समकालीन उत्पादन और उपभोग प्रणालियों के सामने उभर रही चुनौतियां सबसे स्पष्ट रूप से खाद्य-कृषि प्रणाली में प्रतिबिंबित होती हैं, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के तीसरे हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है. तकनीकी उन्नति की वज़ह से समानांतर कृषि परिदृश्य और पशु नस्लों का मानकीकरण हो रहा है, जिसकी वज़ह से खेती का विस्तार खतरे में पड़ गया है. यह समानता अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का आधार है, जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करने वाले केमिकल तत्वों द्वारा परिवर्तित कुछ कृषि उत्पादों पर आधारित होते हैं. समकालीन वैज्ञानिक लिटरेचर भी अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और मोटापे की वैश्विक महामारी के बीच संबंध की पुष्टि करता है. मौजूदा खाद्य-कृषि प्रणाली के नकारात्मक परिणामों को कम करने में G20 की पहलों द्वारा प्रोत्साहित बहुपक्षीय सहयोग मदद करते हुए स्थानीय, स्वस्थ और विविध उत्पादन में सुधार कर सकती है. इसके लिए विश्व स्तर पर कृषि और पशुधन खेती के लिए सब्सिडी में भारी पुनर्स्थापन की आवश्यकता है. इसी प्रकार ऐसी नीतियां भी ज़रूरी है जो मानव स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन और आहार के विविधीकरण को प्रोत्साहित करती हैं.
इंटरगर्वनमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायर्वसिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेस (IPBES) ने आधुनिक कृषि विकास[1] को विविधता नाश का मुख्य वैश्विक कारक माना है. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक खाद्य-कृषि प्रणाली से उत्पन्न अस्थायी ग्रीनहाउस गैसों की उत्पत्ति 2019 में 16.5 बिलियन टन से अधिक हुई – जो शताब्दी की शुरुआत से 9 प्रतिशत वृद्धि है.[2]
हरित क्रांति की तकनीकों में समाविष्ट इन उत्पादन प्रणालियों की मुख्य विशेषता, कृषि परिदृश्यों की मोनोटोनी और रसायनों पर उनकी निर्भरता है. ये दोनों विशेषताएं मिट्टी की कमी पैदा करते हुए अक्सर नदियों और इकोसिस्टम को संक्रमित करती हैं. इन प्रभावों की वज़ह से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और हैबिटैट्स यानी आवासीय स्थानों और जैव विविधता के प्रगतिशील नुक़सान में भी इन प्रभावों का योगदान होता है.[3] समकालीन पशुपालन का मानकीकरण और एंटीबायोटिक दवाओं का नियमित उपयोग भी जीवाणुरोधी प्रतिरोध[4] की वैश्विक उन्नति और कृषि जैव विविधता में उत्पादन और ख़पत क्षमता के नुक़सान में योगदान देता है.
खाद्य उपभोग ही इस उत्पादन की मानकीकरण प्रणाली का आधार है. खाद्य उपभोग की बढ़ती हुई मोनोटोनी स्वास्थ्य के समक्ष मौजूद सबसे महत्वपूर्ण ख़तरों में से एक है.[5] कुछ कंपनियों द्वारा वितरित कुछ उत्पादों के वैश्विक व्यापार पर मानव खाद्य की आश्रितता एक ख़तरा है जिससे बहुपक्षीय सहयोग को मुकाबला करना होगा.[6] यह मुकाबला उत्पादक क्षमताओं को मज़बूत करने, विविधता को प्रोत्साहित करने, और प्रकृति-आधारित ज्ञान अर्थव्यवस्था के माध्यम से स्थानीय खाद्य और रसोई संस्कृतियों को प्रमोट करने के संदर्भ में होगा.[7],[8] आधुनिक कृषि का उद्देश्य खाद्य विविधता प्रदान करना है और जंगली फ़सलों और पशुपालन के विस्तार के कारण व्यवस्थित रूप से नष्ट हो चुकी इकोसिस्टम सर्विसेस को पुनर्जीवित करना है. इस पुनर्जनन में खाद्य को नष्ट होने से रोकना और खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकना भी शामिल है. एक अनुमान है कि वैश्विक रूप से उत्पन्न सभी खाद्य पदार्थों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा या तो नष्ट हो जाता है या फिर बर्बाद होता है.[9]
