टास्क फ़ोर्स 1 मैक्रोइकोनॉमिक्स, ट्रेड एंड लाइवलिहुड्स: पॉलिसी कोहेरेंस एंड इंटरनेशनल कोऑर्डिनेशन
स्थापना के बाद से ही G20 ने व्यापार और अंतरराष्ट्रीय निवेशों को बढ़ावा दिया है. समूह में विविध प्रकार के देश शामिल हैं. इनके भीतर व्यापार का वातावरण सुधारने के लिए तमाम व्यापारिक समुदायों द्वारा वहन की जा रही ऊंची लागतों का निपटारा किया जाना ज़रूरी है. डेटा द्वारा संचालित डिजिटल व्यापार उपायों के इस्तेमाल को प्रेरित करके इस क़वायद को अंजाम दिया जा सकता है. इस कड़ी में कुछ सामान्य चुनौतियों का समाधान किया जाना ज़रूरी है. इनमें अनुपालना या (compliance) के मसले, हार्ड और सॉफ़्ट इंफ़्रास्ट्रक्चर को सशक्त बनाना, सरहद से पीछे सुविधाओं और प्रावधानों के लिए ऑटोमेटेड या स्वचालित टेक्नोलॉजियों का प्रयोग और व्यापार के साथ-साथ रसद से जुड़े उन्नत ऐप्लिकेशंस का उपयोग शामिल हैं.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में एक रणनीतिक व्यापार सुविधा ढांचे का प्रस्ताव किया गया है. इसके ज़रिए मध्यम और छोटे दर्जे के निर्यातक, अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में पहले से ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनकर व्यापार से और ज़्यादा सार्थक रूप से जुड़ाव बना सकेंगे.
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में एक रणनीतिक व्यापार सुविधा ढांचे का प्रस्ताव किया गया है. इसके ज़रिए मध्यम और छोटे दर्जे के निर्यातक, अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में पहले से ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनकर व्यापार से और ज़्यादा सार्थक रूप से जुड़ाव बना सकेंगे. ये ढांचा एक अनकूल और समग्र दृष्टिकोण अपनाता है. इसमें व्यापार सुविधा को समय, लागत और स्टेकहोल्डर्स की ओर से व्यापार गतिशीलताओं की प्रॉसेसिंग की विश्वसनीयता पर केंद्रित किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार के फ़ायदे तब बेहतर तरीक़े से हासिल होते हैं जब उपभोक्ताओं तक तयशुदा वक़्त के भीतर और प्रतिस्पर्धी क़ीमत पर वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति कर दी जाए. व्यापार की ऊंची लागतें, उत्पादों की आपूर्ति में लेट-लतीफ़ी और आवागमन के दौरान उत्पाद में ख़राबी या टूट फूट होने से मूल्यों में विकृति आ जाती है, उत्पाद बेकार हो जाते हैं और उपभोक्ताओं में असंतोष भर जाता है. इतना ही नहीं इसके चलते बाज़ार में अनुचित प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो जाती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार राजस्वों और कल्याणकारी लाभों में गिरावट आती है.
पहले ही अलग-अलग स्तरों पर व्यापार सुविधा से जुड़े अनेक कार्यक्रम शुरू किए जा चुके हैं. कुछ पहल घरेलू स्तरों पर कारोबारी सहूलियत यानी ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस प्लेटफ़ॉर्म के तहत किए गए हैं, जबकि अन्य कार्यक्रम मुक्त व्यापार क़रारों के मातहत चालू किए गए हैं. इनमें क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तर शामिल हैं. विश्व व्यापार संगठन (WTO) के आकलनों से पता चलता है कि बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार (TFA) के पूर्ण क्रियान्वयन से व्यापार लागतों में 14.3 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जबकि वैश्विक व्यापार में सालाना 1 खरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.[i] हालांकि इस दिशा में एक अहम चुनौती ये है कि G20 के सदस्य राष्ट्र TFA उपायों के अनुमोदन (ratifying) और क्रियान्वयन के अलग-अलग चरणों में हैं. बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार पर प्रगति की रफ़्तार सुस्त है, इनमें से कुछ उपायों को तो साल 2050 तक ही पूरी तरह से स्वीकार किए जाने के आसार हैं. इस पर तेज़ी से अमल के लिए TFA+ ढांचे को सामने लाने की दरकार है. इसके तहत स्वचालन यानी ऑटोमेशन और डिजिटलीकरण पर पहले से ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत पड़ेगी.
व्यापार सुविधा से जुड़ी कुछ चुनौतियां तमाम देशों के बीच एक जैसी हैं. जबकि कुछ अन्य चुनौतियां विशेष इलाक़ों, विकास के चरण या व्यापार ढांचे तक सीमित हैं. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में G20 देशों में व्यापार सुविधाओं [a] के रास्ते की चुनौतियों की पहचान करते हुए डिजिटल तरीक़े से सशक्त ढांचा गठित करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि आख़िरकार लेट-लतीफ़ी और व्यापार की लागतों में कमी लाई जा सके.
