‘जलवायु वित्तपोषण’ की जगह ‘न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन वित्तपोषण’ की आवश्यकता!

Fikri Muhammad | Petra Christi

टास्क फोर्स 4: विकास को नई गति: स्वच्छ ऊर्जा और ग्रीन ट्रांज़िशन


 

सार

 

ऐसा ज़रूरी नहीं है कि अधिक टिकाऊ आर्थिक प्रणाली में परिवर्तन का समर्थन करने के लिए जो नीतियां बनाई जाएं, वो सभी के लिए अनुकूल हों. इसलिए, परिवर्तन को लेकर जो भी प्रयास किए जा रहे हैं उन्हें पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद की अमल में लाया जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये कोशिशें पहले से मौज़ूद असमानताओं को समस्याओं को बढ़ाने वाली साबित नहीं हों. जीवाश्म ईंधन से ऊर्जा उपयोग के गैर-प्रदूषणकारी स्वरूपों में परिवर्तन की फाइनेंसिंग एक व्यापक चुनौती है. इसी प्रकार से सभी प्रभावित हितधारकों को टिकाऊ और वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना भी बेहद महंगा है. दुर्भाग्य की बात यह है कि इस महत्त्वपूर्ण पहलू को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. मौज़ूदा दौर में जलवायु वित्तपोषण के लिए जो भी कव़ायद की जा रही है, वह पूरी तरह से आर्थिक विविधीकरण, री-स्किलिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर के निवेश के वित्तपोषण आदि को संबोधित नहीं करती है. विकासशील देशों के लिहाज़ से तो ख़ास तौर पर यह सच है. यह पॉलिसी ब्रीफ़ जलवायु वित्तपोषण के दायरे का जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग यानी न्यायोचित परिवर्तन वित्तपोषण तक विस्तार करने की वक़ालत करता है. सामाजिक-तकनीक़ी ट्रांज़िशन के मुताबिक़ लोगों का सामर्थ्य बढ़ाने के लिए धनराशि की व्यवस्था करने पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मंच के रूप में G20 को न्यायोचित ऊर्जा परिगमन वित्तपोषण को आकार देने और इसे मुख्यधारा में लाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.

 

 

  1. चुनौती: सभी के लिए जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन

 

लो-कार्बन इकोनॉमी सिस्टम, यानी ऐसे ऊर्जा स्रोतों पर आधारित अर्थव्यवस्था जो कम स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है, में परिवर्तन देखा जाए तो निसंदेह तौर पर व्यापक दबाव की वजह है. ज़ाहिर है कि ऊर्जा का यह बदलाव कई हितधारकों पर नकारात्मक रूप से असर डाल सकता है, ख़ास तौर पर वर्तमान में ऐसे उद्योग पर निर्भर कर्मचारियों और समुदायों को प्रभावित कर सकता है, जो अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योगों से जुड़े हुए हैं. ऐसे में यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एनर्जी ट्रांज़िशन की जो कोशिशें की जा रही हैं, वो पहले से मौज़ूद असमानताओं को न बढ़ाएं. [1] , [2] , [3] इस पूरी प्रक्रिया से प्रभावित होने वाले हितधारकों की ज़रूरतों को पूरा करना आवश्यक है. जैसा कि पी. नेवेल और डस्टिन मुलवेनी ने वर्ष 2013 के अपने पेपर, ‘द पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ दि जस्ट ट्रांज़िशन’ (‘The Political Economy of the Just Transition’) में लिखा है: [4] “निष्पक्षता और समानता के मुद्दे किसी भी ऊर्जा परिवर्तन की प्रक्रिया में अंतर्निहित होंगे… और इन मुद्दों को बेहतर तरीक़े से समझने एवं उनके बारे में पहले से सोच-विचार करना ज़रूरी है.” उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने की मौज़ूदा चर्चा-परिचर्चा में समानता, निष्पक्षता और न्याय के पहलू को शामिल करना बेहद अहम है. [5]

 

