अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा के कुशल प्रवाह के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास ज़रूरी
Spriha Pandey | Gaurav Chaudhary | Kaushal Mahan
टास्क फ़ोर्स 2: ऑवर कॉमन डिजिटल फ्यूचर: अफोर्डेबल, एक्सेसिबल एंड इनक्लूसिव डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर
सार
हाल के समय में डिजिटल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में ज़बरदस्त प्रगति और उसको अपनाए जाने की तेज़ रफ़्तार ने तमाम भौगोलिक क्षेत्रों और बाज़ारों के बीच की खाई को पाटने में मदद की है. हालांकि इस प्रक्रिया से कुछ मसले सतह पर भी उभरकर आए हैं, जो G20 के लिए चिंता का विषय हैं. इनमें डिजिटल डिवाइड, डेटा प्राइवेसी या निजता के मसले और सुरक्षा से जुड़ी आशंकाएं शामिल हैं. ये तमाम मुद्दे G20 द्वारा ओपन प्रोग्रामिंग इंटरफेसेज़ (APIs), डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) और राष्ट्रीय सरहदों के आर-पार डेटा के प्रवाह की संपूर्ण क्षमताओं को हासिल करने के रास्ते की रुकावट बने हुए हैं. डेटा के बेलगाम संग्रह, आंकड़ों पर एकाधिकार कायम किए जाने और वैधानिक डेटा साझा किए जाने के रास्ते की बाधाएं भरोसेमंद सूचना साझा करने की क़वायद में रुकावट डालते हैं. आजीविकाओं और कुल मिलाकर विकास की पूरी प्रक्रिया पर विश्वसनीय सूचनाओं का सकारात्मक बाहरी प्रभाव होता है. डेटा शेयरिंग को लेकर अधिकारों और निजता से जुड़े मसलों से उभरने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए G20 से सामूहिक प्रतिक्रिया की दरकार है. डिजिटल भुगतानों में भारत के अनुभवों से खाका खींचते हुए इस पॉलिसी ब्रीफ में वैश्विक संवाद के दायरे को व्यापक बनाया गया है. साथ ही एक फ्रेमवर्क का प्रस्ताव भी किया गया है, जिसके इर्द-गिर्द डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की रूपरेखा तैयार की जा सकती है. इससे राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार कार्यकुशल रूप से डेटा का प्रवाह सुनिश्चित हो सकेगा. इसमें ये बात स्वीकार की गई है कि राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा के प्रवाह पर सार्थक संवाद को गति देना कोई आसान काम नहीं है. डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास को सरल बनाने के लिए इस ब्रीफ में कई प्रस्ताव रेखांकित किए गए हैं. इससे वैश्विक समुदाय को सार्वभौम DPI अपनाने और उसका विकास करने में मदद मिलेगी. ऐसा वैश्विक DPI राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा के प्रवाह को सुव्यवस्थित करेगा और G20 को इससे संबंधित फ़ायदे हासिल करने की छूट देगा.
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चुनौती
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और उसके फ़ायदे
काग़ज़ी प्रक्रियाओं से बना परंपरागत बुनियादी ढांचा कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों की सभी ज़रूरतें पूरी कर पाने में नाकाम साबित हुआ. इसने दुनिया भर में डिजिटल कायाकल्प की गति और धारणा पर असर डाला. विश्व बैंक समूह के G2Px कार्यक्रम के तहत कोविड-19 के मसले पर सामाजिक बचाव प्रतिक्रिया को लेकर एक शोध किया गया. इससे पता चला कि महामारी का प्रकोप गहराने पर ठोस डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों वाले देश अपने 51 प्रतिशत नागरिकों तक डिजिटल माध्यमों से वित्तीय मदद पहुंचाने में कामयाब रहे; वैसे देश, जो डिजिटल डेटाबेसों और प्लेटफॉर्मों पर निर्भर नहीं थे, वहां ऐसी वित्तीय मदद केवल 16 फ़ीसदी आबादी तक ही पहुंच पाई. साफ़ है कि कोरोना संकट, देशों के लिए अपनी प्रशासनिक व्यवस्थाओं की कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए एक प्रोत्साहनकारी घटना सिद्ध हुई. ऐसी प्रणालियों से अर्थव्यवस्था का कुशलतापूर्व संचालन और नागरिकों की बेहतरी को बढ़ावा देना सुनिश्चित हो सकेगा. अब धीरे-धीरे दुनिया के अनेक देश एक लोचदार और फुर्तीले डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करने लगे हैं. इससे सशक्तकारी, समावेशी, खुले, निष्पक्ष और ग़ैर-भेदभावपूर्ण वातावरण हासिल करने की ज़रूरत पैदा हो गई है. एक ऐसा वातावरण, जो डिजिटल डिवाइड, निजता, डेटा संरक्षण, बौद्धिक संपदा अधिकारों और ऑनलाइन सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का निपटारा करने के साथ-साथ नई टेक्नोलॉजियों के प्रयोग को बढ़ावा देता है, कारोबारों और उद्यमों को फलने-फूलने की छूट देता है और उपभोक्ताओं का बचाव करने के साथ-साथ उनको सशक्त भी बनाता है.
