वित्तीय जोख़िम के बिख़राव को कम करना

व्यापक मैक्रो-प्रूडेंशियल रेग्युलेशन अतिरिक्त जोख़िम लेने के लिए प्रोत्साहन को कम करता है और आर्बिट्रेज गैप को ख़त्म कर सकता है.
Ashima Goyal

 

विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में उभरते बाज़ार (ईएम) विदेशी मुद्रा प्रवाह के लिए अपेक्षाकृत अधिक ओपन होते हैं. इसलिए वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद के दशकों में उन्हें रोलर-कोस्टर के माध्यम से रखा गया है. अंडर जीरो एडवांस इकोनॉमी (एई) ब्याज दरों और मात्रात्मक सहजता (क्यूई) के तहत, ईएम ने विकास की तलाश में भारी मुद्रा प्रवाह देखा है. वैश्विक जोख़िम कम होने के साथ इसका ऑउटफ्लो होना शुरू हो गया. विदेशी मुद्रा प्रवाह बाज़ार को और ज़्यादा विस्तार देने में मदद करता है, घरेलू बचत को पूरक बनाता है और चालू खाता घाटे को फंड करता है लेकिन ज़्यादा अस्थिरता इन सभी काम को ख़तरे में डालती है. जबकि मार्केट प्राइस डिस्कवरी के लिए कुछ हद तक गतिशीलता ज़रूरी है लेकिन यह वास्तविक क्षेत्र को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है.

जीएफसी के बाद प्रमुख स्रोत एई ने बैंकों के लिए रेग्युलेशन को सख़्त बना दिया है. जहां प्रतिभूतिकरण विफलताओं (सिक्युरिटाइजेशन फेल्योर) के साथ संकट पैदा हुआ था लेकिन उन्होंने नॉन बैंक फाइनेंसियल इंटरमीडियरिज़ (गैर-बैंक वित्तीय मध्यस्थों) (एनबीएफआई) के लिए रेग्युलेशन को मज़बूत नहीं किया. इसका नतीज़ा यह हुआ कि क्रॉस बॉर्डर मुद्रा का प्रवाह दूसरी ओर चला गया. इस तरह की मनमानी शायद ही उम्मीद की जा सकती थी.

क्वॉन्टिटेटिव टाइटनिंग (क्यूटी) और बढ़ती ब्याज दरों के तहत, इस आर्बिट्रेज और अंडर-रेगुलेशन से एई और ईएम दोनों के लिए कई तरह के जोख़िम बढ़ जाते हैं. उदाहरण के लिए, फिक्स्ड इनकम फंड्स अब ईएम के लिए पोर्टफोलियो फ्लो का एक प्रमुख स्रोत है. इनकी निश्चित देनदारियां हैं ऐसे में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वज़ह से संभावित चूक के साथ संपत्तियों को कम क़ीमतों पर बेचने की आवश्यकता हो सकती है.

साल 2022 में ब्रिटेन में, केंद्रीय बैंक को उन बीमा कंपनियों को बचाना पड़ा जिनके डेरिवेटिव्स के अनियंत्रित इस्तेमाल ने ब्याज दर जोख़िमों को हेज़ करने के लिए उन्हें जी-सेक की संकटपूर्ण बिक्री के लिए मज़बूर किया था, क्योंकि लिज ट्रस के अनफंडेड बज़ट के बाद यील्ड बढ़ गई. अमेरिका में छोटे बैंक तनाव में हैं. यूएस कमोडिटी फ्यूचर्स मॉडर्नाइजेशन एक्ट साल 2000 में पारित हुआ, जिसने स्वैप डीलरों के लिए अन्य नियंत्रणों के बीच, पोजीशन की सीमा को हल्का कर दिया. बाद की अवधि में तेल की क़ीमत में अस्थिरता बहुत अधिक थी, जिससे तेल निर्यातक और आयातक दोनों देशों को घाटा हुआ.

हालांकि, यह समझ से परे है कि इन स्पष्ट आर्बिट्रेज गैप को जारी रखने की अनुमति क्यों दी गई. ऐसा हो सकता है कि फाइनेंस एई आउटपुट का एक बड़ा हिस्सा है और एक मज़बूत लॉबी है. यह मुक्त बाज़ार विचारधारा द्वारा समर्थित है जो मानता है कि रेग्युलेशन सफल नहीं हो सकता है और यह केवल लागत में वृद्धि करता है. चूंकि यह मार्केट रेग्युलेशन को पछाड़ने में सक्षम है इसलिए ऐसी कोशिश ना करना ही बेहतर है.