‘जस्ट ट्रांज़िशन’ का विचार पहली बार 1970 के दशक में सामने आया था, जो कि सख़्त पर्यावरणीय मानदंड़ों की वजह से प्रभावित होने वाले कामगारों को मुआवजा देने पर केंद्रित था. [6] , [7] वर्तमान में जिस प्रकार से सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन का दायरा व्यापक हुआ है, उसी तरह से जस्ट ट्रांज़िशन यानी कि उचित व न्यायसंगत परिगमन की परिभाषा भी श्रमिकों के मुद्दों से कहीं आगे निकलकर काफ़ी व्यापक हो गई है. राफेल जे. हेफ्रॉन ने अपनी पुस्तक, अचीविंग ए जस्ट ट्रांज़िशन टू ए लो कार्बन इकोनॉमी (Achieving a Just Transition to a Low Carbon Economy) में इसे “टिकाऊ और न्यायसंगत समाधान एवं समानता और समग्रता की तलाश” के रूप में वर्णित किया है. [8] देखा जाए तो वर्तमान परिस्थितियों में विस्थापित श्रमिकों, कामगारों और समुदायों की तात्कालिक ज़रूरतों से फोकस हट गया है और पूरा ध्यान इन व्यापक सवालों पर केंद्रित हो गया है कि कौन, कैसे और क्यों कुछ लोगों को फायदा होता है और दूसरों को नहीं. विशेषज्ञों ने इस बात को दृढ़तापूर्वक कहा है कि ऊर्जा ट्रांज़िशन से संबंधित नीतियों को “एनर्जी जस्टिस के तीन सिद्धांतों” के अनुरूप होना चाहिए, यानी वितरण से संबंधित (क्या), पहचान (कौन) और प्रक्रियात्मक (कैसे). [9] , [10]

 

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए, अर्थात जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए गैर-नवीकरणीय, जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता से नवीकरणीय, स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर होने के लिए वित्तपोषण एक सार्वभौमिक चुनौती के तौर पर उभरा है. ज़ाहिर है कि नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा कार्यक्षम परियोजनाओं में निवेश करने और कोयले से चलने वाले संयंत्रों को ज़ल्द से ज़ल्द बंद करने के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है. इसमें कोई शक नहीं है कि ये संसाधन जलवायु शमन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हैं. इसी प्रकार से परिवर्तन की इस प्रक्रिया से प्रभावित होने वाले हितधारकों को टिकाऊ एवं  वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना भी बेहद महंगा और मुश्किल कार्य है, लेकिन कुछ भी हो, इसे किया जाना चाहिए. ऊर्जा परिगमन को वास्तविक अर्थों में न्यायसंगत बनाने के लिए, इसमें न केवल प्रभावित कामगारों को बल्कि स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए ,जो स्पिलओवर इफेक्ट्स यानी ऐसे प्रभावों के भुक्तभोगी बनते हैं, जिनसे उनका कोई लेनादेना नहीं होता है. अगर ऐसे नहीं किया जाता है तो ज़ाहिर तौर पर एनर्जी ट्रांज़िशन की स्केल और स्पीड दोनों पर असर पड़ेगा. [11]

 

उल्लेखनीय है कि प्रभावित हितधारकों की आवश्यकताओं पर ध्यान देने और उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल करने के लिए ‘जलवायु वित्तपोषण’ की अवधारणा को व्यापक बनाया जाना चाहिए. यह पॉलिसी ब्रीफ़ न केवल ऐसे विस्तार की पैरोकारी करता है, बल्कि कई देशों द्वारा इस दिशा में अपनाई गई नीतियों और वित्तपोषण तंत्रों के उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो अलग-अलग स्तर पर बेहद क़ामयाब रहे हैं.

 

 

  1. G20 की भूमिका: वित्तपोषण के दायरे का विस्तारीकरण

 

जलवायु वित्तपोषण बनाम जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग

समसामयिक जलवायु वित्तपोषण और जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग को अलग-अलग करना बहुत महत्त्वपूर्ण है. आर. कैरे और ओ. वेबर [12] अपने पेपर, ‘हाउ मच फाइनेंस इज क्लाइमेट फाइनेंस?’ (‘How Much Finance is Climate Finance?’) में कहते हैं कि जलवायु वित्तपोषण के बारे में कोई स्वीकृत वर्गीकरण नहीं है; हालांकि, क्लाइमेट फाइनेंसिंग को आम तौर पर शमन वित्तपोषण एवं अनुकूलन वित्तपोषण में बांटा गया है. शमन वित्तपोषण कार्बन उत्सर्जन के स्तर को कम करने के मकसद से की जाने वाली फाइनेंसिंग से संबंधित है, जबकि अनुकूलन वित्तपोषण लचीलापन लाने और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के उपायों को फाइनेंस करने से संबंधित है. [13] क्लाइमेट फाइनेंसिंग के उदाहरणों में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करना, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, जलवायु-लचीला इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण एवं पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण शामिल हैं. यह परिकल्पना मुख्य रूप से वर्ष 2015 में कॉन्फ्रेंस ऑफ़ दी पार्टीज़ (COP) के पेरिस एग्रीमेंट के दौरान सामने आई थी और इसका मक़सद कम कार्बन उत्सर्जन वाली एवं जलवायु-लचीली परियोजनाओं के लिए धनराशि के प्रवाह को एक उचित दिशा देना था.

