टास्क फोर्स 6: SDGs में तेज़ी लाना: 2030 एजेंडा के लिए नए रास्ते तलाशना
जैव विविधता यानी बायो-डायवर्सिटी के संरक्षण का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र के सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एक क्रॉस-कटिंग विषय है, अर्थात ऐसा मुद्दा है, जो समानता, स्थिरता और सुशासन जैसे सामान्य सिद्धांतों को कवर करता है. देखा जाए तो व्यवसाय या उद्योग जगत जैव विविधता के संरक्षण एवं जैव विविधता के नुक़सान को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर किए जा रहे प्रयासों को उल्लेखनीय तरीक़े से आगे बढ़ा सकता है. G20 देश योजनाबद्ध नीतिगत उपायों के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण में न केवल व्यावसायों एवं उद्योगों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकते हैं, बल्कि उन चीज़ों में भी अनुशासन ला सकते हैं, जो कहीं न कहीं प्रतीक के तौर पर या महज नाम के लिए की गई कॉरपोरेट कार्रवाइयों में तब्दील हो सकती हैं. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में पांच विशेष नीतियों का प्रस्ताव किया गया है, जो जैव विविधता संरक्षण के वैश्विक प्रयासों में व्यवसायों के लिए कारगर योगदान देने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं.
जैव विविधता का नुक़सान आज के दौर में पर्यवारण से जुड़ी सबसे जटिल चुनौतियों में से एक है, जिसे वैश्विक समुदाय को कार्रवाई के इस महत्त्वपूर्ण दशक में प्रभावशाली तरीक़े से संबोधित करने की ज़रूरत है. बड़े स्तनधारियों से लेकर सूक्ष्म जीवों तक, लगभग पांच लाख प्रजातियों के अगले कुछ दशकों में विलुप्त होने की आशंका है. [1] यदि इसे टाला नहीं गया, तो यह नुक़सान “पृथ्वी के इतिहास में विभिन्न प्रजातियों की छठी सबसे व्यापक स्तर वाली विलुप्ति की घटना होगी.” [2] इससे न केवल जलवायु परिवर्तन बढ़ेगा, खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी और मानव स्वास्थ्य के लिए ख़तरे में बढ़ोतरी होगी, बल्कि ग्रामीण और स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के साधन भी कम हो जाएंगे. ज़ाहिर है कि इनमें से बड़ी संख्या में लोग बेहद ग़रीबी के हालात में गुज़र-बसर करते हैं. [3] यह वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को भी उल्लेखनीय रूप से कम करने का काम करेगा, देखा जाए तो इसका आधा हिस्सा मध्यम या फिर अधिकतम स्तर तक जैव विविधता पर निर्भर है. [4] जैव विविधता नुक़सान के इस प्रकार के व्यापक और गहरे प्रभावों के मद्देनज़र जैव विविधता संरक्षण सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे के रूप में उभर कर सामने आया है. वर्ष 2023 की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ ग़रीबी, भूख, स्वास्थ्य, पानी, शहर, जलवायु, महासागर और भूमि से संबंधित 44 सतत विकास लक्ष्यों में से 35 SDGs पर प्रगति करने की हमारी क्षमता, जैव विविधता का और ज़्यादा नुक़सान होने से रोकने या फिर इसके मौज़ूदा स्तर को यूं ही बनाए रखने पर निर्भर करती है. [5]
उल्लेखनीय है कि जैव विविधता में होने वाले नुक़सान को रोकने के लिए नीतिगत उपायों से लेकर बाज़ार-आधारित प्रोत्साहनों तक कई तरह की पहलों को शुरू किया गया है, लेकिन देखा जाए तो जैव विविधता में होने वाले इस पतन को रोकना और उसका संरक्षण करना अब तक एक मुश्किल जद्दोजहद रही है. दिसंबर 2022 में यूएन कन्वेन्शन ऑन बॉयोलोजिकल डायवर्सिटी के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP) की 15वीं बैठक में अपनाए गए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायो-डायवर्सिटी फ्रेमवर्क (GBF) ने वास्तव में भविष्य के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करके आशाओं और आकांक्षाओं को प्रेरित करने का काम किया है. ख़ास तौर पर GBF ने निगरानी, योजना बनाने, संसाधन जुटाने, क्षमता निर्माण करने, सूचना साझा करने और वैश्विक सहयोग बढ़ाने के लिए एक सशक्त तंत्र पर बल दिया है. [6]
