जीडीपी से परे: कल्याण के मूल्य का आकलन

Krishna Kumar | Pramod Kumar Anand | Arpit Barman | Sameera Altuwaijri | Igor Makarov | Sedat Alataş | Beena Pandey | Rohit Saini | P. Srinivasa Rao | Basma Altuwaijri | Anand Pratap Singh

सार-संक्षेप

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) प्रति व्यक्ति आय वृद्धि को मापने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला संकेतक है लेकिन यह सामाजिक और पर्यावरणीय प्रगति को लेकर बहुत कम संकेत देता है. लिहाज़ा कल्याण को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों को आत्मसात करने के लिए एक बड़े सूचकांक की ज़रूरत है. इसके अलावा  आर्थिक संकट, संघर्ष, महामारी और आपदाओं जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया को सामान्य सामाजिक लक्ष्य वाली परिवर्तनकारी नीतियों की ज़रूरत होती है. ऐसी नीतियों की प्रगति को मापने के लिए, डोमेन और डायमेन्शन के उपयुक्त सेट की आवश्यकता होती है. जीडीपी के पूरक सूचकांकों को विकसित करने के लिए हाल के दिनों में कई पहल की गई है. टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) टारगेट 17.19 सतत विकास के आधार पर प्रगति का एक उपाय विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है जो सकल घरेलू उत्पाद का पूरक है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव का ‘हमारा साझा एज़ेंडा’ भी इसकी वकालत करता है. उपरोक्त बातों के संदर्भ में  यह पॉलिसी ब्रीफ एक मानकीकृत कल्याण ढांचे के विकास की सिफ़ारिश करता है जिसमें स्थिरता और सकल घरेलू उत्पाद को पूरक के तौर पर शामिल करना है, साथ ही साथ राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणालियों की क्षमता को बढ़ाना भी मक़सद का हिस्सा है.

1. चुनौती

1.1 डायवर्जेंट अप्रोच

राष्ट्रीय सरकार और दूसरे स्टेकहोल्डर्स यह महसूस कर रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक यूनिडायमेंशनल इंडीकेटर है जो लोगों के संपूर्ण कल्याण की पहचान नहीं कर सकता है जो विशुद्ध रूप से बहुआयामी होता है. अर्थव्यवस्था और समाज के बारे में सांख्यिकीय जानकारी की स्थिति को मापने के लिए जीडीपी को अपर्याप्त पाते हुए, तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने 2008 में, प्रख्यात अर्थशास्त्री जोसेफ ई. स्टिग्लिट्ज़ के तहत कमीशन ऑन द मेजरमेंट ऑफ इकोनॉमिक परफॉर्मेंस एंड सोशल प्रोग्रेस (सीएमईपीएसपी) को नियुक्त किया. अमर्त्य सेन और जीन-पॉल फिटौसी ने आर्थिक और सामाजिक प्रगति के संकेतक के रूप में जीडीपी से जुड़े विभिन्न मुद्दों की पहचान की. आयोग को अधिक प्रासंगिक इंडिकेटर तैयार करने के लिए भी कहा गया था जो ऐसे वैकल्पिक मापों की व्यवहार्यता का आकलन कर सके जो सामाजिक प्रगति को माप सके. इस आयोग ने सकल घरेलू उत्पाद की सीमाओं की जांच की और कल्याण के एक बहुआयामी संकेतक का सुझाव दिया, जिसमें आठ आयाम शामिल हैं. [1]  आयोग का यह भी विचार था कि लोगों के कल्याण के व्यक्तिपरक और वस्तुनिष्ठ दोनों आयाम महत्वपूर्ण हैं. हालांकि  इसने ‘कल्याण’ के गठन की कोई ठोस परिभाषा नहीं दी लेकिन सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र 2030 एज़ेंडा, 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), के साथ 169 लक्ष्य विशेष रूप से एक अधिक टिकाऊ भविष्य हासिल करने के लिए एक रोडमैप के रूप में तैयार किया गया है, जिसमें कोई भी पीछे न छूटे. जबकि एसडीजी टारगेट  17.18 उच्च-गुणवत्ता, समय पर और विश्वसनीय अलग-अलग डेटा की उपलब्धता के लिए सांख्यिकीय क्षमता को बढ़ाने की कोशिश करता है, टारगेट 17.19 राष्ट्रीय सरकारों द्वारा मौज़ूदा पहल पर निर्माण करने की मांग करता है जिससे सकल घरेलू उत्पाद को पूरा करने वाले सतत विकास पर प्रगति का एक उपाय विकसित किया जा सके. [2]