समग्र रूप से, खाद्य के रूप में 7,039 प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें से 417 प्रजातियां खेती के लिए उपयुक्त हैं. विश्व के विभिन्न हिस्सों में नई पौधों और फन्जाइ यानी फफुंद की ख़ोज हो रही है. इसी बीच, ब्राजील जैसी जैव-विविधता से भरे भौगोलिक क्षेत्रों को भी जैवविविधता की क्षति का सामना करना पड़ रहा है.[10]
इन संभावनाओं और वर्तमान कृषि-खाद्य पैटर्न्स के बीच का अंतर स्पष्ट है: मानवों के आहार का 90 प्रतिशत हिस्सा 15 से अधिक फ़सलों से आता है, जिसमें से 66 प्रतिशत हिस्सा नौ उत्पादों में ही सिमट जाता हैं. इस आपूर्ति में भी गेहूं, मक्का और सोयाबीन की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत हैं.[11] आनुवंशिक विविधता का नुक़सान भी पशुपालन से उत्पन्न होने वाले उत्पादों की एक विशेषता है और जैव विविधता पर इसके विनाशकारी परिणाम होते हैं.
वर्तमान कृषि-खाद्य प्रणाली के भू-राजनीतिक परिणाम भी चिंता का विषय हैं. वैश्विक कृषि आपूर्ति का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सापांच देशों में केंद्रित है.[12] यह तथ्य एक प्रणालीगत जोख़िम का प्रतिनिधित्व करता है जिसे यूक्रेन में युद्ध ने और अधिक स्पष्ट कर दिया है. 2022 में भारत, फ्रांस और अमेरिका में कोलोराडो नदी को प्रभावित करने वाले सूखे और सेराडो और दक्षिणी ब्राजील में कृषि को हुए भारी नुक़सान की घटनाएं लगातार और तीव्र होती जा रही हैं. 2021 में, मौजूदा वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली की पर्यावरणीय बाह्यताओं की लागत 7 ट्रिलियन US$ तक पहुंच गई थी.[13]
उत्पादन और आहार में मोनोटोनी खाद्य उत्पादन विधियों में परिवर्तन को प्राथमिकता देकर इनमें नॉन-डिग्रेडिंग प्रथाओं को शामिल करने की तात्कालिकता को पुष्ट करती है, जो कृषि और पशु-पालन को प्लैनेटरी बाउंड्रिज यानी जहां वे जीवित रह सकते है, के भीतर रहने की अनुमति देती है. समस्या का भोजन की ख़पत और मांग के नज़रिए से समाधान मौलिक भी है और संभव भी.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, मरुस्थलीकरण को कम करने, अनुकूलन करने और उसका मुकाबला करने और खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए विशेषत: आहार परिवर्तन से संबंधित प्रतिक्रियाओं में खाद्य मांग/उपभोग-आधारित विकल्पों के प्रभावी, सबसे कम लागत वाला और अपेक्षित परिणाम देने की बड़ी संभावना है. यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक, 80 प्रतिशत खाद्यान्न की ख़पत शहरों में होगी,[14] जहां आहार में विविधता लाने की आवश्यकता सबसे ज़रूरी हो जाती है.
लंबी आपूर्ति श्रृंखलाओं की तुलना में स्थानीय सर्किट, भोजन की हानि और बर्बादी को कम करते हुए कृषि जैव विविधता को संरक्षित करते हुए[15] एक शिक्षा-विज्ञान-संबंधी चरित्र बनाए रखते हैं, जो उपभोक्ताओं को खाने की आदतों में आवश्यक बदलाव के बारे में शिक्षित करता है. स्वस्थ और टिकाऊ भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने में भोजन की परिस्थिति पर पुनर्विचार करना, शहरों की आपूर्ति कैसे की जाती है इस पर ध्यान देना जरूरी है. इसी तरह एक ऐसी प्रणाली में परिवर्तन के लिए प्रोत्साहन शामिल है जो एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण से पहल और निकटता सर्किट[16] को महत्व देता है.
