GDP को लैंगिक तौर पर समावेशी कैसे बनाएं: G20 के लिए सिफ़ारिशें

Devkanya Chakravarty | Manoranjan Pattanayak

टास्क फोर्स 3: LiFE, रेज़िलिएंस, एंड वैल्यूज़ फॉर वेल बींग


सारांश

सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP किसी देश के आर्थिक आकार का आधा-अधूरा पैमाना है, क्योंकि बिना वेतन वाला (unpaid), घरेलू और देखरेख से जुड़ा कामकाज इसके दायरे से बाहर है. नीतिगत दायरों और प्रचलित विमर्श में GDP का सर्व-व्यापी इस्तेमाल कई मसले पैदा कर सकता है. अगर किसी नीतिगत उपाय के चलते GDP में साथ जुड़ी बढ़ोतरी महज़ बिना मेहनताने वाले काम से वेतन वाले काम के रूप में परिवर्तनकारी हो, तो इस प्रणाली से उस नीति के मुनाफ़ों का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन देखा जा सकता है. अगर कोई देश अन्य कामों की तुलना में बिना वेतन वाली घरेलू सेवाओं पर ज़्यादा निर्भर रहता है तो इस व्यवस्था से आर्थिक गतिविधि को वास्तविकता से कम आंके जाने की आशंका रहती है. इससे भी अहम बात ये है कि बग़ैर भुगतान वाले घरेलू कामकाज को अहमियत नहीं दिए जाने से महिलाओं के जीवन परिणामों पर प्रभाव पड़ सकता है. इसकी वजह ये है कि मौजूदा संसार में इन कामों का ज़्यादातर बोझ महिलाओं पर ही पड़ता है. महिलाओं के बिना वेतन वाले घरेलू कामकाज को मौद्रिक मूल्य से जोड़े बिना अक्सर महिलाओं के ‘स्वाभाविक कर्तव्य’ के तौर पर देखा जाता है.

व्यवहार में बदलाव के मज़बूत प्रयासों के साथ-साथ किए गए उपाय, व्यापक रूप से ऐसा प्रदर्शित कर सकते हैं कि घरेलू कामकाज आर्थिक गतिविधियां हैं. इस तरह ऐसे क्रियाकलापों में विविध प्रकार की हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है. बिना वेतन वाले घरेलू और देखरेख से जुड़े कामकाज को GDP में शामिल किए जाने से सरकारी नीतियों पर भी प्रभाव पड़ सकता है. इससे उनका रुख़ देखभाल की पर्याप्त सुविधाओं और समय बचाने वाले बुनियादी ढांचे की ओर मुड़ सकता है, जिससे महिलाओं के हितों को पूरी तरह से साधा जा सकता है. इन्हीं महिलाओं के प्रयास बाज़ार के क्रियाकलापों को सस्ता बनाते हैं.

ये पॉलिसी ब्रीफ a बिना वेतन वाले घरेलू और देखरेख से जुड़े कामों को सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में जोड़ने की अहमियत को रेखांकित करता है. साथ ही GDP मापने के लिए लैंगिक रूप से ज़्यादा समावेशी तरीक़े की ओर बढ़ने का प्रस्ताव भी करता है. इस कड़ी में संभावित गणनाओं को रेखांकित करते हुए G20 के देशों के लिए ज़रूरी सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गई हैं.