 

हालांकि, देखा जाए तो इस अवधारणा में केवल जलवायु से जुड़ी पहलों के वित्तपोषण पर ही फोकस किया गया है, [14] इसमें इन पहलों से प्रभावित होने वाले हितधारकों पर पड़ने वाले विपरीत असर का समाधान करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है. ज़ाहिर कि इस कार्य के लिए अलग से व्यापक पैमाने पर निवेश की ज़रूरत है; [15] ऐसी पहलों को जलवायु अनुकूलन के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. समसामयिक जलवायु फाइनेंसिंग का विस्तार न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन वित्तपोषण को शामिल करने के लिए किया जाना चाहिए.

 

यद्यपि ‘जस्ट ट्रांज़िशन’ की परिकल्पना के बारे में पहली दफ़ा 1970 के दशक में सोचा गया था, लेकिन इसके वित्तपोषण को लेकर चर्चा अभी भी शुरुआती दौर में है. [16] फिलहाल जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग के लिए अभी तक कोई स्वीकृत वर्गीकरण नहीं है. हालांकि, इस ओर कुछ क़दम ज़रूर उठाए गए हैं. ऐसे कुछ अध्ययन किए गए हैं, जो उन विशेषताओं को सामने लाते हैं, जिन्हें न्यायोचित परिवर्तन वित्तपोषण को निर्धारित करने के लिए अमल में लाना चाहिए.

 

साइमन ज़ेडेक ने अपने पेपर, ‘फाइनेंसिंग ए जस्ट ट्रांज़िशन’ (‘Financing a Just Transition’) [17] में कहा है कि “संतुलित, टिकाऊ वृद्धि” के लिए उत्पादकता बढ़ाने और धन-संपदा सृजित करने वाले निवेश की ज़रूरत है. ट्रांज़िशन फाइनेंस को सोशल सेफ्टी नेट यानी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से परे जाना चाहिए, जो कि देखा जाए तो अक्सर छोटी अवधि के लिए होता है और अनुत्पादक होता है. इसके साथ ही इससे प्रभावित होने वाले समुदायों एवं कामगारों के लिए वैकल्पिक और टिकाऊ आजीविका बनाने के लिए सहयोग की आवश्यकता है. [18] सान्या कार्ली और डेविड एम. कोनिस्की [19] के मुताबिक़ जस्ट ट्रांज़िशन “व्यापक स्तर पर आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों की वजह से उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों के बोझ तले दबे अग्रिम पंक्ति के समुदायों की मदद करने के लिए अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के प्रयासों” के इर्द-गिर्द घूमता है. उन्होंने आगे कहा कि यह जो वित्तपोषण है, उसे जलवायु के अनुकूलन की क्षमता में सुधार से आगे की बात को भी अपने जेहन में रखना चाहिए; इसे बॉटम-अप नज़रिए, अर्थात निचले स्तर के लोगों के कल्याण के नज़रिए का पालन करना चाहिए और प्रभावित समुदायों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए. [20] स्थानीय बौद्धिकता और जानकारी को एकजुट करने की ज़रूरत है, क्योंकि गवर्नेंस में उनका सीधे तौर पर समावेशन विशेषरूप से महत्त्वपूर्ण है.

 

 

चित्र 1- जलवायु वित्तपोषण बनाम जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग

 

स्रोत: लेखक का अपना

 

संक्षेप में, ‘जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग’ की औपचारिक तौर पर परिभाषा यह हो सकती है कि “वर्तमान सामाजिक-तकनीक़ी व्यवस्था की जगह लेने वाली अधिक टिकाऊ और न्यायसंगत व निष्पक्ष वैकल्पिक प्रणाली के विकास को वित्तपोषित करना.” चित्र 1 जस्टिस के उन घटकों को दर्शाता है, जो अक्सर समसामयिक क्लाईमेट फाइनेंसिंग की परिकल्पना से बाहर रह जाते हैं, जैसे कि आर्थिक क्षेत्र के विविधीकरण के लिए धन की व्यवस्था करना, कर्मचारियों के प्रशिक्षण, उनके क्षमता निर्माण और सहायक बुनियादी ढांचे के लिए फाइनेंसिंग करना.