हालांकि, इस सदी में बार-बार के आर्थिक झटकों ने अंडर-रेगुलेटेड मुक्त बाज़ारों की ख़ामियों को उजागर कर दिया है. वित्तीय उदारीकरण के कई लाभ हैं लेकिन इसके लिए उपयुक्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है. और अकेले बाज़ार अनुशासन अपर्याप्त हो सकता है.

अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए नियम वित्त में सामान्य विफलताओं को कम कर सकते हैं. काउंटरसाइक्लिकल मैक्रो-प्रूडेंशियल रेग्युलेशन अतिरिक्त जोख़िम लेने के लिए प्रोत्साहन को कम कर सकता है; अगर यह व्यापक-आधारित है तो यह आर्बिटरेज गैप को ख़त्म कर सकता है; अगर यह बाज़ार और नियम-आधारित है तो यह न्यूनतम विनियामक विकृतियों, विवेक और विलंब के साथ हर लक्ष्य को हासिल कर सकता है. चूंकि वित्तीय क्षेत्र में हमेशा प्रलोभन बने होते हैं, हालांकि पर्यवेक्षण के साथ-साथ अधिक पारदर्शिता और स्टैंडर्ड डिस्क्लोजर भी इसके लिए आवश्यक हैं. ख़ुद का और नियम-आधारित रेग्युलेशन का संयोजन काम कर सकता है.

उदाहरण के लिए, मार्ज़िन रिक्वायरमेंट्स या वित्तीय लेनदेन कर अस्थिरता को कम किया जा सकता है. छोटे बैंकों के लिए एक्सपोज़र सीमा या हाइयर कैप एडिक्वेसी (उच्च कैप पर्याप्तता) अमेरिका में विफलताओं की श्रृंखला को टाल सकती थी. सिस्टमिक स्पिलओवर को बड़े संस्थानों तक सीमित माना जाता था लेकिन सिलिकॉन वैली बैंक ने डिजिटल दुनिया में अफवाहों और निकासी की गति को दिखाया.

इस प्रकार सिंपल ब्रॉड मैक्रो-प्रूडेंशियल रेग्युलेशन मध्यस्थता प्रतिरोधी है  और जोख़िम को कम करने के लिए प्रोत्साहन को मज़बूत करता है. बेसल बैंक मानकों की तरह – अनुपालन या व्याख्या करने वाले ढांचों के माध्यम से वैश्विक मानदंड बनाए जा सकते हैं. इस तरह का बाज़ार आधारित रेग्युलेशन एई के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि इससे उनकी वित्तीय कमज़ोरियों में कमी आएगी. यह आशंका है कि मज़बूत रेग्युलेशन से उधार लेने की लागत में वृद्धि होगी लेकिन अस्थिरता में कमी वास्तव में लागत को कम कर देगी.

एई में, यहां तक कि बैंकों के लिए भी सेल्फ रेग्युलेशन और जोख़िमों के अपने मूल्यांकन पर जोर जारी रहा. केवल बड़े बैंकों के बारे में आशंका थी कि वो प्रणालीगत जोख़िम पैदा कर सकते हैं लेकिन ट्रम्प सरकार ने 2018 में छोटे बैंकों के लिए नियमों को हल्का कर दिया. छोटे बैंकों की विफलताओं की मौज़ूदा लहर के बाद यूएस फेड की जांच में पाया गया कि कर्मचारियों पर फर्मों पर नियामक बोझ को कम करने, उचित प्रक्रिया को दिखाने और कार्रवाई से पहले अधिक सबूत जमा करने का दबाव था.

अधिकांश अमेरिकी मैक्रोइकॉनॉमिस्ट क्यूई से जोख़िमों को कम करने के लिए सख़्त मैक्रो-प्रूडेंशियल  नियम चाहते थे. उदाहरण के लिए, येलेन ने जीएफसी के बाद अस्थिरता और बड़े जोख़िम को कम करने के लिए बाज़ार ने व्यापक आधार पर न्यूनतम मार्जिन आवश्यकताओं की मांग की थी. क्रुगमैन के साथ 2019 की बातचीत में, उन्होंने खेद व्यक्त किया कि जोख़िम भरे उधार को रोकने के लिए उनके पास अभी भी कोई टूल नहीं थे. अमेरिका क्रेडिट मांग को कम करने वाले कुछ उपायों को लागू करता है  लेकिन क्रेडिट आपूर्ति को नियंत्रित करने वाला कोई उपाय नहीं करता है.

