टास्क फोर्स 2: ऑवर कॉमन डिजिटल फ्यूचर- अफोर्डेबल, एक्सेसिबल एंड इन्क्लूसिव डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर
डिजिटल टेक्नोलॉजियों में तेज़ रफ़्तार उन्नति ने अनेक नई और अनोखी चिंताओं को जन्म दिया है, साथ ही डिजिटल खाइयां भी पैदा कर दी हैं. डिजिटल मोर्चे पर जारी बदलाव अर्थव्यवस्थाओं को नया आकार दे रहे हैं; व्यापार गतिशीलताओं का कायाकल्प कर रहे हैं; कौशल का स्तर ऊंचा उठाने और सीखने की ज़रूरतों को व्यापकता दे रहे हैं. इसके नतीजतन डेटा सुरक्षा और निजता के लिए जोख़िम बढ़ गए हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रमुख घटकों के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी का अभाव, डिजिटल सेवाओं को अपनाने और उनके क्रियान्वयन की क़वायदों में अड़चनें डालते हैं.
ये पॉलिसी ब्रीफ डिजिटल प्रौद्योगिकियों में इंटर-ऑपरेबिलिटी और मानकीकरण के अभाव से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों और मसलों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है. साथ ही ऐसे मुद्दों के निपटारे में G20 कैसे अहम भूमिका निभा सकता है, इस बात पर भी रोशनी डालता है. उल्लेखनीय है कि G20 के दायरे में दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं और इस समूह के खाते में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP), व्यापार और जनसंख्या का एक अहम अनुपात आता है. ये पॉलिसी ब्रीफ सूचना और डेटा स्थानांतरित करने, नवाचार को प्रोत्साहित करने, पहुंच (accessibility) बढ़ाने और व्यापार बाधाओं को कम करने को लेकर G20 नेताओं के लिए कुछ सिफारिशें भी पेश करता है. इससे सदस्य देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए सुरक्षित माध्यम सुनिश्चित किया जा सकेगा.
आज दुनिया की अर्थव्यवस्था में पारस्परिक जुड़ावों का स्तर काफ़ी ऊंचा है. ऐसे में विविधतापूर्ण नेटवर्कों, उपकरणों और सेवाओं के लिए एकजुटता के साथ बेरोकटोक काम करने की क्षमता महत्वपूर्ण हो गई है. हालिया कोविड-19 महामारी ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व रूप से बढ़ावा दिया है. इस प्रकार मौजूदा नीतियों का कायाकल्प करने और उनको तरो-ताज़ा करने की आवश्यकता बढ़ गई है. डिजिटल बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा और निष्पक्षता सुनिश्चित करने को लेकर, डिजिटल बाधाओं को विनियमित करने में इंटर-ऑपरेबिलिटी एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में बरक़रार है.[i]
दुनिया वर्तमान में डिजिटल औद्योगिक क्रांति की शुरुआत देख रही है, जहां नई टेक्नोलॉजियां धीरे-धीरे उद्योगों को नया आकार दे रही हैं. पारंपरिक औद्योगिक परिसंपत्तियों को पारस्परिक जुड़ाव वाले चतुर उपकरणों में तब्दील किया जा रहा है, जबकि अनेक अत्याधुनिक उत्पादन तकनीक (जैसे एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग) उत्पादों के डिज़ाइन और निर्माण के तौर-तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं.[ii] रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में उन्नतियों के साथ इस परिवर्तन में और रफ़्तार आने की उम्मीद है. लिहाज़ा, डिजिटल प्रणालियों और टेक्नोलॉजियों के डिज़ाइन और विकास में इंटर-ऑपरेबिलिटी के मानकीकरण को प्राथमिकता देना ज़रूरी है.