 

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग के आवंटन को आगे बढ़ाना

ऊर्जा परिवर्तन नीतियों को बनाने के दौरान सरकारों को सक्षम स्थितियों, अर्थात ऐसी स्थितियां जो सामाजिक और पारिस्थितिक चुनौतियों से निपटने के दृष्टिकोण को सुविधाजनक बनाती हैं, पर ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है. जैसे कि विविधीकरण योजनाओं और बिजनेस डेवलपमेंट प्रोत्साहन, कर्मचारियों के लिए क्षमता निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का समर्थन. इस प्रकार के परिवर्तन की प्रमुख विशेषताएं निम्न होंगी:

 

अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले उद्योगों के क्षेत्र को अन्य टिकाऊ उद्योगों में परिवर्तित करने के लिए विविधीकरण की योजना ज़रूरी है. यह निजी संस्थाओं को टिकाऊ उद्योगों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, जिससे परिगमन के दौरान होने वाले ख़तरे कम हो जाएंगे. इसके लिए सरकार को स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनाने चाहिए, जो प्रदूषण नहीं फैलाने वाले वर्तमान उद्योगों को आगे बढ़ाने, या फिर नए व्यवसाय विकसित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करें. उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में गैर-कोयला बिजनेस सेक्टरों को ऑस्ट्रेलियन काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स द्वारा ऊर्जा सब्सिडी देकर सहयोग किया जाता है, जो न केवल उत्पादन की लागत को कम करता है, बल्कि प्रोडक्ट की प्रतिस्पर्धा में भी सुधार करता है. [21]

 

 

अन्य विश्लेषकों के मुताबिक़ ट्रांज़िशन से जुड़े ये कार्यक्रम तब ज़्यादा सफल होते हैं, जब वे स्थानीय हितधारकों की अगुवाई में बॉटम-अप दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं. ज़ाहिर है कि यह दृष्टिकोण हर लिहाज़ से स्थानीय हितधारकों की ज़रूरतों, कमज़ोरियों और चुनौतियों को ध्यान में रखता है. [22] उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया में सावाहलुंटो के कोयला-खनन के शहर से खनन विरासत पर्यटन के शहर में बदलने के दौरान इसी तरह के निचले स्तर के लोगों के उत्थान वाले दृष्टिकोण को अमल में लाया गया. इस परिवर्तन में स्थानीय सरकार और समुदायों ने मिलकर शहर के लिए भविष्य का विज़न विकसित करने हेतु काम किया.[23] रोज़गार और नए कम कार्बन उत्सर्जन करने वाले उद्योगों के बीच समानता और अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रक्रिया बेहद महत्त्वपूर्ण है. इतना ही नहीं इस प्रक्रिया में हितधारकों के लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा के इर्द-गिर्द घूमना पड़े.

 

परिवर्तन के फेज़ में, अपना रोज़गार गंवा देने वाले कोयला वर्कर्स के जीवकोपार्जन के लिए मुआवज़ा बहुत आवश्यक है. हालांकि, इससे भी महत्त्वपूर्ण दोबारा रोज़गार हासिल करने के लिए इन कोयला श्रमिकों को प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है. ज़ाहिर है कि श्रमिकों को फिर से प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने से यह सुनिश्चित होता है कि विस्थापित कर्मचारियों को दोबारा नौकरी की तैयारी करने में मदद मिलती है. इसके साथ ही कामगारों को क्षेत्र में विकसित किए जा रहे नए उद्योगों की ज़रूरतों को पूरा करने के हिसाब से प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है. कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारों और अत्यधिक कार्बन उत्सर्जित करने वाले उद्योगों को कामगारों एवं स्थानीय समुदायों के कल्याण और उनके क्षमता निर्माण में अधिक निवेश करने की ज़रूरत है.

 

इसके अलावा, शिक्षा प्रणाली में भी ऊर्जा परिवर्तन के लिहाज़ से बदलाव किए जाने की आवश्यकता है, साथ ही एक ऐसा कार्यबल तैयार करने पर ज़ोर देने की ज़रूरत है, जो एक टिकाऊ आर्थिक प्रणाली की आवश्यकताओं के अनुरूप हो. ज़ाहिर है कि इस कार्य को पूरा करने के लिए आवश्यक नीतियों की तत्काल आवश्यकता है.

 

परिवर्तन की ओर अग्रसर क्षेत्र को अनुकूल बुनियादी ढांचे की ज़रूरत होती है. इसी प्रकार से ऊर्जा परिगमन को निर्बाध तरीक़े से आगे बढ़ाने के लिए परिवहन, संचार और शैक्षणिक सुविधाओं की आवश्यकता होगी. ज़ाहिर है कि यह नया इंफ्रास्ट्रक्चर न केवल ज़रूरी क्षमता और संसाधनों की कमी को पूरा करने में मददगार साबित होगा, बल्कि मौज़ूदा और नए उद्योगों के लिए परिवर्तन के ख़तरों को कम करेगा. सरकारों को प्रभावी बुनियादी ढांचा निवेश को सक्षम करने में अपनी अहम भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर अक्सर प्राइवेट सेक्टर के लिए वाणिज्य की दृष्टि से आकर्षक नहीं होता है.