यही वजह है कि एक कार्यकुशल डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर अतीत के किसी कालखंड के मुक़ाबले अब ज़्यादा अहम हो गया है. ख़ासतौर से संकट की घड़ी में इसकी अहमियत बेहद बढ़ जाती है. सेवा वितरण के स्तर को ऊंचा उठाकर, लीकेज़ को न्यूनतम सीमा तक लाकर, नवाचार को बढ़ावा देकर और संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करके, ये वैश्विक वित्तीय संस्थानों के निर्माण और सामाजिक समावेश में मदद करता है. समुदाय के हाशिए पर पड़े तबक़ों तक पहुंचने के लिए ये भौतिक और लागत से जुड़ी बाधाओं को भी दूर करता है.
DPI आमतौर पर समाधानों और प्रणालियों का हवाला देता है, जो सार्वजनिक और निजी सेवा वितरण के लिए आवश्यक बुनियादी कार्रवाइयों को सशक्त बनाते है. इनमें सहभागिता, वाणिज्य और शासन-प्रशासन शामिल हैं. यही वो कसौटी है जो आम लोगों, रकम और सूचना के प्रवाह का सामर्थ्य तय करता है, और नीचे दिए गए ब्योरे के हिसाब से मददगार साबित होता है:
- पहचान: लोगों और कारोबारों को डिजिटल पहचान हासिल करने की क्षमता प्रदान करता है. इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों के साथ-साथ विकेंद्रीकृत, सत्यापित करने योग्य पहचानों के स्वरूप में इस क़वायद को अंजाम दिया जाता है.
- भुगतान: आम लोगों, सरकारों और कारोबारों के बीच रकम के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है.
- डेटा का आदान-प्रदान: सहमति पर आधारित डेटा शेयरिंग प्रणाली को अधिकार देना. इससे सुरक्षा से जुड़े पर्याप्त उपायों से लैस होकर तमाम सरकारों और कारोबारों के बीच डेटा साझा करने की प्रक्रिया सुलभ हो सकेगी.
डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर यानी DPIs विभिन्न साधनों के ज़रिए विश्व के देशों को अपना विकास एजेंडा पूरा करने के अनोखे अवसर मुहैया कराते हैं, इसलिए वो आज की दुनिया में बेहद अहम और अपरिहार्य बन गए हैं. DPIs के अनेक फ़ायदों में से कुछ का ब्योरा नीचे दिया गया है:
- एक संवर्धित डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर में राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा के प्रवाह का कायापलट करने की क्षमता होती है. ये आधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था के एक अटूट हिस्से का निर्माण करता है. आज की दुनिया में डेटा ही नवाचार के उत्प्रेरक का काम करता है. देशों के भीतर और उनके बीच, डेटा का हस्तांतरण डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास के लिहाज़ से बेहद अहम है. अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा का प्रवाह डिजिटल व्यापार का हिस्सा है और उससे अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. ये वस्तुओं, सेवाओं, आम लोगों और वित्त के आवागमन की सुविधा मुहैया कराता है. एक विश्लेषण में लगाए गए आकलन के मुताबिक साल 2019 में डिजिटल रूप से सक्रिय व्यापार का सकल मूल्य वैश्विक स्तर पर 800 अरब अमेरिकी डॉलर से 1,500 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच रहा. McKinsey Global Institute की एक रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल वित्त, उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकता है. निम्न-आय वाले देशों में ऐसी बढ़ोतरी की संभावना तक़रीबन 10-12 प्रतिशत के बीच है, जबकि मध्यम आय वाले देशों के संदर्भ में ये आंकड़ा 4-5 प्रतिशत है.
- राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार, सस्ते और सुलभ तरीक़े से डेटा प्रवाह की छूट देने वाला प्रभावी डिजिटल पब्लिक बुनियादी ढांचा, व्यापार की मौजूदा लागत को कम करने में मदद कर सकता है. ये ख़रीद-बिक्री की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के प्रकार पर असर डाल सकता है. साथ ही उन कारकों में फ़ेरबदल कर सकता है जिनसे किसी देश के तुलनात्मक लाभ परिभाषित होते हैं.