चुनौती    

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक विशिष्ट कालखंड में किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण का अंतिम मूल्य है. पहली बार 1930 के दशक में अमेरिका में महामंदी (Great Depression) का प्रभाव समझने के लिए GDP की गणना पद्धति तैयार की गई थी. आगे चलकर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसमें संशोधन किए गए. आज दुनिया के ज़्यादातर देश GDP पर मानकीकृत सांख्यिकी तैयार कर रहे हैं. इससे तमाम भौगोलिक क्षेत्रों और वर्षों में इनकी तुलना किया जाना संभव हो सका है.[i] विकास कार्यक्रमों के संदर्भ में विश्व के देश नियमित रूप से GDP को लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ते हैं और GDP पर उनके प्रभाव के आधार पर अपनी नीतियों की कामयाबी का आकलन करते हैं. अक्सर मीडिया के विमर्शों और नीति-निर्माण में ऊंची GDP को बेहतर आर्थिक कल्याण के साथ जोड़ दिया जाता है. GDP को लेकर इस प्रकार की ‘दीवानगी’ की कई वजहों से आलोचना होती रही है. आर्थिक असमानता के हालात का संकेत कर पाने में GDP की नाकामी और आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ घटित होने वाले पर्यावरणीय नुक़सान (जिससे अनुमानित रूप से कल्याण में कमी हो जाती है) की हद का पता नहीं लग पाता.[ii]

हालांकि, आर्थिक गतिविधि के तक़नीकी मापक के तौर पर GDP की पूरी धारणा बनाए जाने के तरीक़े में भी एक अंतर व्याप्त है. ख़ासतौर से गणना की इस प्रणाली में बिना वेतन वाले घरेलू और देखरेख से जुड़े कामकाज के मूल्य को शामिल नहीं किया जाता. संयुक्त राष्ट्र की राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) देशों में GDP डेटा की संकलन प्रक्रिया का मार्गदर्शन करने वाले नियमों का समूह है, जिसपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमति है. ये गतिविधियों को इस आधार पर श्रेणीबद्ध करता है कि क्या सकल घरेलू उत्पाद का आकलन करते समय उनके मौद्रिक मूल्य को शामिल करना चाहिए या नहीं (चित्र 1 देखिए). SNA के मुताबिक घरेलू स्तर पर ख़ुद के उपयोग के लिए सेवाएं तैयार करने वाली बिना वेतन वाली गतिविधि GDP की गणना से बाहर रहती है. मिसाल के तौर पर घर पर मां-बाप द्वारा अपने बच्चे को दी जा रही शिक्षा (जिसके लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता) का कार्य या घर के बुज़ुर्ग अभिभावकों को पारिवारिक सदस्य द्वारा दी जा रही देखभाल से जुड़ी सेवाएं GDP में शामिल नहीं की जाती हैं.[iii] ये विसंगतिपूर्ण है क्योंकि बिना भुगतान वाले दूसरे कामकाज (बाज़ार में बिकने या अपने पारिवारिक उपभोग के लिए वस्तुओं का उत्पादन करना) GDP में शामिल किए जाते हैं.

चित्र 1: राष्ट्रीय लेखा प्रणाली की सीमाएं और कामकाज का स्वरूप

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स्रोत: UNSTATS[iv]

मुख्य रूप से बिना मेहनताने (wage) वाले घरेलू और देखरेख के कार्य को बाहर किया जाना मेथोडोलॉजी यानी गणना के नियम से जुड़ा मसला है. इसके मायने ये हैं कि आर्थिक गतिविधि के समान स्तर पर बिना भुगतान वाले काम से भुगतान वाले काम या उसके उलट परिवर्तन से सकल घरेलू उत्पाद में बदलाव आ सकता है. इस सिलसिले में अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल सैमुअल्सन ने एक मिसाल दी है जो काफ़ी मशहूर है. इसके मुताबिक, “अगर कोई (महिला) अपने पड़ोसी के साथ सालाना 5,000 अमेरिकी डॉलर के बदले एक-दूसरे का घर साफ़ करने का जुगाड़ कर ले, तो (GDP) में 10,000 अमेरिकी डॉलर का उछाल आ जाएगा.”[v] इस तरह बिना वेतन वाली घरेलू सेवाओं का बेहिसाब उपभोग करने वाले देशों में आर्थिक गतिविधि का वास्तविकता से कम आकलन होगा, जबकि बिना मेहनताने वाले कामकाज की क़ीमत पर भुगतान वाले कामकाज को बढ़ाने वाली नीतियों के फ़ायदों का बढ़ा-चढ़ाकर आकलन होगा.