चित्र1: G20 देशों में व्यापार सुविधा क़वायदों के रास्ते की चुनौतियां
स्रोत: लेखक का ख़ुद का विश्लेषण
बहुपक्षीय, द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तरों पर व्यापार प्रक्रिया के डिजिटलीकरण पर काफ़ी सीमित तवज्जो दिया गया है. बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार यानी TFA में डिजिटल व्यापार का कोई ज़िक्र नहीं है. मुट्ठी भर क्षेत्रीय व्यापार क़रारों (RTAs) में ही डिजिटल व्यापार पर कोई अध्याय या खंड मौजूद है. इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य और डेटा पर व्यापार क़रारों से जुड़े प्रावधानों के मुताबिक 239 क्षेत्रीय व्यापार क़रारों में (जिनमें G20 का कम से कम कोई एक देश पक्षकार है) से सिर्फ़ 88 में डिजिटल व्यापार कारक मौजूद हैं, और केवल 65 में ही इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन या ट्रांज़ैक्शन का ढांचा उपलब्ध है.[ii] व्यापार सुविधाओं से जुड़े उपायों के सिलसिले में प्लेटफ़ॉर्म के लिहाज़ से क्षेत्रीय व्यापार क़रार बेहद सशक्त क़वायद हैं. हालांकि, जहां तक G20 का सवाल है तो द्विपक्षीय या बहुपक्षीय स्वरूपों में ऐसे मुट्ठी भर ही समझौते हैं जिनमें किसी तरह की कामयाबी हासिल हो पाई है.
व्यापार सुविधाओं से जुड़े क़रारों के क्रियान्वयन के लिए कस्टम यानी सीमा शुल्क प्रशासनों, कस्टम ब्रोकर्स और बाक़ी किरदारों में गठजोड़ की दरकार है. कस्टम में डिजिटलीकरण के क्रियान्वयन के रास्ते में अनेक चुनौतियां हैं. इनमें जानकारी का अभाव, प्रबंधन से अपर्याप्त मदद, अपर्याप्त नेटवर्क और टेक्नोलॉजियों तक पहुंच का अभाव शामिल हैं. अलग-अलग क्षेत्रीय व्यापार क़रारों में G20 के सदस्य देशों के एकीकरण को चित्र 2 में रेखांकित किया गया है.
चित्र 2: क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के ज़रिए G20 का एकीकरण (17 मार्च 2023 तक)
स्रोत: विश्व व्यापार संगठन के क्षेत्रीय व्यापार क़रारों से जुड़े डेटाबेस के आधार पर लेखक का ख़ुद का विश्लेषण
नोट: क्षेत्रीय व्यापार क़रारों में मुक्त व्यापार समझौते, कस्टम यूनियन, आर्थिक एकीकरण समझौता और पार्शियल स्कोप एग्रिमेंट शामिल हैं
व्यापार सुविधा के लिए मानकीकरण एक अहम स्तंभ है. सुचारू व्यापार के लिए दस्तावेज़ों, प्रमाणपत्रों, औपचारिकताओं, उत्पाद कोडों, डेटा और सूचना के क्षेत्र में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मानकों के बीच तालमेल बेहद ज़रूरी है. बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार के आर्टिकल 10.3 के तहत सदस्य देशों को व्यापार से जुड़ी औपचारिकताओं और प्रावधानों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया गया है. अंतरराष्ट्रीय मानक तैयार करने और समय-समय पर उनकी समीक्षा करने की प्रक्रिया में हिस्सा लेने और योगदान करने को लेकर भी सदस्यों को प्रोत्साहित किया गया है. प्रमुख रूप से अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा ही इस काम को अंजाम दिया जाता है. बहरहाल TFA डेटाबेस के मुताबिक इस उपाय का पूर्ण क्रियान्वयन साल 2040 तक ही पूरा हो पाने के आसार हैं.[iii] डिजिटल और सतत व्यापार सुविधा पर संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सर्वे- 2021 के अनुसार G20 के आधे से भी कम सदस्यों ने ‘सैनिटरी और फ़ाइटोसेनिटरी उपायों के साथ अनुपालना सुनिश्चित करने को लेकर राष्ट्रीय मानदंडों और मान्यता निकायों’ से जुड़े उपायों को पूरी तरह से क्रियान्वित किया है.[iv]
कंपनियों को बिक्री के क़रार, ख़रीद और संग्रहण, उत्पादन, निर्यात, आयात और अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग के बारे में फ़ैसले लेने के लिए सटीक और सही समय पर सूचनाओं की दरकार होती है. उत्पाद के मूल स्रोत वाले देश, भेजे जा रहे माल (कंसाइनमेंट) के प्रकार और परिवहन के स्वरूप के आधार पर कस्टम बिंदुओं पर अनुपालनाओं का एक व्यापक दायरा अस्तित्व में आ गया है. साथ ही इन बिंदुओं पर तमाम उत्पादों के साथ अलग-अलग बर्ताव भी किए जाते हैं. इन हालातों में सूचना तक आसानी से पहुंच और भी ज़्यदा अहम हो जाता है. मिसाल के तौर पर कई देशों में आयात-निर्यात शुल्क की दरों में बार-बार बदलाव होते हैं, जिससे व्यापार की कुल लागत पर असर पड़ता है. इससे व्यापारियों के बीच अनिश्चितता के ख़तरे भी पैदा हो जाते हैं.
बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार यानी TFA के ‘सूचना उपलब्धता’ उपायों के दायरे में व्यापार से जुड़ी सूचना के पूछताछ बिंदु (enquiry points) और प्रकाशन (इंटरनेट पर छपी सूचनाओं समेत) आते हैं. TFA के आर्टिकल 1 में ‘सूचना और प्रकाशन की उपलब्धता’ का ब्योरा दिया गया है. इसमें सूचना की एक सूची दी गई है जिसे TFA के सदस्यों को पूरी मुस्तैदी से प्रकाशित करना चाहिए. इस क़वायद को इस प्रकार अंजाम दिया जाना चाहिए ताकि हरेक किरदार बिना किसी भेदभाव के आसानी से इन सूचनाओं तक अपनी पहुंच बना सके. हालांकि इन उपायों का संपूर्ण क्रियान्वयन 2035 से पहले होने के आसार नहीं हैं.
सूचना उपलब्धता के अलावा सरहदी संस्थाओं में मज़बूत तालमेल की दरकार होती है. इसी तरह कस्टम्स, कारोबारों और अन्य संबंधित घरेलू और अंतरराष्ट्रीय अथॉरिटीज़ के बीच भी समन्वय ज़रूरी है. वैसे तो बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार में सरहदी एजेंसी समन्वय से जुड़े मसले को निपटारा होता है[v], लेकिन विश्व व्यापार संगठन के महज़ 62.3 प्रतिशत देशों ने ही इस प्रावधान को क्रियान्वित किया है (17 मार्च 2023 तक). इस दिशा में पूर्ण क्रियान्वयन 2040 तक ही हो पाने के आसार हैं.[vi]
पता लगाने की क्षमता या प्रोडक्ट ट्रेसिंग को “उत्पादन, प्रॉसेसिंग और वितरण के विशिष्ट चरणों में किसी पदार्थ की आवाजाही पर नज़र रखने की क्षमता” के तौर पर परिभाषित किया गया है.[vii] पता लगाने की क्षमता को जोख़िम या ख़तरों पर क़ाबू पाने के उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं, उत्पाद से जुड़ी सूचनाएं दर्ज करने और उन्हें साझा करने और किसी उत्पाद के जीवनचक्र को सत्यापित करने के लिए भी ट्रेसेबिलिटी का उपयोग होता है.[viii] व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं (ख़ासतौर से खाद्य पदार्थों) के लिए ये एक अहम कारक है. बहरहाल, समूची वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में सतत और टिकाऊ तौर-तरीक़ों के अपनाए जाने के मद्देनज़र आगे चलकर ये और अहम होता चला जाएगा. बहरहाल, बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार यानी TFA अपनी उपाय सूची में ट्रेसेबिलिटी को शामिल नहीं करता है.
आधुनिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के हिस्सेदार किसी उत्पाद की पूरी जानकारी हासिल करने की उम्मीद रखते हैं ताकि उन्हें तुरंत चिन्हित किया जा सके और उनके मौजूदा स्थान यानी लोकेशन की पड़ताल की जा सके.
आधुनिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के हिस्सेदार किसी उत्पाद की पूरी जानकारी हासिल करने की उम्मीद रखते हैं ताकि उन्हें तुरंत चिन्हित किया जा सके और उनके मौजूदा स्थान यानी लोकेशन की पड़ताल की जा सके. ज़ाहिर है इससे किसी तरह की समस्या का संदेह होने या दिक़्क़त की पुष्टि हो जाने पर उस उत्पाद को तत्काल बाज़ार से वापस ले जाया जा सकेगा. इसके लिए उन उपायों को अपनाए जाने की दरकार है जो तमाम स्टेकहोल्डर्स को समूची आपूर्ति श्रृंखला में किसी उत्पाद पर आसानी से निगरानी रखने और उसका पता लगा लेने की ताक़त देता है.[ix]
कई बंदरगाहों, सरहदी केंद्रों और सीमा शुल्क बिंदुओं को हुनरमंद पेशेवरों के अभाव से जुड़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है. उनके पास ऐसे लोग नहीं होते जो कार्यकुशल और जोख़िम-मुक्त तरीक़े से इस क़वायद को अंजाम दे सकें. वर्ल्ड कस्टम्स ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट के मुताबिक अनुपालनाओं यानी कंप्लाइंसेज़ और ब्रोकर्स की सत्यनिष्ठा (integrity) से जड़े कई मसले होते हैं. बग़ैर लाइसेंस के काम करने वाले अनौपचारिक ब्रोकर्स की मौजूदगी, पेशेवर ब्रोकर्स और व्यापारियों के लिए प्रतिकूल साबित होती है. इससे अनुपालना के नज़रिए से भी कई तरह की चिंताएं खड़ी हो जाती हैं. इस अध्ययन के अनुसार 42 सदस्यों (या प्रतिभागियों में से 47 प्रतिशत) ने इसे एक परेशानी के तौर पर ज़ाहिर किया है, जबकि 13 सदस्यों (15 प्रतिशत प्रतिभागियों) ने तो इसे गंभीर समस्या क़रार दिया है.[x]
स्वचालन यानी ऑटोमेशन, व्यापार सुगमता के सबसे अहम पैमानों में से एक है. व्यापार सहूलियत से जुड़े लगभग सभी उपायों में इसका स्थान आता है. इससे समय और लागत, दोनों की बचत होती है. सीमा शुल्कों से जुड़ी प्रक्रिया पहले से ज़्यादा तेज़ और सुचारू बनती है. साथ ही पूरी क़वायद में पारदर्शिता आती है. वैसे तो इसपर 2020 तक अमल कर लिए जाने की कल्पना की गई थी, लेकिन आयात और निर्यात की क़वायदें अब भी व्यापक तौर पर भौतिक रूप से काग़ज़ों के जंजालों से ही संचालित हो रही है.[xi]
व्यापार सुगमता सूचकांक (TFI) अपने मूल्यांकन के मापकों में स्वचालन को शामिल करता है. इस पैमाने पर G20 के देशों का औसत स्कोर 1.7 (0 से 2 के पैमाने पर) पर है, जबकि G20 के कुछ देशों का स्कोर बहुत नीचे है.[xii] व्यापार सुगमता क़वायद के तौर पर ऑटोमेशन से संबंधित एक अहम चुनौती इस प्रक्रिया के दोहराव (स्वचालित प्रणाली और हाथों से की जाने वाली काग़ज़ी कार्यवाही के ज़रिए) से जुड़ी है.