‘ऑवर कॉमन एज़ेंडा’ पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की रिपोर्ट भी जीडीपी से आगे बढ़ने के पक्ष में है.[3] जी7 की कनाडा प्रेसीडेंसी समिट कम्युनिक, [4] 2018, ने माना कि “… सफलता को मापने के लिए अकेले आर्थिक उत्पादन अपर्याप्त है और समृद्धि और कल्याण को मापने वाले अन्य सामाजिक और आर्थिक संकेतकों की निगरानी के महत्व को स्वीकार करना ज़रूरी है”. जनवरी 2023 की भोपाल डिक्लेरेशन ने यह भी महसूस किया है कि “जी20 देशों के लिए यह एक उपयुक्त समय है कि वे स्थिरता सिद्धांतों के आधार पर कल्याण के व्यापक उपाय विकसित करने की दृष्टि से चर्चा में शामिल हों”. [5]  थिंक 7 (टी7) विज्ञप्ति के तहत अप्रैल 2023 में जापान प्रेसीडेंसी के दौरान सात देशों के समूह (जी7) ने भी कल्याण को मापने के ऐसे तरीक़े की वक़ालत की जो सकल घरेलू उत्पाद का पूरक है. [6]  इन घटनाक्रमों को देखने के बाद अब समय आ गया है कि इन आकांक्षाओं को ठोस कार्रवाई में बदला जाए.

1.2 व्यापकता का अभाव

यह देखा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद पर आधारित संकीर्ण नीतियों ने, कई अंतर्निहित कारणों से, अंतर-क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दिया है और इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण और जैव विविधता का नुकसान हुआ है; जिसका असर जलवायु पर भी पड़ा है. जीडीपी वास्तविक दुनिया के कई पहलुओं, जैसे आय और धन असमानताओं, प्राकृतिक संसाधनों की कमी और स्थिरता को अनदेखा करते हुए, एक परिभाषित समय और देश के भौगोलिक क्षेत्र के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य पर विचार करता है. इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद की गणना अवैतनिक कार्यों जैसे घरेलू काम और बच्चों और बड़े वयस्कों की देखभाल के साथ-साथ शामिल लोगों की मनोवैज्ञानिक, मानसिक और भावनात्मक स्थितियों की भूमिका और मूल्य पर विचार नहीं करती है.

बायोडायवर्सिटी लॉस, कार्बन उत्सर्जन, प्रदूषण  और महामारियों, संघर्षों और संकटों सहित कई विनाशकारी घटनाओं को जीडीपी द्वारा कवर नहीं किया जा सकता है. पर्यावरणीय स्थिरता एक महत्वपूर्ण घटक है जिसे जीडीपी काफी हद तक नज़रअंदाज़ करता है, जबकि कल्याण के सही मेजरमेंट के लिए, हम कैसे उत्पादन करते हैं और हम पर्यावरण को कितना प्रभावित करते हैं, यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना हम उत्पादन और विकास को इस गणना में शामिल करते हैं. इतना ही नहीं 21वीं सदी की विभिन्न चुनौतियां जैसे कि तकनीक़ी विकास और औद्योगिक क्रांति 4.0, मौज़ूदा जीडीपी के दायरे से बाहर हैं.