स्पष्ट परिभाषा के अभाव के चलते इंटर-ऑपरेबिलिटी पर चर्चा चुनौतीपूर्ण है. आम तौर पर इंटर-ऑपरेबिलिटी को अन्य प्रणालियों के साथ संचार और कामकाज करने के लिए एक प्रणाली, उत्पाद या सेवा के तकनीकी तंत्र के रूप में समझा जाता है.[iii] अलग-अलग ढांचागत परतों और संगठनात्मक सरहदों के बीच संचार की सुविधा प्रदान करके इंटर-ऑपरेबिलिटी डिजिटल टेक्नोलॉजियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.[iv] वैश्विक अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण घटकों- जैसे सरकारी एजेंसियों, वित्तीय संस्थानों और स्वास्थ्य सेवा के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी की ग़ैर-मौजूदगी, विकास के रास्ते में भारी बाधा उत्पन्न कर सकती है. नेटवर्कों, उपकरणों, ऐप्लिकेशनों, डेटा रिपॉजिटरी और सेवाओं के बीच प्रभावी इंटर-ऑपरेबिलिटी वास्तविक स्वरूप में डिजिटल समाज के उभार को बढ़ावा दे सकती है. साथ ही नवाचार को प्रोत्साहन देकर प्रतिस्पर्धिता का स्तर भी ऊंचा उठा सकती है.[v]
तेज़ रफ़्तार वृद्धि और डिजिटल सेवाओं के लगातार बदलते स्वभाव के नतीजतन इंटर-ऑपरेबिलिटी की कमी अनेक चुनौतियां पेश करती हैं.
इंटर-ऑपरेबिलिटी का अभाव विभाजन और दरार पैदा कर सकता है. ऐसे वातावरण में विभिन्न प्रणालियां और प्रौद्योगिकियां एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं. इससे जानकारी साझा करना, सिस्टम को एकीकृत करना और दूसरों के साथ सहयोग करना मुश्किल हो सकता है. ज़ाहिर है ऐसे में नवाचार के रास्ते में रुकावटें खड़ी हो सकती हैं. क्षैतिज इंटर-ऑपरेबिलिटी की कमी बाज़ार में प्रवेश से जुड़ी क़वायद में बाधा उत्पन्न कर सकती है और उपयोगकर्ताओं को अपने तौर-तरीक़े बदलने से हतोत्साहित कर सकती है.[vi] मालिक़ाना प्रणालियां, विक्रेता लॉक-इन तैयार कर सकते हैं, जिसमें उपयोगकर्ता किसी ख़ास विक्रेता या प्लेटफ़ॉर्म से बंध जाते हैं और आसानी से किसी अन्य सिस्टम की ओर मुड़ नहीं सकते हैं. ये हालात नए किरदारों के प्रवेश में बाधाएं पैदा करके नवाचार को सीमित कर सकते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा का स्तर कम हो जाता है.
डिजिटल युग में मानकीकरण और इंटर-ऑपरेबिलिटी अहम मसले हैं. इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), AI और ब्लॉकचेन जैसी प्रौद्योगिकियां अक्सर खंडित होती हैं और उनमें मानकीकरण का अभाव होता है. इससे विभिन्न प्रणालियों के लिए एक साथ काम करना मुश्किल हो जाता है.[vii] इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए सामान्य क्रियात्मकताओं (functionalities) के कुछ हद तक मानकीकरण या इंटर-ऑपरेबल उत्पादों और सेवाओं के बीच मानकीकृत इंटरफेस की आवश्यकता हो सकती है. मानकीकरण के बिना इंटर-ऑपरेबिलिटी, सुरक्षा जोख़िम पैदा कर सकती है, क्योंकि विभिन्न प्रणालियां और टेक्नोलॉजी एक-दूसरे के साथ सुरक्षित रूप से संचार करने में सक्षम नहीं हो पातीं. इसके अलावा, जब डिजिटल सेवाएं इंटर-ऑपरेबल नहीं होती हैं, तो ये बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और नवाचार को सीमित कर सकती हैं. यह प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों की पेचीदगी को बढ़ा सकते हैं, जिससे उनका प्रबंधन करना और उन्हें सुरक्षित करना अधिक मुश्किल हो सकता है. लिहाज़ा ऐसे वैश्विक मानकों की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करें कि डिजिटल सेवाएं एक-दूसरे के अनुरूप या सुसंगत हों.