दस्तावेज़ों और सूचना की प्री-अराइवल प्रॉसेसिंग और अग्रिम फ़ैसलों से आवाजाही में समय और लागत की बचत होती है. साथ ही नियमों में अचानक होने वाले बदलावों से व्यापारियों का बचाव भी होता है. ग़ौरतलब है कि अचानक होने वाले बदलावों के चलते भेजे गए माल यानी कंसाइनमेंट को नामंज़ूर किए जाने, आपूर्ति में देरी होने, अप्रत्याशित रूप से अतिरिक्त दस्तावेज़ों की दरकार पड़ने या शुल्क चुकाने की नौबत आने, जैसे नतीजे देखने को मिल सकते हैं. TFA के आर्टिकल 7.1 के मुताबिक प्री-अराइवल प्रॉसेसिंग के लिए हरेक सदस्य को इलेक्ट्रॉनिक फ़ॉरमेट में ज़रूरी दस्तावेज़ जमा करना होता है ताकि उत्पादों के आगमन की रफ़्तार में तेज़ी लाई जा सके.[xiii] बहरहाल, व्यापार सुगमता सूचकांक (TFI) के मुताबिक इस उपाय को लेकर 0 से 2 के पैमाने पर G20 के देशों का औसत स्कोर या अंक 1.8 है. व्यापार सुगमता सूचकांक (TFI) की ओर से बेहतरीन अभ्यास का स्कोर 1.9 पर तय किया गया है. इससे इस मोर्चे पर सुधार की गुंजाइश दिखाई देती है.[xiv] बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार यानी TFA के आंकड़ों के अनुसार इस उपाय पर क्रियान्वयन की प्रक्रिया के 2040 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है.[xv]
सीमा शुल्क से जुड़ी मंज़ूरियों को प्रभावी ढंग से पूरा कर लिए जाने के बावजूद सहभागी सरकारी एजेंसियों यानी PGAs से जुड़ी मंज़ूरियों में सामने आने वाली सापेक्षिक अकार्यकुशलता से लेटलतीफ़ी सामने आती है और लेन-देन की लागत में इज़ाफ़ा हो जाता है. ऐसे में एक मज़बूत जोख़िम प्रबंधन प्रणाली यानी RMS की ज़रूरत सामने आती है. हालांकि, ऐसी प्रणाली सिर्फ़ कस्टम्स तक ही सीमित नहीं रह सकती; सहभागी सरकारी एजेंसियों के पास अपनी ख़ुद की जोख़िम प्रबंधन प्रणाली होनी चाहिए. साथ ही उनके अपने ख़ास जोख़िम कारकों से जुड़े प्रासंगिक आंकड़े जुटाने के लिए एक डिजिटल प्रणाली भी होनी चाहिए. इससे व्यापार सुगमता को और ज़्यादा प्रभावी बनाया जा सकेगा.
जोख़िम कारकों के एक समग्र समूह का उपयोग कर पाने में नाकाम रहने और जोख़िम से जुड़े सटीक सिद्धांत तय नहीं कर पाने के चलते कई देशों की सहभागी सरकारी एजेंसियां ज़रूरी मानकों से पीछे रह जाती हैं. सहभागी सरकारी एजेंसियों के पास जोख़िमों की पहचान के लिए प्रासंगिक डेटा भी नहीं होते क्योंकि वो डिजिटल डेटाबेस बनाकर नहीं रखा करते. इतना ही नहीं उनके पास अत्याधुनिक डिजिटल मंज़ूरी प्रणाली भी नहीं होती.