1.3 वैश्विक पहल जो विकास के कुछ पहलुओं की अनदेखी करती हैं

जीडीपी अर्थव्यवस्था के कामकाज की एक समग्र तस्वीर देता तो है लेकिन जीवन की गुणवत्ता, जीवन से संतुष्टि और स्थिरता जैसे पहलुओं को शामिल नहीं करता है. इन कमियों के बावज़ूद और समाज की गतिविधियों के एक संकीर्ण हिस्से पर इसका ध्यान केंद्रित होने के बावज़ूद, जीडीपी आर्थिक प्रगति के लिए अनिवार्य शर्त बनी हुई है. इसके अलावा, सकल घरेलू उत्पाद की गणना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों पर आधारित है, जो क्रॉस-कंट्री तुलना की अनुमति देता है और इसलिए  आर्थिक विकास का एक मानक बना हुआ है. हालांकि जीडीपी के लिए एक पूरक संकेतक विकसित करने की आवश्यकता है जो विकास की बहुआयामी प्रकृति को अपने में शामिल कर सके और लोगों के कल्याण के साथ-साथ स्थिरता पर ध्यान केंद्रित कर सके.

प्रगति के व्यापक उपायों को विकसित करने के लिए हाल के वर्षों में कई कदम उठाए गए हैं.  फरवरी-मार्च 2012 में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग के 43वें सत्र में पर्यावरण आर्थिक लेखा प्रणाली (एसईईए) केंद्रीय ढांचे को एक अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकीय मानक के रूप में अपनाया गया था, ताकि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच संबंधों को मापने के लिए भूमि, ऊर्जा, पानी और खनिज जैसी संपत्तियों को भी शामिल किया जा सके. मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग के 52वें सत्र में एसईईए इकोसिस्टम अकाउंटिंग को अपनाया गया था, जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को मापने और कोरल रीफ्स, रेन फॉरेस्ट और मैंग्रोव जैसी संपत्तियों में कमी के साथ-साथ मानव गतिविधि के संबंध पर ध्यान केंद्रित किया गया था. एक अन्य संकेतक जो वास्तविक प्रगति का संकेतक है, जो आर्थिक उत्पादन में पर्यावरणीय गिरावट को शामिल करता है. पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ आर्थिक विकास के उद्देश्य से ग्रीन ग्रोथ इंडिकेटर के ढांचे विकसित किए गए हैं. [7]

ये सभी कदम विकास के पर्यावरणीय आयाम पर विचार करते हैं; हालांकि  ये संकेतक सामाजिक आयामों पर कम ध्यान देते हैं. हालांकि इन उपायों का दूसरा सेट, सकल घरेलू उत्पाद से परे, विकास के सामाजिक आयाम पर अधिक ज़ोर देता है. युनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम [8]  द्वारा विकसित ह्यूमन डेवलपमेंट इंडीकेटर्स (एचडीआई) और सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क (एसडीएसएन) [9]  द्वारा संकलित वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स (डब्ल्यूएचआई) जैसे संकेतक इस श्रेणी में शामिल हैं. ग्लोबल सॉल्यूशन इनिशिएटिव (जीएसआई) ने चुनिंदा देशों के लिए चार सूचकांकों के डैशबोर्ड के रूप में कल्याण को मापने का तरीक़ा विकसित किया है – एकजुटता (एस); एजेंसी (ए); भौतिक लाभ (जी); और पर्यावरणीय स्थिरता (ई). हालांकि  यह कल्याण के परिणामों के लिए एक भी संख्या नहीं देता है. [10]

