपीलीय निकाय की कुछ व्याख्याएं सदस्यों के इरादों से मेल नहीं खाती हैं. इस प्रकार ये क़वायद अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत सदस्य द्वारा दी गई सहमति से परे चली जाती हैं.[xv] फिर भी कुछ परिस्थितियों में उन फ़ैसलों को बाध्यकारी मिसाल माना लिया जाता है. लिहाज़ा संबंधित पक्षों के “अधिकारों और दायित्वों में वृद्धि या कमी” हो जाती है.[xvi] वैसे कुछ मामले में परिणाम तय करने के लिए अतीत के मसले शिक्षाप्रद हो सकते हैं, लेकिन WTO समझौतों की व्याख्या की भूमिका आख़िरकार विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों की ही है, इस बात को ज़ेहन में रखना अहम है.
इन चिंताओं के निपटारे के लिए G20 को DSU के संशोधित टेक्स्ट का समर्थन करने पर विचार करना चाहिए. इसमें ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि पिछले मामले मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए हैं और उन्हें बाध्यकारी मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. G20 को यह भी सिफ़ारिश करनी चाहिए कि WTO के सदस्य देश, समय, भूगोल और आर्थिक क्षेत्रों में फैले मामलों की तुलना के लिए मानदंड उपलब्ध कराएं. इससे अपीलीय निकाय को ये तय करने में मदद मिलेगी कि अतीत के मामलों से जुड़े परिणामों को मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर कब और कैसे उपयोग में लाया जाना चाहिए (प्रस्तावित नया आर्टिकल 17.15 देखें).
व्यक्तिगत तौर पर G20 के देशों को भी घरेलू स्तर पर संस्थागत समर्थन बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए. साथ ही जहां संभव हो आस-पड़ोस के अल्प विकसित देशों को मदद भी पहुंचानी चाहिए. कुछ ऐसे देश भी हो सकते हैं जो विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र तक न्यायसंगत पहुंच बढ़ाने के लिए WTO की सदस्यता पर विचार कर रहे हों, ऐसे देशों की भी सहायता की जानी चाहिए. इन क़वायदों में WTO नियमों को समझने और व्याख्या करने के लिए मानव संसाधनों में सार्वजनिक निवेश के साथ-साथ घरेलू नीति-निर्माण पर व्यापार समझौतों के निहितार्थ को समझना शामिल हो सकता है.
इन बकाया मसलों और अपीलीय निकाय समीक्षा के लिए लंबित मामलों के चलते बैकलॉग पैदा हो गए हैं. G20 को इस बैकलॉग को दूर करने के लिए विभिन्न प्रस्तावों पर विचार करना चाहिए. इन प्रस्तावों में: (1) DSB द्वारा अपनाए जाने के लिए मौजूदा लंबित मामलों को प्रस्तुत करके अपीलीय समीक्षा पर अस्थायी छूट की शुरुआत करना; या (2) लंबित मामलों पर अधिक तेज़ी से फ़ैसले लेने को लेकर अस्थायी मियाद के लिए एक बड़े अपीलीय निकाय की नियुक्ति करना. इस दौरान G20 देशों को MPIA का बेहतरीन ढंग से उपयोग करना चाहिए. अपीलीय निकाय में सुधार से जुड़ी वार्ताओं के पूरा होने से पहले लंबित मामलों को निपटाने और मौजूदा विवादों को प्रणाली के माध्यम से आगे बढ़ाने की सुविधा मुहैया कराने के लिए इस क़वायद को अंजाम दिया जाना चाहिए.
ऊपर बताए गए प्रक्रियात्मक मुद्दों का अल्पावधि में समाधान किया जा सकता है. प्रक्रियात्मक मुद्दों पर आम सहमति, ठोस सुधार प्रस्तावों पर चर्चा करने के लिए देशों के बीच अधिक खुलापन भी ला सकती है. हालांकि यही अपने आप में पर्याप्त नहीं होगा. विवाद निपटान प्रक्रिया में सुधार और अपीलीय निकाय के दोबारा गठन के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति एक पूर्व-शर्त होगी.