इंटर-ऑपरेबिलिटी और साइबर सुरक्षा आपस में क़रीब से जुड़े हुए हैं. उचित रूप से क्रियान्वित नहीं किए जाने पर इंटर-ऑपरेबिलिटी, सुरक्षा जोख़िम पैदा कर सकती है, क्योंकि विभिन्न प्रणालियां और प्रौद्योगिकियां एक-दूसरे के साथ सुरक्षित रूप से संवाद करने में सक्षम नहीं पाती हैं. जब प्लेटफॉर्म नए डेटा प्रवाहों को तीसरे पक्ष के लिए खोलते हैं, तब निजता और सुरक्षा जोख़िम खड़े हो सकते हैं.[viii] इन जोख़िमों की रोकथाम के लिए इंटर-ऑपरेबल प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के डिज़ाइन और विकास में सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है. इसमें सुरक्षा नियंत्रण लागू करने और प्रोटोकॉल का मानकीकरण करने के साथ-साथ प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों को उचित स्वरूप प्रदान करना (configure) और उनकी समुचित निगरानी सुनिश्चित करना भी शामिल है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो असुरक्षाएं और घुसपैठ देखने को मिल सकती हैं जो डिजिटल प्रणाली में भरोसे को कम करके नवाचार को कमज़ोर करते हैं. निजता और सुरक्षा से जुड़े जोख़िम, खुलेपन की मात्रा पर एक सीमा पैदा कर सकती हैं, जिसे इंटर-ऑपरेबिलिटी के माध्यम से अनिवार्य किया जाना चाहिए.
हमारी अर्थव्यवस्थाओं और समाज की डिजिटल इकोसिस्टम पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है. ये तंत्र आर्थिक वृद्धि को गति देने और बेहतर सामाजिक लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में डिजिटलीकरण का स्तर बढ़ रहा है, डेटा प्रवाह ना केवल देशों के भीतर, बल्कि सरहदों के आर-पार भी अहम हो गए हैं.[ix] अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के लिए डेटा प्रवाह के इन फ़ायदों को लेकर डिजिटल दायरे में सक्रिय विभिन्न किरदारों की गतिविधियों में विश्वास की आवश्यकता होती है. डेटा संरक्षण और निजता क़ानूनों के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी, निश्चितता और सुरक्षा सुनिश्चित करती है. साथ ही सीमा पार डेटा प्रवाह पर प्रतिबंधों में भी कमी लाती है.[x] इंटर-ऑपरेबिलिटी के बिना, विभिन्न प्रणालियों और प्लेटफार्मों पर डेटा तक पहुंच बनाना और उन्हें साझा करना कठिन है.
इंटर-ऑपरेबिलिटी के अभाव से लागत ऊंची हो सकती है, क्योंकि संगठनों को विभिन्न प्रणालियों को जोड़ने के लिए कस्टम एकीकरणों में निवेश करने या अपने ख़ुद के समाधान विकसित करने की ज़रूरत पड़ सकती है. ये क़वायद ग्राहकों पर स्विचिंग या बदलाव को लेकर अतिरिक्त लागत आयद कर सकती है. इस प्रकार संसाधन, मुख्य व्यावसायिक गतिविधियों से दूर हो जाते हैं. इसके विपरीत, इंटर-ऑपरेबिलिटी हासिल करने की लागत या तो पूर्व (ex-ante) (इंटर-ऑपरेबिलिटी के संबंध में किसी भी निर्णय से पहले) या पूर्व-व्यापी रूप (ex-post) से भी अधिक है क्योंकि फर्मों को विस्तृत मानक बनाने होते हैं.