1.4 परिवर्धन के लिए ज़रूरी वाले क्षेत्रीय प्रयास

ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने ‘हाउज़ लाइफ़?: वेलबीइंग’ शीर्षक से एक द्विवार्षिक प्रकाशन जारी किया, जो वर्तमान कल्याण (आवास, आय, नौकरी, समुदाय, शिक्षा, पर्यावरण, शासन, स्वास्थ्य, जीवन संतुष्टि, सुरक्षा और कार्य-जीवन संतुलन आदि) के लिए ओईसीडी सदस्य और उनके सहयोगी देशों में, जो विकसित देश हैं, 11 डोमेन के तहत पहचाने गए संकेतकों का विश्लेषण करता है.  [11]  ओईसीडी द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकांश संकेतक वस्तुनिष्ठ हैं, हालांकि कुछ व्यक्तिपरक हैं और इसलिए इन्हें मापना मुश्किल है. कल्याण  के ओईसीडी ढांचे में कई संकेतक विकासशील देशों में ज़मीनी हक़ीकत का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.  इसके अलावा, कुछ संकेतक विकासशील देशों के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं लेकिन ओईसीडी ढांचे में शामिल नहीं हैं. ये आय और धन में असमानता, ग़रीबी की व्यापकता, बेरोज़गारी, तपेदिक और मधुमेह जैसी विभिन्न बीमारियों की व्यापकता, और शिक्षा की गुणवत्ता, किंडरगार्टन और आजीवन शिक्षा सहित शिक्षा की गुणवत्ता से संबंधित हो सकते हैं.

विकासशील देशों के लिए रिसर्च एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम (आरआईएस), भारत में एक नीति थिंक-टैंक, ने स्वस्थ जीवन के महत्व, जीवन की गुणवत्ता में सुधार और स्थिरता को संबोधित करने के लिए ब्रिक्स वेलनेस इंडेक्स बनाया है. इस सूचकांक में चार आयाम शामिल हैं- भौतिक कल्याण, मानव प्रवीणता, मानव स्वास्थ्य और स्थिरता. [12]

1.5 वैश्विक स्वीकृति से राष्ट्रीय पहल थोड़ा कम है

वैश्विक और क्षेत्रीय कदम के अलावा, राष्ट्रीय सरकारों ने कल्याण मैट्रिक्स के विकास के लिए अपनी तरफ से पहल की है.  ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने राष्ट्रीय कल्याण डैशबोर्ड के उपाय बनाए हैं: ब्रिटेन में जीवन की गुणवत्ता, जिसमें जीवन संतुष्टि, खुशी, मानसिक भलाई, चिंता, अकेलापन, जीवन प्रत्याशा, बेरोज़गारी दर, नौकरी से संतुष्टि, और प्राकृतिक वातावरण तक पहुंच से संबंधित 44 संकेतक शामिल हैं. [13]  कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय ने सामुदायिक जीवन शक्ति, शिक्षा, लोकतांत्रिक जुड़ाव, जीवन स्तर, पर्यावरण, स्वस्थ आबादी, अवकाश और संस्कृति और समय के उपयोग सहित आठ डोमेन में परिवर्तनों को ट्रैक करने के लिए कैनेडियन इंडेक्स ऑफ वेल बीइंग (सीआईडब्ल्यू) भी विकसित किया है. [14]  भारत सरकार ज्ञान अर्थव्यवस्था के योगदान का आकलन करने के लिए सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद [15]  (जीडीकेपी) की अवधारणा को पेश करने की कोशिश कर रही है. भूटान साम्राज्य ने आर्थिक प्रगति के पारंपरिक उपायों के विकल्प के रूप में सकल राष्ट्रीय खुशहाली सूचकांक विकसित किया है, जो चार स्तंभों और नौ क्षेत्रों में कल्याण को मापता है. [16]

1.6 नॉन-एग्जॉस्टिव दृष्टिकोण की चुनौतियां

ऊपर सूचीबद्ध वैश्विक और क्षेत्रीय प्रयास कल्याण की अवधारणा के कई पहलुओं को शामिल करते हैं. इसके अलावा स्थानीय संदर्भ में राष्ट्रीय भलाई मैट्रिक्स विकसित किए गए हैं और स्थानीय परिस्थितियों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा गया है. इस प्रकार, वेलबीइंग मैट्रिक्स विकसित करने के लिए अब तक किए गए प्रयास क्रॉस-कंट्री तुलना के लिए उपयुक्त नहीं हैं और दुनिया भर में दोहराए नहीं जा सकते हैं.

