एशिया में सतत विकास के लिए कर राजस्व जुटाना

DONGHYUN PARK | GEMMA ESTRADA | JOÃO TOVAR JALLES | ROBERT BREUNIG | SAMUEL CHRISTOPHER HILL | SANJEEV GUPTA | SHU TIAN | YOTHIN JINJARAK | YUHO MYODA

टास्क फोर्स 1: मैक्रोइकॉनॉमिक्स, ट्रेड, एंड लाइवलीहुड्‌स : पॉलिसी कोहेरेन्स एंड इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेशन.


सार

हरित और अधिक समावेशी भविष्य के लिए सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए विशाल रूप से सार्वजनिक व्यय ज़रूरी है. अनेक G20 अर्थव्यवस्थाओं के लिए राजकोषीय ज़रूरतों को पूरा करने और प्रगति का समर्थन करने के लिए राजस्व जुटाना आवश्यक है. हालांकि विभिन्न देशों में दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है लेकिन सार्वभौमिक संभावनाओं वाले विकल्पों में वैल्यू-एडेड टैक्स यानी मूल्य वर्धित कर (VAT) का बेहतर उपयोग, तर्कसंगत कर छूट और तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था का उचित कराधान शामिल है. व्यक्तिगत आय और संपत्ति कर को सुदृढ़ करने से उनकी कम राजस्व अर्जित करने की समस्या भी हल हो सकती है, जबकि यह व्यवस्था करों को और अधिक प्रगतिशील बनाएगी. सुधारात्मक कर, हानिकारक ख़पत को रोकने और इसे कम करने के उपायों के साथ ही राजस्व बढ़ाने में प्रभावी साबित हो सकते हैं. इसके अतिरिक्त, कर प्रशासन को मज़बूत करना भी राजस्व वृद्धि में सहायक होगा. वैसे ही सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता में सुधार करके करदाताओं का भी मनोबल बढ़ाया जा सकता है.

(इस प्रकाशन में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के अपने हैं और ज़रूरी नहीं कि ये लेखकों के संस्थानों के विचारों और नीतियों को प्रतिबिंबित करें.)

  1. चुनौती

विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को महत्वपूर्ण व्यय दबाव का सामना करना पड़ता है. इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, जल आपूर्ति और स्वच्छता, और हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के परिणामों का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त मात्रा में लगाने वाली राशि शामिल है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि 2030 में उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं को अतिरिक्त वार्षिक ख़र्च के लिए 2.1 ट्रिलियन US$ की ज़रूरत होगी.[1] SDG हासिल करने के लिए लक्षित वर्ष 2030 के बाद भी राजकोषीय दबाव बना रहेगा. इसी प्रकार 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने के लिए भी स्वच्छ ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश करने की ज़रूरत होगी. अधिकांश देशों में वृद्ध आबादी का हिस्सा तेजी से बढ़ेगा. उनके लिए पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक ख़र्च करने की व्यवस्था भी ज़रूरी है. इसी प्रकार बढ़ती संपन्नता से सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भी इज़ाफ़ा देखा जा सकता है.[2]

COVID-19 महामारी ने व्यय की बढ़ती ज़रूरतों और घटते राजस्व दोनों से राजकोषीय ख़ातों पर दबाव बढ़ा दिया था. संकट से निपटने के लिए राजकोषीय नीति की ज़रूरतें 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट से निपटने के लिए की गई व्यवस्था से काफ़ी अधिक थीं. अनेक विकासशील देशों में, इस महामारी को लेकर जो रिस्पॉन्स दिया गया उसमें केंद्रीय बैंक संपत्ति ख़रीद कार्यक्रम भी शामिल थे, जैसा कि ADBs के एशियन डेवलपमेंट आउटलुक 2022 में बताया गया है. (यह लेख एशियन डेवलपमेंट आउटलुक 2022: मोबिलाइजिंग टैक्स फॉर डेवलपमेंट के विवरण से काफी जानकारी का उपयोग किया गया है.[3],[4] 2020 में कम या नकारात्मक वृद्धि ने कर प्राप्तियों को कम किया था. इसी दौरान, अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं ने व्यय में काफ़ी वृद्धि देखी गई थी.[5] इसलिए, यह स्पष्ट है कि G20 अर्थव्यवस्थाओं को SDG प्राप्त करने के लिए आवश्यक विशाल सार्वजनिक व्यय को वित्तपोषित करने के लिए कर राजस्व संग्रहण को मज़बूत करना चाहिए.

