ग्लोबल साउथ में खाद्य और पोषण सुरक्षा: नीतियां, तकनीक़ और संस्थाएं

V. Ratna Reddy | Bhagirath Behera | Pritha Datta | Jagadish Timsina | Dil Bahadur Rahut | Jeetendra Prakash Aryal

सार

ग्लोबल साउथ के देश खाद्य और पोषण सुरक्षा को लेकर काफी पिछड़े हुए हैं, जिससे भोजन और पोषण और अन्य क्षेत्रों के बीच जटिल संबंधों को सुधारने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. यह पॉलिसी ब्रीफ अल्प विकसित देशों (एलडीसी) में खाद्य और पोषण सुरक्षा की वर्तमान स्थिति की जांच करता है और उत्पादन, प्रसंस्करण और उपभोग क्षेत्रों में हस्तक्षेप का प्रस्ताव रखता है. उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को अपनाने से उत्पादन और प्रसंस्करण दक्षता में वृद्धि हो सकती है, जबकि नीतियां ज़मीनी स्तर पर टिकाऊ तरीक़ों को सुनिश्चित कर सकती हैं. संस्थाएं नीतियों और कार्यान्वयन के बीच अंतर को पाटने, घरेलू स्तर पर व्यवहार परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. एलडीसी का समर्थन करने के लिए  उच्च आय वाले देशों (एचआईसी) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, नीति मार्गदर्शन और संस्थागत समर्थन की पेशकश करनी चाहिए. इसके अलावा  कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के लिए कृषि नीतियों को फिर से तैयार किया जाना चाहिए और एलडीसी को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिए.

 

1.चुनौती

वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा के ताज़ा आकलन से संकेत मिलता है कि कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष (एफएओ एट अल., 2022) के परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में दुनिया पीछे की ओर जा रही है. जबकि तीन साल (2019-2021) का औसत पोषण में सुधार (यानी अल्पपोषण की व्यापकता में कमी) का संकेत देता है, जबकि अधिकांश देशों (एचआईसी को छोड़कर) में खाद्य सुरक्षा ख़राब हो गई है. कम आय वाले और एलडीसी देश खाद्य और पोषण असुरक्षा की सबसे ज़्यादा दर का अनुभव कर रहे हैं  जो क्रमशः 50 प्रतिशत और 25 प्रतिशत से अधिक अनुमानित है (चित्र 1 देखें).

 

चित्र 1: खाद्य और पोषण सुरक्षा में बदलाव (विश्व और आय के आधार पर)

Note: PoU = Prevalence of undernourishment; PFIS (M/S) = Prevalence of food insecurity (moderate and severe); LDC = Least developed countries; LIC = Low-income countries; LMIC = Lower middle-income countries; UMIC = Upper middle-income countries; HIC = High-income countries
Source: FAO et al. (2022)

 

मौज़ूदा मंदी की स्थितियों से वैश्विक स्थिति और ख़राब होने की संभावना है. रिग्रेसिव ट्रेंड (प्रतिगामी रुझानों) की जांच करना और उन्हें बदलना जी20 देशों की नीतिगत चिंता है. जबकि खाद्य सुरक्षा सीधे खाद्य उत्पादन (उपलब्धता) और पहुंच (सामग्री) से जुड़ी हुई है, पोषण सुरक्षा अन्य क्षेत्रों, जैसे पानी और स्वच्छता, सांस्कृतिक और व्यावहारिक कारकों और सूक्ष्म पर्यावरण से जुड़ी है. विकासशील देशों में अब तक पालन की जाने वाली खाद्य और पोषण नीतियां ज़्यादातर सप्लाई-साइड (आपूर्ति-पक्ष) (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) पर आधारित हैं, जिसमें ग़रीब घरों में पौष्टिक भोजन की पहुंच और खपत बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया है. हालांकि नीतियों ने कम समय में लक्षित समूहों की खाद्य और पोषण सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद की है लेकिन खाद्य पदार्थों की कम न्यूट्रिशन डेन्सिटी और बदलती खाद्य आदतों के कारण उनकी प्रभावशीलता और स्थिरता सीमित है.