WTO के सदस्यों ने चिंता जताई है कि वर्तमान में WTO समझौते, नीति निर्माण के लिए पर्याप्त लचीलापन उपलब्ध नहीं कराते हैं. ख़ासतौर से दुनिया और इसके संस्थानों की बदलती ज़रूरतों और व्यक्तिगत सदस्यों के जलवायु और विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी लचीलापन नहीं दिखाया जाता है. इन चिंताओं को दूर करने की क़वायद में G20 देशों को WTO सदस्यों से अपने सदस्यों के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर व्याख्यात्मक बयानों पर विचार करने का आग्रह करना चाहिए. मिसाल के तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा उपायों का दायरा और समीक्षा, ग़ैर-पक्षपातपूर्ण नियमों की व्यापक पहुंच, और प्रमुख समझौतों में शामिल प्रावधानों की व्याख्या. इन समझौतों में एंटी-डंपिंग क़रार और सब्सिडी और काउंटरवेलिंग पर समझौता शामिल हैं.
अपीलीय निकाय सुधार और कुल मिलाकर WTO में सुधार से जुड़ी क़वायद के रास्ते में शायद सबसे महत्वपूर्ण बाधा “विशिष्ट और भेदकारी बर्ताव” के महत्व के बारे में देशों (G20 के प्रमुख राष्ट्रों समेत) के बीच ग़लत तालमेल है. साथ ही कौन से देश (“विकासशील देश”) इस तरह का बर्ताव प्राप्त करने के योग्य हैं, ये भी स्पष्ट नहीं है. ये एक अहम समस्या है, जिसे DSU में मामूली संशोधनों के ज़रिए हल नहीं किया जा सकेगा. इसके निपटारे के लिए G20 देशों को पूरे भरोसे के साथ एक-दूसरे से वास्तविक रूप से जुड़ाव बनाना चाहिए, चर्चाओं को आगे बढ़ाना चाहिए और समाधान खोजने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहरानी चाहिए.
अपीलीय निकाय में नियुक्तियों को लेकर जारी गतिरोध का हल करने के लिए एक विस्तृत विश्लेषण की आवश्यकता है. ये देखना होगा कि मौजूदा प्रणाली ने WTO सदस्यों के हितों को कितनी अच्छी तरह से पूरा किया है. सुधार से जुड़ा आह्वान सिर्फ़ अमेरिका से ही नहीं, बल्कि WTO के कई अन्य सदस्य देशों (G20 के सदस्य भी) से भी आया है. इससे सुधार की ज़रूरत पहले से ज़्यादा पुख़्ता हो गई है.
इस मौक़े पर वार्ता के किसी भी परिणाम के लिए कई वैध दृष्टिकोणों को संतुलित करने की आवश्यकता होगी. ये देखना होगा कि अपीलीय निकाय को कैसे कार्य करना चाहिए. निश्चित रूप से ऐसी समीक्षा में प्रक्रियात्मक नियमों में संशोधनों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि बचावकारी उपाय मुहैया कराए जा सकें. इन उपायों में समय-सीमा के लिए स्पष्टीकरण, समीक्षा किए जाने वाले निर्णयों का दायरा और दूरंदेशी अपीलीय निकाय के लिए पूर्ववर्ती मामले के निर्णयों की भूमिका शामिल हैं. एक बार इन प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर कर लिए जाने पर ठोस सुधार को और अधिक मुमकिन बनाया जा सकेगा. सभी पक्षों में सद्भावना के साथ की गई वार्ता के ज़रिए ये कामयाबी हासिल की जा सकेगी.
आज के अनिश्चित दौर में विवाद निपटान प्रणाली पर एक समझौते तक पहुंच जाने से व्यापार पर बहुपक्षीय सहयोग को संरक्षित करने, और यहां तक कि उसे आगे बढ़ाने में काफ़ी मदद मिल सकती है. ऐसा समझौता, अनिवार्य, निष्पक्ष और लागू करने योग्य (enforceable) होना चाहिए. 2023 में भारत की अध्यक्षता के तहत G20 में इस सुधार प्रक्रिया पर केंद्रित रूप से और गंभीर चर्चा शुरू हो सकती है. अगले दो वर्षों में ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका में इन चर्चाओं को और आगे बढ़ाया जा सकेगा.
परिशष्ट
विवाद निपटान समझ और अपीलीय समीक्षा के लिए कार्य प्रक्रियाओं में प्रस्तावित शाब्दिक बदलावb
विवाद निपटान समझ[xvii]
अपीलीय समीक्षा के लिए कार्य प्रक्रियाए[xviii]
– ऐसा विस्तार किसी अपीलीय निकाय सदस्य के कार्यकाल की समाप्ति के बाद 90 दिनों से अधिक नहीं हो सकता है.
– किसी सदस्य के कार्यकाल के अंतिम 90 दिनों में, अपीलीय निकाय के सदस्यों को किसी भी नए मामले पर नहीं रखा जा सकता है.