यह ध्यान दिया जा सकता है कि विभिन्न वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर पहलों की उपरोक्त सूची संपूर्ण नहीं है, बल्कि ये उदाहरण के तौर पर मौज़ूद है. सूची फिर भी वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के नीति निर्माताओं की समृद्धि और स्थिरता को मापने के लिए वेलबीइंग मेजरमेंट इंडीकेटर्स के एक समग्र और बहुआयामी सेट को आगे बढ़ाने की गंभीरता की ओर इशारा करती है.

1.7 पद्धतिगत और डेटा चुनौतियां

कल्याण के इंडीकेटर्स विकसित करना कई कारणों से एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. सबसे पहले, ‘कल्याण’ की कोई अनूठी परिभाषा नहीं है. साहित्य आम तौर पर ‘खुशी’, ‘तंदुरुस्ती’ और ‘कल्याण’ जैसे शब्दों का परस्पर उपयोग करता है. ‘कल्याण’ की एक ठोस परिभाषा उन तत्वों और आयामों को समझने में मदद कर सकती है जो भलाई को आगे बढ़ाते हैं और सूचित नीतिगत निर्णयों को सुविधाजनक बनाने के लिए उपयुक्त माप संकेतक विकसित करने में मदद करते हैं.

दूसरा, कल्याण के परिभाषित आयामों पर गुणवत्ता के लिए समय पर डेटा का संग्रह महत्वपूर्ण है. डेटा गैप की पहचान और उन्हें कम करने के तरीक़े खोजना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. डेटा संग्रह की पारंपरिक प्रणाली मुख्य रूप से प्रशासनिक सर्वेक्षणों और नमूना सर्वेक्षणों पर आधारित होती है.  हालांकि, ये तरीक़े पैसे, वर्क फोर्स और समय के लिहाज़ से महंगे होते हैं. इस प्रकार, डेटा संग्रह के अन्य स्रोतों का पता लगाने की आवश्यकता है, जिसमें गैर-पारंपरिक स्रोत जैसे बिग डेटा और जियो स्पेशल (भू-स्थानिक) डेटा भी शामिल हों.

डेटा स्रोतों को निजी क्षेत्र, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के स्रोतों द्वारा भी पूरक बनाया जा सकता है. अगर कोई विधायी प्रावधान ऐसी प्रक्रियाओं के आड़े आता है तो उस पर उपयुक्त रूप से चर्चा की जानी चाहिए और उसका समाधान किया जाना चाहिए. इसके अलावा, डेटा गोपनीयता की उचित देखभाल के साथ सबसे छोटी संभव इकाइयों जैसे, व्यक्तियों, परिवारों, निवास स्थान, लिंग, आयु, आय, प्रवासी स्थिति और विकलांगता पर भरोसेमंद डेटा भी एक महत्वपूर्ण इनपुट है जो नीति निर्माताओं को आबादी और समूहों की पहचान करने और नीतियों को और अच्छा बनाने में मददगार साबित हो सकती है. इससे शासन संरचना को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में मदद मिल सकता है.

तीसरा, कल्याण के पहचाने गए आयामों के लिए संकेतकों को परिभाषित करना एक मुश्किल काम है. ख़ासकर जब इनमें से कई महत्वपूर्ण रूप से आपस में जुड़े हों. इसके अलावा लोगों की आवाज़, भावनाओं और मूल्यों को समायोजित करने के लिए, व्यक्तिपरक (गुणात्मक) संकेतकों को भी वेलबीइंग मेजरमेंट इंडिकेटर में शामिल करने की आवश्यकता है. वर्तमान में  डेटा संग्रह और व्यक्तिपरक संकेतकों के संकलन के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित तरीक़ा मौज़ूद नहीं है. इसके अलावा, कल्याण की माप के लिए संकेतकों की संख्या एक प्रबंधनीय सीमा के भीतर भी होनी चाहिए. जिसका मतलब यह है कि इंडिकेटर की एक विस्तृत सूची से बचा जाना चाहिए. यह डेटा कलेक्शन और प्रोसेसिंग (संग्रह और प्रसंस्करण) में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालयों के अत्यधिक बोझ को कम करने में सहयोगी हो सकता है.