ग्लोबल साउथ के कुछ देश खाद्य उत्पादन में कमी और आयात बाधाओं (आर्थिक और बाज़ार) से जूझ रहे हैं. कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने अधिकांश देशों में आपूर्ति के साथ-साथ मांग की परेशानी को बढ़ा दिया है. खाद्य मुद्रास्फीति और मंदी के कारण खाद्य असुरक्षा की स्थिति बनी रहने की संभावना है. इसके अलावा  ख़राब प्रोडक्शन प्रैक्टिस, प्रक्रियाओं, भंडारण और परिवहन (जेना और रेड्डी, 2009; कुरियन एट अल, 2013) के कारण विकासशील देशों में खाद्य पदार्थों का न्यूट्रिशन डेन्सिटी कम है. हाल के वर्षों में पौष्टिक भोजन की लागत भी बढ़ी है (एफएओ एट अल., 2022). इसके अलावा, हालांकि प्रोसेस्ड फूड की मांग बढ़ रही है  लेकिन घटिया प्रसंस्करण और पैकेजिंग के कारण इन खाद्य पदार्थों की पोषण गुणवत्ता कम है. संपूर्ण खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को पोषण के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए उचित उपायों के अभाव में, खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने में सप्लाई साइड हस्तक्षेप अप्रभावी बने रहते हैं. वहीं  घरेलू या व्यक्तिगत स्तर पर पोषण के बारे में समझ और जागरूकता बहुत कम है. इसलिए  पॉलिसी बनाते समय ध्यान सभी तीन क्षेत्रों (उत्पादन, प्रसंस्करण और उपभोग) पर होना चाहिए.

इस पॉलिसी ब्रीफ का उद्देश्य तीन क्षेत्रों के व्यापक दृष्टिकोण की गंभीरता को स्थापित करना है. इसमें तीन क्षेत्रों में मौज़ूदा विसंगतियों/विकृतियों को दूर करने में प्रौद्योगिकियों, नीतियों और संस्थानों की भूमिका पर भी चर्चा की गई है और जी20 ग्लोबल साउथ को इन विसंगतियों से निपटने और स्थायी खाद्य और पोषण सुरक्षा प्राप्त करने में कैसे मदद किया जा सकता है इस भी चर्चा की गई है. खाद्य और पोषण सुरक्षा एक जटिल मुद्दा है जिसे लीनियर अप्रोच (रैखिक दृष्टिकोण) से सुधारा नहीं किया जा सकता है. खाद्य और पोषण सुरक्षा में शामिल तीन प्रमुख क्षेत्र कृषि (उत्पादन), उद्योग (प्रसंस्करण)  और घरेलू (उपभोग) हैं. इनमें स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, नीतियों और रणनीतियों को उत्पादक बनाए रखते हुए इन क्षेत्रों को पोषण-संवेदनशील बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. भोजन की उपलब्धता, पहुंच, उपयोग और स्थिरता सुनिश्चित करते समय – जो खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं – प्रभावी पोषण रणनीतियों के निर्माण के लिए घरेलू प्राथमिकताओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और पोषण के प्रति व्यवहार पर विचार करना आवश्यक है.

निम्नलिखित विवरण में इन तीन परस्पर जुड़े क्षेत्रों में खाद्य और पोषण सुरक्षा को ठीक करने की चुनौतियों का पता लगाया गया है.

उत्पादन (कृषि) क्षेत्र

अधिकांश विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा के मुद्दों को सुलझाने के लिए क्रॉप यील्ड गैप (फसल उपज अंतर) को कम करना एक बड़ी चुनौती है. एशियाई देशों में धान की उपज का अंतर पाकिस्तान में 180 प्रतिशत तक है. (ताइवान में सबसे कम 5 प्रतिशत है) चीन में सबसे अधिक पैदावार है, उसके बाद जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम हैं. पाकिस्तान में सबसे कम उपज है, उसके बाद थाईलैंड, म्यांमार और भारत (रेड्डी और राहुत, 2023) हैं. देशों में फसल उपज का अंतर प्रौद्योगिकी (बीजों तक पहुंच), संसाधनों (उर्वरक, पानी तक पहुंच) और दक्षता (सिल्वा एट अल., 2022) में अंतर का नतीज़ा होता है लेकिन जलवायु परिवर्तन उत्पादकता और फसल चयन की समस्याओं को बढ़ा रहा है. भरोसेमंद जलवायु पूर्वानुमान (सटीक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली) के अभाव में  किसानों को उचित फसल और बुआई की अवधि तय करने में कठिनाई होती है.