- डेटा के मुक्त प्रवाह को सक्षण बनाने वाला वैश्विक DPI सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं के वितरण को मज़बूत बना सकता है. ये डेटा द्वारा संचालित दृष्टिकोण मुहैया कराकर राष्ट्रीय प्रगति से जुड़े मसलों और चिंताओं को बढ़ावा देते हुए सरकारों की मदद कर सकता है. लाभार्थियों की पहचान करने और उनतक सामाजिक कल्याणकारी भुगतान पहुंचाने में डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के इस्तेमाल ने स्वीकृति और समावेश वक्र (curve) को काफ़ी हद तक समतल कर दिया है. इस तरह सामाजिक और वित्तीय सहायता के क्षैतिज (horizontal) विस्तार में मदद पहुंची है. G20 के तमाम देशों में करोड़ों उपभोक्ता अब सिर्फ़ नक़द-आधारित अर्थव्यवस्था से औपचारिक वित्तीय सेवाओं की ओर आगे बढ़ रहे हैं. ये तमाम लोग अतीत में औपचारिक वित्तीय सेवाओं से वंचित रहे और हाशिए पर पड़े हुए थे. अब वो मोबाइल फ़ोन या दूसरी डिजिटल तकनीकों की मदद से इन सेवाओं तक पहुंच बना पा रहे हैं. ग्लोबल फ़िनडेक्स डेटाबेस 2021 के मुताबिक दुनिया भर के 76 प्रतिशत वयस्कों के पास अब बैंक, क्रेडिट यूनियन, माइक्रोफ़ाइनेंस संस्थान या मोबाइल मनी सर्विस प्रोवाइडर जैसे नियमित संस्थानों में खाते हैं. राष्ट्रों की सीमा के आर-पार डेटा शेयरिंग के लिए संशोधित DPI इस पहलू का भरपूर लाभ उठाने में भारी मदद कर सकता है. सरकारी और निजी संस्थानों द्वारा मुहैया कराई जा रही वित्तीय सेवाओं की गुंजाइश, पहुंच और पैमाने का विस्तार करके इस काम को अंजाम दिया जा सकता है.
- डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की वैश्विक व्यवस्था द्वारा समर्थित राष्ट्रों की सरहदों के आर-पार डेटा के दक्ष प्रवाह से कंपनियों को अपने आंतरिक क्रियाकलापों को केंद्रीकृत करने में मदद मिल सकती है. साथ ही ये अनेक बाज़ारों को अपनी सेवाएं भी पहुंचा सकता है. ये ख़ासतौर से ऐसे छोटे कारोबारों को फ़ायदा पहुंचाएगा, जिनके पास विदेशों में किसी तरह की मौजूदगी नहीं होती. इतना ही नहीं इस क़वायद से उपभोक्ताओं के लिए भी बेहतर सेवा गुणवत्ता और नीची क़ीमतों का रास्ता साफ़ हो सकेगा.
वैश्विक स्वीकृति के सामने चुनौतियां
डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के तमाम फ़ायदों के बावजूद राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा प्रवाह को सक्षम बनाने वाले DPI की वैश्विक स्वीकृति के सामने कई तरह की रुकावटें हैं.
- विशिष्ट और एकाकी प्रयास: भारत का यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंफ़्रास्ट्रक्चर (UPI) DPI की एक आदर्श मिसाल है. इसने डिजिटल भुगतानों के स्वरूप को कामयाबी से आमूल-चूल रूप से बदल डाला है. प्रयोग और इंटरऑपरेबिलिटी में सहूलियत के चलते नक़द-रहित भुगतान व्यवस्था की ओर देश को प्रोत्साहित करने में UPI एक निर्णायक कारक साबित हुआ है. अपने बूते थाईलैंड ने ‘प्रॉम्प्टपे’ की शुरुआत करके एक शानदार मिसाल क़ायम की है. इसमें वित्तीय खातों को नक़दी हस्तांतरण के लिए पहचान पत्रों या फ़ोन नंबरों से जोड़ा जाता है. यूक्रेन, एस्टोनिया, टोगो और श्रीलंका जैसे देश सरकारी सेवाओं के डिजिटल वितरण को बढ़ावा देने के लिए इंटर-ऑपरेबल ढांचा खड़ा करने की ओर तेज़ी से निवेश कर रहे हैं. कोविड-19 महामारी के बाद से संसार के तमाम देशों में डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है. विश्व बैंक के कार्यक्रम विकास के लिए पहचान (ID4D) के ज़रिए डिजिटल पहचान के क्रियान्वयन में फ़िलहाल 49 देशों की मदद की जा रही है. चित्र 1 में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अहम डिजिटल निवेशों की तस्वीर पेश की गई है. कोविड-19 महामारी के परिणामों की प्रतिक्रिया के तौर पर इनकी शुरुआत की गई थी.