सार्वजनिक मानकों का पालन करने को लेकर प्लेटफॉर्म इंटरफेस की विशिष्टताओं को परिभाषित करने में नियामकों और मानकीकरण संगठनों की भूमिका बेहद अहम है.[xi] हालांकि, आमतौर पर नियामकों के पास ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेसेस (APIs) और तकनीकी पहुंच स्थितियों को अनुकूलित करने के लिए तकनीकी और बाज़ार विशेषज्ञता का अभाव होता है. साफ्टवेयर मानकों को परिभाषित करने की क़वायद में डिजिटल बाज़ारों के तेज़-रफ़्तार माहौल की तुलना में मानक-निर्धारण संगठन, बेहद सुस्त गति से आगे बढ़ रहे हैं.[xii]
सार्वजनिक क्षेत्र के डिजिटलीकरण की क़वायद में इंटर-ऑपरेबिलिटी एक अहम सक्षमकारी कारक के रूप में कार्य करती है. इससे डिजिटल सार्वजनिक सेवा लक्ष्यों को ज़मीन पर उतारना सुविधाजनक हो जाता है. सूचना प्रौद्योगिकी (IT) बुनियादी ढांचे के बेमेल स्वरूप के अलावा विभिन्न डेटा मॉडल और मानकों का उपयोग, संगठनों के बीच और उनके भीतर इंटर-ऑपरेबिलिटी को सीमित कर देता है.[xiii] G20, दुनिया भर में सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसके सदस्य विश्व की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या, 85 प्रतिशत वैश्विक GDP और 75 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस प्रकार G20 का विश्व अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव है.[xiv]
मौजूदा डिजिटल युग में सीमा पार डिजिटल व्यापार अलग-अलग मानकों के साथ तेज़ी से बढ़ रहा है. ऐसे में संगठनात्मक और राष्ट्रीय सीमाओं से परे, व्यापक संदर्भ में इंटर-ऑपरेबिलिटी की ओर रुख़ करने के लिए मौजूदा नीतियों पर ध्यान देने की सख़्त दरकार है.[xv] डिजिटल सेवाओं के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी, नवाचार को बढ़ा सकती है और प्रतिस्पर्धा में इज़ाफ़ा कर सकती है. विक्रेता लॉक-इन को कम करके और उपभोक्ता संरक्षण और सुरक्षा सुनिश्चित करके इन क़वायदों को अंजाम दिया जा सकता है. G20 के पास दुनिया भर में व्यवसायों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने का अवसर है. वैश्विक मानकों की स्थापना करके और एक मज़बूत नीतिगत ढांचा खड़ा करके ये कामयाबी हासिल की जा सकती है.
इस कड़ी में नीति को मज़बूत डिजिटल रणनीतियों के आधार पर विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए, साथ ही क्षेत्र-विशेष की चुनौतियों का समाधान करने के लिए पर्याप्त रूप से लचीला भी होना चाहिए. पहुंच और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर की नीतियों का वैश्विक नीतियों के साथ सामंजस्य करने या तालमेल बिठाने की आवश्यकता है. नीतियों को संस्थागत बाधाओं से उत्पन्न चुनौतियों का भी समाधान करना चाहिए और कंपनियों को इसपर क़ाबू पाने के लिए एक एकीकृत प्रक्रिया दृष्टिकोण अपनाने की छूट भी देनी चाहिए. डिजिटल सेवाओं की इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए वैश्विक मानक स्थापित करके कारोबारों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में G20 समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. आज, सीमाओं के आर-पार होने वाले डेटा प्रवाह, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और डिजिटल सेवा मॉडलों में अहम भूमिका निभाते हैं; हालांकि, सीमा पार व्यक्तिगत डेटा हस्तांतरण की सीमाओं और डेटा को स्थानीय स्तर पर भंडारित करने की आवश्यकता वाले कानूनों के चलते ये प्रवाह अक्सर बाधित होते हैं.[xvi]
ये कंसोर्टियम डिजिटल मानकों में सामंजस्य लाने की क़वायदों को बढ़ावा दे सकता है, सीमा पार डेटा प्रवाह के लिए रूपरेखा तैयार कर सकता है, और डेटा एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA) और EU जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन जैसी नई टेक्नोलॉजियों के विकास को सहारा दे सकता है.
इसके अलावा, प्रयासों का समन्वय करके और अन्य स्टेकहोल्डर्स (जैसे निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और सिविल सोसाइटी) के साथ सहयोग करके, G20, डिजिटल इंटर-ऑपरेबिलिटी को बढ़ावा देने वाले वैश्विक मानकों और नीतियों के विकास का रास्ता साफ़ कर सकता है.
प्रमुख उद्देश्यों में से एक है डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश को बढ़ावा देना. साथ ही मौजूदा और भविष्य की मांगों को पूरा करने और डिजिटल खाई को पाटने में मदद करने के लिए डिजिटल साक्षरता को बढ़ाना भी अहम उद्देश्य है. भारत में मौजूदा और आवश्यक कौशल के बीच अंतर को दूर करने की सख़्त ज़रूरत है. डिजीसक्षम जैसी डिजिटल कौशल पहल को बढ़ावा देकर इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने और आगे बढ़ाने के लिए G20 को सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों की भी सहायता करनी चाहिए. साथ ही सदस्य देशों को पारंपरिक बाधाओं को दूर करने के लिए राष्ट्रीय डिजिटल रणनीति विकसित करने को लेकर प्रोत्साहित करना चाहिए. नीति में विकासशील देशों के लिए फंडिंग से जुड़े तंत्र का भी प्रावधान होना चाहिए ताकि वे नई प्रौद्योगिकियों और नवाचार तक पहुंच बनाने के लिए G20 मंच का भरपूर लाभ उठा सकें.