अल्पपोषण की बढ़ती समस्या को देखते हुए  भारत जैसे देश चावल और गेहूं के स्थान पर मक्का, बाजरा, ज्वार सहित अन्य पोषण युक्त अनाज (पोषक अनाज) के पैदावार को बढ़ावा दे रहे हैं. हालांकि  उपज और पोषण के बीच एक समझौता है; दूसरे शब्दों में, चावल/गेहूं की उपज और पोषक अनाज की उपज के बीच अंतर को देखते हुए, पोषक अनाज की ओर बढ़ने से समग्र खाद्य उत्पादन प्रभावित होने की संभावना है. यह अनुमान लगाया गया है कि पोषक अनाज के खेती क्षेत्र में मात्र 10 प्रतिशत की वृद्धि भारत को आत्मनिर्भरता स्तर (शुद्ध निर्यातक से खाद्यान्न का शुद्ध आयातक होने तक) से नीचे धकेल सकती है (चित्र 2 देखें). इससे जीरो-हंगर (कैलोरी-आधारित) एसडीजी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

चित्र 2: भारत में पोषक अनाज की ओर बदलाव के साथ खाद्यान्न उत्पादन और मांग (2020)

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Note: FG = Food grain; BAU = Business as usual; NC = Nutri-cereals
Source: Reddy (2022)

 

भोजन की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं. सिंचाई के लिए अनट्रीटेड वेस्टवाटर के उपयोग और उर्वरकों, कीटनाशकों और प्लांट हार्मोन जैसे रसायनों के अत्यधिक उपयोग से उत्पन्न होने वाली समस्याएं भी बढ़ रही हैं. इससे विकासशील देश विशेष रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि अनाज और सब्जियों में अक्सर अपशिष्ट पदार्थ और सीवेज अवशेष होते हैं (रेड्डी और बेहरा, 2006; जीना और रेड्डी, 2009). उत्पादन में तेजी लाने और बढ़ाने के लिए प्लांट हार्मोन का उपयोग करने से फूड न्यूट्रिशन डेन्सिटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और स्वास्थ्य जोख़िम पैदा होता है. अनट्रीटेड वाटर कृषि का प्रसार पशुधन चारे की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है. डेयरी किसान अक्सर बोवाइन ग्रोथ हार्मोन का उपयोग करते हैं (खानिकी, 2007). गुणवत्ता मानकों, निगरानी और प्रवर्तन के अभाव के कारण अनप्रोसेस्ड खाद्य और डेयरी उत्पादों में भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है. सीधे फार्म-टू-टेबल अब पौष्टिक खपत सुनिश्चित नहीं करता है; इसलिए, विकासशील देशों को क्वान्टिटी बनाम क्वालिटी के उद्देश्यों को संतुलित करना चाहिए.

 