चित्र 1: कोविड-19 महामारी के बाद डिजिटल निवेश
स्रोत: मेघन सुलिवान, आदि, “एक्सीलरेटेड डिजिटल गवर्नमेंट”
बेशक़, कई देशों ने अपनी आबादी की सेवा के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं. हालांकि कुछ मुट्ठी भर अपवादों को छोड़कर ऐसी ज़्यादातर मिसालें एकाकी प्रयासों के तौर पर उभरकर सामने आई हैं. उभरती टेक्नोलॉजी के साथ जुड़ावों के प्रसार से पैदा प्रभावों को इन क़वायदों के तहत भौगोलिक और राष्ट्रीय सरहदों के भीतर ही बांध लिया जाता है. भारतीय UPI सचमुच इस सिलसिले में अपवाद है, जो किसी ना किसी स्वरूप में संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सिंगापुर, मॉरिशस, नेपाल, भूटान, फ़्रांस और यूके में मौजूद है. बहरहाल, दुनिया भर में बेहतरीन तौर-तरीक़ों और ज्ञान को साझा करने को लेकर वैश्विक सहयोग और जुड़ाव नदारद हैं. ये G20 के लिए DPI के पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे के निर्माण में रोड़े अटका रहा है.
- डेटा प्रबंधन के अलग-अलग दृष्टिकोण: वैश्विक समुदाय आज तमाम दायरों में कई तरह के मसलों से जूझ रहा है. इनमें शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने के साथ-साथ समानता से जुड़ी खाई को पाटने की चुनौती शामिल हैं. डिजिटल सार्वजनिक इंफ़्रास्ट्रक्चर में इन साझा चुनौतियों से पार पाने की क्षमता मौजूद है. बहरहाल, G20 के भीतर डिजिटल कनेक्टिविटी से फ़ायदे जुटाने की क़वायद से डेटा का मुक्त प्रवाह अटूट रूप से जुड़ा हुआ है. इसके बावजूद दुनिया भर की सरकारों ने डेटा संप्रभुता को लेकर अलग-अलग रुख़ अपनाए हैं. इनमें स्थानीयकरण (localisation), वर्गीकरण, निजता और बचाव शामिल हैं. ये तमाम राष्ट्रीय सरहदों में डेटा के आपसी आदान-प्रदान की प्रक्रिया में बाधा पैदा करते हैं. वित्तीय बाधाएं भी चुनौती पेश करती हैं, साथ ही ये सवाल भी खड़ा होता है कि डेटा संग्रहण और आदान-प्रदान प्रणालियों में निवेश कौन करेगा. इसमें कोई शक़ नहीं कि डिजिटल डिवाइड यानी समाज के विभिन्न वर्गों में मौजूद डिजिटल खाई चिंताजनक है. कुछ देशों के पास इंटरनेट तक पहुंच और पर्याप्त डेटासेट्स का अभाव है. नतीजतन डेटा के मामले में समृद्ध देशों के साथ बराबरी से लेन-देन कर पाने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है. इससे मौजूदा असमानताओं की रोकथाम होने की बजाए उनमें और बढ़ोतरी हो जाती है.
- राष्ट्रीय सरहदों के आर-पार डेटा प्रवाह पर वैश्विक आम सहमति का अभाव: G20 के देश ओसाका शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा के प्रवाहों पर सर्वसम्मति हासिल कर पाने में विफल रहे थे. डेटा के नियमन को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोणों की वजह से ऐसी नाकामयाबी हाथ लगी थी. इस अहम मसले पर वैश्विक सर्वसम्मति तैयार करने के लिए वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) ने क़दम बढ़ाए और G20 के प्राथमिकता एजेंडे में “राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार भुगतानों को बढ़ावा देने के लिए मार्गों” का एलान किया गया. मौजूदा प्रणालियों की खामियों के निपटारे के लिए बुनियादी तत्व स्थापित करने को लेकर 2021 और 2022 में कुछ क़दम उठाए गए. इस सिलसिले में नई प्रणालियों और व्यवस्थाओं के विकास में रफ़्तार भरी गई. इसमें बैंक फ़ॉर सैटलमेंट्स कमिटी ऑन पेमेंट्स एंड मार्केट इंफ़्रास्ट्रक्चर्स (CPMI) के साथ-साथ BIS इनोवेशन हब, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक की सहभागिता से तैयार साझा रिपोर्ट शामिल हैं. इसे “राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार भुगतानों के लिए बहुपक्षीय प्लेटफ़ॉर्मों के पड़ताल” का नाम दिया गया. रिपोर्ट में बहुपक्षीय मंचों की लागतों, जोख़िमों, चुनौतियों, बाधाओं और मुनाफ़ों पर ग़ौर करते हुए सीमा के आर-पार भुगतान से जुड़े टकरावों में से कुछ के निपटारे में उनकी संभावित भूमिका की पड़ताल की गई है. इसमें केंद्रीय बैंकों द्वारा अंतरराष्ट्रीय भुगतानों को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी CBDCs की संरचना बनाने और उसका विकास किए जाने की क़वायद भी शामिल है. हालांकि इन घटनाक्रमों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय डेटा प्रवाह के लिए वैश्विक रोडमैप को पारस्परिक रूप से स्वीकार किए जाने और लागू किए जाने का काम अब भी बाक़ी है.