इस दिशा में नीति को सीमा पार व्यापार और अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति को सहारा देने को लेकर डिजिटल सेवाओं और प्रौद्योगिकियों के लिए मानकों और मानकों पर आधारित इंटर-ऑपरेबिलिटी के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए. सदस्य देशों की सरकारों को विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार समझौतों का समर्थन करने वाले सीमा पार नियमों के सामंजस्य के लिए भी G20 प्रोत्साहित कर सकता है. इसके लिए एक सामान्य मानक-निर्धारण प्रक्रिया लागू की जा सकती है. इसके अलावा, डिजिटल सेवाओं के लिए वैश्विक मानक स्थापित करके इंटर-ऑपरेबिलिटी, कारोबारों के लिए व्यवहार्य अवसर पैदा कर सकती है. जब डिजिटल सेवाएं इंटर-ऑपरेबल होती हैं, तब कारोबारों के लिए अपनी सेवाओं को दूसरों के साथ एकीकृत करना, अपने उपभोक्ता आधार का विस्तार करना और राजस्व बढ़ाना आसान हो जाता है. G20 को डिजिटल सत्यापन और डिजिटल भुगतान को मान्यता देकर डिजिटल माध्यम से सीमा पार व्यापार की सुविधा मुहैया करानी चाहिए. बेस इरोज़न और प्रॉफिट शिफ्टिंग के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स के लिए उपयुक्त करों की अदायगी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए.[xvii]
ये कंसोर्टियम, मानकीकृत नियमों और विनियमों की स्थापना करके डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा के लिए समान अवसर उत्पन्न कर सकता है. ये क़वायद व्यापार बाधाओं को कम करता है और व्यवसायों के लिए पहले से अधिक पूर्वानुमानित (predictable) और पारदर्शी वातावरण बनाता है. साथ ही निवेश को प्रोत्साहित करता है और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है. इसके अतिरिक्त, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और मूल्य श्रृंखलाओं में विविधता लाने और उन्हें अधिक लचीला बनाने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग किए जाने की आवश्यकता है. भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा शुरू की गई आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन जैसी पहल लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण के लिए एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान कर सकती हैं.
नियामकों को मानक-निर्धारण प्रक्रिया में मध्यस्थता करने की क़वायद में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. साथ ही सहयोगात्मक निरीक्षण के नए तौर-तरीक़े भी खोजने चाहिए.[xviii] मुमकिन है कि इंटर-ऑपरेबिलिटी आंतरिक रूप से ना उभरे, और इसे अनिवार्य बनाना ही इसे क्रियान्वित करने का इकलौता तरीक़ा हो सकता है. APIs और डेटा प्रारूपों का ब्योरा नियत करते समय, नियामकों को मानकीकरण निकायों द्वारा तय किए गए मानकों का पालन करना चाहिए. अगर कोई मानक मौजूद ना हो, तो मानकीकरण निकाय को इस खाई का निपटारा करते हुए समाधान प्रस्तावित करने चाहिए, जिसे आगे चलकर अपनाया जा सकता है.[xix] एक अन्य दृष्टिकोण भरोसेमंद तीसरा पक्ष या एक निरीक्षण बोर्ड स्थापित करने से जुड़ा है, जो समीक्षा कर सके और ये सुनिश्चित कर सके कि संगठन सुरक्षा और अनुपालन मानकों को पूरा करता है.
डिजिटलीकरण विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों में धीरे-धीरे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता जा रहा है, इसलिए मौजूदा डिजिटल विभाजन का निपटारा करना अनिवार्य हो गया है. खासतौर से विकासशील देशों में ये क़वायद निहायत ज़रूरी हो जाती है. विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के बीच सुचारू संचार और डेटा का बेरोकटोक आदान-प्रदान सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल सेवाओं की इंटर-ऑपरेबिलिटी आवश्यक है. G20 दुनिया की लगभग 65 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, लिहाज़ा उसे सामान्य सिद्धांतों पर सहमत होना चाहिए, इस दिशा में सुधार शुरू करने चाहिए, नवाचार और समावेशी विकास को बढ़ावा देना चाहिए और डिजिटल बुनियादी ढांचे में मौजूदा खाइयों को पाटना चाहिए.
डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा (DPI) परस्पर जुड़े डिजिटल प्लेटफॉर्मों, प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों का एक नेटवर्क है. ये डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को उत्प्रेरित कर सकता है. विकासशील देशों को डिजिटल कारोबारों के लिए अधिक सक्षम वातावरण बनाने, डिजिटल खाई को पाटने और साइबर सुरक्षा और डेटा निजता बढ़ाने में DPI मददगार साबित हो सकता है. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम इसकी बेहतरीन मिसाल है. कुशल फाइबर नेटवर्क के माध्यम से सभी ग्रामीण समूहों तक ब्रॉडबैंड पहुंच प्रदान करना और देश के दूरसंचार बुनियादी ढांचे का विस्तार करके डिजिटल समावेशन की क़वायद को आगे बढ़ाना इसका उद्देश्य है.[xx]
अंतर-संगठनात्मक जानकारी साझा करने की क़वायद और इंटर-ऑपरेबिलिटी कई भागीदारों के बीच तेज़ रफ़्तार से निर्णय लेने और सहभागिता क़ायम करने की छूट देते हैं.[xxi] G20 को अपने सदस्य देशों को डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के लिए एक मानकीकृत ढांचा स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. साथ ही नई डिजिटल सार्वजनिक सेवाओं की संरचना बनाते समय एक केंद्रीय तत्व के रूप में इंटर-ऑपरेबिलिटी को एकीकृत करने के लिए भी बढ़ावा देना चाहिए.[xxii] डिजिटल सेवाओं के बीच बेरोकटोक संचार और डेटा आदान-प्रदान को बढ़ावा देना ज़रूरी है. इस कड़ी में अंतरराष्ट्रीय स्तर के बेहतरीन तौर-तरीक़ों पर आधारित दिशानिर्देश विकसित करने के लिए भी G20 उद्योग जगत के किरदारों के साथ मिलकर काम कर सकता है.
डिजिटल सेवाओं की इंटर-ऑपरेबिलिटी को बढ़ावा देने में मानक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मानकीकरण की क़वायद उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास का मार्गदर्शन कर सकती है. इनमें 5G वायरलेस संचार, विनिर्माण (उद्योग 4.0) और निर्माण प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण, डेटा-संचालित सेवाएं, क्लाउड सेवाएं, साइबर सुरक्षा, ई-स्वास्थ्य, ई-परिवहन और मोबाइल भुगतान जैसी प्रौद्योगिकियां शामिल हैं.[xxiii] G20 को सामान्य मानक स्थापित करने और सीमा के आर-पार नवाचारों की पारस्परिक मान्यता की वक़ालत करनी चाहिए. साथ ही उसे मानक विकास संगठनों और ऐसे कंसोर्टियमों का समर्थन करना चाहिए जो डिजिटल व्यापार के साथ-साथ सूचना और डेटा आदान-प्रदान की इंटर-ऑपरेबिलिटी की सुविधा प्रदान करते हैं. G20 डिजिटल ऐप्लिकेशंस के लिए सॉफ्टवेयर इंटरऑपरेबिलिटी सुनिश्चित करने और डिजिटल अर्थव्यवस्था में तमाम किरदारों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने को लेकर ओपन API के सिलसिले में एक ढांचे को बढ़ावा दे सकता है. विशिष्ट API जैसे मानकों का इस्तेमाल, मॉड्यूलर और ओपन-सोर्स आइडेंटिटी प्लेटफॉर्म (सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों की ओर से सुरक्षित और निजता का संरक्षण करने वाले डिजिटल पहचानों को जारी करने और उनका प्रबंधन करने में सक्षम बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया एक ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म) जैसी सेवाओं के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी को लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र है. यूरोपीय संघ के APIs4DGov डिजिटल सरकारी APIs भी इसी कड़ी में शामिल हैं. ये अनुकूलता वाले उत्पादों और सेवाओं के विकास के लिए एक सामान्य ढांचा मुहैया कराते हैं, साथ ही विभिन्न प्रणालियों और प्लेटफार्मों के एकीकरण की सुविधा भी प्रदान करते हैं. ऐसे मानक, डिजिटल सेवाओं के बीच संचार के लिए एक सामान्य संचार भाषा और प्रक्रिया स्थापित कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय मानकों के विकास और स्वीकार्यता से डिजिटल सेवाओं के बाज़ार में दरारों को कम करने में भी मदद मिल सकती है.