प्रोसेसिंग सेक्टर

उपभोक्ता प्राथमिकताएं प्रोसेस्ड फूड की ओर झुकती जा रही हैं. इसका नतीज़ा यह है कि पिछले कुछ वर्षों में कंज्यूमर बास्केट और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में प्रसंस्करण क्षेत्र का योगदान बढ़ रहा है. खाद्य प्रसंस्करण में प्राथमिक उत्पादों के मूल्य को बढ़ाकर और किसानों को बेहतर मूल्य प्रदान करके उत्पादन क्षेत्र को लाभ पहुंचाने की क्षमता है. हालांकि  ख़राब उत्पादन प्रक्रियाओं के कारण प्राथमिक खाद्य उत्पादों की पोषण गुणवत्ता कम है और अक्सर  इन उत्पादों के प्रसंस्करण से उनका पोषण मूल्य और भी कम हो जाता है. इसके अलावा, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ अक्सर सैचुरेटेड फैट और प्रिज़रवेटिव (परिरक्षकों) जैसी चीजों के कारण हानिकारक होते हैं और कम गुणवत्ता वाले प्रसंस्करण, पैकेजिंग और परिवहन से उनका पोषण मूल्य और भी कम हो जाता है. पैकेजिंग के लिए सस्ते प्लास्टिक के उपयोग, कच्चे परिवहन प्रणालियों और अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं से पोषण मूल्य कम हो जाता है. कई विकासशील देशों में, उद्योग को रेग्युलेट करने के लिए कोई वैज्ञानिक मानक नहीं है जिसके परिणामस्वरूप प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हालांकि, कुछ उच्च-गुणवत्ता वाली प्रसंस्करण और पैकेजिंग के तरीक़े मौज़ूद हैं लेकिन ये अक्सर काफी महंगी होती हैं. ऐसे में इसका उद्देश्य प्रसंस्करण और पोषण घनत्व के बीच संतुलन बनाना होना चाहिए.

 

उपभोग (घरेलू) क्षेत्र

घरों में खाद्य सुरक्षा (जीरो हंगर) की उपलब्धि इकोनॉमिक फैक्टर्स और भोजन की उपलब्धता पर निर्भर करती है, जबकि पोषण सुरक्षा सामाजिक-सांस्कृतिक, व्यावहारिक और पर्यावरणीय फैक्टर्स से प्रभावित होती है, जैसे सुरक्षित पानी और स्वच्छता, हाइजिन प्रैक्टिस और माइक्रो इनवायरनमेंट तक पहुंच. इसकी गारंटी नहीं है कि उच्च आय वाले परिवार अच्छे पोषण की प्रैक्टिस करेंगे क्योंकि अस्वास्थ्यकर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ मोटापे का कारण बन सकते हैं. पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और बनाए रखने के लिए घरेलू स्तर पर ज्ञान और जागरूकता महत्वपूर्ण है. हालांकि ख़राब शिक्षा और पोषण और भलाई के बीच जुड़ाव की समझ की कमी के कारण घरेलू या व्यक्तिगत स्तर पर, विशेषकर ग़रीबों के बीच  पोषण की मांग कम हो गई है.

भले ही खान-पान की आदतें और सांस्कृतिक प्रथाएं पोषण को प्रभावित करती हैं लेकिन नई जीवनशैली और बाज़ार के प्रभाव के कारण इनमें और बदलाव नज़र आने लगा है. एक परिवार के पोषण संबंधी व्यवहार को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है: संवेदनशील, तटस्थ और उदासीन. जो चार संकेतकों पर आधारित हैं: भोजन की खपत की मात्रा, गुणवत्ता, आवृत्ति और समयबद्धता (चित्र 3 देखें). पोषण संबंधी व्यवहार के प्रकार का संकेतकों के साथ मज़बूत से कमज़ोर संबंध होता है. व्यवहार के पैटर्न शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों और विभिन्न क्षेत्रों के बीच भिन्न-भिन्न होते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न फैक्टर्स से प्रभावित होते हैं. इसलिए  प्रत्येक टाइपोलॉजी के लिए लक्षित और विशिष्ट नीति रणनीतियों (मांग/आपूर्ति और क्षेत्रीय) का विकास करना महत्वपूर्ण है.