इस कड़ी में असली उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा के प्रवाह की इजाज़त देने वाले समावेशी दृष्टिकोण को अपनाया जाना है. इससे आर्थिक विकास, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय समावेश को सहारा दिया जा सकेगा. वैश्विक सहयोग को गहरा किए बिना इस मोर्चे पर कामयाबी संभव नहीं है. G20 के देशों को आपस में और अन्य वैश्विक सार्वजनिक संस्थानों के साथ सहभागी रुख़ अपनाना होगा.
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G20 की भूमिका
अहम और नाज़ुक सेवाओं के वितरण को लेकर तमाम उद्योगों की डिजिटल नेटवर्कों पर निर्भरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इनमें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, संचार और वित्त जैसे उद्योग शामिल हैं. ऐसे में डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर एक अनोखी और अहम भूमिका (सक्षम बनाने वाली साझा क़वायद के तौर पर) निभा रहा है. DPI एक बुनियादी कारक है और इसका दायरा तमाम क्षेत्रों में फैला हुआ है. नीतिगत प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हुए ये नवाचार को सक्षम बनाता है. इस प्रक्रिया में आम जनता को ज़बरदस्त फ़ायदे हासिल होते जाते हैं. राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा प्रवाह को सक्षम बनाने वाला वैश्विक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक हदों से पार निकल जाएगा. सस्ते और सुलभ तरीक़े से डेटा साझा करने की क़वायद को सक्षम बनाने वाला ऐसा वैश्विक ढांचा, सामाजिक और वित्तीय समावेश को बढ़ावा देगा. साथ ही समृद्धि में भी रफ़्तार भरेगा. इस तरह अंतरराष्ट्रीय स्थिरता, आर्थिक सहयोग और सतत विकास लक्ष्यों की सार्वभौम प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा.
वैश्विक मंच के रूप में G20 डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थापना को प्रोत्साहन दे सकता है और उसकी अगुवाई कर सकता है. इसके नतीजतन राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार डेटा प्रवाह को सक्षम बनाया जा सकेगा. वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) द्वारा चिन्हित किए गए प्राथमिकता क्षेत्रों को अपनाकर इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. इस तरह ऐसी परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जा सकेगा जो 2027 के लक्षित वर्ष तक अंतरराष्ट्रीय इंतज़ामों को बढ़ावा देते हों. FSB द्वारा प्रस्तावित G20 रोडमैप फ़ॉर इनहैंसिंग क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स पर क़दम आगे बढ़ाने के लिए G20 के सदस्य राष्ट्रों को ऐसे मानकों के प्रति वचनबद्धता जतानी चाहिए जो पहले से परिभाषित हों और जिनपर पारस्परिक सर्वसम्मति बन चुकी हो. इससे मौजूदा AML/CFT नियमों को तरोताज़ा किया जा सकेगा ताकि डेटा प्रवाह और भुगतान शुल्कों में पारदर्शिता को संभव बनाया जा सके. साथ ही उपभोक्ता संरक्षण के लिए एक निगरानी तंत्र को भी ज़मीन पर उतारा जा सकेगा. इस सिलसिले में नियमित रूप से निगरानी रखने और प्रगति की लगातार जानकारी दिए जाने की भी ज़रूरत होगी. इससे कार्रवाई-योग्य लक्ष्यों को उसी हिसाब से पूरा किया जाना सुनिश्चित हो सकेगा.