नई टेक्नोलॉजियां और कारोबारी मॉडल, इंटर-ऑपरेबिलिटी के रास्ते की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ सहभागिता और एकीकरण के नए अवसर पैदा करने में मदद कर सकते हैं. समावेशी तरक़्क़ी, तकनीकी नवाचार, कौशल के स्तरों में उन्नति और ज्ञान साझा करने की क़वायदों को बढ़ावा देने के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के सहभागिता से जुड़े प्रयासों में G20 महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. G20 को ऐसे ऐप्लिकेशंस के निर्माण पर ज़ोर देना चाहिए जो आजीविका पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकें, विभिन्न क्षेत्रों में रफ़्तार ला सकें, आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत कर सकें और साइबर-सुरक्षित दुनिया का निर्माण कर सकें.[xxiv] G20 को विकासशील देशों की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करते हुए मानकों की अनुपालना के एकीकरण के ज़रिए लचीली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बनाने को लेकर एक रोडमैप भी स्थापित करना चाहिए. सरकारों, मानक संगठनों और उद्योग संघों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर ऐसा रोडमैप हासिल किया जा सकता है. नवाचार और डेटा संरक्षण की आवश्यकता की पहचान के लिए G20 को सदस्य देशों के साथ सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. इंटर-ऑपरेबिलिटी मानकों को विकसित करने और राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार इंटर-ऑपरेबल डिजिटल सेवाओं की स्वीकार्यता को बढ़ावा देने के लिए G20 अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों को भी शामिल कर सकता है. इनमें आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) और संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे संगठन शामिल हैं. इसके अलावा, G20 देशों के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम करना और ई-कॉमर्स विकास पर आम सहमति तक पहुंचना आवश्यक है. इस कड़ी में ये भी सुनिश्चित करना होगा कि इन क़वायदों का विकासशील देशों की व्यापार प्रतिस्पर्धिता पर कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़े.[xxv]
ज़्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में तकनीकी नियमनों के क्रियान्वयन से जुड़े प्रभाव की निगरानी और मूल्यांकन करने का तंत्र कमज़ोर है. इंटर-ऑपरेबिलिटी मानकों के अमल के लिए प्रतिस्पर्धा कानून प्रवर्तन (enforcement), प्रतिस्पर्धा प्राधिकरण बाज़ार जांच-पड़तालों, क्षेत्रों के हिसाब से ख़ास विनियमन और व्यापक आधार वाले अन्य विनियमन के माध्यम से कुछ हद तक नियामक निरीक्षण की आवश्यकता हो सकती है. G20 उन नियामक चुनौतियों का समाधान करने के लिए काम कर सकता है जो डिजिटल सेवाओं की इंटर-ऑपरेबिलिटी में बाधा डालती हैं. नियामक ढांचे के सामंजस्य को बढ़ावा देकर ऐसा किया जा सकता है. इसे उपयोगकर्ताओं की निजता और सुरक्षा का बचाव करते हुए प्रतिस्पर्धा और नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए. G20 को सदस्य देशों के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए ओपन-सोर्स मानकों और प्रोटोकॉल्स के उपयोग को भी प्रोत्साहित करना चाहिए. ओपन-सोर्स मानकों (जैसे BECKN प्रोटोकॉल) पर आधारित ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स जैसी पहल, विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्मों और सेवा प्रदाताओं के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी और डेटा के बेरोकटोक आदान-प्रदान को सक्षम कर सकती है. वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के हिस्से के रूप में अपने उत्पादों का प्रस्ताव करने के लिए व्यक्तियों को सशक्त बनाने को लेकर बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) को मज़बूत करने की आवश्यकता होगी.[xxvi] लागतों को कम करने और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं तक पहुंच बढ़ाने के मक़सद से सदस्य देशों के बीच IPR सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए G20 सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण पर ज़ोर दे सकता है.