 

चित्र 3: घरेलू प्रकार और पोषण सुरक्षा

स्रोत: लेखक का अपना

 

संयुक्त खाद्य और पोषण सुरक्षा को “व्यक्तियों की स्थिति और स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनके पास भूख को कम करने के लिए पर्याप्त भोजन तक पहुंच है और भोजन का संयोजन जो सामान्य, सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करेगा” (एफएओ, 2009 और 2012 से अनुकूलित; एफएओ एट अल।, 2022). इसके लिए प्रौद्योगिकियों, नीतियों और संस्थानों से संबंधित हस्तक्षेपों को कवर करने वाले एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो तीन क्षेत्रों में खाद्य और पोषण सुरक्षा चुनौतियों का समाधान कर सके (तालिका 1 देखें). इन हस्तक्षेपों का महत्व विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकता है.  तीनों ही उत्पादन क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं और तकनीक़ी और नीतिगत हस्तक्षेप प्रसंस्करण और उपभोग में अधिक महत्व रखते हैं. उपभोग क्षेत्र में संस्थाएं विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं. निम्नलिखित हिस्सा बताता है कि ये हस्तक्षेप विभिन्न संदर्भों और क्षेत्रों में खाद्य और पोषण सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में कैसे मदद कर सकते हैं.

 

तालिका 1: खाद्य और पोषण सुरक्षा मैट्रिक्स

 

Sector / Intervention Policy Technology Institutions
Production (agriculture) H H H
Processing (industry) H H M
Consumption (household) M H H

 

Note: H = High priority; M = Medium priority

Source: Authors’ own

 

नीतियां

विकासशील देशों में उद्योग और सेवा की तुलना में कृषि के लिए प्रतिकूल नीतिगत माहौल है. आर्थिक सुधारों के बावज़ूद  कृषि पर कम ध्यान दिया गया है और पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में कमी आई है. कृषि निवेश (सिंचाई, सड़क नेटवर्क) की ‘पब्लिक बेनिफिट’ प्रकृति के कारण निजी निवेश इस क्षेत्र में इतना नहीं हुआ है कि यह सार्वजनिक निवेश में आई गिरावट की भरपाई कर सके. इससे कृषि में बुनियादी ढांचे के विकास, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. कई देशों में कृषि अनुसंधान और विस्तार सेवाओं में कटौती कर दी गई है, जिससे कृषि के ख़िलाफ़ व्यापार की शर्तें पक्षपातपूर्ण हो गई हैं और अधिकांश फसलों में स्थिरता आ गई है. विकासशील देशों में कृषि के लिए निवेश और सार्वजनिक समर्थन की कमी ने अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित किया है. कम आय वाले देशों को सबसे कम समर्थन मिलता है, जबकि उच्च आय वाले देशों को सबसे अधिक समर्थन मिलता है (चित्र 4 देखें).

 

चित्र 4: विभिन्न देशों में खाद्य और कृषि के लिए सार्वजनिक समर्थन (उत्पादन के मूल्य के प्रतिशत के रूप में) (आय श्रेणियां)

Note: PI = Price incentives; PS = producer subsidies; GS = General services; CS = Consumer subsidies; HIC = High-income countries; UMIC = Upper middle-income countries; LMIC = Lower middle-income countries; LIC = Low-income countries
Source: FAO et al. (2022)

मूल्य प्रोत्साहन और उत्पादक सब्सिडी इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, कम आय वाले देशों को उच्च आय वाले देशों की तुलना में नकारात्मक मूल्य प्रोत्साहन और बहुत कम उत्पादक सब्सिडी मिलती है. हालांकि इन नीतियों में बदलाव से यील्ड गैप (उपज का अंतर) कम होता है और पौष्टिक भोजन तक पहुंच में सुधार होता है  लेकिन विश्व व्यापार माहौल को देखते हुए विकसित देश ऐसे बदलावों का समर्थन नहीं कर सकते हैं. नकारात्मक पक्ष पर, कृषि क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए, इन नीतियों के परिणामस्वरूप एलआईसी पर भारी वित्तीय बोझ पड़ सकता है. उच्च आय वाले देशों और कम आय वाले देशों के बीच नीतियों और प्रोत्साहनों में अंतर, बाज़ार में विकृतियां पैदा करता है जो एलआईसी को 2030 तक खाद्य और पोषण सुरक्षा हासिल करने से रोक सकता है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए विकासशील देशों को अपनी आंतरिक नीतियों की समीक्षा करनी होगी और एक-दूसरे से सीखना चाहिए, जबकि जी20 मंच वैश्विक कृषि नीतियों पर पुनर्विचार शुरू करने में मदद कर सकता है.