कम कर राजस्व वाली G20 अर्थव्यवस्थाएं VAT और अन्य कन्सम्प्शन टैक्स पर अधिक निर्भर करती हैं (फिगर 1, पैनल A देखें). इंडोनेशिया, मैक्सिको, तुर्की, और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) जैसी कुछ अर्थव्यवस्थाओं की  टैक्स पर उच्च  निर्भरता होने के बावजूद ऐसे करों से होने वाला राजस्व उनके GDP के 10 प्रतिशत से कम ही है. (फिगर 1, पैनल B देखें). कर राजस्व में वृद्धि के लिए सरकारों को स्थानीय प्राथमिकताओं और क्षमताओं के अनुरूप प्रमुख राजस्व स्रोतों का अधिकतम उपयोग करना आवश्यक है. अनेक देशों में, करदाताओं के बारे में उनकी फर्मों से मिलने वाली थर्ड-पार्टी जानकारी बेहद कम होती है. ऐसे में यह पहले से ही कमज़ोर एनफोर्समेंट यानी प्रवर्तन क्षमता को और भी बाधित करती है.[6],[7]

फिगर 1.

  1. टोटल टैक्स रेवेन्यू टू GDP एंड टैक्सेस ऑन गुड्‌स एंड सर्विसेस टू टोटल टैक्स रेवेन्यू

  1. टैक्सेस ऑन गुड्‌स एंड सर्विस टू टोटल टैक्स रेवेन्यू एंड टू GDP

 

नोट: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका G20 के सदस्य हैं. सभी आंकड़े 2019 के हैं.

स्रोत: OECD. ग्लोबल रेवेन्यू स्टैटेस्टिक्स डेटाबेस. https://www.oecd.org

टैक्स एक्सपेंडिचर यानी कर व्यय का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है जिसके चलते महत्वपूर्ण राजस्व हानि हो सकती है. इनमें छूट, कटौतियां, क्रेडिट, आस्थगित, और निम्न कर दरें शामिल हैं, जिनका उद्देश्य सामाजिक कल्याण को बढ़ाना, विकास को बढ़ावा देना और अन्य नीतिगत लक्ष्यों का समर्थन करना है.[8] हालांकि, प्रत्यक्ष व्यय के विपरीत, कर व्यय में कमी को आम तौर पर विश्वसनीय, तुलनीय, या खुले तरीके से रिपोर्ट नहीं किया जाता है.[9] ऐसे में यह व्यवस्था कर आधार को कम करते हुए कर प्रणाली को कम कुशल बना देती है.[10] एशियाई कर प्राधिकारियों के सर्वेक्षण इस क्षेत्र में कर प्रोत्साहनों के प्रभाव को दर्शाते हैं, जिसमें कर अवकाश और कर दर में कटौती विशेष रूप से प्रचलित हैं.[11]

कॉर्पोरेट इनकम टैक्स (CIT) से होने वाले राजस्व को आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण के बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल पूंजी को आकर्षित करने और प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की इच्छा से प्रेरित होकर, पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने लगातार CIT दरों में कमी की है. एक कमज़ोर अंतरराष्ट्रीय कर ढांचे और विभिन्न देशों की कर नीति में अंतर का विशेषत: बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNEs) द्वारा अपनी कर देनदारी को कम करने के लिए फ़ायदा उठाया जा सकता है. MNEs अपनी टैक्स लायबिलिटी यानी कर देयता को कम करने के लिए अपनी इनकम और प्रॉफिट को लोअर-टैक्स जुरिस्डिक्शन में स्थानांतरित कर लेते हैं. टैक्स अवॉइडेंस यानी कर देने से बचने की प्रवृत्ति के कारण वैश्विक स्तर पर राजस्व को चार प्रतिशत की हानि होती है, जिसमें 10 प्रतिशत हिस्सेदारी CIT राजस्व की होने का अनुमान लगाया गया है. इसके चलते विकासशील देशों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ता है.[12]