वित्तीय स्थिरता बोर्ड की सिफ़ारिशों के साथ-साथ G20 को अन्य प्रस्तावों पर भी सामूहिक रूप से विचार करना चाहिए. इनमें इस ब्रीफ में दी गई सिफ़ारिशें भी शामिल हैं, जो वैसे उपायों की पहचान करने का प्रयास करते हैं जिनके ज़रिए G20 समूह, DPI प्रणालियों की इंटर-ऑपरेबिलिटी को सहारा दे सकते हैं. बहुपक्षीय प्रतिनिधित्व के साथ G20 अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत बनाने के लिए उचित मंच मुहैया करा सकता है. साथ ही राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार भुगतानों में सुधार लाकर डिजिटल प्रणालियों के इस्तेमाल में रफ़्तार भी भर सकता है. G20 वैश्विक समझौते के लिए एक अवसर मुहैया कराता है. इस तरह तमाम न्यायिक क्षेत्राधिकारों में नीति-निर्माताओं, केंद्रीय बैंकों और प्रासंगिक नियामक प्राधिकारों के बीच प्रभावी तालमेल का रास्ता साफ़ हो सकेगा. इस क़वायद से राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद रुकावटों को दूर करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा के दक्ष प्रवाह को बढ़ावा दिया जा सकेगा. ज़ाहिर है इस प्रक्रिया से डिजिटल डिवाइड में कमी होगी और टिकाऊ और समावेशी भविष्य के लिए टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग संभव हो सकेगा.
“वसुधैव कुटुंबकम” या “एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य” के सार के साथ भारत की अध्यक्षता इस एजेंडे को आगे ले जाने के लिए एक आदर्श मंच है. मौजूदा सरकार के दृष्टिकोण से भी ये बात मज़बूती से साबित हुई है, जिसमें नीतियों, मंचों और भागीदारियों का एक सक्षमकारी वातावरण सुनिश्चित किया गया है. ये डिजिटल संसार के मुक्त और सीमाओं से परे रहने वाले स्वभाव के हिसाब से सटीक बैठता है. UPI के ज़रिए डिजिटल भुगतानों को आगे बढ़ाने के अपने अनुभवों से सबक़ लेते हुए भारत ‘भुगतान प्रणाली की इंटर-ऑपरेबिलिटी और विस्तार’ में भावी क़वायदों की अगुवाई कर सकता है. बैंक फ़ॉर सेटलमेंट्स कमिटी ऑन पेमेंट्स एंड मार्केट इंफ़्रास्ट्रक्चर्स (CPMI) और वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) ने मिल-जुलकर जिन विषय-वस्तुओं की पहचान की है, ये उनमें से एक है. इस तरह राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार बुनियादी ढांचे और इंतज़ामों को बढ़ावा दिया जा सकेगा. पहले ही भारत कई देशों के साथ ऐसी भागीदारियों की स्थापना कर चुका है. इनमें अमेरिका, जापान, भूटान और सिंगापुर शामिल हैं. इस तरह हिंदुस्तान तेज़ रफ़्तार वाले, सस्ते और पहले से ज़्यादा पारदर्शी अंतरराष्ट्रीय भुगतानों की दिशा में लगातार काम कर रहा है. देशों की डिजिटल प्रणालियों के आपसी संपर्क DPI प्रणालियों की इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए रास्ता साफ़ करेंगे. जैसे-जैसे दुनिया के ज़्यादा से ज़्यादा लोग औपचारिक वित्तीय व्यवस्था के दायरे में आते चले जाएंगे, इन क़वायदों का पारिवारिक, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर ज़बरदस्त सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिलेगा.
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G20 के लिए सिफ़ारिशें
इस पॉलिसी ब्रीफ में कार्रवाई के लिए चंद प्रस्ताव दिए गए हैं जिनपर G20 विचार कर सकता है.
- डिजिटाइज़ेशन के जोख़िमों के निपटारे के लिए वैश्विक क्षमता का निर्माण करना और उसको मज़बूती बनाना. वैसे तो वित्तीय स्थिरता बोर्ड G20 रोडमैप फ़ॉर इनहैंसिंग क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स के तहत देशों के बीच डेटा के आदान-प्रदान में सामंजस्य बिठाने के लिए मानक तय किए गए हैं, लेकिन साइबर सुरक्षा और संबंधित जोख़िमों के निपटारे को लेकर इनका दायरा सीमित है. जैसे-जैसे दुनिया सीमाओं के आर-पार वैश्विक DPI की स्वीकृति की दिशा में आगे बढ़ रही है, नीति-निर्माताओं को डेटा सुरक्षा और डेटा उल्लंघनों की देनदारी से जुड़े पेचीदा क़ानूनी मसलों से जूझना और आगे निकालना होगा. डेटा सुरक्षा और निजता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त बचावकारी उपाय स्थापित करने होंगे, ख़ासतौर से तमाम देशों द्वारा डेटा संरक्षण को लेकर अपनाई गई अलग-अलग व्यवस्थाओं (अलग-अलग हितों को पूरा करने के हिसाब से तैयार) के संदर्भ में ऐसी क़वायद करनी होगी. इस सिलसिले में ‘संरचना के हिसाब से सुरक्षा’ और ‘संरचना के हिसाब से निजता’ प्रमुख सिद्धांत हैं, जो तकनीकी और नीतिगत विकल्पों का समावेश करते हैं. डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास के हरेक चरण में इन्हें शामिल किया जा सकता है. इससे डेटा सुरक्षा, कारोबार की निरंतरता और घटना प्रबंधन सुनिश्चित हो सकेगा. सुरक्षा और लेन-देन में आसानी लाने वाली उन्नत तकनीक और कार्यकारी दृष्टिकोणों को वैश्विक सहयोग के ज़रिए ही विकसित किया जा सकता है. मौजूदा और उभरते सुरक्षा जोख़िमों के निपटारे के लिए परिभाषित रूपरेखा वाले प्रशासकीय मानदंडों पर G20 के सभी देशों को पारस्परिक रूप से आम सहमति बनानी होगी और इस क़वायद को आगे बढ़ाना होगा.