 

तकनीक़

राष्ट्रों के बीच होने वाला टेक्नोलॉजी गैप उपज में अंतर (यील्ड गैप) पैदा करता है. ऐसे में खाद्य उत्पादन, पहुंच और स्थिरता बढ़ाने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को अपनाना महत्वपूर्ण है. हालांकि  कई एलडीसी को अभी भी अपनी प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं को पूरा करना बाकी है, विशेष रूप से कृषि और स्मार्टफोन-आधारित डिजिटल प्रौद्योगिकियों के मामले में, जो जलवायु जोख़िमों के संदर्भ में तेजी से महत्वपूर्ण होती जा रही हैं. एलडीसी में श्रम की उच्च लागत के कारण प्रौद्योगिकी का उपयोग करके लागत कम करना और श्रम की कमी को दूर करना आवश्यक हो जाता है. जबकि कई एलडीसी ने फसल प्रौद्योगिकियों को अपना लिया है. कुछ अभी भी उच्च उपज वाली किस्मों को अपनाने में पीछे हैं. अडॉप्शन अक्सर कुछ फसलों तक ही सीमित होता है, जैसे चावल और गेहूं, भले ही इन फसलों में भी प्रौद्योगिकी-संबंधित उपज अंतर नज़र आता है (सिल्वा एट अल।, 2022). जलवायु-संबंधित मुद्दों के लिए टेक्नोलॉजी अपग्रेड जैसे सिस्टम जो ग्रामीण स्तर पर सटीक और समय पर पूर्वानुमान प्रदान कर सकते हैं, एलडीसी के लिए एक तत्काल ज़रूरत है.

कई एलडीसी में कटाई और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियां (परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण) अभी भी अपर्याप्त हैं. फसल कटाई के बाद का नुक़सान एलडीसी में कुल उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत होने का अनुमान है. एलडीसी के भीतर अनुसंधान और विकास में निवेश करना उनके और एचआईसी के बीच प्रौद्योगिकियों के विकास और हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण होता है. अधिकांश एलडीसी में उच्च-स्तरीय प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों तक पहुंच एक चिंता का विषय है, जहां अनौपचारिक क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण के लिए पुरानी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है, जिससे ख़राब पैकेजिंग और उच्च प्रसंस्करण घाटे के साथ कम गुणवत्ता वाले उत्पाद बनते हैं. भोजन की गुणवत्ता में सुधार और नुकसान को कम करने के लिए नीति समर्थन और कुशल प्रौद्योगिकियों (फोर्टिफिकेशन) को अपनाना आवश्यक है. प्राथमिक उत्पादक स्तर पर दूध और दूध उत्पादों की गुणवत्ता जांच में सुधार के लिए टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन भी आवश्यक है. एचआईसी प्रसंस्करण उद्योग में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और एलडीसी में अनुसंधान और विकास प्रयासों का समर्थन कर सकते हैं.

संस्थाएं

संस्थाएं नीतियों और उनके कार्यान्वयन या प्रवर्तन के बीच संबंध के रूप में कार्य करती हैं और औपचारिक या अनौपचारिक हो सकती हैं. उनका उत्पादन और उपभोग क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से स्मॉलहोल्डर अर्थव्यवस्थाओं में, जहां संस्थाएं समर्थन तंत्र के माध्यम से टिकाऊ कृषि प्रैक्टिस और प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा देती हैं. संस्थाएं पानी, उर्वरक, ऋण और उत्पादन बाज़ार जैसे संसाधनों तक पहुंच की सुविधा भी प्रदान करती हैं और जल उपयोगकर्ता संघों और संगठनों के माध्यम से पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन भी करती हैं.