डिजिटल इकोनॉमी के उदय से CIT से बचाव को बढ़ावा ही मिला है. डिजिटलीकरण की वज़ह से उस देश की पहचान करना मुश्किल हो जाता है, जिससे मुनाफ़ा कमाया जाता है. मसलन, जब किसी एक देश में एक प्लेटफॉर्म से बेचे गए सॉफ़्टवेयर को दूसरे देश में रहने वाला उपयोगकर्ता डाउनलोड करता है, तो मुनाफ़ा कमाने वाले देश की शिनाख्त करनी मुश्किल हो जाती है.[13] इसके अलावा, अप्रत्यक्ष संपत्ति जैसे लाइसेंस, ट्रेडमार्क और डेटा डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रचलित हैं. इन संपत्तियों को लोअर-टैक्स जुरिस्डिक्शन में स्थानांतरित करना आसान होता है. डिजिटल व्यवस्था में अप्रत्यक्ष संपत्तियों का मूल्य सहजता से पता नहीं लगाया जा सकता. ऐसे में विभिन्न फर्मों की इस बात का फ़ायदा उठाने की क्षमता बढ़ जाती है. ऐसे में यह संभावना है कि डिजिटल MNEs कर योजना से महत्वपूर्ण रूप से लाभान्वित होते हैं और कम प्रभावी कर दरों का लाभ उठाते हैं.[14]

अनेक G20 अर्थव्यवस्थाओं में डिस्पोजेबल इनकम यानी उपयोग के लिए उपलब्ध आय में असमानता न केवल उच्च बनी हुई है, बल्कि यह हाल ही में बढ़ी भी है. घटती श्रम हिस्सेदारी और शीर्ष और निचले क्रम के मजदूरों के पर्सेन्टाइल्स यानी प्रतिशतकों के बीच जो खाई है वह न केवल बाज़ार की आय में बल्कि प्रगतिशीलता को मज़बूत किए बगैर डिस्पोज़बल इनकम में भी असमानता को विस्तृत करेगा. ऐसा आंशिक रूप से इसलिए है, क्योंकि अमीर लोगों के लिए पूंजीगत आय पर प्रभावी कर की दर सबसे कम होती है. एक्सपेंडिचर साइड रिडिस्ट्रिब्यूटिव पॉलिसी के माध्यम से आय असमानता को कम करना व्यवहार्य है, लेकिन सामाजिक हस्तांतरण की तुलना में असमानता को कम करने में टैक्स एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.[15]  इसके अलावा, अनेक अर्थव्यवस्थाओं के लिए, व्यय पक्ष में पुनर्वितरण कार्य को मज़बूत करने के लिए भी यह देखते हुए कि मौजूदा राजकोषीय स्थान स्थायी तरीके से व्यय के महत्वपूर्ण विस्तार को समायोजित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, घरेलू संसाधन जुटाने की आवश्यकता होती है.

G20 की भूमिका

मूल रूप से घरेलू संसाधन जुटाना और पर्याप्त कर राजस्व हासिल कर उसे कुशलता से ख़र्च किया जाना घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए अहम होता है.[16] अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं के लिए, सरकारी राजस्व का प्राथमिक स्रोत कर होता हैं और कर से मिला राजस्व ही बड़े पैमाने पर मध्यम और लंबी अवधि में सार्वजनिक व्यय के लिफ़ाफे यानी ख़र्च करने की क्षमता को परिभाषित करता हैं. चूंकि निजी वित्तीय प्रवाह हमेशा अनुमानित नहीं होते हैं, अत: सरकार की उधार लेने की क्षमता भिन्न होती है. इसी प्रकार सरकार के स्वामित्व वाले ऑपरेशन यानी सरकारी कंपनियों के संचालन से मिलने वाला राजस्व अक्सर अनिश्चित होता है. आम तौर पर सरकारी व्यय, कर राजस्व से अधिक होता है. इसके बाद होने वाला ख़र्च उधार और गैर-कर राजस्व से किया जाता है. इसी प्रकार कर राजस्व के साथ ही ख़र्च भी बढ़ता है (फिगर 2 देखें). वैश्विक GDP और विकास में G20 का हिस्सा लगभग 80 प्रतिशत है. अत: SDG प्राप्त करने के लिए बढ़ती वित्तीय मांग को पूरा करने के लिए G20 अर्थव्यवस्थाओं में अधिक कर राजस्व बढ़ाना जरूरी है.