- वित्तीय समावेशन पर डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के कार्यक्रमों को पहुंच और दायरे के हिसाब से व्यापक रूप दिया जाना चाहिए. सामाजिक और वित्तीय समावेश के दायरे के विस्तार के लिए DPI ऐप्लिकेशंस को अपनाने की दिशा में भारत शानदार रूप से सबकी अगुवाई कर रहा है. 2016 में देश का UPI इंफ़्रास्ट्रक्चर स्थापित किया गया था. पिछले छह वर्षों में इस ढांचे ने भारत में 80 प्रतिशत वित्तीय समावेश हासिल करने में मदद की है. DPI दृष्टिकोण के बग़ैर ऐसी कामयाबी हासिल करने में देश को 46 वर्षों का समय लग जाता. वैसे तो DPI के तमाम तत्वों में से एक यानी UPI का सिंगापुर, UAE, ओमान, सऊदी अरब, मलेशिया, फ़्रांस और BENELUX बाज़ारों (बेल्जियम, नीदरलैंड्स और लक्ज़मबर्ग) में विस्तार हो चुका है, लेकिन ऐसे डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर का अभी वैश्विक स्तर पर और ज़्यादा स्वीकृति और एकीकरण किए जाने की दरकार है. ख़ासतौर से अफ़्रीका और उत्तरी अमेरिकी बाज़ारों तक इनका पहुंच बनाया जाना आवश्यक है. दुनिया भर में DPIs की ऐसी इंटर-ऑपरेबिलिटी और अंतर-संपर्कों से एक देश से दूसरे देशों में रकम भेजे जाने की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जा सकेगी. इतना ही नहीं, राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार लेन-देन की लागतों में कमी आने के साथ-साथ पारदर्शिता में भी बढ़ोतरी हो सकेगी. पलक झपकते और कम लागत में रकम हस्तांतरित करने की ये सुविधा, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को औपचारिक वित्तीय दायरे में लाने में मददगार साबित होगी.
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा प्रवाह के लिए वैश्विक DPI की संरचना तैयार करने में समावेशी दृष्टिकोण अपनाना. राष्ट्रीय सरहदों के आर-पार डेटा प्रवाह को लेकर वैश्विक रुख़ में खुले और इंटर-ऑपरेबल मानक होने चाहिए. इस सिलसिले में जन-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ताकि इसे तमाम भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक श्रृंखलाओं में आसानी से अपनाया जा सके, बार-बार प्रयोग में लाया जा सके और दोहराया जा सके. दुनिया के तमाम देश (ख़ासतौर से निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं) सार्वजनिक सेवा वितरण तक नागरिकों की पहुंच सुधारने में साझा बुनियादी ढांचे की अहमियत को एक लंबे अर्से से स्वीकार करते आ रहे हैं. हालांकि ऐसे कई राष्ट्र अब भी डिजिटल कायाकल्प के बेहद शुरुआती दौर में हैं, और उनके पास मौजूदा डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा कर पाने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है. अपने नागरिकों के कल्याण के लिए डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं (DPGs) की संरचना तैयार करने और उनको क्रियान्वित करने के लिए इन देशों को भारी-भरकम तकनीकी विशेषज्ञता और प्रचुर संसाधनों की दरकार है. वैसे तमाम देश, जो इस श्रृंखला में काफ़ी आगे हैं, वो दूसरे देशों (जो DPI की दिशा में अभी अपना सफ़र शुरू कर रहे हैं) के शिक्षा और स्वीकार्यता वक्र (learning and adoption curve) को समतल करने के लिए अपने अनुभव साझा कर सकते हैं. इसके लिए DPIs में संपन्न देशों को डिजिटल पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्चर के उभार और विकास में डिजिटल सहयोग और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना होगा. वैश्विक चुनौतियों से निपटने और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वैश्विक DPIs को ‘संरचना के हिसाब से समावेशी’ सिद्धांत से तैयार करना होगा.