कृषि क्षेत्र के साथ-साथ उन उद्योगों का पुनर्विन्यास इसके लिए मूलभूत है जो खाद्य आपूर्ति के बढ़ते हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं. 2022 के एक अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर अमेरिकी सुपरमार्केट की अलमारियों पर प्रदर्शित 71 प्रतिशत खाद्य उत्पाद अल्ट्रा-प्रोसेस्ड हैं.[17] यह एक वैश्विक पैटर्न है, और कृषि आपूर्ति में मोनोटोनी और जैव विविधता पर इसके विनाशकारी परिणामों को औद्योगिक खाद्य आपूर्ति में मोनोटोनी और मानव स्वास्थ्य पर इसके विनाशकारी परिणामों से अलग नहीं किया जा सकता.
यह औद्योगिक प्रसंस्करण का विरोध करने का सवाल नहीं है, बल्कि एक ऐसे उद्योग से संक्रमण की वकालत करने का है जो एग्रीकल्चरल मोनोटोनी को फ़ूड मोनोटोनी में बदल देता है.[18] ये संक्रमण रासायनिक घटकों की शुरूआत के माध्यम से होता है जो आज समकालीन दुनिया में सबसे ज़्यादा मार डालने वाली बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार हैं. G20 कृषि और खाद्य नीतियों के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने के लिए ज़िम्मेदार है. यह एकीकृत दृष्टिकोण ‘वन हेल्थ’ में निहित वैश्विक अभिविन्यास के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप अपनाया गया है.
यहां, स्वस्थ आहार, पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के उत्थान, और पशु कल्याण को व्यवस्थित रूप से व्यक्त तरीके से देखा जाता है, न कि दिशा-निर्देशों और प्रशासनिक निकायों द्वारा अलग किए गए अलग-अलग डिब्बों के रूप में जिनका एक-दूसरे से बहुत कम संबंध होता है.[19]
UN महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने UN खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन[20] पर कार्रवाई के अपने वक्तव्य में 2030 एजेंडा के साथ संरेखित भोजन के लिए एक सिस्टम दृष्टिकोण की तात्कालिकता पर बल दिया. इस तरह का परिप्रेक्ष्य दुनिया की जटिलता को गले लगाते हुए हम जो बदलाव चाहते है वह मुहैया करवाता है.
इस मोनोटोनी से उत्पन्न ख़तरों के बारे में बढ़ती जागरूकता दो मूलभूत घटकों के माध्यम से व्यक्त की जाती है, जो इस आलेख का फोकस हैं: वर्तमान खाद्य पैटर्न में अति-प्रोसेस्ड उत्पादों की बढ़ती सर्वव्यापकता का सामना करने की आवश्यकता और संरक्षित क्षेत्रों को मज़बूत करने और ऐसे कृषि पद्धति को बढ़ावा देने की अत्यावश्यकता है जो जैव विविधता को पुनर्जीवित करते हुए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जैव विविधता के क्षरण को कम करती है.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, खाद्य उत्पादन, खाद्य उत्पादों की शेल्फ लाइफ और उनकी सुरक्षा को बढ़ाना वैश्विक प्राथमिकता थी. हालांकि, ये आवश्यकताएं 21वीं सदी में भोजन को नॉन-कम्युनिकेबल यानी गैर-संक्रामक बीमारियों की एक विस्तृत श्रृंखला के वेक्टर यानी वाहक होने से नहीं रोक सकीं.[21]
1975 और 2016 के बीच विश्व स्तर पर मोटापा तीन गुना हो गया. इसी अवधि में मोटापे से प्रभावित 5-19 वर्ष की आयु वालों की संख्या चार गुना बढ़ गई. दुनिया की अधिकांश आबादी उन देशों में केंद्रित है जहां भूख की तुलना में मोटापा मौत का बड़ा कारण है.[22]