G20 ने साल 2016 के अंत तक बहुपक्षीय व्यापार सुविधा क़रार यानी TFA का अनुमोदन कर देने की प्रतिबद्धता जताई थी. उसने विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों से भी ऐसा ही करने का आह्वान किया था. G20 के देश नियम-आधारित और समावेशी बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को सहारा देने को लेकर वचनबद्ध रहे हैं. समूह ने विश्व व्यापार की लागतों को कम करने में अपनी निर्णायक भूमिका निभाने का वादा निभाया है. G20 ‘व्यापार के लिए मदद’ जैसी व्यवस्थाओं का भी समर्थन करता है. 20 देशों का ये समूह विकासशील देशों को क्षमता निर्माण सहायता उपलब्ध कराने की क़वायदों से भी पूरी तरह से जुड़ा है.[xvi]
G20 को WTO में मिसाल और रुझान क़ायम करने वाले समूह के तौर पर देखा जाता है. G20 के व्यापार उपायों पर विश्व व्यपार संगठन की 28वीं निगरानी रिपोर्ट के मुताबिक मई-अक्टूबर 2022 के दौरान G20 की अर्थव्यवस्थाओं ने व्यापार में रुकावटें डालने वाले क़दमों (47) से कहीं ज़्यादा व्यापार को सुगम बनाने वाले उपाय (66) किए. इन तादादों में महामारी से जुड़े उपाय शामिल नहीं हैं.[xvii] इस रिपोर्ट के आधार पर G20 देशों से व्यापार को लेकर नए रुकावटी क़दम नहीं उठाने का आह्वान किया गया था. समूह से बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देकर सकारात्मक वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को प्रोत्साहन देने की अपील की गई थी.
G20 के देश वैश्विक व्यापार के 80 फ़ीसदी हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं, और इसके ज़्यादातर सदस्य देश विकास और टेक्नोलॉजी के प्रयोग के मसलों में तुलनात्मक रूप से उन्नत स्तर पर हैं. विश्व स्तर पर बेहतरीन तौर-तरीक़ों का उपयोग करने वाले और डिजिटल उपकरणों के प्रयोगकर्ता के रूप में G20 के विशिष्ट व्यापार सुगमता वाले मज़बूत ढांचे से सदस्य देशों और G20 के साथ व्यापारिक कारोबार करने वालों की सहायता हो सकेगी. इसके बाद ऐसे ढांचे को व्यापक उपयोग के लिए वैश्विक प्लेटफ़ॉर्मों (जैसे विश्व व्यापार संगठन और वर्ल्ड कस्टम्स ऑर्गेनाइज़ेशन) में भी प्रस्तावित किया जा सकता है.
G20 के देश वैश्विक व्यापार के 80 फ़ीसदी हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं, और इसके ज़्यादातर सदस्य देश विकास और टेक्नोलॉजी के प्रयोग के मसलों में तुलनात्मक रूप से उन्नत स्तर पर हैं.
G20 के कुछ देश व्यापार सुगमता में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. बाक़ी देश भी उनके बेहतरीन तौर-तरीक़ों से फ़ायदा उठा सकते हैं. इससे कुल मिलाकर वैश्विक व्यापार सुगमता प्रदर्शन में सुधार आ सकेगा. व्यापार सुगमता सूचकांक (TFI) के मुताबिक 0 से 2 के पैमाने पर 1.87 के स्कोर के साथ दक्षिण कोरिया पहले स्थान पर है. इसके बाद नीदरलैंड्स (1.87), जापान (1.85), अमेरिका और स्वीडन (दोनों 1.84 पर) का दर्जा आता है.[xviii] अग्रिम निर्णयों, फ़ीस और शुल्क के साथ-साथ शासन-प्रशासन और निष्पक्षता के क्षेत्रों में G20 के देशों का प्रदर्शन बढ़िया है.[xix] इसी तरह G20 के कई देश कई अन्य वैश्विक सूचकांकों में भी बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले देशों में शुमार हैं. इनमें औसत व्यापार लागत सूचकांक[xx] और रसद यानी लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक[xxi] शामिल हैं.
व्यापार जीवनचक्र के हरेक पहलू को समेटने वाले TFA+ ढांचे की दरकार है. दो पक्षों द्वारा कॉन्ट्रैक्ट पर परिचर्चा शुरू किए जाने से लेकर उत्पादों की आपूर्ति और भुगतान पूरे कर दिए जाने तक का ब्योरा इसमें शामिल होना चाहिए. ये ढांचा व्यापारियों को समूची व्यापारिक प्रक्रिया में मार्गदर्शन उपलब्ध कराएगा. इनमें सेल्स कॉन्ट्रैक्ट्स, नियामक अनुपालनाएं, परिवहन से जुड़ी औपचारिकताएं, सीमा शुल्कों की मंज़ूरियों के साथ-साथ साख, वित्त और लेन-देन से जुड़े प्रावधान शामिल हैं. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रभावी एकीकरण हासिल करने के लिए डिजिटल कायाकल्प और अनुकूलन या एडेप्टेबिलिटी की दरकार होती है. इसे हासिल करने के लिए TFA+ रुख़ मददगार रहेगा. कोविड-19 महामारी ने व्यापार प्रक्रियाओं को डिजिटल अभ्यासों की ओर रुख़ करने की प्रक्रिया में तेज़ी ला दी है. निर्यात/आयात जीवनचक्र के हरेक चरण में डिजिटल अभ्यासों को अंजाम दिया जा रहा है (चित्र 3 देखिए). TFA+ दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय डिजिटल व्यापारिक प्रणाली को एकजुट कर व्यापार सुगमता को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा. ये देशों को अपने-अपने क्षेत्रीय व्यापार क़रारों के साथ वार्ता प्रक्रिया आगे बढ़ाने में भी सहायक होगा. कुछ देश तो पहले ही अपनी विदेश व्यापार नीति में डिजिटल पहलू को शामिल कर चुके हैं. मिसाल के तौर पर भारत की नई विदेश व्यापार नीति[xxii] में एकीकृत डिजिटल पहलों के क्रियान्वयन के ज़रिए व्यापार लागतों में कटौती करने पर ध्यान दिया गया है. इस क़वायद से व्यापारिक सुगमता की प्रक्रियाएं सरल बनाई जा सकेंगी और प्रॉसेसिंग में लगने वाले समय और लागतों में कमी की जा सकेगी.