फिगर 2. कर और व्यय, 2015-2019 में औसत

 

GDP = ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट

नोट: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, और संयुक्त राज्य अमेरिका और इनके साथ ही यूरोपीय संघ G20 के सदस्य हैं. इस फिगर के आंकड़ों में तिमोर-लेस्त, नाउरू, किरिबाती और तुवालू शामिल नहीं हैं. अधिक जानकारी के लिए Go et al. (2022) देखें.[17]

स्रोत: OECD. ग्लोबल रेवेन्यू स्टैटिस्टिक्स डेटाबेस. https://www.oecd.org; IMF. गवर्नमेंट फाइनेंस स्टैटिस्टिक्स ऑनलाइन डेटाबेस. https://www.imf.org; IMF. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक अक्टूबर 2021 ऑनलाइन डेटाबेस. https://www.imf.org (सभी 31 जनवरी 2022 को एक्सेस किया गया); एशियन डेवलपमेंट बैंक का अनुमान.

डिजिटलीकरण के कारण अंतरराष्ट्रीय कराधान जटिल हो गया है, अत: G20 अर्थव्यवस्थाओं को इंटर-स्टेट सहयोग और अंतरराष्ट्रीय नियम बनाने का नेतृत्व करना जारी रखेंगी. इसी प्रकार बहुपक्षीय समाधानों को हासिल करने के प्रयास भी आवश्यक है. विशेषतः बेस इरोज़न और प्रॉफिट शिफ्टिंग पर G20-OECD प्रोजेक्ट और इसके साथ ही समावेशी ढांचे जैसे समाधान अनिवार्य हो गए है. 2021 में, समावेशी ढांचे ने दो स्तंभों की विशेषता वाले एक नए अंतर्राष्ट्रीय कर ढांचे का समर्थन किया. स्तंभ 1 के तहत, उन देशों के बीच लाभ और कर अधिकार साझा किए जाते हैं, जहां MNEs अपना राजस्व प्राप्त करते हैं. स्तंभ 2, 15 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम CIT दर का प्रस्ताव करता है. दोनों स्तंभों का एकत्रित उद्देश्य निष्पक्ष होना, CIT दरों पर नीचे की होड़ को कम करना और करदाताओं और कर प्रशासनों को अधिक निश्चितता प्रदान करना है. G20 अर्थव्यवस्थाओं को इस समझौते का पालन करने के साथ-साथ भविष्य में नियमों में और सुधार करने की ज़रूरत है.

G20 अर्थव्यवस्थाओं को SDG का समर्थन करने के लिए करेक्टिव टैक्सेस के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए. ग्रीन और हेल्थ टैक्सेस नकारात्मक बाह्यताओं को संबोधित करने के लिए लगाए जाते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि प्रदूषकों पर टैक्स लगाने से उत्सर्जन और प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है.[18] जीवाश्म ईंधन की प्राइस इलास्टिसिटी, अल्पावधि में कम होती है लेकिन यह समय के साथ अधिक होती जाती है.[19]  अगर पॉल्यूशन टैक्स, प्रदूषकों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रभावित करते हैं, तो वे प्रदूषण में कटौती करते हुए महत्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं. उनके व्यापक उपयोग के बावजूद, कुछ अर्थव्यवस्थाओं में इन करों से राजस्व कम रहता है, जो निम्न कर दरों और अनियमित कवरेज को दर्शाता है. उदाहरण के लिए, 2018 में OECD देशों में ऊर्जा, प्रदूषण और परिवहन करों से मिलने वाला राजस्व GDP के 2.3 प्रतिशत के बराबर हो गया है.[20] कार्बन की कीमतें बढ़ने से जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को समर्थन मिल सकता है और इससे राजस्व में भी वृद्धि हो सकती है.