यह मोटापा अथवा वजन में हुआ इज़ाफ़ा ही सबसे अधिक अक्षम करने वाली और घातक पुरानी गैर-संक्रामक बीमारियों की जड़ है. प्रति वर्ष 17 मिलियन अकाल मृत्यु होती हैं – यानी प्रत्येक दो सेकंड में एक मौत.[23] WHO के अनुसार, इनमें से 86 प्रतिशत मौतें निम्न या मध्यम आय वाले देशों में होती हैं.[24] अधिकांश स्वास्थ्य प्रणाली व्यय के लिए ये रोग ही ज़िम्मेदार हैं. एक अनुमान है कि कृषि-खाद्य प्रणाली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से उत्पन्न होने वाली लागत US$11 ट्रिलियन है.[25]
मोटापे के विस्फोट की व्याख्या करने वाली परिकल्पनाओं में से एक बीसवीं सदी के पोषण विज्ञान ने जो सिखाया है, उससे कहीं आगे जाती है: यह कहना पर्याप्त नहीं है कि दैनिक गतिविधियों के माध्यम से ख़र्च की जाने वाली कैलोरी से अधिक कैलोरी लेने से मोटापा होता है. ‘ओबेसोजन हायपोथिसिस’ के अनुसार रसायन “भूख, वजन बढ़ने और फैट डेवलपमेंट यानी वसा के विकास और वितरण को नियंत्रित करने वाले मेटाबोलिक सिस्टम्स यानी चयापचय तंत्र में हस्तक्षेप करके मोटापे के लिए व्यक्तिगत संवेदनशीलता को प्रभावित करते हैं, और इस तरह वे मोटापे की वृद्धि में योगदान देते है.”[26]
पिछले दो दशकों में पोषण विज्ञान में एक नया पैराडाइम यानी आदर्श उदाहरण विकसित हो रहा है. कैलोरी, स्थूल और सूक्ष्म पोषक खाद्य सामग्री की जांच करने से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उन औद्योगिक पदार्थों की संरचना और मात्रा को जाना जाए, जो मूल रूप से प्रकृतिक और रोज़मर्रा के खाना पकाने की प्रक्रिया से तो नदारद हैं, लेकिन जो अब तेज़ी से लोगों के आहार का हिस्सा बनते जा रहे हैं. वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान में NOVA वर्गीकरण का तेजी से उपयोग किया जा रहा है. NOVA सभी खाद्य पदार्थों को उनके औद्योगिक प्रसंस्करण की सीमा और उद्देश्य के अनुसार चार समूहों में वर्गीकृत करता है: अप्रोसेस्ड या न्यूनतम प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, प्रोसेस्ड पाक सामग्री, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ और अति-प्रोसेस्ड खाद्य उत्पाद. इस चौथे और अंतिम समूह में अक्सर रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा संशोधित खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं, जिन्हें बाद में इंडस्ट्रियल-ओनली यानी केवल-औद्योगिक पदार्थों और कॉस्मेटिक फुड एडिटिव्स के साथ अति-स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में संकलित किया जाता हैं. अल्ट्रा-प्रोसेसिंग उन्हें अत्यधिक लाभदायक, अत्यधिक आकर्षक लेकिन आंतरिक रूप से अस्वस्थ बनाती है.[27]
NOVA वर्गीकरण वैज्ञानिक साहित्य में समकालीन भोजन की चुनौतियों के साथ-साथ देशों की बढ़ती संख्या द्वारा अपनाई गई खाद्य मार्गदर्शिकाओं के लिए एक अनिवार्य संदर्भ है. इसकी संख्या आज 100 से अधिक है. इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य, समाज, पर्यावरण और सार्वजनिक वित्त को अति-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की वज़ह से होने वाली क्षति की ओर अब दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक संगठनों जैसे कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम[28] के रडार पर आ रही है.
कृषि-खाद्य प्रणाली (विशेष रूप से खाद्य उद्योग में) में G20-मूल कंपनियों के महत्व के कारण, अति-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की उन्नति और वैश्विक मोटापा महामारी का मुकाबला करने में G20 का योगदान अहम हो जाता है. इस योगदान में कम से कम चार घटक होने चाहिए, जो इस आलेख के अंत में प्रस्तावित किए गए हैं.