चित्र 2: बिना वेतन वाले काम में महिलाओं द्वारा बिताए गए समय के अनुपात में पुरुषों द्वारा बिताए गए समय का अनुपात (सबसे हाल का उपलब्ध वर्ष)

स्रोत: OECD स्टैट. टाइम-यूज़ डेटाबेस[vi]

मेथोडोलॉजी यानी गणना के तौर-तरीक़े से जुड़े इस मसले को लैंगिक चश्मे से देखे जाने के पीछे की वजह ये है कि वैश्विक स्तर पर बिना भुगतान वाले कामकाज का सबसे ज़्यादा बोझ महिलाओं के कंधों पर ही आता है (चित्र 2 देखिए). ये उनके जीवन परिणामों को भी कई प्रकार से प्रभावित करता है, जिनका ब्योरा नीचे दिया गया है:

स्वाभाविक रूप से इन परिस्थितियों का नीतिगत मोर्चे पर असर होता है. 2014 में G20 नेताओं ने पुरुषों और महिलाओं के बीच श्रम बल भागीदारी दर में साल 2025 के अंत तक 25 प्रतिशत कमी लाने की प्रतिबद्धता जताई थी. चूंकि श्रम बल भागीदारी दर यानी LFPR बिना भुगतान वाले घरेलू कामकाज से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, लिहाज़ा इस दिशा में नीतिगत तौर पर किसी भी प्रकार के क़दम के लिए इस काम की विशालता की माप किए जाने और उनका मूल्यांकन किए जाने की दरकार होगी. इसके साथ ही:

G20 की भूमिका

बिना वेतन वाले घरेलू और देखभाल से जुड़े कामकाज का मूल्यांकन G20 की प्राथमिकताओं के साथ जुड़ता है. 2008 से G20 ने लैंगिक समानता के मसले पर लगभग 63 प्रमुख प्रतिबद्धताएं जताई हैं, जिनमें महिला श्रम बल भागीदारी दर में बढ़ोतरी लाने और कार्यस्थल पर परिस्थितियों में सुधार लाने जैसे मसले शामिल हैं.[xiv] G20 की परिचर्चाओं में लैंगिक विचारों को सुचारू रूप से शामिल किए जाने की क़वायद सुनिश्चित करने के लिए साल 2015 में एक आधिकारिक जुड़ाव समूह वूमेन20 (W20) का गठन किया गया था. इन विचारों को महिला सशक्तिकरण के लिए नीतियों और प्रतिबद्धताओं में बदलने का लक्ष्य रखा गया है.[xv]

G20 के देश बिना मेहनताने वाले कामकाज को अहमियत देने की दिशा में पहले ही कई क़दम उठा चुके हैं. समूह का लगभग हर देश टाइम-यूज़ सर्वेक्षण करता है. मेक्सिको, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम में ऐसे कामकाज का मौद्रिक मूल्य तय किए जाने के प्रयास भी हो चुके हैं.[xvi] बहरहाल, अलग-अलग सरकारी एजेंसियां बिना वेतन वाले कामकाज का मोल लगाने के लिए अलग-अलग मेथोडोलॉजी या गणना के तरीक़े प्रयोग में लाते हैं, जिससे देशों के बीच तुलनात्मक अध्ययन का काम मुश्किल हो जाता है. ऐसे में मेथोडोलॉजी के मानकीकरण की दरकार है, जिसमें G20 बख़ूबी अपना योगदान दे सकता है.[xvii]

बिना वेतन वाले कामकाज का मोल लगाने की तकनीक

आमतौर पर बिना मेहनताने वाले काम का मोल लगाने के दो तरीक़े हैं[xviii], जिनका ब्योरा नीचे दिया गया है:

इनपुट पद्धति: इस प्रणाली में बिना वेतन वाली गतिविधियों में लगाए गए घंटों की गिनती होती है और उस श्रम के बदले तुलना-योग्य मज़दूरी दर पर एक क़ीमत नियत की जाती है. काम के घंटों के बारे में डेटा, टाइम-यूज़ सर्वे के ज़रिए उपलब्ध होता है. इसमें किसी भी दिन महिलाओं और पुरुषों द्वारा व्यतीत किए गए समय के बारे में विस्तृत प्रतिक्रियाएं प्राप्त की जाती हैं. इस सिलसिले में मेहनताने की दर, अवसर लागत, प्रतिस्थापन लागत या यहां तक कि मौजूदा न्यूनतम मज़दूरी भी हो सकती है.[xix]

आउटपुट पद्धति: उत्पादित सेवाओं की मात्रा का मूल्य तय करके ये पद्धति बिना वेतन वाले उत्पादन के नतीजों की माप करती है. हालांकि इसके लिए उत्पादित इकाइयों का परिमाण तय किए जाने की दरकार होगी. मिसाल के तौर पर बच्चों के देखभाल के संदर्भ में सभी बच्चों को देखरेख सेवा मुहैया कराने में बिताए गए घंटों की कुल संख्या जोड़ी जाएगी, ना कि बच्चों की देखरेख करने वाले व्यक्ति द्वारा बिताए गए काम के घंटे.

आउटपुट पद्धति राष्ट्रीय लेखा प्रणालियों से ज़्यादा सुसंगत है, हालांकि इसके लिए अलग से डेटा संग्रहित किए जाने की ज़रूरत होगी. इनपुट पद्धति अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट है, क्योंकि ये टाइम-यूज़ सर्वेक्षणों पर निर्भर करती है. ऐसे सर्वेक्षण पहले से ही कई देशों में अस्तित्व में हैं. दूसरी ओर, बिना वेतन के कामकाज की हरेक इकाई से जोड़े गए मूल्य का प्रकार हमेशा से बहस का विषय बनता रहा है.

बिना वेतन वाले घरेलू और देखभाल से जुड़े कामकाज को GDP में एकीकृत करने वाले दृष्टिकोण

पहला दृष्टिकोण कल्याण का ज़्यादा समग्रता से आकलन करते हुए सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP से परे जाता है. इसमें आर्थिक कल्याण के उपाय (MEW), सतत आर्थिक कल्याण का सूचकांक (ISEW) और वास्तविक प्रगति के संकेतक (GPI), जैसे उपायों को शामिल किया जाता है. दूसरा दृष्टिकोण GDP में मेथोडोलॉजिकल मसले में सुधार करता है, क्योंकि फ़िलहाल इसे पारिवारिक सैटेलाइट खातों (HSA) के ज़रिए मापा जाता है.

आर्थिक कल्याण मापक (MEW) का विचार 1972 में विलियम नॉर्डहोस और जेम्स टोबिन ने प्रस्तुत किया था. GDP में तीन सामंजस्यों के ज़रिए इसे अंजाम दिया गया. पहला, MEW सभी ‘ग़ैर-ज़रूरी’ मध्यवर्ती व्ययों को बाहर कर देता है; मिसाल के तौर पर व्यक्तिगत आवाजाही की लागतों, और ‘औद्योगिक राष्ट्र-राज्य’ के संचालन के लिए आवश्यक प्रणालियों पर होने वाला सरकारी व्यय, जिसमें पुलिस, सैनिक व्यय और स्वच्छता शामिल हैं. दूसरा, ये उन गतिविधियों के मोल को बाहर कर देता है जो कल्याण में कमी लाते हैं, जैसे प्रदूषण और अपराध. तीसरा, ये फुर्सत के पलों (leisure) के उपभोग और ग़ैर-बाज़ार उत्पादक गतिविधियों को शामिल करता है, ताकि उस सिद्धांत को प्रदर्शित किया जा सके जिसके मुताबिक वेतन वाले कामकाज के घंटों में कमी लाने से उपयोगिता और कल्याण में बढ़ोतरी होती है, GDP में कमी आने की सूरत में भी ये बात लागू होती है. कोई विशिष्ट स्रोत नहीं बताया गया..[xx] सतत आर्थिक कल्याण सूचकांक यानी ISEW की बाद में समीक्षा की गई और उसे वास्तविक प्रगति संकेतक यानी GPI के रूप में प्रस्तावित किया गया. ये आर्थिक कल्याण मापक (MEW) के समान है, लेकिन इसमें प्राकृतिक पूंजी को होने वाले नुक़सान को भी दर्ज किया जाता है.[xxi] इतना ही नहीं, विषमता को समायोजित करने के बाद पारिवारिक व्यय इसका शुरुआती बिंदु है.[xxii]