घरेलू या उपभोक्ता स्तर पर, जल और स्वच्छता समितियां जैसे संस्थान, स्वास्थ्य के साथ जल, स्वच्छता और स्वच्छता (डब्ल्यूएएसएच) संबंधों के बारे में जागरूकता पैदा कर सकते हैं, घरेलू स्वच्छता और स्वच्छता की स्थिति में सुधार कर सकते हैं और स्थायी वाश प्रैक्टिस को बढ़ावा दे सकते हैं. डिजिटल प्रौद्योगिकियां, विशेष रूप से स्मार्टफोन-आधारित, घरेलू स्तर पर व्यावहारिक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. महिला स्वयं सहायता समूह अक्सर बैकयार्ड एग्रीकल्चर, जिसमें सब्जियां उगाने और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देते हैं. वे पोषण और स्वास्थ्य के प्रति व्यावहारिक परिवर्तन लाते हैं. कई अध्ययनों से यह पता चला है कि ये समूह पोषण-संवेदनशील कृषि (एसीआईएआर 2020) को बढ़ावा देने में सहायक हैं. ऐसे संस्थानों को सिस्टम के भीतर से विकसित होने की आवश्यकता है; क्योंकि इनकी प्रभावशीलता स्थान-विशिष्ट है. हालांकि इन स्थानीय संस्थानों को बाहर से थोपा नहीं जा सकता है  लेकिन क्रॉस-कंट्री (एलडीसी) अनुभव खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाने वाले संस्थानों को विकसित करने और बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान कर सकता है.

 

  1. जी20 की भूमिका

जी20 में एचआईसी, यूएमआईसी, एलएमआईसी और एलडीसी शामिल हैं और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत और वैश्विक आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा है. जी20 की कार्यवाही का प्रभाव वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा को बदल सकता है. देशों की संरचना को देखते हुए  जी20 उत्पादन बाधाओं को कम करने के लिए एलडीसी और एलएमआईसी में कृषि के लिए सार्वजनिक समर्थन को फिर से व्यवस्थित या फिर से उपयोग करने में मदद कर सकता है (एफएओ एट अल, 2022). हालांकि उपज के अंतर को कम करने (और खाद्य सुरक्षा हासिल करने) के लिए कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना आवश्यक है  लेकिन पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह भी कई मायनों में अपर्याप्त ही है.

खाद्य और पोषण सुरक्षा (यानी मात्रा बनाम गुणवत्ता, मुख्य अनाज बनाम पोषक-अनाज/विविधीकरण और टिकाऊ बनाम पारंपरिक कृषि प्रैक्टिस) के बीच व्यापार को देखते हुए, एलडीसी को बड़े पैमाने पर समर्थन की आवश्यकता है. इस संबंध में  जी20 सटीक कृषि की दिशा में आगे बढ़ने के लिए नीतियों पर चर्चा करने के लिए मंच प्रदान कर सकता है, यानी उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता के बीच न्यूनतम समझौता तैयार किया जा सकता है. एचआईसी तेज बदलाव के लिए टेक्नोलॉजी और पॉलिसी टूल्स में मदद कर सकता है.

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए एग्रीमेंट के दूसरे क्रिटिकल क्षेत्र हैं जिनमें एलडीसी को उत्पादन के साथ-साथ प्रसंस्करण क्षेत्रों में एचआईसी से पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता होती है. एचआईसी में मौज़ूदा प्रौद्योगिकियों को अनुसंधान एवं विकास समर्थन के साथ एलडीसी की आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित किया जा सकता है. एलडीसी जलवायु-संबंधित, फसल और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों से लाभ उठा सकते हैं जो नुकसान को कम कर सकता है और उपलब्धता बढ़ा सकते हैं. इसी तरहन एचआईसी खाद्य प्रसंस्करण और पैकेजिंग में उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने में मदद कर सकता है जो न्यूट्रिशन डेन्सिटी को भी बढ़ाएगा. पिछले 30 वर्षों से, भोजन और कृषि के लिए बढ़ता जन समर्थन नॉर्थ-साउथ विवाद में एक विवादास्पद विषय रहा है. समर्थन की कमी के कारण एलडीसी को अपने खाद्य और पोषण सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है  और इसके परिणामस्वरूप अनवायबल एग्रीकल्चर सेक्टर (अव्यवहार्य कृषि क्षेत्र) को नुक़सान हो रहा है. एचआईसी और एलडीसी के बीच सार्वजनिक समर्थन में समानता का अभाव अनवायबल एग्रीकल्चर सेक्टर को अक्षम बना रहा है. हालांकि एलडीसी में खाद्य और कृषि के लिए सार्वजनिक समर्थन बढ़ाना आर्थिक रूप से संभव नहीं हो सकता है लेकिन पोषण सुरक्षा में सुधार के लिए उत्पादक और उपभोक्ता सब्सिडी जैसे विकल्पों का पता लगाया जा सकता है. एचआईसी मुफ़्त टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और स्वदेशी रिसर्च एंड डेवलपमेंट के माध्यम से भी सहायता प्रदान कर सकता है.