अति-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में वैश्विक वृद्धि के ख़िलाफ़ लड़ाई तभी सफ़ल होगी जब यह औद्योगिक परिवर्तन रिजनरेटिव यानी पुनरुत्पादक कृषि पद्धतियों के उद्भव से संबंधित हो. इन प्रथाओं में वनों की सुरक्षा, विशेष रूप से उष्ण-कटिबंधीय वनों की सुरक्षा शामिल है.[29]
ब्राजील, इंडोनेशिया और कांगो द्वारा हस्ताक्षरित वन संरक्षण समझौता इस संबंध में महत्वपूर्ण है. वित्तीय सहायता और इस तरह के समझौते के अमल पर बातचीत में G20 का योगदान अहम साबित होगा. G20 का सहयोग इन इलाकों में हो रहे विनाश की प्रगति को रोकने और ट्रॉपिकल यानी उष्णकटिबंधीय जंगलों की सामाजिक-जैव विविधता के उत्थान को बढ़ावा देने के लिए मौलिक साबित होगा. वन सामाजिक-जैव विविधता का स्थायी उपयोग उन लोगों और समुदायों के अधिकारों के संबंध में नागोया प्रोटोकॉल की आवश्यकताओं के अधीन होना चाहिए, जिनका स्वदेशी ज्ञान समकालीन शोध में निर्णायक योगदान देता है.
यह स्पष्ट है कि बड़े पैमाने पर पारंपरिक कृषि-खाद्य उत्पादन वाले क्षेत्रों की तुलना में जंगलों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों (नदियों और समुद्रों सहित) में हमेशा अधिक जैव विविधता उपलब्ध होगी. हालांकि, यह मूलभूत है कि इन क्षेत्रों को इस तरह से प्रबंधित किया जाता है कि वहां नाइट्रोजन उर्वरकों और सबसे बढ़कर कृषि रसायनों पर इनकी निर्भरता को काफ़ी हद तक कम किया जा सकें. इसी तरह, पशुपालन को उन तरीकों और तकनीकों का उपयोग करके प्रबंधित किया जाना चाहिए जो एंटीबायोटिक दवाओं के ‘प्रीवेंटिव’ उपयोग को समाप्त करते हैं.[30]
मिट्टी की कमी, फ़सल के नुकसान, और मुख्य उत्पादन क्षेत्रों में बढ़ते तापमान कृषि आपूर्ति बढ़ाने के पारंपरिक तरीकों के विकल्प तलाशने के लिए समकालीन शोध का नेतृत्व करने वाले कारक हैं. कृषि आपूर्ति के पतन से बचने के लिए मिट्टी की जैव विविधता की बहाली सबसे आवश्यक है. कृषि वानिकी यानी एग्रोफोरेस्ट्री प्रणालियों के आसपास अनुसंधान इंगित करता है कि ये जैव विविधता के नुक़सान को रोकने का एक समाधान हैं और सामान्य पुनर्वनीकरण की तुलना में अधिक कार्बन को कैप्चर यानी अभिग्रहण कर सकते हैं.[31]
निकटता की अर्थव्यवस्था पर आधारित खाद्य आपूर्ति शहरी स्थानों में खाद्य आपूर्ति के सबसे आशाजनक मार्गों में से एक है. अर्बन एग्रीकल्चर जरूरतों को पूरा करते हुए सब्जियों की आहार विविधता को बढ़ावा देना. फिर भी, खाद्य आपूर्ति कार्य से परे, शहरों में और उसके आस-पास खाद्य उत्पादन उपभोग पैटर्न में परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है, पर्यावरण और खाद्य शिक्षा-विज्ञान संबंधी प्रभाव डालता है, आय और स्थानीय विकास में सहयोग करता है, और पारिस्थितिकीय प्रभाव जैसे डिग्रेडेड क्षेत्रों का सुधार, शहरी वातावरण में इनसेक्ट और पॉलिनेटर जैव विविधता में वृद्धि, भोजन की बर्बादी में कमी, और शहरों के भीतर कार्बन प्रच्छादन का काम करता है.[32]
संक्षेप में, G20 वन विनाश से पूरी तरह अलग एक नई कृषि-खाद्य प्रणाली को विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. ये कृषि प्रणाली ऐसे रासायनिक इनपुट्स पर कम निर्भर होगी जो पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लिए हानिकारक हैं. क्योंकि हम सभी इन्ही पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करते हैं. ये कृषि प्रणाली कृषि, पशुपालन और आहार में निकटता अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करते हुए वैश्विक सुरक्षा को बढ़ाएगी.