GBF के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को कार्रवाई योग्य प्रक्रियाओं में बदलने या ज़मीन पर उतारने में व्यवसायों या उद्योंगों की भूमिका बेहद अहम है. इसकी परिकल्पना दो प्रकार से की जा सकती है. [7] एक संभावना यह है कि उद्योगों या कंपनियों को ऐसे निष्क्रिय वित्तीय संसाधनों के मालिक के रूप में माना जाए, जिसका एक हिस्सा वे संरक्षण से जुड़े संगठनों को प्रदान कर सकते हैं, ताकि जैव विविधता संरक्षण के लिए चुनौतीपूर्ण वित्त पोषण अंतर को पाटने में मदद मिल सके. ज़ाहिर है कि वर्तमान में जैव विविधता संरक्षण के लिए वित्त पोषण अंतर सालाना 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. GBF के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने में व्यवसायों द्वारा निभाई जा सकने वाली दूसरी और शायद अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका जैव विविधता के अनुकूल व्यावसायिक प्रथाओं को अपनाना है और उन गतिविधियों को छोड़ना है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकती हैं. यह बाद वाला दृष्टिकोण GBF के टार्गेट 15 में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है, जो जैव विविधता के संरक्षण और वृद्धि में मदद करने के लिए व्यवसायों (विशेष रूप से, बड़ी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों और वित्तीय संस्थानों) को प्रोत्साहित करने और सक्षम करने के लिए क़ानूनी, प्रशासनिक एवं नीतिगत उपायों का आह्वान करता है.
G20 देशों में ऐसी कंपनियां, जिनका व्यावसायिक प्रथाओं अर्थात बिजनेस में अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रियाओं पर ख़ासा प्रभाव है, उनकी जैव विविधता के अनुकूल व्यावसायिक प्रक्रियाओं का ख़ाका तैयार करने की अगुवाई करने में विशेष ज़िम्मेदारी है. व्यापक रूप से हमारी सिफ़ारिश यह है कि जैव-विविधता के अनुकूल व्यवसाय प्रथाओं को औद्योगिक नीतियों के माध्यम से निर्देशित और नियंत्रित किया जाना चाहिए, जिसमें बाज़ार से जुड़े प्रोत्साहन केवल सहयोगी के रूप में काम करेंगे. यह सिफ़ारिश व्यवसाय की स्थिरता पर तमाम शोधों एवं दस्तावेज़ों की समीक्षा पर आधारित है, जो यह स्पष्ट रूप से बताती है कि बाज़ार-आधारित प्रोत्साहन दीर्घकालिक परिवर्तनकारी बदलाव लाने में नाक़ाम रहते हैं. [8] अधिकांश अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि सबसे अच्छे से अच्छे मामले में भी इस तरह के प्रोत्साहन सिर्फ़ चंद कंपनियों को पर्यावरणीय लीडर्स के रूप में उभरने में मदद करते हैं. यानी कि जो कंपनियां वास्तविक अर्थों में पर्यावरण के अनुकूल कार्य करती हैं और शायद ही कभी केवल दिखावे के लिए ही या फिर प्रतीक के तौर पर पर्यावरण अनुकूलन के लिहाज़ से किए जाने वाले कार्यों और अवसरवादी व्यवहार को प्रोत्साहित करती हैं. लेकिन जो कंपनियां दिखावे के लिए ऐसा करती हैं, ज़ाहिर सी बात है कि सबसे ख़राब स्थिति में वे इस तरह के प्रोत्साहन का फायदा उठा कर सीधे तौर पर धोखे और कॉर्पोरेट छल-कपट को भी जन्म दे सकती हैं. जैव विविधता संरक्षण पर प्रभावी और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता के मद्देनज़र बाज़ार की विफलताओं को जोख़िम में डालना समझदारी वाला रास्ता नहीं है. इसलिए, सिफ़ारिश ऐसी औद्योगिक नीतियां बनाने की है, जो उच्च नियामक मानदंड स्थापित करें और बाज़ार-आधारित पहलों के लिए संभावनाओं को पनपने दें.