  1. जी20 को सिफारिशें

VAT छूट की समीक्षा कर इन छूटों को कर आधार को व्यापक बनाने और कर राजस्व बढ़ाने के लिए सख़्त किया जाना चाहिए (फिगर 3 देखें). ऐसा करना कर दरों में वृद्धि करने की तुलना में आर्थिक विकास के लिए अधिक अनुकूल साबित होता है.[21] वैट छूट अक्सर अमीरों को अधिक लाभान्वित करती है क्योंकि वे अधिक उपभोग करते हैं, जिससे छूट आम तौर पर इक्विटी यानी समान हिस्सेदारी की अक्षम सुधारक बन जाती हैं. VAT की निचली सीमा कर आधार को संभावित रूप से व्यापक कर सकती है, लेकिन ऐसा होने पर फर्मों को अपनी कारोबारी गतिविधियों की जानकारी छिपाने या उसे कम रिपोर्ट करने या कारोबार को छोटा रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है.[22] प्रत्यक्ष व्यय की तरह, कर व्यय के स्पष्ट नीतिगत उद्देश्य और औचित्य होने चाहिए और लक्ष्यों को कुशलतापूर्वक, लागत प्रभावी और नीतिगत विकल्पों की तुलना में बेहतर तरीके से पूरा करना चाहिए.

फिगर 3. G20 में VAT दरें और चयनित क्षेत्रों में औसत दरें

स्रोत: प्राइसवाटरहाउसकूपर्स. वर्ल्ड टैक्स समरी. (28 मार्च 2023 को एक्सेस किया गया).

जहां मज़दूरी का अंतर काफी ज़्यादा है, वहां उच्च वेतन पाने वालों के लिए मार्जिनल रेट्‌स को बढ़ाने से समग्र कर प्रणाली की प्रगतिशीलता को मज़बूत करने में मदद मिल सकती है. हालांकि, सीमांत कर की दरों में तेजी से होने वाली वृद्धि के चलते व्यक्तिगत आयकर (PIT) आर्थिक रूप से महंगा हो सकता है,[23],[24] विशेषत: तब जब अर्थव्यवस्था स्वरोज़गार की वास्तविकता को दर्शाती है, और इस प्रकार कर योग्य आय पर तीसरे पक्ष की जानकारी की कमी प्रवर्तन में बाधा डालते हुए कर आधार को छोटा कर देती है.[25] उच्च कर दरें कार्य प्रोत्साहन को कम करती हैं और विशेष रूप से अत्यधिक कुशल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल वर्कर्स के लिए श्रम आपूर्ति को कम कर सकती हैं.[26],[27] घरेलू आय पर लगाए गए PIT महिला श्रम भागीदारी को हतोत्साहित कर लिंग असमानता को बढ़ा सकते हैं. प्रगतिशील आयकर, जीवन भर की कमाई को कम करके मानव पूंजी में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन को कम करते हुए दक्षता और उत्पादन हानि को बढ़ाता है.[28]

इक्विटी में सुधार के लिए व्यक्तियों की पूंजीगत आय पर प्रभावी कराधान महत्वपूर्ण है. धनवान व्यक्तियों के पास पूंजी का अनुपातहीन हिस्सा होता है और उनसे करों की वसूली की जानी चाहिए. स्व-नियोजित उद्यमी, जो अपनी आय को लेबर यानी श्रम से कैपिटल यानी पूंजी में बदल  सकते हैं, को भी लक्षित किया जाना चाहिए. इस कारण से, कैपिटल और लेबर आय पर समान प्रभावी कर दरें लागू की जानी चाहिए. अनेक देश कुछ प्रकार की पूंजीगत आय पर प्रेफरेंशियल टैक्स रेट लागू करते हैं, लेकिन इसे न्यूनतम किया जाना चाहिए क्योंकि ये निवेश की योजनाओं को प्रभावित करते हुए प्रगतिशीलता और कर आधार को कम कर सकता है. इसके साथ ही यह प्रवर्तन को जटिल बना सकता है. मसलन, सेवानिवृत्ति बचत को प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली टैक्स छूट, करदाताओं को और अधिक बचत करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती, बल्कि ये करदाताओं को केवल अपनी बचत को कर-आश्रित खातों में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे राजस्व हानि होती है और असमानता की स्थिति और बिगड़ती है.[29]