  1. जी20 के लिए सिफ़ारिशें

पिछली चर्चा से निम्नलिखित सिफ़ारिशें निकाली जा सकती हैं:

  1. विकासशील देशों में खाद्यान्न फसलों में उपज के अंतर को कम करना पहली प्राथमिकता है. इसके लिए जी20 सुविधा और समर्थन दे सकता है:- एलडीसी में कृषि क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना.

– एलडीसी के बीच और एलडीसी और एचआईसी के बीच ज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण

– समर्थन तंत्र को पुन: व्यवस्थित करके एलडीसी कृषि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना.

  1. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान एवं विकास के लिए समर्थन के माध्यम से फसल और फसल के बाद के नुक़सान को कम करना.
  2. उत्पादन की मात्रा बनाम गुणवत्ता और मुख्य अनाज (चावल/गेहूं) बनाम पोषक अनाज के बीच संतुलन का आकलन और समाधान करना. इसके लिए :- अनुसंधान एवं विकास के लिए बढ़े हुए आवंटन के माध्यम से पोषक अनाज और मुख्य अनाज के बीच उपज अंतर को कम करना.

– अन्य देशों के अनुभवों से सबक लेकर एलडीसी के भीतर नीतिगत विकृतियों को दूर करना

– नॉलेज और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के माध्यम से सटीक कृषि की दिशा में आंदोलन को सुविधाजनक बनाना. एलडीसी में विस्तार सेवाओं को मज़बूत करने का समर्थन करना.

  1. भोजन के न्यूट्रिशन डेन्सिटी में सुधार के माध्यम से :- प्रोडक्शन प्रैक्टिस में सुधार और विविध खाद्य प्रणालियों की ओर बढ़ना

– प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास समर्थन के माध्यम से बेहतर प्रसंस्करण

– नीति और प्रोत्साहन तंत्र के माध्यम से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सुदृढ़ीकरण को बढ़ावा देना.

– गुणवत्ता मानकों को स्थापित करके और उन्हें लागू करके सभी स्तरों (बीज से उपभोग तक) पर नियामक तंत्र को मज़बूत करना. एचआईसी एलडीसी को सही नीतियां डिज़ाइन करने और उचित संस्थागत ढांचा स्थापित करने में मदद कर सकते हैं.

  1. पौष्टिक भोजन की खपत को प्रोत्साहित करना:- पौष्टिक खाद्य पदार्थों के पक्ष में उपभोक्ता सब्सिडी को बढ़ावा देना.

– घरेलू स्तर पर स्वास्थ्य और पोषण के बीच संबंधों के बारे में जागरूकता पैदा करना और स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देना

– घरेलू स्तर पर पानी और स्वच्छता में सुधार के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश

  1. खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद करने वाली संस्थागत व्यवस्थाओं के विकास और रखरखाव के लिए एक उचित नीतिगत वातावरण प्रदान करना भी इसके लिए ज़रूरी है. विभिन्न देशों के अनुभवों से मिली सीख संस्थागत इनोवेशन में मदद कर सकती है.

Attribution: V. Ratna Reddy, “Food and Nutrition Security in the Global South: Policies, Technologies and Institutions,” T20 Policy Brief, May 2023.


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