निम्नलिखित पांच बिंदु नीतिगत उपायों की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं, जिन्हें G20 देशों द्वारा जैव विविधता संरक्षण में सार्थक व्यावसायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए अमल में लाया जा सकता है. ये उपाय न केवल जैव विविधता में गिरावट को रोकने के लिए व्यवसायों के व्यापक सामर्थ्य का पूरी तरह से दोहन करने में सक्षम बना सकते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि कमज़ोर समुदायों के हितों का भलीभांति संरक्षण किया जाए.
a.लाभदायक और अनुकूल निवेश नीतियां बनाएं एवं जैव विविधता को हानि पहुंचाने वाली सब्सिडियों पर रोक लगाएं
वैश्विक स्तर पर बायो-डायवर्सिटी फाइनेंस में बढ़ोतरी करना वर्तमान में बेहद ज़रूरी है. बायो-डायवर्सिटी फाइनेंस ऐसे ख़र्च होते हैं, जो सार्वजनिक और निजी दोनों स्रोतों से जैव विविधता के संरक्षण, उसके टिकाऊ उपयोग और जैव विविधता की बहाली में योगदान करते हैं. इस तरह के स्वैच्छिक निवेश की गति पहले से ही लगातार बढ़ रही है, साथ ही निवेशक एवं वित्तीय संस्थान अब जैव विविधता के नुक़सान को एक बड़ा निवेश जोख़िम मानते हैं. [9] इस प्रकार से देखा जाए तो एनवायरमेंटल और सोशल गवर्नेंस (ESG) इन्वेस्टमेंट फंड्स के ” E” घटक के अंतर्गत जैव विविधता एक प्रमुख मुद्दा बन गया है. [10] इसी प्रकार से जैव विविधता में सुधार, चाहे वो इसके संरक्षण या बहाली माध्यम से ही क्यों न हो, तेज़ी के साथ इम्पैक्ट फंड्स, ग्रीन बॉन्ड्स, सोशल बॉन्ड्स, स्टेनेबिलिटी बॉन्ड्स, स्टेनेबिलिटी-लिंक्ड बॉन्ड्स, हरित ऋण और स्थिरिता से संबंधित ऋणों जैसे पूंजी बाज़ार के साधनों का एक प्रदर्शन मापदंड बनता जा रहा है. [11] आम तौर पर कारोबारों या उद्योगों और ख़ास तौर पर निवेश समुदाय के बढ़ते फोकस के बावज़ूद, जैव विविधता संरक्षण देखा जाए तो अभी भी बड़े पैमाने पर, क़रीब 85 प्रतिशत सार्वजनिक स्रोतों के ज़रिए वित्तपोषित है. जबकि इसमें निजी वित्तपोषण का योगदान सिर्फ़ 15 प्रतिशत है. [12] यह पॉलिसी ब्रीफ़ वित्तपोषण के इस असंतुलन को समाप्त करने के लिए G20 देशों के लिए दो नीतिगत सिफ़ारिशों को प्रस्तुत करता है. सबसे पहले, जैव विविधता वित्त उपायों को सस्टेनेबल ब्लू फाइनेंस यानी टिकाऊ नीले वित्त (समुद्री अर्थव्यवस्था में निवेश) के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए. बायो-डायवर्सिटी फाइनेंस का मौज़ूदा फोकस मुख्य रूप से स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर है, जबकि समुद्री जैव विविधता में जो विशाल क्षमता और अवसर हैं, काफ़ी हद तक उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है और न ही उनका उपयोग किया गया है. [13] दूसरी सिफ़ारिश यह है कि जैव विविधता वित्त की निगरानी और विनियमन