चौथा, एग्रीगेशन (एकत्रीकरण) के लिए वेलबीइंग मैट्रिक्स की सूची में शामिल प्रत्येक इंडिकेटर की हिस्सेदारी तय करने पर भी सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. प्रिंसिपल कम्पोनेंट एनालिसिस (पीसीए) सहित कुछ सांख्यिकीय तकनीक़ें ऐसी चीजों को आगे बढ़ाने के लिए मौज़ूद हैं. हालांकि प्रत्येक सांख्यिकीय तकनीक़ को अमल में लाने (प्रयोज्यता) की आवश्यकता है.

पांचवां, सांख्यिकीय क्षमता का निम्न स्तर, ख़ास तौर से विकासशील देशों में, जिनमें सबसे कम विकसित देश शामिल हैं, [17]  एक बड़ी चुनौती है जिसे सुधारने की आवश्यकता है. अन्य कार्यक्रमों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण सांख्यिकीय प्रणाली में सुधार के लिए निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों के पास पर्याप्त वित्तीय और तकनीक़ी संसाधन भी नहीं होते हैं. यहीं पर  नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस, आधिकारिक डेटा प्रणालियों और मानव संसाधनों की संस्थागत क्षमता को मज़बूत करने के लिए डेवलपमेंट कोऑपरेशन की भूमिका का महत्व सामने आता है, जिससे वांछित पृथक्करण स्तर पर विश्वसनीय और समय पर डेटा तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके.

छठा, जनता के बीच जागरूकता और वेलबीइंग मेजरमेंट फ्रेमवर्क के इस्तेमाल के बारे में सरकारी अधिकारियों की संवेदनशीलता भी कम है. जनता, सरकार, विशेषज्ञों, थिंक-टैंक, शिक्षाविदों, मीडिया और अन्य स्टेकहोल्डर्स के बीच वेलबीइंग इंडिकेटर की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए जागरूकता और बेहतर रोडमैप तैयार करने की ज़रूरत है. इसके अलावा, यह महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय सरकार नियमित रूप से नीतिगत निर्णयों को आकार देने के लिए वेलबीइंग इंडिकेटर का उपयोग करें.

ऊपर लिखी गई बातों से यह स्पष्ट है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद से बहुआयामी भलाई के लिए एक संक्रमण को व्यवस्थित तरीक़े से करने की आवश्यकता है. जनता, मीडिया और अन्य हितधारकों के बीच अधिक स्वीकार्यता के लिए जागरूकता अभियान शुरू किए जाने चाहिए.

2. जी20 की भूमिका

नीति निर्माण में सकल घरेलू उत्पाद के साथ वेलबीइंग मेजरमेंट इंटिकेटर को शामिल करने से जी20 को आवंटन दक्षता बढ़ाने में मदद मिल सकती है. साथ ही सामाजिक और आर्थिक कारकों की व्यापक समझ इससे विकसित हो सकती है  जो मानव कल्याण को अहमियत देकर जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. यह G20 को आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए अधिक समग्र और स्थायी दृष्टिकोण की ओर बढ़ने में मदद करेगा. इसके अलावा, समय के साथ कल्याण में परिवर्तन पर नज़र रखने से जी20 को जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से नीतियों की प्रभावशीलता की निगरानी करने और उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिल सकती है जहां आगे की कार्रवाई करने की आवश्यकता हो सकती है.