संपत्ति कर में सुधार प्रगतिशीलता का पूरक हो सकता है. कम कर राजस्व वाली G20 अर्थव्यवस्थाओं में, संपत्ति कर आम तौर पर थोड़ा, GDP के 2 प्रतिशत से भी कम राजस्व बढ़ाता है.[30] सरकारों को बढ़ते मूल्य पर कब्ज़ा करने और कर आधार में वृद्धि को सक्षम करने के लिए संपत्ति के मूल्यांकन में संशोधन करना चाहिए. संपत्ति रजिस्टरों और मूल्यों को समय पर और लागत प्रभावी तरीके से अपडेट करने में तकनीक से मदद ली जा सकती है.[31] रिमोट इमेजरी से स्पाटिअल डेटा का उपयोग बिल्डिंग फुटप्रिंट्स और बिल्ट अप एरिया का अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता है. इसके साथ यदि भूमि की कीमतों को मिला लिया जाए तो बड़े पैमाने पर संपत्ति करों का मूल्यांकन करना संभव हो सकता है. जहां प्राइस डेटा हासिल करना दुर्लभ हैं, वहां स्पाटिअल डेटा पर ड्राइंग मॉडल का उपयोग करके कीमतों का अनुमान लगाया जा सकता है. अंत में, संपत्ति कर की दरें पर्याप्त रूप से उच्च और कर आधार पर्याप्त रूप से व्यापक होना भी ज़रूरी है. विकासशील देशों में संपत्ति कर की दरें बढ़ाने से पर्याप्त राजस्व लाभ प्राप्त हो सकता है.[32]

कर-मुक्त सीमा के साथ एक व्यापक वेल्थ टैक्स सिस्टम प्रभावी ढंग से असमानता को कम कर सकता है. विरासत या उपहार, या वेल्थ होल्डिंग्स (संपत्ति और देनदारियों के बीच अंतर) जैसे स्थानान्तरण पर वेल्थ टैक्स लगाया जा सकता है. चूंकि परिसंपत्ति रिटर्न की परवाह किए बिना कर लगाया जाता है, अत: नागरिकों को उच्च-उपज वाली संपत्तियों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे परिसंपत्ति आवंटन अधिक कुशल हो जाता है.[33] इन फ़ायदों के बावजूद, संपत्ति कर, कार्यान्वयन में काफ़ी चुनौतियां पेश करता है. रिकरंट एसेट इवैल्यूएशन के लिए बड़ी मात्रा में प्रशासनिक संसाधनों की आवश्यकता होती है. इसके बावजूद कुछ एसेट क्लासेस यानी परिसंपत्ति वर्गों के लिए रेफरन्स प्राइस की अनुपलब्धता इसे और अधिक कठिन बना देती है.[34],[35]

करेक्टिव हेल्थ टैक्सेस का उपयोग बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागतों से निपटने में प्रभावी है, क्योंकि अनेक G20 अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही हैं. शराब और तम्बाकू के सेवन के साथ अस्वास्थ्यकर आहार आर्थिक लागत उत्पन्न करते हैं. ऐसा तब होता है जब समय से पहले मृत्यु या विकलांगता, चिकित्सा उपचार और अन्य सामाजिक लागतों की वज़ह से उत्पादकता समाप्त अथवा प्रभावित हो जाती है. व्यक्ति इन लागतों में से कुछ को आउट-ऑफ-पॉकेट चिकित्सा व्यय और मृत्यु या विकलांगता के साथ खोई हुई आय के रूप में वहन करते हैं. लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल जैसी अन्य लागतें सामाजिक यानी सरकारी ख़र्च से पूरी की जाती हैं. शराब, तम्बाकू, और शुगर-स्वीटन्ड पेय पदार्थों की हानिकारक ख़पत को कम करने या रोकने के लिए करेक्टिव टैक्सेस को बढ़ाना एक अत्यधिक प्रभावी तरीका है.[36]