एक वैश्विक वर्गीकरण प्रणाली के ज़रिए किया जाना चाहिए. ऐसा करना विभिन्न नियम-क़ानूनों और शर्तों को लेकर साझा समझ विकसित करने में मददगार साबित होगा. टिकाऊ गतिविधियों को लेकर यूरोपियन यूनियन (EU) का क्लासीफिकेशन सिस्टम, जिसे ईयू टैक्सोनॉमी (EU Taxonomy) के तौर पर भी जाना जाता है, वैश्विक स्तर पर ऐसी प्रणाली को स्थापित करने के लिए एक ज़रूरी टेम्पलेट या नमूना हो सकता है. यह जैव विविधता संरक्षण से संबंधित अलग-अलग प्रथाओं, उपायों और मार्गदर्शक सिद्धांतों में मेलजोल स्थापित करेगा. इस सबके अलावा, जैव विविधता संरक्षण के लिए पूंजी निवेश बढ़ाने का एक तीसरा रास्ता कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी यानी कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) ख़र्च के माध्यम से हो सकता है. ख़ास तौर पर देशों (जैसे कि भारत में) में CSR ख़र्चों का मार्गदर्शन करने के लिए एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के साथ.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की स्टेट ऑफ फाइनेंस फॉर नेचर (2022) रिपोर्ट के मुताबिक़ पर्यावरण के लिहाज़ से हानिकारक सब्सिडी को लेकर जो भी सरकारी ख़र्च किया जाता है, वह प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन करने वाले सार्वजनिक एवं निजी निवेशों की तुलना में तीन से सात गुना ज़्यादा है. [14] जीवाश्म ईंधन, कृषि, मत्स्य पालन और वानिकी समेत कई उद्योगों को सब्सिडी दी जाती है, लेकिन यह सब्सिडी यहीं तक सीमित नहीं हैं, यह साथ ही साथ उन प्रथाओं को भी बढ़ावा देती हैं, जो बायो-डायवर्सिटी को नुक़सान पहुंचाती हैं. [15], [16] , [17] GBF इस परिस्थिति को विपरीत दिशा में मोड़ने का आह्वान करता है, साथ ही सरकारों से आग्रह करता है कि “वर्ष 2025 तक इस प्रकार की सब्सिडी की पहचान करें और जैव विविधता के लिए हानिकारक सब्सिडी समेत इस तरह के विभिन्न प्रोत्साहनों को अनुपातिक, उचित, निष्पक्ष, प्रभावी एवं न्यायोचित और चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करें या फिर इनमें सुधार लाने का काम करें.” [18] हालांकि यह जो सोच और इच्छा है, वर्तमान में इसका हक़ीक़त से कोई लेनादेना नहीं है. आज की हक़ीक़त यह है कि पूरी दुनिया के केवल सात देशों ने नकारात्मक सब्सिडी की पहचान करने के लिए प्रयास किए हैं. [19] इस पॉलिसी ब्रीफ़ में यह सिफ़ारिश की जाती है कि G20 देश जैव विविधता को नुक़सान पहुंचाने वाली सब्सिडी या प्रतिकूल सब्सिडी की पहचान करने और उसे समाप्त करने में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका का प्रदर्शन करें, साथ ही इस पूरी प्रक्रिया में ऐसे नए-नए वित्तीय तंत्रों को विकसित करें, जो सामाजिक-आर्थिक विकास की ज़रूरत को लेकर संवेदनशील हों.