जी 20 देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलनीय, विश्वसनीय, बारीक और समय पर डेटा के आधार पर विकासात्मक प्रगति को मापने के लिए भारत की जी20 अध्यक्षता का फायदा उठाना चाहिए. इस तरह के डेटा को मज़बूत संकेतकों पर आधारित होना चाहिए जो आर्थिक कल्याण, सामाजिक भलाई और पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी स्थिरता जैसे पहलुओं को कवर करते हुए बहुआयामी वेलबीइंग मैट्रिक्स की ओर इसे ले जाता हो.

मेजरमेंट का एक ऐसा ही आधार पारंपरिक भौतिक कल्याण हो सकता है, जिसमें आय और धन, समावेशिता, बुनियादी सुविधाएं, जीवन स्तर और नौकरी की गुणवत्ता के आयाम शामिल हैं. दूसरा आधार जीवन की गुणवत्ता हो सकती है, जिसमें सुशासन के आयाम, जीवन से संतुष्टि, स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल, लिंग सशक्तिकरण और पर्यावरण के साथ-साथ समुद्र से जुड़े प्रदूषण जैसे फैक्टर भी शामिल हैं. तीसरा आधार पर्यावरण और पारिस्थितिकी संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, जीवन के प्रति दृष्टिकोण और अगली पीढ़ी की मानव पूंजी को शामिल करते हुए अगली पीढ़ी तक होने वाली स्थिरता हो सकती है.

इंडिकेटर उचित महत्व के साथ, आयामों के मूल्यों की गणना के लिए नेतृत्व कर सकते हैं. दिए गए वेटेज के साथ, आयाम प्रत्येक आधार के मूल्य की ओर ले जाएगा. इसके बाद, कल्याण सूचकांक के मूल्य की गणना की जा सकती है, जिसमें आधारों को वेटेज दिया जाता है. बदले में  यह एसडीजी हासिल करने में भी मदद करेगा, जिसके लिए जी20 प्रतिबद्ध है.

प्रस्तावित वेलबीइंग मेजरमेंट पाथवे जी20 की भारत की अध्यक्षता के आदर्श वाक्य “वसुधैव कुटुम्बकम” – “एक धरा, एक परिवार, एक भविष्य” के अर्थ से मेल खाता है – जो सभी के लिए स्थिरता और कल्याण पर जोर देता है. इसके अलावा, भारत और दूसरे देशों द्वारा समर्थित लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट (एलआईएफई) [18]  दृष्टिकोण जी 20 के वेलबीइंग और टिकाऊ विकास की प्रतिबद्धता की ओर इशारा करता है. इसके अलावा, सभी के लिए स्वीकार्य कल्याण के लिए एक नया मेजरमेंट फ्रेमवर्क विकसित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भी ज़रूरत होगी. इसलिए, वैश्विक नीतियों को तैयार करने में प्रभावशाली होने के नाते, जी20 इस काम को गति प्रदान करने के लिए एक आदर्श समूह है.

3. जी20 को सिफ़ारिशें

वेलबीइंग मेजरमेंट इंडिकेटर नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण है. व्यापक वेलबीइंग मेजरमेंट इंडिकेटर विकसित करना, नीति निर्माण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना, सामाजिक बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाना, सतत विकास को बढ़ावा देना, समय के साथ प्रगति को मापना  और नीति निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों को शामिल करना, वेलबीइंग में सुधार लाने और व्यापक रूप से समृद्धि और स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है.

जी 20 के विचार के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशें की गई है.

1. इक्वेटेबल मेजरमेंट फ्रेमवर्क को बढ़ावा दिया जाए जो टिकाऊ विकास के साथ वेलबीइंग को शामिल करता हो, जिससे जीडीपी मेजर्स को कॉम्प्लिमेंट किया जा सके और ये सुनिश्चित करते हुए कि यह तमाम देशों में स्वीकार्य हो और वेलबीइंग को सही तौर पर माप सके.