चित्र 3: निर्यात/आयात जीवनचक्र
स्रोत: लेखक का ख़ुद का विश्लेषण
एक समान पहचान साझा करने वाले डेटा के ख़ास मायने हो सकते हैं. ये इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन से पक्ष उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. नतीजतन आदान-प्रदान के संदर्भ अस्पष्ट हो सकते हैं. जब डेटा ट्रांसमिशन के ज़्यादा से ज़्यादा तंत्र विकसित हो जाते हैं तब ये सुनिश्चित करना अहम हो जाता है कि सूचना को एक ही तरीक़े से कैसे समझा जाए.
मिसाल के तौर पर सिंगापुर ट्रेड डेटा एक्सचेंज तैयार करने के लिए सिंगापुर के सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों ने आपस में हाथ मिलाया. ये एक सार्वजनिक डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर है, जो भरोसेमंद और सुरक्षित डेटा शेयरिंग की सुविधा देता है. साथ ही डेटा कंट्रीब्यूटर्स और डेटा यूज़र्स के एक व्यापक दायरे में डेटा कनेक्शंस की मंज़ूरी देने के लक्ष्य के साथ काम कर रहा है.
सिंगल सबमिशन पोर्टल (SSP) एक साझा पहुंच बिंदु है जो व्यापार में शामिल सभी स्टेकहोल्डर्स को व्यापार से जुड़ी गतिविधि के लिए मानकीकृत रूप से सूचना साझा करने की सहूलियत देता है. SSP में कारोबार से कारोबार के बीच की गतिविधियों (जैसे परिवहन, रसद और वित्तीय सेवाओं के साथ होने वाले कार्य) को सुगम बनाने के लिए ज़रूरी सूचना शामिल होती है. साथ ही ये कारोबार और सरकार के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के ज़रिए नियामक प्रक्रियाओं की भी सुविधा मुहैया कराता है.
मिसाल के तौर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंच में MSMEs के लिए एकीकृत सेवाओं के तहत व्यापार और परिवहन क्षेत्र से जुड़े किरदारों को एक छत के नीचे लाया गया है. इसका मक़सद लघु और मझौले उद्यमियों को पेशेवर अंतरराष्ट्रीय व्यापार सेवाएं मुहैया कराना है. आसियान सिंगल विंडो (यानी एकल खिड़की) इस क़वायद की एक और मिसाल है. ये एक क्षेत्रीय इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म है, जिसका लक्ष्य आसियान के सदस्य राष्ट्रों के बीच व्यापार से जुड़े दस्तावेज़ों के इलेक्ट्रॉनिक आदान-प्रदान में तेज़ी लाकर समूह के भीतर आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है.
व्यापार सूचना पोर्टल यानी TIP एक ऑनलाइन सुविधा है, जो व्यापार से जुड़े सभी नियमनों और प्रक्रियाओं की सूचनाओं को एक जगह इकट्ठा करता है. साथ ही प्रयोगकर्ताओं के अनुकूल (यूज़र-फ्रेंडली) इंटरनेट साइट के ज़रिए इसे उपलब्ध कराया जाता है. ये एक ही स्रोत पर खोजे जा सकने वाले, सटीक, विस्तृत और ताज़ातरीन सूचनाओं तक आसान पहुंच सुनिश्चित करता है. ये निजी क्षेत्र के लिए व्यापार समझौतों और क़ानूनों तक पहुंच बनाने, उनकी समझ विकसित करने और उनका पालन करने की क़वायद को पहले से ज़्यादा आसान बना देता है.