b.मैन्युफैक्चरिंग एवं इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए स्थलों के चुनाव को विनियमित करें
उद्योगों एवं कंपनियों को जैव विविधता संरक्षण के अधिक प्रभावी उपायों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सरकारों को बॉयो-डायवर्सिटी के नज़रिए से अहम क्षेत्रों के संरक्षण के लिए विनिर्माण एवं बुनियादी ढांचे के विकास हेतु स्थानों के चयन को बेहद कड़ाई के साथ विनियमित करने पर विचार करना चाहिए. इसके लिए हाई कंज़र्वेशन वैल्यू यानी उच्च संरक्षण मूल्य (HCV) की स्थापित प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. HCV दृष्टिकोण छह श्रेणियों के आधार पर संरक्षण मूल्य की पहचान करता है: प्रजातियों की विविधता, प्राकृतिक परिदृश्य के अनुरूप पारिस्थितिकी तंत्र, इकोसिस्टम और प्राकृतिक आवास, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं, सामुदायिक आवश्यकताएं और सांस्कृतिक मूल्य. [20] हालांकि, इस दृष्टिकोण को पहले से ही व्यापक तौर पर कार्यान्वित किया गया है और ख़ास तौर पर वानिकी और कृषि के लिए इसको लेकर टूलकिट्स भी विकसित किए गए हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि अभी भी विभिन्न देशों और कंपनियों में इसे लागू करने के तौर-तरीक़ों में तमाम विसंगतियां हैं. किसी क्षेत्र की कंज़र्वेशन वैल्यू यानी संरक्षण मूल्य के बारे में मूल्यांकन करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आंकड़ों, संकेतकों और मॉडलों के प्रकारों में अभी भी काफ़ी विविधता है. ऐसे में विनिर्माण स्थल के चुनाव को विनियमित करने के लिए HCV पद्धति का उपयोग करने हेतु ज़्यादा तालमेल वाले दृष्टिकोण की ज़रूरत है. [21] ज़ाहिर है कि HCV के वैज्ञानिक मानदंडों पर आधारित होने की वजह से आंकड़ों को एकत्र करने की आवश्यकता होती है. व्यवसायों या कंपनियों को जगह का चुनाव करने से पहले डेटा एकत्र करने में बहुत अधिक निवेश करने की ज़रूरत होती है, जिसमें काफ़ी समय भी ख़र्च होता है. [22] इसमें यह ख़तरा है कि व्यवसाय साफ-सुथरी और सटीक HCV मूल्यांकन विधियों को लागू करने से कतराएंगे, यदि वे उन्हें बहुत महंगा मानते हैं. रिमोट सेंसिंग और स्थलीय विश्लेषण के लिए विभिन्न उभरते तरीक़े HCV विश्लेषण करने के लिए तुलनात्म रूप से सस्ते या कम ख़र्चीले साबित हो सकते हैं. [23] सरकारों को न केवल HCV मूल्यांकन के लिए आवश्यकताओं को लागू करना चाहिए, बल्कि इसमें अंतर्निहित मूल्यांकन विधियों को बेहतर बनाने और उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को समर्थन देने में भी निवेश करना चाहिए, जो अक्सर परिष्कृत और महंगी HCV टूलकिट्स का ख़र्च वहन नहीं कर सकते हैं.
c. व्यावसायिक निर्भरता और जैव विविधता पर प्रभावों को लेकर मूल्य-श्रृंखला स्तर के प्रकटीकरण का निर्देश
कारोबारों और कंपनियों को जैव विविधता पर उनकी निर्भरता और प्रभावों का आकलन एवं रिपोर्ट करने के लिए जिन नियामक आदेशों की ज़रूरत होती है, G20 देशों को उन पर विचार करना चाहिए. कई बड़ी कंपनियां पहले से ही रेगुलेटरी आवश्यकताओं की मांग कर रही हैं. उदाहरण के तौर पर 300 से अधिक कंपनियों ने COP 15 बैठक से पहले देशों के प्रमुखों को एक खुला पत्र भेजा था और उनसे प्रकृति को लेकर मूल्यांकन एवं डिस्क्लोजर यानी प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाने का आग्रह किया था. नेचुलर कैपिटल प्रोटोकाल, साइंस बेस्ड टार्गेट्स नेटवर्क (SBTN), टास्कफोर्स ऑन नेचर-रिलेटेड फाइनेंशियल डिस्कोलजर्स (TNFD) और वर्ल्ड बिजनेस काउंसिल फॉर स्टेनेबल डेवलपमेंट (WBCSD) जैसे निजी सेक्टर के कई संगठनों एवं गठबंधनों ने टिकाऊ व्यावसायिक प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन, उपकरण एवं कार्यप्रणालियां विकसित करने में उल्लेखनीय प्रगति की है. इनमें से कई उपकरण और कार्यप्रणालियां अगले साल या उसके बाद बाज़ार में उपलब्ध होंगीं. जैव विविधता मूल्यांकन और रिपोर्टिंग के लिए एक नियामक ज़रूरत, एक प्रतिस्पर्धी मार्केट तैयार करेगी क्योंकि ये एवं अन्य एजेंसियां मूल्यांकन व रिपोर्टिंग के लिए बेहतर, ज़्यादा भरोसेमेंद और उपयोग करने वाले के अनुकूल प्रक्रियाओं एवं मानदंडों को स्थापित करने के लिए होड़ करेंगी. यह भी सिफ़ारिश की जाती है कि कोई भी नियामक शासनादेश कंपनी स्तर के बजाए मूल्य-श्रृंखला स्तर पर पड़ने वाले असर का बखान करे. बायो-डायवर्सिटी पर प्रभाव मूल्यांकन एवं रिपोर्टिंग में कच्चे माल की ख़रीद से लेकर उसके अंतिम निष्तारण तक सभी व्यावसायिक ऑपरेशन्स पर समग्र प्रभाव शामिल होना चाहिए. यूरोपियन बिजनेस@बायो-डायवर्सिटी प्लेटफॉर्म और यूनाइटेड नेशन्स एनवॉयरमेंट वर्ल्ड कंज़र्वेशन मॉनिटरिंग सेंटर द्वारा कंपनियों के लिए जैव विविधता एकाउंटिंग की समस्या से निपटने के मुद्दे पर आयोजित वर्ष 2019 की एक तकनीक़ी कार्यशाला में इस पर विचार किया गया था. इस बैठक में तमाम प्रतिभागियों ने मूल्य-श्रृंखला स्तर के आकलन (EC 2019) में आने वाली दिक़्क़तों के बारे में चिंता जताई थी. हालांकि, यह अलग बात है कि मूल्य-श्रृंखला स्तर के बायो-डायवर्सिटी प्रभाव आकलन के प्रावधान नेचुरल कैपिटल प्रोटोकाल और ग्लोबल बायो-डायवर्सिटी स्कोर मैट्रिक्स यानी वैश्विक जैव विविधता स्कोर मैट्रिक्स में शामिल हैं.
d.जैव विविधता संरक्षण के लिए इंडस्ट्री 4.0 एप्लीकेशन्स को प्रोत्साहन
जैव विविधता संरक्षण से संबंधित विभिन्न उपायों को इंडस्ट्री 4.0 प्रौद्योगिकियों की व्यापक श्रृंखला का, ख़ास तौर पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) का लाभ उठाकर और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है. [24] PWC रिपोर्ट (2018) निम्नलिखित पांच क्षेत्रों में बायो-डायवर्सिटी संरक्षण में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के उपयोग को साफ तौर पर प्रकट करती है, साथ ही उदाहरण प्रस्तुत करती है: टिकाऊ व्यापार (उदाहरण के लिए, आपूर्ति-श्रृंखला निगरानी एवं ओरिजिन ट्रैकिंग यानी उत्पत्ति पर नज़र रखने के माध्यम से और गैरक़ानूनी एनिमल-बेस्ड व्यापार का पता लगाना); प्रदूषण नियंत्रण (यानी कि प्रदूषण फैलने की भविष्यवाणी और ट्रैकिंग के माध्यम से); तेज़ी से फैलने वाली प्रजातियों और बीमारियों पर नियंत्रण (उदाहरण के लिए, मशीन के माध्यम से ऑटोमेटेड जैव विविधता विश्लेषण के ज़रिए); नेचुरल कैपिटल यानी प्राकृतिक पूंजी को साकार करना (उदाहरण के तौर पर जैविक और बायोमिमेटिक यानी जैविक रूप से उत्पादित पदार्थों और सामग्रियों एवं जैविक तंत्र व प्रक्रियाओं के गठन, संरचना या कार्य के अध्ययन से संबंधित संपत्तियों के पंजीकरण एवं व्यापार के माध्यम से) और प्राकृतिक आवास संरक्षण एवं बहाली (उदाहरण के लिए, पारिस्थितिकी तंत्र की सटीक निगरानी के माध्यम से, वन्यजीवों और उनके निवास स्थान के पारस्परिक प्रभाव का अनुकरण करके, पॉलिनेशन यानी परागकणों को बिखराव के लिए छोटे