 

आमतौर पर पब्लिक गुड्स के प्रावधानों की ज़िम्मेदारी स्थानीय सरकारों की होती है. ऐसे में सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता है, ताकि प्रभावित लोगों को आमदनी के दूसरे साधन तलाशने, उद्यमशीलता बढ़ाने और इस प्रकार से क्षेत्र की आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने में सक्षम बनाया जा सके. उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में राज्य सरकार ने ‘स्वच्छ विकास अर्थव्यवस्था के लिए रास्ते’ बनाए हैं, जिसमें कम कार्बन उत्सर्जन वाली विकास अर्थव्यवस्था, नौकरियों और अवसरों के लिए रणनीतियां शामिल हैं. सतत बुनियादी ढांचे की योजना को इन रणनीतियों में जोड़ा गया है, जिसमें कम कार्बन उत्सर्जन वाली परिवहन प्रणालियों और नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण भी शामिल है.

 

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग सरकारों, प्राइवेट सेक्टर और डेवलपमेंट बैंकों का एक सामूहिक प्रयास होना चाहिए. महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए इस प्रकार से क़दम उठाने चाहिए, जो समुदाय के साथ लाभ एवं ज़िम्मेदारियों को साझा करने वाले हों. सरकारों की प्रमुख ज़िम्मेदारी उद्योगों, ट्रेड यूनियनों और विकास बैंकों से जस्ट ट्रांज़िशन फंड्स का लाभ उठाने के साथ-साथ उद्योगों, समुदायों एवं सिविल सोसाइटी के संगठनों के बीच उनका समुचित वितरण सुनिश्चित करने की है.

 

 

ब्लेंडेड फाइनेंस अर्थात मिश्रित वित्त का प्रावधान भी अहम है. बुनियादी ढांचे के विकास में सरकारी पूंजी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, ख़ास तौर पर वाणिज्यिक रूप से लाभदायक नहीं समझी जाने वाली इंफ्रस्ट्रक्चर परियोजनाओं के विकास में. लेकिन पब्लिक फाइनेंस निजी निवेशकों द्वारा को-फाइनेंसिंग, रियायती ऋण, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित जोख़िम साझ करने वाले साधनों, जैसे कि सॉवरेन गारंटी, फर्स्ट-लॉस प्रावधानों और राजनीतिक ख़तरे की गारंटी के साथ-साथ अनुदान प्रदान करके निजी निवेश को आकर्षित करने में भी एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकता है. इसमें जोख़िम को साझा करने वाले साधन बेहद अहम हैं क्योंकि बदलाव वाले क्षेत्रों को ट्रांज़िशन से जुड़े ख़तरे का सामना करना पड़ता है. ऐसे में निजी सेक्टर की भागीदारी यह सुनिश्चित कर सकती है कि विविधिता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए परिवर्तनशील क्षेत्रों में पैसे की कोई कमी न हो.

 

पिछले कुछ वर्षों में न्यायोचित परिवर्तन वित्तपोषण के साधनों में तेज़ी के साथ प्रगति देखी गई है. ऐसे ही कुछ प्रयासों के बारे में आगे बताया गया है. (नीचे दिये गये तालिका 1 को देखें):

 

उदाहरण के तौर पर यूरोपीय संघ (EU) का जस्ट ट्रांज़िशन मैकेनिज्म़ (JTM), अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत उन क्षेत्रों के लिए अनुदान देता है, जो राष्ट्रीय सह-वित्तपोषण निर्धारित करके आर्थिक विविधीकरण या पुरानी स्थिति में लाने का काम करता है. JTF के पास 17.5 बिलियन यूरो (19 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का फंड है, जो कि मुख्य रूप से यूरोपियन यूनियन के बजट से आता है. इसका लक्ष्य 30 बिलियन यूरो (32.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के कुल निवेश का लाभ उठाना है. इसी प्रकार से 26.2 बिलियन यूरो (28.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की निजी निवेश गारंटी के साथ यूरोपिय यूनियन के InvestEU का लक्ष्य टिकाऊ निवेश, हरित विकास, रोज़गार एवं कोविड-19 महामारी के दौरान हुए नुक़सान की आर्थिक रिकवरी के लिए निजी सेक्टर से 372 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ उठाना है. इसी तरह से ऑस्ट्रेलिया का नेशनल रिकंस्ट्रक्शन फंड (NRF) अपने उद्योग एवं अर्थव्यवस्था में विविधता और परिवर्तन लाने के उद्देश्य से निवेश के लिए 15 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (10 बिलियन अमेरिकी डॉलर) प्रदान करता है, जो ऋण, इक्विटी निवेश और गारंटी के रूप में वितरित किया जाता है.