वेलबीइंग के मेजरमेंट फ्रेमवर्क को बढ़ावा देने के तौर-तरीक़ों को तय करने के लिए जी20 देशों के प्रमुख सांख्यिकीविदों के बीच चर्चा हो और इसके लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाना चाहिए. यह मुख्य सांख्यिकीविदों का एक स्थायी समूह होना चाहिए जो जी20 डेवलपमेंट वर्किंग ग्रुप (डीडब्ल्यूजी) के लिए एक रिपोर्ट तैयार करेगा और इसका नेतृत्व जी20 की अध्यक्षता करने वाले देश के मुख्य सांख्यिकीविद् द्वारा की जानी चाहिए. बहुपक्षीय संगठनों के मुख्य सांख्यिकीविद् और अन्य हितधारक इसमें सलाहकार की भूमिका निभा सकते हैं.

2. सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा में अधिक समृद्ध और टिकाऊ समाज बनाने की दिशा में गुणवत्ता और समय पर डेटा संग्रह और प्रसार के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणालियों को मजबूत करने में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए.

जी20 देशों के मुख्य सांख्यिकीविदों के प्रस्तावित समूह को डेटा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जी20 और अन्य देशों के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालयों के आधुनिकीकरण के लिए निवेश की ज़रूरतों का आकलन करना चाहिए.

मुख्य सांख्यिकीविदों के समूह को वित्तीय और तकनीक़ी दोनों दृष्टियों से निवेश आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक रोडमैप तैयार करना चाहिए. इस रोडमैप में उन निवेशों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए जिन्हें घरेलू संसाधनों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है साथ ही इन्वेस्टमेंट गैप को अन्य स्रोतों से कैसे पूरा किया जाए.

मुख्य सांख्यिकीविदों के समूह को भी DWG के लिए एक रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए.


[1] Joseph E. Stiglitz, et al., “Report by the Commission on the Measurement of Economic Performance and Social Progress,” Commission on the Measurement of Economic Performance and Social Progress Paris, 2009: 14-15. The eight dimensions as recommended by the Commission for well-being are: i) Material living standards (income, consumption, and wealth); ii) Health; iii) Education; iv) Personal activities including work; v) Political voice and governance; vi) Social connections and relationships; vii) Environment (present and future conditions); and viii) Insecurity of an economic as well as a physical nature.

[2] United Nations, “Transforming Our World: The 2030 Agenda for Sustainable Development,” September 25, 2015: 27/35.

[3] United Nations, “Our Common Agenda – Report of the Secretary-General,” 2021: 4.

[4] “The Charlevoix G7 Summit Communique,” 2018: 2.

[5] “Bhopal Declaration,” Special T20 programme on ‘Global Governance with LiFE, Values and Wellbeing: Fostering Cooperation in Framework, Finance and Technology,’ January 16-17, 2023: 8.

[6] “Think7 Japan Communiqué,” April 2023: 7.

[7] “Green Growth Indicators,” OECD Green Growth Studies, 2014: 11-12.

[8] United Nations Development Programme (UNDP), “Human Development Report 2021/2022,” 272-275.

[9] Sustainable Development Solutions Network (SDSN), “World Happiness Report 2023” .

[10] Global Solutions Initiative, “The Recoupling Dashboard 2021,” accessed April 27, 2023.

[11] “How’s Life? 2020: Measuring Well-being,” OECD Better Life initiative: 21.

[12] Research and Information System for Developing Countries (RIS), “Health, Nature and Quality of Life: Towards BRICS Wellness Index,” 2016: 119-131.

[13] Office for National Statistics (ONS), “Measures of National Well-being Dashboard: Quality of Life in the UK,” February 10, 2023.

[14] University of Waterloo, “Canadian Index of Wellbeing. How are Canadians Really Doing? The 2016 CIW National Report,” 2016: 15.

[15] Government of India, Press Information Bureau, February 13, 2019.

[16] GNH Centre Bhutan, “Gross National Happiness”.

[17] World Bank Data Bank, “Statistical Capacity Indicators,” accessed May 2, 2023.

[18] Government of India, “Lifestyle for Environment – LiFE”.