ड्रोन का उपयोग करके और अन्य माध्यमों से). [25] इसी प्रकार से रिसर्च आउटपुट में सुधार एवं प्रथाओं में परिणाम संबंधी बदलावों के माध्यम से मशीन लर्निंग (अर्थात एआई का एक तरीक़ा, जो सिस्टम को स्पष्ट रूप से प्रोग्राम किए बिना अनुभव से सीखने और सुधार करने की अनुमति देता है.) बायो-डायवर्सिटी कंज़र्वेशन में मददगार साबित हो सकती है. [26] जैव विविधता संरक्षण के लिए इंडस्ट्री 4.0 का उपयोग भी नए-नए आर्थिक अवसरों को सामने ला सकता है. उदाहरण के लिए, ओल्डम एवं अन्य (2013) के मुताबिक़ वर्तमान में वैश्विक पेटेंट सिस्टम सभी टैक्सोनॉमिक रूप से वर्णित वैश्विक प्रजातियों में से केवल 4 प्रतिशत को ही कवर करता है, इस वजह से ज़्यादातर प्राकृतिक संपत्ति औपचारिक पेटेंट प्रणालियों के दायरे से बाहर हो जाती है. [27] इंडस्ट्री 4.0 का उपयोग अनुप्रयोग इन प्रजातियों की पहचान करने, वर्गीकरण करने और पेटेंट कराने में मददगार हो सकती है. ज़ाहिर है यह बायोटेक्नोलॉजी एवं बायोमेडिसिन सेक्टरों को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है. बायो-डायवर्सिटी कंज़र्वेशन में इंडस्ट्री 4.0 का इस्तेमाल, विशेष रूप से AI और रोबोटिक्स का इस्तेमाल ऐसी कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं को भी उजागर कर सकता है, जिनसे फिलहाल मानवजाति अनिभिज्ञ है. इतना ही नहीं यह स्मार्ट सामग्री, मैटरियल स्ट्रक्चर्स, ऊर्जा उत्पादन और प्रदूषण का हल निकालने के लिए लिए जैव-आधारित नवाचारों की एक नई विधा को प्रेरित कर सकता है. [28] बहुपक्षीय विकास बैंक इंडस्ट्री 4.0 पर आधारित जैव विविधता के अनुकूलन से संबंधित उद्यमों को वित्त पोषित करने और विकासशील देशों में उद्यमशीलता इकोसिस्टम को प्रोत्साहन देने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. [29]
e.समावेशन और सामुदायिक लाभ सुनिश्चित करना
इस बात को लेकर हालांकि वैश्विक स्तर पर सहमति है कि जैव विविधता संरक्षण 21वीं सदी की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है, लेकिन इस ज़रूरी काम को किया कैसा जाए, इसको लेकर फिलहाल न के बराबर सहमति है. [30] कुछ लोग जैव विविधता संरक्षण के ‘पीपुल-फ्री’ नज़रिए की पैरोकारी करते हैं. इस तरह के दृष्टिकोण में लोगों और समुदायों पर इसके असर को लेकर बहुत कम विचार किया जाता है, या फिर तनिक भी विचार नहीं किया जाता है. जबकि कुछ दूसरे लोग जैव विविधता संरक्षण को अनिवार्य रूप से एक ‘सामाजिक उद्यम’ के रूप में देखते हैं, [31] जिसको लेकर कोई भी कार्य विभिन्न हितधारकों के बीच निर्विवाद और स्पष्ट बातचीत के माध्यम से होना चाहिए. दूसरे दृष्टिकोण के मुताबिक़ बायो-डायवर्सिटी कंज़र्वेशन एक सामाजिक और राजनीतिक रूप से चर्चा-परिचर्चा के बाद अमल में लाई गई प्रक्रिया है, जो न केवल सबसे महत्त्वपूर्ण भावी नतीज़ों से प्रभावित होती है, बल्कि परस्पर जुड़े मुद्दों से भी प्रभावित होती है. इन मुद्दों में सामुदायिक आजीविका, ग़रीबी उन्मूलन और सामाजिक न्याय शामिल हैं, लेकिन यह मुद्दे केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं. [32] जैव विविधता संरक्षण पर बिजनेस एक्शन यानी बातचीत, सलाह, आग्रह जैसी कार्रवाई में अवरोध पैदा करने वाली इन दो विचारधाराओं के बीच टकराव को रोकने के लिए, सरकारों को उद्योगों एवं कंपनियों को बायो-डायवर्सिटी कंज़र्वेशन की कोशिशों में सामुदायिक हितों की सुरक्षा एवं प्रोत्साहन पर विशेष महत्व देने के लिए