 

स्कॉटलैंड का JTF वित्तपोषण के लिए बॉटम-अप नज़रिये का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करता है. फंड के कुछ भाग के लिए सहभागी बजट प्रक्रिया की ज़रूरत होती है. इसी प्रकार से ऑस्ट्रेलिया का NRF उद्योगों, यूनियनों, समुदायों और स्थानीय सरकारों के साथ सलाह-मशविरा करता है और इसी के आधार पर सह-निवेश योजनाएं विकसित कर रहा है.

 

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप (JETP), जिसके बारे में नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर पार्टियों के सम्मेलन (COP) में पहली बार सुझाव दिया गया था. यह विकसित देशों द्वारा बहुपक्षीय वित्तपोषण के माध्यम से विकासशील देशों में इस तरह के ऊर्जा परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए एक तंत्र है. इंटरनेशनल पार्टनर्स ग्रुप (IPG) के तत्वावधान में फ्रांस, जर्मनी, यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका संयुक्त रूप से विकासशील देशों के साथ जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप का समर्थन करते हैं. अब तक, IPG के साथ तीन देश, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया (जो G20 के सदस्य हैं) और वियतनाम JETP में शामिल हो चुके हैं. प्रत्येक विकासशील देश के लिए बजट निर्धारित किया जाता है और अगर किसी देश को और अतिरिक्त राशि की ज़रूरत होती है, तो इसके लिए उसे अपनी स्वयं की व्यापक निवेश और नीति योजना बनानी होती है एवं संसाधन जुटाने की योजना तैयार करनी पड़ती है. लेकिन JETP को उपरोक्त घटकों और तंत्रों पर भी विचार करना चाहिए, जहां प्रभावित समुदायों और कर्मचारियों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके.

 

  1. G20 के लिए सिफ़ारिशें: मेनस्ट्रीम जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग

 

लो-कार्बन यानी कम कार्बन उत्सर्जन वाली आर्थिक प्रणाली की ओर परिगमन एक बड़ी चुनौती है. कार्बन-सघन या अधिक कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योगों के स्थापित होने से यह निश्चित है कि आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से ऊर्जा परिवर्तन कष्टदायक होगा. ज़ाहिर है कि प्रभावित क्षेत्रों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए व्यापक निवेश की ज़रूरत है, लेकिन मौज़ूदा जलवायु वित्तपोषण के मॉडल में अक्सर इसे नज़रंदाज़ कर दिया जाता है. न्याय की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए न्यायसंगत परिवर्तन वित्तपोषण की ओर बढ़ने की आवश्यकता है. इसका साफ मतलब यह है कि अनुकूलन क्षमता बढ़ाने पर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान दिया जाए. इसके साथ ही पारदर्शी सामाजिक संवाद और संस्थागत प्रतिनिधित्व के ज़रिए फाइनेंसिंग भी स्थानीय समुदाय की आजीविका को विकसित करने पर केंद्रित एक बॉटम-अप दृष्टिकोण यानी नीचे के स्तर पर मौज़ूद लोगों के उत्थान के दृष्टिकोण पर आधारित होनी चाहिए.

 

जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप को न सिर्फ़ जलवायु शमन अर्थात कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बल्कि मानव संसाधन यानी कर्मचारियों की क्षमता का विकास करने, आर्थिक विविधीकरण और दूसरे सहायक इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए. अब तक, ऐसा महसूस होता है कि प्राप्तकर्ता देश कर्मचारियों या कामगारों और समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के समाधान पर कम ध्यान दे रहे हैं. उदाहरण के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में IPG द्वारा दिए गए कुल 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर में से केवल 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर कौशल विकास, आर्थिक विविधीकरण और सामाजिक गतिविधियों में निवेश के लिए आवंटित किए गए हैं. स्पष्ट है कि यह राशि यह कुल बजट के साथ-साथ यूरोपियन यूनियन के JTM और ऑस्ट्रेलिया के NRF जैसे अन्य तंत्रों की तुलना में बहुत कम है.

 

ज़ाहिर है कि ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन में न्यायसंगत परिवर्तन (Just transition) को गति मिलती रहेगी, क्योंकि सरकारों को इसके उन प्रभावों का सामना करने के लिए किए जाने वाले उपायों की ज़रूरत का अच्छी तरह से एहसास है, जो जीवाश्म ईंधन को उपयोग को समाप्त करने और नौकरियां खत्म होने से पड़ने वाले असर से कहीं ज़्यादा हैं. सरकारों पर, जिनमें स्थानीय सरकारें भी शामिल हैं, न्यायोचित परिवर्तन में तेज़ी लाने के लिए नीति और वित्तीय फ्रेमवर्क्स दोनों को आगे बढ़ाने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है. ऐसे में G20 समूह को न्यायसंगत ऊर्जा परिगमन को आकार देने एवं इसे मुख्यधारा में लाने के लिए अपनी प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए.