यह स्वीकार करते हुए कि कृषि की वर्तमान मोनोटोनी और अति-प्रोसेस्ड उत्पादों के प्रभाव ने उपलब्ध भोजन की विविधता को कम करके खाद्य पैटर्न को ख़तरे में डाल दिया है, G20 को वित्त मुहैया करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए और जैव विविधता-अनुकूल प्रथाओं और दृष्टिकोणों को पर्याप्त प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए, जैसा कि FAO द्वारा मान्यता प्राप्त:[33] जैविक कृषि, स्थायी मिट्टी प्रबंधन, कृषि विज्ञान, टिकाऊ वन प्रबंधन, कृषि वानिकी, और जलीय कृषि और मत्स्य पालन में विविधीकरण अभ्यास प्रदान करना चाहिए.
यह देखते हुए कि बड़े कृषि-खाद्य उद्योग (जिसमें आर्ची-डेनियल्स फूड, बंज, कारगिल और ड्रेफस शामिल हैं – जिन्हें ‘एबीसीडी’ के रूप में जाना जाता है- डैनोन, जनरल मिल्स, केलॉग, क्राफ्ट, मोंडेलेज़, मार्स, नेस्ले, पेप्सिको, और यूनिलीवर, अन्य कृषि-खाद्य उद्योगों के बीच) G20 देशों में स्थित है,[34],[35] G20 देशों और इन उद्योगों द्वारा अति-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में महत्वपूर्ण कमी को लेकर प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, जो मानव स्वास्थ्य में योगदान साबित होगा. यह विशेष रूप से उस उद्देश्य पर केंद्रित एक वैश्विक बहु-हितधारक टास्क फोर्स की स्थापना के माध्यम से संभव हो सकेगा.
G20 को ताज़ा या न्यूनतम प्रोसेस्ड उत्पादों, अधिमानतः स्थानीय मूल के उपभोग और अति-प्रोसेस्ड उत्पादों की बढ़ती प्रवृत्ति को कम करने के लिए आहार दिशानिर्देशों (ब्राजील उदाहरण के नेतृत्व में और FAO सिफ़ारिशों से सशक्त होने वाले) में वर्तमान में प्रचलित मार्गदर्शन को मज़बूत करना चाहिए. इसके अलावा, पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के पोषक तत्व प्रोफाइल मॉडल को फ्रंट-ऑफ-पैकेज न्यूट्रिशन लेबलिंग नियमों को अपनाना और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के लिए विपणन प्रतिबंध इन हानिकारक उत्पादों की ख़पत को हतोत्साहित करने के लिए सबसे प्रभावी साक्ष्य-आधारित समाधान हैं.[36]
NCD के बोझ को कम करने के लिए स्वास्थ्य वित्त साधनों का लाभ उठाने के लिए विश्व बैंक द्वारा अनुशंसित अल्ट्रा-प्रोसेस्ड उत्पादों (जिनकी कम कीमतें अक्सर पर्याप्त सामाजिक और पर्यावरणीय लागतों को छिपाती हैं) के कराधान के लिए G20 को प्रतिबद्ध होना चाहिए. यह उच्च कराधान के माध्यम से हो सकता है (उदाहरण के लिए, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड पेय पदार्थों की कीमतों में 20 प्रतिशत की वृद्धि करने की WHO की सिफ़ारिश) या ताज़ा या न्यूनतम प्रोसेस्ड खाद्य श्रेणियों के संबंध में सब्सिडी का कम उपयोग करके किया जा सकता है.
G20 को हाल ही में वनों की कटाई वाले क्षेत्रों से कृषि उत्पादों के विपणन पर प्रतिबंध लगाने के यूरोपीय निर्णय को मज़बूत करना चाहिए. यह सकारात्मक संकेत खाद्य आपूर्ति और वन विनाश के बीच कुल पृथक्करण को प्रोत्साहित करता है.