स्पष्ट निर्देश देना चाहिए. यह केवल नैतिक सिद्धातों का मामला नहीं है, बल्कि व्यावहारिक ज़रूरत का भी मामला है. पूरे विश्व की कुल जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा स्थानीय लोगों और स्वदेशी समुदायों के स्वामित्व वाले या शासन वाले क्षेत्रों में पड़ता है, जो कि अपनी ज़मीन से विभिन्न प्रकार के लाभ हासिल करते हैं. [33] स्थानीय लोगों और समुदायों को जैव विविधता संरक्षण पहलों में पूरी तरह से और अर्थपूर्ण ढंग से शामिल किए बगैर कंपनियों या व्यावसायों के हासिल करने योग्य जैव विविधता लक्ष्यों की दिशा में प्रगति करने की संभावना नज़र नहीं आती है. इसके अतिरिक्त, विनियामक शर्तों या नियम-क़ानूनों के बिना कंपनियों को स्थानीय और स्वदेशी समुदायों के साथ जुड़ने, उनकी ज़रूरतों को समझने और उन ज़रूरतों के मुताबिक़ उनके संरक्षण से जुड़े प्रयासों को अनुकूलित करने में सही दिशा की कमी महसूस होगी.
बायो-डायवर्सिटी कंज़र्वेशन एक बेहद मुश्किल और बहुआयामी चुनौती है, जिसका बगैर देरी किए तत्काल समाधान किया जाना चाहिए. जैव विविधता संरक्षण में व्यावसायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए निजी क्षेत्र में बाज़ार-आधारित पहलों को मुख्यधारा में लाने को लेकर उल्लेखनीय तेज़ी दिखाई देती है. हालांकि, पूरी तरह से बाज़ार-आधारित पहलों के बेतरतीब विस्तार से प्रतीकात्मक कार्यों को बढ़ावा दिए जाने का ख़तरा रहता है, ज़ाहिर है कि ऐसी कार्रवाइयां न तो जैव विविधता का संरक्षण करती हैं और न ही मानवीय पहलू पर विचार करती हैं. इसके बजाए, जैव विविधता संरक्षण में व्यावसायिक भागीदारी को औद्योगिक नीतियों के ज़रिए नियंत्रित किया जाना चाहिए. ज़ाहिर है कि इन औद्योगिक नीतियों की न केवल बारीक़ी से निगरानी की जाएगी, बल्कि नियमित तौर पर समीक्षा भी की जाएगी.
दुनिया की प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के एक समूह के रूप में G20 का औद्योगिक गतिविधियों पर उल्लेखनीय प्रभाव है और औद्योगिक नीतियों को बढ़ावा देने में उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह नेतृत्व प्रदान कर सकता है. उल्लेखनीय G20 देश न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए जैव विविधता का संरक्षण करते हैं, विकसित मैन्युफैक्चरिंग प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हैं और टिकाऊ वित्त जुटाते हैं, बल्कि ग्रामीण, स्थानीय एवं हाशिए पर रहने वाले लोगों के हितों को भी अपनी नीतियों के केंद्र में रखते हैं. ऐसे में यह लाज़िमी है कि G20 देशों को अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को पूरी दुनिया के साथ साझा करने के लिए एक तंत्र विकसित करना चाहिए और सामूहिक रूप से जैव विविधता संरक्षण में व्यावसायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के तौर-तरीक़ों के बारे में छान-बीन करनी चाहिए.
एट्रीब्यूशन: रजत पंवार एवं अन्य, “जैव विविधता संरक्षण के साथ G20 की औद्योगिक नीतियों का एकीकरण,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.
[1] Jurriaan M. De Vos et al., “Estimating the Normal Background Rate of Species Extinction,” Conservation Biology 29, no. 2 (2015): 452–62.
[2] Elaine Baker, John Crump, and Peter Harris, “Global Environment Outlook (GEO-6): Healthy Planet, Healthy People,” 2019.
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