वैसे तो आर्थिक कल्याण मापक (MEW) और आर्थिक कल्याण सूचकांक (ISEW) को क्रियान्वित करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन इन दोनों में ही सैद्धांतिक आधार का अभाव है, और इसमें बड़ी मात्रा में व्यक्तिपरकता (subjectivity) जुड़ी हुई है. GDP के मौजूदा मापकों के साथ इनकी तुलना करने की क़वायद भी कठिन है. बहरहाल, दूसरा दृष्टिकोण इन समस्याओं से पार पा लेता है.

आपूर्ति-उपयोग वाली तालिकाएं पारंपरिक राष्ट्रीय लेखा आकलन की नींव रखते हैं. इससे विभिन्न उद्योगों और अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों के बीच के आंकड़े में निरंतरता सुनिश्चित होती है. ये अर्थव्यवस्था के ढांचे की नुमाइंदगी करते हैं. उत्पाद निर्माण के लिए उद्योग जगत अन्य उद्योगों से हासिल कच्चे मालों को श्रम, भूमि, पूंजी और उद्यमिता की क़ाबिलियत के साथ कैसे मिश्रित करते हैं, ये उसी क़वायद की झलक दिखाता है. इसके साथ-साथ ये इस बात का भी प्रतिनिधित्व करता है कि किसी उद्योग के उत्पाद की दूसरे उद्योगों में कच्चे माल या पूंजीगत वस्तु के रूप में कैसे मांग की जाती है, या फिर घरेलू स्तर पर परिवारों या सरकारों द्वारा उपभोग के लिए उनकी किस प्रकार मांग होती है. मिसाल के तौर पर आलू की उपज के लिए कृषि जगत से कच्चे मालों (कंद, जैव खाद), विनिर्माण (थ्रेसर्स, ट्रैक्टर्स), और सेवाओं (थोक और खुदरा व्यापार, परिवहन, भंडारण) का उपयोग किया जाता है. बदले में आलू की मांग कृषि (कंद के रूप में), विनिर्माण (पोटैटो चिप्स के उत्पादन के लिए), और सेवाओं (फ्रेंच फ्राइ के रूप में परोसने के लिए रेस्टोरेंटों में) की जा सकती है. इसके अलावा घरेलू स्तर पर भी खपत के लिए आलू की ख़रीद की जाती है. आपूर्ति-उपयोग वाली तालिकाएं सभी सेक्टरों के लिए इन सभी सूचनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं (जिन्हें GDP में शामिल किया गया है).