- वित्तीय समावेश पर डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यक्रमों को माइक्रो फ़ाइनेंस संस्थानों की वृद्धि को सम्मिलित करना चाहिए. दशकों के नवाचार के बाद माइक्रो फ़ाइनेंस से जुड़ा बाज़ार परिपक्व होना शुरू हो चुका है. माइक्रो फाइनेंस यानी सूक्ष्म वित्त से जुड़े इन संस्थानों (MFIs) ने वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने और छोटे और हाशिए पर पड़े कर्ज़दारों तक पहुंचने में निर्णायक भूमिका अदा की है. इन संस्थानों को DPIs के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि टेक्नोलॉजी द्वारा बड़ी से बड़ी आबादी तक सस्ती लागत पर सेवाओं की पहले से ज़्यादा पहुंच सुनिश्चित की जा सके. DPIs के ज़रिए MFIs को मुख्य धारा में जोड़ने को लेकर अंतरराष्ट्रीय हिस्सेदारियों और राष्ट्रीय सीमाओं की सहभागिता बनाकर वित्तीय और सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जा सकेगा. इस तरह निम्न-आय वाले ऐसे बाज़ारों तक पहुंच बनाई जा सकेगी जिनकी अबतक अनदेखी होती आ रही थी.
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डेटा का प्रवाह के लिए वैश्विक DPI में टिकाऊ निवेश को लेकर भागीदारियों को प्रोत्साहित करना और क्षमता में मज़बूती लाना. अधिकतम परिणाम हासिल करने और तमाम भौगोलिक क्षेत्रों में DPIs के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए सरकारी अधिकारियों से परे दूसरे स्टेकहोल्डर्स का जुड़ाव क़ायम करना मुख्य लक्ष्य है. निजी किरदारों को साथ जोड़ने से लेन-देन की लागत घटाने, सूचना की समानता सुनिश्चित करने और डेटा के ढांचागत आदान-प्रदान के लिए रास्ता साफ़ करने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, निजी क्षेत्र के सहयोग से होने वाली प्रतिस्पर्धा और नवाचार से सेवा वितरण की मौजूदा गुणवत्ता के स्तर को, और सुरक्षा उपायों को ऊंचा उठाया जा सकता है. मिसाल के तौर पर भारत में डिजिटल भुगतान व्यवस्थाओं को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तमाम प्रकार के उत्पादों और सेवाओं की शुरुआत करने में दोहराया गया है.
विकास के परिणाम हासिल करने के लिए डिजिटल समावेश निहायत ज़रूरी है. G20 की अर्थव्यवस्थाओं को अगले दशक में इस लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए इस दिशा में काम करने को लेकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. सदस्य राष्ट्र एक-दूसरे के तौर-तरीक़ों से सबक़ सीखकर, अपने बेहतरीन अभ्यास साझा करके और अनेक किरदारों वाली रणनीतियां अपनाकर इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों में तालमेल बिठा सकते हैं. इस तरह मौजूदा अड़चनों को दूर किया जा सकेगा और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक रूप से अपनाए जाने की क़वायद को बढ़ावा मिलेगा.
एट्रीब्यूशन: स्पृहा पांडे, गौरव चौधरी और कौशल महान, “डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर फ़ॉर एफ़िशिएंट क्रास-बॉर्डर डेटा फ्लो,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
Endnotes:
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[3] Cathal Long, “Digital public infrastructure, platforms and public finance”. (accessed February 20, 2023)
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[5] McKinsey Global Institute, Digital Finance For All: Powering Inclusive Growth In Emerging Economies (McKinsey & Company, 2016), 4, (accessed March 01, 2023)
[6] McKinsey Global Institute, Digital Finance For All: Powering Inclusive Growth In Emerging Economies.
[7] Kriti Mittal, et al., “Creating ‘Good’ Digital Public Infrastructure”. (accessed March 10, 2023)
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[10] International Monetary Fund, Exploring Multilateral Platforms for Cross-Border Payments, 2023. (accessed March 18, 2023)
[11] FSB, G20 Roadmap for Enhancing Cross-border Payments.
[12] Bank for International Settlements, CPMI Cross-border payments programme – Overview. (accessed March 28, 2023)
[13] Mittal, et al., “Good DPI”
[14] Keyzom Ngodup Massally and Devesh Sharma, “Digital public infrastructure can help solve global challenges. This is how to implement it”. (accessed March 20, 2023)
[15] Priya Vedavalli and Sridhar Ganapathy, “Digital Public Infrastructure | 3 areas for collaboration in social protection”. (accessed March 02, 2023)