व्यापार सूचनाओं की निर्भरशीलता, पारदर्शिता और पूर्वानुमान लगाने की क्षमता में सुधार लाने के लिए G20 के सदस्य व्यापार सूचना पोर्टल यानी TIP की स्थापना कर सकते हैं. G20 को सभी अहम किरदारों के साथ मिलकर एक गठजोड़कारी प्रशासकीय निकाय स्थापित करना चाहिए. इस निकाय पर TIP के निर्माण, क्रियान्वयन और कामकाज की रणनीतिक दिशा तय करने और निरीक्षण की ज़िम्मेदारी डाली जानी चाहिए. G20 के देशों के पास एक साझा व्यापार सूचना पोर्टल हो सकता है. इसे अपने क्षेत्राधिकार में सूचनाओं के संबंध में पूरी तरह से जवाबदेह होना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से गुज़रने वाली हरेक शिपमेंट की जांच और निरीक्षण कर पाना लगभग नामुमकिन है. इसके लिए एक ठोस जोख़िम प्रबंधन प्रणाली की दरकार होगी. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रौद्योगिकियों को कस्टम क्लीयरेंस प्रणाली में उपयोग में लाया जा सकता है क्योंकि इसमें न्यूनतम ग़लतियों के साथ कुशलतापूर्वक जोख़िम प्रबंधन करने की क्षमता होती है.
प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के ज़रिए प्रावधानों में दक्षता और सुधार को आगे बढ़ाने में G20 निर्णायक भूमिका निभा सकता है. उन्नत जोख़िम प्रबंधन प्रणाली के लिए नीचे दिए गए कारकों का विकास किया जा सकता है:
मिसाल के तौर पर यूनाइटेड किंगडम की फ़ूड स्टैंडर्ड एजेंसी (FSA) ने पूर्व चेतावनी प्रणाली और स्मार्ट सर्विलांस की व्यवस्था विकसित की है. विभिन्न स्रोतों से जुटाए गए डेटा के विश्लेषण के ज़रिए इस क़वायद को अंजाम दिया गया. इनमें व्यापार नियंत्रण और विशेषज्ञ प्रणाली, भोजन और चारे के लिए रैपिड अलर्ट सिस्टम और प्रॉसिजर फ़ॉर इलेक्ट्रॉनिक ऐप्लिकेशन फ़ॉर सर्टिफ़िकेट्स शामिल हैं. उत्पादों से संबंधित जोख़िम की मात्रा या बचावकारी उपायों पर नज़र डालने की क़वायद इसके तहत आती है. साथ ही आयातक के इतिहास, मूल देश के ख़िलाफ़ अतीत में उठाए गए क़दमों का बहीखाता और अन्य कारकों पर भी ग़ौर किया जाता है. यूनाइटेड किंगडम की फ़ूड स्टैंडर्ड एजेंसी (FSA) डेटा विज्ञान प्रणालियों के ज़रिए (ओपन) डेटा का विश्लेषण करती है. उभरते ख़तरों की इसकी मदद से पहले ही पहचान कर ली जाती है ताकि वो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जोख़िम भरा सबब ना बन पाएं. मिसाल के तौर पर FSA वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर मौजूद डेटा का इस्तेमाल करके फ़सलों के नमूनों और बीमारियों के प्रकोपों का आकलन करती है.
व्यापार सुविधा से जुड़े अलग-अलग पहलुओं को समझने और उनमें सुधार लाने के लिए G20 देश सतत व्यापार और परिवहन सुगमता निगरानी तंत्र (TTFMMs) की स्थापना कर सकते हैं. व्यापार के विकास और परिवहन सुगमता का मूल्यांकन करने के लिए ऐसी व्यवस्था क़ायम की जा सकती है.
आंकड़ों के संग्रहण के लिए कुछ मौजूदा स्वचालित प्रणालियों यानी ऑटोमेटेड सिस्टम्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. इनमें ऑटोमेटेड सिस्टम्स फ़ॉर कस्टम्स डेटा शामिल है. हालांकि इस दिशा में कुछ अहम अनसुलझे मसले बरक़रार हैं. इनमें ई-डॉक्यूमेंटेशन और ई-भुगतानों को स्वीकार करने के लिए प्रावधानों का अभाव शामिल है. इन मसलों का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किए जाने की दरकार है.
वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में पारदर्शिता और ट्रेसेबिलिटी में सुधार लाकर नैतिकतापूर्ण कारोबार को बढ़ावा देने के मक़सद से नीतिगत कार्रवाईयों के पक्ष में आवाज़ लगातार बुलंद होती जा रही है.
सतत और टिकाऊपन के दावों के सत्यापन के लिए ऐसी क़वायद मददगार साबित होगी. ख़ासतौर से लघु और मझौले उद्यमों की सांगठनिक प्रक्रियाओं को आसान बनाकर और उनमें सुधार लाकर ये गतिविधि सस्ती भी बन जाएगी. मानव अधिकारों और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में भी ये टिकाऊपन के दावों को भरोसेमंद बना देगी.
‘ब्लॉकचेन फ़ॉर मेड इन इटली ट्रेसेबिलिटी’ पायलट परियोजना का लक्ष्य ट्रेसेबिलिटी के क्रियान्वयन में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का मूल्यांकन करना है. इसी प्रकार आर्गेनिक तरीक़े से उगाए जाने वाली मिस्र के कपास के लिए UNECE ब्लॉकचेन ट्रेसेबिलिटी पायलट परियोजना का मक़सद कनेक्टिविटी और लागत दक्षता के लक्ष्य के साथ ब्लॉकचेन के संभावित इस्तेमाल को प्रदर्शित करना है. बहरहाल, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के प्रयोग के लिए देशों के बीच डेटा और उसके आदान-प्रदान में मानकीकरण की दरकार होती है. इतना ही नहीं, इंटर-आपरेबिलिटी के अभाव से अनुरूपता (compatibility) की समस्याएं पैदा होती हैं क्योंकि पूरी आपूर्ति श्रृंखला में तमाम किरदारों द्वारा अलग-अलग प्रकार की ट्रेसेबिलिटी तकनीकों का प्रयोग किया जाता है.