पारिवारिक सैटेलाइट लेखा (HSA) ख़ुद के उपयोग में आने वाली सेवाओं के उत्पादन के समग्र लेखे-जोखे की सुविधा देता है. ऊपर दी गई प्रणाली के साथ सुसंगत तरीक़े से इस क़वायद को आगे बढ़ाया जाता है. प्रभावी रूप में ये परिवार को अतिरिक्त उद्योग के तौर पर समझकर आपूर्ति-उपयोग वाली तालिकाओं को विस्तारित करते हैं.[xxiii] इसके मायने ये होंगे कि कुछ उद्योगों से जुड़ी मांगों को, जिन्हें वर्तमान में पारिवारिक मांग के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है, उन्हें पारिवारिक सेवाओं के उत्पादन के सिलसिले में कच्चे माल या पूंजीगत वस्तुओं के रूप में नए सिरे से वर्गीकृत किया जाएगा. मिसाल के तौर पर घरेलू शिक्षा के लिए उपयोग में आने वाली किताबें अब पारिवारिक शिक्षा उद्योग में कच्चा माल बन जाएंगी. इसी प्रकार खाना पकाने में प्रयोग किए जाने वाले घरेलू उपकरण या पारिवारिक परिवहन सेवाएं मुहैया कराने (मसलन, बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए) में इस्तेमाल होने वाली कार अब पूंजीगत वस्तु बन जाएगी. ऐसे कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं को तब आख़िरी उत्पाद के निर्माण के लिए सेवाओं के उत्पादन में शामिल श्रम के साथ संयुक्त रूप से मिलाकर देखा जाएगा.[xxiv]

वैसे तो ऐसे आकलन के सामने कई चुनौतियां हैं, जिनमें आंकड़ों और मान्यताओं की ज़रूरत शामिल हैं. फिर भी नीति-निर्माण के लिए पारिवारिक सैटेलाइट लेखा (HSA) के अनेक उपयोग हैं.[xxv] हस्तक्षेपों के विस्तारित GDP प्रभाव को दिखाने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है. इनमें पारिवारिक स्तर पर पानी के कनेक्शंस और औपचारिक रूप से बच्चों की देखभाल से जुड़ी क़वायद शामिल हैं, जो महिलाओं के लिए बिना भुगतान वाले कामकाज में कटौती करती हैं. ये आर्थिक नीतियों के प्रभाव का परिणाम भी निकाल सकता है. उदाहरण के रूप में नेपाल में व्यापार उदारीकरण के चलते पुरुष और महिला श्रम पर पड़ रहे प्रभावों पर किए गए एक अध्ययन में पता चला कि महिलाओं के लिए श्रम बल में भागीदारी की ऊंची दर के बावजूद घरेलू कामकाज में व्यतीत होने वाले समय में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई, उलटा उनके फुर्सत के पलों में कटौती हो गई.[xxvi]

G20 के लिए सिफ़ारिशें

अल्प-कालिक प्रस्ताव

टाइम-यूज़ सर्वे के ज़रिए डेटा संग्रहण का मानकीकरण: वैसे तो G20 के ज़्यादातर देश टाइम-यूज़ सर्वे का प्रयोग करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय तुलनाओं और प्रगति पर निगरानी रखने के लिए इनका मानकीकरण किया जाना चाहिए. साथ ही इन्हें पहले से ज़्यादा नियमित भी बनाया जाना चाहिए. UN वूमेन से प्राप्त मार्गदर्शन को डेटा संग्रहण से जुड़े तौर-तरीक़ों पर आयद किया जा सकता है.[xxvii] G20 आधार पुनरीक्षण (base revision) के रूप में ऐसे सर्वेक्षणों की ऊंची बारंबारता (जैसे, साल में कम से कम एक बार) उपयोगी साबित होगी. श्रम बल में एक मॉड्यूल जोड़कर किए जाने वाले ‘हल्के-फुल्के’ सर्वेक्षण या जीवन स्तर के सर्वेक्षणों से भी अंतरिम कालखंड में गूढ़ जानकारियां हासिल हो सकती हैं. टेक्नोलॉजियों के भरपूर इस्तेमाल से इस पूरी प्रक्रिया में संसाधनों की सघनता में अतिरिक्त रूप से कमी लाई जा सकती है.[xxviii] इनमें स्थापित रूप से पुष्टि को लेकर जांचों के लिए इलेक्ट्रॉनिक डायरी, कम साक्षरता/ डिजिटल कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में आपसी संवाद प्रतिक्रिया (IVR) तकनीक पर आधारित डेटा संग्रहण, और टेक्स्ट डेटा के विश्लेषण के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, शामिल हैं.