ईएम ने जीएफसी से पहले एई की तुलना में मैक्रो-प्रूडेंशियल टूल का चार गुना अधिक तेजी से उपयोग किया. जैसे ही अधिक एई ने जीएफसी के बाद ऐसे उपकरणों का उपयोग करना शुरू किया, अनुपात 3.3 तक गिर गया. लेकिन एई में विवेकपूर्ण विनियमन काफी हद तक उधारकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाने तक सीमित रहता है ताकि एनबीएफआई के जोख़िम लेने पर रोक ना लगे. एई में उपभोक्ता ऋण को नियंत्रित करने के लिए कर्ज़ से मूल्य अनुपात प्रमुख उपाय हैं, ईएम में यह एफएक्स पोजिशन लिमिट है. ऐसा प्रतीत होता है कि विवेकपूर्ण उपायों ने अब तक ईएम वित्तीय क्षेत्रों की रक्षा करने में मदद की है.

देशों और संस्थानों में सार्वभौमिक मानदंड के तौर पर लगाए गए मैक्रो-प्रूडेंशियल उपायों का एक न्यूनतम सेट आर्बिटरेज फ्लो को रोक सकता है. इन पर पहले जी20 में चर्चा की गई थी लेकिन टैक्सेशन को एक व्यक्तिगत अधिकार के रूप में देखा गया था. हाल ही में, हालांकि  बेस इरोजन और प्रॉफिट शिफ्टिंग को रोकने की पहल के तहत G20 एक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स के समझौते पर पहुंचा है.

सामूहिक वस्तुओं के प्रावधान में जी20 सबसे अधिक उपयोगी साबित हो सकता है जहां देशों के बीच समन्वय की ज़रूरत होती है. अकेले सख़्ती लागू करने पर एक देश से पूंजी का प्रवाह दूसरे देश में होने का जोख़िम रहता है. यह घरेलू लॉबियों और राजनीतिक दबावों के ख़िलाफ़ नियामकों को मज़बूत कर सकता है जो घरेलू संकट के साथ-साथ वैश्विक स्पिलओवर भी पैदा करते हैं.

केंद्रीय बैंक क्या कर सकते हैं?

 

केंद्रीय बैंक ओवर-रिएक्शन और एक्सट्रीम पोजिशन से बचकर स्पिलओवर को कम कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, इनफ्लेशन टारगेटिंग को लचीले ढंग से लागू किया जाना चाहिए ताकि अपेक्षित मुद्रास्फीति के संदर्भ में अर्थव्यवस्था संतुलन वास्तविक नीति दर से दूर ना रहे. 

ईएम केंद्रीय बैंकों को वैश्विक आर्थिक झटकों से निपटने और घरेलू चक्र के लिए तैयार रहने, कई टूल्स का उपयोग करने के लिए पर्याप्त एफएक्स रिज़र्व बनाने की ज़रूरत है. ऐसी नीतियों ने भारत को अपेक्षाकृत अच्छा करने में मदद की है.

चूंकि डॉलर आरक्षित मुद्रा है, इसलिए फेड की एक विशेष ज़िम्मेदारी है कि वह ओवर-रिएक्शन बचे जो घरेलू जोख़िम और वैश्विक स्पिलओवर पैदा करती हैं. यहां तक कि अगर कोई यह मानता है कि इसका जनादेश केवल घरेलू अर्थव्यवस्था है, तो अब ईएम से ख़ुद यूएस को जो फीडबैक आ रही है उसके मुताबिक यह काफी विस्तारित है. फेड को सतर्क और डेटा आधारित होना पड़ेगा, इसलिए नहीं कि यह ईएम के लिए अच्छा है, बल्कि इसलिए कि यह अमेरिका के लिए बेहतर है. बाज़ार निर्माण और मौद्रिक नीति के बीच अंतर को स्पष्ट करने से सख़्त मौद्रिक नीति के तहत भी बाज़ार के उथल पुथल को शांत करने में मदद मिल सकती है.