 

तालिका 1- जस्ट ट्रांज़िशन फाइनेंसिंग के विभिन्न उदाहरण

 

No तंत्र फंड्स का स्रोत वित्तपोषण का मॉडल विवरण
1(a)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1(b)

 

 

 

 

 

1(c)

यूरोपियन यूनियन की जस्ट ट्रांज़िशन मैकेनिज़्म (JTM)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

InvestEU

 

 

 

 

 

सार्वजनिक क्षेत्र ऋण सुविधा

ईयू के 2021-2027 बजट और यूरोपियन रिकवरी उपकरण, साथ ही स्वैच्छिक योगदान (कुल 17.5 बिलियन यूरो)

 

 

 

 

 

EU गारंटी बजट (26.2 बिलियन यूरो सार्वजनिक और निजी निवेश का 372 बिलियन यूरो का लाभ उठाने के लिए)

 

EU बजट और यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक

 

मुख्य रूप से राष्ट्रीय को-फाइनेंसिंग के साथ अनुदान प्रदान करता है.

 

 

 

 

 

 

 

निवेश गारंटी

 

 

 

 

 

संयुक्त अनुदान और ऋण

आर्थिक विविधीकरण और पुनर्परिवर्तन का समर्थन करता है (उदाहरण के लिए SMEs द्वारा उत्पादक निवेश का समर्थन, नई कंपनियों का सृजन, अनुसंधान एवं विकास, कर्मचारियों की अप-स्किलिंग और री-स्किलिंग, नौकरी चाहने वालों के लिए सहायता कार्यक्रम, समय से पहले सेवानिवृत्ति की योजनाएं)

 

टिकाऊ बुनियादी ढांचा, रिसर्च, नवाचार और डिजटलीकरण, SME उद्योग, सामाजिक निवेश और कौशल, मुख्य रूप से निजी निवेश

 

 

सार्वजनिक संस्थाओं की उन परियोजनाओं का सहयोग करता है, जो व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद नहीं हैं (उदाहरण के लिए ऊर्जा बुनियादी ढांचा, सार्वजनिक परिवहन एवं अन्य सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर)

2 आस्ट्रेलिया का नेशनल रिकंस्ट्रक्शन फंड  

 

संघीय बजट (15 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर) के साथ उद्योग द्वारा सह-निवेश

लोन, इक्विटी निवेश और गारंटी इसका लक्ष्य टिकाऊ, हाई-वैल्यू वाली नौकरियों के लिए एक विविधितापूर्ण आर्थिक प्रणाली बनाना है. प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियां, कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन में मूल्यवर्धन और अन्य सक्षम क्षमता निवेश शामिल हैं.
3 स्कॉटलैंड का जस्ट ट्रांज़िशन फंड सरकार का बजट (500 मिलियन पाउंड 10-वर्षीय प्रतिबद्धता) कैपिटल फंडिंग और अन्य तंत्र फंडिंग के तौर-तरीक़ों पर अभी भी उद्योगों, समुदायों, कर्मचारियों , ट्रेड यूनियनों और स्थानीय अधिकारियों के साथ चर्चा की जा रही है. पहले वर्ष में एक सहभागी बजट प्रक्रिया लागू की गई थी.
4 हेज़लवुड कर्मचारियों के लिए ऑस्ट्रेलिया का प्रोजेक्ट राज्य सरकार:  22 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर प्रत्यक्ष स्टेट बजट वितरण हेज़लवुड पावर स्टेशन के बंद होने से प्रभावित होने वाले कर्मचारियों को वर्कर ट्रांज़िशन सेंटर्स जैसे कार्यक्रमों के साथ समर्थन देने का उद्देश है, जो शिक्षा, काउंसिलिंग, वित्तीय सलाह और रियायती प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. नए अवसरों की पहचान करने और बदलाव की योजनाएं विकसित करने में प्रभावित उद्योगों का सहयोग करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा रहा है.
5  IPG की जस्ट एनर्जी ट्रांज़िशन पार्टनरशिप सार्वजनिक (IPG और EU बजट) एवं निजी (EIB ऋण). प्रत्येक प्राप्तकर्ता देश को अलग धनराशि मिलती है. अनुदान, रियायती ऋण, बाज़ार दर पर ऋण, गारंटी, निजी निवेश और तकनीक़ी सहायता JETP फंड हासिल करने वाले देशों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और प्रभावित समुदायों की सहायता करने के लिए एक निवेश एवं नीति योजना और संसाधन जुटाने की योजना विकसित करने की ज़रूरत है.