जीवाश्म ईंधन की ख़पत पर अंकुश लगाने और उनकी बिक्री से राजस्व हासिल करने के लिए यदि वर्तमान में उनके करों की दरें कम है तो उन्हें बढ़ाया जाना चाहिए. भारत और PRC सहित कुछ अर्थव्यवस्थाओं में कार्बन प्राइसिंग इंस्ट्रूमेंट से मिलने वाला संभावित राजस्व बेहद महत्वपूर्ण है.[37] जीवाश्म ईंधन टैक्सेस अक्सर अच्छी तरह से स्थापित होते हैं. इन्हें लागू करना आसान होता है और कार्बन मूल्य निर्धारण की तुलना में अल्पावधि में इससे अधिक राजस्व मिलने की संभावना होती है. डायरेक्ट टैक्सेशन, अधिक मूल्य पूर्वानुमेयता और सरल प्रशासन में सहायक होता है. अनुपालन लागत और कर देने में टालमटोल अथवा कर चोरी के अवसरों को कम करने के लिए उत्पादकों या सीमा पर अपस्ट्रीम फर्मों की अपेक्षाकृत कम संख्या पर कार्बन टैक्स लगाया जा सकता है.[38] कार्बन टैक्स को लागू करते समय, देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित ऊर्जा करों में अनुचित रूप से कटौती न की जाए, जो राजस्व को कम कर सकती है, जैसा कि यूरोप में अनुभव किया गया है.[39]

करेक्टिव टैक्स से राजस्व का निर्धारण SDG-लक्षित व्यय के लिए राजकोषीय स्थान उपलब्ध कर सकता है. उदाहरण के लिए, जापान ने वायु प्रदूषण पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए सल्फर चार्ज यानी टैक्स का इस्तेमाल किया है. इस तरह के दृष्टिकोण सार्वजनिक स्वीकृति का निर्माण कर सकते हैं. जहां पर्यावरणीय करों का वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वहां सरकार ऑफसेटिंग रेवेन्यू रीसाइक्लिंग ट्रांसफर या रिबेट लागू कर सकती है. इनका व्यापक रूप से जैसा कि सिंगापुर में उपयोग किया जाता है, जहां कार्बन टैक्स और गैसोलीन ड्यूटी से मूल्य पर होने वाले असर को रिबेट के माध्यम से कम किया जाता है.

निष्कर्ष

विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को अधिक टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण ख़र्च के दबाव का सामना करना पड़ता है, और COVID-19 महामारी ने इस ख़र्च के लिए उनके राजकोषीय व्यवस्था में मौजूद स्थान को बुरी तरह प्रभावित किया है. लचीले आर्थिक विकास वाली G20 अर्थव्यवस्थाएं SDG को आगे बढ़ाने के लिए अपने घरेलू संसाधन जुटाने की चालक बनी रहेंगी. कर राजस्व बढ़ाने के लिए सरकारों को स्थानीय प्राथमिकताओं और क्षमताओं के अनुरूप महत्वपूर्ण राजस्व स्रोतों का अधिकतम उपयोग करने की आवश्यकता है.

वर्तमान में सीमित कर राजस्व वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए, मौजूदा कर व्यय और VAT छूट में सुधार आवश्यक हो सकता है. कुछ G20 अर्थव्यवस्थाओं को कर प्रणाली में प्रगतिशीलता में सुधार करना चाहिए, जो उच्च कमाई करने वालों के लिए मामूली PIT दर बढ़ाकर और कैपिटल इनकम टैक्स को मज़बूत करके प्राप्त किया जा सकता है. G20 अर्थव्यवस्थाओं से, हाल के वर्षों में अधिक महत्वपूर्ण हो गए कराधान के मुद्दों में अग्रणी भूमिका निभाने की उम्मीद है. मसलन, डिजिटलीकरण में प्रगति ने सीमाओं के पार की गतिविधियों पर उचित कराधान की कठिनाइयों को उजागर किया है. इसी प्रकार जलवायु परिवर्तन और तेजी से वृद्ध होते समाजों को देखते हुए सरकारों को कराधान, जैसे कि सामूहिक करों का व्यापक उपयोग, पर अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है.