व्यापार सुविधा प्रणाली मूल रूप से चार स्तंभों पर खड़ी की गई थी- पारदर्शिता, सरलीकरण, अनुकूलता और मानकीकरण. 2017 में विश्व व्यापार संगठन ने व्यापार सुविधा प्रणाली में पांचवें स्तंभ के रूप में ‘समन्वय’ को शामिल कर लिया. व्यापार सुगमता में सुधार लाने और चुनौतियों का निपटारा करने में आधुनिक प्रौद्योगिकियों की भूमिका और क्षमता को मद्देनज़र रखते हुए G20 के डिजिटल व्यापार सुविधा रणनीतिक ढांचे में डिजिटलीकरण को छठे स्तंभ के रूप में शामिल करने की सिफ़ारिश की जाती है (चित्र 4 और 5 देखिए).
चित्र 4: G20 व्यापार सुविधा ढांचा
स्रोत: लेखक के ख़ुद के
छठे स्तंभ में ताज़ातरीन प्रौद्योगिकियों को जोड़ा जाएगा. इसमें डिजिटल कौशल प्रशिक्षण, सूचनाओं तक पहुंच बनाने में सरलीकरण और उपयुक्त सूचना के प्रस्तुतीकरण को शामिल किया जा सकता है. इस कड़ी में G20 के सदस्य देशो में निर्यातकों द्वारा महसूस की जा रही ज़्यादातर चुनौतियों के समाधान के तौर पर डिजिटलीकरण पर ध्यान दिया गया है. ये ढांचा व्यापार प्रक्रिया प्रणालियों में आधुनिक प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने पर ज़ोर देता है ताकि इसे सरल, पारदर्शी, मानकीकृत, अनुकूल और तथ्यपरक बनाया जा सके. व्यापार सुविधा प्रणाली के डिजिटलीकरण से देशों के भीतर के पक्षों और तमाम देशों के बीच बेहतर तालमेल क़ायम हो सकेगा.
चित्र 5: G20 व्यापार सुविधा ढांचे को परिभाषित करना
ये रूपरेखा बुनियादी ढांचे के विकास पर काफ़ी तवज्जो देती है ताकि ये हार्ड इंफ़्रास्ट्रक्चर और सॉफ़्ट इंफ़्रास्ट्रक्चर के मामले में डिजिटल प्रणालियों के अनुकूल हो सके. साथ ही डिजिटल कौशल से लैस मानव संसाधनों के क्षमता निर्माण के ज़रिए कौशल के क्षेत्र में मौजूदा अंतरों को दूर किया जा सके.
[a] व्यापार सुगमता के पांच सिद्धांतों पर आधारित. विश्व व्यापार संगठन द्वारा घोषित ये पांच सिद्धांत हैं- पारदर्शिता, सरलीकरण, अनुरूपता, मानकीकरण और समन्वय.
[i] “Trade Facilitation,” World Trade Organisation, accessed April 10, 2023.
[ii] “TAPED,” University of Lucerne, accessed March 20, 2023.
[iii] “Trade Facilitation Agreement Database,” World Trade Organisation, accessed on April 10, 2023.
[iv] “UN Global Survey on Digital and Sustainable Trade Facilitation,” United Nations, accessed April 12, 2023.
[v] “Customs Cooperation,” World Trade Organisation, accessed March 25, 2023.
[vi] “Implementation progress by measure,” World Trade Organisation, accessed April 30, 2023.
[vii] “Codex Alimentarius Commission (CAC),” Food and Agriculture Organisation of India, accessed April 14, 2023.
[viii] “Food Safety and Quality,” Food and Agriculture Organisation of India, accessed April 14, 2023.
[ix] “Food Safety and Quality”
[x] “WCO Study Report on Customs Brokers,” World Customs Organisation, accessed March 16, 2023.
[xi] “Tackling the Big Customs Skills Shortage,” EU Business News, Last modified September 2, 2021.
[xii] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition,” OECD, accessed March 15, 2023.
[xiii] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition”
[xiv] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition”
[xv] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition”
[xvi] ]“G20 Action Plan on the 2030 Agenda for Sustainable Development,” G20 Germany, accessed April 12, 2023.
[xvii] “WTO report shows G20 trade restrictions increasing amidst economic challenges,” World Trade Organisation, last modified November 14, 2022.
[xviii] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition,” OECD, accessed March 15, 2023.
[xix] “Trade Facilitation Indicators 2022 edition”
[xx] “Trade Cost Index,” World Trade Organisation, accessed March 10, 2023.
[xxi] “Logistics Performance Index,” World Bank, accessed March 10, 2023.
[xxii] “Foreign Trade Policy 2023,” DGFT, accessed April 13, 2023.