दीर्घ-कालिक सिफ़ारिशें

तुलना-योग्य पारिवारिक सैटेलाइट लेखा जारी करना और उन्हें संस्थागत रूप देना: गणना पद्धतियों के विकास के आधार पर G20 के देश एक साझा, तुलना-योग्य मेथोडोलॉजी की बुनियाद पर पारिवारिक सैटेलाइट लेखा जारी करने की क़वायद शुरू कर सकते हैं. G20 के शिखर सम्मेलन के दौरान एक संकलित दस्तावेज़ जारी किए जाने से इन आकलनों की दृश्यता बनाने में मदद मिलेगी और नीतिगत शोध को प्रोत्साहन मिलेगा. इतना ही नहीं, इससे ऐसे आंकड़ों के उपयोग से जुड़े मामलों का विकास भी सुलभ हो जाएगा.

नीतिगत विश्लेषण के लिए इन आंकड़ों का उपयोग करके आर्थिक वृद्धि के विश्लेषणों से आर्थिक बेहतरी के विश्लेषण की ओर परिवर्तनकारी यात्रा को सुगम बनाना. आर्थिक नीतियों के विश्लेषण करते वक़्त सेवाओं के घरेलू उत्पादन को एकीकृत किए जाने का दूरगामी प्रभाव होगा. इससे “हमारी बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं को उन्हीं समाजों में जहां वो अपने क्रियाकलाप करते हैं, समाज के हितों को पूरा करने के लिए इरादतन आगे बढ़ने” को लेकर नया रूप दिया जा सकेगा. यही क़वायद बाज़ारों को सब्सिडी मुहैया कराती है और सेवाओं के राजकीय प्रावधानों को संभव बनाती है.[xxx]


एट्रीब्यूशन: देवकन्या चक्रवर्ती और मनोरंजन पटनायक, “टूवर्ड्स ए जेंडर-इन्क्लूसिव जीडीपी”: रिकमंडेशंस टू द G20,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


a लेखक बेहतरीन शोध सहायता के लिए चारुल वर्मा (PwC) और अनमोल नारायण (PwC) के आभारी हैं.

ENDNOTES

[i] Amit Kapoor and Bibek Debroy, “GDP Is Not a Measure of Human Well-Being”, Harvard Business Review, October 19, 2017.

[ii] Joseph E Stiglitz, “GDP Fetishism”, Project Syndicate, September, 2009.

[iii] Peter van de Ven, Jorrit Zwijnenburg and Matthew De Queljoe, “Including unpaid household activities: An estimate of its impact on macro-economic indicators in the G7 economies and the way forward,” (OECD Statistics Working Papers 2018/04, OECD Publishing, Paris, 2018), 9.

[iv] UN Stats, Unpaid Household Service Work (Meeting of the Advisory Expert Group on National Accounts, UN Stats, October, 2020), 8.

[v] Marjorie Cohen, “The Problem of Studying “Economic Man”,” in Feminism in Canada: From Pressure to Politics, ed. Geraldine Finn, Angela Miles (Montreal: Black Rose, 1982), 150.

[vi] OECD.Stat, Time use, (February 18, 2021), OECD.

[vii] Gaëlle Ferrant, Luca Maria Pesando and Keiko Nowacka, Unpaid Care Work: The missing link in the analysis of gender gaps in labour outcomes (Geneva: OECD Development Centre, 2014), 1.

[viii] Cristian Alonso, Mariya Brussevich, Era Dabla-Norris, Yuko Kinoshita and Kalpana Kochhar, Reducing and Redistributing Unpaid Work: Stronger Policies to Support Gender Equality,” (IMF Working Paper No. 2019/225, International Monetary Fund, 2019), 4.

[ix] Ferrant, Pesando and Nowacka, Unpaid Care Work, 6.