लेखक ADB सलाहकारों, डोना फेय बजारो और मारिया हैना कॉन्सेपसियॉन पी. जाबेर को उनकी समीक्षा और सहयोग के लिए धन्यवाद देते हैं.


एट्रीब्यूशन : यूहो मायोडा et al., “मोबिलाइजिंग टैक्स रेवेन्यू फॉर सस्टेनेबल डेवपलपमेंट इन एशिया,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.


Endnotes

[1] Vitor Gaspar et al., “Fiscal Policy and Development: Human, Social, and Physical Investment for the SDGs,” Staff Discussion Notes No. 2019/003 (January 2019), Washington, DC: International Monetary Fund.

[2] Bernardin Akitoby et al., “Public Spending, Voracity, and Wagner’s Law in Developing Countries,European Journal of Political Economy 22, no. 4 (December 2006): 908–24.

[3] ADB, Asian Development Outlook: Mobilizing Taxes for Development, (Manila: Asian Development Bank, 2021b).

[4] World Bank, “Global Economic Prospects,” World Bank Group Flagship Report (June 2021), Washington, DC: The World Bank.

[5] ADB, Asian Development Outlook: Mobilizing Taxes for Development, (Manila: Asian Development Bank, 2021b).

[6] Henrik Jacobsen Kleven, Claus Thustrup Kreiner, and Emmanuel Saez, “Why Can Modern Governments Tax So Much? An Agency Model of Firms as Fiscal Intermediaries,” Economica 83 (January 2016): 219–246. DOI:10.1111/ecca.12182.

[7] Dina Pomeranz and Jose Vila-Belda, “Taking State-Capacity Research to the Field: Insights from Collaborations with Tax Authorities,” Annual Review of Economics 11 (2019) 755–81.

[8] Christian von Haldenwang, Agustin Redonda, and Flurim Aliu, “Shedding Light on Worldwide Tax Expenditures,” GTED Flagship Report (2021), Bonn: German Development Institute.

[9] Grant Driessen, “Spending and Tax Expenditures: Distinctions and Major Programs,” CRS Report (2019), Washington, DC: Congressional Research Service.

[10] Richard Miller Bird, “Tax Challenges Facing Developing Countries,” Inaugural Lecture of the Annual Public Lecture Series of the National Institute of Public Finance and Policy (March 2008), New Delhi.

[11]  ADB, A Comparative Analysis of Tax Administration in Asia and the Pacific (Manila: Asian Development Bank, 2022), 5th ed.

[12] OECD, “Examples of Successful DRM Reforms and the Role of International Co-operation,” Discussion Paper (2015), Paris: Organisation for Economic Co-operation and Development.

[13] Peter Mullins, “Taxing Developing Asia’s Digital Economy,” Asian Development Outlook 2022 Background Paper (April 2022), Manila: Asian Development Bank.

[14] Peter Mullins, “Taxing Developing Asia’s Digital Economy,” Asian Development Outlook 2022 Background Paper (April 2022), Manila: Asian Development Bank.

[15] Uma Rani and Marianne Furrer, Decomposing Income Inequality into Factor Income Components: Evidence from Selected G20 Countries (Geneva: International Labour Organization, 2016).

[16] Tony Addison, Miguel Niño-Zarazua, and Jukka Pirttila, “Fiscal Policy State Building and Economic Development,Journal of International Development 30, no. 2 (March 2018): 161–72.

[17] Eugenia Go et al., “Developing Asia’s Fiscal Landscape and Challenges,” ADB Economics Working Paper Series No. 665 (June 2022), Manila: Asian Development Bank.

[18] Ke Wang et al., “A Cost–Benefit Analysis of the Environmental Taxation Policy in China: A Frontier Analysis-Based Environmentally Extended Input–Output Optimization Method,” Journal of Industrial Ecology 24, no. 3 (June 2020): 564–76.

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[20] ADB, Asian Development Outlook: Financing a Green and Inclusive Recovery. (Manila: Asian Development Bank, 2021a).

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