एट्रीब्यूशन: दीप कपूरिया, राजेश माहेश्वरी, और अंकित कटारिया, “टूवर्ड्स इंटरऑपरेबिलिटी ऑफ डिजिटल सर्विसेस एंड स्टैंडर्ड सेटिंग,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
[i] Marc Bourreau, Jan Kramer, Miriam Buiten, “Interoperability in Digital Markets”, Centre on Regulation in Europe, March 2022.
[ii] Marco Annunziata and Hendrik Bourgeois, “The Future of Work: How G20 Countries Can Create the Conditions for Digital-Industrial Innovations to Create Stronger High-Quality Employment as well as Faster Economic Growth,” G20 Insights, 2017.
[iii] Ian Brown and Douwe Korff, “Interoperability as a tool for competition regulation,” Data Protection and Digital Competition, October 1, 2020.
[iv] Daniel Hodapp and Andre Hanelt, “Interoperability in the Era of Digital Innovation: An Information Systems Research Agenda”, Journal of Information Technology, February 7, 2022.
[v] Wolfgang Kerber and Heike Schweitzer, “Interoperability in the Digital Economy”, JIPITEC, 2017.
[vi] “Data Portability, Interoperability and Digital Platform Competition”, OECD Competition Committee Discussion Paper, 2021.
[vii] Armir Bujari, Marco Furini, Federica Mandreoli, Riccardo Martoglia, Manuela Montangero, Daniele Ronzani, “Standards, Security and Business Models: Key Challenges for the IoT Scenario”, Mobile Networks and Applications, February 20, 2017 .
[viii] Bennett Cyphers, Cory Doctorow, “Privacy Without Monopoly: Data Protection and Interoperability”, Electronic Frontier Foundation, February 12, 2021.
[ix] “Exchanging and Protecting Personal Data in a Globalised World”, 2017.
[x] “A Roadmap for Cross-Border Data Flows: Future Proofing Readiness and Cooperation in the New Data Economy”, World Economic Forum, June 2020.
[xi] Raegan MacDonald, Owen Bennett, Udbhav Tiwari, “Position paper on the European Commission’s legislative proposal for an EU Digital Markets Act”, Mozilla, July 2021.
[xii] Chris Riley and James Vasile, “Interoperability as a Lens onto Regulatory Paradigms”, Competition Policy International Antitrust Chronicle, June 2021.
[xiii] Tarmo Kalvet et al., “Cross-border E-government Services in Europe: Expected Benefits, Barriers and Drivers of the Once-only Principle”, ICEGOV ’18: Proceedings of the 11th International Conference on Theory and Practice of Electronic Governance, pgs 69-72, April 2018.
[xiv] Department of Foreign Affairs and Trade, Government of Australia, “The G20”, International Relations.
[xv] Kexin Zhao and Mu Xia, “Forming Interoperability Through Interorganisational Systems Standards”, Journal of Management Information Systems, December 8, 2014.
[xvi] W. Gregory Voss, “Cross-Border Data Flows, the GDPR, and Data Governance”, Washington International Law Journal, 2020.
[xvii] “G20 Digital Economy Development and Cooperation Initiatives”, G20 Information Centre, September 5, 2016.
[xviii] Harry Armstrong, Chris Gorst, Jen Rae, “Renewing Regulation: Anticipatory Regulation in an Age of Disruption”, Nesta, March 2019.
[xix] Martin Peitz and Joel Waldfogel, eds., “The Oxford Handbook of the Digital Economy”, August 2012.
[xx] Ministry of External Affairs, Government of India, “India Attends G20 Digital Economy Ministerial,” August 24, 2018.
[xxi] David K. Allen, Stan Karanasios, Alistair Norman, “Information Sharing and Interoperability: The Case of Major Incident Management”, European Journal of Information Systems, December 19, 2017.
[xxii] Alexandra Campmas, Nadina Iacob, Felice Simonelli, “How Can Interoperability Stimulate the Use of Digital Public Services? An Analysis of National Interoperability Frameworks and e-Government in the European Union”, Data & Policy, June 13, 2022.
[xxiii] “A Digital Single Market Strategy for Europe”, EurLex, May 6, 2015.
[xxiv] “Trustworthy digital systems can transform the society and economy says Ravi Shankar Prasad”, INDIAai, July 23, 2020.
[xxv] Shruti Jain, “The G20 Digital Economy Agenda for India”, ORF Occasional Paper No 365, September 2022.
[xxvi] “Intellectual Property and Development in the Digital Economy”, UNCTAD, April 10, 2019.