[x] Committee on Family Caregiving for Older Adults; Board on Health Care Services; Health and Medicine Division; National Academies of Sciences, Engineering, and Medicine, “Economic Impact of Family Caregiving,” in Families Caring for an Aging America, ed. Richard Schulz, Jill Eden (Washington (DC): National Academies Press (US), 2016).

[xi] Diana Crookston, “Should Unpaid Labor be Included in GDP?,Journal of Politics and Strategy 5, no. 3 (April 2021): 24.

[xii] Rania Antonopoulos, The unpaid care workpaid work connection, (Working Paper No. 86, Policy Integration and Statistics Department International Labour Office, 2009), 2.

[xiii] Ferrant, Pesando and Nowacka, Unpaid Care Work, 1.

[xiv] Julia Kulik, “G20 performance on gender equality,The Global Governance Project, 2021.

[xv] Ministry of Women and Child Development, “W20 (Women 20) for India’s G20 Presidency,Press Information Bureau, February 25, 2023.

[xvi] United Nations Economic Commission for Europe. Guide on valuing unpaid household service work (Geneva: United Nations, 2017), 27.

[xvii] Catherine Mueller, Time Use Data: Sources and applications of data on paid and unpaid labour (London: UK Aid, April 9, 2018), 161.

[xviii] United Nations Economic Commission for Europe. Guide on valuing unpaid household service work, 25-34.

[xix] Clare Coffey, et al., Time to Care: Unpaid and underpaid care work and the global inequality crisis, (Oxford: Oxfam International, January, 2020), 7.

[xx] William D. Nordhaus and James Tobin, “Is Growth Obsolete?,” in The Measurement of Economic and Social Performance, ed. Milton Moss (National Bureau of Economic Research, 1973), 512- 517.

[xxi] Eric Neumayer, “On the methodology of ISEW, GPI and related measures: some constructive comments and some doubt on the ‘threshold’ hypothesis,” Ecological Economics 33, no. 3 (2000): 347-361.

[xxii] Philipp Schepelmann, Yanne Goossens and Arttu Makipaa, Towards Sustainable Development: Alternatives to GDP for measuring progress (Döppersberg: Wuppertal Institute for Climate, Environment and Energy, 2010), 24.

[xxiii] Duncan Ironmonger, “National Accounts of Household Productive Activities” (conference paper,  Time Use, Non-Market Work, and Family Well-Being Conference, Washington (DC), 1997).

[xxiv] United Nations Economic Commission for Europe. Guide on valuing unpaid household service work, 39.

[xxv] Robert Costanza, Maureen Hart, Stephen Posner and John Talberth, “Beyond GDP: The Need for New Measures of Progress,” (The Pardee Papers no. 4, Boston University, Boston, Jan, 2009), 21-22.

[xxvi] Ismaël Fofana, John Cockburn and Bernard Decaluwe, “Developing Country Superwomen: Impacts of Trade Liberalisation on Female Market and Domestic Work,” (CIRPEE Working Paper No. 05-19, SSRN, 2005), 29.

[xxvii] Jacques Charmes, Measuring Time Use: An assessment of issues and challenges in conducting time-use surveys with special emphasis on developing countries. Methodological Inconsistencies, Harmonization Strategies, and Revised Designs (Mexico City: Global Centre of Excellence on Gender Statistics and UNWOMEN, 2021), 17.

[xxviii] Gueorguie Vassilev, Will King, Sally Wallace, Joe White and Expert Group on Innovative and Effective ways to collect Time-Use Statistics, Modernization of the Production of Time-use Statistics (Statistical Commission Background Document, March, 2022), 15-27.

[xxix] United Nations Economic Commission for Europe. Guide on valuing unpaid household service work, 39.

[xxx] Colm Kelly and Dennis J. Snower, “Recoupling shareholders, stakeholders and society,” Global Solutions Journal, no.7 (May 2021): 19.