– अपीलीय निकाय के सदस्यों के लिए अपने इस्तीफे से 90 दिन पहले नोटिस देना ज़रूरी होगा. उनके लिए नियत किसी भी अंतिम अपील को निपटाने के लिए ये मियाद रखी गई है. जहां यह संभव नहीं है, वहां उन्हें अपनी पेशेवर राय मुहैया करानी होगी और मामले का निपटान करने के लिए किसी अन्य सदस्य को सौंपना होगा ( सिफ़ारिश 1).
एट्रिब्यूशन: पूर्वजा मोदक और राचेल थ्रैशर, “ए फ्रेमवर्क फॉर ए रिफॉर्म्ड WTO अपिलिएट बॉडी,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
aपरामर्श के लिए आए सभी अनुरोध व्यक्तिगत मामलों में नहीं बदलेंगे. दरअसल कभी-कभी WTO समान तथ्यात्मक मसलों को कवर करने वाली शिकायतों को एक ही विवाद में जोड़ देता है. देखें विश्व व्यापार संगठन: विवाद निपटान, n. 4.
bDSU की सभी संशोधित भाषा और अपीलीय समीक्षा के लिए कार्य प्रक्रियाएं बोल्ड रूप से दर्शाई गई हैं.
cअधिक स्पष्टता के लिए यह लेख WTO पैनलों या अपीलीय निकाय को किसी भी ऐसे समझौते के प्रावधानों को स्पष्ट करने की छूट नहीं देता है जो सामने पेश किए गए विवाद के साथ प्रत्यक्ष रूप से प्रासंगिक हो.
[i] “Ambassador Katherine Tai’s Remarks As Prepared for Delivery on the World Trade Organization,” Office of the United States Trade Representative (USTR), October 2021, accessed March 24, 2023.
[ii] “DS564: United States – Certain Measures on Steel and Aluminium Products,” World Trade Organisation: Dispute Settlement, accessed March 24, 2023.
[iii] Alan Price, Robert E. DeFrancesco, Laura El-Sabaawi, Christopher B. Weld, and Adam M. Teslik, “United States Notifies Intent to Appeal WTO Panel Reports on Section 232 Steel and Aluminium”, Wiley Law, January 30, 2023; United States Trade Representative, “Statements by the United States at the meeting of the WTO Dispute Settlement Body,” January. 27, 2023, accessed May 8, 2023.
[iv] “Dispute settlement activity – some figures”, World Trade Organization: Dispute Settlement, accessed May 7, 2023.
[v] “WTO Dispute Settlement,” European Commission, accessed March 24, 2023; “Understanding on rules and procedures governing the settlement of disputes (DSU),” Article 25, World Trade Organization, accessed March 24, 2023.
[vi] European Commission, “WTO Dispute Settlement.”, accessed on March 24, 2023.
[vii] “Multi-Party Interim Appeal Arbitration Arrangement (MPIA),” Geneva Trade Platform, accessed May 7, 2023.
[viii] G20 Chair’s Summary and Outcome Document, First G20 Finance Ministers and Central Bank Governors Meeting, G20 Information Centre, University of Toronto.
[ix] Rosamund Hutt and Timothy Conley, “What is the G20”, World Economic Forum, November 15, 2022; “What is the G20”, Organisation for Economic Co-operation and Development (OECD), accessed May 7, 2023.
[x] Alan Price, Robert E. DeFrancesco, Laura El-Sabaawi, Christopher B. Weld, and Adam M. Teslik, “United States Notifies Intent to Appeal WTO Panel Reports on Section 232 Steel and Aluminium”, Wiley Law, January 30, 2023; USTR, “Statements by the United States.”
[xi] Communication from the African Group, “Appellate Body Impasse” (WT/GC/W/776), World Trade Organization, June 26, 2019, accessed March 24, 2023.
[xii] Congressional Research Service, “The World Trade Organization’s (WTO’s) Appellate Body: Key Disputes and Controversies,” CRS Report, July 22, 2021,.
[xiii] Congressional Research Service, “The WTO’s Appellate Body.,”
[xiv] “Marrakesh Agreement Establishing the World Trade Organization,” World Trade Organization, accessed on May 7, 2023.
[xv] Congressional Research Service, “The WTO’s Appellate Body.”
[xvi] Congressional Research Service, “The WTO’s Appellate Body;” “DSU,” Article 3.2.
[xvii] “DSU,” Article 20.
[xviii] “Working Procedures for Appellate Review” (WT/AB/WP/6), World Trade Organization, accessed March 24, 2023.