 


 

एट्रीब्यूशन: फिकरी मोहम्मद और पेट्रा क्रिस्टी, “ ‘जलवायु वित्तपोषण’ की जगह ‘न्यायोचित ऊर्जा परिवर्तन वित्तपोषण’ (Just Energy Transition Financing) की ज़रूरत!,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, मई 2023.


 

Endnotes:-

 

[1] Sanya Carley and David M. Konisky, ‘The Justice and Equity Implications of the Clean Energy Transition’, Nature Energy 5, no. 8 (12 June 2020): 569–77.

 

[2] Abidah B. Setyowati, ‘Mitigating Inequality with Emissions? Exploring Energy Justice and Financing Transitions to Low Carbon Energy in Indonesia’, Energy Research & Social Science 71 (January 2021): 101817.

 

[3] Francesca Diluiso et al., ‘Coal Transitions—Part 1: A Systematic Map and Review of Case Study Learnings from Regional, National, and Local Coal Phase-out Experiences’, Environmental Research Letters 16, no. 11 (1 November 2021): 113003.

 

[4] Peter Newell and Dustin Mulvaney, ‘The Political Economy of the “Just Transition”’, The Geographical Journal 179, no. 2 (June 2013): 132–40.

 

[5] Nicholas Bainton et al., ‘The Energy-Extractives Nexus and the Just Transition’, Sustainable Development 29, no. 4 (2021): 624–34.

 

[6] Dimitris Stevis and Romain Felli, ‘Global Labour Unions and Just Transition to a Green Economy’, International Environmental Agreements: Politics, Law and Economics 15, no. 1 (March 2015): 29–43.

 

[7] Xinxin Wang and Kevin Lo, ‘Just Transition: A Conceptual Review’, Energy Research & Social Science 82 (1 December 2021): 102291.

 

[8] Raphael J Heffron, Achieving a Just Transition to a Low-Carbon Economy (Cham: Springer International Publishing, 2021).

 

[9] Darren McCauley et al., ‘Advancing Energy Justice: The Triumvirate of Tenets’, International Energy Law Review 32, no. 3 (June 2013): 107–10.

 

[10] Kirsten Jenkins et al., ‘Energy Justice: A Conceptual Review’, Energy Research & Social Science 11 (January 2016): 174–82.

 

[11] Noel Healy and John Barry, ‘Politicizing Energy Justice and Energy System Transitions: Fossil Fuel Divestment and a “Just Transition”’, Energy Policy 108 (September 2017): 451–59.

 

[12] R. Carè and O. Weber, ‘How Much Finance Is in Climate Finance? A Bibliometric Review, Critiques, and Future Research Directions’, Research in International Business and Finance 64 (January 2023): 101886.

 

[13] Harrison Hong, G Andrew Karolyi, and José A Scheinkman, ‘Climate Finance’, The Review of Financial Studies 33, no. 3 (1 March 2020): 1011–23.

 

[14] Carè and Weber, ‘How Much Finance Is in Climate Finance?’

 

[15] Stephen Minas, ‘Financing Climate Justice in the European Union and China: Common Mechanisms, Different Perspectives’, Asia Europe Journal 20, no. 4 (December 2022): 377–401.

 

[16] Wang and Lo, ‘Just Transition’; Heffron, Achieving a Just Transition to a Low-Carbon Economy.

 

[17] Simon Zadek, ‘Financing a Just Transition’, Organization and Environment 32, no. 1 (March 2019): 18–25.

 

[18] Harald Winkler et al., ‘Just Transition Transaction in South Africa: An Innovative Way to Finance Accelerated Phase out of Coal and Fund Social Justice’, Journal of Sustainable Finance and Investment, 3 September 2021, 1–24.

 

[19] Carley and Konisky, ‘The Justice and Equity Implications of the Clean Energy Transition’.

 

[20] Jenkins et al., ‘Energy Justice’.

 

[21] Carley and Konisky, ‘The Justice and Equity Implications of the Clean Energy Transition’.

 

[22] Michelle Graff, Sanya Carley, and David M. Konisky, ‘Stakeholder Perceptions of the United States Energy Transition: Local-Level Dynamics and Community Responses to National Politics and Policy’, Energy Research and Social Science 43 (September 2018): 144–57.

 

[23] Delmira Syafrini et al., ‘Transformation of a Coal Mining City into a Cultured Mining Heritage Tourism City in Sawahlunto, Indonesia: A Response to the Threat of Becoming a Ghost Town’, Tourism Planning and Development 19, no. 4 (4 July 2022): 296–315.