G20 को मिट्टी के जीवन, मानव स्वास्थ्य, पशु कल्याण और पानी की गुणवत्ता से समझौता करने वाले रासायनिक इनपुट्स में वैश्विक कमी के लिए सक्रिय, बहुपक्षीय और बहु-हितधारक समन्वय को बढ़ावा देना चाहिए. यह इन इनपुट्स के उपयोग को अचानक समाप्त करने की बात नहीं है, बल्कि यह पहचानने की है कि इन इनपुट्स में कमी लाना एक वैश्विक चुनौती है, जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी सहयोग ज़रूरी है.
यह महत्वपूर्ण है कि 30 प्रतिशत भूमि क्षेत्रों, महासागरों, तटीय क्षेत्रों और नदियों की सुरक्षा और कम से कम जो 30 प्रतिशत पहले से ही ख़राब हो चुके प्राकृतिक संसाधनों की बहाली पर कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (COP15) के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए G20 को तंत्र का समर्थन और स्थापना करता है.
दुनिया भर की सरकारें कृषि सब्सिडी के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के विनाश को प्रायोजित कर रही हैं. G20 को COP15 दस्तावेज़ों की अगुवाई में इन सब्सिडी में कमी लाने का समर्थन करना चाहिए (जो सब्सिडी को सालाना 500 बिलियन US$ तक कम करने का प्रस्ताव करता है).[37] सब्सिडी को सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए जो कृषि विकास और फ़सलों की मोनोटोनी से वर्तमान समाजों को होने वाले नुक़सान के रिजनरेशन यानी पुनर्जनन की अनुमति देते हैं.
G20 देशों को स्थानीय खाद्य (विविधता) उत्पादन को संबोधित करने के लिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था अवधारणा के आधार पर शहरी खाद्य प्रणाली नीति रणनीतियों को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए. इसके साथ-साथ भोजन की हानि और बर्बादी से लड़ने और स्वस्थ शहरी खाद्य वातावरण को सुरक्षित करने के लिए एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन और 2021 UN फुड सिस्टम्स सम्मिट से उभरे शहरी खाद्य प्रणाली गठबंधन[38] के तहत निर्देशित मार्ग को अपनाना चाहिए.
एट्रीब्यूशन : रिकार्डो अब्रामोवे et al., “प्रोमोटिंग डायर्वसिटी इन एग्रकल्चरल प्रोडक्शन टूवर्ड्स हेल्थी एंड सस्टेनेबल कन्सम्प्शन,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
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[29] Science Panel for the Amazon, Amazon Assessment Report 2021, (New York: United Nations Sustainable Development Solutions Network, 2021).
[30] Sara Reardon, “Antibiotic Use in Farming Set to Soar Despite Drug-Resistance Fears: Analysis Finds Antimicrobial Drug Use in Agriculture is Much Higher Than Reported,” Nature 614, no. 397 (February 2023).
[31] Food and Agriculture Organization of the United Nations, “Forest Pathways for Green Recovery and Building Inclusive, Resilient and Sustainable Economies,” 2022.
[32] Ellen MacArthur Foundation, “Cities and Circular Economy for Food”
[33] “The Biodiversity that is Crucial for our Food and Agriculture is Disappearing by the Day,” Food and Agriculture Organization of the United Nations, last modified February 22, 2019.
[34] Carlos A. Monteiro and Geoffrey Cannon, “The Impact of Transnational “Big Food” Companies on the South: A View from Brazil,” PLoS Medicine 9, no. 7 (2012): e1001252.
[35] Jennifer Clapp and Gyorgy Scrinis, “Big Food, Nutritionism, and Corporate Power,” Globalizations 14, no. 4 (2017): 578-95.
[36] Organização Pan-Americana de Saúde, “Relatório do workshop regional sobre regulação do marketing de produtos alimentícios não saudáveis. Washington, D.C., 15 a 17 de outubro de 2019,” 2020.
[37] Convention on Biological Diversity, “COP15 Concludes with Landmark Agreement to Protect Biodiversity and Address Climate Change,” December 2022.
[38] “Urban Food Systems are Critical in Building a Sustainable and Inclusive Future that Leaves No One Behind: Local and National Governments Have a Key Role in Leading the Way,” Urban Food Systems Coalition, accessed May 5, 2023.